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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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महाराणा प्रताप

जन्म -9 मई 1540
पिता - महाराणा उदयसिंह
माता - जेवन्तीबाई सोनगरी

विमातायां - संध्याबाई सोलंकना, जेवंताबाई मोदडेचो, लालबाई परमार, धारबाई भटयाणी (जगमालजी री मां), गणेशदे चहुवान, वीरबाई झाली, लखांबाई राठोड, कनकबाई महेची,----खीचण।

भ्राता - शक्तिसिंह, कान्ह, जेतसिंह (जयसिंह), वीरमदेव, रायसिंह (रायमल), जगमाल, सगर, अगर, पंचारण, सीया, सुजाण, लूणकरण, महेशदास, सार्दूल, रूद्रसिंह, (इन्द्रसिंह), नेतसिंह, नगराज, सूरताण, भोजराज, गोपालदास, साहबखान।

बहिनां - हरकुंवरबाई अर 16 अन्य।

पत्नियां - अजवांदे परमार (महाराणा अमरसिंह की मां) पुरबाई सोलंकनी, चंपाबाई झाली, जसोदाबाई चहुवान, फूलबाई राठोड, सेमताबाई हाडी आसबाई खीचण, आलमदे चहुवान, अमरबाइ राठोड, लखाबाई राठोड, रतनावती परमार।

पुत्र - महाराणा अमरसिंह, सीहो, कचरो, कल्याणदास, सहसो (सहसमल), पुरी (पुरणमल), गोपाल, कल्याणदास, भगवानदास, सावलदास, दुरजणसिंह, चांदो, (चन्द्रसिंह), सुखी (सेखो) हाथी, रायसिंह, मानसिंह, नाथसिंह, रायभाण, जसवन्तसिंह।

महाराणा प्रताप उदयपुर मेवाड में शिशोदिया राजवंश रा राजा हा। अे कई साला तक मुगल सम्राट अकबर साथै संघर्ष करियो। इतिहास में इयारो नाम वीरता अर दृढ़ संकळ्प वास्ते प्रचलित है। महाराणा प्रताप रो जनम राजस्थान रे कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह अर महाराणी जीवंत कंवर रे घर में हुयो।

राणा उदयसिंह रे बाद महाराणा प्रताप मेवाड रा शासक बणिया। एक बार जद अकबर मानसिंह ने आपरो दूत बणा'र महाराणा प्रताप ने अधीनता स्वीकार करणे वास्ते भेज्यो तो महाराणा प्रताप इण प्रस्ताव ने ठुकरा दियो। बाद में वां ने कई संकटा सु गुजरणो पडियो, पण बे अकबर सु संधि नीं करी। वां मानसिंह साथे भोजन ना कर आपरे स्वाभिमान रो परिचै दियो और इणरो परिणाम 1576 रो हल्दीघाटी रो युद्ध हुयो।

इण युद्ध में राणा प्रताप और मानसिंह रो मुकाबलो हुयो। 1576 रे हल्दीघाटी रे युद्ध में महाराणा प्रताप 20,000 राजपूता ने लेर मानसिंह री 80,000  री सेना रो सामनो करियो। इण युद्ध में महाराणा प्रताप रो प्रिय घोडो चेतक मानसिंह रे हाथी रे माथे पर आपरा पैर जमा दिया और महाराणा प्रताप आपरै भाले सूं विण पर वार करियो पण मानसिंह हौद में जा'र छिप ग्यो और बच निकळियो। चेतक री टांग टूटणे सु थोडी दूरी पर ही विणरी मौत हुयगी, आ लडाई कई दिनां तक चाली। अंत में मानसिंह बिना जीतया वापस लौट ग्यो। राणा मुगला ने बहोत छकाया, जिके रे कारण वे मेवाड सु भाग निकळिया। इणरे बाद राणा ने दिकता उठाणी पडी पण वियारा मंत्री भामाशाह आपरी निजी सम्पत्ती दे'र राणा री सेना तैयार करणे में मदद करी। इण सेना रे सहयोग सूं मेवाड री खोई भूमि अकबर सूं पाछी मिलगी। फेर भी चित्तौड अर मांडलगढ बिणरे हाथ में नीं आ सकिया। विण री राजधानी चांवड नामक कस्बे में ही, जठे 1597 में महाराणा प्रताप री मौत हुई और जठे वियारे स्मारक रे रूप में एक छतरी आज भी बणियोडी है।

