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ओम नागर 'अश्क'

प्रीत

लारां-लारां, पष्प धसुल्या,
या छै प्रती गेल री रीत।
मन का तार, मल्यां कै पाछै,
बाजै सासां को संगीत।।
इतियासां क पानां मंडर्या,
नांऊ घणा छै अणगणती।
अणगण चाली चाकू, छुर्र्‌या,
मट न्ह पायी पण या प्रीत।।

मात मलै छै कदेई-कदेई सैं,
कदेई-कदेई मलै छै जीत।
रोबो-धोबो रवै चालतो,
कदेई उगरै, मीठा गीत।।
कदेई अंधेरो, कदेई ऊजालो,
टेम-टेम की ये बातां।
धीर बंधाता, लेर बिधाता,
सांची ज्याँकी, होती प्रीत।।

ज्याॉत-पात बिसरा री सगली,
तोड़ी संसारी की रीत।
हाथ-हाथ म पकड़ जूम सूं,
पटकी, चाल-चलन की भीत।।
प्रीत-पगीं नै, बाड़ा डाकी,
ये देशी बुल्यां हाली।
छलणी होगी, यार पगतल्याँ,
पण न्हं छोड़ी, न्यारी प्रीत।।

मल्यो धन डलो, कल्लो जीत्यो,
जीं नै जीती मन की जीत।
प्रीत पावै नै, सब रे हारै,
या छै जुगा पराणी रीत।।
ढेर लगाद्यो, हो मोत्यां को,
पण छोड्‌यो न्हं, पकड़यो हाथ।
काया दे सासां मांगी रे,
सब सूं महंगी, म्हारी प्रीत।।
राधा अठपहरा, छबी नरखती
गली-गली मीरां का गीत।
प्रीत गेल पै, दोन्यु चाली,
सासां देर निभायी रीत।।
घमा अड़ंगा, आण लगाया,
छो मेवाड़ी, रजपूती खून।
जहर को अमरत कर घाल्यो,
जद ला'गी, महोन संग प्रीत।।

आज-काल्ह का, लोग दणी,
बण बैठ्या, माया का मीत।
खोटा करता करम खोड़़ला,
मन बगड्‌यो अर बगड़ी नीत।।
बिन बोझ, फाइल न्हं सरकै,
यों दफ्तर, बाबू को हाल।
भआी-भाई का दुश्मन होग्या,
धन सूं दूणी कर ली प्रीत।।

साँच आज पाताल पूगग्यों,,
झूठाँ की हो री छैजीत।
बरसां ताईं लड्या मुकदमा,
न्हं फेसलो, वां ई रीत।।
लुटी आबरू भरी जवानी,
जीती जंग बुढापो आयो।
अतना मं बैकुंठ बुलावो,
राम धणी सूं होगी प्रीत।।

सगला सुख-दुख लारां बाँटे,
म्हारा मन को नसछल मीत।
उंदाला को जबर तावड़ो,
क होवै, स्याला की शीत।।
म्हूं रोऊ तो ऊं रोवै छै,
म्हूं हांसू तो जावै हाँस।
बपता सूं लड़ता, दोन्यू ई,
जीत कराती, साँची प्रीत।।

दमनी-दमनी हीरलागती,
कदेी आवैगो, मन को मीत।
आस बंधी छी सावण मं,
पण न्हं आयो, दनग्या बीत।।
अठपहरा आख्यां मं आंसू,
गई नुराई मूंडा की।
अतना मं सांकल की आहट,
सुण, सगोसली होगी प्रीत।।

सगला सुख-दुख लारां बाँटे,
म्हारा मन को नसछल मीत।
उंदाला को जबर तावड़ो,
क होवै, स्याला की शीत।।
म्हूं रोऊ तो ऊं रौवे छै,
म्हूं हांसू तो जावै हाँस।
बपता सूं लड़ता, दोन्यू ई,
जीत कराती, साँची प्रीत।।

