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राजस्थानी कहावता (य-व)


या जांघ उघाड़ै तो या लाजां मरै, या उघाड़ै तो या।
यो टोरड़ो तो दोरो ई पार होसी।
या देवी बोला भगत तार्या है।
या बेटी अर यो दायजो।
या नै आपकी यारी सैं ही काम।
यारी का घर दूर है।
यो ही म्हारो आसरो, के पीर के सासरो।

रंकी रीझै तो रो दे।
रजूपत की जात जमी।
रजपूती धोरां मे रलगी, ऊपर चढ़ गई रेत।
रमता राम, बैठ्या सोई मुकाम।
रलायां हाथ धुपै।
रहण नै तो टापरी कोन्या, सुपनू देखै महलां को।
रही घणां दिन राज कै, बे इज्जत बरती।जाती करै जुहराड़ा, धणियां सू धरती।
रांड आगै गाल कोनी।
रांड कै मार्योड़ै की अर गांव में फिर्योडै की दाद-फिराद कोनी।
रांड के सुहागन पगां लागी, मेरे जिसी तूं भी होज्या।
रांड स्याणी तो होवै पण होवै खसम मर्यां पाछै।
राई का भाव रात ही गया।
राई बिना किसो रायतो ?
राख पत, रखाय पत।
राग रसोई पागड़ी, कदे कदे बण ज्याव।
राधो भलो न पिरागो।
राजा करै सो न्याव, पासो पड़ै सो डाव।
राजा कै घर मोतियां की के कमी है ?
राजा के सोनै का पागड़ा ? कह, आज के दिन तो भलांई गुड़ा का कराल्यां।
राजा गढ़ां में, जोगी मढां में।
राजा जोगी अगल जल, इण की उलटी रीत।डरता रहियो परसराम, ये थोड़ी पालै प्रीत।
राजा बांधै दल, बैद बांधै मल।
राजा मान्या सो मानवी, मेवां मानी धरती।
राजा राज पिरजा चैन।
राजा रूसै तो आपको गांव राखै।
राजा सल्ला को, पीसो पल्ला को।
राड करै तो बोलै आडो।
राड को घर हांसी, रोग को घर खांसी।
राड सै बाड़ भली।
राणी नै काणी मना कहो।
रात अंधेरी, मा परोसगारी।
रातै आगा उँवार कोनी।
रात की नींद गई, दिन की भूख गई।
रात च्यानणी, बात आंख्या देखी मानणी।
रात नै रात्यूंदो, दिन में सूजै ई कोन्या।
रात बी खोई, जगात भी दी।
राबड़ी को नांव गुलसफ्फा।
राबड़ी की कहै मन्नै दांतो सै खावो।
राबड़ी में गुण होता तो ब्या में नां रांधता।
राबड़ी में राख रांधै, चून चाटै पीसती।देखो रै या फूड़ रांड़, चालै पल्ला घींसती।
राम कह कर रहीम के कहणूं ?
राम की डांग पर बेड़ो हैं।
राम कै घर को राम नै ही बेरो।
राम को अर राज को सिर ऊपर कै गैलो है।
रामजी ऊपर चढ्यो देखै है।
रामजी को नांव सदा मिसरी, जब चाखै जब गूंद गिरी।
राम झरोखै बैठ कर, सबका मुजरा लेय।जैसी देखै चाकरी, जैसा ही भर देय।
राम दे तो बाड़ में ही देदे।
रामदेवजी नै मिल्या जका ढेढ ही ढेढ।
राम घणी के गांव घणी।
राम नै लंका लूट्यां ही जुग बीतगा।
राम राम चौधरी, सलाम मियांजी। पगे लागूं पांडिया, दंडोत बाबाजी।
राम रूस्योड़ो पुरो।
रामूं कहो भावं उजाड़ कहो।
रावली घोड़ी, बावला हसवार।
रावलै को तेल पल्लै में ई चोखो।
राम पुराणी बाजरो, मींडक चाल जंवार। इक्कड़ दुक्कड़ मोठिया, कीड़ी नाल गंवार।
रिपिया तेरी रात, दूजो नर जलम्यो नहीं। जे जलम्या दो च्यार, तो जुग में जीया नहीं।
रिपियो हाथ को मैल है।
रूअं धूअं अर मूंवां, जाड़ो कोनी लागै।
रूप का रूड़ा रोहीड़ै का फूल।
रूप की धणियाणी पाणी भरबा जाय।
रूप को रोवै, करम को खाय।
रेवड़ में कुण गयो ? बाबो ! कह, बाबो भेड्या सैं भी बूरो।
रोगी की रात अर भोगी को दिन करड़ो नीसरै।
रोज में रोवण जोगो न, गीत में गावण जोगो न।
रोटी साटै रोटी, के पतली के मोटी।
रोतो जाय अर मारतो जाय।
रोयां बिना मा बी बोबो कोनी दे।
रोयां राबड़ी कुण घालै।
रोवती जाय, मुवै की खबर ल्यावै।

