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बाल कवितावां


राजकुमार जैन 'राजन' री राजस्थानी बाल कवितावां

संदर्भ- कानिया मानिया कुर्र, तारीख- 1 जून 2005, अंक-3, पेज-1
प्रस्तुति- राजकुमार जैन 'राजन'

डेडर
टर्र-टर्र टर्रावे डेडर
मिल र सुर में गावै डेडर।
आठूं मईना लुक र रैवै।
बिखरा बारै ल्यावै डेडर।
आपस में ना करै अै झगडो
रळमिल सगळा रैवे डेडर।
कीडा-मकोडा आंरो भोजन
साबत ही गटकावै डेडर।
च्यारूंमेर निजरां में चौकस
रापटरोळ मचावै डेडर।
माटी अर पाणी में राजी
ऊंचो छाळ लगावै डेडर।
अणभावणियै मौसम में भी
कदै नीं घबरावै डेडर।

फूल

हंसै अर हंसावै फूल
मस्ती में लहरावै फूल।
नंूई ताजगी भीतर भरदयैै
मनडो घणो लुभावै फूल।
सियाळो-उन्याळो-बिरखा सै'वै
रोजिना मुळकावै फूल।
तितली साथै लुकम छिपाई
भंवरां साथै लुकम गावै फूल।
कांटां में भी खिलता रै'वै
हंसणौ म्हानै सिखावै फूल।
हंसता-हंसता ज्यान लुटादयै
माटी नै महकावै फूल।
प्रकृति री सुन्दरता में च्यारूं चांद लगावै फूल।
होवै देव चरणां में अर्पित
जीवन सफल बणावै फूल।

बांदर
टाबरियां रो मामो बांदर
मस्त कलंदर काळो बांदर।
डम-डम-डम डमरू बाजै
ठुमक-ठुमकतो नाचै बांदर।
खेल-खेल में देखो भाइया
सबरी नकल उतारै बांदर।
ले र हाथां में सीसै नै
करै घणो तमासो बांदर।
टाबरियां रो मन बहलावै
खीं-खीं दांत दिखावै बांदर।
टाबरिया आपस में झगडै
उणनै सगळा कैवै बांदर।

जिद्‌दी डेडर
डेडर बोल्यो-घरआळी स्यूं
बादळ आंपां ल्यांवां
बिरखा में पछै दोनूं आपां
मिल र खूब न्हांवां।
मौसम हालै चोखो कोनी
हो ज्यासां बींमार
पाणी में जे रैया भीजता
चढ ज्यासा बुखार।
पण डेडरियो मान्यो कोनी
अकेलो ई न्हायो
दिन ढळयो तो उणनै घणौ
ताप चढ आयो।
बिलडी डाकघर आ र बीरै
सुई अक लगाई
छ:मईना न्हावण री उण रै
तकडी रोक लगाई।

 

कोयल
कू-कू करती आवै कोयल
बागां में मुस्कावै कोयल।
ऋ तु बसंत री आवण लागै
मीठा गीत सुणावै कोयल।
काळो कडवो रंग फेर भी
बोलै मीठी बाणी कोयल।
चालै जद आ मटक-मटक गे
सबरो मन बहलावै कोयल।
कागलो काळो बोलै कडवौ
अेडो भेद बतावै कोयल।
जद भी बोलै मीठी बोलै
सबनै सीख सीखावै कोयल।

गिलहरी
खावै जामन-आम गिलहरी
निकडती नादान गिलहरी।
काळी पटयां लियां पीठ पै
फुदकै आ शैतान गिलहरी।
घर-आंगण में धूम मचावै
आफत रो है नांव गिलहरी।
माऊ री साडी नै समझै
खो-खो रो मैदान गिलहरी।
मेहनत करती दरखत चढती
करै नीं आराम गिलहरी।
हरदम मैनत करती रैवै
कर्मआळां री ज्यान गिलहरी।

चिडा-चिडी री का'णी

संदर्भ - कानिया मानिया कुर्र, जुलाई सु सितम्बर, 2006
प्रस्तुति- डा. तारादत्त 'निर्विरोध'
पदमावती कॉलोनी, 'ए' अजमेर रोड, जयपुर- 19,
फोन- 0141-2393650

चिडलो ल्यायो चावळ
और चिडली ल्याई दाळ।
लागी सिजोवण खीचडी,
चिडली चूलो बाळ।।
भाज कुआ पर ढाणां माळै
चिडली पाणी ल्याई।
अतरा मैं चिडो एकलो,
सबड खीचडी खाई।
चौलो करयो खराब
और बो बासण दिया उछाळ।
चिडलो ल्यायो चावळ
और चिडळी ल्याई दाळ।।
चिडली बोली वो रे चिडला,
आ कुण करी सफाई?
म्हारै जाबा कै पाछै कुण,
सिजो खीचडी खाई?
आछो बाबा तू ही खाजै,
बेगीसीक निकाळ।
चिडलो ल्यायो चावळ
और चिडली ल्याई दाळ
भाज बिलाई लेवण पूगी,
ल्याई खीरो जार।
अतरा मै तो चिडा चिडी भी।
उडग्या पांख पसार।
दोनी चाली चाल,
अजी हां दोनी करी कमाल।
चिडलो ल्यायो चावळ
और चिडली ल्याई दाळ।।


