आपाणो राजस्थान
AAPANO RAJASTHAN
AAPANO RAJASTHAN
धरती धोरा री धरती मगरा री धरती चंबल री धरती मीरा री धरती वीरा री
AAPANO RAJASTHAN

आपाणो राजस्थान री वेबसाइट रो Logo

राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

Home Gallery FAQ Feedback Contact Us Help
आपाणो राजस्थान
राजस्थानी भाषा
मोडिया लिपि
पांडुलिपिया
राजस्थानी व्याकरण
साहित्यिक-सांस्कृतिक कोश
भाषा संबंधी कवितावां
इंटरनेट पर राजस्थानी
राजस्थानी ऐस.ऐम.ऐस
विद्वाना रा विचार
राजस्थानी भाषा कार्यक्रम
साहित्यकार
प्रवासी साहित्यकार
किताबा री सूची
संस्थाया अर संघ
बाबा रामदेवजी
गोगाजी चौहान
वीर तेजाजी
रावल मल्लिनाथजी
मेहाजी मांगलिया
हड़बूजी सांखला
पाबूजी
देवजी
सिद्धपुरुष खेमा बाबा
आलमजी
केसरिया कंवर
बभूतौ सिद्ध
संत पीपाजी
जोगिराज जालंधरनाथ
भगत धन्नौ
संत कूबाजी
जीण माता
रूपांदे
करनी माता
आई माता
माजीसा राणी भटियाणी
मीराबाई
महाराणा प्रताप
पन्नाधाय
ठा.केसरीसिंह बारहठ
बप्पा रावल
बादल व गोरा
बिहारीमल
चन्द्र सखी
दादू
दुर्गादास
हाडी राणी
जयमल अर पत्ता
जोरावर सिंह बारहठ
महाराणा कुम्भा
कमलावती
कविवर व्रिंद
महाराणा लाखा
रानी लीलावती
मालदेव राठौड
पद्मिनी रानी
पृथ्वीसिंह
पृथ्वीराज कवि
प्रताप सिंह बारहठ
राणा रतनसिंह
राणा सांगा
अमरसिंह राठौड
रामसिंह राठौड
अजयपाल जी
राव प्रतापसिंह जी
सूरजमल जी
राव बीकाजी
चित्रांगद मौर्यजी
डूंगरसिंह जी
गंगासिंह जी
जनमेजय जी
राव जोधाजी
सवाई जयसिंहजी
भाटी जैसलजी
खिज्र खां जी
किशनसिंह जी राठौड
महारावल प्रतापसिंहजी
रतनसिंहजी
सूरतसिंहजी
सरदार सिंह जी
सुजानसिंहजी
उम्मेदसिंह जी
उदयसिंह जी
मेजर शैतानसिंह
सागरमल गोपा
अर्जुनलाल सेठी
रामचन्द्र नन्दवाना
जलवायु
जिला
ग़ाँव
तालुका
ढ़ाणियाँ
जनसंख्या
वीर योद्धा
महापुरुष
किला
ऐतिहासिक युद्ध
स्वतन्त्रता संग्राम
वीरा री वाता
धार्मिक स्थान
धर्म - सम्प्रदाय
मेले
सांस्कृतिक संस्थान
रामायण
राजस्थानी व्रत-कथायां
राजस्थानी भजन
भाषा
व्याकरण
लोकग़ीत
लोकनाटय
चित्रकला
मूर्तिकला
स्थापत्यकला
कहावता
दूहा
कविता
वेशभूषा
जातियाँ
तीज- तेवार
शादी-ब्याह
काचँ करियावर
ब्याव रा कार्ड्स
व्यापार-व्यापारी
प्राकृतिक संसाधन
उद्यम- उद्यमी
राजस्थानी वातां
कहाणियां
राजस्थानी गजला
टुणकला
हंसीकावां
हास्य कवितावां
पहेलियां
गळगचिया
टाबरां री पोथी
टाबरा री कहाणियां
टाबरां रा गीत
टाबरां री कवितावां
वेबसाइट वास्ते मिली चिट्ठियां री सूची
राजस्थानी भाषा रे ब्लोग
राजस्थानी भाषा री दूजी वेबसाईटा

राजेन्द्रसिंह बारहठ
देव कोठारी
सत्यनारायण सोनी
पद्मचंदजी मेहता
भवनलालजी
रवि पुरोहितजी

