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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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राजस्थानी कहावता (च-ञ)


चक्कू खरबूजै पर पड़ै तो खरबूजै को नास, खरबूजो चक्कू पर पड़ै तो खरबूजै को नास।
चडती जवानी हर भर्योडी आंट कितना औगण कोनी करै?
चढसी जिका नै गिर्यां सरसी।
चणा चाब कहै, म्हे चावण खाया, नहीं छान पर फूस, म्हे हेली से आया।
चणा जठे दांत ना अर दांत जठे चणा ना।
चणूं उछल कर किसो भाड़ नै फोड़ गेरसी ?
चतर नै चोगणी, मूरख नै सो गणी।
चमारी रङ रावलै जा आयी।
चलती को नांव गाडी है।
चांच देई जठे चुग्गो भी त्यार है।
चांद को गण गंडक नै भार्यो।
चांद सूरज कै भी कलंक लागै।
चाए जिता पालो, पांख उगतां ही उड़ ज्यासी।
चाकरी सै सूं आकरी।
चाकी में पड़ कर सापतो कोनी नीसरै।
चान आगै लूंगत कतीक बार छिपै।
चाम को के प्यारो, काम प्यारो है।
चालणी को चाम, घोडै की लगाम, संजोगी को जाम, कदे न आवै काम।
चालणी मे दूद दूवै, करमां नै दोस देवै।
चाली पिरवा पून मतीरी पीली।
चावलां की भग्गर को के हुवै, बाजरै की को तो सोक्यूं हो।
चावलां को खाणो फलसै तांई जाणो।
चिड़पिड़ै सुहा सूं रंडापो ही चोखो।
चिड़-चिड़ी की के लड़ाई, चाल चिड़ा मैं आई।
चिड़ी की चांच में सो मण को लकड़ो।
चित्रा दीपक चेतवे, स्वाते गोबरधन, डंक कहे हे भड्‌ड़ली अथग नीपजै अन्न।
चींचड़ी र खाज।
चीकणी चोटी का सै लगवाल।
चीकणै घड़ै पर पानी की बूंद को ठहरै ना।
चीकणै घड़ै पर बूंद न लागै, जै लागै तो चीठो।
चील को मांस तो चुटक्यां में ही जासी।
चुस्सी को सिकार और ग्यार तोप।
चूंटी टूंटी को भी लंक लागै है क्यूं कै नित बड़ी है।
चूंटी चून घड़ा दस पाणी का।
चून को लोभी बातां सूं कद मानै।
चूनड़ ओढ़ै गांठ की, नांव पीर को होय।
चूसै का जाया तो बिल ई खोदैगा।
चूसै के बिल में ऊंट कैयां समावै।
चेला ल्यावै मांग कर, बैठा खावै महन्त।
राम भजन को नांव है, पेट भरण को पन्थ।
चैत चिड़पडो सावण खरखड़ा।
चैत पीछलै पाख, नो दिन तो बरसन्तो राख।
चैत महिने बीज लुकोवे धुर बैंसाखां केसू धोवै।
चैत मसा उजाले पख, नव दिन बीज लुकोई रख।
आठम नम नीरत कर जोय, जां बरसे जां दुरभख होय।
चैत मास नै पख अंधियारा, आठम चवदस हो दिन सारा।
जिण दिस बादलण जिण दिस मेह, जिण दिस निरमल जिण दिस खेह।
चोखो करगो, नाम धरगो।
चोटी काट्यां चेलो कोनो होय।
चोटी राख कर घी खाणूं।
चोपड़ी अर दो दो।
चोपदरां कै सैं कुण परोसो ले ?
चोर की जड़ चोर ही दाबै।
चोर की मा घड़ै में मुंह देकर रोवै।
चोर की मां रो बी कोनी सकै।
चोर कै छाती है, पण पग कोनी।
चोर कै बागली ही कोनी।
चोरी चोरी करे पण घर आव ने ता साच बोले है।
चोरी चोरी सै गयो, जूती बदलण सै थोड़ो ई गयो।
चोर नै के मारे, चोर की मां नै मारे।
चोर पेई लेगो, ले जाओ ताली तो मेर कन्नै है।
चोरी अर सीना जोरी।
चोरी को धन मोरी में जाय।
चौमासे को गोबर लीपण को, न थापण को।
च्यार कूंट सै मथुरा न्यारी है।
च्राय चोर चोरासी बाणिया, के करै बापड़ा एकता बणिया।
च्यार दिना री चानणी, फेर अंधेरी रात।

