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गधो
घूघू-कोचरी
खटमल-डांस
घुर्सली, चमचेड, बागल, लीलटांस, कमेड़ी
शूरवीर
हिन्दू-मुस्लिम एकता
ठगी-जूओ सट्टो
संत महात्मा
लोहार्गल-परकमां
सूरज कुण्ड
मालखेत जी
किरोड़ी तीर्थ
साकंबरी
जड़ी-बूंटी
नाग कुण्ड (परकमां)

तपकेसर
सोभावती
खाकी अखाड़ो
नीमड़ी घाटी
रुगनाथगढ़
खोरी कुण्ड
चांद-अमावस-पूर्णिमा
मो-माय
फुटकर साज बाज
मुकलावो
बग्गी, रथ, बैली
आतिसबाजी
ताजिया
सब्जी लगावण
मौत-फौत
खरच-बारो
काली कुत्ती को मेलो
रुपक फागण को
बर्तन-बदलाव
कुस्ती दंगल
नट-बाजीगर
मुर्गा, तीतर, कबूतर
सैनिक सहीद

शेखावटी सुयश

छाछ-राबड़ी, कांदो-रोटी, ई धरती को खाज।
झोटा देवै नीम हवा का, तीजण कर री नाज।।
पकी निमोली लुल झाला दे, नीम चढ़डी इठलावै।
मन चालै मोट्यारां का, जद टाबर गिटकू खावै।।
लूआ चालै भदै काकड़ी, सांगर निपजै जांटी।
कैर-फोगलो बिकै बजारां, वाह भई शेखावाटी।।

रांभै गाय तुड़ावै बाछो, छतरी ताणै मोर।
गुट्टर-गूं कर चुगै कबूतर, बिखरै दाणा भोर।।
झग्गर झोटा दे' र धिराणी, बेल्यां दही बिलोवै।
फोई खातर टाबर-टोली काड हथेली जोवै।।
टीबां ऊपर लोट-पलेटा, अंग सुहावै माटी।
ल्हूर घालरी कामण गार्यां, वाह भई शेखावटी।।

रोही को राजा रोहीड़ो, चटकीलै रंग फूल।
मस्तक करै मींझर की सोरम, लुलै नीमड़ा झूल।।
गुड़-गुड़ करतो हुक्को घूमै, घणी सुहाणी रातां।
सीधा सादा लोग मुलकता, भोली भोली बातां।।
ऊंट-ऊंटणी भोपा-भोपी, छान ओबरा टाटी।
कोट-कंगूरा छतर्यां ऊपर, वाह भई शेखावाटी।।

नथली झूलै नाक, गलै में सोवै नोसेर हार।
जुलम करैं आंख्यां को काजल, मैंदी रचै सुप्यार।।
नेह-लाज ममता-समता को, घमों सुहाणो रूप
ईं धती की गजबण जाणै स्यालै की सी धूप।।
साफो बांधै मूंछ मरोड़ै, चित चोरै कद-काठी।
मरद अठे का रसिक हठीला, वाह भई शेखावाटी।।

माल उतर ज्यावै चरखै की, सुगमो सावण आतां।
गावै गीत गुवाड़ा, गजबण करै सुरंगी बातां।।
झूलो झूलै चढ़ी ड़ावड्यां, ऊबकली मचकावै।
काका जोड्यां ल्हूर घालती, कामण मिल मुलकावै।।
तीज सुरंगी, जो' डा-पूजण,राखी गूगाजांटी।
कामणगारो सावणियो, नखराली शेखावाटी।।

सीली रात पपड्यो जुल्मी पिया पिया दे बोल।
विरै दरद की मारी को,सुण थिर मन ज्यावै डोल।।
भोर होय कुहुक कोयलड़ी, सोई हुक जगावै।
छतरी ताणै झूम मोरियो, नाचै कदम मिलावै।।
मौज करै सूवा-टूटूड़ी, चुगै कमेड़ी गाती।
मरवण ऊबी पीव उडिकै, वाह भई शेखावटी।।

जच्चा ओढै पीलो मनहर, सदा सुहागण चुनड़ी।
अचकना बागो बनड़ो पैरै, बेस कसमुल बनड़ी।।
गठजोड़ै की जात चाव सै, होलर जणै सुभागण।
पौबारा को सगुण मिलै' जे, दोगड़ लियां सुहागण।
खर बायंो दैणी गौमाता, मिलै दही की काठी।
चाला कटै सगुण सध जाणै, वाह भई शेखावाटी।

हरी-भरोटी, दोगड़-रोटी,गाय चुंघाती बाछो।
धोली चील लूंगती नोल्यो, मुर्दो सामीं जातो।।
साबत नाज हरी तरकारी, भोत भलेरा सूण।
दसरावै नै लीलटांस दिख, बदलै जाणी जूण।।
सोन चिड़ी सांप सिर बैठी, मिलै सुहागण मा ठी।
सगुण-सास्तर बल लोगां को, वाह भई शेखावाटी।

ई धती को उजलो गौरव, अर इतिहास कहाणी।
मरु का गौरव ऊंडा कूआ, बो इमरत सो पाणी।।
अणथक सेवा अडिग साधना, समता और समाई।
पर-उपकारी मिनख लियां, कूआं जतरी गहराई।।
सेवा भावी तपसी माणस, सत सूं सतियां माठी।
दाता-सूर भलेरा नरवर, वाह भई शेखावाटी।।

लूठा बुध बल कौसलधारी, लोग बड़ा ही सच्छम।
सीमा जग जांबाज रुखालै, खेती-पेसो-ऊधम।।
तकनीकी विज्ञान चिकित्सा, सैं में कला निधान।
ई' धरती का दीप जागता, धरती घणी महान।।।
धनवानां विद्वानां की, या सापुरसां की थाती।
घम अनमोल रतन निपजावै, वाह भई शेखावाटी।।

छिछलो पणो घणी गहराई, फक घणो दोन्यां में।
कूआं मसैं भी गहरी मिलसी, मैठ अठे लोगां में।
बोलैकम सोचै परहित में, सेखी नही बधारै।
ओड़ी में आडा आवणिया, सैं का काम संवारै।।
बोली जाणी मीठी मिसरी, घमी सुहावै म्हाटी।
भाी चारो रल्यो खून में, वाह भई शेखावाटी।।

संत अटै का सिरै मौर, या धरती है संतां की।
नेम-धरम घर लिछमी राखै, कर सेवा कंतां की।।
सरधा-इमरत हिवड़ै राखै, सांचै मन का लोग।
सुरग अठे है भोग अठै, है त्याग तपस्या जोग।।
मनसा नरड़ खाटू सालासर, जीण शंकरा घाटी।
धन धती तूं  लोहगर की, वाह भई शेखावाटी।।

जात-जडूला धोक-चूरमा, पितरां को जागरणो।
धुकै देवरा मंड-चूंतरा, सत जावै नहिं बरण्यो।।
खेतरपाल रिगतमल भैरूं, मामलियो म्हामाई।
रामदेवजी, गूगोजी की, जात लागती-आई।।
रात च्यानणी और अंधेरी, देव पितर में बांटी।
करै पालना लोग अठै का, वाह भई शेखावाटी।।

जागरणां मोट्यार करै, अर राती जुगा लुगाई।
माल खेत की होय परकमा, जागै गंगा माई।।
जीवणमाता, मनसा माई, सिद्ध पीट साकंबरी।
खाटू हालो श्याम घणी, सालासार को बजरंगी।।
सीतला बागोर बिराजै, सिरै उदयपुरवाटी।
लक्ष्मीनाथ फतेहपुर राजै, वाह भई शेखावाटी।।

गूगोजी को भोग गुलगला, खीर चूरमो सूणां।
कान्हो जलमै बणै पंजीरी, शिव छक ज्याय धतूरां।।
मालखेतजी, रामदेवजी, सकरबार सा' पीर।
मेला लोग उडिकै अणका, होकर घणा अधीर।।
तीज तिव्हांर बावड़ै साथै, गणगौर डबोवै जाती।
सूत्या देव जगै कातिक में, वाह भई शेखावाटी।।

मन्दर नसियां जती सती, है छतर्यां सापुरसां की।
मठ-धूणां साधझू संतां का, धरा सिद्धि पीरां की।
पगल्यां मंड्या चबूतरा, मंडवा पितर वितान।
धज फहराता सिखरबंद ई' धरती की पैचाण।।
धुकै देवरा बुंगली-बुंगला, जगै दिव जग बाती।
अंतर मन सैं करै आरत्यां, वाह भई शेखावाटी।।

बेल्यां मोल दही रोटी की, छाछ राबड़डी छाकां।
सरदा सारू चिकणी-चुपड़ी, आथण कै दोपार्यां।।
गुड़, कान्दो, मूली, मिरची, घी को मिरियो सक्कर में।
छप्पन भोग कठै लागै, अणे बगां की टक्कर में।
गूंद सूंठजद खाय बूड़ला, टाबर मांगै पांती।
बिना चकायां दर ना भावै, वाह भई शेखावाटी।।

ऊंडी थाली ठेठ किनारां, खीर परोसी होय।
भलै मिनख का दरसण, जाणी बेल्यां होया होय।।
सीरो अमरस बिना दांत को, भोजन है मौमस को।
स्यालै बणै सूसुआ रोटी, सागै दही सबड़को।।
जरी-पल्ला को मुख चूरमो, घी में गलगच बाटी।
दूर सबड़का सुणै दाल का, वाह भाई शेखावाटी।।

फोगलै को सरस रायतो, गड़तुम्बां को आचार।
सामरथां की सोख मेटदे, निरबल को आधार।।
खींप फोग जांटी कै मन में, गूंजै मरुधर नाद।
कैर सांगरी खिंपोली की, सबजी घणी सुवाद।।
बिन पाणी रह ज्याय जीवता, कैर कैलिया जांटी।
या ही झलक मिलै लोगां में, वाह भई शेखावाटी।।

सुघड़ सलौना मुखड़ां सोवै, आंख बांधतो ओज।
झूला चकरी किलकार्यां, अर बै मेलां की मौज।।
डैलर हींडा की चररर मरर सुण, झोटा मन नै भावै।
रंग बिरंगी सजै बानग्यां, मन डग-डग हो ज्यावै।।
काजल-टीकी खेल-खिलौणा, मिलैमूण अर लाठी।
मनचीत्या होवै मेलां में, वाह भई शेखावाटी।।

जेठ साड में पड़ै तावड़ो, उठै घटा घनघोर।
मेलां की रुत सावण-भातो, चैत मायं गणगौर।।
पाकै गिटकू किरै काचरा, सौरम रै सिट्टां की।
बड़ी दूर सै खुसबू आवै, मट काचर मिठ्ठां की।।
लोहागर का आम रसीला, भोग चूरमो-बाटी।
ऐ मिलणा दुरलभ सुरगां में, वाह भई शेखावाटी।।

ढलती रात बारियो बैरी, बोलै मीठा बोल।
धण को मन बेचैन करै, दे मन की गांठां खोल।।
चाकी जोवण उठ चालै, कजरारा नैण नवेली।।
रसियो पकड़ै बांह गौर की, होवै फेर ठिठोली।।
घम्मड़का लागै चाकी का, गजबण जोरा म्हाटी।
सोरी आवै नींद फेर तो, वाह भई शेखावाटी।।

ऊंचा मरुआ ऊंडा कूआ, च्यारूं ढाणां भूण।
दोगड़ ल्याती पणिहार्यां कै, कमर चढ़ी रै मूण।।
पणघट पर भेली हो ज्यावै, मधुर याद मनरातां।
कोई भेद रह्वै ना बाकी, धुल धुल होवै बातां।।
रस लेती सरमावै एकण, दूजी कै मन आंटी।
तीजी खोलै मन की परतां, वाह भई शेखावाटी।।

बारा बोलै भोर बारियो, मारै कीलियो झोल।
ओ ढाणै में चड़स थाम ले, बो' कीली दे खोल।।
कल-कल करती गंगा चालै, तिरपत होवै क्यारी।
धोरा डांड नीपजै सागै, हरख मनां रै भारी।।।
मींणत कस इंसान रीजता, उपजाऊ है माटी।
न्यारी न्यारी निपज निराली, वाह भई शेखावाटी।।

चौकीदारी घमी जोर की, खबड़दार कह बोलै।
कोई रसियो मूमल गावै, सीली रा बिचोलै।।
परदेसां ले ज्याय भंवर नै, पापी पेट अनाड़ी।
भर जोबन में बलै कालजो, आ' धण की लाचारी।।
काली कोसां को अन्तर, रस रात कटै ना काटी।
बैरण याद हियै में खटकै, वाह भई शेखावाटी।।

तिथ बारां की अलग कहाणी, व्रत पूजा हथफेरा।
कातिक न्हावै मंगसिर न्हावै, सीधा आला-कोरा।।
सावा जोग म्हूरत काड़ै, पण्डित ले पतड़ा पोथी।
धरम करम में घणी आस्था, बिसवासी लोगां की।।
रोली-मोली, तिलक-चोपड़ा, दिछणा की परिपाटी।
दुध्धड़िया म्हूरत फेरां का, वाह भाई शेखावाटी।।


गीत

हरसावै मुखढ़ा गीतां का, रागां मांय रवानी।
हियै-कालजै ही थाह टपकै, गीत घणा उममानी।।
गीता आत्मा गीत धरोहर, गीत भावना जन की।
गीतां में मरुजीवन मुलकै, गीत कथा मरुमन की।।
ऊंच चढ़ै पातलियो ढोलो, मारू मन की थाती।
मन की उपज निपज गीतड़ला, वाह भई शेखावाटी।।

कुरजा, लैर्यो, लूर पीपली, पीलो चंग धमाल।
मुरलो, मूमल, हंजामारू, रस का गीत कमाल।
रखड़ी-जकड़ी, बिणजारो, रामू-चनणा का बोल।
सगी-सगा सै करै ठिठोली, ऐ तो मिलै न मोल।।
पीढ़ा घाल'र लगै सीठणा, गीतां की परिपाटी।
साल्यां छेड़ करै जीजा सै, वाह भई शेखावाटी।।

मरुओ महक आम बौरावै, फलै आमली सींतां।
तरवर जुड़र्या जीव जगत सै, मरुरस भरर्यो गीतां।।
उमंग जतावै तीज, पीपली-ओल्यूं गीत व्यथा का।
राईधण को जल्लामारू बोल मुखर मुरला का।।
रागां का मेल दर-छातां, घल पीढा जुड़ पांती।
उजली छब गीतड़ला मरु की, वाह भई शेखावाटी।।

आम आंगणै नीम पिछोकड़, मरुओ खुशबूदार।
दिलकस भाव भर्यो गीतां मे,ं भरी पड़ी मनुवार।।
नोकीला बादीला रसिया, रंगीला'र गुमानी।
कतरा मीठा संबोधण, कतरो सबदां में पाणी।।
कण्ठ सुरां में भाव कलपना, मधुर भाव दरसाती।
कानां सुणतां पड़ै दिखाई, वाह भई शेखावाटी।।

मोतीड़ा समदर में निपजै, गौरी कै मन पीड़ा।
कदली देस का हाथी चाये, सिंध देस का घोड़ा।।
छैल भंवर को कांगसियो, राईघण को उमराव।
गीत बड़ी अनमोल धरोहर, गीतां में उमड़ाव।।
ओल्यूड़ी छू ज्याय कालजो, सुण भ आवै छाती।
सुबकादे सब नै यो ओसर, वाह भई शेखावाटी।।

बिना साज कै गलो सुरिलो, सुर-वाणी को संगम।
चुड़लो खनकै घुड़लो धमकै, रागां निसरै सरगम।।
कुबधी पीव तमाखू गारो, लुब्धी चिलम चटोरो।
जापो जलवा गीत चावा का, रंग चिरमी कोगैरो।।
काजल आप कुचरणी गारो टीकूली मदमाती।
मन की उमड़ मुखर मरु गीतां, वाह भई शेखावाटी।।

