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राजस्थानी कहावता (श-ज्ञ)


संख अर खीर भर्यो।
संजोग पीवतां के बार लागै।
संदेसां बिजण अर हाथ हाथां खेती।
संवारतां बार लागै, बिगड़ातां कोनी लागै।
सक्करखोरा नै सक्कखोरो सो कोम की ऊंलाई खा कर मिल ज्याय।
सगलै गुण की बूज हैं।
सगलो गांव लट्टै, कोई घालै, कोई नट्टै।
सगो कीजे जाण कर, पाणी पीजे छाण कर।
सग्गो समरथ कीजिये, जद-तद आवै जाव।
सत मत खोओ सूरमा, सत खोयं पत जाय।
सत की बांधी लिच्छमी, फेर मिलै गी आय।।
सदा दिवाली सन्त कै, आठो पहर आनन्द।
सदा न जुग में जीवणा, सदा न काला केस।
सदा न बरैस बादली, सदा न सावण होय।
सदा ही इकासर दिन कोनी रैवे।
सपूत की कमाई में सै को सीर।
सपूत तो पाड़ोसी को बी चोखो।
सब कोई झुकतै पालड़ै का सीरी है।
सबब आप आपकै भाग की खाय है।
सब आप आपको काढ्यो पाणी पीवै है।
सबकी मय्या सांझ।
सबसूं रिलमिल चालिये, नदी नाव संजोग।
समझणहार सुजाण, नर मोसर चूकै नहीं। ओसर की अहसाण, रहे घण दिन राजिया।।
समदर को के सूकै ? समै दिवाली पोलकर न्हाण।
सरीर कै रोगी की दवा है, मन कै रोगी की कोनी।
सलाम तांई मियां नै क्यूं रूसायो।
सांई हाथ करतणी, राखैगो उनमान।
सांकड़ी गली अर मारणां बलद।
सांगर फोग थली को मेवो।
सांच कहै थी मावड़ी, झूठ कहै था लोग। खारी लागी मावड़ी, मीठा लाग्या लोग।।
सांच नै आंच कोन्या।
सांची कह्यां झांल उठै।
सांप की रांद झाडूलो काटै।
सांप कै चीखलै को बडो अर के छोटो ?
सांप कै मांवसियां को के साख ?
सांप को खोयोड़ो बीछ्यां सैं के डरै ?
सांप-चकचूंदर हाली हो रही है।
सांप चालती मोत है।
सांप भी मर जाय और लाठी भी न टूटै।
सांप सगलै टेढो मेढो चालै पण बिल में बड़ै जद सीदो हो ज्याय।
सांप सलीट्या सदा ई देख्या, इजगर बाबो अबकै।
सांपां का ब्या में जीभां की लापलप।
सांपां कै किसा साख ?
सांपां कै डर गूगो ध्यावै।
सांस जब लग आस।
सांसी कै क्यांको दिवालो ?
सांसी साह सरावगी, श्रीमाल सुनार। ये सस्सा, पांचूं बूरा, पहले करो विचार।।
साची कही, भाठा की दई।
साजा बाजा केस, गोड बंगाला देस।
साठी बुध नाठी।
सात बार, नो तिंह्वार।
साता मामा को भाणजो भूख्यो रैज्या।
सातों गैला मोकला तेरै जच्चै जठे जा।
साधवां कै कसो सुवाद, आवण दे मलाई सुदां ई।
साधां की पावली ई चोखी।
साधू को धन सीर को।
सापुरसां का जीवणां थोड़ा ही भला।
सामर पड्यो सो लूण।
सारी दुनी ओगणी है नै आप आपरै पड़दै भीतर उघाड़ी है।
सारी रामायण पढ़ ली, सीता कुण की भू ?
सालगजी का सालगजी, गोफणियूं का गोफाणियूं।
साली छोड़ सासुओं सै ई मसकरी।
सालै बिना क्यों को सासरो ?
सावण का अंधा नै हर्यो ई हर्यो दीखै।
सावण का पंचक गलै, नदी बहन्ता नीर।
सावण की छा भूतां नै, कातिक की छा पूतां नै।
सावण छाछ न घालती, भर बैसाखां दूध। गरज दिवानी गुजरी, घर में मांदो पूत।।
सावण पहली पंचमी, जे बाजै बहु वाय। काल पड़ै सब देश में, मिनख मनख नै ख्या।।
सावण बद एकादशी, जितनी रोहिणी होय। वितणूं समय विचारियो, जै कोइ पंडित होय।।
सावण में तो सूर्यो चालै, भादूड़ै परवाई। आस्योजां में नाडा टांकण, भरभर गाडा ल्याई।।
सावल करतां कावल पड़ै है।
सास बिना कांइ सासरो ?