दमनी दमनीहीर लागती,
कदेई आवैगो, मन को मीत।
आस बंधी छ सावण मं,
पण न्हं आयो, दनग्या बत।।
अठपहरा आख्यां मं आंसू,
गई नुराई मूंडा की।
अतना मं सांकल की आहट,
सुण, सगोसली होगी प्रीत।।

नैणां सूं जद नैण लड्‌या तो,
मन होग्यो थारो मनमीत।
सहलावै, झुमक्या गालां नै,
पायल लागी गाबा गीत।।
सपना आवै घणा रात मं,
उठ-उठ न्हालू थारो पंथ।
बिन देख्यां सब सूनो लागै,
जद सूं होगी न्यारी प्रीत।।

कुरसी कै पाछे यें-चालै,
कुरसी, नेता की मनमीत।
घणो फरक, कथणी करणी मं,
लागी रे कुरसी पे नीत।।
स्वारथ की रोट्या सेकें,
धरम, करम का जगरा मं।
देव, सगा रूसै तो रूसै,
टूटे न्हं कुरसी सूं प्रीत।।

ठाम-ठाम, नजर्या हेरै छै,
ऊँ नै म्हारो, मनल्यो जीत।
ऐक बगत, पणघठ पै दीखी,
अब तो देख्यां, दनग्यां बीत।।
रात-रात सपनान मं आवै,
सूरत जीं कीसब सूं नाली।
बरस बीतग्यां पण न्हं भूल्यो,
नैणा सूं नैणा की प्रीत।।

घर नै आ जाता, नेता जी,
जद तांई न्हं होती जीत।
जीत्यां पाछै, वो ई लख्खण,
खुद की ढपली, खुद का गीत।।
झूठां सपना घणां दखाता,
थोंथा, देता रहता भासण।
काँई जाणै दुख ओरा को
यां की तो, बोटा सूं प्रीत।।

चमचा करता, घणी चाकरी,
झूठ-मूट का बण, मन मीत।
दे बस्वास करै हथकंडा,
पण मलणी ही चावै जीत।।
जीत्यां पाछै तो देखो जी,
चमचा की आवक जावक।
हार गया तो चमचा दूरे,
ओरां सूं कर लेता प्रीत।।

मात-पिता, घर बार-बार तज्यां,
ऊँ बणग्यो, जद सूं मनमीत।
अठीं उठीं, मन न्हं भटकै,
दसों इन्द्रियां, मुठ्या बीछ।।
मन धूणी मं जतनो तपतो,
ओर नखरतो, दूणो-दूणो।
जंदगाणी को मूल जाणल्यो,
राम धंण्या सूं होगी प्रीत।।

सत् की गेलां, मली भडटपटा,
दुख थारो बणग्यो छै मीत।
बुरो कोई को, कदेई न्ह चायो,
दुखदेबा की जग की रीत।।
साँच साथ छै मत घबरा,
धीरज की खूँटी क बंधजा।
बपता को बादल छटज्यागाँ,
सूरज बम उगज्यांगी प्रीत।।

सकपण सारा, धर्या ताक मं,
धन माया का गावै गीत।
भाई-ाई को गलो काटद्ये,
चाली आई जुगां सूं रीत।।
घम रोकड़ा, गार-कांकरा,
कुण बूढ़ां की मानै बात
जीव-जेवड़ी, गलबा लागी,
पण धन सूं न्हं छूटी प्रीत।।

माँ को दरजो, सबसूं ऊपर,
चाली आई यां ई रीत।
पल्ला की छाया कर देती,
पड़ै तावड़ो, चावै शीत।।
नौ मासा ताईं, बपता भुगती,
जद बणपाई छी काया।
पूत सुपातर, हो क कुपातर,
दोन्यां सूं व्हा, राखी प्रीत।।