महाराणा प्रताप रे जीवन रा प्रमुख घटनाक्रम

अकबर द्रारा मेवाड, अजमेर, नागोर अरे जेतारण विजय

1556, 1557

कुंवर अमरसिंह रो जन्म

16 मार्च, 1559

महाराणा उदयसिंह द्वारा उदयपुर बसाणो

1559

सिरोही रे देवडा राव मानसिंह रो मेवाड में शरण लेवणो

1562

मालवा के बाजबहादुर का मेवाड में शरण लेना

1562

अकबर री आमेर सु संधि

1562

अकबर द्वारा मेडता विजय और जयमल रो चित्तौड आगमन

1562

उदयसिंह री भोमट रे राठोडा पर विजय

1563

अकबर रो जोधपुर पर आक्रमण अर विजय

1563

महाराणा उदयसिंह द्वारा चित्तौड रो त्याग

1567

अकबर द्वारा चितौड विजय

25 फरवरी, 1568

अकबर द्वारा रणथम्भौर विजय

24 मार्च, 1563

अकबर रो नागोर दरबार अर जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर रो मुगल अधीनता स्वीकार करना

5 नवम्बर सु 25 दिसम्बर, 1570

उदयसिंह री मृत्यु प्रताप अर प्रताप रो गोगूंदा में राजतिलक

28 फरवरी, 1572

मुगलदूत जलालखां कोरचे रो मेवाड आणो

अगस्त-सितम्बर 1572

कुंवर मानसिंह कछवाहा रो अकबर रे दूत री तरह मेवाड आ'र प्रताप सु मिलणो

अप्रेल, 1573

अकबर रे तीसरे दूत भगवन्तदास रो प्रताप सु मिलनो

सितम्बर-अक्टूबर, 1573

हल्दीघाटी रो युद्ध

18 जून, 1576

ईडर रा नारायणदास, सिरोही रा सुरताण, जालोर रा ताजखां, जोधपुर रा चन्द्रसेन, बूंदी रा दूदा द्वारा मुगल विरोधी कार्यवाहियां

जून-अकटूबर, 1576

प्रताप द्वारा गोगूंदा वापस लेवणो अर शाही थाणा पर आक्रमण

अगस्त-सितम्बर, 1576

मुगल सेनायां द्वारा जालोर, सिरोही, अर ईडर विजय करणो

अकटूबर, 1576

अकबर री मेवाड पर चढाई

अक्टूबर 1576

ईडर रे नारायणदास, सिरोही रे राव सुरताण री फेर मुगल विरोधी कार्यवाहियां

जनवरी-फरवरी, 1577

मुगल सेना द्वारा फेर ईडर विजय करणो

29 फरवरी, 1577

मुगल सेना द्वारा बूंदी विजय करणो

मार्च, 1577

प्रताप द्वारा मोही अर दूजा मुगल थाना पर आक्रमण अर विजय

अक्टूबर, 1577

शाहबाजखां री मेवाड पर चढाई

25 अक्टूबर, 1577

शाहबाजखां द्वारा कुम्भलगढ विजय

3 अप्रेल, 1578

प्रताप द्वारा छप्पन रे राठोडा रे विद्रोह ने दबाणो अर चावंड राजधानी बणानो

1578

भामाशाह रो मालवा पर आक्रमण अर प्रताप ने लूट रो धन भेंट करणो

1578

प्रताप री सेना रो डूंगरपुर-बांसवाडा पर आक्रमण

1578

शाहबाजखां रो दूसरो आक्रमण

15 दिसम्बर 1578

शाहबाजखां रो तीसरो आक्रमण

9 नवम्बर, 1578

प्रताप द्वारा मेवाड रे मैदानी भाग सु मुगल थाणो उठाणो और मांडलगढ़, चित्तौडगढ तक आक्रमण करणो

1580-1589

प्रताप रे मुगल सेवक भाई जगमाल रो सिरोही रे राव सुरताण रे विरूद्ध युद्ध में मारो जाणो