छदाम को छाजलो, छै टका गंठाई का।
छन में छाज उड़ावै, पल मैं करै निहाल।
छाज तो बोलै सो बोलै पण चालणी बी बोलै जै कै ठोतरसो बेज।
छींक खाये, छींकत पीये, छींकत रहिये सोय।
छींकत पर घर कदे न जाये, आछी कदे न होय।
छुट्येडा तीर पाछा कोनी आवै।
छेली दूद तो देवै पण देवै मींगणी करकै।
छोटी-मोटी कामणी सगली बिस की बेल।
छोटो उतणूं ही खोटो।
छोडा छोलणं बूंट उपाड़न, थपथपियो, ओ नाई एता चेला न करो, गरुजी काम न आवै कांई।
छोड़ो ईस, बैठो बीस।
छोरा ! तेरी पेट तो बांको, कहै, ढाई सरे राबड़ी तो ऐं ही में उलझाल्यूं।
छोरा ! पेट क्यूं टूटगो ? कै मांटी खाऊं हूं।
छोरा, बार मत जाजै, बीजली मार देगी, कह- ऐ जाटां हाला ना खेलै है, कह, ऐ तो बीजली का मार्योड़ो ही है।
छोरी ऐं गांव में चौधर कैं कै, कह, भई पहल काणैं तो म्हारै खेत निपज्यो हो सो चौधर म्हारे थी। इबकै बाजरी मेरै काका कै हो गई सो चौधर ऊंकै चली गई।
छोरो बगल में, ढूंढै जंगल में।
छोर्यां सै ही घर बस ज्याय तो बाबो बूडली क्यूं ल्यावै ?