संक्षिप्त राजस्थानी साहित्यिक और सांस्कृतिक कोश


त-न

तक्षक-कश्यप  ने कद्रु रो पुत्र। इण राजा परीक्षित ने डसियो हो। जद जनमेजय नाग-यज्ञ कियो तो सैंग साप-सापणियां आयने यग-वेदी मांय बलण लागा। तक्षक नाठ'र इंद्र कनै गयो, पण यज्ञ रे तेज रे कारण जद इंद्र खांचीजण जालो तो उण तक्षक रो त्याग कीनो। अंत मांय आस्तीक री वीनती सूं यज्ञ बंद हुओ अर तक्षक री प्राण रक्षा हुई।
तक्षशिला-राजा दशरथ रा पोता अर भरत रा पुत्र तक्ष द्वारा वसायोड़ी नगरी। आ अबै पाकिस्तान मायं रावलपिंडी कनै है। पेहला आ नगरी गंधार देश री राजधानी ही ने घण वरसां तांई आर्याव्रत रो ओ अेक चावो विश्वविद्यालय रह्यो।
तत्त्ववेता- सं. 1550 रा लगे टगे जोधपुर राज रा जैतारण नगर रा निम्बार्क संप्रदाय रा संत। इण 'कवित्त' नामरो अेक ग्रंथ बणायो हो, जिणमांय 98 कवित्त है। इणरी भाषा पिंगल ही। इण ग्रंथ मांय जनक, नारद, राम, कृष्ण वगेरा महापुरुषां रो महत्त्व दरसायोड़ो है।
तत्सम-राजस्थानी शब्दां रो फेरफार कियोड़ो अपभ्रंश रूप, ज्युं काष्ठ रो काठ ने धृत रो धी।
तपोनिष्ठ पुराण- तपोनिष्ठ ब्रामणा रो उत्पत्ति संबंधी ग्रंथ। इणरा लेखक रो पतो कोनी, पण काशी रा भवनिधि शर्मा इणरो संक्षिप्तिकरण कियो अर वालोतरा निवासी पं. लक्ष्मीनारायण दवे इण संक्षिप्त अंश रो हिंदी अनुवाद कियो। आचार्य बदरीप्रसाद साकरिया इणरो संपादन कियो ने प्रगट करवायो।
तहड़-कूड़-उतराद और वायव्य दिशावां री विचली दिशा। इणने 'रीतहड़ि' दिशा ई केहवे।
ताज- अेक कृष्ण भक्त मुसलमान कवयित्री। मीराबाई री भांत इणाई आपरा भावां ने घणी मार्मिकता सूं प्रगट कियो है। इणारो जनम फतहपुर (शेखावटी) रा कायमखानी नवाब कुल मांय व्हीयो ने व्याब कदाच करौली में व्हीयो।
तानसेन-अकबर  रा नवरत्नां मांय सूं अेक प्रसिद्ध गायनाचार्य। अे स्वामी हरिदास रा शिष्य हा। नवी शोध रा आधार सूं अे राजस्थान रा जायल गाम रा गोरेरा खांप रा दमामी हा। इणारी मृत्यु सन् 1588 मांय हुई। ('जागती जोत' मांय डा. जयचंद्र शर्मा रो अेक लेख)। इणा अेक मुसलमानी राख राखी है।
तारागढ़-अजमेर रा वींटली भाख माथे अजयपाल चौहाण द्वारा बणायोड़ो चावो गढ।
तारा लक्ष्मण गहलोत (डॉ.)-आपकरमी डा. तारा हर क्षेत्र मांय लुगाया सारू अके आदर्श है। हार ने जीत समझलो कोई इणासूं सीखे। दो विषयां मांय एम.ए., कर'र उण पी-एच.डी, कीवी। घणी सामाजिक संस्थावां सूं संबंधित-सरकारी रूप सूं अर निजी रूप सूं ई। इनामइलकाब तो इतरा मिलिया के कांई केहवणो। भारत सरकार राष्ट्रीय महिला आयोग रो सर्वोत्कृष्ट पुरस्कार अर विश्व मिलेनियम वूमन अेवार्ड घणा चावा। 'ओलू री आरसी, केक्टस मांय तुलसी, यांदा रा चितराम' अर 'दुखड़ा रो दरियाव' संस्मरणां री चोखी पोथियां है।