तू हारी तो, म्हूं हारूंगो,
तू जीती तो, जाऊ जीत।
खेला दोन्यूं छिपायताईं,
परेम-प्रीत का गाल्यां गीत।।
बपता बी आज्या तो दोन्यूं,
साथ डील को न्हं छोड़ा।
दुख सारा म्हूं, लेल्लूं थारा,
थारी जोडू, सुख सूं प्रीत।।

बात करै छै संस्करती की,
खुद नै भावै डीस्को गीत।
जतनो होवै उतनो कम छै,
पैंला की थाली पे नीत।।
ढांढा को चारो न्हं छोड्यो
काफण खाग्यां फौजी का।
काई आतमा, काई बोल,
मह्‌ाकी तो कुरस्यां सूं प्रीत।।

सुद-बुद भूली, जद सूं सूणली,
आर्यो छै परदेशी मीत।
माथो न्हा, सणगार कर्यो,
अर सैजसजार निभायी रीत।।
पलक बछायां देहला बैठी,
दिख जावै दूरा सूं पीऊ।
रात बीतगी वै न्हं आया
आसूडां ढलकाती प्रीत।।

देश धरम की रक्सा लेखे े,
मौत बमाली ज्यानै मीत,
इंकलाब का नारा गूज्याँ,
कै बासंती, चोला गीत।।
जलियां हाला बागां बीचै,
होली गौरा नै खेली।
सुबरण धूल चढ़ाई माथै
ऊ माटी सूं कर ली प्रीत।।

सन् सत्तावन लड़ी लड़ाया,
झाँसी नै जींतीं छी जीत।
बायर छी पण घणी लड़ी रै,
रण-भैरी पे निभायीं रींत।।
नाला करद्या, झटका मं ई,
अंग्रेजां का धड़ सूं माथ।
लड़ता-लड़ता, सासां थमगी,
सासां ताईं निभायीं प्रीत।।

जुगां पराणी कहणावत छै,
क यां, प्रीत न्हं जाणै रीत।
पण जग बीचै ऊंभी करद्येै,
साँचा चाल चलन की भीत।।
रीत तजी छै, थारै लेखे,
हाथ छोड़, मत दी जै तू।
साथ छोड़द्यो ज्ये फेरू बी,
बदनामी बण ज्यागी प्रीत।।

स्यालो गलै, न्हं पाणी बरसै,
अब बगड़ी मौसम की रीत।
अत,नो काल पड्यो रे अब कै,
खाई-खास घर का ग्या बीत।।
फाणी बी पाताल पूरग्यों,
दाणा-दाणा को सहसो।
तन म्हैलाडी झाला उठती,
सांव घास सूं कर ली प्रीत।।

गाब-गबुल्यां, बकज्यां ऊं का,
जी को सट्टो दारू मीत।
घर मं होती रोज लड़ाया,
रोबो धोबो ठणक्यां गीत।।
ठोरा-छोरी डील उघाडा,
जी घर दारू को बासो।
दास बणयो होगी बरबादी,
पण न्हं छोड़ी ई सूं प्रीत।।

जमना तट पे तान छेड़ दी,
बंशीसंग उगेराय गीत।
रास रचावै राधा मोहन,
गोप्यां का मनड़ा ल्या जीत।।
कान्हो छोड़ग्यो गोकुल नै,
बण्यो जा'र द्वारकाधीश।
राधा की आख्यां मं आसूं,
रोबा लागी ढ़ल-ढल प्रीत।।

काम क्रोध मद लोभ कपट पे,
जी जीनै बी पा'ली जीत।
दुख नीड़ै न्हं आवै भाया,
सुख बणज्यागों थारो मीत।।
ज्ये बी यां सूं अंधा होग्या,
वो बरबादी घर नूत्यां।
ठाम-ठाम पै ठोकर लागै,
महँगी पड़ज्यां यां सूं प्रीत।।

आर बैठग्यां, सामैं साजन,
ज्यें म्हारा जन्मां का मीत।
छाती बणी, धूकणी म्हारी,
धप चावै स्याला की शीत।।
मन का पगल्यां उठ-पड़ करता,
अर डर सूं काया कांपै।
रूखां लपटी, बणर बेलड़ी,
आज सुहागण होगी प्रीत।।

