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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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राजस्थानी लोक गाथा

भाग में लिखी जो मिली

एक राजा रे दो बेटा। मोटो सींगल तो भोलो, छोटो दींगल हुंसियार। राजा मरिया।
पाट सींंगल बैठ गियो पण राज रो काम दींगल करे। सींंगल री राणी देवर पै रिस्यां बले, रात दिन राजा रा कान भरती रै। राजा ने सीखाय पीटाय दींगल ने देस निकालो देवाय दीधो। दींगल राज छोड़ निकल गियो। आगे एक मोटी नगरी वठे जाय सेठ रे नौकरी लाग गिया। सेठ रे सात दुकांनां चाले। खंूब माल, आगे देन पाछो पड़े। सेठ रे एकाएक बेटो, सेठ दींगल ने भलो राजपूत जांण बेटा ने सूंप दीधो। सेठ रो बेटो जावे जठे दींगल लारे जावे। घोड़ा चढ़णो सीखावे, तरवार चलाणो सीखावे। सेठ रो बेटो जुवान, रुड़ो रुपालो। राजा रा म्हेलां रो गोखड़ो अर सेठ री हवेली रो गोखड़ो आम्हो साम्हो। राजा री कुंवरी गोखड़ा में बैठ सेठ रा कंवर ने देखे। सेठ रो बेटो गोखड़ा में चढ राजा री बेटी ने देखे। दींगल ये हाल देक सेठ ने कहियो, "सेठजी, बेटा ने संभालो नीं तो म्हारो कालो मूं़ड़ो व्हेला।"
सेठ बोलियो, "थैं कनेैं रैवो करो। म्हूं कांई गैलो काढूं।"
एक दिन री वात राजा री कंवरी कागद मांड तीर सूं सेठ रा गोखड़ा में फेंकियो। सेठ रो बेटो तो अपूंठो जो दीखियो नीं। दींगल कागद पड़तो देखियो जो छांनै उठाय लीधो। कागद में राजा री कंवरी लिखियो। "आज आधी रात रा आंपां भाग चालांला सहर रा दरवाजा बारे म्हूं घोड़े चढ़ियां ऊभी रेवूंला, बारा पै टणकारो लागतां साथै थां आय जावजो "
दींगल कागद बांच चिंता में पड़ियो। जाय सेठजी ने कागद दीधो सेठजी बोलिया, "ठाकरां, म्हारो घर डूब जाय। थां बचावो तो बचे।"
"थांरो लूण पाणी खाधो है, म्हारो माथो दीधां ई थांरो घर बचतो व्हे तो हाजर है।"
सेठ बोलियो, ठाकरां, वचन दो।
दींगल वचन देय दीधो। सेठ कहियो, "आधी रात रा थां म्हारा बेटा रा कपड़ा पैर परा जावो। अंधारा में ठा त पडैला नीं। यूं रुड़ा रुपाला थां म्हारां बेटा नाम बता हो। थां राजपूत रा बेटा हो बाई राजा री बेटी है। म्हारो घर डूबतो बच जावेैला।"
सेठ तो दींगल रे घोड़ो कसाय दीधो। रतनां र तोबड़ो भराय दीधो, "खावजो पीवजो, सोरा रैवजो।"
दींगल तो बारा पे टणकारो पड़तां लार जाय पूगो। वीं रे आवतां ई राजा री कंवरी तो घोड़ो दौड़ाय दीधो। पाछला भै रे मारिया घोड़ा दौड़ता गिया। कठै ई रुकिया नींं। दिन ऊगियां राजा-री- कंवरी देखे तो यो तो सेठ रो बेटो नीं। पण अबै व्हैं कांई। पाछे जावा जोग तो री नीं। दींगल त रुप, गुण में सेठ रा बेटा सें चौगणों। राजा री कंवरी रो तो मन उण सूं उलझ गियो। पाटण नगरी में जाय रैवा लागा। राजा री कंवरी म्होरां तोबड़ा भर लाई ही। आछी तैर सूं दोई जणां रै वे। दींगल कंवरी ने कैय राखियो, कोई लुगाई ने मांयने मत आवा दीजो। कंवरी घर रो आड़ो जड़ियां राखे। पाड़ौस में नायण रै।
एक दिन आड़ो जड़ती कंवरी ने नायाण देख लीधी। नायण कैवा लागी या आभा री बीज है के कोई सावण री तीज है। एड़ी फूटरी  है जदी ज ई रो घर मांयने बैठाया राखे। नायण तो सट्ट कीधो पट्ट कीधो। कंवरी कनैं जाय वातां करवा लागी। "ऐकला घर में अमूजतां व्होला, थारे मोरां हाथ दे दूं, माथो धोय दूं।"
नायण बैठ न माथो गूंथियो, हाथां पगां रा नख काटवा लागी।
राजा री कंवरी बोली "म्हारा नख अठै ई म्हनैं सूंप जाजो"
" म्हारे नखां ने ले जाय कांई करणो है?" नायण यूं कैय एक एक नखने कतर दो दो टूकड़ा कीधा एक एक टूंकड़ो तो पुड़की में बांध कांचली में घाल लीधो। एक एक टूकड़ो हो जो बीस ई नख गिणाय कंवरी ने सूंपगी।
नायण जाय नाई आगे नखां री पुड़की खोली। नख त सोना रा। नाई री तो आंखियां फाटी रैगी। दिनूगा राजा रे बाल काटवा ने गियो। नांई बोलियो, "परथीनाथ, आपरी नगरी में एड़ी रूपवंती लुगाई जिण रे सोना रा नख।"