तांडव-ओ शिव रो प्रलय नृत्य है। कोई केहवे के तंडू नाम रा ऋषि इणरा जनक हा। इणीज सारू इणरो नाम ताडंव पड़ियो। दूजा विद्वान भगवान शिव रा नंदी ने इमरो प्रवर्तक माने। ओ पुरुषां रो नृत्य है ने इणरी मुद्रावां कड़ी घणी व्है।
तांबापत्र-ब्रामण, साधु, चारण, भाट वगेरा ने राज कांनी सूं दी जावण वाली जमीं-गाम आद दानपत्रां रो अेक कास प्रकार। तांबा रो अेक पतरो, जिण माथे दानपत्र अंकीजे। दानपत्रां रे अलावा भेंट-पुरस्कार रा तांबापत्र ई मिले।
तिलक-(1) कवि प्रसिद्धि है के सुंदर लुगायां री दृष्टि सूं ओ फूल खिले। (2) लुगायां रे माथे रो अेक गेहणो। (3) राज्याभिषेक।
तिलोत्तमा- आ पूर्व जनम री ब्रामणी ही। शाप रे करण इणने अपछरा बणणो पड़ियो। केहवीजे है के संसार री सगली सुंदर वस्तुवां मांय सूं तिल तिल सुंदरता लेयने विश्वकर्मा इणरो निर्माण कियो हो। इणरी सुंदरता रे कारण इणने प्राप्त करण सारू सुंद ने उपसुंद दोनूं भाई लड़िया अर लड़ा-लड़ता मरिया।
तीज-सावण सुदी अर भादरवा वदी तीज ने लुगायां द्वारा मनावीजतो राग-लंग रो उत्सव। वे व्रत राखे।
तीजणियां-तीज रो व्रत राखण वाली लुगायां।
तुक-किणी छंद रे चरणां रो अंतिम आखरां रो मेल। इणने अंत्यानुप्रास ई केहवे। राजस्थानी साहित्य में तुक रा घणा भेद मिले। अेकला राजस्थानी कहावतां मांय इणरा नव रूप मिले।
तुर्रा-कलंगी-ओ ख्याल रो अेक भेद है। मध्यप्रदेश रा चंदेरी राजा रा हिंदू संत लुखनगिरि अर मुसलमान फकीर शाहअली इणरा केंद्र है। दो दला आमां-सामां बैठ'र शास्त्रार्थ करे। भाग लेवणिया आशुकवि, पंडित, हाजर जवाबी अर विषय रा निष्णात व्है। अे दोनूं दल सगला सवाल-जवाब, मात्रां, ताल अर छंदां मांय करे। ओ हिंदू-मुस्लिम समन्वय संस्कृति रो जबरदस्त रूप है। इण मांय तुर्रो ईश्वर रो रूप गिणीजे ने कलंगी माया रो।
तुलसी-धर्मध्वज अर माधवी री पुत्री तता शंखचूड़ असुर री पत्नी। सतीत्व नष्ट करण रे कारण इणे विष्णु ने शिला बणण रो सराप दीनो। इण कारण विष्णु रो नाम शालिग्राम पड़यो। पण विष्णु वरदान दीनो के थारे केशां सूं पौधो ऊगसी अर थूं म्हने लक्ष्मी ज्युं प्रिय लागेला। तुलसी रो अेक नाम वंृदा ई हो। इणीज वृंदा रे नाम सूं श्रीकृष्ण री लीलाभूमि रो नाम वृंदावन पड़ियो।
तुलसी आचार्य-जनम सन् 1914, लाडणू।पिता झूमरमल अर माता वंदना। फगत इग्यारे वरस में दीक्षा लीवी। गुरु कालूगणि री निश्रा मांय शास्त्रां मांय पारंगत व्हीया। गुरु रे पछे आप संघपति बणाया गया। नैतिक मूल्यां री प्रतिष्ठा सारू 'अणुव्रत आंदोलण' चलायो। लाडणू में 'जैन विश्व भारती' नाम री अेक शोध संस्था थरपी, जिका अबै Deemed University है। इणरी मुख पत्रिका 'तुलसी प्रज्ञा' है। इण संस्था घणा प्राचीन ग्रंथां रो संपादन कियो ने उणाने प्रगट करवाया। खुद आचार्य तुलसी राजस्थानी मांय जैन धर्म अर साहित्य संबंधी घणा ग्रंथ लिखिया। वे अेक उमदा कवि अर प्रतिभाशाली व्यक्तित्व रा घणी हा। उणा 'तेरा पंथ' रो विकास कर्यो। इणारी अेकईज आकांक्षा है के व्यक्ति हठाग्रह अर बद्धमूल धारणावां सूं बारे निकल'र सत्य दर्शण करे। मृत्यु सन् 1997। इणारो समाधि स्थल वीकानेर मांय घणो उमदा जोवा जैड़ौ है।
तुलसीदास-हिंदी रा श्रेष्ठ कवि। 'रामचरित मानस' महाकाव्य रा रचयिता। घणा ग्रंथा रा रचेता। अे विशिष्ठाद्वैत रा निरूपण करता हा। शैवां नै वैष्णवां रा झगड़ा सूं दुखी हा। नै इणीज कारण उणा 'रामचरितमानस' इण भांत गूंथियो के जिणसूं दोनूं आपस मांय प्रेम सूं रेहवण लागा। अे जीवण मांय समन्वयवादी हा। राजस्थानी समाज अर साहित्य माथे इणारी रामकता रो घणो व्यापक प्रबाव पड़ियो। आ मानता है के इणरी पत्नी रो नाम रतनावली हो, जिणरा दूहा रूपी फटकार सूं अे भक्ति मारग कांनी वलिया। इणारो जनम, जात-पांत संबंध री जाणकारी मांय विद्वानां मांय घणो मतभेद है।
तेजसिंघ जोधा- जनम सन् 1950, रणसीसर (नागौर)। 'राजस्थानी-एक दीठ, एक, दो तथा 'हेमाणी' पत्रिकावां रो संपादन कियो। 'माणक' मासिक रा उपसंपादक रह्या। 'ओलू री ओलियां'इणारो काव्य संग्रै है।