चंदो देखचकोर थाक ग्यो,
चाली आई जुगां सूं रीत।
फूल फाखडी, बीचै भंवरो,
बैठ्यो रयो अर दनग्यो बीत।।
बंद करी पलकां जद-जद बी,
ऊं सूरत में मन रम ज्या।
सुद बुद सारी ही बिसराई,
जग सूं नाली होगी प्रीत।।

हाथां ले'र तम्बूरो मीरां,
गावै रे महोन का गीत।
तन मन सोप्यों, मन मं मान्या,
मोहन जनम जनम का मीत।।
बेचण चाली छी बाणयां नै,
कुण दे कानूडा को मोल।
लख चौरासी जूण कटी रे,
सरग अमरता देगी प्रीत।।

केसर की बाड़ी कश्मीर,
चड़ी-चुड़गला गावै गीत।
सरग धरां छै, ई धरती पै,
पणल ागी बैरी की नीत।।
ई की रक्सा के लेखे तो,
काया कलप जीव द्यूं होम।
काश्मीर धरती की सोभा,
सासां दे'र निभाणी प्रीत।।

मत मानो अमरीकी बातां,
ऊं तो गरज पड्यां को मीत।
ठौर हेरतो खुद क लेखे,
धन माया पै ऊं की नीत।।
पाड़ौसी सूं मलै बाँह भर,
छानै-छानै करतो घात।
भाई-भाई में बैर पटकद्यो,
देखो रे कपटी की प्रीत।।

आख्यां सूं आसूडा छलक्यां,
नैणा-नंदी, उमगी मीत।
बिरहण की पीड़ा देखी तो,
परकरती नै गाया गीत।
सांस-सांस पे सांस कढेगी,
जाणै क्यूं छै यूं लागै।
उड़़ता देख्या पतझड़ पत्ता,
पीली-पीली पड़'गी प्रीत।।

एक बार कज्ये हामल भर'दे,
तो म्हूं तोडूं जग की रीत।
जग कतनी ई जूम लगाल्ये,
पण आपण की होवै जीत।।
अंगीरा पे पंग धर चालूं,
सामै तू ऊम्भो रीज्ये।
सूल-मूल को जोड़ो लारां,
काँटो बण गप जाती प्रीत।।

करसणी काली दुबली,
म्हेनत सूं मल जाती जीत।
बाण्यां की बाढी देणी छै,
मोध्यां की मानां पे नीत।।
अन्न उगावै दूजां लेखे,
लागै भूखो, पेट कपास।
खेत पसीनां सूं, सींच्यों जद,
फसलां बण उग आई प्रीत।।

रूख आम को अमरायो,
गरणावै अणहद संकीत।
ऐकस्यार, रहतो आयो छै,
चौमासो गरमी, अर शीत।।
छावं तलै बैठ्यो तो भूल्यो,
सुख-दुख सारा जीवण का।
परकरती मं कालख पुत'गी,
भली ठौर सूं होगी प्रीत।।

प्रीत गेल पे जद बी चाल्यो,
आडै फरगी जग कीरीत।
लारां लारां सुख-दुख झैल्या,
हिम्मत न्हं हारयो, व्हां रे मीत।।
काटां हाली बाड़ रोप दी,
जग हाला नै च्यारूं मेर।
छानै-छानै, चुर्रो पाड्यो,
दौड़ी दौड़ी आगी प्रीत।।

बच्चन जी मधुशाला मांडी,
सबको थानै, मन ल्यो जीत।
जुग-जुग बीत्यां अमर रवैगा,
थाका मांड्या, न्यारा गीत।।
आवभगत करती मधुशाला,
सोच जसीं म्हेमानां की।
दरद डूबोई छै मधुशाला,
पाँव दबाती म्हारी प्रीत।।

