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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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सहयोगकर्ता श्री देवेन्‍द्र पुरोहित (शिक्षक)
रा. उ. प्रा. विद्यालय- पालडी
जिलो- सिरोही (राजस्‍थान)
सिरोही
 
सिरोही नगर राजस्‍थान रो भाखर प्रदेश अर सीमा रो जिलो हैं। ख्‍यातनोम इतिहासकार कर्नल टॉड रै अनुसार सिरोही नगर रो खास नोम शिवपुरी थो। १४०५ माय राव शोभा जी ने शिवपुरी नगर री थापना करी। प्रदेश रो अेकलो पर्वतीय स्थल माउन्ट आबू इण जिले रै माय हैं। ओ क्षेत्र मौर्य, क्षत्रप, हूण, परमार, राठौड, चौहान, गुहिल आदि शासकों रो गुलाम रिओ। पुरोणू समै माय इण क्षेत्र नैं आबुर्द प्रदेश रै नोम ती जोणता था साथ ही ओ गुर्जर-मरू प्रदेश रो एक भाग थो। देवडा राजा रायमल रै बेटे शिवभान सरणवा पहाड़ो माय एक दुर्ग री थापना करी अर १४०५ माय शिवपुरी नोमक नगर बसाया। उणरै बेटे सहसमल शिवपुरी रै दो मील आगे १४२५ माय नवो नगर बसाया, जिणनैं आज सिरोही रै नोम ती जोणा। राजस्‍थान रै दक्षिण-पश्चिम माय बस्‍यो सिरोही गुजरात राज्य ती जुड़्योड़ो एक खास नगर है अर इणरै नोम ती ही जिला मुख्यालय हैं। ओ सिरोही रोड़ रेल्वे स्टेशन ती २४ किमी अड़गो हैं। श्री राय साहब विसाजी मिस्त्री नैं सिरोही रो खास इंजिनियर केविजे। उणरै योगदान रै वा ती वठैरा मिनख वणानै आज भी याद राखै। पराक्रम अर शौर्य री धरती है सिरोही सिरोही राज्य क्षैत्रफल माय घणो छोटा जिला वे तो करतो भी आपाणा आंचल माय गौरवशाली इतिहास समेट्योड़ो है। विक्रम संवत 1482 माय राव सहस्त्रमल (शेषमल) ओपणै राज्य री राजधानी रै रूप माय सिरोही री थापना करी। ऐतिहासिक गवाही रै अनुसार आक्‍खा तीज रै दिन शिवपुरी (पुराणो सिरोही, खोबा) रै महाराव सहस्त्रमल नैं शिकार रै समै अबार रै राजमहलों रै जगह माथै घणा जंगल माय एक अद्भुत दरसाव देखवानूं मिल्‍यो। वठै एक खरगोश भाटा री चट्टान माथै खड़ो व्‍हैन बदला री भवना ती सींचाणा (बाज) रो सोमनो करवा रो कोशिश करतो हो। उण चमत्कारी दरसाव नैं देखता राजा उण भूमि नैं शौर्य री धरा मानता उणी जगह माथै राजधानी बणवाणे री नींव वण दारै राखी। इण घटना री पुष्टि चौहान कुल कल्पद्रुम अर दूजां रै साखी ती होवै है। 1405 माय शिवपुरी नोम ती नई राजधानी बनी अबार रै महलों रै जगह माथै घणो जंगल थो। जिण भाटा माथै उबा रेहन खरगोश शिकारी रो सोमनो किदो। वो हीं पेली नींव रो भाटो हुओ। इतिहास गवाह है कै सन् 1206 माय माणिकयराय जालोर ती अलगो व्‍हैन बरलुट माय ओपणै राज्य री थापना करी। सन् 1250 महाराव विजयराज रै काल माय वाडेली अर सन् 1307 माय चंद्रावती राज्य री राजधानी रिही। सन् 1311 माय राव लुंबा परमार राजा हुण हरा’र आबू जित्‍यो अर राजधानी बणाई। विक्रम संवत 1462 माय राव शिवभाण (शोभा) खोबा (पुराणी सिरोही) माय शिवपुरी नामो ती नगर बसावतो राजधानी बनाओ, वा 20 वर्षो्ं तक रही । विण बाद राव सहस्त्रमल शुभ शकुन देखतो अबार रो सिरोही री थापना संवत 1482 माय आक्‍खा तीज रै दिन करी। सिरोही रो मतलब सिर अर ओही रो मतलब है सिर काटवा री हिम्मत राखवा वाळो। गुजरात रै ख्‍यात लेखक झवेरचन्द मेघाणी ओपणी किताब सोराष्ट्र नी रसधार माय लिखियो है कै सिरोही री तलवार अर लाहोर री कटार। कैवे है कै सिरोही माय ऐड़ी तलवार बणै जिणरी धार पाणी रै प्रपात ती दी जाती ही। आज भी सिरोही री तलवार जगप्रसिद्ध है।
 