राजा मानिया नहीं। नाई खुलिया मांयनूं पुड़की काढ़ राजा रे मूंडागे खोली, राजा देखता रे गिया। जिण रा नख ई सोना सरीखा है वा लुगाई केड़ी फुटरी व्हेला। ऊण ने तो देखणी। राजा बोलियो, "नाप"?

राजा बोलियो, "नापटा, नख बताया तो उण लुगाई ने ई बता।"
नाई राय दीधी, "उण रा घर घणी ने् म्हैलां में बुलाय थोड़ा दिन मरजी में रखावां। पछे देखावा ने् केवजो।"
राजा दींगल ने आदमी भेज बुलायो। लारे चौंपड़, सतरंज खेले, सिकारां रमैं। बुलावो करे।
एक दिन राजा बोलियो, "म्हांने जीमवा ने बुलावो थांरे घरे।"
दींगल किण तरै नटे, "पधारो"
राजा री कंवरी जांणगी, ये नायण रा काम है। खूंब आछी तरै राजा वाली सजावट कीधी। भात भात रा पकवान बणाया। राजा आया। घर री सोभा देखता ई रैगिया। राजा अर दंीगल जीमवां बैठिया। कंवरी परुसगारी करे। थाल लैन आई लाल रंग री पोसाक कीधी। परुसगारी लेय न आई हरिया रंग री पोसाक। यूं सात दांण आई तो सात रंगा रा कपड़ा बदल न आई। राजा जांणी दींगल रे तो सात लुगाया। सोना रा नख वाली लुगाई कसी? अबै किण तरै देखां? फीके मन म्हेलां आया। नाई ने बुलायो।
"नापटा, दींगल रे तो सात लुगायां है। थै तो म्हनैें पैलां नीं कह्याो के सात है। नीं तो म्हूं वांरे आवतां ई पैलां नखां कानी झांकतो।"
नाई बोलियो, "नीं अन्दाता बीरे तो एक लुगाई है।"
"अबै कांई करां। किण तरै देखां?"
"होली आयरी है। होली पै बाग में फाग घलावो। वीं ने ई बुलवावो। आप देखावजो लुगाई एक है।"
राजा रे नाई री वात दाय आयगी। बाग में फाग घलाई। दींगल ने ई जनाना सूंघी बुलावो भेजियो राणवास री रणिया सागे फाग खेलवा ने आवजो।
अबै कंवरी चतराई कीधी। साथ रथ जोड़िया, एक सूं एक चिपकता लगा। सात ई रथां मायने एक सूं दूजा में बारणा राखिया। आगे चार बैलिया जोड़िया। सातृ ई रथां में सात रंग री पोसाकां। लाल, हरी, केसरिया, कसूमल, लीली, पीली, पीरोजी रंगरी पोसाकां मेल दीधी। रथां रे रंग री डोला बांधीं। रथ ने जाय बाग में ऊभो कीधो। आदमी आदमी एक पासे फाग खेले, लुगायां एक पासै। कंवरी कैवाई, "म्हैं तो रंग भरियोड़ी जोला म्हांरे साथे लायां हा जो एक दांण मांयनूं ई ज रंग खेैलांला।"
आगला रथ मांयनुं ई ज पांणी री पिचकारी छूटवा लागी। राणी आय पड़दो ऊंचो कर रंग खैली। वो उण री पिचकारी भरवा लागी जतरे कंवरी तो झट देणी री दूजा रथ में जाय दूजी पोसाक पेैर दूजा रथ कनैं जाय फाग खेली। पाछी पिचकारी भरवा लागी जतरे कंवरी तीज रथ में जाय , तीजी पोसाक पैर पिचकारी चलावा लागी। यूं कर वा सातूं ई रथां में बैठ होली खेली। राणी जाय राजा ने कहियो के सात लुगायां है। राजा मान गिया। दींगल कंवरी पाछा घरे आया। घरे आवतां कंवरी देखे तो आंगली में मूंदड़ी नीं, कठै ई पड़गी। मूंदड़ी सवा लाख की।
कंवरी बोली "म्हारी मूंदड़ी नीं लाधे जतरे म्हूं जीमूं ई नीं।"
मूंदड़ी लेवा ने दीगल गियो। अंधारा में सांप दिखियो नीं, पूंछ पै पग पड़ियो। करतो ई फुफकारो सांप डसगियो। तंबोली री बेटी। वीं दींगल ने पड़ियो देखियो। झट मूं़ड़ो लगाया जैंर चूंधगी। दीगल आंखिया खोली। तबोलण तो दींगल रा गला में डोरो बांध दिधो जो दींगल तो सूवो बण गियो। दिन में तो दींगल ने सूंवो बणाय पींंजरा में घाल दे। रात पड़ियां मड़द बणाय ले। दींगल अमूझे। चिंता करे कंवरी में कजाणां कांई बीतती व्हेला। तंबोलण छोड़े नीं।
एक दिन पींजडा रो आडो खुलियो रैगियो जो सूंवो तो उड़ गियो। जाय राजा रा म्हेलां में बैठियो। राजा री बेटी पंचकली सूंवा ने पकड़ लीधो। पकड पींंजरा मेंं घालवा लागी। गला मंें डोरो बंधियो देख अचंभो आयो। डोरो तोड़ लीधो। डोरो तोड़तां ई तो मोटयार जुवान मड़द मूंडागै। पंचकली रे चित्त में चढ गियो। पंचकली तो म्हेलां में घाल लीधो।

