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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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राजस्थानी व्याकरण
(रचनाकार- राजेन्द्र बारा)



क्रिया

क्रिया सिो सबद है जिको किणी  आदमी या वस्तु रै बारै में बतावै। वाक्य में क्रिया सबसूं बत्ती महत्त्व रो सबद है। जिकै सबद सूं कोई काम रो करणी या हुवणो लखावै उणनै क्रिया कहीजै; जियां-
घीस्यो रोवै है।
सीतली गाभा धोवै है।
मूलियो पढ़ै है।
मोतियो रोटी खावै है।
उदाहरणां में रौवै, धोवै, पढ़ै, खावै क्रिया है जिकी ऊपरलां, घीस्यो, सीतली, मूलियो  अर मोतिय रै बारै में बतावै।
क्रियो दो भांत री हुवै-सकर्मक क्रिया अर अकर्मक क्रिया।
सकर्मक क्रिया-जठै क्रिया रो फल कर्म पर पड़ै वा सकर्मक क्रिया वहीजै; जियां-
रामू पोथी पढ़ै है-ऊं मांय फल 'पोथी' कर्म पर है। पोथी नै रामू पढै है।
अकर्मक क्रिया-जठै फल, कर्त्ता पर वा अकर्मक क्रिया कहीजै; जियां-
रामू हंसै है। इण मायं हंसणै रो फल कर्त्ता 'रामू' पर पड़ै है।
सकर्मक क्रिया रा भेद
सकर्मक क्रिया रा पांच भेद है।
1. सामान्य क्रिया
2. संयुक्त क्रिया।
3. नाम धातु क्रिया
4. प्रेरणार्थक क्रिया
5. पूर्णकालिक क्रिया।
सामान्य क्रिया- जठै एक क्रिया काम में आवै वा सामान्य क्रिया कहीजै, जियां-राम गयो। इण में एकक क्रिया है 'गयो।'
संयुक्त क्रिया-जठै दो या घणी क्रिय ासगै-सागै काम में लिरीजै वै संयुक्त क्रिया कहीजै; जियां-राम पढ़ लियो। इण मायं दो क्रिया है 'पढ़' अर 'लियो।'
नामधातु क्रिया-संग्या, सरवनांव याविसेसण सबदां सूं बण्योड़ा क्यिायपद नामधातु क्रिया कहीजै, जियां-सरणामो, लजाणो।
प्रेरणार्थक क्रिया-कर्त्ता कोई काम करै अर जद बो खुद नीं कर दूजै नै करणसारू प्रेरणा दे तो अकर्मक क्रिया भी सकर्मक बण जावै। जियां-रामू हांसै, आ अकर्मक क्रिया है। पण रामू सैं नै हंसावै, आ अकर्मक, क्रिया बण जावै। कैवण को मतलब ओ हैकै रामू दूजां नै हंसण नै प्रेरित करै।
पूर्णकालिक क्रिया-मुख्य क्रिया सूं पैलां आवण आली क्रिया रो वाचक पद पूर्व कालिक क्रिया कहीजै; जियां-रामू खायर स्कूल गयो।
क्रिया रै अरथ सूं क्रिया रै भाव रो ठाह पड़ै। भाव रै अनुसार अरथ पांच है-आज्ञा रो भाव हुवै तो आज्ञा सूचक, जियां- तूं अठै आव ! तूं भागज्या ! खाणो लगा !
संभावना, इच्छा अर आसिरवाद रो भाव हुवै तो संभावनार्थ क्रिया; जियां मै- मैं जाबूं। थे सुख पावो। फल फूलो। स्यात वो स्कूल में हुवै। के बेरो आ ज्याबै।
जठै सक रो भाव पाईजै तो संदेहसूचक क्रिया; जियां-
किरसो खेत जोततो हुसी।
पंकज स्कूल गयो हुसी।
भूमिका आपरो सहेली रै अठै गयी हुसी।
जद कोई विसेस भाव नीं हुवै अर फगत एक बात इज कहीजै तो निश्चायार्थ क्रिया हुवै।
टाबर  खेलै।
बरखा बरसी।
मैच हुसी।
जद ेक काम रै हुवणै सूं दूजै काम हुवणै रोभाव लखावै, तो क्रिया संकेतार्थक हुवै-
पंकज पढ़तो तो चोखा नम्बर  ल्यातो।
पाडी चरबा नै जाती ोत धाप'र आती।
गाजी जाती तो  मैं चाल्यो जातो।
चून होतो तो रोट्यां बण जाती।
काल क्रिया रै हुवणै रो समै है। क्रिया हुयगी या हुसी या हुयरी है, इणां सूं समै रा भाग हुवै।
सकर्मक क्रिया रो कर्म वाच्य अर अकर्मक क्रिया रो भाव वाच्य हुवै। कर्म वाच्य अर भाव वाच्य दो भांत रा है-जूना, नुवां। जूना कर्म वाच्य अर भाव वाच्य संस्कृत, प्राकृत  अर अपभ्रंस सूं आया है अर नुवां हिन्दी, ऊर्दु, अरबी, फारसी आदि र प्रभाव सूं हाल में आया है। जूना कर्म वाच्य अर भाव वाच्य कृर्तृ वाच्य धातु रै आगै ईज प्रत्यय जोड़णै सूं बणै-