लंका में किसा दालदी कोनी बसै।
लंका में बावन हाथ का।
लंघन सै लापसी चोखी।
लखण लखेसरी का, करम भिखारी का।
लजवन्ती घर में बड़ी, फूड़ जाणै मेरे सै डरी।
लदणिया ई लद्या करैं है।
लद्योड़ा ही लदै।
लरड़ी पर ऊन कुण छोड़ है ?
लांबी बां दूर तांई पसरै।
ला कोई बीरन ऐसा नर, पीर बबरची भिस्ती खर।
लाखां पर लेखो, क्रोडां पर कलम।
लागै जठे पीड़।
लागै जैंकै करकै।
लाग्यो तो तीर, नहीं तुक्को ही सही।
लाग्योङर भाग्यो।
लाज तो आंख्या की होय है।
लाठी टूटै न भांडो फूटै।
लाडू को कोर चाखै जठे ही मीठी।
लाडू फूटै उठे तो भोरा खिडै ही।
लातां को देव बातां सै कोनी मानै ।
लाबद्या को ओड कोनी।
लाम को अर काम को बैर है।
लाय लाग्यां किसो कुवो खुदै ?
लालाजी करी ग्यारस अर बा बारस की दादी।
लिखी है ललाट लेख ऊं मैं नहीं मीन-मेख।
लिछमी आई ज्यां ही गइ।
लिछमी कठे जाकर राजी हुई।
लीद की खाय तो हाथी की खाय जिंको पेट तो भर ज्याय।
लीप्यो पोत्यो आंगणूं और पहनी-ओढ़ी स्त्री सुन्दर लगती है।
लुगाई कै पेट में टाबर खटा ज्याय, पण बात कोनी खटावै।
लुगाई को न्हाणू, मरद खाणूं।
लुगाई की कमाई मोट्यार खाय तो टांटियै को बिस उतर ज्याय।
लूंगा चढ़गी बांस, उतैर चौथे मास।
लूण फूट-फूट कर निकलै।
लूण बिना रसोई पूण।
लूली अर लीपै। दो जणां पकड्यां, कह आके बात ? कह, आ चोखो लीपै।
ले पाड़ोसण झूंपड़ी, नित उठ करती राड। आदो बगड़ बुहारती, सारो ही बुहार।
ले ले करतांतो डाकण भी कोन्या ले।
लोडा तिरै, सिल डूबै।
लोहां लक्कड़ चामड़ा पहलां किसा बखाण। बहू बछेरा डीकरा, नीमटियां परवाण।।
ल्याऊं चून उधारो कोई गुड़ दे तो। मर-पड़ का खाल्यूं-कोई कर दे तो।।
लहसण बी खायो, रोग बी की गयो ना।

वर घोडी घर और था, खाती दाणू घास। यह घर घोड़ी आपणां, कर गोविंद की आस।। वाकै जासी धरतड़ी, वाकै जा आसमान।
वाह ही नार सुलाखणी, जैंको कोठी धान।
विद्या बणिता बेल नृप, ये नहिं जात गिणन्त। जो ही इनसे प्रेम करै, ताहू कै लिपटन्त।।
वेश्या बरस घटावै अर जोगी बधावै।
वैसुन्दर देवता घणी ई चोखो पण घर में लाग्यों बेरो पड़ै।
आगे री कहावतां- क-घ च-ञ ट-ण त-न प-म य-व श-ज्ञ

 

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