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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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संक्षिप्त राजस्थानी साहित्यिक और सांस्कृतिक कोश


ट-ण

टब्बो-(1) मूल ग्रंथ री ओलियां रे विच मांय नैना आखरां सूं लिखीजम वाला शब्दां रा अर्थ के टूंको विवरण। (2) पानां रा हासियां में लिखियोड़ी टीका के अरथ।
टाडगढ-इण गाम रो जूनो नाम बरसावाड़ा (मेवाड़) हो। कर्नल टॉड अठै अेक गढ बणवायो, जिणसूं इणरो नाम टाडगढ पड़ियो। ओ ब्यावर सूं 40 कीलोमीटर दिखणाधे है।
टाड, जेम्स कर्नल-सन् 1782 सूं 1835 तांई आथूणा राज्यां रा पोलिटिकल अेजेंट अर प्रसिद्ध इतिहासकार। सन् 1829 मांय बे भागां मांय राजस्थान रो इतिहास 'अेनाल्स एंड अेंटीक्वीटीज ओफ राजस्थान' लिखियो। 'राजस्थान' नाम उणारोईज दियोड़ो है। कर्नल टाड रो दूजो ग्रंथ हो-'ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इंडिया'। ब्यावर कनै जिण गाम मांय अे रेहवता, उणरो नाम टाडगढ पड़ियो।
टीको-(1)राजतिलक। (2)सगाई करण री अेक रीत। (3) पशुवां री ललाट मांय जुदा रंगां री बालां रो निशान।

ठाडो-(1) शीतला माता ने चढावण सारू अेक दिन पेहला बणायोड़ो वासी भोजन। (2) डाम।
ठाडो पेट- बड़ी-बूढी लुगायां द्वारा सौभाग्यवती स्त्रियां ने दियो जावण वालो 'पुत्रवती' हूवण रो आशीर्वाद।
ठाणांग- जैनां रो 'स्थानांग सूत्र' ग्रंथ।

