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राजस्थानी कहावता (त-न)


तंगी में कुण संगी ?
तड़कै तो ल्यो चकांचक ? कह, कैं कै ? कह, आ भी सांची है !
तरवार को घाव भर ज्या, बात को कोनी भरै ?
तलै तो हूँ पर ऊपर टांग मेरी ई है।
तवै की काची नै, सासरै की भाजी नै कठेई ठोड कोनी।
तवै चढ़ै नै धाड़ खाय।
ताण्यां तेरै मांय बास आयै है, कह, मेरी बासो बी कठे है।
ताण्यूं कुणसी पोसांका में।
ताता पाणी सैं कसी बड़ा बैल ?
तातो खावै छायां सोवै, बैंको बैद पिछोकड़ रोवै।
ताली लाग्यां तालो खुलै।
तावलो सो बावलो।
तिरिया चरित न जाणे कोय, खसम मार के सत्ती होय।
तिल देखो, तिलां की धार देखो।
तीज त्युंहारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर।
तीजां पीछै तीजड़ी, होली पाछै ढूंढ, फेरां पाछै चुनड़ी, मार खसम कै मूंड।
तीतर कै मूंडै कुसल है।
तीतर छोड बणी में दीया, भटजी हो गया नीराला।
तीतर पंखी बादली, विधवा काजल रेख, बा बरसै बा घर करै, ई में मीन न मेख।
तीन तेरा घर बिखरै।
तीन बुलांया तेरा आया, भई राम की बाणी, राधो चेतन यूं कहै, द्यो दाल में पाणी।
तीन सुहाली, तेरा थाली, बांटण वाली सतर जणी।
तीसरे सूखो आठवैं अकाल।
तुरकणी कै रांध्योड़ा में कसर ?
तुरकणी कात्योड़े में ही फिदकड़ो।
तूं आंटीली मैं अणखीली क्यूंकर होय खटाव ?
तूं ई गांव को चोधरी, तूं ई नम्बरदार।
तूं क्यूं लाडो उणमणी तेरै सेलीवालो साथ।
तूं खत्राणी मैं पाडियो, तूं बेस्या मैं भांड।
तेरे जिमाये मेरे जीमणै में पत्थर पड़ियो रै रांड।
तूं डाल-डाल मैं पात-पात
तूं बी राणी मैं बी राणी, कूण भरै पैंडे को पाणी ?
तू आवे ढिग एक बार तो मैं आऊं ढिक अट्ठ।
तू म्हां सै करड़ो रहै तो म्हे बी करड़ा लट्ठ।
तू काणूं मैं खोड़ो, राम मिलायो जोड़ो।
तू चालै तो चाल निगोड्या, मैं तो गंगा न्हाऊंगी।
तू रोवे है छाक नै, मैं बूझण आई कै उधारो की कै ऊँ ल्याऊं।
तेरा मेरा दो गैला।
तेरी आंख में ताकू द्यूं हूं, कायर मना हुए।
तेरी मेरी बोली में ई को सलै ना।
तेरै ल्होड़िये नै न्यूतो है, कह, मेरै तो सगला ढाई सेर्या है।
तेल तो तिल्यां में सै ही निकलसी।
तेल बलै बाती बलै, नांव दिवा को होय।
तेल बाकला भैंरू पूजा।
तेली की जोरू ल्हूखो क्यूं खाय ?
तेली सूं खल ऊतरी, हुई बलीतै जोग।

थारी म्हारी बोली में, इतरो ही फरक्ख। तू तो कहै फरेस्ताङर कहूं जरक्ख।
थावर की थावर ही किसा गांव बलै है।
थोथो चणो बाजै घणो।
थोथो संख पराई फूंक सैं बाजै।