सिरोही थापना री मैहमा गावै है ये पंक्तियां
संवत चौदह सौ, बरस बयासी बखाणैं। वैशाख सुद दूज, जको गुरुवार ही जाणें।। श्री नृप चढ़े शिकार, पश्चिम दिशा हालियों। शांचाणे खरगोश फालदें, पाछो फरिओ।। शूरमी जगह जाण, राव मन माय विचारी। सहस्त्रमल राव शोभा तनें, सिरोही थापन करी।। प्रमुख दर्शणजोग स्‍थल अर मेळा सर्नेश्‍वर मंदिर : पारंपरिक रीति रिवाजों रो प्रतीक अठै रो सारणेश्वर मेळो ईस्वी सन् 1298 माय दिल्ली रै सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी गुजरात रै सोलंकी साम्राज्य रो नाश करणे रै बाद सेनापति मलिक काफुर सिद्धपुर स्थित रूद्रमान शिवालय रा टुकड़ा-टुकड़ा करेन गाय रै लोही ती लथपथ चोबड़े (चमड़ा) ती बांधेन घसीटतो वेतो अबार री सिरणवा रै मारग दिल्ली री रबाना वुओ। इतिहासकार गौरीशंकर औझा रै अनुसार सिरोही रै तत्कालीन नरेश महाराव विजयराज री ओर ती इणरो विरोध करवाती दोन्‍यूं रै बीच युद्ध वीओ। अबार रै सिरोही राज्य एवं तत्कालीन अबुंर्दाचल रै संगळा धर्मी भगत राज्य रो साथ दिदो। रेबारी समाज गोफण (चोबड़ा ती बण्‍यो पट्टो, जिण माय न्‍हाकर भाटा फैंके) ती सिरणवा भाखर माथै कमाण संभाळी अर शाही सेना माथै गोफण ती भाटा फैंक्‍या। शिवजी री दया ती शाही सेना नैं खदेड़र शिवलिंग नै मुक्त करा लिओ अर सारणेश्वर माय स्थापित कराओ। ओ सिरणवा री तहलटी माय स्थित होवा ती सिरणेश्वर महादेव अर अपभ्रंश व्‍है वा ती कालांतर माय सारणेश्वर महादेव रै नोम ती जिले रै आराध्यदेव रै रूप माय पूजवा लागा। शिवलिंग थापना माय रेबारी समाज रै सहयोग री याद माय तत्कालीन महाराव विजयराज एक दारो मंदिर मेळा रो अधिकार रेबारी समाज नैं देयन वणारो बहुमान कीदो। ओ रवाज आज भी कायम है। उल्लेखजोग है कै शिव मंदिर रो नोमकरण सिरणवा पर्वत रै नोम रै साथै ही युद्ध रो पर्याय धार रै द्वारा भी मान्‍यो गओ। संस्कृत माय धार नैं छार भी कैओ जावै है। अपभ्रंश रै कारणै इण शब्द री उत्पति वुई। मंदिर माय रूद्रमान शिवलिंग थापना माय संगळा वर्णों रो भी योगदान रिओ। चौहान कुल कल्पद्रुम माय लल्लूभाई देसाई अर तवारीख राज सिरोही रा ब्रह्माणों रै त्याग अर बलिदान रो उल्लेख है कै उणरै मृत डील ती सवा मण जनेऊ उतरी ही। महाराव विजयराज रै अद्भुत शौर्य धार्मिक प्रेम रै कारण कवि लोग वणानैं बीझड़ कैहर भी संबोधित किदो है।
  भगवान शिव नै समर्पित इण मंदिर रो संचालन सिरोही देवस्‍थान द्वारा किओ जावै है। ये चौहानों रै देवडा संप्रदाय रै कुलदेव हैं। मान्‍यो जावै है कै इण मंदिर रो निर्माण परमार वंश रै शासक करवायो थो क्यूंकै मंदिर रो ढांचो अर आकार परमारों द्वारा बणवायो गओ थो इण कारणै ओ भी दूजा मंदिरों जैसो ही है।
1526 विक्रमी संवत माय महाराव लखा री राणी अपूर्वा देवी मंदिर रै मुख्य द्वार रै बाहरै हनुमान जी री प्रतिमा थापित करवाई। मंदिर परिसर माय भगवान विष्णु री प्रतिमा अर 108 शिव लिंगों नैं धारण किदोड़ी एक पलेट रखिओड़ी है। मुख्य मंदिर रै बाहरै मंदाकिनी कुंड है जठै कार्तिक पूनम, चैत्र पूनम अर वैसाख पूनम रै दिन भक्त पवित्र स्नान करै हैं। विक्रम संवत भद्रपद माह माय अठै उत्सव रो आयोजन किओ जावै है। हाथल रो श्री ब्रह्माजी रो मन्दिर सिरोहि जिले माय हाथल गाँव माय श्री ब्रह्माजी रो मन्दिर है। ओ मन्दिर १३५० साल पुरोणू है। मन्दिर रै वास्‍तै संगळा हाथल वाळा घणी मेहनत की दी अर इणमाय दो-चार दूजा गाँव सहयोग दि दो। सरकारी संग्रहालय सिरोही रै सरकारी संग्रहालय री थापना 1962 माय करी गई थी। इणरै निर्माण रो उद्देश्य इण क्षेत्र री पुरातत्व धरोहर रो संरक्षण करणो थो। राजभवन प्रांगण माय स्थित ओ संग्रहालय कैई भागों माय बंट्यो है। पैला हिस्से माय भाखर क्षेत्रों माय रेहवा वाळा मिनखा रै हथियार, वाद्य यंत्र, महिलावां रै गैहणा अर पहरावो दिखाओड़ो हैं। संग्रहालय रो खास आकर्षण 6वीं ती 12वीं शताब्दी रै बीच री देवदासी या नर्तकियों री मूर्तियां, चक्रबाहु शिव री प्रतिमा, 404 प्राचीन मूर्तियों रां संग्रह अर विष कन्यावां री प्रतिमा दिखाओड़ी है।
 
