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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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राज.भाषा अर विद्वानां रा विचार


संदर्भ - सूरतगढ़ टाइम्स, तारीख 1 दिसम्बर, 2006
अंक-15, पेज न.- 3,

असल में म्है राजस्थानी भाषा री व्याकरण माथै म्हारौ काम, पैला होयोडी व्याकरण रौ काम देख्यां-जाण्यां पछै ई सरु कियौ। अठै रा देसी विद्वानां में रामकरण जी आसोपा, नरोतमदास जी स्वामी अर सीताराम जी लाळस इत्याद रौ काम म्हारै देखवा में आयौ अर परदेसी विद्वानां में केलॉग, गियरसन, टैसीटोरी अर ऐलन रो काम म्है देख्यो। आं लोगां रा कामां बाबत जे म्है एक ई ओळी में कैऊं तो आ ई कहस्यूं के दे ऑल आर वैरी एलीमेंटरी ग्रामर।

-कालीचरण बहल,
भाषा विज्ञान रा प्रोफेसर अर अमरीकावासी

म्हनै राजस्थान री संस्कृति दूजा प्रांतां सूं न्यारी तो लागै ई अर उणरी सबसूं मोटी तारीफ उणरौ रंग-बिरंगो रुप लागै। कुदरत राजस्थान ने रेगिस्तान दियौ, पण राजस्थान रा मिनखां आपरी रंग बिरंगी संस्कृति अर आपरी आत्मा रा रंगा रै पाण उण रेगिस्तान नै नखलिस्तान बणाय लियौै। पैरवास रा रंग बिरंगा गाभा, गीत-गाणा अर नाच इण सांच री सुभट ओळख देवै के राजस्थान रा लोगां ने जिन्दादिली सूं जीवणौ आवै। संगीत अर कलावां रै क्षेत्र में तौ राजस्थान रौ कीं जवाब कोनी। वै कुदरत री दियोडी खामियां रे खिलाफ जद्दोजहद करबौ जाणैअर उण जद्दोजहद रा रंग रुप ई राजस्थान री संस्कृति मे उघडै।

राजस्थान री धरती कनै जिकौ इतिहास है जिकी परंपरावां है वै म्हनै ई नीं, आखै देस नै प्रेरणा देवै। ज्यूं म्है पैला ई कहयौ के राजस्थान री धरती, वीरां री धरती, महान लोगा री धरती, तो एडी महान धरती री तो भाषा ई महान व्हैल, एडी भाषा नै कम मान कीकर दियौ जाय सकै?

आज राजस्थान रा लोग राजस्थानी भाषा री संवैधानिक मानता री बात उठावै। जरुर राजस्थानी भाषा नै संवैधानिक मानता मिलणी चाइजै। उणनै संविधान री आठवीं सूची में सामिळ करीजणी चाइजै, म्हनै तो इणमें बिलकुल ई एतराज वाळी बात कोनी लागै।

- बसंत साठे,
तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री, भारत सरकार

राजस्थानी भाषा नै संवैधानिक मानता अर राजस्थान में राजभाषा रौ दरजौ मिलणौ जरुरी है। औ काम जिणदिन हुय जावैला वौ राजस्थान सारु एक ऐतिहासिक दिन होवैला।

राजस्थानी भाषा जीया माणक रै प्रकासण नै एक महताऊ घटना मानूं, वीया ई म्है चाऊं कै राजस्थानी रौ पाठयक्रम होवै अर ज्यादा सूं ज्यादा लोगबाग राजस्थानी में पत्र व्यवहार करैै। जठै कठै होवे राजस्थानी में बातचीत करै अर राजस्थानी भाषा में जिकी पत्र-पत्रिकावां छपै, वां नै लेवण अर आरथिक रुप सूं पूरी मदद देवै। राजस्थानी समाज नै जोडबा रै वास्तै सबसूं पैला राजस्थानी भाषा ई एक मजबूत जरियौ होय सकै। राजस्थानी रौ प्रचार करणौ पडसी। वा ई समूचै राजस्थान रै वासियां ने जोडसी, दूजौ कोई साधन कोनी। आपां आपारी सांस्कृतिक चेतना गमाय दी। इणी वजै सूं आं 400 बरसा में आपां एक ई जुगपुरुष कोनी देय सक्या।

- कन्हैयालाल जी सेठिया,
चावा राजस्थानी अर हिंदी कवि

राजस्थानी री जनता रौ भविस ई जद बणैला जद राजस्थानी नै मानता मिळैला। हिन्दी रौ जिकौ आपां भारतीय रुप चावां, वो प्रांत री भाषावां र विकास सूं ई सामी आय सकै। इण भाषा री एकरुपता बाबत पडूतर म्है इण बगत देवणौ ठीक नीं समझूं अर नीं इण सवाल नै उठावणौ ई वाजब है। म्हारौ तो औ ई कैवणौ है के राजस्थान में जे सांचो जनतंत्र रौ विकास करणौ है तो राजस्थानी रौ विकास जरूरी है। अर जे औ नीं होयौ, तो हिन्दी ई कोनी रैसी अर अंगरेजी आय जासी।

म्हारौ तो औ मानणौ है के प्रांत री भाषावां रौ जितरौ विकास करौलां, राष्ट्र री भाषा रौ उतरौ ई पोसण व्हैला। पैली रै बगत सगळौ काम चलतौ इज हो। आप देखावौ कै पैली राज रा हुकम, पट्टा-परवाना सगळा तौ मेवाडी में निकळता।

-जनार्दनराय नागर,
राजस्थान विधापीठ रा संस्थापक -उपन्यासकार

राजस्थानी नै बरौबर प्रोत्साहाण मिलै, इण दिसा मं की ठोस काम होवै अर भाषा रौ बधापौ होवै, म्है इण सारू बरौबर चेस्टा कर रैयौ हूं। राजस्थानी रै संवैधानिक मानता मिलै इण सवाल री गंभीरता नै म्है समझूं हूं अर सगळी तैयारी रै सौ म्है अवस इणनै प्रधानमंत्री जी रै सामी राखूंला। किणी ई प्रदेस री लोकभाषा रौ वठै री जनभावना सूं गैरौ रिस्तो होवै। शिक्षा में राजस्थानी नै वाजबीं ठौड मिलै तौ निस्चै ई इण्सूं प्रदेश री साक्षरता में उल्लेख जोग बधापौ होसी

-अशोक गहलोत
मुख्यमंत्री राजस्थान

 

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