न्हं हिन्दू, न्हं मुस्लिम भाया,
दोन्यु ई छै मन का मीत।
मंदर-मस्जिद ढोकालारां,
ओर एकता गावै गीत।।
मायड़ पे बपता जद जावै,
हिल-मिल फरज निभावां रै।
रक्सा लेखे, सीस कटै पण,
धती सूं निभ जावै प्रीत।।

क्वांड जुड्‌या, म्हारा हरदां का,
सांखल आ'र बजाग्यो मीत।
बढता पग घमा थम्या छा,
मन सम्जयो न्हं, ऊं की नीत।।
मोती लेखे ऊंडै उतरी, उतर्या पाछै पछताई।
आस फुलकणा, फूट्या सारा,
फाणी ऊपर तर'गी प्रीत।।

जुगां-जुगां सूं चाली आरी,
मिलन-जुदाई की यां रीत।
जीवन तो संग्रराम जस्यो छै,
होवै हार कदी तो जीत।।
जग हाला नै जक न्हं पड़ती,
नत-उठ ये चावा करता।
बगत-बगत पे घणी तपाई,
सूनो बण'र चमक'गी प्रीत।।

तारां छाईं रात एकलो,
चाँद भटकतो म्हारा मीत।
नीड़ै आया चाँद अर सूरज,
बालम भागी दारी शीत।।
माथै हरणी अमरत बरस्यो,
म्हारा मन-भर भाग खुल्या।
घुस्यो ऊंदालो घर म्हालैडी,
बण'र पसीनो चौगी प्रीत।।

चढ्यो अषाढ, बादला गरज्यां,
परदेशां में मन को मीत।
बरखा बाण गडाती बरसै,
इन्दर देव की बगड़ी नीत।।
कामदेव का हाली होग्या,
कोयल मेढ़क ओर पप्पैयां।
बिजल्या की तलवार्या चमकी,
प्राण डील सूं तोड़ै प्रीत।।

हाथ तम्बूरो लेल्यों मीरां,
गाती गली गली मं गीत।
राधा बैठी पलक बछाया,
कदेई आवैंगा म्हारा मीत।।
नाव भंवर कै नीड़ै ला'गी
केवट भूल गयो औसाण।
बंधी आस दो घट कै बीचै,
पार लगावै साँची प्रीत।।

जिंदगाणी का ई जमघट में,
हार्या कदेी, कदेई ग्या जीत।
कदेई उगेरै राग पपैयो,
बगड़ै कदेई क्लेश में नीत।।
जीवण की बाड़ी मं यारां,
पष्प धसुल्यां दोन्यु लेर,
बपता सूं लड़ता बढ़ता पण,
सत् की गेलां, सत् सूं प्रीत।।

धरती पे ज्ये पगधर दे,
धरती भाग सरावै मीत।
देख मुकलबो थारो गौरी,
ऊं मदन्यां की बगड़ी नीत।।
दातां बीचै मेल आंगली
चालै बल खा नागण सी।
निरखम लागी दरपणसामै,
मोखम बणइतरागी प्रीत।।

काल पड्यो, फाणी न्हं बरस्यो,
मरद-बायरां की या रीत।
घास भैरू का काम्यां पुतगी,
कर्या कीर्तन गाया गीत।।
पाखाणी मन इंद्र न्हं पघल्यो,
ढोक-ढोक चटकां बाँटी।
अन पाणी सूं मूसर होग्या,
रूठ राम जी, तोड़ै प्रीत।।

हेत करै मनमान करै छै,
कदेई रुसज्या, म्हारो मीत।
उन्दाला की तरकाल कदेई,
अर कै हो स्याला की शीत।।
करड़ी घमी प्रीत की गेल्यां,
साथ निभाता मन-धर धीर।
दोन्यां नै जोड्या बरसां सूं,
जीवन डोरी म्हारी प्रीत।।