चंद्रावती
  आबू रोड ती 6 किमी अड़गी चंद्रावती परमारों री नगरी थी। इणरो अबार रो नोम चंदेला है। 10वीं अर 11वीं शताब्दी माय अबरुदमंडल रो शासन थो अर चंद्रावती उणरी राजधानी ही। आ नगरी सभ्यता, वाणिज्य अर व्यापार री मुख्य केंद्र थी। चूंकि आ परमारों री राजधानी थी, अत: आ सांस्कृतिक रूप ती घणी धनवान थी।
चंद्रावती तत्कालीन वास्तुशिल्प रो घणो अच्छो उदाहरण है। 1972 माय सिरोही माय आई बाढ़ ती इणरै कैई अवशेष बैह गया या टूट गया। बाद माय वणानै आबु संग्रहालय माय संभाळर राख दिया गया। चंद्रावती री ख्याति रो उल्लेख विमल प्रबंध रै साथै ही दूजा जैन साहित्यों माय भी मिल्‍यो है। इण नगर रै विनाश रो मुख्य कारण अरबों रा लगातार आक्रमणा नै मान्‍यो जावै है।
  माउंट आबू राजस्‍थान रो एकमात्र हिल स्टेशन है। अरावली री पहाड़ियों माथै बस्‍या इण हिल स्टेशन रो फुटरोपण देखवाजोग है। ओ हिल स्टेशन होवा रै साथै-साथै हिंदू अर जैन धर्म रो प्रमुख तीर्थस्थल भी है। अठै रा मंदिर अर प्राकृतिक रूपाळपणा पर्यटकों नैं घणा भावै हैं।
मोन्‍या जावै है कै माउंट आबू पुरोणे काल ती ही साधु संतों रो निवास स्‍थान रिओ है। पौराणिक कथावां रै अनुसार हिन्दू धर्म रै तैंतीस करोड़ देवी देवता इण पावन पर्वत माथै भ्रमण करवा आवै हैं। कैओ जावै है कै महान संत वशिष्ठ पृथ्वी ती असुरों रै विनाश रै वास्‍तै अठै यज्ञ रो आयोजन किओ थो। जैन धर्म रै चौबीसवें र्तीथकर भगवान महावीर भी अठै आया था। उणरै बाद ती माउंट आबू जैन अनुयायियों रै वास्‍तै एक पवित्र अर पूजनीय तीर्थस्थल बण गओ। एक कहावत रै अनुसार आबू नोम हिमालय रै पुत्र आरबुआदा रै नोम माथै पड़्यो थां। आरबुआदा एक शक्तिशाली सर्प थो, जिण एक गैहरी खाई माय भगवान शिव रै वाहन नंदी बैल री जान बचाई थी। प्राकृतिक सुषमा अर मनमोवणी वनस्थली रो पर्वतीय स्थल 'आबू पर्वत' ग्रीष्मकालीन पर्वतीय आवास स्थल अर पश्चिमी भारत रो प्रमुख पर्यटन केंद्र रिओ है। ओ स्वास्थ्यवर्धक जलवायु रै साथै एक परिपूर्ण पौराणिक परिवेश भी है। अठारी वास्तुकला रै हस्ताक्षरित कलात्मकता भी देखवा
 