सूत्यो सुसरो बहू जगावै, सासू पगां लगावै।
दूधां-पूतां फलै बहू, आसीस आसस सूं पावै।।
रखड़ी नोसर हार घड़ावै, बैठ राज सुसरोजी।
हुंडीचुकती करै लाडलो, मनस्या पुरै बहू की।।
भाभी कोड करै देवर का, नणद करावै पांती।
हरखै सगलो बास देखतो, वाह भई शेखावाटी।।

काजलियो आंख्यां की सरगम, बिना काजल रमझोल।
हस्ती घुड़ला बेच सायबा, काजल लेद्यो मोल।।
पांच म्होर को पीलो रंगाद्यो, झीणो मुखर बंधेज।
दिल्ली सहर को पोत सायबा, जैपर को रंगरेज।।
पल्लां दादर मोर मंड्या रह, मोर पंख मंड गाती।
चांद गवरजा पीलो ओढै, वाह भई शेखावाटी।।

रतन कचोलै भीजै मैंदी, जल जमना को नीर।
चढ़ै चाव गुलनार हथेल्यां, महंदी रंग अबीर।।
मिला नेह रस मांडै मैंदी, करती जतन सहेल्यां।।
मन चोवै पगल्या राचेड़ा, चूम्यां सरै हथेल्यां।।
बाग-बगीचा उगै हथेल्यां, बिन क्यारी बिन माटी।
मोद भरै मैंदी निरखणियां, वाह भई शेखावाटी।।

हलियो सोना-रुपा ढलियो, सुरही गऊ का बेैल।
बीजापुरा को बीज भांग को, बीजै हाली छैल।।
चन्नण को कसियो ले रसियो, हेरै चतर निनाण।
दूध-दही की मसकां सींचै, उगै नसीली भांग।।
सोनै कै सिलबट्टै कंगण, खण-खण करता बांटी।
भांग भायली उगै भंवर कै, वाह भई शेखावाटी।।

सरब सुहागण अमर बधाओ, घोड़ी घूघरी छींक।
जच्चा जामण जापो चुड़लो, बनी बना का गीत।।
दाडू, दाख, फालसा दड़गल, परबल बर्फ-मलाई।
चकचुंदरडी लकलूमरडी, गावै चतर लुगाई।।
हंसलो रंगलो न्हाण जलवा, गौरबंद नै गाती।
पैल बधाओ सांझी आरतो, वाह भई शेखावाटी।।

विधन बिंदायक सेडल माता, पित्तरजी पितराणी।
कालीजी भैर बालाजी, चौथ सती महाराणी।।
रामदेवजी, भोमियाजी, श्याम जी'र साकंबरी।
केसरियो अर पांच पीर, मावलियां गीतां रमरी।।
आभलदे जयतलदे मरवण, गजब उमादे म्हाटी।
गूगो भैरूं सिद्ध भगोतो, वाह भई शेखावाटी।।

मधरा सुर में जद कतारियो, टेरै जुलमी राग।
मधी रातां गौरी कै मन, जगै विरह की आग।।
मद की रात नींद उड़ ज्यावै, सही न जावै पीड़ा।
ई' तड़फन नै तूं के समझै, रै जाता पंथीड़ा।।
कालजियो सो काडै बैरी, छेड राग तड़फाती।
तनहा रात बड़ी दरदीली, वाह भई शेखावाटी।।

सांख जलेबी सजनगोट में, समधी की मनुहार।
रस की भरी जलेबी सागै, दे मुंह में कलदार।।
माडंै पर सै गुड़ाता लाडू, ठेठ पातलां जावै।
बांधै पोट बराती, बकरी समधी जी की खावै।।
चुहल सीठणा टिसकोली, चिबडोठ्यां की परिपाटी।
मीठी लागै मुलक मस्करी,वाह भई शेखावाटी।।

सगी-सगां का स्हैर सपाटा, गीत सीठणां होतां।
दूद्यो बिका न्हुवादे गंगा, पान रचादे होठां।।
कामणगारी बनड़ी जबरी, ऊबी अधर नचादे।
एक जलेबी आधै लाडू, सगली जान जिमादे।।
बल पड़ ज्यावै हंस पेटां में, सुण रस बातां खाटी।
मरयादा में होय मस्करयां, वाह भई शेखावाटी।।


सावण

मारै चोट नंगारै इंदर, थिरक दामणी नाचै।
तोड़ै तान कड़बली-सिट्टा, खेतां गिंदड़ माचै।।
जंगल-खेत जीव-जड़ हरखै, झिर्मिर मेह बरसतां।
डमरो फूटै हवा सुवासै, काचर-फली महकतां।
कैर सांगीर खींपोली, चिरपोटण मीठी-खाटी।
ऐ कंचनमेवा धरती का, वाह भई शेखावाटी।।

सावण भादो सजल सुरंगा, आसोजां पुरवाई।
किरै काकड़ी मटकाचरला, रुत मेलांकी आई।।
फलै फली बध बेलां जामै, लांप मतीरा मिट्ठा।
हवा चालतां लुलै कड़बली, तान तोड़ाता सिट्टा।।
रितुआं को रिमझोल अलूंठो उर्वर मरु की माटी।
सावण आवण घमओ सुहावण, वाह भई शेखावाटी।।

हल सोट्या'र हलाई जोता, कढै ऊमरा ऊंटां।
ओघड़ा बादल हर्सै बर्सै, जड़ पकड़ै जच बूंटा।।
तम्बू तमऐ बेल बिरछां, बिछ हर्या गलीचा धरत्यां।
भादो दे सौगात, मतीरा, सावण सजल बरसतां।।
खाय कोरड़ा इंदर का, बीजल चिमकै कड़काती।
जल छिड़कै बादलियो भिस्ती, वाह भी शेखावाटी।।

उमड़़ै ल्हैर हवा चालै, लुल पली फसल लैरावै।
हंसतो बिछ्या गलीचां पर, मन लोट-पलेटा खावै।।
रलका दे बरसावै करसो, घमक बाजरो बरसै।
करै उचावण मनकोरी, मन नाज बरसतां हरसै।।
मीठा लाल मतीरा काचर, ककड़ी मीठी-खाटी।
मीणत को फल मिलै धणी नै, वाह भई शेखावाटी।।

पीली-पीली पसरकटाली, लीला फूल धमासै कै।
फाग चढ़ै फागण में, मस्ती चढ़ च्यावै चौमासै में।।
आक-धतुरा नसो करडेा, खड्या आड़ ले पेडां की।
ऐ चोड़ै लिपटाई राखै, लदपद बेल ककेड़ां की।।
झाला देवै दरखत, बेलां बाड़ डाक चढ़ आती।
मर्या जियावै परवा चाल्यां, वाह भई शेखावाटी।।

पर्यावरण बिगाडू जन पै, थोर जताती व्यंग।
के मजला कै हाथ लगाले, ऊभी नंग धडंग।।
आढ आवरण कांटां को,या खड़ी उधाड्यां पेट।
पुलिस्यां की वर्दी में जाणी, महिला अपटूडेट।
झाउलो दे मार सांप नै, पूंछ पकड़ उस काठी।
आतकी सिर पटक मरै ज्यूं, वाह भई शेखावाटी।।

मादकता पुखाी की, मेघा की मचल मल्हार।
झिरमिर बर्स मेहो, टण मण टैणां की टणकार।
टम टम की बरखा बरसै, ऊठ सवांरी तड़कै।
मुलकै गौरी मनभरियो, परदेसी आवै अबकै।।
बोजां ऊपर पसर बेलड्यां, रुप छटा छिटकाती।
मधरा झोटा पेड़ झुलाता, वाह भई शेखावाटी।।
भरी जवानी सावण सींचै, बावड़ बरसै भादो।
आस्योजां में बूढो बादल, मोती पटकै जातो।।
साथ उमर कै जयां आपको, बदलै कोई पंथ।
खड़ी देखती रह्वै गौरड़ी, साजन बणतां संत।।
बालपणो दे ज्याय जवानी, फेर बुढ़ापो लाठी।
कुदरत की फितरत है न्यारी, वाह भई शेखावाटी।।

धरा तपै बैसाख जेठ, जद धिर चोमासो आवै।
मेट बाबो सिर पोट बांध, धर फली काचरा ल्यावै।।
चंदो बाबो पोली दे, अर घी को भर्यो कचोलो।
आदो लाडू आवै ना, सो पांती आवै दोरो।।
घाणी-माणी घाल टाबरी, रामारोल मचाती।
बाबोजी को सुगण लोटियो, वाह भाई शेखावाटी।।

झुलस मिटै धरती की, सावण बूढ़ै करै फुवार।
काजलिया बादल बरसै, रै घटाटोप इकसार।।
झूलै पर चढ़ उड़ै उमंगां, झिरमिर बरसै मेह।
रुत पावस की आय, धरा नै हरी भरी करदे।।
रंगसाला में थरिक नाचती, आभै में दमकाती।
बीजल रंग भरै घुप रातां, वाह भई शेखावाटी।।

सूर्यो सजल करै सवाण, भादो परवा दे बाला।
जोह्ड़ां सै आलिंगल करती, नदी डाकती नाला।।
सुरज कुंडालो चांद जलेरी, तीतर पंखी बादल।
सज ताकै बिरखा नै, जाणी विधवा राच'र रकाजल।।
आस्योजां बावड़ पछवाई, बिरखा ल्यावै जाती।
गाड़ां भरै नाज का कोठा, वाह भई शेखावाटी।।

भर जोबन में नदी अकड़ती, चाली आवै दौड़।
जाणी रुपसी ले अंगड़ाई, सगलो अंग मरोड़।।
खड्या उड़ी कै निरा तिसाया, बांह पसार्यां बांध।
मिल गाढा छक ज्यावै, फेरूं चादर चालै लांघ।।
झिरमिरियो सो लूंठो मौसम, सिट्टी हवा बजाती।
परवा बैरण पीर जगावै, वाह भई शेखावाटी।।

सावण बरस्यां मिटै सायबा, लगी धरा की जूल।
मुलकै ऊबा खड्या रुंखड़ा, बेलां पसरै फूल।।
घमओ तावड़़ो पड़ै जेठ में, बदन ज्याय कुमलाय।
आस बंधै आसाढ़ आवतां, मिटै हिये की लाय।।
नर महना आसोज-भादवो, फेरूं आवै काती।
ओ मौस मेली मेलां को, वाह भई शेखावाटी।।

मिलन आंख को करवावै, आकरसण को ऐसास।
बिन बोल्यां पलकां दरसावै, अंतसमन की प्यास।।
मेल-बिछोह परसपर दोनूं है जीवन का खेल।
बड़ो मजो मेलां में यारो, होकर धक्कम पेल।।
बरसां का मिलबा का वादा, यारी टीस जगाती।
सावण को मतवालो मौसम, वाह भई शेखावाटी।।

बिजली सी चिमकै चेतन में याद कर्यां बै बांता।
पलकां झपक्या करती कोनी, घुली धुली सी'र रातां।।
मन नादीदो नैण तिसाया, कान तरसता नेह।
चातक कोई तकै उड़िकै, बिन मौसम को मेह।।
सांस सांम में भरी गुदगुदी, हो री मन में खाटी।
रै सावण ले आव सजन नै, वाह भई शेखावाटी।।

तीज

गीत उमंग मुलक पड़ झुला, चित में बसै चितेरो।
तीज परब मैंदी'र मिलन को, परदेसी नै बेरो।।
छब उजली आयाम घमएरा, परब-तिव्हार भलेरा।
रमै तीजण्यां, परब तीज, हंसतो सावण दे डेरा।।
होय सिंजारा पीर-सासरै, सास-भावजां राजी।
बेस-तील संग सास-नणद का, वाह भई शेखावाटी।।

परदो छोड़ घूमबा जावै, पहरावो इकसारो।
बहू घरानै की सैकी सै, जम्फर पैरै न्यारो।।
छुई-मुई सी सिमटै बाली, छेड्यां हाथ लगायां।
सुरख सुरंगी तीज मखमलौ, चालै ज्यूं पटराण्यां।।
चढ़ा बदल पर लाड लडायां, ऐ चालै सरमाती।
तीज तीज तेरा मामा आया, वाह भई शेखावाटी।।

मांग भरेड़ी राखै, चुनड़ी सिर पर ओढ़ै सागै।
सदा सुहगण तीज, ब्यावलो भेस बणायो राखै।।
मुरतब मान्यो जाय सिंझारो, तीज्यां पर आयेड़ो।
पैरै चुड़लो मनमौजणियां, पीअर सै ल्यायेड़ो।।
चुड़लो पैरै सदा सुहागण, चुड़लै की परिपाटी।
तीज सलूणो पडलो फेरां, वाह भई शेखावाटी।।

रै मनमौजण सरम छोड़, ले आठूं पंज्या खोल।
सावण का दिन च्यार बावली, पल पल है अनमोल।।
अरै मिजाजण मन मोवै, तेरो मदछकियो रुप।
तीज ! सुरंगो बदन लियां, तू लागै घणी सरुप।।
महंदी रची हथेली कोमल, तन्नै देख लजाती।
रंग-रंगीलो परब तीजो को, वाह भई शेखावाटी।


हींडो

कामणगारी रमै तीजण्यां, मौसम मन भरमावै।
हींड़ै पर चढञ दो दो जणियां, गोडी दे मचकावै।।
जोर कमर गोडां को, नभ में हींडै की ऊंचाई।
सावम राचै आय गुवाडां, माचै लोग-लुगाई।।
लैर्यो उडै चुनड़ कै सागै, हंसै लुगायां गाती।
गूंजै गीत फुहारां बरसै, वाह भई शेखावाटी।।

अल्हड़ गौरी जोर करै, जद झूलो लचका झेलै।
झुमको जूल तागड़ी हंसती, साथ कमर कै खेलै।।
चुहल करै खिल कटिया गारी, मोवै कामण गार्यां।
मन कै पार उतर ज्यावै, मीठी-मीठी किलकार्यां।।
सरो उडिकै खड़ी डावड्यां, हींडण नै ललचाती।
गोडी देतां पल्लो मुख में, वाह भई शेखावाटी।।

उबकली मचकाय मिजाजण, झूलै नै झकझोर।
पलक झपकतां नापै गजबण, आकासां को छोर।।
बांथां बांथ मिलै दोनूं, जद लोक लाज छुट ज्यावै।।
होड़ करै हींडो गौरी सै, कुणपैली आगै जावै।।
पल्लो उड़ पड़ ज्याय दिखाई, भेद छिपायां नाभी।
मरयादा ऊपर नीचै की, वाह भई शेखावाटी।।

फरराटा मद मस्त हवा का, आंचल नै उलझावै।
कोई कमसिन बाला नै, ज्यूं आवारा बहकावै।।
मिल कांधो-गर्दन गौरी की, उड़ती चुनड़ी जकड़ै।
हाथां सै लाचार, हींडती पल्लो मुहं सै पकड़ै।।
काची काची गंध देह की, महंदी मधुर सुहाती।
बड़ा भाग जुल्मी झूलै का, वाह भई शेखावाटी।।


हिंडोला

रास रचै सावण में, मुख रै मुरली की मुस्कान।
राधा-रुकमण रह्वै देखती, सखियां तोड़ै तान।।
नाचै श्याम नचावै सखियां, पून बगै सावणियां।
घलै हिंडोला मंदरां मंदरां, झोटा दे आवणियां।।
जुही चमेली रजनी गंधा, चम्पा महक लुटाती।
सावण का झूला मंदरां में, वाह भई शेखावाटी।।


