सबका मन की बात एक, सबको एक ही ख्याल। 
                        नेह भर्यो नैणा लग्यो,
                        नैण्या को ससुराल ।।1।। 
                      बैठ्या लिख लिख मरगया,
                        केइ केइ कवि दयाल। 
                        चार दिनां की चांदणी,
                        भोग्या जा ससुराल ।।2।। 
                      ई धरती पे सरग सूं,
                        प्यारो छे ससुराल। 
                        सासू जी का लाडला,
                        जा भाया ससुराल ।।3।। 
                      कामणगारी गोरड़ी,
                        बाट रही छे न्हाल। 
                        चार दनां की चाँदणी,
                        जा भाया ससुराल ।।4।। 
                      गीला मलता गासड़ा,
                        घी घडिया को घाल। 
                        गीता, गोपी, ग्यारसी,
                        मनुहारी ससुराल ।।5।। 
                      सेजा सुखमय भूलज्या,
                        बीतज्या कई साल। 
                        सालियां सुसरा सास को,
                        नेह भर्यो ससुराल ।।6।। 
                      छुट्टियां लाम्बी लागज्या,
                        या होज्या हड़ताल। 
                        भाईला बण पावणो,
                        पहुंच ज्या ससुराल ।।7।। 
                      जीजा जीजा जी करे,
                        सम्मसत बाल गोपाल। 
                        जीजा जी हरक्या करे,
                        जब जावे ससुराल ।।8।। 
                      चक्क माल भोजन मिले,
                        संग में बखता दाल। 
                        और करे मनुहार सब,
                        सालियां मिल ससुराल ।।9।। 
                      घर हाली अर टाबरां,
                        एक गांव ननीहाल। 
                        एकज ससरा ज्वांई को,
                        हरीगढ़ छ ससुराल ।।10।। 
                      सत बेजल्डी जात बसे,
                        बसे ना एक कलाल। 
                        रजपूती बासो घणों,
                        हरीगढ़ म ससुराल ।।11।। 
                      मोर मंड्या छ गोखड़ा,
                        पांचम म्याल की साल। 
                        मीठीनीमां चूंतरो,
                        घर ऊही ससुराल ।।12।। 
                      सावण की सी बीजली,
                        होली की सी झाल। 
                        पूनम की सी चांदणी,
                        रामप्यारी ससुराल ।।13।। 
                      सासू सुसरा द्वारका,
                        साली गंगापाल। 
                        सब तीरथ तज पहुंच जा,
                        चार धाम ससुराल ।।14।। 
                      सौ कामां ने छाड़ के,
                        रास पराण्यां डाल। 
                        नूंतो आव पहुंच ज्या,
                        पहल्यां तू ससुराल ।।15।। 
                      देव उठणी द्वाली हुई,
                        पूनम होली बाल। 
                        आखातीणां पावणों,
                        पहुंच जा ससुराल ।।16।। 
                      ऊंची पोल पटेल की,
                        धन्नो छ कोठीवाल। 
                        कई क टूटी झोंपड़.. 
                        सब जन रह ससुराल ।।17।। 
                      पूरणमल श्रीनाथ अर,
                        बडो छे चम्पालाल। 
                        तोतामल अर ओम संग,
                        पंच साला ससुराल ।।18।। 
                      कोई क कुआ बावड़ी,
                        कोई क सुखो माल। 
                        कोई क जबरा ठाठ छ,
                        सब ठाठो ससुराल ।।19।। 
                      लाल नग नथ पे जड़ियो,
                        अधरम लालम लाल। 
                        सारो तन मन लाल हो,
                        लाली मिल ससुराल ।।20।। 
                      जोबन चढ़तो उतरज्या,
                        ज्यूं बरसाती खाल। 
                        ढल जोबन पछतावगो,
                        भोग्या जा ससुराल ।।21।। 
                      पथ भटके मत जिन्दगी,
                        आवे जाल जंजाल। 
                        सासरिया को आसरो,
                        दौड़ज्या ससुराल ।।22।। 
                      उफण्यो समंदर न रूके,
                        पाणी पेली माल। 
                        गोणों दे दो सास जी,
                        कह जा तू ससुराल ।।23।। 
                      बिजली सी चमचम हंसे,
                        हथणी की सी चाल। 
                        घरहाली हरकी फरे,
                        ज्वांई हो ससुराल ।।24।। 
                      पेन्ट बुशट पेहण के,
                        गले बांध रूमाल। 
                        ज्वांई जी जचके चले,
                        साला संग ससुराल ।।25।। 
                      मत सम्बन्ध कर गांव में,