खा + ई = खायीज, कायीजणो
मर + ईज = मरीज, मरीजणो
तिर + इज = तिरीज, तिरीजणो
लूट + ईज = लूटीज, लूटीजणो
देय + ईज = देयीज, देयीजणो
कर + ईज = करीज, करीजणो
पढ + ईज = पढीज, पढीजणो
टोक + ईज = टोकीज, टोकीजणो
हार + ईज = हारीज, हारीजणो
नुवां कर्म वाच्य, भाव वाच्य, कृर्तृ वाच्य धातु रै सामान्य भूत रै रूप रै आगै 'जावै' धातु जोड़णै सूं बणै-
खाव = खायो जावै
मर = मर्यो जावै
तिर = तिर्यो जावै
लूट = लुट्यो जावै
देय = दियो जावै
कर = कर्यो जावै
पढ = पढ्यो जावै
टोक = टोक्यो जावै
हार = हार्यो जावै
रैय = रैयो जावै
लेय = लियो जावै
जाय = जायो जावै
आय = आयो जावै
कर्तृ प्रयोग  हुवै जद क्रिया कर्त्ता रै अनुसार हुवै, कर्मणि प्रयोग हुवै जद कर्म रै अनुसार हुवै, भाव रो प्रयोग हुवै जदक्रिया र अनुसार ई नीं हुवै; जियां-बीमार सूं कोनी उठीजै। राधा सूं तलै कोनी आयीजै।