अधरदेवी (अर्बुदा देवी)
  माउंटआबू ती 3 किलोमीटर अड़गी पहाड़ी माथै आयोड़ो है-अर्बुदा देवी मंदिर। अर्बुदा देवी, अधर देवी अर अम्बिका देवी रै नोम ती प्रसिद्द है। ओ मंदिर अठै रै लोकप्रिय तीर्थ स्थलों माय ती एक है । ओ मंदिर
  एक प्राकृतिक गुफा माय प्रतिष्ठित है। साढ़े पांच हजार साल पेल्‍या इण मंदिर री थापना वुई थी। पौराणिक मान्यतावां रै मुताबिक जद भगवान शंकर सती रै शरीर रै साथै तांडव शुरू किदो थो तो माता सती रै होठ अठै गिरिया था।
जदी ती या जगह अधर देवी (अधर मतलब होठ) रै नोम ती प्रसिद्ध है। अर्बुदा देवी री पूजा नौराता रै छठे दारे मां दुर्गा रै कात्यायनी रै रूप माय होवै है। अर्बुदा देवी मंदिर तक जावा रै वास्‍तै 365 पगोत्‍या (सीढ़ियां) रो गेलो है। गेला माय फुटरा दरसाव री भरमार है। जिणरी वजह ती पगोत्‍या कद खत्म हो जावै है ठाह ही नीं पड़तो। ऊपर पौंचणै रै बाद अठै रा फुटरा दरसाव अर शान्त वातावरण मन मोह लेवै है अर सारी थकान पल भर माय ही अळगी हो जावै है। माता अर्बुदा देवी रो अठै चरण पादुका मंदिर भी है, जो श्रद्धालुओं री आकर्षण रो केंद्र है। अठै माता अर्बुदा देवी री पादुका है, जिणरै नीचे वणा बासकली राक्षस रो संहार कियो थो। मां कात्यायनी रै बासकली वध री कथा पुराणों माय भी मिलै है। स्कंद पुराण रै अर्बुद खंड माय माता रै चरण पादुका री मैहमा खूब गायी गी है। पादुका रै दर्शन मात्र ती ही सदगति मिलवा री बात कही जावै है। दिलवाड़ा जैन मंदिर दिलवाड़ा जैन मंदिर वस्तुतः पांच मंदिरों रो समूह है। अणा मंदिरों रो निर्माण 11वीं ती 13वीं शताब्दी रै बीच माय हुओ थो। ओ विशाल एवं दिव्य मंदिर जैन धर्म रै तीर्थंकरों नैं समर्पित है। ओ जैन मंदिर 11वीं ती 13वीं शताब्दी रै दौरान चालुक्य राजाओं वास्तुपाल अर तेजपाल नोमक दो भाईयों द्वारा 1231 ई. माय बणवायो गयो थो। जैन वास्तुकला रै सर्वोत्कृष्ट उदाहरण-स्वरूप बे (दो) प्रसिद्ध संगमरमर रा बण्‍या मंदिर जो दिलवाड़ा या देवलवाड़ा मंदिर कहलाया। इण पर्वतीय नगर माय जगत प्रसिद्ध स्मारक हैं। विमलसाह पेल्‍या कुंभेरिया माय पार्श्वनाथ रै 360 मंदिर बणवाया था पण उणरी इष्टदेवी अंबाजी कणी बात माथै रुष्ट व्‍हैन पाँच मंदिरों नैं छोड़ बिजा संगळा मंदिर नष्ट कर दिया अर सुपणा माय उणनै दिलवाड़ा माय आदिनाथ रो मंदिर बणावा रो आदेश दियो। पण आबूपर्वत रै परमार नरेश विमलसाह नैं मंदिर रै वास्‍तै भूमि देणो विद स्वीकार कियो जद वणा संपूर्ण भूमि नैं रजतखंडों ती ढक दियो। इण तरह 56 लाख रूप्‍या माय आ ज़मीन ख़रीदी। दिलवाड़ा जैन मंदिर प्राचीन वास्तुकला रो एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। ओ शानदार मंदिर जैन धर्म रै र्तीथकरों नैं समर्पित हैं।
 