बालपणां-मोट्यारपणा में,
जंग ठणी, कुण पावै जीत।
मनख्यां की तो काई कहणी,
देवां की बी बगड़ी नीत।।
जोबण की ईं खेचताण में,
खूंटो तोड़'र भाग्यो मन।
नाथ फोड़ बस में करल्यो,
चालै जठी चलाती प्रीत।।

सात फेरां को धरम नभाऊं,
सात जनम तांई म्हारा मीत।
ऊभी आई, आडी जांऊ,
यां ई जनम-जनम की रीत।।
म्हूं न्हं सीखी गोर्या करबो,
हुकम उदलबो न्हं सीखी।
थाको गेलो, म्हारो गेलो,
साँचो गेलो, साँची प्रीत।।

फागण आयो, होली आई,
पटको रंग गुलालां मीत।
भर पिचकारी मारो तन पे,
ओर रंगीला गावो गीत।।
अबकै होली फीकी रह'गी,
न्हं आयो परदेशी बालम।
आसूड़ा संग काजल धपग्यो,
काली नजर्या झाकै प्रीत।।

हाड़ी राणी सी प्रीत पगी,
न्हं ऊं गेलो, नहं ऊं सी रीत।
खुल्लम खुल्ला गलै पडै सब,
ईलु-ईलु गावै गीत।।
अरथ बदलग्यां, नीत बदलगी,
अब तो बाण्यां को बौपार।
लूट आबूर झाड़ां पाछै,
मरबा लेखे छोड़ी प्रीत।।

पावा मांही बंध्या घूंघरा,
मोहन जद सूं बणग्यो मीत।
एक ठाम पे, पग न्हं थमता,
गावै गली गली मं गीत।।
सतजगु तो सतजगु छो,
वाह-वाह री प्रीत पगीं।
जी घट घाटो, ऊं घट बासो,
घट-घट वासी थारी प्रीत।।

भाटो तो भाटो हो तो पण,
नाली, छै भाटा की रीत।
इक भाटो सगलो जग पूजै,
गावै भजन कीर्तन गीत।।
परमे गैलं पै भाटा मारै,
भाटा का होर्या इनसान।
पारस भाटो जद् बी अड़तो,
सूनां की हो जाती प्रीत।।

जीबो मुश्कल ऊं घर मे,ं
जीं घर माही, डायजा रीत।
सास-ससुर अठपहरा लड़ात,
बेटी रैवे बण क भींत।।
थाली काँई, कटोरी लाई,
बात-बात मं भरै चूमट्या।
धन का लोभी, हवन करै,
तिल-तिल बलती, जावै प्रीत।।

फूलां लेरां सदा धसुल्या
देख दुखी छै, भंवरो मीत।
रस लेखे, चोमेर्यां डोलै,
सूल रोकता बण कै भीत।।
रस मं जीवण भवरां को,
पराग रसीलो थारो डील।
रस बिन मरज्यागो भवरों,
गोर्या करबा लागी प्रीत।।

जग बेरी हौवे तो होवै,
मिल जावै पम म्हारो मीत।
न्हं सुवावै जग हाला नै,
मिलबो म्हाँको, म्हाँकी रीत।।
जुगां-जुगां सू प्रीत गेल पै,
शूल बैर का घणा बछ्या।
प्रीत पगी, परव्हा न्ह आणी,
कांटा पग धर चाली प्रीत।।

मन कै हार्या, हार बावड़ै,
मन कै जीत्या होज्या जीत।
सुख दुखलारां जीवण में,
या छै जुगा पराणी रीत।।
न्हं दुख सूं घबराणो भाया,
न्हं सुख में गेल भटकणो।
मंजिल थाका पग चूमैगी,
गेला साँचा, साँची प्रीत।।

ऊ हिन्दु अर, ऊ मुस्लिम,
थोंथी जुगां पराणी रीत।
रूख एक छै, डाल्यां आपण,
पटका खड़ी, बैर की भीत।।
रगत एक छै, सकल एक छै,
नाला क्यूं छै गेलां फेर।
सगली बाता भूला भाया,
इक दूजा सूं करल्यां प्रीत।।