राजस्थानी क्रिया रा रूप

कह्यो, कैयो, खैयो, खहसी, कैयसी, कैसी, कै कयो, कीनो, कीधो, कैबो, कैणो, कैवैला, कैवैगो।
रह्यो, रैयो, रैसी, रसी, रयो, रै, रैवैला, रैवैगा, रैणो, रैवौ।
जा, जासी,जावै, जावैला, ज्याला, ज्यागो, जावैगो, जाणो जाबो।
कर्यो, करियो, करसी करैला, करै, करैगो, करणो, करबो।
देख, देख्यो, देखसी, देखैला, देखियो, देखै, देखैगी, देखणो, देखबो।
पी. पीसी, पीवै, पीवैला, पीवैगो पीणो, पीबो।
लियो, लेसी, लेवैला,लीनो, लीधो लेवैगो, लेवणो लेबो।
लाध, लाध्यो, लाधो, लाधियो, ल्हाद्यो, लाधणो, लाधबो।
ऊभ, ऊभो, ऊभ्यो, ऊभियो।
बैठ, बैठ्यो, बैठो, बैठियो, बैठैलो, बैठैगी, बैठणो, बैठबो।
आयो, आवै आसी, आवैला, आतो, आती, आवतो, आवैगी, आवणो, आबो, आणो।
सोयगो, सूग्यो, सुवग्यो, सोवसी, सोबैलो, सोवैगो।
कैव, कैवसी, कैयसी, कैसी, कैवैलो, कैवोगो कै कह, खैयो, खैसी, खैवैगो।
रोवो, रोयो, रोवसी, रोसी, रोवैलो, रोवैगी, रोणो, रोबो।
जीवो, जीयो,जीसी, जीवैलो, जीवैगो, जीणो, जीबो।
मरणो, मरग्यो, मरगो, मरैलो, मरैगो, मरज्या, मरणो, मरसी, मरबो।
फिरै फिर्यै, फिरियो, फिर्यो, फिरी, फरी, फिरसी, फिरैलो फरैलो, फिरैलो, फरैगो, फिरैगो।
रैवै-रैवै, रैवै रयै, रयै, रियै, रियो, रीयो, रह्यो, रहियो, री, रैबो रैणो, रैयो।


समास

समास रो अरथ है छोटो करणो, सबद छोटो हुयज्यावै अर अरथ भी नीं बदलै,  अरथ में बिना बदलाव कर्यां दो या जादा। सबदां नै मिला'र छोटो कर देवणै री विधि नै ई समास कह्यो जाव; जियां-
राजा रो म्हैल- राजम्हैल
दादू रोद्वारो- दादूद्वारो
प्रेम रो सागर-प्रेमसागर
इण तरियां दो सबदां नै मिला'र एक नयो सबद बणै। समास रा च्यार भेद हुवै-
1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुस समास
3. द्वन्द समास
4. बहुव्रीही समास
1. अव्ययीभाव समास - जिकैमांय पैलो सबद प्रधान हुवै वो अव्ययीभाव समास समास; जियां-
रात्यूं रात-रहात-रात में ई
नित राज-रोज-रोज
भर पेट- पेट भर'र
2. तत्पुरुस- जिकै मांय दूजै सबद री प्रधानता हुवै वो तत्पुरुष समास; जियां-
राजकुंवर- राजा रो कंवर
देस भगती- देस खातर भगती
विग्रह मांय; जियां-जिण में कारक परगट हुवै उण कारण आलो वो समास हुवै;pf/ex-
(1) कर्त्ता तत्पुरस- नील कमल- नीलो कमल।
(2) कर्म तत्पुरस- पुरस्कार प्राप्त- पुरस्कार लियोड़ो
(3) करण तत्पुरस- तुलसीकृत-तुलसी री कर्योड़ा
(4) सम्प्रदान तत्पुरस- हवन साम्रगी- हवल खातर सामग्री
(5) अपादान तत्पुरस- देस निकालो-देस री सीमा सूं बारै
(6) संबंध तत्पुररस- पवन पुत्र-पवन रो पुत्र
(7) अधिकरण तत्पुरस-आनन्द मगन-आनन्द मांय मन तत्पुस मास रा भी तीन भेद हुवै।
1. न समास 2 द्विगु समास 3 कर्मधारी समास
न समास-
जठै जकार रै अरथ मैं 'अ' या 'अण' रै साथै समास हुवै; जियां- अपच, अणपच्या यानी न पचै, बिना पच्या।
द्विगु समास- जठै पीलो संख्यावाची हुवै अर सगलो पद समुहवाचक बण जावै; pf/ex-
तिरलोकी- तीन लोक रो समूह
चौमासो-च्यार मास रो समूह
नौरात्रा- नौ रात रो समूह
पंसेरी-पांच सेर रो समुह
कर्मधारी समास- जठै विसेसण या उपमान सबदां में समास हुव' जियां-
महाराजा- महान राजा
चरण कमल-कमल जिसा चरण
3. द्वन्द्व समास- जठै दोनूं पद प्रधान हुवै वां नै द्वन्द्व समास कह्यो जावै; जियां
सीताराम- सीता अर राम
सुख-दुःख- सुख अर दु:ख
4 बहुव्रीहि समास- जठै दोनूं पद प्रधान नीं हुय'र सबद रो तीजो ई अरथ निसरै; जियां-
दासनन- रावण
लम्बोदर- गणेस
धर्मराज-युधिष्ठिर


