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राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

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राजस्थानी भाषा औंर बोलिया


राजस्थानी ने हिन्दी री उपभाषा मानिजैं हैं। गिर्यसन भाषा सर्वेक्षण कर राजस्थानी बोलिया को भी वर्गीकरण करियो हैं।

राजस्थानी भाषा री व्युत्पत्ति

प्राचीन काल मे गुर्जर प्रदेश मे वर्तमान गुजरात व राजस्थान रा क्षेत्र सामिल हैं। इन वास्ते इ क्षेत्र री अपभ्रंश ने गुर्जर अपभ्रंश भी केविजे हैं। राजस्थानी रो उदभव इ तरह हुयो हैं।भारतीय आर्य भाषा - ईरानी आर्यभाषासंस्कृरत भाषा -शौंरसेनीअपभ्रंश - राजस्थानी। राजस्थानी भाषा लिखणे मे महाजनी लिपि रो प्रयोग हुयो हैं। अबे आ देवनागरी लिपि मे लिखीजे हैं। राजस्थानी भाषा धौंलपुर भरतपुर रे ब्रज ने छोड पूरे राजस्थान मे बोलीजे हैं। राजस्थानी बोलणे वालो री सख्या लगभग 5 करोड हैं। ईरे वास्ते राजस्थानी भारतीय भाषाओ मे संख्या री द्रष्टिसु सात वे स्थान पर हैं। विश्‍व री भाषाओ मे आ सोलहवे स्थान पर हैं।

राजस्थान री बोलियो रो परिचय

राजस्थान मे करीब 73 बोलियो री गिनती की ग़ई हैं।

मारवाडी

मारवाडी बोली रो उल्लेख मरूभाषा रे रूप मे भी मिले हैं।इणरी थली ,ढ्टकी माहेश्वरी, ओसवाली, बीकानेरी ,नागौंरी ,गोडवाडी उपबोलिया हैं। इ बोली मे वीर,श्रृंगार,भक्ति,नीति रे साहित्य रो भण्डार हैं। डिंगल इरी साहित्यिक शैंलीहैं।

मेवाड आ बोली मेवाड (मेदपाट) क्षेत्र मे बोलिजे हैं।भाषा शास्त्री मेवाडी ने मारवाडी री ही उपबोली माने हैं।भीलवाडा ,बासवाडा ,डूंगरपूर,औंर चित्तौंड मे बोली जाने वाली बोली मारवाडी सु अलग हैं। इने अलग सु एक बोली रे रुप मे देखीजे हैं।

ढूंढाडी

ढूंढ (टीला) शब्द ढूंढाडी सु बणियोडो हैं।ढ़ूढ़ाडी ने जयपुरी एवं झाड शाही केवे हैं।आ बोली जयपुर,अजमेर,टोंक,दौंसा,जिलो मे मुख्यतः बोलीजे हैं।ढ़ूढ़ाडी मे दादूपंथी संतो रो साहित्य मिले हैं। हाडोती बूंदी कोटा मे हाडा राजपूतो रो राज हो। इरे कारण ही ईण रो नाम हाडोती पडियो। ई अचल मे बोली जावण वाली बोली हाडोती कहलाई। हाडोती औंर ढूढाणी मे बहोत समानता हैं ,पण हाडोती पर मेवाडी औंर मालवी रो भी प्रभाव हैं।

मेवाती

आ बोली पश्चिम हिन्दी औंर राजस्थानी रे बीच सेतु रो काम करे हैं। आ मेवात क्षेत्र मे बोलिजे हैं। राठी ,मेह्डा औंर कठेर इरी उपबोलिया हैं। मेवाती अलवर औंर भरतपुर सहित आस पास रे कई क्षेत्र मे बोलिजे हैं।

वागडी

राजस्थान रे डूंगपुर औंर बासवाडा मे आ बोली बोलीज़े हैं। राज्य रे इ दो जिलो रे क्षेत्र ने वागड केवे हैं। इण वास्ते इण बोली ने वागडी केविजे। आ बोली गुजराती सु मिली जुली हैं।

बंजारी

यह राजस्थान ऊ बाने रेवा वाला बंजारा री भाषा हैं । स्थानानुसारइसके कई भेद हैं । बंजारे राजस्थान के मूल निवासी थे और व्यापार के सिलसिले में माल लादकर दूर-दूर तक पहुंचाते थे । कालान्तर में वे इधर-उधर बस गए । उनकीभाषा का मूल ढ़ांचा राजस्थानी से प्रभावित रहा हैं यद्यपि स्थानीय प्रभाव से उसमें थोड़ा बहुत परिवर्तन भी हुआ ।

गूजरी

हिमालय री तराई, कश्मीर और पंजाब मेंं बसे गूजरों, अहिरों आदि पशुपालक जातियाँ री बोलीहैं। भोलीखानदेशी

यह राजस्थानी और गुजराती रे बीच री भाषा हैं। पहाड़ी वर्ग री भाषाएंअणी रोभी राजस्थान हूँ निकट रो संबंध हैं । तमिलनाडू में प्रचलित सौराष्ट्री भी राजस्थानी के अन्तर्गत आ जाती हैं । भारतीय सांसियों, कंजरों, नटो, आदि री बोलियों रो संबंध भी राजस्थानी हूँ हैं अणी मे पहाड़ी, मामटी, बेलदारी, ओड़की, लाड़ी, मछ्रिया, सांसी, कंजरी, नटी, ड़ोमी आदि अनेक भेद-उपभेद हैं ।

पश्चिमी राजस्थानी -

मारवाडी, मेवाडी, ढ़ाटकी, थली, बीकानेरी, वाग़डी, शेखावटी, खेराडी, ग़ोड्वाडी, देवडावाटी आदि। राजस्थानी -अहीरवाटी और मेवाती आदि ।

मध्यपूवी राजस्थानी

ढ़ूढ़ाड़ी, टोरावाटी, खड़ी, जैयपुरी, काठैडी, राजावाटी, अजमेरी, किशनगढ़ी, चारासी, नाग़रचाल, हाड़ौती(रिवाड़ी सहित) आदि ।

दक्षिणीपूवी राजस्थानी

मालवी(राग़डी, सौधवाड़ी) आदि ।

दक्षिणी राजस्थानी -

निमाड़ी ।

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