जगत की चोर, रोकड़ को रुखालो।
जट खोस्यां किसा ऊंट मरै है ?
जटा बधे बडरी जब जांणा, बादल तीतर-पंख बखाणां, अवस नील रंग व्है असमाणां, घणबरसे जल रो घमसाणां।
जठे देखै तवा परात, उठे नाचै सारी रात।
जठे पड़ै मूसल, उठै ही खेम कूसल।
जद कद दिल्ली तंवरां।
जननी जमे तो दोय जण, के दाता के सूर, नातर रहजे बांझड़ी, मती गंवावे नूर।
जब लग तेरे पुण्य को, बीत्यो नही करार। तब लग मेरी माफ है, औगण करो हजार।
जबान में ही रस जबान में ही बिस।
जमी जोरू जोर की, जोर हट्यां और की।
जमींदार कै बावन हाथ हुवै।
जमीन को सोवणियो रङ झूठ को बोलणियो संकड़ेलो क्यूं भूगतै ?
जयो चींचड़ी, दायमू, खटमल, माछर जूं, अकल गई करतार की, अता बणाया क्यूं।
जल को डूब्यो तिर कर निकलै, तिरिया डूब्यो बह ज्याय।
जल का जामा पहर कर, हर का मंदर देख।
जलम अकारथ ही गयो गोरी गले न लग्ग।
जलम को आंधो नाम नैणसुख।
जलम को दुख्यारो, नांव सदासुखराय।
जलम घड़ी रङ मरण घड़ी डाली कोनी टलै।
जलम रात रङ फेरा टाली कोनी टलै।
जसा बोलै डोकरा, बसा बोलै छोकरा।
जसा साजन, उसा भोजन।
जसा देव, बसा ई पूजारा।
जसो राजा, बसी ही परजा।
जहर खायगो सो मरैगो।
जहर नै जहर मारै।
जां का मरग्या बादस्याह, रुलता फिरै वजीर।
जांट चढै जको सीरणी बांटै।
जागै सो पावै, सोवै जो खोवै।
जाट कहै सुम जाटणी इणी गांव में रैणो, ऊंट बिलाई लेगई हांजी हांजी कहणों।
जाट की बेटी और काकोजी की सूं।
जाट को के जजमान, राबड़ी को के पकवान।
जाट गंगाजी हा आयो के ? कह, खुदाई कुण है।
जाट जंगल मत छेड़िये, हाट्यां बीच किराड़।
रंघड़ कदे न छेड़िये, जद द करै बिगाड़।
जाट जंवाई भांणजो, रैबारी सूनार।
कदे न होसी आपणा, कर देखो व्योहार।
जाट जठे ठाठ।
जाट जडूलै मारिये, कागलिये नै आलै। मोठ बगर में पाड़िये, चोदू हो सो बालै।
जाट जाट तेरो पेट बांको, कह, मैं ऐ मैं ई दो रोटी राबड़ी अलजा ल्यूंगो।
जाट डूबै धोली धार, बाणियो डूबै काली धार।
जाटणी की छोरीर भलकै बिना दोरी।
जाट न जायो गुण करै, चणैं न मानी बाह, चन्नण बिड़ो कटायकी, अब क्यूं रोवै बराह।
जाट रै जाट ! तेरै सिर पर खाट, कह, मियां रै मियां ! तेरै सिर पर कोल्हू, कह, तुक तो मिली ना, कह, बोझ्यां तो मरैगो।
जाण न पिछाण मैं लाडा की भुवा।
जाण मारै बाणियूं, पिछाण मारै चोर।
जातरी धाणकीङ र कैवे भींट्योडो को खावूं नी।
जातै चोर का झींटा ही चोखा।
जावण लाग्या दूद जमै।
जावो कलकत्तै सूं आगै, करम छांवली सागै।
जावो भांव जमी के ओड़, योई माथो योई खोड़।
जावो लाख रहो साख।
जायां पहलां न्हाण किसो ?
जिकै गांव नहीं जांणू, ऊंको गैलो ही क्यूं पूछणूं ?
जिण का पड्या सुभाव क जासी जीव सूं।
नीम न मीठो होय, सींचो गुड़ङर घींव सूं।
जितणै की ताल कोनी, उतणै का मजीरा फूटगा।
जितणा मूंडा, उतणी बात।
जिसी करणी, उसी भरणी।
जींकै घर में दूजै गाय, सो क्यूं छाछ पराई जाय ?
जीं हांडी में सीर नई, बा चडती ई फूटै।
जीं की खाई बाजरी, ऊंकी भरी हाजरी।
जी को चून, ऊंको पुन्न।
जी को बाप बीजली सै मरै, बो कड़कै सैं डरै।
जी नै देख्यां ताप आवै, बो ही निगोड़्यो ब्यावण आवै।
जीबड़ल्यां घर ऊजड़ै, जीबड़ल्यां घर होय।
जीभड़ली मेरी आलपताल कडकोला खा मेरो लाड़लो कपाल।
जीम्यां पाछै चलू होय है।
जीम्यांङर पातल फाड़ी।
जीव को जीव लागू।
जीवतड़ा नहीं दान, मर्यांने पकवान।
जीवतां लाख का, मर्यां सवा लाख का।
जीवती मांखी कोन्या गिटी जाय।
जीवैगा नर तो करैगा घर।
जीवो बात को कहणियुं जीवो हुंकारा दीणियुं।
जी हांडी में खाय, बी में ही छेद करै।
जुगत जाणनुं हांसी खेल कोनी।
जुग देख जीणुं है।
जुग फाट्यां स्यार मरै।
जूती चालैगी कतीक, कह, बीमारी जाणिये।
जे टूट्यां तो टोडा।
जेठ गल्यो गूजर पल्यो।
जेठ जी की पोल में जेठ जी ही पोढ़ै।
जेठ बीती पहली पड़वा, जो अम्बर धरहड़ै।
आसाढ सावण काड कोरो, भादरवै बिरखा करै।
जेठ मूंगा सदा सूंगा।
जेठा अन्त बिगाड़िया, पूनम नै पड़वा।
जेठा बेटा भाई बराबर।
जेठा बेटाङर बेठा बाजरा राम दे तो पावै।
जेबां घाल्या हाथ जणा ही जाणिया, रुठ्योडो भूपाल क टूठ्या बाणियां।
जेर सैंई सेर हुया करै है।
जेवड़ी बलज्या पण बल कोनी जाय।
जै की चाबै घूघरी, बैंका गावै गीत।
जैं की टाट, जैं की ही मोगरी।
जैतलदे बिना किसो रातीजुगो।
जै तूं गेरैगो तोड़-मरोड़, मैं निकलूं गी कोठी फोड़।
जै धन दीखै जावतो, आधो दीजै बांट।
जै बाण्या तेरे पड़ गया टोटो, बड़जया घी का कोटा में, खीर खांड का भोजन करले, यो भी टोटा टोटा में।
जै भीज्यो ना काकड़ो तो क्यां फेरै हाली लाकड़ो ?
जै रिण तारे बाप को तो साडा मूंग बुहाय।
जैसा कंता घर भला, वैसा भला विदेश।
जोजरै घड़ै ही जोरी अवाज।
जी जोड़ै सो तौड़ै।
ज्यादा लाड सै टाबर बिगड़ै।
ज्यूं-ज्यूं बड़ो हुवै ज्यूं-ज्यूं पत्थर पड़ै है।
ज्वर जाचक अर पावणो, चोथे मंगणहार। लंघण तीन कराय दे, कदे न आसी द्वार।

झखत विद्या, पचत खेती।
झगड़ै ही झगड़ै तेरो कींणू तो देख।
झगड़ो अर भेंट बधावै जितनी ई बधै।
झट काढी पट बाई।
झलकणै सूं सोनी कोनी होय।
झूठ की डागलां तांई दोड़।
झूठ बिना झगड़ो नहीं धूल बिना घड़ो नहीं।
झूठ बोलणियोंङर धरती पर सोवणियों संकड़ेलो क्यूं भगतै ?
झूठी राख छाणी, ल्हादी न दाजी धांणी।
झूठै की के पिछाण, कै बो सोगन खाय।
झैर नै झीर मारै।
आगे री कहावतां- क-घ च-ञ ट-ण त-न प-म य-व श-ज्ञ

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