काल (समै)

क्रिया रै हुवणै या करणै रो समै कालै कहीजै। क्रिया रै बीं रूपांतर नै काल कहीजै जिण मांय क्रिया रो समै अर बीं री पूर्ण या अपूर्ण अवस्था रो बोध हुवै; जिया-वो गयो (भूतकाल), वो जासी (भविष्य काल), मैं आबूं (वर्तमान) काल। काल तीन तरह रा हुवै।
1. भूतकाल
2. वर्तमान
3. भविष्य काल

भूतकाल-- बीत्योड़ै समै नै भूतकाल कैयीजै; जियां-
रामू स्कूल गयो।
अठै 'गयो' साधारण बीत्योड़ै समय री बात कैवै। भूतकला रा छव भेद है।
सामान्य भूतकाल- साधारण बीत्योड़ो काल सामान्य भूतकाल कहीजै; जियां-राजू गयो। अठै 'गयो' साधारण बीव्योड़ै काल री बात कैवै।
आसन्न भूतकाल- अबार इज बीत्योड़ै समै नै आसन्न भूतकाल कहीजै; जियां-नृसिंहजी किताब लिख ली है।
अपूर्ण भूतकाल-आधो बोल्योड़ो समै अपूर्ण भूतकाल कहीजै; जियां-रामू गांव कानी जावै हो।
पूर्ण भुतकाल- बूरै बोत्योड़ो समै पूर्ण भूतकाल कहीजै; जियां-वेद पाणी पी लियो।
सदिग्ध भूत-जिण रै बोतणै में संदेह हुवै वो संदिग्ध भूतकाल कहीजै; जियां-भंवरजी बीकानेर पूग गया हुवैला। इण में पूगण मांय संदेह है। हुवेला सबद पूरया कै नीं पूग्या री स्थिति बतावै।
हेत-हेतुमद भूतकाल-इण में सरत हुवै कै फलां चीज हुवती तो ओ हुय जावतो; जियां-जे मेह आबतो तो नाडी भरज्यावती। इण में नाडी भरण सारू मेह आवणै रौै सरत है।
वर्तमान काल
मोजूदा समै नै वर्तमान काल कहीजै। क्रिया रो विद्यामान समै वर्तमान काल है। इणरा तीन भेद है-
सामान्य वर्तमानकाल-चालू मौजूदा समै सामान्य काल हुवै अर्थात् क्रिया रै जिण रूप सूं फगत समै रो बोध हुवै, काम री पूर्णता। अर अपूर्णता रो बोध नीं हुवै, वा सामान्य अवस्था कैवावै; जियां-सुदामाजी आवै है।
अपूर्ण वर्तमानकाल-अपूरो मौजूदा समै अपूर्ण वर्तमान काल कहोजै; जियां-बंधु आ रैयो है।
सदिग्ध वर्तमान-क्रिया रै वर्तमान स्वरूप पर संदेह हुवै। संदेह हो मौजूद समै संदिग्ध वर्तमान काल कहीजै; जियां-इण समै राजस्थानी अकादमी रो कार्यालय खुलो हुवसी।
भविष्य काल
भावी नै भविष्य काल कहीजै। आगै आवणियै समै रो भविष्य काल। भविष्य काल दो तरै रा हुवै-निश्चित भविष्य काल या कैवो साधरण भविष्य काल अर दूजो अनिश्चित भविष्य काल या कैवो संदिग्ध भविष्य काल।
निश्चित भविष्य काल-भविष्यरी पक्कायत बात या क्रिया री निश्चितता नै निश्चित भविष्य काल कहीजै। इणमें क्रिया साधरणरूप सूं पुखता रूप सूं हुवै, साधारण रूप सूं भविष्य में क्रिया रो रूप ढलै इण वास्तै इणनै साधारण भविष्य कहीजै; जियां-रावतजी सोमवार नै दिल्ली जासी अर्थात् रावतजी रो सोमवार नै दिल्ली जावणो है।
अनिश्चित भविष्य काल-आवणियै मै री क्रिया में जठै संभावना पायीजै, क्रिया हुवणै में सन्देह हुवै वींनै अनिश्चित भविष्य काल कहीजै; जियां-
शक्तिदानजी स्यात सोमवार नै जैपुर आवैला। इण में शक्तिदानजी रै जैपुर आवणै में सन्देह है। स्याद सबद आवै या नीं आवै री स्थिति नै बतावै।
भूत, वर्तमान अर भविष्य रै साथै अब एकस्थित और उल्लेख जोग है, वा है आज्ञा री आज्ञाकाल उण स्थिति नै बतावै जद कोई दूजै नै हुमक देयीजती क्रिया हुवै। उठै आज्ञा काल आवै, राजस्थानी भासा मांय इण आज्ञाकाल रो प्रयोग हुवतो रैयो है अर ओ काल मध्यम पुरुस रै स्त्री लिंग अर पुलिंग दोनुवा में एकसो काम आवै; जियां-
एकवचन-तूं पोथी पढ।
बहु वचन-थें पोथी पढो।