दगाबाज दूणू नवै, चीतो चोर कबाण।
दगो कैंको सगो नहीं।
दबी मूसी कान कटावै।
दमड़ां को लोभी बातां सै कोनी रीझै।
दमड़ी का छाणा धुआंधार मचाई।
दलाल कै दिवालो नहीं, महजीत कै तालो नहीं।
दसां डावडो, बीसां बावलो, तीसां तीखो, चालीसां चोखो। पचासां पाको, साठां थाको, सतरां सूलो, अस्सी लूलो। नब्बे नांगो सोवां तो भागी ई भागो।
दांत दरांतो दायमो, दारी और दरबान, ये पांचू दद्दा बुरा, पत राखै भगवान।
दांत भलांई टूच ज्यावो, लो कोनी चबै।
दांतला कमस को रोवता को बेरो पड़ै न हांसता को।
दाई सै पेट छानो कोनी।
दाता दे, भंडारी को पेट बलै।
दाता सैं सूम भलो, जो झट दे उत्तर देय।
दादूदुवारा में कांगसियां को के काम ?
दादो असो सावो काढ्यो के जान दिन कै दिन आई रही।
दादो घी खायो, म्हारी हथेली सूंघल्यो।
दान की बाछी का दांत कुण देख्या ?
दाणै दाणै म्होर-छाप है।
दाल भात लम्बा जीकारा, ऐ बाई ! परताप तुम्हारा।
दास सदा उदास।
दिन आयां रावण मरै।
दिन करै सौ बैरी कोन्या करै।
दिनगे को भूल्योड़ो संज्या घरा आ ज्याय तो भूल्योड़ो कोनी बाजै।
जिन जातां बार कोनी लागै।
दिनदीखै न फूड़ पीसै।
दिलां का दिल साईदार है।
दिल्ली की कमाई, दिल्ली में लुटाई।
दिल्ली में रह कर भी भाड़ झोंकी।
दीपक कै भांवै नहीं, जल जल मरै पतंग।
दीवा बीती पंचमी, जो शनि मूल पड़न्त। बिवणा तिवणा चौगणा, महंगा नाज करन्त।
दीवा बीती पंचमी, मूल नछतर होय, खप्पर ले हाथां फिरै, भीख न घालै कोय।
दीवा बीती पंचमी, सोम शुकर गुरु मूल, डंक कहे हे भड्‌ड़ली, निपजे सांतू तूल।
दीवाली का दीवा दीठा, काचर बोर मतीरा मीठा।
दुखां को भांडो, नांव सदासुखराय।
दुनिया की जीभ कुण पकड़ै ?
दुनिया दुरंगी है।
दुनिया देखै जैसी कह दे।
दुनिया नै कुण जीतै ?
दुनिया पराये सुख दुबली है।
दुनिया में दो गरीब है, कै बेटी, कै बैल।
दुनिया है अर मतलब है।
दुश्मन की किरपा बुरी, भली सैन की त्रास, आर्डग कर गरमी करे, जद बरसण की आस।
दूजवर की गोरड़ी, हाथां परली मोरड़ी।
दग्गड दग्गड खाऊंगी, बोलैगो तो मारूंगी मर ज्याऊंगी।
दूद दयां का पावणां, छाछ नै अणखावणा।
दूध को दूष पाणी को पाणी।
दूध चुघावै मायड़ी, नांव धाय को होय।
दूध पीती बिलाई गंडकड़ां मैं जा पड़ी।
दूध बेचो भांवै पूत बेचो।
दूध भी धोलो, छाय भी धोली।
दूध बी राख, दुहारी भी राख।
दूध हाली की लात बी सहणी पड़ै।
दूबड़ी तो चरवाटै ही होछै।
दूबलै पर दो लदै।
दूबली पर दो साढ़।
दूबली खेती घणै नै मारै।
दूबलो धीणूं दूसरा की छाय सै खोवै।
दूबलो जेठ देवरां बराबर।
दूर का ढोल सुहावणा लागै।
दूर जंवाई फूल बरोबर, गांव जंवाई आदो। घर जांवई गधै बरोबर, चाये जितणो लादो।
दूसरां कै घरां च्यार खाटां पर कमर खुलै।
दूसरों को माल तूंतड़ा की घड़ में जाय।
दूसरां पर बुरी चीतै जणा आप पर ई पड़ै।
दूसरै की थाली में घणू दीखै।
देखते नैणां, चालते गोड़ां।
देख पराई चूपड़ी मत ललचावै जी, ल्हूखी-सीखी खाय कर ठंडो पाणी पी।
देख पराई चोपड़ी, पड़ मर बेईमान, दो घड़ी की सरमा सरमी, आठ पहर आराम।
देख्या ख्याल खुदाय का, किसा रचाया रंग, खानजादा खेती करै तेली चढै तरंग।
देख्यां-देखी साधै जोग, छीजै काया, बधै रोग।
देख्यादेस बंगाला, दांत लाल मूं काला।
देख्यो नांही जैपरियो, कल में आकर के करियो।
देणूं अर मरणूं बराबर है।
देबा नै लेबा नै रामजी को नांव है।
दे रै पांड्या असीस, मैं के देऊं, मेरी आत्मा ही देसी।
देव जिसाई पुजारा।
देव देख्याङर जात पुरी हुई।
देवां सै दाना बड्‌डा होय है।
देसी चोरी, परदेश्स भीख।
देस जिसाई भेस।
देसी कुतिया, बिलायती बोली।
दो तो चून का भी बुरा।
दो दाणा की खातर घोड़ी बेची जायगी के ?
दोनूं हाथ मिलायां ही धुपै।
दोयती तो कुंआरो डोलै, नानी का नो-नो फेरा।
दो बुरां बुराई हुवै।
दोय दोय गयंद न बंधसी, एकै कंबू ठाण।
दोय मूसा दोय कातरा, दोय टीडी दोय ताव।
दोय री बादी जल हरै, दोय बीसर दो बाव।
दोय लड़ै, जठे एक पड़ै।
दौलत सूं दोलत बधै।
दो सावण, दो भादवा, दो कातिक, दो मा, ढांडी-ढोरी बेच करं, नाज बिसावण जा।

