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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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दादू
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चित्रकला

राजस्थान री सांस्कृतिक परम्परा बहोत पुराणी ,समृद्ध व गौरवशाली है राजस्थानी चित्र शैलियो रो भारत री चित्रकला रे इतिहास मे एक अद्वितीय स्थान है ।राजस्थानी चित्रकला रो उदगम स्थल मेवाड मानीजे है। राजस्थानी शैली रो आरम्भ 15 वी सु 16 वी सदी रे बीच मानो जावे है।

हरिभद्र सूरि कृत समराइच्छा और उधोतनसूरी कृत कुवलयमाला मे चित्र निर्माण री पद्धति रखांकन, रुपांकन, संयोजन रो विस्तृत विवरण मिले है।

राजस्थानी लोक चित्रकला ने निम्न भागो मे विभाजित करीजे है।
  • भित्ति व भूमि चित्रकारी इणमे आकारद चित्र-भित्ति,देवरा,पथवारी आदि।
  • कपडे उपर निर्मित चित्र-ए चित्र , पिछवाई ,फ़ड आदि ।
  • कागज पर निर्मित चित्र पाने ।
  • लकडी उपर निर्मित चित्र कावड और खिलोणा ।
  • पक्की मिट्टी ऊपर निर्मित चित्र मृदपात्र ,लोकदेवता ,देवियाँ व खिलौणा आदि ।
  • मानव शरीर उपर चित्र गोदाना, माँडणा, मेंहदी आदि।