सासरै को बास, आपकै कुल को नास।
सासरै खटावै कोनी, पीर में सुहावै कोनी।
सासू का भुवां नै जीकार आच्छया कोनी।
सासू जाणै करू कलेवा, भू काढ़ै गैल का केवा।
सासू बोली-बीनणी ग्यारस करसी के ? बीनणी बोली-मैं तो टाबर हूँ।
सासू मरगी कटगी बेड़ी, भू चढ़गी हर की पेड़ी।
सिकार की बखत कुतिया हंगाई।
सिर को बोझ पगां नै भारी।
सिर चढ़ाई गादड़ी गांव ई फूंकै लागी।
सिर पर भींटको, तम्बू में बड़बादे।
सिरफोड़ै को मुंडफोडो भायलो।
सिर भारी सरदार का, बग भारी मुरदारा का।
सिरी को टाबर ताबड़ै बाल्योड़ो ही चोखो।
सिलारै नै सिरलारो कोनी देख सकै।
सिव सिव रटै, संकट कटै।
सींत को चन्नण घस रे लाल्या, तूं भी घस, तेरा घरकां नै बुलाल्या।
सींत को माल मसकरा खाय।
सीखड़ल्यां घर ऊजड़ै, सीखलड़ल्यां घर होय।
सीतला माता ! मन्ने घोड़ो दिये, कह, मै ई गधे पर चढूं हूं।
सीधी आंगलिया घी कोन्या निकलै।
सीधै पर दो लदै।
सीर की होली फूंकण की ही होय है।
सीर सगाई चाकरी, सुखीदावै को काम।
सीली तो सपूती हो, सात पूत की मा हो। कह, रैणदे, तेरी आसींस नै, नौ तो पेली ई है।
सीसा मसोना सुघड़ नर, मंदरा की बोलन्त। कांसी कुत्ती कुभारजा, बिन छेड्या कूकन्त।। सुक्करवारी बादली, रही सनीसर छाय।
सहदेव कहै हे भड़ली, बिन बरसी नहिं जाय।।
सुख की तो आधी भली, दुख की भली न एक।
सुख सोवै कुम्हार की चोर न मटिया लेय। अथवा चोर न गधिया लेय।
सुधर्यो काज बिगड़यो नांही, घी ढुल्यो मूंगा मांही।
सुरग को दरवाजो कुण देख्यो है ?
सुलफो सट्टो संखियो, सुलफो और सराब।
सस्सा पांचू नेठ है, खोवै मुंह की आबा।।
सुसरो बैद कुठोड़ खाई।
सूत्यां की तो पाडा ही जणै।
सूदी छिपकली घणा जिनावर खाय।
सूनां खेत सुलाखणा, हिरणां चर चर जाय।
सून मांथै बामण आछ्यो कोन्या।
सूम कै घर में धूम क्यांकी ?
सूरज कुंड अर चांद जलेरी, टूटा बीबा भरगी डेरी।
सूरदासजी ल्यो मोठ, कह, और मर गा के ?
सूरदासजी ल्यो खांड अर घी, कह सुणावै है और बापां नै, पटक तो को देना।
सेर की हांडी में सवा सेर कोनी खटावै।
सेर नै सवा सेर मिल ज्याय।
सेल घमोड़ो सो सहै, जो जागीरी जाय।
सेह कै ही मूंडै दांत होय तो दिन में ई ना चरै।
सै भूखा उठै है, भूखा सोवै कोन्या।
सोक तो काचै चून की बी बूरी।
सोक नै सोक कोनी सुहावै।
सो झरव्या अर एक लिख्या।
सोड़ गैल पग पसारो।
सो दिन चोर का , एक दिन साहूकार को।
सो धोती अर एक गोती।
सो नकटां में एक नाक हालो ही नक्कू बाजै।
सोनी की बेटी संहगी सरूप।
बाणिया की बेटी महंगी करूप।। सोनूं गयो करण कै साथ।
सोनै कै काट कोन्या लागै।
सोनै कै थाल में तांबै की मेख।
सोमां शुक्रां सुरगुरां जे चन्दा ऊगन्त। डंक कहे हे भड्डली, जल थल एक करन्त।।
सो में सूर सहस में कांऊं, सबसै खोटो ऐंचाताणूं। ऐंचाताणूं करी पूकार, कंजा सै रहियो हुंसियार।। सोरठियो दूहो भलो, भल मरवणी री बात। जोबण छाई घण भली, तारां छाई रात।।
सोरै ऊंट पर तो चढ़ै।
सोला साल सै माथो न्हायो, जेली सै सुलझायो।
सो सुनार की, एक लुहार की।
सो हाथी सो करहला, पूत निपूति होय। मेवा तो बरसत भला, होणी हो सो होय।।
स्याणा समझवान की तो सगली बातां मौत है।
स्याम का मर्या नै दिन कद उगै ?