टुकर-टुकर यो जग झाँकै,
जद संग चालै म्होरा मीत।
परेम-प्रीत का दुश्मन ोहग्या,
घर हाला की यां ई रीत।।
सीधी गेलां घणा चालल्यां,
अब चालैंगा, उबट माल।
चाल-चलन छै यो बरसां को,
फूटी आँख न्हं भावै प्रीत।।

नैणां की भासा न्हं जाणे,
अस्यो खड़लो म्होरम ीत।
मुलकै-मटकै, बात-हबात पै,
घमा दनां सूं या ई रीत।
नीड़ै जाता,दूर भागतो,
प्रीत पालतो मन म्हैलाडी।
पतो कोई न्हं, बात कांई छै,
दमनी-दमनी लागै प्रीत।।

औगुण हो, मनवमान भलाँयी,
गुण पा लेता, वां पै जीत।
चंदण बन मं, बासक बसतो,
पणसोरम की वांई रीत।।
काली राती अमावस देती,
अर पूनम दे भर्यो उजास।
मेघां औटां चाँद चमकतो,
ऊ परदा में म्हारी प्रीत।।

सैज सजाई, रंगमहालां मे,ं
घरां पधार्या, म्हारा मीत।
घूँघट खोल्या, नैण मल्या,
गोड्यां गाल निभायी रीत।
बीत परागां, बैठ्यो भंवरो,
रस पी जीवण धन्य करै।
रोम-रोम मेंरमी गजायां,
सोरम बण'र बखरगी प्रीत।।

बरखा राणी का झड़ झुकग्या,
सामै बंगली, बैठ्यो मीत।
जग यां जाणै, बरखा निरखै,
नैण मल्या, निभ जावै रीत।।
मन म्हारो यो मोज्यां खावै,
हींदा झूलै, बिन पाटकड़ी।
मोरा पै जद पड़ी कामड़ी,
नांऊ बताबा लागी प्रीत।।

बालम भूल बिसर मत जाज्यो,
प्रीत रीत नै म्हारा मीत।
हेत राखज्यो सदा स्यारक्यो,
सारी उमर निभाज्यो रीत।।
वोदन सपनै बी न्हं आवै,
ज्ये मन भूलै ढोला नै।
गलो फसाती, कुऐं कूदज्यां,
लोठ्यां डोरां म्हारी प्रीत।।

यादां को चितराम हिया मे,ं
नैणा मोती झड़ता मीत।
हिवड़ो रोतो रेवै भलायी,
पण होठां पै प्यारा गीत।।
घमां मलैगा ंससारी में,
घर मं आग लगाबां हाला।
खोट कोई न्हं मन मं म्हारै,
खुली कत्याबां म्हारी प्रीत।।

संझ्यां हो ताँई ई गाता,
चड़ी चुड़गला मीठा गीत।
तारा छायी रात चमकती,
कद आवैगा म्हारा मीत।।
सूरज का घडोा न्ह रूकता,
अठपहरा, दौड्‌या चालै।
पणरूक जावै छै जाणै,
जद हो जावै न्यारी प्रीत।।

नीव खोद'ली, ऊँटी चुण ली,
बस्वासां की भीत्या मीत।
प्रीत घरां का कोल्हू पाका,
काँई बगाड़ै, गरमी शीत।।
नमला हाथां लीप्यो-पोत्यों,
आँगण पलकां बछा-बछा।
सूरज ऊभो देख देल पै,
खिलगी आज कवल सी प्रीत।।

तोल रह्यो छै, मन भावां नै
निजर्यां का पलड़ा पे मीत।
घड़ी-क बदज्यां, घड़ी-घटज्यां,
देख काण, अर पा'ली जीत।।
लचका खाती कमर कामणी,
हाथां की डांडी सूं बंध री।
न्हं हीरा सूं, न्हं मोत्यां सूं,
परेम थाकड़ी, तुलती प्रीत।।