15, अक्टूबर, 1586

मुगल सेनापति जगन्नाथ कछवाहा री मेवाड पर चढाई

दिसम्बर, 1584

जनन्नाथ कछवाहा रो प्रताप रे निवास स्थान (चावंड) पर आक्रमण

सितम्बर, 1585

खानखाना रे परिवार रे स्त्री-बच्चा रो सादर लौटणो

1585

प्रतापगढ द्वारा मांडलगढ, चित्तौडगढ छोड'र पूरे मेवाड पर पुनर्विजय

1586

महाराणा प्रताप री चावंड में मृत्यु

19 जनवरी, 1597

कविता - पाथळ अर पीथळ
रचनाकार, स्वर्गीय कन्हैयालाल जी सेठिया

अरै घास री रोटी ही जद बन बिलावडो ले भाग्यो ।
नान्हो सो अमरयो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो ।

हूं लडयो घणो हूं सहयो घणो
मेवाडी मान बचावण नै ,
हूं पाछ नही राखी रण में
बैरया रो खून बहावण में ,

जद याद करू हळदी घाटी नैणा मे रगत उतर आवै ,
सुख दुख रो साथी चेतकडो सूती सी हूक जगा ज्यावै ,

पण आज बिलखतो देखूं हूं
जद राज कंवर नै रोटी नै ,
तो क्षात्र - धरम नै भूलूं हूं
भूलूं हिंदवाणी चोटी नै

मेहलां में छप्पन भोग जका मनवार बिना करता कोनी ,
सोनै री थाळयां नीलम रै बाजोट बिना धरता कोनी ,

अै हाय जका करता पगल्या
फ़ूला री कंवरी सेजां पर ,
बै आज रूळे भूखा तिसिया
हिंदवाणै सूरज रा टाबर ,

आ सोच हुई दो टूक तडक राणा री भीं बजर छाती ,
आंख्यां मे आंसू भर बोल्या मैं लिख स्यूं अकबर नै पाती ,
पण लिखूं किंयां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां ,
चितौड खडयो है मगरां मे विकराळ भूत सी लियां छियां ,

मैं झुकूं कियां ? है आणा मनै
कुळ रा केसरिया बानां री ,
मैं बुझूं किंयां ? हूं सेस लपट
आजादी रै परवानां री ,

पण फ़ेर अमर री बुसक्यां राणा रो हिवडो भर आयो ,
मैं मानूं हूं दिल्लीस तनै समराट सनेसो कैवायो ।
राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो सपनूं सो सांचो
पण नैण करयो बिसवास नहीं जद बांच बांच नै फ़िर बांच्यो ,

कै आज हिंमाळो पिघळ बह्यो
कै आज हुयो सूरज सीटळ ,
कै आज सेस रो सिर डोल्यो
आ सोच हुयो समराट विकळ ,

बस दूत इसारो पा भाज्या पीथळ नै तुरत बुलावण नै ,
किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै ,

बी वीर बाकुडै पीथळ नै
रजपूती गौरव भारी हो ,
बो क्षात्र धरम रो नेमी हो
राणा रो प्रेम पुजारी हो ,

बैरयां रै मन रो कांटो हो बीकाणूं पूत खरारो हो ,
राठौड रणां मे रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,

आ बात पातस्या जाणै हो
घावां पर लूण लगावण नै ,
पीथळ नै तुरत बुलायो हो ,
पण टूट गयो बीं राणा रो
तूं भाट बण्यो बिड्दावै हो ,

मैं आज तपस्या धरती रो मेवाडी पाग़ पग़ां मे है ,
अब  बात मनै किण रजवट रै रजपूती खून रगां मे है ?

जद पीथळ कागद ले देखी
राणा री सागी सैनाणी ,
नीवै स्यूं धरती खसक गई
अंाख्यां मे आयो भर पाणी ,

पण फ़ेर कही ततकाल संभल आ बात सफ़ा ही झूठी है ,
राणा री पाग़ सदा ऊंची राणा री आण अटूटी है ।

ल्यो हुकम हुवै तो लिख पूछूं
राणा ने कागद  खातर ,
लै पूछ भलांई पीथळ तूं
आ बात सही बोल्यो अकबर ,

म्हे आज सुणी है नाहरियो
स्याळां  रे सागे सोवैलो ,
म्हे आज सुणी है सूरजडो
बादळ री ओटां खोवैलो ,

म्हे आज सुणी है चातकडो
धरती रो पाणी पीवैलो ,
म्हे आज सुणी है हाथीडो
कूकर री जूणां जीवैलो ,

म्हे आज सुणी है थकां खसम
अब रांड हुवेली रजपूती ,
म्हे आज सुणी है म्यानां में
तलवार रवैली अब सूती ,

तो म्हारो हिवडो कांपै है मूंछयां री मोड मरोड गई,
पीथळ नै राणा लिख भेजो आ बाट कठै तक गिणां सही ?