दसरावो

दो-मुंह होय दोकलो बाजै, दस मुख होय बधाऊ।
कुणोस मुंडो कद के बकदे, बातां निकलै न्याऊ।।
दुरगुण को घर दुस मुख रावण, भर्यो बुराई खान।
दस का दस हर एक बाण में, राम कर्‌ोय कल्याण।।
पुरसारथ की डोर टंकारी, जद अच्छाई जागी।
दस-मुख हर दसरावो बाज्यो, वाह भई शेखावाटी।।

उडती धूल उछलता भाठा, जयकारा कर लड़ता।
पाला मांड राम-रावण का, कांकड़ ढल का भिड़ता।।
अब रावण को पुतलो फूंकै, करै राम की लीला।।
परतीकां को परब दसेरो, आदरसां की लीला।।
तसबरीां उजडलै अतीत की, मंचण की परिपाटी।
जयकार हणमान-राम का, वाह भई शेखावाटी।।

दुराचार अर सदाचार का, मंडता आया पाला।
सदा हरी जड़ धरम सांच की, पाप्यां का मूं काला।।
सत की जीत असत पर पक्की, घातां पर प्रतिघातां।
रावण हर नारी नै पापी, मर्यो राम कै हाथां।।
सदा सनातन परब दसेरो, सदियां की परिपाटी।
रावण मार राम घर आया, वाह भई शेखावाटी।।

एक तरफ छल-कपट छिद्र, पाखंड घमंड दिखाओ।
मर्यादा श्री राम बणाई, मिल पूजां दसराओ।
सत की डूंगी पार पड़ै, बल चप्पू निस्ठा पाण।
झ्याझ भरेड़ो कपट-दंभ को, अबस डूबसी जाण।।
साहस समझ-बूझ निस्चय, मलि गहरी खाई पाटी।
गढ़ लंका सरकरी बांदरां, वाह भई शेखावाटी।।


दीवाली

दीवाली खुसहाल थरपणी, संकलप सांचै सुख को।
बड़ो तिव्हांर रोसणी को, यो दिवलां की जगमग को।।
साफ-सफाई धोआ-पूंछी, नया बसन आभूसण।
प्रोढां कै मन में उदारता, छोटां कै अनुसासन।।
पैरी-ओढ़ी बणई-ठणी, चंचल चपला सरमाती।
घर-लिछमी लिछमी नैपूजै, वाह भई शेखावाटी।।

एक दिवो घूंघट में दमकै, दूजो सोवै हाथां।
मुलक्यांदीप सिखा सी' चिमकै, उजलै धोलै दांतां।।
हिवड़ै में पिवजी को दीवो, प्रेम पगी मन जोत।
लब-डब नेह उभाला लेतो, दियो प्रकासै भोत।।
आ लिछमी ममता की मूरत, बा' अभिमान जताती।।
या करदे सरबस न्यौछावर, वाह भई शेखावाटी।।

घोर अंधेरी निसा अमावस, सुरसा कोट सो रुप।
पुलकित दीप सिखा हो लागै, च्यारूं दिसा सरुप।।
छात डागलां करै रोसणी, दिसा जता आगत नै।
दिवला रख कंदीलां टांगै, सम्मानै पितरा नै।।
आकासां चढ़ फटै पटाखा, सोभा रस छिटकाती।
तुम्बी रुप बांटती छैली, वाह भई शेखावाटी।।

दीन दीवाली दिवला जागै, जुग जुग मांगै तेल।
तेल घुचरिया पिवै खेल में, रात्यूं हेलां हेल।।
चसै बफोड़ा बांस टंगेड़ा, देख देख मन हरसै।
सतरंगी तुम्ब्यां छूटै जद, खूब रोसणी बरसै।।
अन धन दे भरपूर दिवाली, पूरै सब नै पांती।
छोटा खावै धोक बड़ां कै, वाह भई शेखावाटी।।


फागण

दस्तक दे रितुराज रंगीलो, चालै हवा बसंती।
खेलै फाग रुंख अर बेलां, चढ़ी रवै मद मस्ती।।
सेमल-सिरस नीम टेसूड़ी, रोईड़ो कचनार।
रंग सौरभ की भर पिचकार्यां, सै होर्यां तैयार।।
धुलकर गंध हवा में, ज्यूं मादकता की पौ काटी।
जुलमी फाग मंड्यो फागण में, वाह भई शेखावाटी।।

हवा फागणी धूल समेट्यां, ले आकासी चाल।
दोनूं हाथां मुखाकास पर, मलबा मस्त गुलाल।।
पकड़ कलाई अल्हड़ की, मुक चूमै घमो अधीर।
पर बस होई डरी डरी रै, कामण पर आधीन।।
ओट करै बदली सूरज की, पल्लो ताणै म्हाटी।
धूप कुसुम्बी मुलक बावडै, वाह भई शेखावाटी।।

काका जुड़ै उठ्यां अंगड़ाई, भिंचै परस्पर होठ।
चढ़ै उभारो उर कै, ताकै पापी मन पग रोप।।
दांत निगोड्‌या भरम गेरता, पंखुड़ी बरणा होठ।
ज्यूं जुलमी गुलाब कै जाणी, दांत उग्याया होय।।
बिंधै कालजो मन मार्यों को, घलै रुप की आंटी।
अलबेलो अंदाज नैण को, वाह भई शेखावाटी।।

उड़ती कुंजर की पांखां लिख, धण संदेस पठावै।
हमजोली साथी संगल्या मिल, गावै चंग बजावै।।
देवर-नणद याद आवै, फागण में भोजाई नै।
चीर कालजो पीड़ दिखावै, बालम हरजाई नै।।
कालजदार परत लेवै, भंग सिल लोडी सै बांटी।
पल्लो पकड़ै पीकर बलमो, वाह भई शेखावाटी।।

रसियां को मन चकरी करतो, घाघरियै को घरे।
एक बीनी छप्पन छैला, नाच नचावै फेर।।
छलकै जोबन अंग अंग सै, संग चंग की थाप।
गींदड़ घलै नंगारो बाजै, मुख सै फूटै राग।।
अलमस्ती कै आलम में, मदमस्ती की परिपाटी।
जुलमी फागण बड़ो रंगीलो, वाह भई शेखावाटी।।

बाजै चंग बांसुरी, गूंजै दिलक राग धमालां की।
नाचै गोरी गावै रसिया, मन की निकलै यारां की।।
गींदड़ड को जद चढ़ै नंगारो, खाय घाघरो घेर।
जैपर की तारां की चुनड़ी, मांगै गजबण फेर।।
जोरु जोध बाल बलमै सै, करै मस्कर्यां खाटी।
गाडूलो घड़वावै बैरण, वाह भई शेखावाटी।।

आक-ढा़क परवान चढ़ै बेलां कै चढ़ै जवानी।
बेल चढ़ै अणजाण पेड़ पर, बे-परवा मस्तानी।।
ओघड़ पेड़ां पर कूंपल, बेलां पर फूल नसीला।
कलरव सुणै सुहावै मौसम, मोवै विहग रसीला।।
केसरिया पल्लो साड़ी को, हरी भरी कद काठी।
लचका खाती थिरकै सिरस्यूं, वाह भी शेखावाटी।।

झड़ पर पान कूपलां चालै, हो यौवन संचार।
वन-उपवन में हवा झूमती, चलै बसंती चाल।।
बग्गर चढ़ कर लता पेड़, मिल माचै होड़म-होड़।
कामदेव कोतिक रच जाणी, मरयादा दे तोड़।।
सिरस्यूं-बाल गलै लग मिलती, बांथां भर भर काठी।
बाली उमर बदलतो मौैसम, वाह भई शेखावाटी।।


गणगौर

फागण मन नै चेत करावै, चैत मास की भोर।
ईसरजी जद पेचो बांधै, हंस निरखै गणगौर।।
रोवां-सोवां का' न्हो मालण, संगमें पूज्या जावै।
लाड चाव सै अठै डावड्यां, घुड़ला रोज घुमावै।
जन मन नै हरसावै गौरल, झाला देवै जाती।
अमर सुहाग जतावै चुड़लो, वाह भई शेखावाटी।।

मनोकामना अमर सुहाग की, जठे लुगायां राखै।
बी धती को गौरव-संस्कृति, उजलो-उजलो लागै।।
पूजा प्रबल भावना ऊंची, है प्रतीक गणगौर।
अमर सुहाग जताती, बांध्यां ईसर सै गठजोड़।।
चढ़ छातां पर झाला देवै, गा' कर गीत सुणाती।
मर-अंखियां भर होय बिदाई, वाह भई शेखावाटी।।


प्राचीन हवेलियां

रंग सहेज्यां चटक सोवमां, चित्रां सजी दिवालां।
चित विचलित करती सैनां में, हेल्यां देती झाला।।
महल अटारी बड़ा इकदरा, झांकै पुलक झारोखा।
टोडा-टांड़ा रोह्स-मुक्तुम्बा, सबनै लागै चोखा।।
सौ-सौ बरस धूप मेह भीजी, उमर खड़ी रै काटी।
अब परदेसी निजर मिलावै, वाह भई शेखावाटी।।

गलमुछ्यां को रुतबो न्यारो, ठाकर पोल बिराजै।
फानुस-झाड़गाव-तकिया सज, सीज बैठकां साजै।।
चिलम तमाखू कऊ जागती, गोखां झुकता छाजा।
हाथी होदां सहित समावै, वै हाथी दरवाजा।।
बूंटा-बेल खुद्या सैतीरां, खूट्यां घढ़ी खरादी।
रंग-मंाडणा मंड्या बारणां, वाह भई शेखावाटी।।

अण तोल्यो सिर बोझ, जिरण तन ऊभी घणी उदास।
सुध-बुध खोयां खड़ी, धण्यां सै हेल्यां की अरदास।।
हिमकालो आ पुचकारो तो, उमर घमी बढ़ ज्यावै।
कुल को नाम अमर हो, थानै मान घणो मिल ज्यावै।
मुरतब पड़दादो सा दीन्यो, दादोसा दी ख्याती।
थे पोतां-पड़पोतां फलर्या, वाह भई शेखावाटी।।

निजर झुकायां डरी डरी, डर घर की बदनामी को।
कर अफसोस निरख सैलानी, बूझै नाम धणी को।।
बिना धमी की सी धण जाणी, उडी उडी सी रंगत।
बेबस अर बदहाल खड़ी, सूनी हेल्यां की पंगत।।
ऊभी करै उजागर थारी, कुल मरयादा थाती।
थे हेल्यां की सुध ल्यो रसिया, वाह भई शेखावाटी।।

मंदिर महल किला प्राचीरां, कुआ बावड़ी जोह्डा।
हेली चतरी घरमसाल का, कारीगर अब थोड़ा।।
रोह्स दादरा मोख-झरोखा, ढोला लग ऊंचाई।
चेजारा इंजनेर अठे का, चिणदे बिना पढ़ाई।।
सा'पेचां कर कोई घडाई, लादै पाथर पाटी।
मिल खंबा सैतरी लदाई, वाह भई शेखावाटी।।


भित्ति-चित्त

दो सौ बरस धूप-मेह भीज्या, पण भी रंग उजागर।
भीतां पर तसबीरां रचगा, रंगां का कारीगर।
हिंगलू काजल नीर प्याह्वडी, हरतल अर सिंदूर।।
सूझ बूझ सै रंग बणाया, कोड्यां घस दे गूंद।
जंगाल अर नीलो थोतो, खड़िया हिरमच-माटी।।
गैरु रला रामरज गेर्यो, वाह भई शेखावाटी।।

कृष्ण गोपका रास रचाता, दिख ज्यावै भित्तां स्यूं
ऐजीबां-तह्जीपां झलकै, सतरंगी चित्तां स्यूं।।
बेद पुराणां इतिहासां का, लिख्या कथानक भीतां।
रामायण म्हभारत मंडरी, मंडी भागवत गीता।।
सूर बजातो इकतारो, मीरा खड़ताल बजाती।
देख होय पुलकित सैलानी, वाह्भई शेखावाटी।।

रेल चाल' री भीतां ऊपर, पल्टम करै परेड।
नार्यां ग्रामोफोन बजाती, बदल्यो' सो परिवेस।।
काम-कला जुध-दरसन भीतां, मंडी तीज-गणगौर।
ऊंट चढ्यो ढोलो संग मरवण, कालजिये की कौर।।
बांसां टंगी नाचती नटणी, भोपण टेर मिलाती।
मैफिल-मुजरा दीवालां पर, वाह भई शेखावाटी।।

भारी पड़ै मगर पाणी में, बल को घण बिस्वास।
गत करता नारायण गज की, सुण कातर अरदास।।
सुर-असुरां को जुध मंडर्यो, होर्यो समदर को मंथण।
सारी घटणा इतिहासां की, दीवालां पर अंकण।।
कला चितेरा उतर अतीत में, दी चित्रां की थाती।।
अम्मर किरत्यां मंडी दिवालां, वाह भई शेखावाटी।।


ख्याल

हारमोनियम साज सुरीलो, गूंजै चढ़ी नंगारी।
मांडै ख्याल करै नोटंकी, तकथा तोड़ खिलाड़ी।।
पैली नवै गुरु नै, सुमरै सारद सिद्ध बिनायक।
ठुमक पिछाण करातो नाचै, नोटंकी को नायक।
कलावंत परिवार कमाई, आ खेलां में ख्याती।
खेल घराना नोटंकी का, वाहभई शेखावाटी।।

मीठी बोली मुखर अंतरा, टंगै घूंघटो कान।
होय सवाल-जवाब कवित में, तखतां टूटै तान।।
रामगढ़ को सलियो नामी, दूलियो चिड़ावा को।
नोटंकी नै ख्यात करी, अर राख्यो ध्यान बढ़ाबा को।।
तड़ तड़़ सुणै नंगारी को, संग टेर दूर तक जाती।
मरद लुगाई बणै खेल में, वाह भई शेखावाटी।।

'एक तो जोबन की गरमी, दूजी गरमी धूप की'।
'दोनूं, गरमी तनड़ो सै, ज्यूं छावं कूप में कूप की'।।
सेक्सपियर को सो लैजो, है कतो सलीको मांडण को।
ढोला-मारू की नोटंकी, रची भैरियो जाखल को।।
घमचिक धमचिक करै नंगारो, नंगारी तड़तड़ म्हाटी।
कद पौ-फाटै पतो न चालै, वाह भई शेखावाटी।।

अमर प्रेम रामू-चनणा को, रांजो-हीर निराला।
गोपीचंद-भरतरी बण कर, खेलै खेल बिलाला।।
खेल सोहनी-महावीला, अर जयदेव-कंकाली।
पूरी रात जगाय रिजावै, तखात तोड़ खिलाड़ी।।
दम खम को खेलो नोटंकी, अलबेली परिपाटी।
तमका टांग खिलाड़ी नाचै, वाह भई शेखावाटी।।


देसी खेल

आंगल्यां पर अटकण-बटकण, बीच गल्यां डाईंलो।
गोरगढ़ी लड्ढी-पड्ढी अर, हील-हील पाडीलो।।
च्यानण रातां गीड-खूडिया, उतर घोडी भीखा की।
आंख बंद में चिड़ी चुगो कर, टाट कुटै चोखा सा की।।
पालखी पर चढै कन्हैयो, लूण-क्यार की माटी।
बुद्धि और हुनर का खेला, वाह भई शेखावाटी।।

'मारदड़ी' मरदानू खेलो, कस मारै गिंडी की।
उछल बचायां जांध आपकी, खैर नहीं पिंडी की।।
आंटादार कसी गिंडी, कस जाली फूर मंढी पर।
चरमराट हौ उपड़ै जाली, लाग्यां पीठ ढकी पर।।
रल-मल कर सैनां सै एको, मार चटादे माटी।
अठे खेल में बदला निसरै, वाह भई शेखावाटी।।