तेजाजी जाट-घर री दशा ठीक नीं हवूतां थकां, अे पांवणा अर साधुसंतां री आवभगत करता। अेक दिन तो साधुवां ने जीमावण सारू पत्नी ने आपरो ओढणो ई वेचणो पड़ियो। तेजाजी घणा वीर अर प्रतिज्ञापालक हा। अेक दिन उणारे पाड़ोश मांय रोवणो घोवणो सुण'र झट तलवार लेयने वाहर चढिया। उणीज टैम अेक कालो नाग पगां सूं कचरीज गयो। नाग डसण लागो जद उणा नाग सूं वीनती कीवी के पाछो आवूं जद डस लीजे। डाकुवां सूं लड़ता लड़ता उणारा शरीर रा अंग अंग धायल हुआ तोई घणा डाकुवां ने मारिया ने दूजा माल छोड़'र नाठा। इतरा मांय पुलीस आयगी। पुलीस इणारी वीरता सूं घणी राजू हुई ने इलाज सारू शहर मायं ले जावण रो क्ह्यो। पण उणा ना क्होय अर सीधा नाग रा दर कने गया। नाग ओले-दोले फिरियो, पण कठैई डसण री जगा नी देखी। उण टैम इणा आपरी चीभ काढी। नाग उठै डसियो अर जेताजी री मृत्यु हुई। राज उटे अेक छत्री बणवाई ने उटचे हर वरस मेलो आज ई भरीजे। अैड़ौ विश्वास है के कोई उणारे नाम रो डोरो बांधो तो साप रो जहर उतर जावे। तेजाजी किशनगढ रा सुरसरी गाम रा हा। अे छोलिया गोत रा जाट हा। इणारो व्याव पनेर गाम री पेमल सागे हुओ हो। केहवीजे है के पेमल वारे लारे सती हुई। तेजाजी रो प्रमुख स्थान व्यावर सूं दस कीलोमीटर आगो सैदरिया गाम है। ब्यावर मांय तेजा चौक मांय तेजाजी रो थान है जठै भादरवा सुदी दसम ने मोलो भरीजे।
तेजो-अेक लोक गीत, जिको खेती करण रे पेहला गावीजे। इ्‌युं करणो शुभ मानीजे। ओ करसां रो प्रेरक गीत है-
भरियोजी भरियो मेवलिया में जोम रे
कोई बोलण तो लाग्या रे पपैया बेटा डूंगरा।
तेरापंथ-श्वेतांबर जैन मत री अेक शाखा, जिणरो आरंभ संत भीखणजी सन् 1760 मांय कीनो। सैंग अनुयायी अेक आचार्य रे प्रति ईज निष्टा राखे। पद यात्रा इणारो जीवनव्रत है। हिंसा महापाप गिणीजे, रात्रि भोज नी करे; मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, त्याग मांय ईज धरम है; धरम मांय नात-जात रो भेद नी राखीजे आद इणारा नियम है। आचार्य तुलसी रे समै इणरो घणो विकास व्हीयो। अबार महाप्रज्ञ इण संप्रदाय रा आचार्य है।
तेरे ताली-अेक साथे तेरे ताल (मंजीरा) वजावण री कला। रामदेव पीर री भक्त कामड़ जात री लुगाई आपरा विभिन्न अंगां माथे मंजीरा बांधे ने पछे सूती, बैठी अर ऊभी हुयने उणाने बजावे। राजस्थान री आ लोक कला घणी प्रख्यात है।
तेलियो तागो-सासण जप्त होणे पर, चारणां द्वारा दियो जावण वालो धरणो।
तैस्सितोरी-जनम 13 दिसम्बर उदीने, इटली मायं अर मृत्यु 22 नवम्बर 1917 वीकानेर मांय। पूरो नाम डा. लुइजि पिऔ तैस्सीतोरी। हिंदू संस्कृति, कला अर मारवाड़ी भाषा रा परमभक्त अेक इटालियन विद्वान। इटली मांय रेहने उणा संस्कृत, अपभ्रंश ने हिंदी रो अध्ययन कियो तता 'वाल्मीकी और तुलसीदास कृत रामायण रा तुलनात्मक विवेचन' जैड़ा कठिण विषय माथे प्लोरेंस युनि. सूं पी-अेच.डी. री डिग्री प्राप्त कीवी। इणरो हिंदी अनुवाद डॉ. राधिकाप्रसाद तिवारी कियो। जोधपुर अर वीकानेर मांय रेहने 'छंद राउ जइतसी रो, वचनिका राठौड़ रतन महेसदासोत री, वेलि क्रिसन रूकमणी री, वगेरा श्रेष्ठ ग्रंथां रो संपादन कीनो। Historical Grammer of the Old Western Rajasthanनाम रो व्याकरण ग्रंथ लिखियो, जिणरा गुजराती ने हिंदी अनुवाद छपिया। राजस्थान रा हस्तलिखित ग्रंथां' रो ई संपादन कियो। वीकानेर राज मांय रंगमहल अर 'कालीबंगा' वगेरां मांय खननकार्य कराय ने उठासूं दो अनुपम सरस्वती री मूर्तियां तता माटी री घणी कलापूर्ण सामग्री प्राप्त कीवी। वीकानेर रा कबरस्थान रा जूना रजिस्टर सूं आचार्य बदरीप्रसाद साकरिया ने श्री हजारीमल बांठिया इणारी कबर रो पतो लगायो। बांठियाजी उठै सुंदर समाधि पण बणवाई। अे आपरी मातभाषा इटालियन करतां राजस्थानी ने इधको प्यार करता। इणासूं राजस्थानी विद्वानां ने मातभाषा मांय काम करण री घणी प्रेरण ा मिलि।
तोगो राठौड़ (तोगसिंघ)- इतिहास प्रसिद्ध तीन वीरां रे संबंध मांय अेक दूहो गुजरात अर राजस्थान मांय घमो चावो है-