पीथळ रा आखर पढ़तां ही
राणा री अंाख्यां लाल हुई ,
धिक्कार मनै हूं कायर हूं
नाहर री एक दकाल हुई ,

हूं भूख मरुं हूं प्यास मरुं
मेवाड धरा आजाद रवै
हूं घोर उजाडा मे भटकूं
पण मन में मां री याद रवै ,

हूं रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,
ओ सीस पडै पण पाघ़ नही दिल्ली रो मान झुकाऊंला ।

पीथळ के खिमता बादळ री
जो रोकै सूड़ ऊगाळी नै ,
सिंघा री हाथळ सह लेवै
बा कूख मिली कद स्याळी नै ?

धरती रो पाणी पिवै इसी
चातग री चूंच बणी कोनी ,
कूकर री जूणां जिवै इसी
हाथी री बात सुणी कोनी,

आं हाथां मे तलवार थकां
कुण रांड कवै है  रजपूती ?
म्यानां रैै बदळै बैरयां री
छात्यां मे रेवै ली सूती ,

मेवाड धधकतो अंगारो आंध्यां मे चमचम चमकैलो,
कडखै री उठती तानां पर पग पग खांडो खडकैलो ,
राखो थे मंूछयां  एठयोडी
लोही री नदी बहा दंयूला ,
हूं अथक लडूंला अकबर स्यूं
उजड्यो मेवाड बसा दयूंला ,

जद राणा रो संदेशो गयो पीथळ री छाती दूणी ही ,
हिंदवाणो सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही ।


लेख :विश्‍वीकरण के युग मे महाराणा प्रताप की प्रासंगिकता

मेवाड की पवित्र धरती के कण कण मे भारत के सपूत महाराणा प्रताप का व्यक्तित्व, कृतित्व औंर उनके त्यागमयी जीवन कि अमर कहानी के जयघोष आज भी व्यापत हैं। उनके विषय मे पृथ्वीराज राठौंड ने लिखा हैं।

माई एडा पूत जण,जेहडा राणा प्रताप ।
अकबर सूतौं औंझके जाणा सिराणे सांप ।।

उनका जीवन चरित्र देशवासियो मे वीर भावना, सांस्कृतिक चेतना ,कर्त्तव्य बोध पैदा करने  के लिये धधकते ज्वालामुखी का काम कर सकता हैं। देशरक्षा हेतु उन्होने भौंतिक सुख सुविधाओ व महलो के ऐश्‍वर्य का भी त्याग कर दिया पहाडीयो मे शरण ली जहँा उन्हे खाने के लिये रोटी भी नसीब नही हुई परन्तु उन्होने अकबर की अधीनता स्वीकार नही की  । उन्होने कहा-

मैं राज्यसुख भोग करु, चित्तौंड गौंरव नष्ट हो।
मुख मोड लू कर्त्तव्य से क्या देश मेरा भ्रष्ट हो ।।

आज के युग मे भी महाराणा प्रताप के स्वतन्त्रता के सिद्धान्तो का महत्व औंर ज्यादा बढ़ गया हैं । हमने अपने प्रयासो द्वारा नई नई तकनीके विकसित करके कई महत्वपूर्ण अविष्कार किये हैं जो हमारे लिये लाभदायक हैं औंर हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं।आज देश मे भौंतिक सुविधाओ की कमी नही हैं।  हमने टी. वी. वाहन कम्प्यूटर ,मोबाईल  आदि वस्तुओ का सर्जन किया हैं। इनके माध्यम से देश विदेश की जानकारी घर बैंठे मिल जाती हैं। ये हमारे मनोरंजन का भी साधन बन गये हैं।इनसे मिलने वाली शिक्षाप्रद जानकारी से हमारे व्यक्त्तिव व मानसिकता का विकास हो रहा हैं। हमने कृषि यंत्रो ,व उर्वरक खादो का निर्माण करके उत्पादकता व खाधानो पर आत्मनिर्भरता बढ़ा ली हैं।इन सब के फ़ायदो के साथ साथ कुछ दुष्परिणाम भी सामने आये हैं।।एक तरफ़ हमने प्रकृति को नियन्त्रित  करने का प्रयास किया हैं वही दूसरी औंर  वाहनो व बडी बडी मीलो  से निकलने वाले धंुवे व जहरीली गैंस से प्रदुषण, व कई नाईलाज घातक बिमारियो को उत्पन्न करके पर्यावरणीय सन्तुलन को बिगाडा हैं।