बंट पालां में मंडै 'कबड्डी' मिल 'कुरकाईं डंडो'।
गुच्ची खोद' र खेलै, टाबर-टीकर मोई-डंको।।
कढै बावली चौपड़ बिछ कर, तलै हाथ दे पासा।
चर-भर चंगा चकरी-लट्टू, कोड्यां फोड तमासा।।
ल्हुक-मिचणी कर ढूडै-पकड़ै, खेलै खुड़ियो खाती।
धमा चौकड़ी गली गली में, वाह भई शेखावाटी।।

गली-गली में गुल्लीडंडा, मंडै हड़दड़ो न्यारो।
कस्टी पूर मढी गिंडी, मच खेलै दड़बो सारो।।
सरै सरै चढ़ गिंडी सै, लाठी की टणक उतारै।
लाठी पड्या स्यामलो धै, बो गिंडी बोच पछाड़ै।।
आमां-स्यामां डटै खिलाड़ी, रख ईटां पर लाठी।
रन कर पदतां होय पसीना, वाह भई शेखावाटी।।

चढ़ कर जीतै जिको पदावै, मारै कस कर टोरा।
एक पदावै बीस पदै, पदतां होवै मन दोरा।।
होय दुरगती पदबालां की, अधर-पधर पद नाचै।
दबड़क दुडकी भरै पदणियां, हड़बडाट सो माचै।।
सरका ठिया चौक दे पदबा, सूंसावै मच लाठी।
गिंडी बुचतां परै बठावै, वाह भई शेखावाटी।।

पैली फिरतो बेटी हालो, अब बपेट्यां की बूझ।
आखातीज रामनोमी का, साव रै अणबूझ।
पढ़ी लिखी लड़की ढूडैं, लड़़क्यां को बण्यो अभाव।
उमर पढाई काम चरित्तर, देख्यो जाय सुभाव।।
सासू सीतल पूत कमाऊ, मान घराणू थाती।
ऐ सै देखै बेटी हालो, वाह भई शेखावाटी।।

रचनाका रचै रचना, मां-बाप जनम का दाता।
मरण जीव को विधि हाथ में,बोही भाग बिधाता।।
दूजो चरण परण को, जी को पैलो नेग सगाई।
पैली रोकै बनड़ी नै, जद जावै छपा प्हराई।।
हरख चाव अर कोड मोकल,ो, जाय मिठायां बांटी।
बिन परमी रै जनम कंवारो, वाह भई शेखावाटी।।

सावो सिद गणेश की पूजा, आवाहन आबा  को।
याद करां गढ़ रणतभंवर, ड्योडी आय बिराजो।।
सात सुहागण चढ़ी मुंडेरै, टेरै थानै-राज।
गावै सांझी दिन में बनड़ा, बीयाणा परभात।।
होवै उछब मुंडेरा ा ं, जावै बेल-बधाई बांटी।
गीतां में परयोजना सगला, वहा भई शेखावाटी।।

तेल-बान-पीठी-उबटण, काकड़ -डोरा सै साथ।
नाल तमै जौ-छड़ी होय, घरवो कर पीला हाथा।।
मामो गोदी ले बनड़ा नै, पग सै तोड़ सरायां।
पाटै सै थापै ले चालै, चंदवो करै लुगायां।।
देई -देवता पितर-घिराणी, राती जुगो जगाती।
नेग चार मिल करै लुगायां, वाह भई शेखावाटी।।

बान-बंदोरा मेल-निकासी, पूज्यो जावै चाक।
भात भर्यो जावै पीड्यां सै, आ तो ऊंची बात।।
बड़ो पुरतान बड़ो पवित्तर, भाई-भैण को रिस्तो।
चुनड़ी औढ़ै बैण, उढ़ावै जामण जायो बीको।।
होय सुहागण बंस बधै, सुख पावै बेटी-नाती।
मां-बाप सुखी बेटी कै सुख, वाह भई शेखावाटी।।

घोड़ी पर कद चढ़ै बनो, मां बो दिन देख्यो चावै।
लाड-चाव चरवा दारां का, घोड़ी बाग गुंथावै।।
वारी फेरी, लूणाराई, कर उछाल रुपियां की।
छात आरता टेम टेम का, मिलै बधाई सां की।।
बाजै भेर रेजगी उछलै, भर भर मूंठी काठी।
छत्तर ताण नेवगी चालै, वाह भई शेखावाटी।।

कोरथ जगा कुंवारो मांडो, होय ढुकाव'र तोरण।
बरमाला की टेम बनी का, उठै झुकेड़ा लोचन।।
फेरा सजनगोठा सिरगूंथी, जूओ-फेर पाटो।
काजल-टीकी लाड सगा का, लाड चाव को रादो।।
रंगबरी कै बाद सगा मिल, बांथ भरै मिल काठी।
बेटी करै बिलाप बिदा पर, वाह भई शेखावाटी।।

समदर की सी लियां समाई, नाटर्यां धरम निभावै।
चाल पड़ै अणजाण डगर पर, दूधो नही लजावै।।
अंतस मायं पति परमेसर, साथ राम को नाम।
मन में चित में और सोच में, नहीं खोट को काम।।
लखण छतीस भावना ऊंची, घमी मांय की सांची।
न्योछावर कै मायं समरपण, वाह भई शेखावाटी।।


सगाई-ब्याव

पैली फिरतो बेटी हालो, अब बपेट्यां की बूझ।
आखातीज रामनोमी का, साव रै अणबूझ।
पढ़ी लिखी लड़की ढूडैं, लड़़क्यां को बण्यो अभाव।
उमर पढाई काम चरित्तर, देख्यो जाय सुभाव।।
सासू सीतल पूत कमाऊ, मान घराणू थाती।
ऐ सै देखै बेटी हालो, वाह भई शेखावाटी।।

रचनाका रचै रचना, मां-बाप जनम का दाता।
मरण जीव को विधि हाथ में,बोही भाग बिधाता।।
दूजो चरण परण को, जी को पैलो नेग सगाई।
पैली रोकै बनड़ी नै, जद जावै छपा प्हराई।।
हरख चाव अर कोड मोकल,ो, जाय मिठायां बांटी।
बिन परमी रै जनम कंवारो, वाह भई शेखावाटी।।

सावो सिद गणेश की पूजा, आवाहन आबा  को।
याद करां गढ़ रणतभंवर, ड्योडी आय बिराजो।।
सात सुहागण चढ़ी मुंडेरै, टेरै थानै-राज।
गावै सांझी दिन में बनड़ा, बीयाणा परभात।।
होवै उछब मुंडेरा ा ं, जावै बेल-बधाई बांटी।
गीतां में परयोजना सगला, वहा भई शेखावाटी।।

तेल-बान-पीठी-उबटण, काकड़ -डोरा सै साथ।
नाल तमै जौ-छड़ी होय, घरवो कर पीला हाथा।।
मामो गोदी ले बनड़ा नै, पग सै तोड़ सरायां।
पाटै सै थापै ले चालै, चंदवो करै लुगायां।।
देई -देवता पितर-घिराणी, राती जुगो जगाती।
नेग चार मिल करै लुगायां, वाह भई शेखावाटी।।

बान-बंदोरा मेल-निकासी, पूज्यो जावै चाक।
भात भर्यो जावै पीड्यां सै, आ तो ऊंची बात।।
बड़ो पुरतान बड़ो पवित्तर, भाई-भैण को रिस्तो।
चुनड़ी औढ़ै बैण, उढ़ावै जामण जायो बीको।।
होय सुहागण बंस बधै, सुख पावै बेटी-नाती।
मां-बाप सुखी बेटी कै सुख, वाह भई शेखावाटी।।

घोड़ी पर कद चढ़ै बनो, मां बो दिन देख्यो चावै।
लाड-चाव चरवा दारां का, घोड़ी बाग गुंथावै।।
वारी फेरी, लूणाराई, कर उछाल रुपियां की।
छात आरता टेम टेम का, मिलै बधाई सां की।।
बाजै भेर रेजगी उछलै, भर भर मूंठी काठी।
छत्तर ताण नेवगी चालै, वाह भई शेखावाटी।।

कोरथ जगा कुंवारो मांडो, होय ढुकाव'र तोरण।
बरमाला की टेम बनी का, उठै झुकेड़ा लोचन।।
फेरा सजनगोठा सिरगूंथी, जूओ-फेर पाटो।
काजल-टीकी लाड सगा का, लाड चाव को रादो।।
रंगबरी कै बाद सगा मिल, बांथ भरै मिल काठी।
बेटी करै बिलाप बिदा पर, वाह भई शेखावाटी।।

समदर की सी लियां समाई, नाटर्यां धरम निभावै।
चाल पड़ै अणजाण डगर पर, दूधो नही लजावै।।
अंतस मायं पति परमेसर, साथ राम को नाम।
मन में चित में और सोच में, नहीं खोट को काम।।
लखण छतीस भावना ऊंची, घमी मांय की सांची।
न्योछावर कै मायं समरपण, वाह भई शेखावाटी।।


गालियां

गाल-सीठणा ब्याव-चाव में, छेड़ छिड़ै जड़ताना।
सुण मन होय गुमान सगै नै, उपरा-उपरी नां नां।।
मीठी गाल हुलास जगावै, रग दुखती रिस मन में।
घणी सूगली बैरी दे, सुण आग लगै तंतन में।।
फागण में फागणियां जड़, फागड़दां की चंग बाजी।
रही-सही तेरी की निसरै, वाह भई शेखावाटी।।

रामार्यां मूंडी टूट्या नाड़ी टूट्या मरज्याणा।
जाये काठ्या करम चांदड़ा, फागड़दा बल ज्याणा।।
करम ठोक कड्ठी बिगाड़, रै मर जाई का काड़।
जस्सी लागै ठेस कालजै, बस्सी निसरै गाल।।
घार विचार निकालै कोई, जद उठ ज्यावै लाठी।
गालां को सरताज रांडका, वाह भई शेखावाटी।।

मालजादी करमनाचड़ी, कुलखणी मरज्याणी।
नकटी बूची फागड़दी, नागड़ती गैली काणी।।
खसम-धणी का सस्ता फिकरा, मेरी सोत छिनाल।
बिना घरानै की लड़ जड़दे, मोट्यारां की गाल।।
मर मांगमां ऊत छाकटी, जा-ए' कस्सम काटी।
'रांड' गाल को चिणखो लागै, वाह भई शेखावाटी।।

सासू का सुसरा का फिकरा, साली का सोतण का।
कान कुंवारा फिरै बिचारा, रिस्ता सै फोकट का।।
फेरां की मिज्जां कोनी, पण बै साला कह बोलै।
स्यामलो भी बुरो न मानै, जरा न बात नै तोलै।।
हलको पणो दिखावै बक, हलकी बोली का आदी।
तंग नजरियो कुछ लोगां को, वाह भई शेखावाटी।।


भोपो-भोपी

गीत पवाड़ा फड़ गूंजै घण, रावण हत्थो साज।
गजब गलो भोपी को, भोपो पगां मिलावै ताल।।
बिरदावली गुंथी गीतां में, सुर ऊंचो'र सुरीलो।
नाच गावती भोपण, भोपो टेर'र लुलै रंगीलो।।
लम्बी टेर कालजो बींदै, कानां पड़ै सुहाती।
भोपो-भोपी अलख जगावै, वाह भई शेखावाटी।।


माताजी को भोपा

कमर लटकतो मोटो घुंघरु, घोडां भिड़ा बजातो।
माताजी को भोपो तसलो, डांडी सिरै घुमातो।।
डेरु तिरसूल कोरड़ो भागो, रस्सो कस्यां कमर में।
घुमा उछालै तसलो फिरतो, बोचै थाम अधर में।।
खाय सटा-सट मार कोरड़ो, धन है ई' की काठी।
चाल भवानी भोपवो आयो, वहा भई शेखावाटी।।


लुहार-गाड़िया

टाबर-टीकर बकरी -बर्तण, लो-लक्कड घण -ऐरण।
चुल्हो-चाकी गुदड़ो-काठी, ठियो धूंकणी ठैरण।।
बूढो बलद पुराणू गाडो, फेंट्यो सिरै लपेटयां।
फाकामस्त लुहार घिरस्ती, गाडै मांय समेट्यां।।
कद-काठी की चपल लुहारी, घण बरसादै म्हाटी।
माच दड़ादड़ होय मजूरी, वाह भई शेखावाटी।।

राखी आन तज्या घ-माचा, खून खरो रग रग में।
अब तक लियां धिरस्ती डोलै, रंग्या प्रताप कै रंग में।।
सगलो देस सुतंतर होयो, अर मेवाड़ो सागै।
सदियां सै लोहार गाडिया, अब तक भरम्या हां़डै।।
घर बासै ना फिरै गाडिया, गांव गुवाड़ां हाटी।
रिस्ता-नाता करै जात में, वाह भई शेखावाटी।।


घुमन्तु जातियाँ

बणजारा ढ़ोली नट ढाडी, कानबेलिया सांसी।
बदलयो ना परिवेस पुराणू, बोली अलगी राखी।।
मिलै आसरो आसमान को, डेरा गेर जंगल में।
खच्चर टट्टू ढोल कूकरा, मुर्गा-मुर्गी संग में।
झोली टंग्या जिलफ लटक्या रै, झुकी रुखालै जांटी।
खाट-गुदड़िया खच्चर ढोवै, वाह भई शेखावाटी।।


कानबेलियो

कानबेलियो निडर खिलाड़ी, राखै सांप भयंकर।
खोल पिटारो पूंगी साधै, फण फैलावै विसधर।।
शिव को भक्त उपासक शिव को, नाथां को अनुयाई।
ढ़क्या पिटारा कावड़ लटकै, नागां तणी कमाई।।
काला नाग रंगत बंसी, कांधै कावड़ सरपांटी।
बाज खेलतो हवा बांध दे, वाह भई शेखावाटी।।


बिणजारो

घर कूचां घ मझलां चालै, बरसां बरस कटै रै।
घर-आंगण परणी, संगल्या चित, हियो तलफतो रैवै।।
बिजण करै लोभी बिणजारो, घर कामण बलिहारी।
साफा-चुनड़ी को सो जोड़ो, बिणजारो-बिणजारी।।
गीतां सुणतो लख बिणजारो, कोी विरहण की पाती।
विरह भोगतो खुद पंथीड़ो, वाह भई शेखावाटी।।


पणिहारी

जाली-झबलादार इंडूणी, टीकी को रंग गैरो।
झीणै घूंघट नैण झांकता, आंख्यां काजल पैरो।।
सांचै ढली सुघड़ कद-काठी, सिर पर दोगड़ भारी।
अधर दबायां दातां मालै, नाड़-कमर खम न्यारी।।
झबलो-चोटी सरप गुंथ्यो दो, पिंड़ली छेड नचाती।
लचक चाल में दोगड़ रैतां, वाह भई शेखावाटी।।

चटख-बंधेजी चुनड़ी सोवै, मन सूओ मंडरावै।
दोगड़ ल्याती नार पातली, बिच्छुडा छमकावै।।
चाझील गुंथी कसुमल ईंडी, संग लुम्बां की लटकण।
तिरछी घड़लो कमर सम्हायां, आंख्यां नै मटकाती।
बे-परवा अल्हड़ पणिहारी, वाह भई शेखावाटी।।


कठपुतली

नाड़ कमर लचकाती, मुखड़ो घूंघट हटा दिखाती।
अधर नाचती कठपुतली, लोगां नै हंसा रिझाती।।
जुध पटकण तलवारां-बाजी, खेल दिखावै सगला।
हुनर आंगली धागां को, मुख पीपाड़ी दे जुमला।।
तेज्यो मरगो और बजैगी, ढोल पीटतो काजी।
कठपुतली को खले बिलालो, वाह भई शेखावाटी।।