अमरसिंघ री कट्टारी अर तोगा री तरवार।
हाथल रायासिंघ री, दिल्ली रा दरबार।।
जवानजोध तोगसिंघ इण बात ने परतख बतावण सारू के बादशाह रा दरबार मांय मुसलमान खान करतां बे हिंदू उमराव वत्ता क्युं? खुद जुझार हुओ अर सिर कटियां उमरो घड लड़ियो। धड़ रे शांत हुा पछे उणरी नवपरिणता पत्नी लारे सती हुई। आचार्य बदरीप्रसाद साकरिया इण कथानक ने लेय'र 'अनोखी आन' नाम रो हिंदी रो प्रथम आंचलिक उपन्यास लिखियो। आ घटणा शाहजहाँ रे दरबार री ह। उम टम जोधपुर री गादी माथे महाराजा गजसिंघ हा।
तोरण-राता रंग सूं रंगियोड़ो अर उण उपर बेल-बूंटा काढियोड़ो लकड़ी रो अेक मेहराबदार उपकरण, जिको व्याव रो टांणे, मांढा रे मुख्य बारणे माथे लगायो जावे। इणरो लीली छड़ी सूं के तलवार सूं सात वार वंदन कियां पछे बींद हथलेवा सारू चंवरी मांय जावे।
तोरण घोड़ो-(1) अेक जागीरी लाग। (2) वो घोड़ो जिण माथे बैठ'र वींद तोरण वांदे।
तोरण वांदणो- दे. तोरण।
तोरणि-आग्नेय अर दिखणाद दिशा री विचली दिशा। इणने 'रूपारास' ई केहवे।
तोलादे-लोक काव्य री अेक भक्त नाईका, जिमरो चरित्र घणो निर्मल है। राजस्थानी लोक कथा प्रमाणे सुवारथ ना रा खाती रे घरे अेक साधु, लकड़ी री पूतली सूं लड़की वणाय दी। जैसल नाम रो अेक डाकू उणने परणीजण गयो, पण उणरा उपदेशां सूं वो साधु बण गयो। थोड़ा घणा फरक सूं आ कथा गुजरात मांय ई मिले। उठ तोलादे रो नाम तोरल है। कच्छ मांय अंजार शहर मायं इणरो थान है।
त्रयी-वेद त्रयी। (ऋग्वेद, सामवेद अर यजुर्वेद)
त्रिकल- (1)दूहा रो अेक भेद। (2) जैसलमेर रे किला रो नाम।
त्रिकुटबंध-डींगल रो अेक छंद।
त्रिपिटक-भगवान बुद्ध रो उपदेश तीन खंडा माय है। इण सारू त्रिपिटक केहवीजे। (विनयस सुत्र अर अभिधम्म)
त्रिलोक गोयल-जनम सन् 1932 अजमेर। हिंदी अर राजस्थानी रा ठावा कवि। 'मसखरी' अर 'गीत रे गांव, गीत री छांव' छपियोड़ी पोथियां। कवि सम्मेलणां मांय रंग जमावे।
त्रिवेणी-(1) प्रयागराज जठै तीन पवित्र नदीयां-गांगा, जमना, सरसती मिले। (2)हठयोग रे मुजब इड़ा, पिंगला अर सुषुम्ना नाड़िया रो संगम स्थल।
त्रिशंकु-अेक सूर्यवंशी राजा। निबंधन राजा रो ओ मोभी पुत्र हो नै इणरो मूल नाम सत्यव्रत हो। जद वशिष्ठ ऋषि, सत्यव्रत ने सदेह स्वर्ग भेजण री ना कर दी तो विश्वामित्र उणने सदेह स्वर्ग मेल दियो। इंद्र उणने स्वर्ग सूं धक्को दीनो। तद सूं वो धरती अर आभा रे वच मांय अधर लटकियोड़ो है।
त्रिशिरा-देवतावां रा शिल्पी विश्वकर्मा रो तीन माथा वालो पुत्र। ओ अेक मूंडा सूं वेद भणतो, दूजा सूं सोमपान करतो अर तीजा सूं दारू पीवतो। घणा लांबा समय तांी ओ इंद्र रो पुरोहित रह्यो।
त्रेतायुग-चार युगां मांय सूं दूजो, जिको 12, 99,,000 वरसां रो मानीजे। राम त्रेतायुग मांय अवतार लियो हो।
त्वष्टा-दधीच ऋषि रा हाडका सूं इंद्र सारू वज्र बणायो हो। अे देवतावां रा शिल्पकार हा, जिणारो वर्णव वेदां मायं है।

 थण चूंधणी-अेक सांस्कृतिक प्रथा जिण मांय वीह होवण रे पेहला वींद ने अर युद्ध मांय जावण पेहला वीर ने उणरी माता धवड़ावे। इण तरा सूं मा जाणे परोक्ष रूप सूं केहवती व्है के थूं म्हारा दूध री लाज राखजे अर विजय हासल करने ईज आवजे।
थाली वाजणी-पुत्र रो जनम हूवणो।
थाली मांय धरणो-ओ ई 'सोभ जीवणो' रो अेक रूप है। कन्या रे घरे जीमणो शरू करे, इण पेहला, बाप थाली मांय रूपिया घरे। लोग पूछे थाली मांय कितरा रूपिया धरिया सा? इणसूं ईज 'थाली मांय धरणो' प्रसिद्ध हुयगो।
थाली लाग-अेक जागीरी लाग, जिणमांय व्याव टांणे, जागीरदार रे अठे थाली भर'र जीमण भेजणो पड़तो।
थूथको नाखणो-नजर नी लाग जावे, इण सारू थूकण रो टोटको करणो।
थेवा कला-इण कला मांय काच माथे अति सूक्ष्म सोना रो काम कियो जावे। ओ काच साधारण रंग रो नीं हुयने लीलो, रातो के असमानी रंग रो व्है। इणरो कलाकार चित्राम कला रो पारंगत व्हैणो चाहीजे। सतत साधना वगर इण मायं सफलता नी मिले। प्रतापगढ रा राज सोनी इण कला ने घणी गुप्त राखे-इतरी के बेन-बेटी तकात ने इणरी जाण नी व्है। प्रारंभ सूं लेय'र आज तांई आ कला अेकईज परिवार कनै रही है। इण कला रा जनमदाता ई इणा राजसोनी रा वडेरा हा, जिणा 475 वरसां पेहला प्रतापगढ रा राजा सांवतसिंघ ने आपरी पेहली कृति भेंट कीवी। राजा राजी हुय'र इणाने जागीरी दीवी तथा सोनो दियो। कला रा क्षेत्र मांय ओ परिवार आठ वार राष्ट्रीय पुरस्कारां सूं सम्मानित व्हीयो है।