                        एक गांव तू टाल। 
                        एक गांव में नहीं मिले,
                        आणद दो ससुराल ।।26।। 
                      अणफूल्यो पूस्प मिले,
                        काची केरी डाल। 
                        मत उकते मती उबले,
                        धीरज घर ससुराल ।।27।। 
                      ना ज्यादा तू हेत कर,
                        रख ना अतो मलाल। 
                        सबसूं जै जै राम की,,
                        राम राम ससुराल ।।28।। 
                      सखा सहेली सरस्वती,
                        घरहाली सुरताल। 
                        नीरस सारी जिन्दगी,
                        नारी बिन ससुराल ।।29।। 
                      काम नहीं फुरसत नहीं,
                        मरदां आजर खाल। 
                        यो ही हाल ज्यांई को,
                        कहतो फरे ससुराल ।।30।। 
                      उलटा सुलटा बैल जो,
                        गाड़ी भरी उताल। 
                        खदी न भाया पूगसी,,
                        थारे थू ससुराल ।।31।। 
                      बागां में झूला बंध्या,
                        उमंगी रूखां डाल। 
                        गोहठां दे दे हीन्दल्यो,
                        सावण में ससुराल ।।32।। 
                      लीली छींट की ओढणी,
                        बून्दियां चहूं लाल। 
                        धरती अम्बर सोवणां,
                        सावण में ससुराल ।।33।। 
                      भर्या समंदर उफणसी,,
                        नन्दियां बहे विकराल। 
                        संभल संभल के चाली,,
                        सावण में ससुराल ।।34।। 
                      नन्दियां जोबण ज्यूं,
                        चढ़ी, उफणियो पेल्यो खाल। 
                        छोरा को दिल उमगियो,
                        सावण में ससुराल ।।35।। 
                      दाजी बैठिया चूंतरे,
                        गावे उद्धल आल। 
                        तेजाजी भी पूगग्या,
                        सावण में ससुराल ।।36।। 
                      गहरा बरस्या बादला,
                        भर्यो सरवर पाल। 
                        ज्वांई को मन ना भरे,
                        सावण बिन ससुराल ।।37।। 
                      बड़ो सरोवर देखल्यो,
                        भारत में भोपाल। 
                        मन सरोवर डूब ज्या,
                        सावण में ससुराल ।।38।। 
                      दन उगतांई भायला,
                        रोज पूछता हाल। 
                        सावण लाग्यो चाल अब,
                        मोज्या कर ससुराल ।।39।। 
                      रिमझिम बरसे मेह घणा,
                        छाई चहूं हरियाल। 
                        प्रेम बेल मन छा गई,
                        सावण में ससुराल ।।40।। 
                      मावस पून्यो कीर्तन,
                        मन गावे गोपाल। 
                        तेजाजी हीढ़ां छिड़ी 
                        सावण में ससुराल ।।41।। 
                      कह गुरू बण मावनी,
                        गोस्वामी गोपाल। 
                        संभल रति अरू काम सूं,
                        सावण में ससुराल ।।42।। 
                      तप्त जम्या पाणी पडियो,
                        झक झक निकले झाल। 
                        झडियां ठंड़ी पड़े,
                        सावण में ससुराल ।।43।। 
                      गरम कोट अर पेन्ट ले,
                        संग ले मफलर शाल। 
                        दांत कटाकट ठण्ड पडे,
                        श्याला में ससुराल ।।44।। 
                      एक ही कवि दयाल यहां,
                        राखे सभी ख्याल। 
                        सावण में सीधो लगे,
                        फागण फुले ससुराल ।।45।। 
                      देख दिवाली दीवलो,
                        फागण मले गुलाल। 
                        गणगोरियां मिल पूजती,,
                        सालियां सब ससुराल ।।46।। 
                      रसिया गावे प्रेम सूं,
                        नाचे देद ताल। 
                        होली आनन्द भोगले,
                        फागण में ससुराल ।।47।। 
                      चम्पा, टेसू, दमकिया,
                        गहराई हर डाल। 
                        बसन्त भायलो साथ दे,
                        फागण में ससुराल ।।48।। 
                      बामां कोयल बोलती,
                        भंवरा फरे हर डाल। 
                        बिन्दगी संग साइबा,
                        घूमे छे ससुराल ।।49।। 
                      शीत, ग्रीश्म, बरसात हो,
                        हो शिशिर च्सीछ काल। 
                        बारामास बसन्त छे,
                        पहुंच जा ससुराल ।।50।। 