मन हरसाग्यो, जद सूं आग्यो,
जीवन पथ पै म्हारो मीत।
झाड़-झूड़ल्या, बगला होग्या,
उगर्या मुख सूं प्यारा गीत।।
बिन पाणी, मच्छी मर जाती,
चाँद देख, चकरो छै राजी।।
उखड़न ला'गी, सांस की खूट्यां
जमदूतां सूं जीती प्रीत।।

सासां जावै ले'लै सारी,
हामल भर, नहं मुकरज्ये मीत।
थारा दर्सण, मंदर सो सुख,
मिसरी घोले, थारा गीत।।
सुपणा देखूं, म्हं अठपहरा,
बंशी बण, होठां पे रैवू।
पोली, आड़-फटक न्हं कॉई,
सात-सुरा सूं, करल्यूं प्रीत।।

आज जमानो, आगै बधरयो,
तू बी बध ले म्हारा मीत।
ज्ञान-गुरत, बिन जीवन सूनो,
गाँव-गाँव में आख गीत।।
घर को अंधियारो, मट जावै,
सांक आण उजास बजावै।
ज्ञान बधै, सुख नीड़ै आवै,
मनख-मनख ई करतो प्रीत।।

हिमगिरी जीको, ऊँचो माथो,
केसर की क्यार्यां मनमीत।
तपै उन्दालो, झरमर बरखा,
डील कंपाती, माघी शीत।।
अठपहरा अमरत की कल-कल,
गंगा-जमना, जामल नीर।
समदर ई का पगल्यां धोतो,
पूजा करती म्हारी प्रीत।।

सोन चड़ी का पंख नूचता,
बाज बिदेशी म्हारा मीत।
अठपहरां ये चाला करता,
नापाक पड़ौसी खोटी नीत।।
पण ई की रक्सा कै खातर,
मरबो म्हाँ मंजूर करा।
सौ करड़ो पंखा में बांध्या,
इक-दूजा की साँची प्रीत।।

माथा ऊपर धर्यो बेवडो,
बोझ्यां मरती म्हारा मीत।
हांसो कांई बेगा हालो,
घणी मसकरी, वांई रीत।।
नेज खींचता सुओ निरखै,
म्हारा जोबम की सोभा।
ठाम-ठाम मदन्यां का हाली,
सब ओखा, पण चोखी प्रीत।।

सीता जी को हरम कर्यो अर,
लाया राम जी लंका जीत।
बरसां को बनवास कट्यो,
अवधपुरी में जगमग गीत।
न्हं देवल लछमण सो दिखै,
न्हं राम सो दशरथ पूत।
आज काल्हसब उलटम पुलटा,
करता माया सुख सूं प्रीत।।

मांड़ खागंटो गार खोदती,
ई अबलां की यां ई रीत।
उन्दालो जोरा को तपतो
जील उघाड़ो गालै शीत।।
ठेकादार ताक मं रहतो,
बिना मूल कै माँगै सूद।
महल अटारी जगमग दमकै,
भाटां रेती, थारी प्रीत।।

पांगा एरू, चुल्हो फूकुं,
ठालो बैठ्यो फरतो मीत।
अठपहरा ई सोबो भावै,
छोरा-छोरी ठणक्या गीत।।
भारो काटूं, बैल जोतद्यूं,
पाणत करतां,गली पगतल्यां,
ऊं घर मं साता को टोटो,
जी घर सट्टो ताशां प्रीत।।

धूप-छाँव जीवम में देखी,
देखी सगली बातां मीत।
कोई रूठ्यो, कोई मनायो,
कोई का मनड़ा ल्या जीत।।
धुंधलो-धुंधलो यो जग लागै,
परकरती ओझल आख्यां सूं,
रोती आई, हँसती चलगी,
सौ बरसां की होगी प्रीत।।

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