डमरू शिव रो अेक आशीर्वादात्मक वाद्य। इणरे सुरां सूं शिव, व्याकरण रा चवदे सूत्र रचिया, जिके 'महेश्वर सूत्र' कहीजे।
डींगल-मध्ययुग री आखा राजस्थान री साहित्यिक काव्य भाषा। इण मांय सैंग रसां साथे वीर रस रो प्रयोग वत्ती मात्रा मांय व्हीयो है। सौराष्ट्र मांय इणने डींगली केहवे। डींगी+गल=ऊंचा स्वरां सूं सुणायो जावण वालो काव्य। वीर वाणी। मरूभाषा रो साहित्यिक स्वरूप। आधुनिक युग मायं इणरे पद्य-गद्य में साहित्य निर्माण सतत चालू है। इण मांय अणपार साहित्य है।
डींगल कोश-कविराजा मुरारिदान रचित 900 छंदां रो राजस्थानी भाषा रा पर्यायवाची शब्दां रो कोश। अे कविवर सूर्यमल मिश्रण रे खोले गया हा ने इय्‌ुं मानीजे है कि इणाईज 'वंशभास्कर' ने पूर्ण कीनो।
डींगल नाममाला-इण ग्रंथ करता रो नाम स्पष्ट कोनी। जैसलमेर रा रावल हरराज अर कुशललाभ, दोनूं रा नाम पुष्पिका मांय होणे सूं थोड़ी द्विधा है। पुष्पिका मांय इणरो पूरो नाम 'पिंगल शिरोमणि उडींगल नाम माला' है। इणरी रचना सं. 1518 रे आजू-बाजू है।
डूंगजी-जवारजी- सन् 1857 रा स्वतंत्रता-संग्राम मांय ढूंढाड़ (शेखावाटी) रा अे काका भतीजा चावा देशभक्त हा। अे धनवानां ने केहवता के देश री आजादी सारू धन दो। नी देणे पर धाड़ा मारता। इण धन सूं अे गरीबां री मदद ई करता। अे दोनूं आपरा साथियां साथे अंगरेजां री छावणियां ई लूटता, जिणसूं अंगरेज काठा धाप गया हा। डूंगजी ने उणरा साला भैरूसिंघ लालच मांय आयने गोठ रे मिस बुलाया। पछे घणो दारू पायो ने छल सूं पकड़वाय दीना। अंगरेज उणाने आगरा रे किला में बंद किया। डूंगजी री पत्नी री फटकार सूं जवारजी उणाने छोड़ावण री प्रतिज्ञा कीनी। लोटिया जाट आपरी वीरता अर बुद्धि सूं उणाने छुड़ा लायो। जद ठकराणी आरती उतारण लागी तो डूंगजी कह्यो के
म्हाने मत वधावो राणी, वधावो लोटिया जाट।
म्हां आपे नी आया, म्हांने लायो लोटिया जाट।।
वीकानेर रा घड़सीसर गाम रे नाके, अंगरेजी फौजां डूंगजी-जवारजी ने घेर लीना। इण मायं जोधपुर अर वीकानेर री फौज ई सामिल ही। जवारजी को वीकानेर रा खेरखट्टा पूगा जठे महाराजा रतनसिंघ उणाने प्रेम सूं राखिया। डूंगजी जैसलमेर मायं गिरदड़ा रा काकीमैड़ी मांय आपरा साथियां कनै गया, जठै जोधपुर वाला उणाने धोखा सूं कैद कर, अंगरेजां सूंप दिया। इणसूं आग भड़की अर सैंग ठौड़ लाय बलती देख, अंगरेजां उणाने पाछा जोधपुर वालां ने सूंप दीना। जोधपुर रे किले मांय ई इणारो देहांत हुओ। धाड़ा मारण रा काम पेहला डूंगजी (डूंगरसिंघ शेखावत), शेखावाटी ब्रिगेड मांय रिसालदार हा। इणारा दल मायं राजपूत, जाट, मीणा, मेवाती, नाई, तमोली, चारण, गूजर, सुनार, रेबारी, मुसलमान वगेरा छतीस जातां रा लोग हा। भोपा गाम गाम मांय इणारो गीत गावे-
भला भला रा टूक उड़ावे लड़े डूंगजी न्हार।
लोटिया जाट, करणियो मीणो, वध वध वावे तरवार।।
तोड़ आगरो बाहर निसरया, बोल्या जै जै कार।
राम दुहाई फिरी किले में, रोकणियो कोई नांय।।
डूंगजी लोटिया जाट ने केहवे-
मिनखां निठगी मोठ बाजरी, घोड़ा निठग्या घास।
रामगढ रा लूंठा सेठ, अगरेजां रा कास।
मरदां मायं थूं मरद आगलो, हेरयां रो थूं लाट।
रामगढ री हेर लगावे, जद जाणूं थूं जाट।।
लोटिया जाट करणियो मीणो, अकलां मांय उजीर।
भेष बदलने चाल्या रामगढ, जाणे छूटया तीर।।
डूंगरपुर-डूंगरपुर रो जुनो नाम गिरिपुर हो। डूंगराल प्रदेश होणे सूं इणरो ओ नाम पड़ियो। इण वात रो उल्लेख सं. 1425 मांय धुवेल गाम मांय जयानंद लिखित 'प्रवास गीतिका त्रय' मांय मिले। डूंगरपुर री थापना सं. 1358 मांय करीजी। 'मुंहता नैणसी री ख्यात' मुजब रावल समरसिंघ, वागड़-प्रदेश, डूंगर नाम रा भील सूं खोस'र आपरे कब्जे कियो। डूंगर रा नाम सूं इणरो नाम डूंगरपुर पड़ियो। डूंगर री विधवा री प्रतिमा अटे किला मांय है, जिणरा दरसण सारू घणा भील अर दूजा लोग ई आवे। अेक मत ओ ई है के महारावल डूंगरसिंह, डूंगरपुर वसायो, पण ओ मत इतरो मीचीन कोनी। आ अेक भूतपूर्व रियासत ही, पण अबे अेक जिलो है। ओ आडावला भाखरां री टूंका सूं घिरियोड़ो रमणीय प्रदेश है।
डोली-(1) ब्रामण, साधु वगेरां ने दान मांय दीयोड़ी कर मुक्त भूमि। (2) घायलां ने ले जावण रो अेक साधन (स्ट्रेचर)। (3)पालकी।
डोली व्याव-इण मांय वर पक्ष जान लेयने नी जावे, पण उणरी जगा कन्या ने सामे सूं डोली में बिठाय'र मेले। सासरे गया पछे बीजी विधियां पूरी हुवे। अैड़ो व्याव राजघराणां तांईज सीमित रेहवतो।