प्रत्यय

प्रत्यय सबद रा वै हिस्सा है जिका सबद रै आखिर में जुड़ परा वां रो अरथ ई बदल हुवै। ऐ परप्रत्यय भी कहीजै; जियां-
शेर + णी = शेरणी
गांव + डी = गांवड़ी
गाडी + वान = गाडीवान
राजस्थानी भासा में दो तरै रा प्रत्यय मिलै-
1. कृत प्रत्यय
2. तद्वित प्रत्यय
कृत प्रत्यय- जिका प्रत्यय क्रिया सबद रै आखिर में लाग'र मतलब मांय विसेसता। पैदा करै वै कृत प्रत्यय बाजै; जियां-
पसु + पण = पसुपण
मिनख + पणो = मिनखपणो
ऐ पांच तरै रा हुवै- भाववाचक, जातिवाचक, कर्तृवाचक, विसेसण वाचक, कर्म वाचक, विधान वाचक।
भाववाचक- अक, अण, आई, अन्त, ई, ओ अणी, आव, लागै जियां-
बैठ + क = बैठकचली + ती  = चलती
मिनख + पण = मिनखपणो
ऐ पांच तरै रा हुवै-भाववाचक, जातिवाचक, कर्तृवाचक, विसेसणवाचक, कर्मवाचक, विधान वाचक।
भाववाचक-अक, अण, आई, अन्त, ई, ओ, अणी, आव, लागै; जियां-
बैठ + क = बैठकचल + ती = चलती
मर + ण = मरणरट + अन्त = रटन्त
डुबो + ई = डुबोईहांस + ओ = हांसो
रोव + अणी  = रोवणो टोव + अणी = टोवणी
जाति वाचक- अण, को, अणो-
मिल + अण = मिलणवट + को =बटको
चिल + को = चिलकोपल + को =पलको
बेल + अणो = बेलणो खेल + अणो = खेलणो
कर्तृ वाचक-
अक्कड़, आबू, आक, यो, आद-
बूझ + अक्कड़= बुझक्कड लड़ + आक = लड़ाक
पी + ऊ = पीऊलड्ड + आक = लड्डाक
खा + ऊ  खाऊजड़ + यो  = जड्यो
विसेसणवाचक-आऊ, ताऊ, वान-
बिक + आऊ = बिकाऊ
चल + ताऊ = चलताऊ
ढल +वां = ढलवां
कर्मवाचक-णी, णो-
ओढ + णी = ओढणीखेल + णो = खेलणो
विछाव + णो = बिछावणो कूक + णो = कूकणो
विधानवाचक- बो,तो-
गाय + बा = गायबो
भाग + तो = भागतो
तद्वित प्रत्यय
जिका प्रत्यय संज्ञा या सरवनांव सबदां रै आखिर में जुड परा अर्थ में विसेसणपैदा करै वै तद्वित प्रत्यय कहीजै। ऐरा पांच भेद है-
भाववाचक- ऐ भाव वाचक संज्ञा बणावै; जियां-
आई-गरम + आई = गरमाई
आको-ध्म + आको = धमाको
आली-देव + आली = देवांली
कारो-फट + कीरे = फटकारो
ता-मान + ता = मानता
