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ओम नागर 'अश्क'

छियांपताई
(राजस्थानी गझल संग्रैं)

बीच गेल में
पंडत मुल्ला बात करै छै, या जगती छै माया
रोज करै पण दंगम दंगा, कसी बात छै भाया।

नयो जमानूं लारं लायो, असी खोड़ली रीतां
ज्याँके लेखे पसब वखेरया, वानै कांा बाया

ठौर ठौर सूं नकची-बूँची परकरती कर घाली
ज्हैरीली तो बा'ल मलै पर, मलै न रूखां छाया

कुण पै करां भरोसो, अब जी कुणसूं आस लगावां
बीच गैल मैं साथ छोड़ ग्या, जद म्हाकां ई साया

गरज पड्यां तो यार अश्क जी हो जावै छे काका
मून्डा पै सब करै बढायां, ओगण पाछे गाया

दूध धारा
धरती का तो लाल सबी छा, आपस में क्यूं झगड़ा
ई मायड़ को करज चुकाद्यां, मल-जुल सहल्यां दुखड़ा

चोरी-डाका, खून-खराबा, नुया टेम की नुई पूछाण
ढाई आखर होग्यो आधो, हरदा होग्या सकड़ा

गोपाल को लुट्यो ग्वाडो, ढांढा बूचड़खाया मैं
दूध-धार ओझल आख्यां सूं, न्है गायां न्है बछड़ा

म्हाकै लेखे प्रेम बावलो पूजा ला'र अजानां
ई पूंजी सूं यार ओम जी होग्या रीता मनड़ा

बार पूज्या बी छा
सपना देख्या घमआ ओम जी, टूटयां सूं प्हली
जार मनावा कुण नै भाई, रूस्यां सूं प्हली

थरू हो'र जाती ई दीखी म्हानै तो
खडी यार समै की गाड़ी, पूग्याँसूं प्हली

धीरां-धीरां रोज, नतरतो रयो पाणी
यूं तो बारा बूज्या जी, फुटयां सूं प्हली

मन का थानक ला'र बठाण्या बरसां पूज्यां
पूछी बी छी यार "अश्क" नै पूज्यां सूं प्हलीं

आवभगत
सपना तो सपना होवै छै, टूटैगा क्यूं नै
अपणा तो अपणा होवै छै, रूसैगा क्यूं नै

आवभगत तो करनी पड़़सी म्हेमानां की
घर में आया देव-पावणा, पूजैगा क्यूं नै

बना बताया घर के माँही घुस्यां पराया लोग
करबा लाग्यां जद चाला तो पूछैगा क्यूं नै

प्रीत गैल की रीत पराणी चाली आई
कांचा भांडा यार अश्क जी फूटैगा क्यूं नै,

म्हाकां गांव में
बैवे दूधां अमरत धार, आज म्हाकां गांव में
पी कै मरद बणै मोट्यार आज म्हाकां गांव में

गाँव-गल्याँ की करतो डोलै शहर बरायाँ
न्है होवै नफरत बो पार, आज म्हांका गाँव में

डालडा को तो भेल साल, घीर मलै छै व्हां तो
लागै घी को असल बगार, आज म्हाकां गांव में

स्यालो धूणवां बैठ तपै छै नीम उन्दालै सोवे
चोमासा में मेघ मल्हार आज म्हाकां गांव में

बचपन की बाता
बचपन की बातां नै मरवण भूल मत जाजै
सगपण की रातां नै मरवण भूल मत जाजै

हीर राझाँ, लैला मजनू, चाल्यां जी गैला पै री
प्रीत की गाथा नै मरवण भूल मत जाजै

मन सूं मन को मेल मल्यो, मन चंगो होग्यो री
मन का ई नाता नैं मरवण भूल मत जाजै

उं बरखा का झड़ मं थारो डील गलकचा होबो
ढोला की बाथां नै मरवण भूल मत जाजै

थारै कारण सुण री गौरी राड करी जगती सूं
मनख्यां की घातां नै मरवण भूल मत जाजै

नुची गरीबी
दाणा दाणा नै तरसै छै गाँधी थारा देश में
बारूदी गोला बरसलै छै, गाँधी थारा देश में

भ्रष्टचारी बादल छाया रिश्वत को बरसै पाणी
घणा घोर बादल गरजै छै, गाँधी थारा देश में

खून गरीबां को सूख्यो अर दशा बगड़गी बायर की
नत कौराण्या नै भलसै छै, गाँधी थारा देश में

साँच अहिंसा की फसलां तो थारै लारां मुरझागी
झूंठी फसलाँ मत नपजै छै. गाँधी थारा देश में

प्रश्न चिन्ह के बीचां बापू, अश्क खडो बरसां सूं
हत्यारा मुलकै मटकै छै, गांधी थारा देश में