स्यामीजी तिलक तो चोखा कर्या, बच्चाजी सूक्यां ठीक पड़सी।
स्यालो तो भोगी को अर ऊंद्यालो, जोगी को। हंस आपके घ गया, काग हुआ परवान। जावो विप्र घर आपणै, सिंघ किसा जजमान ?

हंसली तो घड़ल्यूं पर घर को धणी बस में कोन्या।
हकीमजी ! मैं तो मर्यो तो कह, अटे कुण जीर्यो है।
हड़ हड़ हंसै कुम्हार की, मालण का टूटै बूंट। तूं के हांसै बावली, कैंकड़ बैठै ऊंट ?
हथेली में सिरस्यूँ कोनी ऊगै।
हन्ते थोड़ी दाल घणी।
हर बड़ा क हिरणा बड़ा, सगुणा बड़ा क श्याम। अरजन रथ नै हांक दे, भली करै भगवान।
हर हर गंगा गोदावरी, किमैक सरदा अर किमैक जोरावरी।
हरी खेती ग्याभण धीणूं, पार जब जांणिये।
हर्यो देख कर चरै, सूखो देख कर बिदकै।
हंसा समद न छाड़िये, जै जल खारो होय। डाबर डाबर डोलतां, भलो न कहसी कोय।
हलकै पर बल आवै।
हलदी जरदी ना तजै, खटरास तजै न आम।
हलदी में रंग्योड़ी चादर, नांव पीताम्बर।
हवा हवा को मोल है।
हांसी में खांसी हो ज्याय।
हाथ को गास अर बैकुण्ठ को बास।
हाथ तेरै पांव तेरै मिनख की-सी देह। मैं तनै पूछुं बांदरा, घर क्यूं ना करा लेह ?
हाथ नै हाथ खाय।
हाथ पोलो तो जगत गोलो।
हाथ लियो कांसो, मांगण को के सांसो ?
हाथा लगावै, पगां बुझावै।
हाथियां की कमाई खातां मींडकां की कद खाई।
हाथियां की गैल घणां ही गंडकड़ा घुस्या करैं है।
हाथी आक कीडाली कोनी बँधै।
हाथी का खाणा क दांत और होय है और दिखावणा का दांत और।
हाथी कै खोज में सबका खोज समावै।
हाथी को गुर आंकस है।
हाथी नै हर्या कुण कहै ?
हाथी मरै तो भी नौ लाख को।
हाथी हजार को, म्हावत कौडी च्यार को।
हाथी हाथ ऊंट घोड़ा और सै चित्राम थोड़ा।
हार्यो जुवारी दूणूं खेलै।
हार्योड़ो ऊंट धरमसाला कानी देखै।
हाल तो चावल काचा ही है।
हिन्दवां कै छोटा नै ई मुसकल।
हिन्दू कहतो सरमावै, लड़तो कोन्या सरमावै।
हिम्मत कीमत होय, बिन हिम्मत कीमत नहीं।
हिये को आंधो, गठड़ी को पूरो।
हिरणों कैं सींगा की गादड़ां नै कद सुहांत ?
हींजड़ा की कमाई मूंछ मुँडाई में।
हींजड़ा भी कदे कताल लूटी है ?
हीरां की परख जोरी ही जाणै।
हूणी नै निमस्कार है।
हेत कपट विवहार, रहे न छानो राजिया।
होत की भाण अणहोत को भाई।
होणी हो सो होय।
आगे री कहावतां- क-घ च-ञ ट-ण त-न प-म य-व श-ज्ञ

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