मंदिर रो प्रवेश द्वार
  दिलवाड़ा जैन मंदिर रो प्रवेशद्वार गुंबद वाळा मंडप रो है, जिणमाय छ: स्तंभ अर दस हाथियों री प्रतिमावां हैं। इणरै पाछे मध्य माय मुख्य पूजागृह है, जिणमाय एक प्रकोष्ठ माय ध्यानमुद्रा माय अवस्थित जिन री मूर्ति हैं।
हैं। इस प्रकोष्ठ री छत शिखर रूप माय बणी है यू तो आ घणी ऊंची नीं है। इणरै साथै एक दूजो प्रकोष्ठ बण्‍यो है जिणरै आगे एक मंडप है। इण मंडप रै गुंबद रै आठ स्तंभ हैं। संपूर्ण मंदिर एक प्रांगण रै माय घिरियो हुओ है, जिणरी लंबाई 128 फुट अर चौड़ाई 75 फुट है। इणरै चतुर्दिक छोटे स्तंभों री दुहरी पंक्तियां हैं, जिण ती प्रांगण री लगभग 52 कोठरियों रै आगे बरामदो-सो बण जावै है। स्थापत्य कला जैन मंदिर स्थापत्य कला रो उत्कृष्ट नमूनो है। पाँच मंदिरों रै इण समूह माय विमल वासाही मन्दिर सब ती पुरोणू है। इण मंदिरों री अद्भुत कारीगरी देखणजोग है। ओपणै ऐतिहासिक महत्त्व अर संगमरमरी भाटा माथै बारीक नक़्क़ाशी री जादूगरी रै वास्‍तै पहचाण्‍या जावा वाळा राज्य रै सिरोही ज़िले रै इण विश्वविख्यात मंदिरों माय शिल्प-सौंदर्य रो ऐड़ो बेजोड़ ख़ज़ाना है, जिणनै दुनिया माय बिजी ठौर कठै ही नीं देख्‍यो जा सकै। इस मंदिर माय आदिनाथ री मूर्ति री आंख्‍यां असली हीरक री बणीयोड़ी हैं। अर उणरै गले माय बहुमूल्य रत्नों रो हार है। अठै पाँच मंदिरों रो एक समूह है, जो बाहरै ती देखवा माय साधारण ही प्रतीत होवै हैं। फूल-पत्तियों अर दूजा मोहक डिजाइनों ती अलंकृत, नक़्क़ाशीदार छतें, पशु-पक्षियों री शानदार संगमरमरीय आकृतियां, धोळा (सफ़ेद) स्तंभों माथै बारीकी ती उकेर कर बणाई फुटरी बेलां, जालीदार नक़्क़ाशी ती सजे तोरण अर इन सबती बढ़कर जैन तीर्थकरों री प्रतिमावां विमल वासाही मंदिर रै अष्टकोणीय कक्ष माय स्थित है। बाहर ती ओ मंदिर नितांत सामान्य देखीजे अर इणरै भीतर रै अद्भुत कलावैभव रो तनिक भी आभास नीं व्‍हैतो। पण श्वेत संगमरमर रै गुंबद रै भीतर रो भाग, भींता, छतां अर स्तंभ ओपणी बारीक नक़्क़ाशी अर अभूतपूर्व मूर्तिकारी रै वास्‍तै जगप्रसिद्ध हैं। इण मूर्तिकला माय तरह-तरह रै फूल-पत्ते, पशु-पक्षी अर मानवी आकृतियां इत्‍ती बारीकी ती चित्रित हैं मानो अठै रै शिल्पियों री छेनी रै सोमै काठो संगमरमर मोम बण गयो हो। भाटा री शिल्पकला रो ऐहड़ो महान् वैभव भारत माय बिजी ठौर नीं है। बिजो मंदिर जको तेजपाल रो केविजे है, वो पागती ही है अर पेल्‍या री अपेक्षा हरेक बात माय अधिक भव्य अर शानदार देखिजे है। अणी शैली माय बण्‍या तीन बिजा जैन-मन्दिर भी अठै आड़ै-पाड़ै ही हैं। किंवदंती है कै वशिष्ठ रो आश्रम देवलवाड़ा रै पागती है। अठै विमल वासाही मंदिर प्रथम तीर्थंकर नै समर्पित सबती पुरोणू है, बाइसवें तीर्थंकर नेमीनाथ नैं समर्पित लुन वासाही मंदिर भी घणो देखवा जेड़ो है। अठै भगवान कुंथुनाथ रो दिगम्बर जैन मंदिर भी थापित है। अठै एक अनुठो देवरानी जेठानी रो मंदिर भी है जिणमाय भगवान आदिनाथ एवं शान्तिनाथ जी री मूर्तियां थापित है। अठै रै मंदिर परिसर माय खरतरसाही, पीतलहर अर भगवान महावीर रो मंदिर भी है इणमाय भगवान महावीर स्वामी रो मंदिर सबती छोटा बण्‍योड़ो है।
 
अचलगढ़
  देलवाड़ा मंदिर ती 5 किलोमीटर अड़गो है ओ किला परमार राजावां द्वारा बणवायो गयो थो बाद माय राणा कुंभा इणरो पुनर्निर्माण करवायो थो। अठै भगवान शिव रो मंदिर है जको अचलेश्वर महादेव रै नोम ती जाण्‍यो जावै है ।
शिव रै साथै ही अठै उणरी सवारी नंदी रा दर्शन भी किया जा सकै हैं कैवा माय आवै है कै अठै भगवान शिव रै पगों रै निशोण हैं। मंदिर रै पुटे एक कुंड है जको मंदाकिनी कुंड रै नोम
  अर वोसा (बांस) ती बणी झोंपडियाँ, झूले हैं। अठै ब्रह्मकुमारी समुदाय रो वर्ल्ड स्प्रीचुअल यूनिवर्ससिटी रै रूप माय "ॐ शान्ति भवन" है। अठै रै मोटे हाल माय तकरीबन ३५००-४००० मनखों रै बैवा री जगह है अर वठै ट्रान्सलेटर माइक्रो फोन द्वारा 100 भाषावां माय व्याख्यान सुण्‍या जा सकै है।
बिजी दरशणजोग ठौड़
  • 1: पावापुरि जैन मन्दिर व गोउशाला
  • 2: मन्दिर, वराडा
  • 3 : भुतेश्वर महादेव मन्दिर, भुतगाँव
  • 4 : श्री आम्बेश्वर महादेव मन्दिर, कोलरगङ, सिरोही
  • 5 : श्री काम्बेश्वर महादेव मन्दिर, सिरोही
  • 6 : श्री सान्चिया माता मन्दिर, जावाल
  • 7 : श्री वेज्नाथ महदेव मन्दीर वान
  • 8 :श्री वाराहि माता
दिल्ली रै अलावा कैई शहरों ती माउंट आबू रै वास्‍तै ओपणी सेवावां उपलब्ध करावै हैं।रायमल रै बेटे शिवभान सरणवा पहाड़ो माय एक दुर्ग री थापना करी अर १४०५ माय शिवपुरी नोमक नगर बसाया। उणरै बेटे सहसमल शिवपुरी रै दो मील आगे १४२५ माय नवो नगर बसाया, जिणनैं आज सिरोही रै नोम ती जोणा। राजस्‍थान रै दक्षिण-पश्चिम माय बस्‍यो सिरोही गुजरात राज्य ती जुड़्योड़ो एक खास नगर है अर इणरै नोम ती ही जिला मुख्यालय हैं। ओ सिरोही रोड़ रेल्वे स्टेशन ती २४ किमी अड़गो हैं। श्री राय साहब विसाजी मिस्त्री नैं सिरोही रो खास इंजिनियर केविजे। उणरै योगदान रै वा ती वठैरा मिनख वणानै आज भी याद राखै।
पराक्रम अर शौर्य री धरती है सिरोही
सिरोही राज्य क्षैत्रफल माय घणो छोटा जिला वे तो करतो भी आपाणा आंचल माय गौरवशाली इतिहास समेट्योड़ो है। विक्रम संवत 1482 माय राव सहस्त्रमल (शेषमल) ओपणै राज्य री राजधानी रै रूप माय सिरोही री थापना करी। ऐतिहासिक गवाही रै अनुसार आक्‍खा तीज रै दिन शिवपुरी (पुराणो सिरोही, खोबा) रै महाराव सहस्त्रमल नैं शिकार रै समै अबार रै राजमहलों रै जगह माथै घणा जंगल माय एक अद्भुत दरसाव देखवानूं मिल्‍यो। वठै एक खरगोश भाटा री चट्टान माथै खड़ो व्‍हैन बदला री भवना ती सींचाणा (बाज) रो सोमनो करवा रो कोशिश करतो हो। उण चमत्कारी दरसाव नैं देखता राजा उण भूमि नैं शौर्य री धरा मानता उणी जगह माथै राजधानी बणवाणे री नींव वण दारै राखी। इण घटना री पुष्टि चौहान कुल कल्पद्रुम अर दूजां रै साखी ती होवै है।
 