अण सुलझयों सवाल
कतनी आज खुशहाल छै बेटी
अणसुलझयो सवाल छै बेटी

तपता थार का टीलाँ बीचै
बोझयां लुलती डाल छै बेटी

डाईजा की आग में भलस्यो
बाप के चपक्यो गाल छै बेटी

चंदण रोली अखत कटोरी
गौ पूजा को थाल छै बेटी

यार 'अश्क' ई अर्थ का जुग में
बदलद्यां कांधै नुगाल छै बेटी

घात बताऊं जामण
शहर की बात बताऊं जामण
अर सूनी रात बताऊं जामण

जीं पै करूं भरोसो पूरो
ऊँ की घात बताऊँ जामण

कुटम रुखड़ा सूंख्या सारा
पतझड़ पात बताऊँ जामण

थारे पावाँ में कतना ई
झुकता माथ बताऊँ जामण

पुन्ना परताप
हेलमेल सूं लोगदण्याँ की, आग बझावाँ काका जी
धरती सबको कुटुम कबील,ो पाठ पढ़ावां काका जी

आलस करबो छोड़ाँ काका गाढी करां मूजरी जी
कराँ साँच की म्हेनत सांचा नोट कमावां काका जी

कुण म्हैतर कुण कोली-बामण, होगी बात पराणी जी
मलाँ जुलाँ अर भेदभाव की, भींत ढासावाँ काका जी

पंडत मुल्ला, मंदर मस्जिद काई याँकी बात करां
वाँकै जले दीवला अर म्हाँ ईद मनावा काका जी

जाण-कतना पुन्न कर्यां सूं माणस जूण मली छै जी
यार "अश्क" जी पगडंड्या का सूल हटाया काका जी

आँसू का बैतारण
डील उघाडा छै आधा का, बच्या खुच्या का पाँव उबाणा
हाकम धोली खादी हाला, रोज दखावै सपन सुहाणा

नैणा आँसू का बैतारण, तन सूँ झरै पसीनो छै
रुखी-सूखी बंधगी छागां, स्याम पड्या का काँई ठकाणा

रामराज सपना की बातां, चालै हालै रावण की
न्है तो सरवणपाणी प्वावै, न्है केवट ई नाव चढ़ाणा

अणपढ़ को धरकार, जमारो, टी.वी., कम्प्यूटर की बाता
आखर पोथी पढ़ल्यां लिखल्याँ, सुख की गैल पछाणां

सूख सीजेगी आज आंतड्‌यां म्हाका प्यारा गाँव की
ओरां कीज्यो भूख मटावै, ऊकै पाँती दो दाणा

मन तीतर
दरत उठ्यो हरदां कै भीतर
देख गौरड़ी ्‌स्यां नै ईतर

डर डल मलबो ओर बिछडबो
आठ सुणै उडज्या मन तीतर

मन करै छै प्रती ओर सूँ
आपणा छां पण, दोन्यू मीतर

तू कांई समजै प्रीत बावली
म्हारै हरदै थारो चीत्तर

राधा आवै या न्है आवै
अश्क बजावै बंशी गिरधर

प्रीत की बाजी
बाजी प्रीत की तू रखाण गौरडी
म्हारी प्रीत नै तू पछाण गौरड़ी

माथा पै टिकलौ सूरत कामणगारी
जादू करद्ये अंग उठाण गौरड़ी

होठ रसीला बैण रसीला लागै
नैण थारा तीर कमाण गौरड़ी

सब सूं नराली सूरत थारी
अशक् करै घमो बखाण गौरड़ी

ढाई आखर
ज्यात-पात को काँई काका
आपण का सब भाई काका

गरब करा न्हैं खुद पै अतनो
खेग्यो घर को नाई काका

नरधन को क्यूँ जीव सतावाँ
घणी बरी छै हाई काका

खै ग्या दास कबीर अश्क जी
पढल्याँ आखर ढाई काका

जमानो
म्हारी लाल रखाणों राम
थांई आस ठकाणों राम

मंशा पूरी करद्यो म्हारी
आऊँ पगाँ उबाणों राम

थाँ छोका तो, बैरी सारो
होबो करै जमानो राम

कम कण माही रच्यां बस्या छो
म्हारी पीर पछाणों राम

अश्क बावल्यो काँई जामऐ
पूजा थाल जमाणों राम

लटलूमां पाप
जादा सपना भी मत देखो, पहल्यां ही कह दी छी
सेला त्वां रोटी मत सेको, पहल्यां ही कह दी छी

आगै खड'ग्या यार भायला, बना रूकयाँ ज्यो चाल्या
आलस खा'र अस्याँ मत बैठो, पहल्यां ही कह दी छी

पाप फलाँसूं लटलूमां छै, मन धरती पे उग्यो रूंखडो
माथा पै करमा को सेटो, पहल्यां ही कह दी छी

दारू का समदर में ज्याँनै डुबक्यां खूब लगाई
सगो एक दन बणग्यो ठेको, पहल्यां ही कह दी छी

यार अश्क जी चरमर करती, घर की म्यालाँ ढस गी
म्हालडी सूं खतग्यो टेको, पहल्यां ही कह दी छी

माम
काँई थारो-काँई म्हारो
नठां मल्यो छै मनख जमारो

करम खोड़ला चरग्या नेता
चरणोटाँ को चारो सारो

गंदला ग्यो लोगाँ को पाणी
प्रेम प्रीत सूँ ई नखारो

पैदा करर् खंदावै ऊ ई
अश्क भाईला एक सहारो

 

पन्ना 2

आगे रा पन्ना - 1 2

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