ढाल-गीत गावण री 'तर्ज' अथवा 'देसी' ने ढाल केहवे। पछे ढाल अेक साहित्यिक विधा बणगी। इणरो सैं सूं वतो प्रयोग जैन कवियां कियो है। 2500 देसी अथवा ढालां आज मिले।
ढुकाव-(1)जान री शोभा यात्रा। (2) सामेलो।
ढूंढ- टाबर रा जनम पछे पेहली होली टाणे, मोहल्लावाला के सगा संबंधी चंग बजावता गावता, टाबर रे घरे उणने आशीर्वाद देवण आवे। उण टैम घर रो कोी आदमी टाबर ने खोला मांय लेयने बाजोट माथे बैठे। उणरे माथे दो ज णा अेक आडी लकड़ी झाल'र उभा रेहवे ने जूदा सैंग जणा नैना नैना डांडियां सूं आशीर्वाद बोलता जावे अर आडी लकड़ी माथे तड़ तड़ मारता जावे-
1 2 3
हरी हरी रे हरिया वेल घर घणियाणी बारे आव जतरा जंगल झाड़ बूंट
डावे हाथ लपूको ले पेलो पूत सपूतो पूत अतराई घर में घोड़ा ऊंट
जीमणे हाथ चमर ढुलाय दूजो पूत हाटावां जाय उतरीई सरवर डीकरियां
ज्युं-ज्युं चंपा लेहरां लेय तीजां रै भैंस्यां रो ठाठ सोले सवाणी, जणा पचास
इण घर इतरा हाथी घोड़ा चौथा रे घोड़ा रो ठाठ गैरियां री पूरे आस
इण घर इतरा गाय वछेरा इतरो मोटो हुयजो। इतरो मोटो हुयजो।
ढूंढा-हिरण्यशिपु री बेन, जिका प्रहलाद ने खोला मायं लेय'र अग्नि मायं बैठी। पण खुदईज राख हुयगी ने प्रहलाद ने आंच ई नी आई।
ढूंढाड़- (1) जयपुर राज रे आजू बाजू रो प्रदेश।पेहला ो जयपुर राज रो अेक भाग हो। इण प्रदेश रा नाम सूं इणरकी भाषा ढूंढाड़ी केहवीजे। (2) जयपुर राज रो प्राचीन नाम।
ढोला-मारू रा दूहा- इणरो रचना काल सं. 1000 मानीजे, पण इणरो वर्तमान रूप सं. 1530 रो लागे। ओ राजस्थानी रो श्रेष्ठ प्रणय काव्य है। जैसलमेर रा अेक जैन कवि यति कुशललाभ उठै रा महारावल रा आदेश मुजब इण ग्रंथ रो संपादन कियो। इ्‌युं लागे है के अे ठौड़ ठौड़ खुदरा बणायोड़ा दूहा जोड़ता गया। ओ काव्य घणो लोकप्रिय रह्यो ने साहित्य, संस्कृति ने कला जगत मांय णिरे नोखो स्थान है। ढोला (साल्ह कंवर), नरवर गढ रा राजा नल रो राजसंवर अर मारू (मारवणी) पूगल रा राजा पिंगल री राजकुंवरी। पेहलड़ी वार 'ढोला मारू रा दूहा' रो संपादन संपादक त्रय-सूर्यकरण पारीक, डा रामसिंह अर नरोत्तमदास स्वामी कियो हो, जिको हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग सूं छपियो। इणरी लोकप्रियता रो ओ दूहा घणो चावो है-
सोरठियो दूहा भलो, भल मरवण री वात।
जोबन छाई घण भली, तारां छाई रात।।

एक मत ओ ई है के इणरो रचनाकार चंद ढाढी हो।
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