पंचकली पांच फूलां री कलियां सूं तुलती रोज मालण बाग मांयनुं पाच कलियां तोड़ लावती। पंचकली ने कलियां सूं तोलतां । दजूजे दिन मालण पांच कलियां मेल्हे तो पंचकली बैठी जो पालड़ी तो धरती रे लागरियो। कलियां कांई फूलां री छाबा सूं ई नी तुली। तीजे दिन तो भाटा चढगिया। पंचकली री तो मां हैरान।

रात ने खांसवा री अवाज पैहरा वाला सुणै। वां छाती काठी कर राजा ने अरज कीधी। "सो गुन्हा माप करो, म्हेलां में तो आदमी खंासे।"
राजा आदमियां ने भेजिया, "तलासी ली"
अबै पंचकली अर दींगल घबराया। दींगल तो म्हेलां री बारी सूं नीचे कूदियो। नीचे बाणियां रो घर। भागजोग सूं उण ई ज दिन कपासीयां रा गाडा आया जो बारै खोलाया। दिंगल तो कपासियां रा बोरां रे माथेै जाय पड़ियो जो हाथ पग नीं भागो। जाय बाणियां रा घर छिपियो। बणियो पूछियो, "थूं कुण।"
दिंगल बोलियो म्हनेंे छिपावो। राजा रा पैरादार मारन्हांकेला।
बाणियो मालिया में घाल दिधो। राजा रा सिपाई हेरता थका आया। मालियो खोलायो। बाणियो बोलियो, "ई में तो म्हारा बेटी जमाई है।
बेटी जमाईने देख सिपाई परा गिया। दूजे दिन बाणिया दींगल ने हाट पै काम करवा बैठायो। हाटां बैठियो माल तौल रियो।
तंबोलण वठी ने निकली। वीं दिंगल ने हाट पै बैठियो देखियो तो जाय हाथ पकड़ियो, " चालो ऊठो म्हारा घर सूं भाग न क्यूं आय ? व्हे जावो म्हारे लारे।"
तंबोलण ने हाथ पकड़ लेजावता देख मांयनूं बाणिया री बेटी बारै निकल ाई, " थूं कठै ले जावे, यो तो म्हारो घर धणी है।"
वा तो कैवे म्हरो। मिनखां री भीड़ लागी। कंवरी री दासी पांणी भरवा जावे, भींड़ लागी देखवा लागी। देखे तो दींगल ने दो लुगायां खैंचरी। दोई कैय री म्हारो। दासी तो घड़ा ने फैंक जाय दींगल रो हाथ पकड़ियो "घरै पधारो बापजी, ई झगड़ा में कठै पड़रियो हो। म्हारा बाईसा तो अन्न छोड़ राखियो है।"
मिनखा रे आछो तमासो व्हियो। तीन तीन लुगायंा एक आदमी सारु झगड़ री ? कौटवाल सगलां ने रावले ले चालियो। म्हैलां मांयनूं पंचकली देखियोै दींगल। वां ई झरोखां में आय सुणवा लागी। तींन लुगायां लड़री दींगल सारूं।
पंचकली राजा कनें आय ऊभी रैगी। कोटवाल राजा रे मूंडागै सैंगा ने हाजर कीधा। राजा पूंछियो "दींगल किण रो खावन्द है। सांच बतावो।"
पंचकली राजा रैमूंडागे आय बोली "म्हारो खावन्द है।"
राजा तो धरम संकट मेंं पड़ गिया। राजा बोलियो, "दींगल, थारा करोड़ गुन्हा माफ है। थूं सांच सांच कैयदे। यां में थारी लुगाई कसी ?"
दींगल सारो वरतांत कहियो।
राजा बोलियो, "थारा भाग में ये लुगायां लिखी जो थनैं मिली। यां चारां ने ई दींगल ने परणायदो"
वो परण चारंा ने ई घरै ले गियो।

पन्ना 6

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