अस्तर-सस्तर बाना धार्यां, डाडी मूंछ संवारयां।
हाथां ले तलवार काठ की, राव सजै दरबारां।
छैलो आवै राजा जद सै, खड्‌या खमां दरसावै।
तरधन होय, नरतकी नाचै, घूंघट हटा रिझावै।।
नखरो करै नवेली को सो', लैगै नै फटकाती।
रुंझुन रुंझुन कठपुतली की, वाह भई शेखावाटी।।


जोगी

भगवा पैरै बानू जोगी, लटकायां रै झोली।
सारंगी कातार सधेड़ा, गूंजै घर घर पोली।।
रमतो जोगी गावै भरतरी, भिछ्या घालै पिंगला।
मन बैरागी आंख्यां भरले, कानां पड़तां जुमला।।
छेड़ मिजाजण सारंगी नै, प्यावै राबड़ी खाटी।
सुण टाबरिया राजी होवै, वाह भई शेखावाटी।।

कुम्हार

मथ माटी नै मार थप थपी, जमा चाक पर लूंदो।
घुमा डांड सै चाक, बणातो बरतण हाथां कुम्भो।।
मूण घड़ा बरुआ घड़ा कुम्भो, चिण ढिक ढेर लगादे।
बेमाता की घड़त मिलै ना, यो इकसार बणादे।।
ले डोरो कर नालो मोड़ै, खाय पलोथण माटी।
बिना जीप जापो जणजावै, वाह भई शेखावाटी।।

माट मांगला मूण ढ़ोपसा, गुलक तूतिया गमला।
दिवा डबीली झाओ झांवरा, कुंजा कुण्डा घमला।।
कलस कुंडारा झाल सुराईं, कुल्लडियो चप्पणियों।
बेमाता को धरम घड़ण को, ओ' खट पेट भरणियो।।
मथ माटी नै घड़ै नमूना, भर ल्हार ल्या माटी।
कुम्भो आओ लगा पकावै, वाह भई शेखावाटी।।


माटी का खिलौणा हाली

सिरपर पर ऊंच खिलौणा साह्सण, हेला देवै थम थम।
ल्लेयो ये टाबरियां खातर, हाथी घोड़ा टम टम।।
घूघरा'र पपड्या लेल्यो, सिट्टी रोटी साटै।
दड़बड़़ दौड़ टाबरी भाजै, रोटी ले ले आगै।।
भूख पेट की हुनर हाथ को, कारज सारै माटी।
मन राजी गोपाल बाल को, वाह भई शेखावाटी।।


अन्य कारीगर

चुड़ला बुणै लाख का लाखां, मणियारी मणियार।
मोची बुणै मोचड़ी फबती, आंगल को रै' माप।।
गैणा घड़ै सुनार सोवणा, जड़ै जड़ाऊ मीनूं।
खाती लुहार व कुम्भकार को, न्यारो ई तखमीनूं।।
लट्टू फिरकी पाग घड़दे, चकरी चढ़ा खरादी।
घमा सोवमा रंग चढ़ादे, वाह भई शेखावाटी।।


गहन

हंसली हार हमेल गलसरी, मट्टर माला कण्ठी।
मादलियो लड़मूर्ति कालर, आड गलै पर सजती।।
गैणांसजी सुघड़ नारी, ज्यूं पडै चांद को पलको।
नख-सिख सोभा आभूसण, रै रुतबो घर को कुलको।।
हाथां पर सोवै हथफूली, कमर कर्घनी-भाती।
चूंप चओढ़ी दातां मुख सोवै, वाह भई शेखावाटी।।

तकमा टड्डा बाजूबंद, लग अणत पछेली ऊंची।
छल्लो छाप-मूंदड़ी कंगण, चूड़ी पाटला पूंची।।
लूंग सुर्लिया कर्णफूल, दप कुण्डल कान लटकता।
हार जड़ाऊ गल गलपटियो, आंख्यां देता पलका।।
सीसफूल सिर नकी-बोरलो, मांग टीको पाटी।
सरी सांकली झालर फीणी, वाह भई शेखावाटी।।

मंगल सूत्र झालरो खैंचो, कान लटकती बाली।
छैल कड़ो सूतड़ो टेवटो, सज पैरै-रुपाली।।
रखढ़ी जकड़ी कड़ा पैजणी, पांव पगां को मेल।
पोली छल्ला बिछिया मच्छी, कड़ी-कड़ा पाजेब।।
कांटो रूप निखारै, नक चढ़ नथली नाच दिखाती।
गैणां लदपद, रै लाडेसर, वाह भई शेखावाटी।।

हीरा मोती माणक पन्ना, नीलम पनड़ी लरजो।
लहसुनियो पुखराज कहरवो, मूंगो मोगी-बसरो।।
गोदंती गोमेद हकीकी, फटिक रतन-चौरासी।
दुनयिां अतरा सुण्या न देख्या, अठे ठिकाणां पासी।।
भागण और सुहागण पैरै, गैणां की परिपाटी।
नारी को आभूसण साजन, वाह भई शेखावाटी।।


सुहागण

मांग भरै कुम-कुम सै, माथै बिंदिया रै कुम-कुम की।
बीच लटकतो मांग टीको, आंख झरी काजल की।
चुनड़ी चुड़लो होठां लाली, अर सोला सिणगार।
मंगल सूत्र पह्रावौ सज-धज, सै सुहाग कै लार।।
रचै घणी घुलवां रंग मैंदी, हाथ-पगां लग भाती।
अमर सुहागण दर की भागण, वाह भई शेखावाटी।।


पहरान

बिना चूनड़ी भात पुरै ना, सोह्वै तील बरी की।
लैरियो'र कुरती रजपूती, जम्भर बणै जरी की।।
फबै पातलो सधै चालखो, मेखलियो मर्जी को।
पीलो पोमचो ओझरियो, अर घाघरो जरी को।।
चढ़ी कांचली बदन मसोसै, उतर्यां सांपण राजी।
बदन कसी नारी कै सोवै, वाह भई शेखावाटी।।

धोती ऊपपर कुरतो सोवै, राखै लांग संवारी।
बंग गलै को कोट सोवणो, पह्वाो मोट्यारी।।
पगड़ी पेचो टोपी साफो, तुररादार रुमाल।
कांधै ऊपर डुपटो राखै, सज्या धज्या मोट्यार।।
चूड़ीदार पजामो अचकन, शेरवानी भाती।
बींद बमै जद बागो पैरै, वाह भई शेखावाटी।।


बेल-बूंटी

माल गुलीन कांगणी तारा, कलाबूत अर कंदलो।
बेल बूंटी भान कराती, घमै हलहलै मन को।।
फुनगांदार रेसमी नाड़ो, कली कली जुड़ दल्ला।
बूंटीदार घाघरो खिलतो, बेल चढ़ी रै-पल्लां।।
सांचै माल जड्‌यो ओझरियो, सिर ढक ढकतो गाती।
मुखर बंधेज आप मुंह बोलै, वाह भई शेखावाटी।।


गोटा

बांकड़ो बीजियो डोरियो, लम्पी फूल कली को।
गोटो चढ़ा लगावै तारा, बेस बणै मर्जी का।।
पैर पटोलो ओढ़ दुरंगो, गीतां निसरै कामण।
घेर घुमेर घाघरो फबतो, सजी-धजी सै साथण।।
साड़ी फबतो रंग लै' गैं को,पटली परत लुभाती।
पैर ओढ़ को सुघड़ करीनूं, वाह भई शेखावाटी।।


पतंग-बाजी

चरखी पकड़ै जगियो, भोल्यो पतंग छोड़बा जावै।
छात-डागलां चढञ कर तेज्यो, ठिमकी दे' र उडावै।।
गुड़त चालताडिग डिग उड़ता, रंग रंगीला कनखा।
छोटा-बड़ा अठे सब रसिया, चरखी डोर पतंग का।।
लम्बी गुड़त आनयिों कनखो, हवा चलै जद खाती।
अड़़ताई कटज्याय सामलो, वाह भई शेखावाटी।।

एक बजारा ढूंढै गाहक, दूजी उड़तो कनखो।
बड़ो हीन पेसो दोन्यों को, गणिका और पतंग को।।
काणां बंधी ताड़ सहती, खा जरका ठिमकी का।
नथलील पैर्यां फिरै ढूंढ़ती, पतंग बापड़ी कनखा।।
उड़ती-गुड़ती लड़ै पैच, गैरां संग जावै काटी।
सरै बजारां लूटी जावै, वाह भई शेखावाटी।।

कन्नी बिना कुगैलै चालै, ढील पड्यां ले झिजको।
चेपो खा स्याणी बण चालै, फाटी करै फचड्यो।।
लागै हवा जमानै की, जद दड़ा छंट हो ज्याय।
ले डूबै कोई तिलकदार नै, सागै गुड़त खुवाय।।
पट्टीदार कांगसी धारी, सब गुड़ती का साथी।
कण्ठीदार लटकता देख्या, वाह भई शेखावाटी।।

आओ कोई लड़ो पेच, सब नै ओसर की समता।
जात धरम अर ऊंच नीच को, भेद न जाणै कनखा।।
बड़ा आनियां काट एकली, करै घोषणा-कनखी।
नारी नै आजाद करो अब, है मांग युग-युग की।
कनखां कै मीना बजार में, जाय पतंकां काटी।
मन की घुंड़ी निसरै पेचां, वाह भई शेखावाटी।।

कनखो-डोरो बात नई जाणै, धरम-जात कै रंग की।
सिखरबंद गुम्बद सै ऊंची, होय उड़ान पतंग की।
स्हार-काट श्याम समसू की, राम-अब्दुल का लम्बा।
भांत-भांत की जात-जात की,लड़ती पेच पतंगां।।
कटै ापकी-पुजै घणेरी, काटणिये की लाठी।
प्यार-मोहब्बत में गहराई, वाह भई शेखावाटी।।

उमंग भावना नज की लेवै पतंग-डोर को रुप।
मन पंछी नभ में मंडरावै, लेआनंद अणूप।।
स्हार-काट संकोच सोच को, लम्बा उड़ै हुलास।
मन की पतंग भाव को धागो, उड़ चालै आकास।।
पेच लड़ा कर धुलै परस्पर, हेलो दे म्हे काटी।
कटै एक तो चढ़ै दूसरी, वाह भई शेखावाटी।।


जीव-पशु-पक्षी

कांव कांव सै चैन उड़ै, बेचैन होय मन जीव जड़ी।
उडरै कागा कंत मिलै, घम काग उडावै खड़ी खड़ी।।
सोनै चांच मंढांऊं कागा, अतरो काम काम कर्यां बाल्या।
आव ढूंड ले साजन नै, है नैण नक्स तीखा बांरा।।
हिवड़ै को फलसो ओढालै, ले कर आटी-पाटी।
सुपनै में आ पियो जगावै, वाह भई शेखावाटी।।

नाड़ उठावै टोड़ कागलो, चील झपट्टो खावै।
खुड़ियो खाती चांच भिड़ातो, लीलटांस दिख ज्यावै।।
टीटूड़ी टें-टें कर बोलै, तीतर और बटेर।
पलक झपकतां रंग बदलै, किरकाटं करै ना देर।।
नोलियो बावड़तो-जा, बिलबावण खाती आंटी।
बड़ा निराला जीव अठेका, वाह भई शेखावाटी।।

मिरचां की बाड़ी में मोर्यो, छिपकर मारै चांच।
छपाल कर तीतरियो करदे, खरबूजा कै टांच।।
साबत दैंगी सूओ झटकै, चिड़कल्यां मंडरावै।
अठे लड़ाई पेट पेट की, करसो साट बजावै।।
हलकारो सुण डार उडै, रै सा'ट गुंथेड़ी काठी।
गूंज सुणै कोसां कै अन्तर, वाह भई शेखावाटी।।

सांतिदूत आकास चीरतो, छोर नापतो नभ को।
भोलो भोल खरो कबूतर, काम करै कासिद को।।
बिना फेर हर पल को सागो, प्यार चीज भीतर की।
तीतर पंकी चाल तीतर, टिलु-टिलु तीतर की।।
ठक ठक चूंच भिड़ातो लक्कड़ फोड़ो खुड़ियो खाती।
सिरै किलंगी राजा की सी, वाह भई शेखावाटी।।

देखण जोग टिटुड़ी की, मतवाली चाल'र थमबो।
घुरसालो बुणबो बय्या को, देख'र होय अचम्भो।।
नखराली बारै कम निकलै, सोन चिड़ी घण दंभी।
मुरतब दियो मोर नै सुरसत, छत्तर और किलंगी।।
भोर सांझ सुर कोयल साधै, बैठ डाल पर म्हाटी।
सूंसातो सिकरो पड़ मारै, वाह भई शेखावाटी।।

रुपबंसती सिरस्यूं पालै, थिरक हवा सै प्रीत।
तितल्यां की फैसन-परेड़ अर भंवरा दे संगीत।।
रितु बंसत मदमाती सी, रस रुप गंध बरसावै।
कुदरत को जादू चढ़ बोलै, धरा-दिगंत मुस्कावै।।
मादकता घुल मिलै हवा में, सौरभ देवै माटी।
सुत अनंग आ रास रचावै, वाह भई शेखावाटी।।

डांगर ढोर अड़ावै चरता, रेवड़ ऊंट बणी में।
धीणोड़ी रै ठाण बंधी, फिर ठाल चरै जोड़ी में।।
गाय-सांड चूणओ-गौसाला, धरमादो पूलां को।
दलियो नाज कबूतर कीड्यां, सीर अठे धूणां को।।
बड़-पीपल में दोगड़, चुग्गो जीव जिनावर जाती।
सदा हरी जड़ धरमादै की, वाह भई शेखावाटी।।


ऊंट

रुंग्याली में ल्हैर बैठती, अर आंटीली पूंछ।
ऊबा कान सधी रै गरदन पोतदारड़ो ऊंट।।
दौड़ हवा सै बात करै यो, ऊबो करै उगाली।
मरु-वाहन पर हाल नलागै, दो दो पीठ सवारी।।
मूरी पड़ै नकेलां सटकर, कूंची जावै-पाटी।
म्होर आसण डोर पागड़ा, वाह भई शेखावाटी।।

चाहे जतरो जोर कराल्यो, ओटा कोनी देवै।
गुड़ फिटकड़ी दियां ऊंट की, दूर हरारत होवै।।
लम्बी नाड़ पैतरा देतो, अयां उड्ठयो जावै।
ओलम्पिक में धावक जइयां, बाजी जीत'र ल्यावै।।
बदल्यां आंख धणी नै दाबै, काम न आवै लाठी।
दूजो ऐब चोर चढ़ बपागै, वाह भई शेखावाटी।।

लम्बी मजल पार कर लेवै, बिन पाणी की घूंट।
कई दिनां रै ज्याय तिसायो, रेगिस्तानी ऊंट।।
बड़-बड़़ करतो जाय बुहाणै, बैठ्यो करै उगाली।।
जांटी कर खुल्लै चरतै की, करणी पड़ै रुखाली।।
सरपट चालै टीबां ऊपर, होवो कतरी माटी।
मस्ती आयां करै फुरड़क्या, वाह भई शेखावाटी।।


गधो

मझ दोपारी गलो खंगारै, सोया मिनख जगावै।
खुरिया तप खरमस्ती सूझै, दबड़क दौड़ लगावै।
लड़त लड़ै लात-बटकां सै, गधा खाज मसहूर।
बाड़ डाकता फिरै दिवाना, पूंचै कोसां दूर।।
बायो भलो कुसूणो दैणो, डरै उठायां लाठी।
यो असवारी सेडल मां की, वाह भई शेखावाटी।।