जाति वाचक- जाति वाचक संज्ञा रै साथै आवै; जियां
आणो-सर + आणो-सराणो
ई-बंगाल + ई = बंगाली
एरो-नाना + एरो-नानेरो
खानो-दवा + खानो = दवाखानो
ओलो-खर + ओलो = खरोलो
कर्तृ वाचक
आरो,आरी-पूजा + आरी = पुजारी
एड़़ी-भंग + एड़ी = भंगड़ी
कार-पेस + कार = पेसकार
गारी-कामण + कारी = गामणगारी
ची-तबलची = नगारची
विसेसण वाचक
आलो-पूछ + आलो = पूछआलो
मूंछ+ आला = मूंछआलो
ई-देस + ई = देसी
ऊ-झगड़़ + ऊ = झगड़
अड़ो-दोल + अडो = दोलड़ो
क्रिया विसेसण वाचक-
ठो-ेक + ठो = एकठो
आडी-अग + आडी = अगाड़ी
राजस्थानी रा प्रत्यय नीचै मुजब भोत ही निराला है।
इन्दो-रात + इन्दो = रातिन्दो
आस-पीला + आस = पीलास
खार + आस = खारास
आवणकरड़ावण लगावण
रिझावणसिरावण
आलोरूपालोआंरालो
मतवालोहेजालो
लूंवालो बरसालो
आवनिभावबरताव
परसावछलाव
आणठलाणऊंचाण
पभोलपस्याणप
आयतगनायतपंचायत
जोडायतपडदायत
खोलायतबैठायत
ईकुचमादी = कुचमाद + ई
उन्मादी = उन्माद + ई
ईलोरसीलो = रस +ईलो
बादीलो = बाद + ईलो
कसीलो  = कस  + ईलो
गठीलो = गठ + ईलो
आंटीलो = आंट + ईलो
एरणबात + एरण = बेतरण
गीत + एरण = गतिरण
कारो रै + कारो = रैकारो
हू + कारा = हूंकारो
गी बान + गी = बानगी
साद + गी = सादगी
तबल + त = बलत
ओछ + त = ओछत
छीज + त = छीजत
मांग + त = मांगत
पणो लुगाईपणोमलेच्छपणो
गुंवारपणोटाबरपणो
नुगरापणबालपणो
दातरपणोमिनखपणो
वाड़ोनरकवाड़ोसूगलवाड़ो
रजवाड़ोमारवाड़ो
वास, वासोघरवासरातवासो
रैवाससैवास
राजस्थानी में पर प्रतय्यां रै अलावा पूर्व प्रत्यय भी है। पूर्व प्रत्यय सबद रा वै हिस्सा हुवै जिका सबद रै सरू में जुड़ै वांर अरथ ई बदल देवै। ऐ नीचै मुजब है।
अणअणचीलोअणछक
अणगणितअणभणिया
अधअधकिचर्योअधवाड़ी
अधरातियोअधबावलो, अधविलियो
अधगैलोअध रोगलो
अधमर्योअधकालो
अस्टअस्टधातु
अष्ट पो'र
ओओगण
कुकुगेलोकुलखणी
कुवांणकुबेला
चोचोफेर
चोरंगी
निनिपुतीनिसंक
निरोगीनिपग्गी
निरनिरमोहोनिरलज्ज
निराकारनिरफल
सुसुरंगो, सुगरो, सुलखणी