                      लाणी होवे बीन्दणी,
                        तीन थ्वार थू टाल। 
                        सावणी मावस सकरंति,
                        राखी रह ससुराल ।।51।। 
                      झक झक झकर्यां बाजती,
                        बाजे ज्यूं घडियाल। 
                        संभल सती का ताप सूं,
                        बैसाखां ससुराल ।।52।। 
                      सूरजड़ो ऊपर तपे,
                        जम्या उठे छे झाल। 
                        मेघ दूरे मावट बरस,
                        चैत मास ससुराल ।।53।। 
                      अतनो मत पी भायला,
                        हो जावे बेहाल। 
                        सावण में सुध राखजे,
                        सासू या ससुराल ।।54।। 
                      चम चम चमके तावड़ो,
                        चन्दन मथल्यो भाल। 
                        मेघडो बण बरस जा,
                        वैसाखां ससुराल ।।55।। 
                      आम्बा छांव बैठकर,
                        सोचे रामदयाल। 
                        कुलर पंखा घूल छे,
                        बैसाखां ससुराल ।।56।। 
                      डूंगर ऊपर डूंगरी,,
                        आवे नद्धी नाल। 
                        भटके मति उलझे मति,
                        सीधी गेल ससुराल ।।57।। 
                      आधी ऊमर बीतगी,,
                        धोला होग्या बाल। 
                        पण ठसको तो आज भी,,
                        ऊही छे ससुराल ।।58।। 
                      मारूती ले सायबा,
                        पहुंच जाय मेनाल। 
                        घरहाली सेजां दुःखी,,
                        आया न ससुराल ।।59।। 
                      नन्दियां न्हावो प्रेम सू,
                        आम्बा ठंड़ी गप्प लागसी,,
                        उन्हाले ससुराल ।।60।। 
                      मात पिता नाराज हो,
                        भावज हो विकराल। 
                        सासरिया को आसरो,
                        पूगज्या ससुराल ।।61।। 
                      सालाहेली चिड़चिड़ी,,
                        हो साला के साल। 
                        इज्जत कम हो मति रूके,
                        ज्यादा दन ससुराल ।।62।। 
                      हाथां मेंहदी माड़ली,,
                        आंख्या काजल घाल। 
                        कर सोहले सणगार तब,
                        रहा देखे ससुराल ।।63।। 
                      कागा चुगो चुगावती,,
                        पूछे उडा बिठाल। 
                        कद आवेगा तू बता,
                        सायबजी ससुराल ।।64।। 
                      बीबी संग मत भूलजे,
                        करबो तू दकाल। 
                        भीगी बिल्ली मति बणे,
                        जाकर के ससुराल ।।65।। 
                      साणियां अमर बेल छः 
                        सासू जी टकसाल। 
                        घरहाली अमृत घड़ो,
                        भाया के ससुराल ।।66।। 
                      गीता सुणा ख्याली कहे,
                        करतब करे कमाल। 
                        कलमकार की कारतूस,
                        व्यर्थ न हो ससुराल ।।67।। 
                      बैल बंधिया छ साल में,
                        घोड़ा छे घुड़साल। 
                        घरहाली सूं सदा बन्धियों,
                        दौड़ियो जा ससुराल ।।68।। 
                      नख सिख शोभा क्या कहुं,
                        जोरू बड़ी जमाल। 
                        कामधेनु को एक और,
                        दूजो पड़ ससुराल ।।69।। 
                      लेबावाल सब मिल्या,
                        मिल्यों एक देवाल। 
                        हाथ थमां दियो बेण को,
                        सालां ने ससुराल ।।70।। 
                      चम्पा बरणियो घाघरो,
                        साडी केसुला डाल। 
                        बीबीजी हरक्या फरे,
                        ज्वांई हो ससुराल ।।71।। 
                      आम्बा की अमराई तज,
                        प्यारी काली जाल। 
                        मन कहां अब गांव में,
                        ऊ भागियो ससुराल ।।72।। 
                      मन आपस में फाटज्या,
                        जाण दरा की नाल। 
                        अस्या काम करेज मति,
                        जाकर के ससुराल ।।73।। 
                      हेत करे साली अति,
                        बणे जीव जंजाल। 
                        बीबीजी रूठिया फरे,
                        बुरा कहें ससुराल ।।74।। 
                      विश्णुजी समंदर बसे,
                        बासक बसे पाताल। 
                        कामदेव का भायला,
                        जा बसे ससुराल ।।75।। 
                      घर जवांई मद्धा ज्यों,