लधै घणो लाचर गधेड़ो, खुल्लो लड़ै दुलत्ती।
सुर ऊंचो ले मार फदड़की, करै आपकी जच्ची।।
कर कुरड़ी पर लोट-पलेटा, सुर टेरै मस्तानो।
खर फागण को अलल बछेरो, बैसाखी परवानो।।
रींकै जद मिल दो दीवाना, लगै भली पो-फाटी।
गरदभ राज काट नेतां की, वाह भई शेखावाटी।।

राजनीति में खाज खोरणो, हुनर बड़ो अलबेलो।
नेता खोरै लुका-छिपी कर, गधा रोक कर गैलो।।
हींक दुलत्ती लोट-पलेटा, भर बटका-पलमेडा।
भ्रस्टाचारी जोर बैठगा, ऊभा तकै गधेड़ा।।
बिन माइक लाउडली बोलै, खुरिया तपतां माटी।
गधो फेर भी भ्रस्ट नहीं है, वाह भई शेखावाटी।।

गैस पेट्रोलियम गधै नै, सूंग्या नहीं सुहाया।
कदे न जाई-जामतां नै, कोटा अलाट करवाया।।
'डंकी' 'आस' खिताब गधै का, समझो क्रेडिट कार्ड।
विस्व बैंक पापूलर कमती, गधो विस्व सरताज।
गर्लफैंड रै आस-पास, पण डरै टूर पर जाती।
नकल कैर नेतां की जुलमी, वाह भई शेखावाटी।।

भूखां मरतो पड़ै कड़कड़़ा 'चारा काण्ड' रचातो।
'झाड़' दुलत्ती 'खण्ड' कर, गर्दभ उत्पात मचातो।।
'गधा' हवालो बात बात में, गहरी साख गधै की।
यो दुःखराम दूबलो पर सुख, देखो बात मजै की।।
जेल तिहाड़ 'पालिका फाटक', गदर्भ अक्सर काटी।
'अग्रिम बेल' कदे नहीं मांगी' वाह भई शेखावाटी।।


घूघू-कोचरी

देर रात को राजा घूघू, बड़-पीपल पर डेरो।
चसती आंख बिलाई कीसी', राकस को सो' चेरो।
छात डागलां को पैरो, आदत सुमार हजरत की।
दिन भर सोवै, भर खर्राटा, रीत निसाचर कुल की।।
रात्यूं लड़ै कंगूरां कंजर्यां, आदी कै चर्राती।
आदत सै लाचार कोचर्यां, वाह भई शेखावाटी।।


खटमल-डांस

जनम जनम का मुकर कसाई, मरै खून का प्यासा।
सोवणदे ना भरै चूंटक्या, खटमल-डांस जरा सा।।
ग्यानै ना ऐ ढोर-आदमी, पिलंग गिणै ना जाजम।
खटमल राजदरोगो, मच्छर मनमर्जी को हाकम।।
पकड़ करै पिस्सू चिप काठी, डंक डांस की लाठी।
दोनूं खूनी दाफड़ पाड़ै, वाह भई शेखावाटी।।

खटमल जुलमी बड़ो मस्करो, सासू गिणै न सुसरो।
ठोड-कुठोड गिणै ना बैरी, कठखाणो अर नुगरो।।
करै मनावण गौरी खटमल, मत पिवजी नै ख्यारै।
पीहर सै तेरा कड़ा गोखरू, ल्याऊं छांट घड़ा रै।।
रस की रात रसीली म्हे, मिलकर संग नैणां काटी।
अब खटमल क्यूं दुखी करैतूं, वाह भई शेखावाटी।।

घुर्सली, चमचेड, बागल, लीलटांस, कमेड़ी

घुर्सली, चमचेड, बागल, लीलटांस, कमेड़ी
बिना लगावण गिटै घुर्सली, कीट-पतंग उकेर।
दिन में सून-अंधेरो देखै, चमचूंदी चमचेड़।।
भर दिन ऊंदी लटकी बागल, चेतै संज्या सातूं।
खायां फेर हगै मुख डाकण, फिरै हांडती रात्यूं।।
लीलटांस पाखां पर मंडवा, रामरमी ले ज्याती।
मोडी-मथरी जात कमेड़ी, वाह भई शेखावाटी।।

शूरवीर

ज्यूं-ज्यूं खाी गोली तन पर, बिफर्यो घमओ सवायो।
तहस नहस बंकर नै कर, पल्टण को कर्यो सफायो।।
सिंह सपूत पीरू सत्रु पर, बिजली बण पड़ गाज्यो।
परमवीर को दे खिताब, भारत सरकार नवाज्यो।
भर्य पड्या जां बाज फौज में, सूरा निपजै माटी।
सूरां की सिहां की धरती,स वाह भई शेखावाटी।।

आतंक्यां नै सबक सिखावै, रण बंका रण हेटा।
काल बणै दुस्मन कै सिर चढ़, ई धरती का बेटा।।
विश्व शांति अर मानवता को, जग न ैदे संदेस।
राष्ट्र संध को परचम लेकर, घूमै देस विदेस।।
जूझ मरण का पाट पालणां, लाजै कदे न माटी।
लोरी दे मायड़ बचपन मं, वाह भई शेखावाटी।।

गजगामण का गजमोती, गबरिये की तलवार।
रिपुदल में बा पलका दे, सेज्यां का ऐ सिणगार।।
सागै अठखेल्यां, रंगरेल्यां, गलबाह्यां का दौर।
रण खेतां भिड मरै मौत सै, असा साहसी लोग।।
लाड-चाव का दौर अठै, रण समसीरां टकराती।
बलिहारी ई जां-बाजी की, वाह भई शेखावाटी।।

झिरमिर झिरमिर मेहो बरसै, मोरां छतरी छाई।
कुल में हो तो आव सुजाना, फौज देवरै आई।।
औरंगबेज धरम हत्यारो, पाखंड रच्या फरेबी।
मुर्ती भजंक आप गैल रै, फौज खंडेलै भेजी।।
छापोली को सेरा सुजानो, बदस्या में कर खाटी।
धर्म हेत अड़गो नर नाहर, वाह भई शेखावाटी।।

तेवर देख दिवानां का, मुर्ती भंजक घबरायो।
सुबरण कलस दिराद्यो खाली, संदेसो भिजवायो।
अड़ कर वीर लड्या मतवाला, जूझ्यो वीर सुजान।
कलस सिरां का दिया लिया, अर जुध होयो घमसाण।।
अरम सुजानों छापोली को, रंगी खून सै माटी।
अठे आन का पाठ पालणां, वाह भई शेखावाटी।।

जन-माणस में जगां बणाई, गूंज्या गीत पवाड़ा।
डूंग-जवाहर जी सूं' डरता, ब्रिटिस राज रजवाड़ा।
धाड़ै को धन बांट्या करता, लूट सदा धनवानां नै।
रोबिन हुड़ शेखावाटी का नामी ऊंट सवारां में।।
बेटी-भाण बणी नै बगसी, बरत्यो भेद न जाती।
छूछल-भात कदै नई छूपो, वाह भई शेखावाटी।।


हिन्दू-मुस्लिम एकता

हज रोजा कलमा नमाज, सिजदा खैरात जकात।
पांच सीरतां बंदै की, अर आयत इरसादात।
दुआ मुराद बंदगी मिन्नत, धोक मजारां दरगा।
नेकी करै मोहोब्बत पालै, बदी बदै न सक सुब्बा।।
निरगुण निराकार परमेसर, ना अल्ला की जाती।
हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई, वाह भई शेखावाटी।।

रामदेवजी पीर ओलिया, मुस्लिम धोकै न्यारा।
हिन्दू पूजै सकरबार सा, नरड़ जाय परबारा।।
ईद दिवाली परब मुबारक, ना रै किन्तु परन्तु।
मंचित अठे रामलीला, मिल करै मुसलमां हिन्दू।।
इस्लाम शांती सलामती,, है धर्म समरपणवादी।
अठे मुरादी सब ख्वाजा का, वाह भई शेखावाटी।।


ठगी-जूओ सट्टो

भूत भूतणी रलै, कदे लागै जिन्नां की फेटं।
गण्डा-ताबीज उतारा-झांडा, दे उस्ताद अनेक।।
टूणा-टामण जादू-मन्तर, चौकी-मूठ निराली।
ठग-बाजी फिड़का-बाजी तो, सदा चलाी चाली।।
बूझा निसरै कदम कदम पर, लोग पढ़ावै पाटी।
घणी आस्था पान-पान में, वाह भई शेखावाटी।।

घड़ियो फीचर आकर गट्टो, हारजीत को खेल।
बात बात का सौदा होवै, हो चुनाव किरकेट।।
ई की टोपी बी कै सिर, दे गाय तलै भैस्यां का।
बड़ा अजब रुजगार, पाटिया उथलै ऐ घरकां का।।
भला भला जूआ का आसिक, पपलू-बाज बराती।
सकुनी कै भी मात लगावै, वाह भई शेखावाटी।।


संत महात्मा

चंचलनाथ तप्या टीबै पर, मान झुंझणु पायो।
इमरतनाथ अमरा योगी, मन्नाथी पंथ फैलायो।।
ज्योतिनाथ सुभनाथ तप्या, हा नवानाथ सिंद संत।
श्रद्धानाथ भरतरी आया, उजलो करबा पंथ।।
बैजनाथ परबचनी सांचा, रतीनाथ की ख्याती।
जोत जगावै नाथ नरहरी, वाह भी शेखावाटी।।

नाथ योग की तेज सिद्धी ही, तपस्या बल हो साथ।
सिद्ध गणा अवधूत संत हा, बाब इमरतनाथ।
लोग अचम्भो कर्यो योग को, करतब देख सुरुका।
घणा चमत्कारी चेला हा, चम्पानाथ गुरु का।।
सहज योग को सार थरपगा, योग साधना बांटी।
सरल भास योगां को करगा, वाह भी शेखावाटी।।

सुबरण हो पग कान गलै में, सोनै का हा दांत।
मन सोनै सो तन, सोनै सो, सोनै बरणी बात।।
खाता खूब खुवात छक कर सिद्ध को हो भोग।
भूखां मरे करम का मांदा, भूखो क्यां को योग।।
साधु देई गुरकिपा सै, बींद बण्या रह काटी।
बचनसिद्ध हा नवावनाथ जी, वाह भई शेखावाटी।।

कलजुग का केवट सांचा, आनंद ग्यान कै साथ।
सांप्रत ही श्रद्धा सरीर ले, बाबा श्रद्धानाथ।।
बांट्या करता प्रेम, लुटाया सदा अमित आनंद।
साचा हा शेखावाटी का, पुरुष-विवेकानंद।।
सात जनम साधु सरीर ले, भली भलाई बांटी।
अबकै बूंद रली सागर में, वाह भई शेखावाटी।।

इच्छ्या ग्यान' क्रिया की सीढ़ी, शिवगोरख को पायो।
सुक्छम-थूल पिछाण्या तप कर, परम तत्व जाग्यायो।।
मथ भीतर जाण्यो असीम नै, जाणी गति परम की।
सहज संग योगी सरधालु, श्रद्धानाथ यसस्वी।।
पकड़ी पगडंडी दुरगम, गुरु पदचिन्हां सै पाटी।
खोल दरुजो भक्ति भाव को, वाह भई शेखावाटी।।

इड़ा' र पिंगाल नै बस करतां, चेतै नार सुसुम्ना।
गगन-मंडल में घलै हिंडोला, इमरत बसैं झरणां।।
ब्रह्मरंध्र में रमतो भंवरो, खेलै अस्ट कमल में।
श्रद्धानाथ जगाय कुंडली, तार जोड़ता पल में।।
समता समरसता' र सहजता, पूंचवान की थाती।
शान्तिद्वार पथ परमानंद को, वाह भई शेखावाटी।।

जोड्या राख्या तरा गुरु सै भद समझ संचार्यो।
शिक्षक को बानो मन भिक्षक, शिक्षा बांट उतार्यो।
योगय ध्यान केन्द्र साकर्यो, चेलोग गुरु इच्छया पर।
सपनो साचो कर्यो गुरु को, आबू परबत जाकर।।
ग्यान-कोष निरमाण साधना, करै पंथ की ख्याती।
बैजनाथजी पचम थाम्यां, वाह भई शेखावाटी।।

कानां इमरत पान करावै, रस वाणी संतन की।
'बात जरासी' परत खोलती, तह भीतरलै मन की।।
रतीनाथजी माया मन की, बा'रखड़ी नै समझी।
माया खाया लोट-पलेटा, थम कर पगां लिपटगी।।
पर उपकारी मंती संत की, सरु साधक बैरागी।
'रति' नाम में गुण का गाडा, वाह भई शेखावाटी।।

'बऊ' गऊ-गौसाला लंगर, मंदर शिव गुरुवां का।
बाग बगीचा भवन सरोवर, नाद सुणै भजनां का।।
करणी बरणी शिव आराधन, भजन ध्यान धर्मादो।
चुगै कबूतर जीव जिनावर, आव भगत को रादो।।
कण भर में कीड़ी तप्ते, अर मण में तिप्तै हाथी।
भरपूरो भण्डार संत को, वाह भई शेखावाटी।।

मुलक बांटतै मुखड़ै सोवै, नूर-तेज गुरुआं को।
मन बर्बस करै नरहरी, नाथ संत लोगां को।।
घणा आदरै ग्यानजन नै, पोथ्यां ग्यान प्रकासै।
सुबरथ करै करेड़ो संचय, संत भलाई बांटै।।
सिद्ध-पीठ मठ इमरत गुरु को, सिरै फतेपुरवाटी।
गुरु हनुमान नाथ दी दीक्षा, वाह भई शेखावाटी।।

गणेसदास गणपति क्षेत का, संतां का सिरमोर।
तप सै कर्यो उजालो साधू, तपस्या करी कठोर।।
मनस्या पूरण करता सै की, टीबा-बसी निवास।
अन्नपूरणा सिद्ध करी, तप कर रामेसर दास।।
बुधगरजी का भर पर डेरा, कालीचारी की घाटी।
मक्खनदास खेतड़ी तपता, वाह भई शेखावाटी।।

अटल नाम खाकीजी पायो, अमर त्रिवेदी दास।
लाट साब ओलिया गोमजी, बसै बिसम्बर दास।।
मेलो गुमान गिरीजी को, बावलियो बाबो परमो।
भरपूरनाथ अर कूमजी को, मुकनगढ़ नै सरणो।।
चेतनदास-बनखंडी दोनूं, तप्या लुहागर घाटी।
रामसेनई रच्यो 'खिलोणो', वाह भई शेखावाटी।।

हणमानदास जी रम्या जंगल में, जा नाहरी कै नालै।
दादूजी की अलख जगाई, तप मझ गरमी स्यालै।।
अगम अगोचर घट में, पट में दीप ग्यान को चास्यो।
बियाबान कानन गिरी खो' में, जाय संत घर बास्यो।।
राघवदास गुरु किरपा सै, अटल जौत कर राखी।
धरती पावन संत जना की, वाह भई शेखावाटी।।

जाम्यां संत बुगालो बेरी, अवतारी पनलावो।
फत्तेपुर लिच्छमगढ़ सेवी, नवलगहढ़ चिड़ावो।।
बऊ बिसाऊ टांई बस्सी, उजलो कूण कूणो।
कारमात कमरदीस्या की, सांगलिया को धूणो।।
चढ्‌या दुछत्ती पर जा खाटू, उमर त्याग में काटी।
संत मनोहरदास हठीला, वाह भई शेखावाटी।।

ऊंडी चोट कालजै लागी, आई बात अकल में।
भगवां धारण कर्यां रिसालू, धूणो धाल जंगल में।।
दगो कर्यो तिरिया, मन ठणक्यो, मिठ्यो भरम संसारी।
राजा कै मन चढ़ी फकीरी, भेस तज्यो दरबारी।।
मो-मायो को फंद कठ्यो, जद तज्यो राज्य परिपाटी।
नाथ पंथ को लियो आसरो, वाह भई शेखावाटी।।