उपसर्ग

जिका सबद रा हिस्सा सबदा रै पैलां लाग'र मूलरूप ऐ अरथ में फरक या विसेसता ला देवै वै सबदांस उपसर्ग कहीजै; जियां-
अण-अणजाण, अणपाल, अणपढ़, अणबण, अणूंतो, अणचेत
नि-निकमो, निरोग, निडर, निहत्थो
ओ-ओघड़, ओजर, ओतार, ओगण
अध-अधबीच, अधमर्यो, अधखिल्यो, अधबिलोयो
भर-भरपूर, भरपेट
बे-बेकसूर, बेलगाम, बेईमान, बेकार, बेफालतू
नित-नितरां, नितरोज
क, कु-कपूत, कुगेल, कुमाणस,कुटेम
निर-निरधन, निरंजन, निरधानियो
दुर- दुरजण, दुरगण, दुरगत
उणि-उणियारो
अ-अबोली, अलख, अनीत
दु-दुबलो, दुहाग, दुकाल
ना-नाजोगा, नालायक, नासमझ


परसर्ग

जिका सबद रोवाक्य में दो सबदां रै बीच में प्रयोग हुवै पणवाक्य रो अरथ नीं बदलै वां सबदां नै परसर्ग कैया जावै; जियां-
नै- राम नै पकड़बा गया।
गाय नै फोकट में लेज्या।
आंधी नीम नै उपाड़ दियो।
मिनकी चूसां नै खायगी।
ई-गाय फोकट में ई लेज्या।
ओकाम चोखो ई कोनी।
तांई-म्हारै तांई काईं लायो।
बेई-बो बेई बीड़ी दीजै।
बलदी-थारै बलदी मैं क्यूं दुख पाऊं।
सूं- चमची सूं दूध पीवै।
सैं-बीं सै कुण माथापच्ची करै।


तत्सम, तद्भव अर देसी सबद

संस्कृत सब भासावां री जननी है। इण वास्तै संस्कृत रा स्है सबद इण भासवां में मिलै। तत्सव रो अरथ संस्कृत समान सूं है। तत्सव सबद वै सबद है जिकां रो रूप संस्कृत रै समान है। जियां पत्रिका, सत्य, धर्म, धवल, आद तद्भव रो ्‌रथ संस्कृत सूं पैदा हुयोड़ा। तद्भव सबद वै सबद है जिका संस्कृत सबदा सूं बधालर बणा है; जियां करम, सूरज, कालो, धोलो, धरम, साचो, ग्यानी, मूरख आद।
देसी सबद वै सबद है, जिका रो संस्कृत सूं कोई संबंध नीं है। ऐ सबद देस री जूनी भासावां सूं आयोड़ा है, जियां फटदेवी, सरणाटो, फटाफट, झाटाझट, फटफटियों, झिरमिर, खड़-खड़, फड़फड़ाट, सरड़-सरड़, तरड़-मरड़ आद।
तत्समतद्भव
उष्ट्रऊंट
हस्तहाथ
अंगुष्ठअंगूठो
राष्ट्रवरराठौड़
धात्रीदाई
पितृपिता
मातृ माता
गृहघर
उच्चऊंचो
मानब माणस
मनुष्यतामानखो
रूष्टरूसणो
काष्ठकाठ
श्रृंगारसिणगार
देसी
झणझणाट
झरझरकंथा
घूघर लपसी
गिरगिराट
दावणो
मांचो
बैड़को
लफ
सरणाट
कवूं
खदबद
जाबक
भूंड