                        जाणए लद्यो हम्माल। 
                        दूर जवांी फूल ज्यों,
                        रीजे मति ससुराल ।।76।। 
                      भायां ने जमीं सोंपद्युं,
                        छोडूं जगत जंजाल। 
                        पा पत्नी की प्रेरणा,
                        भक्ती मय ससुराल ।।77।। 
                      बाता में सू बात करे,
                        करे कई सवाल। 
                        हेत जतावे तंग करे,
                        सालियां मिल ससुराल ।।78।। 
                      धीरां से तू कसकले,
                        हो ज्या वे जद आल। 
                        ई में ही भलाई छे,
                        भाया सुण ससुराल ।।79।। 
                      कुसंगत ना चालज्ये,
                        हो जावे कंगाल। 
                        न तू मद में भूलज्ये,
                        जाकर के ससुराल ।।80।। 
                      काम, क्रोध, मंद लोभ अति,
                        घर को हो उथाल। 
                        इन चार से सम्भल जे,
                        भाया तू ससुराल ।।81।। 
                      सालाहेली चरपरी,,
                        हो कांदा की झाल। 
                        लेर बिन्दणी आवजे,
                        रूकजे मति ससुराल ।।82।। 
                      गोरो गोरो रूप छे,
                        गोरा गोरा माल। 
                        मोह में ज्यादा मति पड़े,
                        भायला ससुराल ।।83।। 
                      बकरा ने या बांध दियो,
                        या कर दियो हलाल। 
                        मवद ने मति सू बांध जे,
                        अईयां ही ससुराल ।।84।। 
                      पवित्र मवद सदा राखजे,
                        रखो न कभी मलाल। 
                        बीबीजी का हीं रहो,
                        पीहर जा ससुराल ।।85।। 
                      दुनियां सारी घूमल्यो,
                        चीन पाक नेपाल। 
                        सबसूं न्यारो सबसूं चोखो,
                        रंगरूठो ससुराल ।।86।। 
                      ज्वाई की नन्दोई की,,
                        गावे लुगायां गाल। 
                        सालियां का घुम्मा लगे,
                        प्यारा रे ससुराल ।।87।। 
                      हाली बैज थामलिया,
                        कांधे धरली हाल। 
                        असाडियो बीजो चलियो,
                        ले थेलो ससुराल ।।88।। 
                      बक बक बक बकतो फरे,
                        भंवरियो बाबूलाल। 
                        छक माल छ्वारां छणे,
                        छोरा के ससुराल ।।89।। 
                      गेहणो गहरो धन मिल्यो,
                        मिल्या अस्या देवाल। 
                        लोभी की नियत न भरे,
                        डूब मर ससुराल ।।90।। 
                      कड़ी, कंटीली, कुकडी,,
                        कपटी काली जाल। 
                        कई तरह की सोहबती,,
                        बच के रह ससुराल ।।91।। 
                      हाल ले हाली चल्यो,
                        कृश्ण अनुज एक हाल। 
                        शब्दां में मति उलझ तू 
                        मौज कर ससुराल ।।92।। 
                      बातां में जद उलझज्या,
                        नूंई बात उछाल। 
                        जतरो सांवचेत रहे,
                        मौज करे ससुराल ।।93।। 
                      उसके कांई भायला,
                        जोरा सुं दकाल। 
                        हंसी उड़ादे मिन्टा में,
                        सालियां मिल सुसराल ।।94।। 
                      बात कहज्या व्याण्यिां,
                        भायलां प ढाल। 
                        सैन में तू समझ जे,
                        फियालियां में ससुराल ।।95।। 
                      तन सुख्यो पंजर हुयो,
                        हुया पोपलिया गाल। 
                        जीजा सूं फूफो बणियो,
                        बुडआयो ससुराल ।।96।। 
                      दोहा पढ़ ससुराल का,
                        होज्या तू निहाल। 
                        राग द्वेष सब भूलज्या,
                        निश्कपटी ससुराल ।।97।। 
                      खाओ पीवो मौज करो,
                        हो घर सब खुशहाल। 
                        कह दयाल कभी मौज करे,
                        म्हारे सम ससुराल ।।98।। 
                      घर घर की बांता मधुर,
                        सब होवे निहाल। 
                        मौन सन्देशो दे रही,
                        घर घर की ससुराल ।।99।। 
                      झण्डो ले आगे बड़े,
                        पाछे उडाले बाल। 
                        पग गांव की होर छे,
                        मन उडज्या ससुराल ।।100।। 