राजस्थान चित्रकला री शैलियो रो वर्गीकरण

स्कूल

सम्बन्धित शैली /उपशैली

मेवाड स्कूल

उदयपुर , चांवड ,नाथद्वारा, देवगढ ।

मारवाड स्कूल

जोधपुर ,बीकानेर ,जैसलमेर ,किशनगढ़ ,पाली ,नागोर ,धाणेराव

ढ़ूंढाण स्कूल

आमेर ,जयपुर , अलवर,उनियारा, करौली ,नारौली ।

हाडौती स्कूल

बूंदी ,कोटा ,झालावाड

शैलियो रो विवरण

(1) मेवाड शैली -
आ मूल शैली मानीजे है । इ शैली ने विकसित करणे मे महाराणा कुम्भा रो खासो योगदान रह्यो है। चित्तौड व कुम्भलगढ़ रा स्मारक इ तथ्य रा प्रमाण है।महाराणा अमरसिंह रो शासन काल मेवाड री चित्रकला रे इतिहास मे स्वर्ण युग मानीजे है, इ समय रा रागमाला चित्र बडौदा रे अजायबघर मे व बारहमासा चित्र सरस्वती भवन पुस्तकालय उदयपुर मे सुरक्षित है। विशेषता - मीन नेत्र ,छोटी - ठोडी ,फ़सल री खडी फ़ांक रा नेत्र , घुमावदार व लम्बी उंगलियाँ ,लाल पीले रंग री अधिकता ,अलंकार बाहुल्य ,चेहरो री जकडन आदमियो री पोशाक मे जहाँगीरी पटको , अटपटी पगडी व चमकदार साफ़ा आदि। पंचतन्त्र ,गीतगोविन्द ,राग़माला ,रसमंजरी ,रसकप्रिया ,महाभारत ,रामायण और पृथ्वीराज रासो , बिहारी सतसई आदि विषयो पर इ शैली मे चित्र बणीया है।
(2) नाथद्वारा शैली -
महाराणा राजसिंह रे द्वारा उदयपुर शैली व ब्रजशैली रे समन्वय सु इ शैली रो उदभव हुयो। नाथद्वारा शैली , राजपूत शैली ,मेवाड शैली और किशनगढ़ शैली रो अनोखो मिश्रणहै।पिछवाई,भित्ति चित्र व श्री कृष्ण री बाल लीलाओ रो अंकन इ शैली रो प्रमुख विषय रह्यो ह
(3) किशनगढ़ शैली
राजा सावन्तसिंह रे काल (1748-64 ) किशनगढ शैली रो वैभव व स्वर्ण युग मानीजे है। नागरी दास जी रे काव्य प्रेम ,गायन ,बणी - ठणी रे संगीत प्रेम और कलाकार मोरध्वज निहालचंद रे चित्रांकन ने इ समय किशनगढ़ री चित्रकला ने सर्वोच्च स्थान पर पहुंचा दियो । किशनगढ़ शैली ने विश्‍व मे प्रकाशित करने रो श्रेय 1943 मे एरिकडिक्सन ने जावे है । ए सबसु पेला किशनगढ़ शैली प्रसिद्ध कृति बणी - ठणी ने भारतीय कला री मोनालिसा रे रुप मे स्थापित करियो।
(4) बूँदी शैली
बूंदी शैली रो विकास राव सुरजन सिंह (1554-85 ) रे समय हुयो। इ चित्रो मे नुकीली नाक, मोटा गाल ,छोटा कद ,गोळ मँुह गोळाकार ललाट और लाल पीळे रंगो रो प्रयोग स्थानीय खासियत लियोडो है। बूंदी रे चित्रो मे कृष्ण लीला,रामलीला ,बारहमासा शिकार ,दरबार ,तीज - त्यौहार हाथियो री लडाई ,घुडदौड ,रागरंग ,पशु - पक्षी ,फ़ल - फ़ूल पेड आदि चित्रित करीय़ा है। चित्रशाला रो निर्माण महाराव उम्मेदसिंह करवायो ।
(5) कोटा शैली
इ शैली रो अस्तित्व स्थापित करणे रो श्रेय महारावल रामसिंह ने जावे है। कोटा शैली रे चित्रो मे दरबारी द्श्य ,जुलूस ,कृष्ण लीला बारहमासा ,राग रागिनियाँ ,युद्ध शिकार आदि रा दृश्य प्रमुख है। कोटा शैली मे दुर्जनसाल रे उत्तराधिकारी शत्रुसाल रे समय भागवत रा लघु ग्रन्थ चित्रित हुया।
(6) जोधपुर शैली -
जोधपुर बीकानेर, नागौर और किशनगढ देशी रियासतो मे विकसित होणे वाळी चित्रकला मारवाड स्कूल रे नाम सु जाणी जावे है। जोधपुर री स्वतन्त्र शैली रो अस्तित्व राव मालदेव रे समय सु हुयो। जोधपुर शैली रे चित्रो मे मरु रा टीला ,छोटा छोटा झाड और पौधा ,हिरण ,ऊँट,भेड, घोडा व कौवा,दरबारी जीवन मे राससी ठाठ आदि रो चित्रण प्रमुख खासियत है।
(7) जयपुर शैली-
जयपुर शैली ने विकासित करणे रो श्रेय महाराजा सवाई जयसिंह रो है। इ शैली मे राग-रागनियाँ, बारहमासा ,दुर्गा पाठ और भागवत रे प्रसंगो रो बखान है। इ शैली पर मुगल शैली रो प्रभाव है,क्योकि मुगलो सु निकट सम्बन्ध था। महाराजा सवाई जयसिंह रे शासन काल मे महाभारत ,रामायण ,गीत गोविन्द पर चित्र बणाया गया था ।
(8) बीकानेर शैली -
बीकानेर शैली रो प्रादुर्भाव 6 वी सदि रे अन्त सु मानीजे है। बीकानेर रे प्रारम्भिक चित्रो मे जैन स्कूल रो प्रभाव जैन पति मथेरणो रे कारण रह्यो । मुगल दरबार मे उस्ता परिवार मुगल शैली मे कुशल था। महाराजा अनूप सिंह रे समय मे उस्ता परिवार मे हिन्दू कथाओ,संस्कृत ,हिन्दी,राजस्थानी काव्यो रो आधार बणा ड़ सैकडो चित्र बणाया। बीकानेर शैली रे चित्रो मे पीले रंग का उपयोग हुयो और निजी खासियत ऊँट री खाल पर चित्रो रो अंकन है।
9) करौली शैली
इ शैली रो उदभव 16 वी सदी सु मानीजे है। इ शैली मे कृष्ण लीला ,बाल गोपियो ,ग्वालो ,देवियो ,नदियो शिकार रे चित्रो रो बखान है। कैला देवी रे कने चित्रशाला रो निर्माण करवायो गयो और राज महलो विविध रंग बिरंगे चित्रो ने चित्रित करियो गयो है। करौली राज्य रा टाटू परिवार चित्रकला मे कुशल है ।
(10) अलवर शैली
अलवर चित्र शैली रे चित्रो मे राजपूती वैभव ,कृष्ण लीला ,रामलीला, प्राकृ तिक परिवेश ,राग रागनिया आदि रो चित्रण हुयो है। अलवर शैली पर जयपुर शैली व मुगल शैली रो प्रभाव रह्यो है। इ शैली रो स्वतन्त्र अस्तित्व राजा बख्तावर सिंह व विनयसिंह रे समय पा सकी । इ शैली रे चित्रो मे वन ,उपवन, कुंज ,विहार मह आदि रो चित्रांकन प्रमुख रुप सु होयो ।

राजस्थानी चित्रकला री विशेषताया -

राजस्थानी चित्रकला रो अतीत वैभवपूर्ण व गौरवपूर्ण रह्यो है। इणरी प्रचानीता और कलात्मकता राजस्थान री अलग पहचान बनाती हैऩारी सोन्दर्य ,रंगात्मकता ,विषय- वस्तु री विविधता,लोक जीवन रो सानिध्य ,भाव प्रवणतारो प्राचुर्य ,देशकाल री अनुरुपता प्रकृति चित्रण चित्रकला री प्रमुख खासियत है।

राजस्थानी चित्रकला रा प्रमुख संग्रहालय

पोथी खाना

जयपुर

पुस्तक प्रकाश

जोधपुर

सरस्वती भण्डार

उदयपुर

जैन भण्डार

जैसलमेर

चित्रकला संग्रहालय

कोटा

चित्रकला संग्रहालय

अलवर

राजस्थान स्कूल आँफ़ आर्टस ने महाविधालय रो दर्जो प्राप्त है। इणमे मूर्तिकला ,चित्रकला व प्रिंट मेकिंग विषयो पर पांच साल रो डिप्लोमो दियो जावे है।

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