द।।: दस्तखत रो नैनो रूप।
दत-(1)घास, चारा रे अलावा, पशुवां ने दी जावणवाली-घी, तेल, दाणा री पोष्टिक खोराक (वांटो)। (2) दत्तात्रेय। (3) दायजो। (4) खोराकी।
दधआखर (दग्धाक्षर)-छंदशास्त्र रे मुजब छंद रा आरंभ मांय के छंद री हरेक पंक्ति रे आरंभ मांय प्रयोग-वर्जित अमुक आखर। कई विद्वान, ख, ध, झ, ध, न, भ, र, ह- इण आठ आखरां ने दग्ध माने तो दूजा झ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, प, फ, ब, भ, म, र, ल, व, ष, ह-इण सतरे आखरां ने दग्ध माने। किणी झ, भ, र, व, न, ह-इण छह आखरां ने ईज अशुभ मानिया है। डींगल छंद शास्त्र मुजब शुद्ध वैणसगाई अलंकार रा प्रयोग सूं दग्धाक्षर दोष निवारण व्है।
दधिमती देवी- गांठमांगलोद (नागौर) री अेक प्रसिद्ध देवी। आ मारवाड़ रा दाधीच ब्रामणा (दाहीमा) अर दाहीमा क्षत्रियां री अधिष्ठात्री देवी है। इणरो मिंदर गोष्ठिकां रे सहयोग सूं बंधायोड़ो मानीजे।
दमामो-बकरे रे खाल सूं बणायोड़ो मोट ढोल। युद्ध मांय वजायो जावण वालो मोटो नगारो।
दयानंद सरस्वती-जनम सं. 1881, मोरबी (सौराष्ट्र) जिला रो टंकारा गाम अर मृत्यु न् 1883 अमावस (दीवाली) अजमेर रा भिनाय हाउस मांय। आर्यसमाज रा प्रवर्तक अर 'सत्यार्थ प्रकाश' रा लेखक। 'ऋग्वेद भाष्य भूमिका' ने 'संस्कार विधि' आपरा दूजा ग्रंथ है। अे वेदां रा लूंठा विद्वान, समाजसुधारक, ब्रह्मचारी आर हिंदी रा जबरदस्त प्रचारक हा। धरम मांय पाखंड, अवतारवाद ने मूर्ति पूजा रा घोर विरोधी हा। अछूतोद्धार रो ई इणा जबरो काम कियो। इणा भारत मांय खूब भ्रमण कर, आर्यसमाज रो प्रचार कियो। इ्‌युं आपरो जनम नाम मूलशंकर हो। गुरु रो नाम विरजानंद स्वामी। जोधपुर मांय नैनी बाई वेश्या इणाने द्वेष सूं जहर खवायो, जिणसूं इणारी मृत्यु व्ही।
दयाबाई-सं. 1750 अर 1775 रे विच मांय जनम। अलवर वासी संत चरणदास री शिष्या तथा 'दयाबोध' ने 'विजय मालिका' री लेखिका। वेलविडर प्रेस, इलाहाबाद सूं उणारी वाणी सन् 1929 मांय प्रगट व्ही। भाषा सरल राजस्थानी पण इण माथे ब्रजभाषा रो प्रभाव साफ देखीजे।
दयाराम भवाई-अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त श्री दयाराम भील, कांकरोली कनै गुडली ग्राम रा हा।टाबरपणा सूं नृत्य कांनी लगाव तो हो ईज अर पछे नोकरी लागी, 'भारतीय लोक कला मंडल' उदयपुर मांय। फेर कांई च्हावणो? अठै आपरी कला ने ओप मिलियो। अठैईज भवाई नृत्य सीखियो। अेक उपर अेक दस मटका माथा माथे राख'र, नृत्य रो कठण अभ्यास करता। लोग अचंभो करता। श्री सामरजी री आज्ञा सूं कठपूतलियां नचावणो सीखिया अर रूमानिया रा प्रदर्शण मांय पेहलो नम्बर मिलियो। पछे तो इंग्लैंड, फ्रांस, यूगोस्लाविया आद घणा देशां मांय प्रदर्शण किया ने घणी वाह वाह मिली।
दयालजी-मारवाड़ रा निरंजनी संप्रदाय रा प्रवर्तक हरिपुरुषजी (हरिसिंह) री उपाधि।
दयालदास-अे रामसनेही साधु हा नै भक्त कवि रामदास रा पुत्र हा। इणारो जनमस ं. 1816 मांय व्हीयो। आपरो 'करुणासागर' ग्रंथ रामसनेहियां मांय घणो चावो है। आपरा फूटकर पद ई घणा मिले।
दयालदास, राव- 'राणो रासो' रा रचैता। डींगल रा ख्यातनाम भाट कवि। 'रासो रा अंग' अर 'अकल रो अंग' इणारा दूजा ग्रंथ मानीजे।।
दयालदास री ख्यात- दे. दयालदास सिंढायच।
दयालदास सिंढायच-इणारा अे ग्रंथ घणा प्रख्यात है-(1) वीकानेर रे राठौड़ां री ख्यात', 'आर्याख्यान कल्पद्वुम, गामां री पट्टां री विगत'।
दरियावजी, रैण-नागोर-मारवाड़ रा 'रामसनेही संप्रदाय' रा अेक सुमलमान रामभक्त साधु। अे 'दरिया पंथ' रा प्रवर्तक ने लाडणू रा संत गोविंददासजी रा गुरुभाई हा। इणारो जनम सं. 1733, जैतारण मांय ने रामशरण सं. 1805 मांय हुओ हो। इणारी गादी ने समाधि रैण मांय है। ओ दरियावजी रो देवलधाम वाजे।