                      नर नारी में भेद करे,
                        वोहे काली राल। 
                        काला मन मनख्या सूं,
                        भाया बच ससुराल ।।101।। 
                      मूंह प मीठा बोलज्या,
                        पाछे काड़े माल। 
                        ई तरह का भायला,
                        मति ले जा ससुराल ।।102।। 
                      वीतराग मन छा गयो,
                        हाथां ले खुरताल। 
                        भजन कर भगवान का,
                        तब मत जा ससुराल ।।103।। 
                      जय जय जन ज्ञान की,,
                        जलती रहे मशाल। 
                        कवि दयाल गातो रहे,
                        जनहित में ससुराल ।।104।। 
                      कवि दयाल देतो रहे,
                        जनहित में या गाल। 
                        भायलां के कारणे,
                        जा भाया ससुराल ।।105।। 
                      खोटा घर सकपण हुवे,
                        जी भर को जंजाल। 
                        पहल्यां सब विधि परख के,
                        फेरू घणा ससुराल ।।106।। 
                      सालों साल डोलतो,
                        मरूधर देश अकाल। 
                        पहल्यां सो कहां बरसतो,
                        सावणियो ससुराल ।।107।। 
                      कई बरस बरस्यो नहीं,
                        पाणी ग्यो पाताल। 
                        अब के आस असाढ़ में,
                        जा भाया ससुराल ।।108।। 
                      डायजा के कारणे,
                        दे बेटियां ने बाल। 
                        सासुडियां बेरण बणे,
                        जानलेवो ससुराल ।।109।। 
                      चट मंगणी पट ब्याह अब,
                        कहां गीत अरगाल। 
                        जाती कहां बरात चढ़,
                        घर बैठियां ससुराल ।।110।। 
                      खालङल ताई सबकी सुणी,,
                        करती आज सवाल। 
                        पढ़ लिख बैठियां सबंलगी,
                        पीहर अ ससुराल ।।111।। 
                      नारी सूधी सी लगे,
                        बगड़ियां प विकराल। 
                        या ही लछमी, सरस्वती,
                        रणचण्डी ससुराल ।।112।। 
                      मोटो धन्नो सेठ हो,
                        या गोबरी लाल। 
                        छोटो बड़ो एकसो,
                        मनवालो ससुराल ।।113।। 
                      बामण नाई जाट हो,
                        या रजपूत कलाल। 
                        जीजी की बस जात इक,
                        जब जावे ससुराल ।।114।। 
                      प्रेम पत्र मनुहार कहां,
                        यो ई मेल संभाल। 
                        मोबाइल में मन बस्यो,
                        फैक्स फोन ससुराल ।।115।। 
                      दुनिया भर में छा गयो,
                        इंटरनेट को जाल। 
                        ई मेल शाही हुये,
                        कम्प्यूटर ससुराल ।।116।। 
                      नौ चोका, चूल्हा जले,
                        नाली सीजे दाल। 
                        ऊँच नीच, छोटा बड़ा,
                        क्यूं अब भी ससुराल ।।117।। 
                      इक चूल्हे रोटी बणे,
                        इक चूल्ही की दाल। 
                        भेद भाव सब भूलके,
                        संग जीमो ससुराल ।।118।। 
                      चाकरिया भरतार की,
                        बदली होज्या खाङल। 
                        असी बीन्दणी के लिए,
                        पीहर सो ससुराल ।।119।। 
                      बालम थारे कारणे,
                        जोबन रखियो संभाल। 
                        अब म्हारा बसरी नहीं,
                        बेगो बल ससुराल ।।120।। 
                      पढ लिख सेवा राजकर,
                        खूब कमा धन माल। 
                        सोनों खेता में कमा,
                        तब प्यारो ससुराल ।।121।। 
                      प्रेम, फूल, प्रकाश री,
                        बांता भूल दयाल। 
                        मंगाई की मार सूं,
                        सपनों सुख ससुराल ।।122।। 
                      चिता धधकती दीखती,
                        आगे चेत दयाल। 
                        आधी ऊमर बीतगी,
                        समझयो न्ह ससुराल ।।123।। 
                      कुबुद्धि कपटी कुटिल,
                        कुसंगत तू टाल। 
                        जीवन भर पहुंचे नहीं,
                        याके संग ससुराल ।।124।। 
                      निज स्वास्थ रे कारणे,
                        मत चल अपजस चाल।। 
                        जग मलाई चीतसी,
                        भलो होई ससुराल ।।125।।