1405 माय शिवपुरी नोम ती नई राजधानी बनी
शांचाणे खरगोश फालदें, पाछो फरिओ।। शूरमी जगह जाण, राव मन माय विचारी। सहस्त्रमल राव शोभा तनें, सिरोही थापन करी।।
 
प्रमुख दर्शणजोग स्‍थल अर मेळा
सर्नेश्‍वर मंदिर : पारंपरिक रीति रिवाजों रो प्रतीक अठै रो सारणेश्वर मेळो
  ईस्वी सन् 1298 माय दिल्ली रै सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी गुजरात रै सोलंकी साम्राज्य रो नाश करणे रै बाद सेनापति
  मलिक काफुर सिद्धपुर स्थित रूद्रमान शिवालय रा टुकड़ा-टुकड़ा करेन गाय रै लोही ती लथपथ चोबड़े (चमड़ा) ती बांधेन घसीटतो वेतो अबार री सिरणवा रै मारग दिल्ली री रबाना वुओ।
इतिहासकार गौरीशंकर औझा रै अनुसार सिरोही रै तत्कालीन नरेश महाराव विजयराज री ओर ती इणरो विरोध संप्रदाय रै कुलदेव हैं। मान्‍यो जावै है कै इण मंदिर रो निर्माण परमार वंश रै शासक करवायो थो क्यूंकै मंदिर रो ढांचो अर आकार परमारों द्वारा बणवायो गओ थो इण कारणै ओ भी दूजा मंदिरों जैसो ही है। 1526 विक्रमी संवत माय महाराव लखा री राणी अपूर्वा देवी मंदिर रै मुख्य द्वार रै बाहरै हनुमान जी री प्रतिमा थापित करवाई। मंदिर परिसर माय भगवान विष्णु री प्रतिमा अर 108 शिव लिंगों नैं धारण किदोड़ी एक पलेट रखिओड़ी है। मुख्य मंदिर रै बाहरै मंदाकिनी कुंड है जठै कार्तिक पूनम, चैत्र पूनम अर वैसाख पूनम रै दिन भक्त पवित्र स्नान करै हैं। विक्रम संवत भद्रपद माह माय अठै उत्सव रो आयोजन किओ जावै है।
 
हाथल रो श्री ब्रह्माजी रो मन्दिर
  सिरोहि जिले माय हाथल गाँव माय श्री ब्रह्माजी रो मन्दिर है। ओ मन्दिर १३५० साल पुरोणू है। मन्दिर रै वास्‍तै संगळा हाथल वाळा घणी मेहनत की दी अर इणमाय दो-चार दूजा गाँव सहयोग दि दो।
 
सरकारी संग्रहालय
  सिरोही रै सरकारी संग्रहालय री थापना 1962 माय करी गई थी। इणरै निर्माण रो उद्देश्य इण क्षेत्र री
 
मीरपुर मंदिर
मीरपुर मंदिर रै बारां माय मान्‍यो जावै है कै संगमरमर ती बण्‍यो ओ राजस्‍थान रो सबती पुरोणू स्मारक है। दिलवाड़ा अर रणकपुर रै मंदिरों रो निर्माण अणी मंदिर री तर्ज माथै किओ गओ थो। मंदिर रो निर्माण 9वीं शताब्दी माय राजपूत काल माय किओ गओ थो। इणरी नक्काशी दिलवाड़ा अर रणकपुर मंदिरों रै स्तंभों अर परिक्रमा री याद दिलावे है। ओ मंदिर 23वें जन र्तीथकर भगवान पार्श्‍वनाथ नैं समर्पित है। 13वीं शताब्दी माय गुजरात रै सुल्‍तान महमूद बेगडा़ इण मंदिर रो नाश किदो। 15वीं शताब्दी माय इणरो पुनर्निर्माण किओ गओ। अबार इणरो मुख्य मंदिर ओपणै वणी ही रूप माय खड़ो है जिणरै स्तंभ अर नक्काशी भारतीय पौराणिक मान्यतावां ती रूबरू करावै हैं।
 