दलपत-जनम सं. 1688, मारवाड़ मांय इंदोकली गाम। अे घण निर्भींक नै साचाबोला। उदार तथा विद्वान। जद जोधपुर महारा ाज अजीतसिंघ री ह्त्या उणारा पुत्र बखतसिंघ कीवी, तो कवि घणा नाराज ने दुखी व्हीया अर 'पितासार प्रकाश' नाम रो ग्रंथ लिखियो। 'वर्णरक्षाविकार' अर 'चूक पचीसी' इणारा दूजा बे ग्रंथ है।
दलपत विजय (दौलत विजय)-प्रसिद्ध डींगल काव्य 'खुमाण रासो' रा रचैता अेक जैन साधु। अे शांतिविजयजी रा शिष्य हा ने इणारो रचनाकाल सं. 1790 मानीजे।
दवावेत-आ राजस्थानी गद्य साहित्य री अेक विधा है। 'रघुनाथ रूपक' रा रचैता कविवर मंछ रे मुजब इणरा दोय भेद है। (1) शुद्ध बंध अर (2) गद्य बंध। श्री मेहताबचंद खारेड़ मुजब दवावेत कोई अैड़ो छंद कोनी, जिणमांय मात्रावां, वर्ण के गणां रो विचार व्है।आ तो अंत्यानुप्रासवाली गद्य चाल है। ओ अैड़ो गद्य प्रकार है, जिण मांय अंत्यानुप्रास ने चमक री बोलबाला व्है। खरेखर तो आ राजस्थानी भाषा री उर्दू प्रभाववाली गद्य शैली है, जिणमांय इतिहासरा नैनां प्रसंगां रा वर्णन व्है। Encyclopecida on indian literature मांय लिखियो है के दवावेत मिसरां रो युग्म है, जिण मांय तुकान्त व्है, पम मिसरां री संख्या री कोई मर्यादा कोनी।
दशरथ-राजा अज रा पुत्र ने अयोध्या रा राजा। पुत्रकामेष्ठि यज्ञ सूं इणारी तीन राणियां सूं चार पुत्र हुआ। श्रवणकुमार रे माता-पिता रे सराप सूं अर राम रा वियोग मांय इणारो प्राणांत व्हीयो।
दशरथ शर्मा-जनम सन् 1903, चूरू। विद्यावाचस्पति पं. देवीप्रसाद पिता। दिल्ली अरआगरा विश्वविद्यालय सूं क्रमश: इतिहासअर संस्कृत मांय अेम. अे. कियो ने प्रतम श्रेणी मांय प्रतम आय'र स्वर्णप्रदक प्राप्त कियो। आगरा सूं डी.लिट् री उपाधि लीवी। वीकानेर रा डूंगर कालेज मांय इतिहास रा प्रोफेसर तथा 'सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्ट्ीट्यूट, वीकानेर' रा निदेशक रह्या। 'नेशनल आर्काईझ' तता 'हिंदू कॉलेज' दिल्ली मांय प्राध्यापक रह्या पछे दिल्ली विश्वविद्यालय मांयइतिहास विभाग रा रीडर बणिया। अंगरेजी मांय बे उत्तम ग्रंथां-(1) Rajasthan through the ages अर Lectures on Rajput History and Culture प्रगट व्हीया। Rajjasthan History Congress री थरपणा कीवी ने उणारा अध्यक्ष चुणीजिया। लारे सूं 'राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान' रा निदेशक रह्या। अेक पचे अेक सुंदर ग्रंथां रो संपादन कियो- 'संगीत रघुनंदनम, दयालदास री ख्यात, (दोय भाग), कयामखां रासो, हम्मीरायण, पंवार वंश दर्पण, इंद्रप्रस्थ प्रबंध, अमराभिषेक काव्य' अर 'ओझा निबंध संग्रह भाग अेक'। पांच सौ सूं बैसी शोध निबंध लिखिया। सन् 1976 मांय देहावसान। डॉ. मनोहर शर्मा लिखियो-
शर्मा दसरथ रो सुजस, परतख पुन्न प्रकास।
पूठो राजस्थान में, उतरियो भारत व्यास।।
दसनामी-आदी शंकराचार्य रा दस शिष्यां द्वारा चलायोड़ो संन्यासियां रो अेक संप्रदाय। दस संन्यासी - अरण्य, आश्रम, गिरि, तीर्थ, पर्वत, पुरी, भारती, वन, सरस्वती ने सागर।
दसमो धोवणो-टाबर हुआं पछे दसमे दिन सुआवड़ी रो पेहली वार सिनान करणो। दसोठण।
दसरावो-आसोज सुदी दसम ने श्रीराम द्वारा रावण वध रो उत्सव। विजयादसमी।
दसेरक-घणो प्राचीन ओ जनपद, आथूणा राजस्थान मांय हो।
दंडक- अेक छंद। छाईस सूं वत्ता वरणां वालो 'वर्णिक दंडक' अर बत्तीस मात्रांवां वाला छंद ने 'मात्रिक दंडक' केहवे।