आज हमाने तकनीकी द्वारा कई नाभिकीय योजनाए व परमाणु शक्त्ति का तो विकास कर लिया हैं पर कई हिंसक प्रवृतियो को भी अंजाम दिया हैं जिससे हमारे सामाजिक सांस्कृतिक ,धार्मिक मूल्यो का हास हो रहा हैं। आज हम भौंतिक सुविधाओ व टेक्नोलोजी के गुलाम होते जा रहे हैं इन सब ने हमारी मानसिकता पर गलत प्रभाव डाला  हैं ।

आज विश्वीकरण के दौंरान देश मे राजनितिक ,आर्थिक, भोगोलिक ,सांस्कृतिक पर्यावरणीय बदलाव आया हैं हमने पर्यावरण को बुरी तरह नष्ट किया हैं व आने वाली पीढ़ियो के जीवन को खराब कर रहे हैं।आज भारत की तुलना विकसित देशो से कि जा रही हैं। । नई नई कम्पनिया भारत मे अपने पावं जमा रही हैं औंर लोगो मे आर्कषण का केन्द्र बन रही हैं। क्या हम कोई नयी गुलामी की औंर रो नही बढ़ रहे हैं।

आज कई विदेशी टी.वी.चैंनलो, पत्र पत्रिकाओ द्वारा मन मस्तिष्क को विकृत करने वाले कार्यक्रम प्रसारित किये जा रहे हैं इनसे  हमारे पेहनावे, रहन सहन, मे परिर्वतन आ गया हैं जिनसे नैंतिक मूल्यो व सांस्कृतिक गौंरव का हास हो रहा हैं । कुछ मीडिया वालो का रोल भी निन्दनीय हैं ये लोग जनता को हकीकत से रुबरु नही करवाते बल्कि सच्चाई छुपाकर कुछ औंर ही दिखाते हैं। ये समाज मे विकृतता व मनमुटाव पैंदा करते हैं। हमारे मन मस्तिष्क पर अब पाश्चात्य  भाषा संस्कृति व शिक्षा का प्रभुत्व बढ़ रहा हैं हिन्दी स्कूलो के तुलना मे अंग्रेजी माध्यम की स्कुलो मे ही माता पिता अपने बच्चो को भेजना पसंद करते हैं।कई लोग मातृ भाषा बोलने मे शर्म महसुस करते हैं।

महाराणा प्रताप के चरित्र  मे सर्वधर्मसम्भावना के लक्षण परिलक्षित होते हैं वे अपनी प्रजा को समानता से देखते व उनके हितो को सर्वोपरि मानते थे उनके काल मे राजनितिक स्थिती सराहनीय थी परन्तु वर्तमान राजनीति मे भ्रष्टाचार व्यापत हैं ।प्रशासनिक सेवाओ व रोजगार के लिए बौंद्धिक क्षमता व शिक्षण योग्यता की बजाय जाति के नाम पर आरक्षण दिया जाता हैं।

पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव लोगो के दिल दिमागो पर छाया हुआ हैं । लोग पश्चिमी संस्कृति को अपनाकर  गर्व महसुस करते हैं जो गलत हैं।हर कोई क्रिकेट का दिवाना बन रहा हैं जिससे हमारे पारम्परिक खेल धीरे धीरे नष्ट प्राय हो रहे हैं। क्या ये अंग्रेजो का खेल हमे नयी गुलामी की औंर नही ले जा रहा हैं ।भारत ने जब परमाणु विस्फ़ोट करने का प्रयास किया तो कई विदेशी दबाव डाले गये, वे उन लोगो द्वारा जिन के पास परमाणु शक्त्ति हैं।  देश की एतिहासिक धरोहर ,जैंसे महल ,दुर्ग को आज रिसोर्ट व होटल मे बदलने का विचार विदेशी विशेषज्ञो की ही देन हैं।