जोकर
संदर्भ- टाबर टोली पाक्षिक, हनुमानगढ, अंक-14, तारीख-1 सु 15 जून 2007, पेज- 4
प्रस्तुति- सुश्री लीला मोदी, वरिष्ठ प्राध्यापक (हिन्दी)
ठिकाणो- 291, मोती स्मृति, टिपटा, कोटा (राज.), फोन- 0744-2385380, 2385625

घणो हंसावै जोकर
यो सरकस रो जोकर
सारा रंगा में रंग कर
यो रंग रंगीलो आवै
टाबर टोली अर गोरियां नै
देख-देख इतरावै
मेडम सूं जद करै मसकरी
पग सूं खावै ठोकर
घणो हंसावै जोकर
यो सरकस रो जोकर।
कमर हाथ अर नाड हला के
टा-टा करतो जावै
पास में आके टाबर टोली सूं
यो हाथ मिलावै
लोटपोट कर देवै सबनै
झूट-मूट रो-रोकर
घणो हंसावै जोकर
यो सरकस रो जोकर।
जोकर बिन सारो ही सरकस
फीको-फीको लागै
टाबर टोली हंसै जद यो
मटक-मटक के भागै
खुद हांसै अर सबनै हंसावै
बण-बण कर यो नोकर
घणो हंसावै जोकर।
टाबर जाण के मोट्यार की
टोली जद ललकारै
पल-पल में फटकारै
जग में नाम अमर करज्यो
थे रखज्यो वानै धोकर
घणो हंसावै जोकर
यो सरकस रो जोकर।

नाम करियो रोशन
संदर्भ- टाबर टोली पाक्षिक, हनुमानगढ, अंक-14, तारीख-1 सु 15 जून 2007, पेज- 4
पृथ्वीराम भांभू, रामगढ, नोहर
जिला-हनुमानगढ़, (राज.)

म्हारा प्यारो टाबरो
टाबर टोली बणाग़े ऱाखियो
कदी जीवाण एं
ना करियो रोळी।
जरूर पढियो च्यार ओळी।।
अनपढ गो कोनी जमानो
नौकरी न मिले तौ
कोई व्यापार करियो
टाबरो थारै मां-बाप गो
नाम रोशन जरूर करिया।।
जीवण में बढणो है आगै
तो सदा मिल जुलगे रहियो।।
टाबरो, टाबर टोली
बणागे राखियो।।

इन्दर राजा
संदर्भ- कानिया मानिया कुर्र, हनुमानगढ, पेज-1, अंक-4, जुलाई-सितम्बर 2005
प्रस्तुति- शिव मृदुल, 8-बी मीरा मार्ग, चित्तौडगढ

इन्दर राजा पाणी दो
पाणी दो घुडदाणी दो।
उमड-उमड नै आवै सा
बादळ काळा लावै सा
धनुष गगन में ताणी दो
बरसौ आप तसल्ली दो
खूब मूंफळ्यां तळ्ळी दो
तेल काडती घाणी डो
नदी-नाळा भरवा दो
झरझर झरना झरवा दो
कोयल राग सुहाणी दो
उडद, मूंग अर चंवळा दो
मक्या कंवळा-कंवळा दो
सब्ज्यां सब करसाणी दो
सेलां परवत घाटया की
गोठ चूरमा बांटया की
अेक बार चक छाणी दो

दादो हाथी
संदर्भ- कानिया मानिया कुर्र, हनुमानगढ, पेज-1, अंक-4, जुलाई-सितम्बर 2005
प्रस्तुति- राजकुमार जैन
उप सम्पादक, टाबर टोली, चित्रा प्रकाशन
आकोला- 312205, चित्तौडगढ

भारी भरकम मोटो हाथी
जंगळ रो है दादो हाथी
मस्ती में चालै इतरावै
सूंड हिलांतो आवै हाथी
सेना में भी वफादारी सूं
आपरो फर्ज निभावै हाथी
टाबरियां संग टाबर बणज्यै
सबमें प्रेम बंटावै हाथी
कटता देखै दरखत जद-जद
दु:खी घणौ होवै टाड हाथी।

मोर
संदर्भ- कानिया मानिया कुर्र, हनुमानगढ, पेज-1, अंक-4, जुलाई-सितम्बर 2005
प्रस्तुति नवनीत राय
मोदी मोहल्लो, सोजतशहर, जिला- पाली

मेडी माथै
बोलै मोर,
बादळ इतौ
मचावै शौर।
बादळ म्हांनै
पाणी दे,
कोयल मुंदरी
वाणी दे।
डेडरिया री करकस बोली,
बादळ आयां
आंख्यां खोली।
मेह बरसतां
बिल भर जावै,
सांप गोयडा
बारै आवै।

मेह
संदर्भ- कानिया मानिया कुर्र, हनुमानगढ, पेज-1, अंक-4, जुलाई-सितम्बर 2005
प्रस्तुति- नरेश मेहन, 9/44 आर.एच.बी.कॉलोनी
हनुमानगढ जंक्शन- 335512, मोबाइल- 9414329505

म्हानै मेह में
न्हाण डे
औ म्हारी मा
म्हानै नाचण दे मस्ती में
गाण दे
औ म्हारी मा
नागौ हो'र
छप-छप पाणी में
रापटरोळी
आचाण दे
औ म्हारी मा
म्है नीं होवां गंदा
तूं नां डर
म्हानै कागद री नाव
पाणी में चलाण दे
औ म्हारी मां।

 

 

   
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