सर्वधर्म मंदिर
जिणरै नोम ती ही साफ है, ओ मंदिर दुनिया रै संगळा मंदिरों नैं समर्पित है। ओ सिरोही शहर माय सर्किट हाउस ती एक किमी अड़गो है। मंदिर रो वास्तुशिल्प अच्‍छो है। धार्मिक मैहमा रै रूंख, जिणमाय रूद्राक्ष, कल्पवृक्ष, कुंज, करसिंगार, बेलपत्र आदि अठै उगाया गया हैं। इणरै अलावा अठै केसर री खेती भी होवै है। इण मंदिर रो मुख्य आकर्षण अलग-अलग देवी-देवताओं री मूर्तियां हैं जो मंदिर रै आड़ै-पाड़ै, भीतर अर ऊपर देखी जा सकै हैं। ओ एक आधुनिक स्मारक है जो राष्ट्रीय एकता अर सर्वधर्म समभाव री सीख देवै है।
 
माउंट आबू
लायक है। आबू रो आकर्षण है कै आया दिन मेळा, हर समै सैलाणियों री चहल-पहल रेवै, चावै शरद हो या ग्रीष्म। माउंट आबू रै प्रमुख आकर्षण दिलवाड़ा रै जैन मंदिर अर अनेक पुरातात्विक महत्व री जगहां हैं। रोमांचक गेला, मनमोवक झीलां, उत्तम पिकनिक स्पॉट अर ठंडो मौसम, जो राजस्‍थान रै दूजा हिस्सों ती अळगो है, जो माउंट आबू नै पसंदीदा पर्यटक स्थल बणावै है। अठैरै दूजा प्रमुख दर्शनीय स्थलों माय गोमुख मंदिर, नक्की तालाब, अचलगढ़, अधर देवी मंदिर, मंदाकिनी कुंड, हनीमून प्‍वाइंट अर सनसेंट प्‍वाइंट भेळा हैं।
 
नक्की झील
  माउंट आबू री नक्की झील पहाड़ों रै बीच स्थित घणी फुटरी झील है। आ भारत री एकमात्र कृत्रिम झील है जो समुद्र तल ती 1200 मीटर ऊंचाई माथै है। मोन्‍यो जावै है कै इण झील रो निर्माण देवता ओपणे नखा ती किओ थो इण वास्‍तै इणरो नोम नक्की झील पड़्यो।
झील माय बोटिंग री सुविधा भी उपलब्ध है। नक्की झील रै नैड़े ही रघुनाथजी मंदिर भी है।माय ही अळगी हो जावै है। माता अर्बुदा देवी रो अठै चरण पादुका मंदिर भी है, जो श्रद्धालुओं री आकर्षण रो केंद्र है। अठै माता अर्बुदा देवी री पादुका है, जिणरै नीचे वणा बासकली राक्षस रो संहार कियो थो। मां कात्यायनी रै बासकली वध री कथा पुराणों माय भी मिलै है। स्कंद पुराण रै अर्बुद खंड माय माता रै चरण पादुका री मैहमा खूब गायी गी है। पादुका रै दर्शन मात्र ती ही सदगति मिलवा री बात कही जावै है।
 
दिलवाड़ा जैन मंदिर
  दिलवाड़ा जैन मंदिर वस्तुतः पांच मंदिरों रो समूह है।
अणा मंदिरों रो निर्माण 11वीं ती 13वीं शताब्दी रै बीच माय हुओ थो। ओ विशाल एवं दिव्य मंदिर जैन धर्म रै तीर्थंकरों नैं समर्पित है। ओ जैन मंदिर 11वीं ती 13वीं शताब्दी रै दौरान चालुक्य राजाओं वास्तुपाल अर तेजपाल नोमक दो भाईयों द्वारा 1231 ई. माय बणवायो गयो थो। जैन वास्तुकला रै सर्वोत्कृष्ट उदाहरण-स्वरूप बे (दो) प्रसिद्ध संगमरमर रा बण्‍या मंदिर जो दिलवाड़ा या देवलवाड़ा मंदिर कहलाया। इण पर्वतीय नगर माय जगत प्रसिद्ध स्मारक हैं। विमलसाह पेल्‍या कुंभेरिया माय पार्श्वनाथ रै 360 मंदिर बणवाया था पण उणरी इष्टदेवी
 