संधि

दो वर्ण में कनै आवणै सूं वां में कदे-कदे विकार हुज्यावै। इमनै संधि कैयीजै; जियां-
राम + ओतार = रामोतार
ईस + अर = ईसर
हिम  + अचल = हिमाचल
निर + लेप = निरलेप
निर + मल = निरमल
संस्कृत में संधि दो भांतरी हुवै। एक सबद में अर दूजी दो सुरतन्तर सबदां में पण राजस्थानी में फगत एक सबद मांयली संधि इज हुवै; आ समास सबदां में उपसर्ग अर सबद रै मेल में ्‌र सबद अर प्रत्यय रै मेल सूं हुवै।
जगद + ईस = जगदीश
सम् + रक्षण = संरक्षण
आर्य + आ = आर्या
राजस्थानी में स्वरादि प्रत्यय जुड़ै तो पैलां पूर्व सबद रै पछपोतड़ी रैस्वर रो लोप हूजावै अर पछै प्रत्यय रा स्वर बीं में मिल जावै-
कुटल + आई = कुटलाई
कुंवर + इयो = कुंवरियो
टाबर + इयो = टाबरियो
झाबर + इयो = झाबरियो
कर + इयो = करियो
संस्कृत में स्वर व्यंजन अर विसर्ग तीन तरै री हुवै, संस्कृत में जिकां अध्ययन हिंदी पोथ्यां सूं कियो जा सकै।


विराम चिन्ह

राजस्थानी में तीन विराम चिन्ह है-अल्प विराम, अर्ध विराम, पूर्ण विराम। वाक्य रै अंत ई अंत में पूर्ण विराम आवै। कोमा (,) अर्द्ध विराम रो अर पूर्ण विराम सारू अंग्रेज रो फुलस्टोप (.) अर संस्कृत री पाई (।) दोनूं काम में लिरीजै।
प्रश्नवाचक वाक्यां सारू प्रश्नवाचक चिन्ह (?) लागै संबोसूचक चिन्ह (!) संबोधन इच्छार्छक अर आपरा भाव-उद्गार परगच करिणांयवाक्यां रै अन्त में लागै।
(-) दो सबदां नै जोड़णियां सबद है जियां काली-पीली जोध-जावन, राजा-राणी, गैलो-गूंगो आयोजक कैयीजै।
(0) बिन्दी सबद रै आगै लगावणै सूं पूरा सबद लिखणै री आवश्यकता कोनी हुवै; जियां
कि. ग्रा = क्रिलोग्राम
छ. = छटांक
पं. = पंडित
एम.ए. = मास्टर ऑफ आर्टस्
(... ...) र्डाट-र्डाट, कोई बात या सबद छोड़णां हुवै जद प्रयोग में आवै; इणनै रिक्त चिन्ह कहीजै; जियां
राधा चली जावती पण....
हीरो खेत जोव देतो पण...
लोपक (') लिखती टेम सबद रा कोई आकल लुप्त हुवै तो बीं रौ जगां लोपक चिन्ह लगायीजै-
पी'र पीहर
खा'र खायर खाकर
सा'ब साब
किणी री बात रो वो कैयी जियां उल्लैख करणओ हुवै तो बीं नै 'इनवरटेड कोमा' में राखीजै इयां कोई पोथी रा उद्धरण देणा हुवै तो कियो जावै, ('') (""), एकसारू रो चिन्ह दजो अन्त रो, जठै बात रो पूरो उल्लेख हुजावै उठै बंद रो चिन्ह लगायीजै।
(-) जद कोई नै निर्देश देवणो हुवै या बीं कानी संकेत करणो हुवै तो डेस रो प्रयोग हुवै; जियां-
विन्ध्याचल, अरावली, हिमालय-ए भारत रा पहाड़ है।
गंगा, जमुना, ब्रह्मपुत्र-ऐ भारत री नदियां है।
कोष्ठक-कोष्ठक दो भांत रा हुवै। () [] अंगरेजी में ऐ 'ब्रेकट' कहीजै।

 


   
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