धूणो घाल'र रम्या रिसालू, टांई का परबारा।
मालदासजी तप्या अघोरी, राजपुरै बल्लारां।।
छावछी में सती तपै, सूरजगढ़ तप्या जतीजी।
परमानंद लोसल में तपता, अब सकराय मुनीजी।।
सीतलदासजी को ठीकर्यो, हर्सनाथ की घाटी।
रैवासो वैस्णव गुरुद्वारो, वाह भई शेखावाटी।।

सकरबार सा पीर नरड़ में, भेदभाव नै मेट्यो।
जैन मुन्यां को भमण चाव सै, लोग अठे का देख्यो।।
गुलाबगिरीजी तप्या बीबासार, तप सै कर्यो उजास।
गुल्लर तलै परकमा पथ में, तपगा कालीदास।।
संत संवार्या पंथ मेखला अंधकार की काटी।
हूं अणजाण नवूं संतां नै, वाह भई शेखावाटी।।

तप्या ओलिया ओघड़ राघव, हठी जती' र महंत।
परमहंस अर रामसनेही, दण्डी स्वामी संत।।
सरभंगी धोरी नाथ गिरी, अरदास उदासी नागा।
वैष्णव सिद्ध मुनी रामानुज, पंथ घणा साधां का।।
आचारी' र सदाचारी, दादूपंथी मन्नाथी।
सगलां नै आ धरा जगाया, वाह भई शेखावाटी।।


लोहार्गल-परकमां

हेमाजल संकलप बतावै, जंबू दीप को खण्ड।
वेद पुराणां में बरणन, तीरथ आकारी संख।।
बिस्णु निज मुख करी बड़ाई ऐसो है उल्लेख।
लोहगार म्हातम में बरणन, अति पुरातन लेख।।
आदिकाल सै ई तीरथ की, पुजती आयी माटी।
प्रभु आपको घाम बतायो, वाह भई शेखावाटी।।

नागकुंड पर फलै करेड़ो, स्वर्ण दान हाथां को।
न्हाणै सै संताप मिटै, डर मिट ज्यावै सांपां को।।
तपकेसर का दरसण कर, पूरी होवै सै मनस्या।
अधिपति बणा सूर्य नै शिव, आ ईंजा करी तपस्या।।
सोभावती सूर्य की पत्नी, ल्हुक छिप चालै म्हाटी।
खुर कुंड नर भव तिर ज्यावै, वाह भई शेखावाटी।।

सोभावती रही गिरी नीचै, सूर्य देव कै तपतां।
खुर वराह सै खुर कुंड निपज्यो, भू पर लीला करतां।।
ध्यान करै शिव को सुरजी को, सरदा सीस नवावै।
ग्यानवापि न्हा फेरूं आकार, सूर्य कुंड में न्हावै।।
सकल मनोरथ पूरा होवै, पार करै भव-घाटी।
सूत कह्यो लोहगार म्हातम, वाह भई शेखावाटी।।

परब बड़ो भादी मावस नै, लोहागर न्हाबा को।
चाव चढ्‌यो रै लोगां कै, संग परकम्मा जाबा को।।
सुरज कुंड में डुबकी ले, धर मालखेत को ध्यान।
चन्नण-टीकी मंदरां जा कर, फेरकरै-प्रस्थान।।
मालखेत कै जैकारां सै, गूंजै सगली घाटी।
तीरथ राज लुहागर बाजै, वाह भई शेखावाटी।।


सूरज कुण्ड

मरुथल में गंगाजी आई, कुदरत की सकलाई।
सुरज कुंड में दिखै हालती, मंदरां की परछाई।।
चोखो बरसै मेह डूंगरां, भारी चादर डाकै।
शिवजी बैठ्या कुंड किनारै, अविरल गंगा चालै।।
ऊभी अटल खड़ी ललकारै, बरखंडी की घाटी।
दम-खम तो करो चढ़ाई, वाह भई शेखावाटी।।

अमर तलाई ही ईजा, सै होता अमर नहा कर।
चील-कागला कुत्ता, बिल्ली, नर-बांदर सै आकार।।
मांची भीड़ सुरग में जद, मिल देव कर्यो आह्वान।
डाटो भीड़ धरा पर बेगा, बिगड्यो जाय विधान।।
ढ़क डूंगर सै अमर तलाई, जथा लोग मिल पाटी।
माल केतू पैरै पर बैठ्या, वाह भई शेखावाटी।।

धमर-नीर नही दबै दबाया, फूटै निसरै आप।
सात धार निसरी प्हाड़ां सै, तीरथ बणगा सात।।
देवै लागा लोग परकमा, तीरथ तीरथ जाकर।
धन्य हो लागा नर-नारी, सत धारा में न्हाकर।।
पांडव आय नहाया जल में, लोह मेखला काटी।
जद तीरथ लोहागर बाज्यो, वाह भई शेखावाटी।।

मालखेत जी

उमड़ै भीड़ जुड़ै मेलो, जद लोहागर कै लेखै।
डूंगपर पर सै झांक झरोखै, मालखेत जी देखै।।
पांच पांडवां को मन्दिर अर, खाकीजी को धूणो।
लदड़-पड़द रै पेड आम का, छायो कूणो कूणो।।
संखाकार गुपत तीरथ की, फेरी की परिपाटी।
पाप काटबा पांडवा आया, वाह भई शेखावाटी।।

ग्यान कुंड पर बड़ की छाया, शिव परिवार बिराजै।
पैरो दे गणेश उत्तर में, भीम कुंड घण साजै।।
सबसै ऊपर बरखंडी, नीचै नारी को नाको।
पैली चेतन वापी, आगै मंदर कावड़िया को।।
मुनि वसिष्ठ को कुंड, विक केदारनाथ की घाटी।
ंजगी धरमसाल बिड़ला की, वाह भई शेखावाटी।।

चोबिस कोसी होय परकमा, जगां जगां को न्हाणो।
सतधारा को पु्‌न्न बड़ो, भवसागर पार लगाणो।।
दरसण मेला संत जनां का, भलां भलां को साथ।
आपस में जाणै कोनी, पण थमै आखड्‌यां हाथ।।
एक हाथ सिर कै बोझै पर, एक हाथ में लाठी।
ठोगो देता करै चढ़ाई, वाह भई शेखावाटी।।


किरोड़ी तीर्थ

गोल्याणै सै जाय चिराणै, पच्छै चढ़ै किरोड़ी।
गरम कुंड में न्हाय जातरी, मेटै हार चढ़ेडी।।
डम्मर फूटै घणओ केवड़ो, बागां नै महकावै।
त्याग भव्याता मंदिर को, उजलो इतिहास बतावै।।
नगर कोट का दरसण होवै, ढल्यां किरोड़ी घाटी।
कोट बांध पर चाल चालै, वाह भई शेखावाटी।।
साकंबरी

सात कुंड साकंबरी मे,ं मंदिर की कथा पुराणी।
गंगा गुपत सतत चालै, निरमल कुंडां को पाणी।।
मंदिर भव्य मदमोहन को, मुनी आश्रम न्यारो।
ठाठ-बहाट मां अटल छत्र कै, भर्यो रहै भंडारो।।
अपलक जोत अटल दिवलै की, बाती घी में बांटी।
जामुन आम खड्‌या पैरो दै, वाह भई शेखावाटी।।

धरमसाल कमर तिरबारा, सिरज्या सेवक मां का।
सप्त सती-सतचण्डी चालै, अनुस्ठान भगतां की।।
बाघ-भघेरा सांभर-चीतल, पाणी पी-पी जावै।
गंंगा धार में न्हावणियां का, जनम सफल हो ज्यावै।।
हरियल बागो डूंगर पैर्यां, गठजोड़ै जुड़ घाटी।
बिपुल जड़़ी बुंटी आंचल में, वाह भई शेखावाटी।।

जड़ी-बूंटी

देसी दवा जड़ी-बूंटी, घण रोग निवारक पेड़।
मिलै प्हाड़ जंगल खेतां में, मौसम गैल अनेक।।
बल वरधधक नायाब ओसद्या,ं मालकांगणी बूंटी।
काली-धोली मुसली पुस्टी, चिरपोटण खरींटी।।
गोखरु'र गूगल बलकारी, सध मजपूतै काठी।
गूंद-नीम झाड़ी कीकर दे, वाह भई शेखावाटी।।

सालपर्णी सैदएई सालर चित्रक इंदरायण।
मरोड़ फली लटजीरी दूदी, औसद कौंच रसायन।।
नीम लोय बाबची होवै, तर तासीर दवायां।
पत्ता कूपल नीम निमोली, कलपै मादल काया।।
उजला दांत करै मोती' सा, मुखसुद्धी जड़ काठी।
दातण कीकर नीम धमासो, वाह भई शेखावाटी।।

जमालघोड़ो कुटकी चिरायतो, इंडोली को तेल।।
इच्छाया भेदी ऐ तीनूं, मिंटां में रचदे खेल।।
अरडूसो कफ-खांसी टोनिक, गवारपाटो पाचक।
क्वाथ मुलेटी रस थोर को, नाक छीकणी थामक।।
काजल अर जड़ को रस गुणयिा, नैणज्योत जड़ साटी।
नीर जमादे रस जलजमनी, वाह भई शेखावाटी।।

गुड़मार चीणी नै मारै, तुलसी काया कलपै।
बजरदंत सै दांत बजर का, माजणतां घण चमकै।।
झाड़ी की छाल बड़ी कटेली, अणतमूल को काडो।
तीन्यां में सै एक लियां', सोरो जणलेवै जापो।।
पथरचटीपथरी नै चाटै, असगंध काया पाठी।
जलभंगरो दे मेट पीलियो, वाह भई शेखावाटी।।

बड़ की छाल दूध जड़ पता, बड़वाड़ा सै गुणिया।
पुंसकता को अजस खजानू, बड़ नै जाणै दुनिया।।
हरसिंगार मेटै विकार, कर लाभ जिगर गुर्दै में।
बील-आंवला नवजीवन दे, ज्यान फुंकै मुर्दे में।।
आंजण रगत चाल सम राखै, मरु को जीवन जांटी।
कीकर दातण मुकओ विस मेटै, वाह भई शेखावाटी।।

उदर सूल की कैर दवाई, बणै खैर को काथो।
पील जालियी की मीठी, गुणिया पत्तां को काडो।।
मुक छालां की दवा ल्हेसवो, रोहीड़ै का काड़ा।
गूंद सैनणै को गुणकारी, काजल लाभै ज्यादा।।
बूंदी छाल चाब मुखछालां, जाय बिमारी काटी।
पेड घणा आरोग देणिया, वाह भई शेखावाटी।।

बड़ पीपल कीकर अर ड़ांसर, गंगेरण कांकूण।
नीम पलास स्नैहणा आडू, बदरी फल हिंगूण।।
धो रोईड़ो किरवाला, अर अडूसो'र धमासो।
जामुन आम पपीता पेरू कमरख एक तमासो।।
खैरी-जांट कनेर जालिया, खड़ी आमली खाटी।
दुरलभ पेड़ मिलै आंजण का, वाह भई शेखावाटी।।

नाग कुण्ड (परकमां)

मून तोड़तै झरणै को, कानां कलनाद सुहावै।
लख नागकूंड की नीरवता, मन बैरागी बण ज्यावै।।
डूंगर सै कूदै झनो, कुदरत को सरवार बोचै।
तकता आंजण पेड़, कोयली बैठी बैठी सोचै।।
बेमन गांव उठै बावड़तां, मन मोवै या धाटी।
नागदेव को मंदिर जूनो, वाह भई शेखावाटी।।


तपकेसर

घटाटोप कर राखी घाटी, आवण दे ना धूप।
'बोटानीकल' को सो बरगद, तम्बू ताण अनूप।।
पीपल की जड़ टपकै न्यूं, शिव जटाखोल टपकावै।
लांखू छकपीवै गंगाजल, कदे निमड़ न पावै।।
टप-टप सीरां टपकै, बाजै टपकेसर की घाटी।
हरजस गाती जाय लुगायां, वाह भई शेखावाटी।।


सोभावती

सोभावती नदी सरमीली, बहती बहती बिसरै।
लोग करै बिसराम, गरब में खोद्यां पाणी निसरै।।
जगै सैंकड़ी जगरा, नद में मंगल सो' हो यो रै।
रोटी सकै बाटी सेकै, जगरा रोक सरै सै।।
सोंधी सोंधी सोरम देती, सिकै चून की बाटी।
मांग तवै नै कई बापरै, वाह भई शेखावाटी।।

खाकी अखाड़ो

घमआ तिबारा खड्या चौक में, खाकी तणो अखाड़ो।
काटै रात हजारां आकर, मेलो भरै निरालो।।
छात तिबारा चौक चंतूरा, मिनखां सै पटज्यावै।
ढ़ोलक बाजा बजै रात भर, जागरणा मंड ज्यावै।।
हार्यां कर बिसराम, भोर में चढ़ै नीमड़ी घाटी।
कठिन चढ़ाई ई घाटी की, वाह भई शेखावाटी।।

नीमड़ी घाटी

कठिन चढ़ाई दुरगम गैलो, सांस फुलादे नर को।
जी घाटी में फंसै, भीड़ हेला दे आगै सरको।।
नार्यां सिर पर बोझ लियां, गाती चालै संग साथ।
तिरिया जूण छुटाओ जी, प्हाडां का बदरीनाथ।।
बद्री-केदार याद आवै, चढ़ खड़ी नीमड़ी घाटी।
मझलां चाल पड़ै सुस्ताणो, वाह भई शेखावाटी।।
कावल टेम कटै नर की, जद ओटी सावल आवै।
तलै उतरतां डूंगर कै, बड़ स्वागत करता पावै।।
सुरगां का सा झोटा देती, पून मिलै सरबंगी।
कर बिछात टिक ज्या हजारां, छाया में बरगद की।।
'लेल्यो दही' गूजर्यां बोलै, हांडी ऊंच्यां म्हाटी।
बैठ लोगड़ा करै कलेवो, वाह भई शेखावाटी।।

रुगनाथगढ़
रस्तो कटै चालबा सै, अर मजल मिलै बढ़ चाल्यां।
सिर पर चढ़ै तावतो तपतो, बैठ'र धूणी घाल्यां।।
नावं पूचथा मिलै टीबड़ा,डूंगरा का सा बाप।
पिंडल्यां में बांइटा चढतां, पग दे देवै-जाब।।
गढ़ रुगनाथ प्हाड़़ कै कड़ री', ठेठ टीबडां माटी।
तलै उतरणओ पड़ै खुरै सूं, वाह भई शेखावाटी।।

डब्बी में ज्यूं बंद अमानत, पड़ी डूंगरां होवै।
दरवाजो परकोटो दोनूं, खूब गांव कै सोवै।।
चोगट चकला मिस्ली लोड़ा, पत्थर की सब चीजां।
सात धार चाली ज्यां में सै, एक नीकली ईंजां।।
बीच बजारां नदी नीसरै, सूंसाती सी म्हाटी।
जोहड़ो अठे गांव की सोभा, वाह भई शेखावाटी।।


खोरी कुण्ड

धर कूचां धर मझलां चाल'र, दोय कोस नंदी में।
खुर कुंड नेड़ै बड़ गट्टो, आ ज्यावै बीच नदी में।।
माकस को असनान भोर में, सूर्य कुंड में जाकर।
दरसण-मेला, मालखेत कै, होवै भोग लगाकर।।
सदियां से चलती आई, परकम्मा की परिपाटी।
मालखेत को लक्खी मेलो, वाह भई शेखावाटी।।