घड़ी को सिर हाल दियो, ढीयै को जबान कोनी हलाई।
घणी की कांच दाबण गई, आ पड़ी आपकी।
घणी रे घणी म्हारा निघण घणी। तूं बैठ्यां म्हारै चिन्ता घणी।
धन को तेरा, मकर पचीस, जाड़े दिन, दो कम चालीस।
धन खेती, धिक चाकरी।
धन दायजा बहगा, छाती फूटा रहगा।
धन धणिया को गुवाल कै हाथ में लकड़ी।
धनवन्ता कै कांटो लाग्यो, स्हाय करी सब कोय, निरधन पड्‌यो पहाड़ सूं, बात न पूछी कोय।
धनवान को के कंजूस अर गरीब को के दातार।
धरतियां कोवणियूं संकड़ेल क्यूं भुगतै ?
धरती परै सरक ज्याए, छैला पांव धरैंगा ए।
धरम की जड़ सदा हरी।
धरम को धरम, करम को करम।
धान पुराणा धृत नया, त्यूं कुलवन्ती नार। चौथी पीठ तुंरग की, सुरक निसानी चार।
धानी धन की भूख क साका की ?
धाया तेरी छा राबड़ी, तेरै गंडकड़ां सैं तो कढ़ाय।
धायो जाट गाड़ी रो बाद काढ़ै।
धायो धपनूं पेदी हाला पग करै।
धायो मीर, भूखो फकीर, मर्यां पाछै पीर।
धायो रांगड धन हरै, भूखो तजै पिराण।
धीणोड़ी कै सागै हीणोडी मर ज्याव।
धीणूं भैंस को, हो भांवै सेर ही।
धीरे धीरे ठाकरां, धीरे सब कुछ होय, माली सीचै सो घड़ा, रुत आयां फल होय।
धूल खायां किसो पेट भरै ?
धूल धाणी, राख छाणी।
धेला की न्यूतार, थांम कै बांथ घालै।
धेलै की हांडी फूटी, गंडक की जात पिछाणी।
धोती में सब उघाड़ा है।
धोबण सै के तेलण घाट, ऊंकै मोगरी, ऊंकै लाठ।
धोबी की हांते गधो खाय।
धोबी कै घर में बड़गा चोर, डूब्या और ई और।
धोबी कै बसो चाहै कुम्हार कै, गधो तो लदसी।
धोबी को गधो घर को न घाट को।
धोबी को गधो, स्वामी की गाय, राजा को नोकर, तीनूं गत्तां से जाय।
धोबी बेटा चान-सा, चोटी न पट्टा।
धोलै पर दाग लागै।