स्थापत्य कला
  जैन मंदिर स्थापत्य कला रो उत्कृष्ट नमूनो है। पाँच मंदिरों रै इण समूह माय विमल वासाही मन्दिर सब ती पुरोणू है। इण मंदिरों री अद्भुत कारीगरी देखणजोग है। ओपणै ऐतिहासिक महत्त्व अर संगमरमरी भाटा माथै बारीक नक़्क़ाशी री जादूगरी रै वास्‍तै पहचाण्‍या जावा वाळा राज्य रै सिरोही ज़िले रै इण विश्वविख्यात मंदिरों माय शिल्प-सौंदर्य रो ऐड़ो बेजोड़ ख़ज़ाना है,
जिणनै दुनिया माय बिजी ठौर कठै ही नीं देख्‍यो जा सकै। इस मंदिर माय आदिनाथ री मूर्ति री आंख्‍यां असली हीरक री बणीयोड़ी हैं। अर उणरै गले माय बहुमूल्य रत्नों रो हार है। अठै पाँच मंदिरों रो एक समूह है, जो बाहरै ती देखवा माय साधारण ही प्रतीत होवै हैं। फूल-पत्तियों अर दूजा मोहक डिजाइनों ती अलंकृत, नक़्क़ाशीदार छतें, पशु-पक्षियों री शानदार संगमरमरीय आकृतियां, धोळा (सफ़ेद) स्तंभों माथै बारीकी ती उकेर कर बणाई फुटरी बेलां, जालीदार नक़्क़ाशी ती सजे तोरण अर इन सबती बढ़कर जैन तीर्थकरों री प्रतिमावां विमल वासाही मंदिर रै अष्टकोणीय कक्ष माय स्थित है। बाहर ती ओ मंदिर नितांत सामान्य देखीजे अर इणरै भीतर रै अद्भुत कलावैभव रो तनिक भी आभास नीं व्‍हैतो। पण श्वेत संगमरमर रै गुंबद रै भीतर रो भाग, भींता, छतां अर स्तंभ ओपणी बारीक नक़्क़ाशी अर अभूतपूर्व मूर्तिकारी रै वास्‍तै जगप्रसिद्ध हैं। इण मूर्तिकला माय तरह-तरह रै फूल-पत्ते, पशु-पक्षी अर मानवी आकृतियां इत्‍ती बारीकी ती चित्रित हैं ती जाण्‍यो जावै है। अठै 16वीं शताब्दी माय बण्‍या कलात्मक जैन मंदिर भी हैं।
 
गुरुशिखर
  गुरु शिखर अरावली भाखर री सबती ऊँची चोटी है । एटलस रै अनुसार इणरी ऊंचाई 1722 मीटर है ।
  माउंट आबू ती 15 किलोमीटर अळगो है। अठै पुगो पछै ऐड़ो लागे कै बादळां रै पाड़े पुगा व्‍है अठै री शान्ति मन नैं छू लेवै है अर अठै ती नीचे रो दरसाव बड़ो ही फुटरो दिखीजे है। अठै भगवान विष्णु रै अवतार दत्तात्रेय रो न्‍हानो सो मन्दिर बण्‍यो है, जिणरै पाड़ै ही रामानंद रै पगोलिया रा निशोण बण्‍योड़ा हैं । मन्दिर रै पाड़ै ही एक पीतल रो घंटो लाग्‍योड़ो है जको माउंट आबू नैं देख रिया संतरी रो आभास करावै है ।
 
पीस पार्क (ॐ शान्ति भवन)
गुरु शिखर मारग माथै ब्रह्मकुमारियों द्वारा बणायो गया ओ बगीचो प्राकर्तिक सोंदर्य का अनूठा नमूना है । ओ घणो ही व्यवस्थित बगीचो है अठै कैई तरह रै गुलाबों री किस्मां, फूलों री क्यारियां, रौक गार्डन, घास 9 :सुँधा माता मंदिर {राँगी गौत्र} इंदिरा कोलॉनी भूतगाँव
10: मेंढक चट्टान ( टॉड रॉक )
कृषि अर खनिज
मक्का, दलहन, गेहूँ, अर तिलहन सिरोही क्षेत्र री खास फ़सलें हैं। सिरोही माय चूना-भाटा, ग्रेनाइट अर संगमरमर रो खनन करियो जावै है। सिरोही नगर एक कृषि बाज़ार अर हस्तशिल्प-धातुकर्म रो केंद्र है, जको चाक़ू, कटार व तलवार रै निर्माण रै वास्‍तै ख्यात है।
 
आवागमन-
हवाई मारग
सिरोही या माउंट आबू रो सबती नैड़ो हवाई अड्डा उदयपुर है। जको अठै ती 185 किमी. अड़गो है। उदयपुर ती माउंट आबू या सिरोही पु्गवा रै वास्‍तै बस या टैक्सी री सेवा ली जा सकै हैं।
रेल मारग
सिरोही रै जगप्रसिद्ध पर्यटन स्‍थल माउंट आबू रै सबती नैड़ो रेलवे स्टेशन आबू रोड २८ किमी री दूरी माथै है, जको अहमदाबाद, दिल्‍ली, जयपुर अर जोधपुर ती जुड़्योड़ो है।
सड़क मारग
माउंट आबू अर सिरोही देश रै संगळा प्रमुख शहरों ती सड़क मार्ग द्वारा भी जुड़्योड़ो है। दिल्ली रै कश्मीरी गेट बस अड्डे ती माउंट आबू रै वास्‍तै सीधी बस सेवा है। राजस्‍थान राज्य सड़क परिवहन निगम री बसें
 
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