चांद-अमावस-पूर्णिमा
घर-घर करतो फिरै च्यानणों, डाट्यो कठे डटैना।
मावस मांग भरै तारांपण, आकार चांद मिलै ना।।
सारी रात जगै पूनम घर, मावस सै' रै दूर।
परालबध का लेख लिखेड़ा, विधना नै मंजूर।।
एक रूप को करै च्यानण, एक सरुप छिपाती।
भाग-सुहाग करम का लेखा, वाह भई शेखावाटी।।

अठखेली पूनम सै कर, लै चालै चांद बिदाई।
मावस सै मलिबा ना दे चंदै घणी लुगाई।।
धर कूचां घर मजलां चालै, काटै लम्बी रातां।
पंदराड़ै कोजाग्यो सोवै, मावस को घरज आंतां।।
नित्त निरंत चलै बटेऊ, अमर उडीक सदा की।
मावस ऊबी चांद उड़िकै, वाह भई शेखावाटी।।

एक माह में दोर बर जनमै, चौदा नार निराली।
एक जनम में उजली रै, दूजै में बाजै काली।।
भर जोबन बस एक रात को, पूनम को सो चांद।
दिन पंदरा को फेर जवानी, रोज बदलता नाम।।
करै च्यानणू मिल चंदै सै, पूनम रस छिटकाती।
काली रात अमावस बाजै, वाह भई शेखावाटी।।

मो-माय

भाग करम को लेखो न्यारो, परबत राई ओलै।
धरत्यां जलम जंगल में चिरमी, सोनो चांदी तोलैओ।।
नार मुलेटी जण चिरमी नै, बण काडो खुद सीजै।
चिरसी राज करै हाटां, केसर कस्तूरी छीजै।।
हिंगूणा का माला मणियां, साधां कर का कर साथी।
पगां बिछै पत्यां गुलाब की, वाह भई शेखावाटी।।

रुपाली कै गरब रुप को, धन हाली कै धन को।
चातर चतराई में मो' दी, नखराली कै टणको।।
जोबनियो फरराटा ले, दे पलका झपका रूप।
धन जोबन रंग-रुप जवानी, चौमासै की धूप।।
पुन्न पड़ै कमजोर पाप सै, सिरी डबोवै जाती।
माल अलूफो नियत डिगावै, वाह भई शेखावाटी।।

मिटै कदनै ना मन की तिसणा, पिवै उमर को क्यारो।
माया बैरण तिसणगारी, ब्याज मूल सै प्यारो।।
खुद उजलो ना होय घमंडी, धोलो होज्यो केस।
फिरै भटकोत मन पांखडी, अक्कल लियां हमेस।।
सुगणी जन समाज नै प्यारा, भल सुगणां की आंटी।
कपटी नगुरा तिर्या ना देख्या, वाह भई शेखावाटी।।

बाण्यों बिणज करै परखी सै, स्याणो निजरां तोलै।
सुरत सिला पर संतजना रम, गांठ भेद की खोलै।।
मारग मिलै अगम जाकर, कुछ भेद नहीं पंथां में।
दुःख में सुख की अमर बेल को, सार ग्यान संतां नै।।
सुरा और बिसाखा दोनूं, न्यारा भेद बताती।
गुण-ओगण का अलक पालड़ा, वाह भई शेखावाटी।।

क्हे तो तड़को रातड़ली को, क्हे तड़कै की दाल।
जुगत जचायां काम निकल सी, तड़कै पर मत टाल।।
भांड उतारै नकल सैंस की, थपथपिया नै टालै।
भूखा राखै बलद धणी, बो-दो'रा टाबरे पालै।।
कड़की में कड़़कोल्या पड़सी, पेट भर्या जी-राजी।
कपटी नुगरा फल्या न देख्या, वाह भई शेखावाटी।।

क्हे तो तड़को रातड़ली को, क्हे तड़कै की दाल।
जुगत जचायां काम निकल सी, कड़कै पर मत टाल।।
भाडं उतारै नकल सैंस की, थपथपिया नै टालै।
भूखा राखै बलद धणी, बो-दो'रा टाबर पालै।।
कड़की में कड़़कोल्या पड़सी, पेट भर्यां जी-राजी।
कपटी नुगरा फल्या न देख्या, वाह भई शेखावाटी।।

बिना रोकड़ी सांस स्हर्योना, बात करी तो नगदी।
घड़तां रचतां घणी बीतगी, उमर बची अब कमती।।
अक्कल चरी अलूफा जीम्या, मानी तो मन जचती।
पोट धरी राखी सिर ऊपर, तलै उतारी कमती।।
कहे रही ना सदा एक सी, देखी पलटा खाती।
अक्कल कै पग लेओ ठाकरां, वाह भई शेखावाटी।।

लाग उमर को जर बैरी, काया नै जर्जर करगो।
रै चिणबाला तू मंदर की, मैड़ी दौरी चिणगो।।
माला फिरै न फेरी लागै, रसना जकड़ अकड़गी।
चढ़ी न जा मैड़ी मन्दर की, काया ढीली पड़गी।।
नाद सुणै लागो कानां, पढ़ चित्रगुप्त की पाती।
काया-नगर कूच की त्यारी, वाह भई शेखावाटी।।

बिना उड्यां आकास नाप कर, मांड थमाया पतरा।
सत्त कीन ाव गुरु सरमै कर, पार उतरगा कतरा।।
तप सै आवै तेज मायंलो, निस्ठा मन बिसवास।
सद-हबुध आवै गुरु करिपा सै, फेर करम की आस।।
छल अर कपट बदी को नाको, होय स्यान की माटी।
मन थमतां सं्‌तो, मोकलो, वाह भई शेखावाटी।।


फुटकर साज बाज
टनकै टाली गूंज गढ़ावल, मंदरां गाज नंगारा।
रणभेरी रण नदै संख, सुण झूझै समर झुझारा।।
मंगल मनोरथ सुबरथ सारू, भेर भेरिया भेरै।
हंसलो हंसतो उड़ै उमर लै, पुंगलो पूं कर टेरै।।
ढम्मक ढोल डांडिया डांडै, पड़ तड़ सरपांटी।
घलै घुमेरी घमक घूघरा, वाह भई शेखावाटी।।

पड़ तालां तबला पखावजां, खड़तालां इकतारो।
साज मढ़ेडा डेरु-डमरु, नोपता ढोल नंगारो।।
अलगै अलगै अलगोजा, नोटंकी नाच नंगारी।
तुरी तमूरी तासा, छिमछिमियां की छिमकारी।।
टिऊं टिऊं नरसिंगा की, घड़लै की घमचिक खाटी।
तड़पड़ तान तड़ै तड़ तासा, वाह भई शेखावाटी।।

मुकलावो

लाड-कोड लाडेसर का, भावज की हांस हंसाई।
सासरलै सलहजां लडावै, तारां रात जंवाई।।
बाली उमर फिरा फेरा, लम्बो लंघतो मुकलावो।
आ ज्यातो ओसा,ण, दायजो देता दिखा दिखावो।।
बाजूबंद बंगड़ी सध ज्याती, पाड़ोसण सधवाती।
सगै सगै की सधी सधावै, वाह भई शेखावाटी।।

बग्गी, रथ, बैली

सिखरबंद सी रथ बुंगली, गादी लग गिदरो न्यारो।
कोचवान बग्गी का, बैली बहलवान रथ प्यारो।
रथ-बैल्यां जुप बलदया बगता, नागौरी हा नारा।
खलधज खेती बलदयां सेती, खेत खला पौबारा।।
भैंसा-ऊंट-बलद गाडा, इकबलदी बलदा गाडी।
गध्धा गाडी गली गुवाडां, वाह भई शेखावाटी।।

आतिसबाजी
आतिस सै आकास सुरंगो, छिटकै छिटक छुरंगा।
बाइसिकल सुदर्सन नभ मँड, फैरै-फउैरै तिरंगा।।
बारुदगर फनकारा सौरगर, गोलमदार कुहाता।
मैदानी रण रजवाड़ा का, तोपां ताण-चलाता।।
तुम्बी अनार आकासबाण, आकासी आसितबाजी।
अड़ आकास हवाई खुड़का, वाह भई शेखावाटी।।

ताजिया
तड़तड़ तासा ढोल ढमाढम, जोस खरोस उन्माद।
म्होर्रम पर मातम पुरसी, कर हसन-हुसैन नै याद।।
मजहब को इतिहास ताजिया, क्हाणी मर्म कथा की।।
कसक कालजै कुर्बानी की, पीड़ पगी परिपाटी।
तड़पड़ तान तड़ै तड़ तासा, वाह भई शेखावाटी।।

सब्जी लगावण
पापड़ बड़ी-मंगोड़ी गट्टा, मोठ चणा छूंकेडा।
सबहजी कैर ककेड़ा, सिल बंट मस्साला पीसेडा।।
मेथी-कैरी की लुंजी, चटणी चटपटो अचार।
लुंजी के दाख चुहारी, जान जनेता जीमणवार।।
बड़ा दहीं कांजी का नामी, कांजी उमदा खाटी।
कट्ढी दाल सोगरी-सांगर, वाह भई शेखावाटी।।

धणियो मेथी बथुओ पालख, सुआचुको पोदीनो।
फली स्हैनणै की चौंलाई, ककड़ी को के कहणो।।
गाजर मूली धीया तोरूं, स्वाद सकरकंद ज्यादा।
ल्हस्सण गोभी बाड़ करेला, प्याज साग को राजा।
पेठो कोलो मिरच मतीरी, खाटै की पत्ती खाटी।
भरुआं बैंगण फली टींडसी, वाह भई शेखावाटी।।

मौत-फौत
घरडू जुपतां खांड-गिऊं दे, मरणासन को दान।
बैठ सिरणै मन की बूझै, कर स्हारै सी कान।।
ग्यारस पुण्यूं दिन सलिया, रै सनी अमावस घाती।
सोमोती सकरांत सरादां, खोड़ तजै बड़ भागी।।
गती करम की गैलो मत को, सुरता रै समझाती।
होणी हो सो होय टलै ना, वाह भई शेखावाटी।।

खरच-बारो
मौत-फौत पर गमी बैठबो, जावै ऊब मुःकाण।
दाग तियो कर फूल गंगाजी, बच्चै गुरुड पुराण।।
दसकातर कर ग्यारो बारो, छम्माई बरसोदी।
बामण भोजन गऊदान, सुखसेजां पोडा पोढ़ी।।
पकड़ गाय की पूंछ तिरै, सुख सेजां सोवै नाती।
कथा भागवत गत को गैलो, वाह भई शेखावाटी।।

काली कुत्ती को मेलो
ब्यांवत पर कुत्ती नै सीरो, काली कुती को मेलो।
तगरो फेर घरां सै ले, गुड आटो तेल मिलेड़ो।।
कोई बीसियो कोई पचीसियो, टीकियो टिमक्यालो।
घुचरियां का नांव निकालै, झाबर झोलो कालो।।
होय घुचरिया तेरो मेरो, ले गोदी कर पांती।
घुर्री खद कूतरी ब्यावै, वाह भई शेखावाटी।।

रुपक फागण को
निसरै 'गैर' 'बंदोरी' 'मुर्दो', हद होवै 'हद' कढ़तां।
नकली बींद रुमाली मुख पर, राखै घोड़ी चढतां।।
गद्धा खमस गधै चढ़ फागण, ओलो राख बड़ां को।
लातां धातां कान मरोड़ी, डर मन रै कुम्भा को।।
गींदड़ नाच नंगारै की धिन्, चिमटी की चंगबाजी।
फागण में नाचण की रातां, वाह भई शेखावाटी।।

बर्तन-बदलाव
गाला घल धम्ड़का पड़ता, दोगड़ दौड़ परिड़ां।
कल बिजली अठकल सै आई, थ्यावस आयो पिंड्यां।।
भभकी गैस बलीतो भाज्यो, चढ़ी मोटरां चाकी।
हीटर फ्रीजर गीजर, कपडा धोय मसीन सुकाती।।
जगरो जण चाल्यो ओवन, अब बलै न बिगड़ै बाटी।
बटकोयो कूकर बण बैठ्यो, वाह भई शेखावाटी।।

पाटा घाल'र थाली लगती, अब डिस चढ़गी हाथां।
बिरम्पुरयां को नावं बदल कर, होगो जान बरातां।
खालू चाल पड्यो छड़ चमच्यां, चमचा जुड्‌या बड़ां सै।
मार पलाखी जीम्या करता, बंधगो बैर पगां सै।।
स्टेनेलस को चाव करी, तांबै पीतल की माटी।
बरतण बोल्ड कर्या अलमुनियो, वाह भई शेखावाटी।।


कुस्ती दंगल
फिरकी बगली टंगड़ी लादी, दल दंगल कुस्ती का।
घफ्फी घाल अधर ले पटकै, दाव-पेच फुर्ती का।।
खालिस सिरस तेल की मालिस, खोदी खोद अखाड़ां।
बैठक-डण्ड जोर कर जोरां, चित पुट-पटक पछाडां।।
लंगोट लगा'र मोट्यार मारता, कुस्ती दंगल ख्याती।
जलमै गुरु हनुमान हठीला, वाह भई शेखावाटी।।

नट-बाजीगर
जादूगरी-नजरबंदी अर, बाजीगरो तमासा।
चादर ढ़क्यो जमूरो लेट्यो, करतो बात खुलासा।।
चाल चलै उस्ताद, जमूरो करतो काट नकलची।
नट बिद्या लठपट की बिद्या, किमियागिरी अकल की।।
डमरु बंसी मजमो मांडै, ताली पटका बाजी।
बिना टिकट का खले तमासा, वाह भई शेखावाटी।।

मुर्गा, तीतर, कबूतर

खा खुराक बादाम खमीरो, उमदा उमदा खाणो।
तीतर मुर्गां का दंगल, बटमारी सोख पुराणो।।
बंट पालां मलिजोस बढ़ावै, दंगल होय मियादी।
सर्त्ता-सर्ती हार जीत पर, होड-होय रुपियां की।
धोला स्याहू कबूदर दडबां, कैर कबूतर कांटी।
पलै नबाबी सोख पुराणा, वाह भई शेखावाटी।।

बटमारी तीतर बाजी, दंगल तीतर मुर्गां का।
मजमां मंडै चौक चौपालां, पग पीट्यां लोगां का।।
गुथ्थम गुथ्थी नाड़ मरोड़ी, आन स्यान की बाजी।
लड़त लुड़ै तीतर-मुर्गा, मन मजमै को राजी।।
चांच चंचेड़ै नाड़ मरोड़ै, पगै पगां की आंटी।
मारै फाड़ फफेड़ै फड़, वाह भई शेखावाटी।।

हबड़ै की ट्राम चीलगाड़ी, अर धोबण बार मण की।
पग को काँटो देवर सै, कढ़वावै भाभी हंसती।।
सिर परलियां दिखारा डोलै, देसी बाइसकोप।
झांकी हाला पड़दो दे, बड़ कोई बरिंडो रोक।।
सेसावतार राम को ब्याह, शिव-पारबती की झांकी।
ससतो-सोरो मन बहलावो, वाह भई शेखावाटी।।


सैनिक सहीद

हाथलिया हाथै नाहरिया, घुस दुसमन की मांद।
मंड मौतां खेलै गब्बरिया, घाल घमओ घमसाण।।
जनन्यां जामै सूर-सूपता, कोखां पलै सहीद।
अड़झूझै रण समर लाडला, मरु का मान मुरीद।।
मरु-बेटा दे अमर गंध, मैकै मुलकै हिम घाटी।
धन मायड़ तेरा जायेड़ा, वाह भई शेखावाटी।।

 
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राजस्थान रा सूरमा
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
आप भला तो जगभलो नीतरं भलो न कोय ।

आस रे थांबे आसमान टिक्योडो ।

आपाणो राजस्थान
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साइट रा सर्जन कर्ता:

ज्ञान गंगा ऑनलाइन
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