दंपति विनोद-वीकानेर रा राजा अनूपसिंघ रा काल मांय जोशीराई ओ ग्रंथ वणायो। इण मांय सूवटा अर सारी रा मूंडां सूं मरद अर लुगायां संबंधी बत्तीस कथावां है।
दाड़ोजी-लुगायां द्वारा चैत वदी दसम ने करीजण वाली 'दिवस री पूजा'। इण दिन सूरज भगवान ने पूजण वाली सगली सौभाग्यवती लुगायां बेपारणा मोहल्ला मांय भेली व्है। इणारे हाथां मांय आखा व्है। अेक लुगाई दाड़ोजी (दहाड़ोजी, दिहाडो़जी) री वात केहवे। वात री पूरणता पर सगली लुगायां सूरजी ने धान री अंजली देवे ने पछे अेकासणो खोले। कठैई कठैई ओ व्रत चैत सुदी दसम ने करीजे।
दात-दायजो।
दादूदयाल-सन् 1544 सूं. 1603, 'दादू पंथ' रा प्रवर्तक। सांभर सूं दादू पंथ रो प्रवर्तन हुओ। घणो लोग माने के मूल गुजरात रा अमदावाद रा अेक संत हा। कोई इणाने ब्रामण तो कोई ब्राह्मण-स्वर्णकार ई केहवे। 'दादूवाणी' मांय इणारे पदां रो संग्रै है। विचारां सूं दादू कबीर रा ईज अनुयायी हा, पण इणा किणी मत रो खंडन नी कियो। भाषा, मूल मांय राजस्थानी पण हिंदी रो मेल घणो है। शुद्ध राजस्थानी मांय ई थोड़ा पद मिले तो थोड़ाक सिंघी ने पंजाबी मांय ई। जैपुर कनै नारायणा गाम मांय दादूपंथियां रो मोटो स्थल है। अठैईज दादू रो स्वर्गवास व्हीयो। दादू पंथ मांय चार भांत रा साधु व्है-खाकी, विरक्त, थांमधारी अर नागा। अे लोग निरंजन, निराकार, निर्गुण, ब्रह्म री सत्ता माने। दादू रा स्वर्गवास पचे इणारा पुत्र गरीबदास गादी बैठा। आचार्य क्षितिमोहन सेन बंगला मांय इणा माथे अेक समीक्षात्मक ग्रंथ ई लिखियो। इण संप्रदाय ने 'परमब्रह्म संप्रदाय' ई केहवे।
दावो-(1) व्याव मांय लागणवाली अेक लाग। (2) राजा री अेक लाग।
दामोदरदास राठी- सन् 1894, पोकरण मांय जनम। राठीजी राष्ट्रीय विचारधारा रा लूंठा उद्योगपति हा। अे क्रांतिकारियां ने आर्थिक सहयोग देवता। ब्यावर मांय इणा कृष्ण मिल री थापना कीवी, जिण मांय क्रांतिकारियां ने काम लगावता। पेहलड़े विश्वयुद्ध मांय भारत मांय जिकी क्रांतिकारी योजनावां बणी, उण मांय इणारो घणो सहयोग हो। इणा आपरी मिल मांय मजूरी रे बहाने घणा क्रांतिकारी राखिया हा।

 

 आपाणो राजस्थान
Download Hindi Fonts

राजस्थानी भाषा नें
मान्यता वास्ते प्रयास
राजस्तानी संघर्ष समिति
प्रेस नोट्स
स्वामी विवेकानद
अन्य
ओळख द्वैमासिक
कल्चर साप्ताहिक
कानिया मानिया कुर्र त्रैमासिक
गणपत
गवरजा मासिक
गुणज्ञान
चौकसी पाक्षिक
जलते दीप दैनिक
जागती जोत मासिक
जय श्री बालाजी
झुणझुणीयो
टाबर टोली पाक्षिक
तनिमा मासिक
तुमुल तुफानी साप्ताहिक
देस-दिसावर मासिक
नैणसी मासिक
नेगचार
प्रभात केसरी साप्ताहिक
बाल वाटिका मासिक
बिणजारो
माणक मासिक
मायड रो हेलो
युगपक्ष दैनिक
राजस्थली त्रैमासिक
राजस्थान उद्घोष
राजस्थानी गंगा त्रैमासिक
राजस्थानी चिराग
राष्ट्रोत्थान सार पाक्षिक लाडली भैंण
लूर
लोकमत दैनिक
वरदा
समाचार सफर पाक्षिक
सूरतगढ़ टाईम्स पाक्षिक
शेखावटी बोध
महिमा भीखण री

पर्यावरण
पानी रो उपयोग
भवन निर्माण कला
नया विज्ञान नई टेक्नोलोजी
विकास की सम्भावनाएं
इतिहास
राजनीति
विज्ञान
शिक्षा में योगदान
भारत रा युद्धा में राजस्थान रो योगदान
खानपान
प्रसिद्ध मिठाईयां
मौसम रे अनुसार खान -पान
विश्वविद्यालय
इंजिन्यिरिग कालेज
शिक्षा बोर्ड
प्राथमिक शिक्षा
राजस्थानी फिल्मा
हिन्दी फिल्मा में राजस्थान रो योगदान

सेटेलाइट ऊ लीदो थको
राजस्थान रो फोटो

राजस्थान रा सूरमा
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
आप भला तो जगभलो नीतरं भलो न कोय ।

आस रे थांबे आसमान टिक्योडो ।

आपाणो राजस्थान
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अ: क ख ग घ च छ  ज झ ञ ट ठ ड ढ़ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल वश ष स ह ळ क्ष त्र ज्ञ

साइट रा सर्जन कर्ता:

ज्ञान गंगा ऑनलाइन
डा. सुरेन्द्र सिंह पोखरणा, बी-71 पृथ्वी टावर, जोधपुर चार रास्ता, अहमदाबाद-380015,
फ़ोन न.-26925850, मोबाईल- 09825646519, ई-मेल--sspokharna15@yahoo.com

हाई-टेक आऊट सोर्सिंग सर्विसेज
अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्षर् समिति
राजस्थानी मोटियार परिषद
राजस्थानी महिला परिषद
राजस्थानी चिन्तन परिषद
राजस्थानी खेल परिषद

हाई-टेक हाऊस, विमूर्ति कोम्पलेक्स के पीछे, हरेश दुधीया के पास, गुरुकुल, अहमदाबाद - 380052
फोन न.:- 079-40003000 ई-मेल:- info@hitechos.com