नंदी परलो रुंखड़ो-जद, कद होण विलास।
नई नो दिन, पुराणी सो दिन।
नकटा देव, सूरजा पूजारा।
नकटा, नांक कटी, कह, मेरी तो सवा गज बधी!
नकटी-बूची को जागी खसम।
न कोई की राई में, न कोई की दुहाई में।
नखरो नायण को, बतलावणों ब्यावण को।
नगद नाणा, बीन परणै काणा।
नगारा में तूती की आवाज कुण सुणै ?
नट-विद्या आ ज्याय पण जट-विद्या कोनी आवै।
नणद को नणदोई गलै लगाकर रोई, पाछै फिर कर देख्यो तो सगो न सोई।
नथ खोई नणद नैं दीनी।
नदी किनारै बैठ की क्यूं न हाथ पखालै ?
न नो मण तेल होय, न राधा नाचै।
न भेवै काकड़ो तो क्यूं टेरै हाली लाकड़ो ?
नयी जोगण काठ की मुद्रा।
नयो बलद खूंटो तोड़ै।
न नानेरै, घोड़ो दादेरै।
नर में नाई आगलो, पंखेरू में काग, पाणी मांगो काछबो, तीनूं दग्गाबाज।
नरुका नै नरूको मारै, के मारै करतार।
नवै चन्द्रमा नै सै राम-राम करै।
नष्ट देव की भ्रष्ट पूजा।
नसीब की खोटी, प्याज और रोटी।
नांव गंगाधर, न्हावै कोनी उमर में।
नांव तो बंशीधर, आवै कोनी अलगोजो बजाणूं ही।
नांव धापली, फिरै टुकड़ा मांगती।
नांव मोटा, घर में टोटा।
नांव राखै गीतड़ा के भींतड़ा।
नांव लिछमीधर, कन्नै कोनी छिदाम ही।
नांव लियां हिरण खोड़ा होय।
नांव लेवा न पाणी देवा।
नांव विद्याधर, आवै कोनी कक्को ही।
नांव सीतलदास, दुर्वासा-सो झाली।
नांवच हजारीलाल, घाटो ग्यारा सै को।
नाई की परख नूंवां में है।
नाई दाई बैद कसाई, इण को सूतक कदे न जाई।
नाई नाई, बाल कताक ? कह, जजमान ! मूंडै आगे आ ज्याय है।
नाई बामण कुत्तो, जाते देख हू हू करतो।
नाई हालो ठोलो, बाणिया हालो टक्को।
ना कोई सैं दोसती, ना कोई सै बैर।
नागां का रामजी परो कर गैला होबो करै है।
नागाई को लाल तुर्रो।
नागा को लाय में के दाजै ?
नागी के धोवै अर के निचोवै ?
नागा बूचो, सै सैं ऊंचो।
ना घर तेरा, ना घर मेरा, एक दिन होगा जंगल डेरा।
नाचण ई लागी जब घूंघट क्यां को ?
नाचूं क्यां ? आंगणूं बांको।
नाजरली, जेल बधो। कै बस म्हां ताणी ही है।
नाजुरतिये की लुगाई, जगत की भोजाई।
नाजो नाज बिना रह न्याय, काजल टीकी बिना कोनी रवै।
नाड़ां टांकण बलद बिकावण, तू मत चालै आधै सावण।
नादान की दोस्ती जीव का जंजाल।
नादीदी का नो फेरा।
नादीदी कै लोटो हुयो, रात्यूं उठ-उठ पाणी पियो।
नादीदी कै हुई कटोरी, पाणी पी-पी पदोरी।
नादीदी को खसम आयो, दिन में दीओ जोयो।
नाना मिनख नजीक, उमरावां आदर नहीं। बीं ठाकर नै ठीक, रण में पड़सी राजिया।
नानी कसम करै, दूयती नैं डंड।
नानी रांड कुंवारी मरगी, दोयती का नो-नो फेरा।
नापै सो गज, फाड़ै कोन्या एक गज।
नामी चोर मार्यो जाय, नामी साह कमा खाय।
नायां की जनेत में सब क ई ठाकर।
नारनोल की आग पटकीड़ो दाजै।
नारां का मूंडा कुण धोया है ?
नारी को एक बी चोखो, सूरी का बारा बी के काम का ?
नारी नर की खान।
नाहर ने रजपूत ने रेकारे री गाल।
निकमो नाई पाटड़ा मूंडै।
निकली होठां, चढ़ी कोठां।
निकासी कै बखत घोड़ो चाये, कै फिरतो सो आजे।
नीचो कर्यो कांधो, देखण हालो आंधो।
नीत गैल बरकत है।
नीम तलै सोगन खा ज्याय, पीपल तलै नट ज्याय।
नीम न मीठ होय, सींचो गुड़ धीव सै, जिणका पड्या सुभाव क जासी जीव सै।
नेकी-बदी साथ चालै।
नेम में निमेख घटै, सीख में मुजरो घटै।
नेम निमाणा, धर्म ठिकाणा।
नोकर खाय ठोकर।
नोकर मालिक का हां क बैंगण का ?
नोकरी की जड़ धरती सैं सवा हाथ ऊंची।
नोकरी ना करी।
नोकरी है क भाई-बन्दी ?
नो नेसां, दस केसां।
नो पूरबिया, तेरा चोका।
नो पेठा तेरा लगवाल, घोड़तै नै लेगो कोतवाल।
नो सै मूसा मार कर बिल्ली गंगाजी चली।
न्यारा घरां का न्यारा बारणा।
न्हाये न्हाये ई पुण्य।

आगे री कहावतां- क-घ च-ञ ट-ण त-न प-म य-व श-ज्ञ

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