अगर हमे हमारे देश का चहुमुखी विकास करना हैं तो हम सब को संगठित होना होगा व स्वदेश प्रेम की भावना को महत्व देना होगा । माना कि हममे  पश्चमी सभ्यता व संस्कृति की अच्छी बाते  ग्रहण करने की भावना होनी चाहिये परन्तु साथ ही साथ महाराणा प्रताप जैंसे शुरवीरो के त्याग समर्पण मूल्यो का भी अनुसरण करना चाहिए। हमे विश्वी करण के इस जमाने मे भी अपनी संस्कृति की  अलग ही पहचान बनानी चाहिये । हमारा ये निर्णय समाज सुधार की दिशा मे अतयन्त महत्वपुर्ण कदम होगा । इसके लिए हमे महाराणा प्रताप के आदर्शो ,कष्टसहिष्णुता ,त्याग, शुरवीरता आदि गुणो को हमारे जीवन मे उतारना होगा।

विश्वीकरण व संस्कृतिकरण साथ साथ चलने चाहिये। विश्वीकरण होने के बावजूद हमे हमारे राष्ट्र ,हमारे समाज ,हमारे परिवार इन सब पर हमे पूर्ण विश्वास होना चाहिए ।इन सब के बारे मे निर्णय लेने व उसका भला बुरा सोचने की हिम्मत ,क्षमता व स्वतन्त्रता हैं। इस पुण्य अवसर पर आइये हम प्रतिज्ञा करे कि महाराणा प्रताप की दी हुई स्वतन्त्रता को विश्वीकरण के सन्दर्भ मे संझोने का प्रयास करे।

लेख : चेतक रे लाग्या पंख
संदर्भ, राजस्थान पत्रिका अहमदाबाद, 10 नवम्बर, पेज-1।

काठियावाडी समेत भारतीय नस्ल रे घोडा पर डाक टिकट जारी

चेतक रे पंख लाग गिया। अबे चेतक डाक रे जरिये देश भर में उड सकेगा।

अटे चेतक सु मतलब है भारतीय नस्ल रा लुप्तप्राय घोडा। चेतक महाराणा प्रताप रो जांबाज घोडो हो और काठियावाडी हो। भारतीय डाक विभाग सोमवार ने काठियावाडी- मारवाडी समेत घोडा री चार लुप्तप्राय नस्ला पर डाक टिकट जारी करिया।

इण डाक टिकट पर काठियावाडी, मारवाडी, जंसकारी और मणिपुरी घोडा है, जिका भारत में लुप्तप्राय होता जा रिया है। अहमदाबाद में कार्यरत डाक विभाग रा अधिकारी संदीप ब्रह्मभट्ट रे विशेष प्रयासा सु भारतीय नस्ल रे घोडा पर डाक टिकट जारी हुया है।

समारोह में गुजरात डाक परिमंडल री मुख्य पोस्ट मास्टर जनरल करुणा पिल्लै समेत डाक विभाग और विण सु जुडया फिलाटेलिक विभाग रा वरिष्ठ अधिकारी मौजूद हा। राधिका दोराईस्वामी जठे संदीप भ्रह्मभट्ट रे प्रयासा री सराहना करी, बठे इण बात री खुशी जाहिर करी कि डाक विभाग इसा घोडा पर डाक टिकट जारी कर रियो है, जिका ने बचाणे री महती आवश्यकता है। वा उम्मीद जताई कि डाक टिकट जारी होणे सु लोगा में इण घोडा रे संरक्षण रे प्रति जागरुकता आवेगी। इणसु पेली संदीप जी केयो कि डाक विभाग जद कोई टिकट जारी करे है, तो बो फौरी तौर पर नीं बल्कि गहन मंथन रे बाद होवे है। जद इया किणी पर डाक टिकट जारी होवे है तो  विण री महत्ता ने खुद हि समझो जा सके है। बे इण वास्ते लारले 5 साला सु प्रयास कर रिया हा अर आज जार वियारो प्रयास साकार हुयो, तो इणसु भारतीय नसल रे घोडा री महता अपने आप स्पष्ट है। वा केयो कि आ और भी गर्व री बात है कि जिण चार नसला रे घोडा प र टिकट जारी हो रियो है, उणमें काठियावाडी भी शामिल है।

 

 

   
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