आपाणो राजस्थान
AAPANO RAJASTHAN
AAPANO RAJASTHAN
धरती धोरा री धरती मगरा री धरती चंबल री धरती मीरा री धरती वीरा री
AAPANO RAJASTHAN

आपाणो राजस्थान री वेबसाइट रो Logo

राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

News Home Gallery FAQ Feedback Contact Help
आपाणो राजस्थान
राजस्थानी भाषा
मोडिया लिपि
पांडुलिपिया
राजस्थानी व्याकरण
साहित्यिक-सांस्कृतिक कोश
भाषा संबंधी कवितावां
इंटरनेट पर राजस्थानी
राजस्थानी ऐस.ऐम.ऐस
विद्वाना रा विचार
राजस्थानी भाषा कार्यक्रम
साहित्यकार
प्रवासी साहित्यकार
किताबा री सूची
संस्थाया अर संघ
बाबा रामदेवजी
गोगाजी चौहान
वीर तेजाजी
रावल मल्लिनाथजी
मेहाजी मांगलिया
हड़बूजी सांखला
पाबूजी
देवजी
सिद्धपुरुष खेमा बाबा
आलमजी
केसरिया कंवर
बभूतौ सिद्ध
संत पीपाजी
जोगिराज जालंधरनाथ
भगत धन्नौ
संत कूबाजी
जीण माता
रूपांदे
करनी माता
आई माता
माजीसा राणी भटियाणी
मीराबाई
महाराणा प्रताप
पन्नाधाय
ठा.केसरीसिंह बारहठ
बप्पा रावल
बादल व गोरा
बिहारीमल
चन्द्र सखी
दादू
दुर्गादास
हाडी राणी
जयमल अर पत्ता
जोरावर सिंह बारहठ
महाराणा कुम्भा
कमलावती
कविवर व्रिंद
महाराणा लाखा
रानी लीलावती
मालदेव राठौड
पद्मिनी रानी
पृथ्वीसिंह
पृथ्वीराज कवि
प्रताप सिंह बारहठ
राणा रतनसिंह
राणा सांगा
अमरसिंह राठौड
रामसिंह राठौड
अजयपाल जी
राव प्रतापसिंह जी
सूरजमल जी
राव बीकाजी
चित्रांगद मौर्यजी
डूंगरसिंह जी
गंगासिंह जी
जनमेजय जी
राव जोधाजी
सवाई जयसिंहजी
भाटी जैसलजी
खिज्र खां जी
किशनसिंह जी राठौड
महारावल प्रतापसिंहजी
रतनसिंहजी
सूरतसिंहजी
सरदार सिंह जी
सुजानसिंहजी
उम्मेदसिंह जी
उदयसिंह जी
मेजर शैतानसिंह
सागरमल गोपा
अर्जुनलाल सेठी
रामचन्द्र नन्दवाना
जलवायु
जिला
ग़ाँव
तालुका
ढ़ाणियाँ
जनसंख्या
वीर योद्धा
महापुरुष
किला
ऐतिहासिक युद्ध
स्वतन्त्रता संग्राम
वीरा री वाता
धार्मिक स्थान
धर्म - सम्प्रदाय
मेले
सांस्कृतिक संस्थान
रामायण
राजस्थानी व्रत-कथायां
राजस्थानी भजन
भाषा
व्याकरण
लोकग़ीत
लोकनाटय
चित्रकला
मूर्तिकला
स्थापत्यकला
कहावता
दूहा
कविता
वेशभूषा
जातियाँ
तीज- तेवार
शादी-ब्याह
काचँ करियावर
ब्याव रा कार्ड्स
व्यापार-व्यापारी
प्राकृतिक संसाधन
उद्यम- उद्यमी
राजस्थानी वातां
कहाणियां
राजस्थानी गजला
टुणकला
हंसीकावां
हास्य कवितावां
पहेलियां
गळगचिया
टाबरां री पोथी
टाबरा री कहाणियां
टाबरां रा गीत
टाबरां री कवितावां
वेबसाइट वास्ते मिली चिट्ठियां री सूची
राजस्थानी भाषा रे ब्लोग
राजस्थानी भाषा री दूजी वेबसाईटा

राजेन्द्रसिंह बारहठ
देव कोठारी
सत्यनारायण सोनी
पद्मचंदजी मेहता
भवनलालजी
रवि पुरोहितजी

पन्नालाल पटेल

शिक्षान्तर, 21,
फतेहपुरा,
उदयपुर, 313004
(राजस्थान)
फोन नं. 0294-2451303

प्राचीन राज फतीना में मारवाड तथा मेवाड दो बेहभाग है मारवाड नाम का एक भाग है मारवाड में एक नगर जिसे आज भी ओसिया के नाम से जाना जाता है। यहां प्राचीन प्राबादी राजपूतो की थी इसी नगरी में विक्रम सं. (एक मत द्वारा) सं. 222 (दूसरे मत द्वारा सं. 500) जैन साधू (यति) रत्नप्रभुसूरीजी हुए। ये जैन धर्म के प्रचार हेतु उपदेश दिया करते थे। सं. 222 के माधशुक्ला पंचमी गुरुवार के दिन रत्न प्रभ सारे जीने जैन धर्म का राजपूतो को प्रतिबोध दिया जा रहा था कि कुछ राजपूतोने उपदेशो से प्रभावित होकर वृतग्रहण किये तब से उन्हे महा-जन ग्रार्थात (बडे आदमी) की उपाधी दी गई उस समय वहा के राजा प्रभार वंशी सुर सेनगी थे।
राजा इन उपदेशो से नाराज हो गये और एसे वृतग्रहण करने वालो के ग्रावेन राज्य से बाहरकर दिये। जो सिया नगरी छोड़कर वहा से निकल पड़े प्रोर जिन्हे जंहारोजगार प्राथवा कृषिके सुयोग्य साधन मिले वहा बसने लगे।
प्रोसिया से ग्प्रोनवाले परिवार जहां भी बसे उनका स्थानीय व्यति ग्प्रोतियावाले के नाम से परिचय कराया करते थे। इसी आसि योवल क अम्रशः ग्प्रोसवाल तब ही से ग्प्रोसवाल कहने लेग। इन्ही परिवारों में एक परिवार राढो़डवंश ग्प्रोर सुसाणीगोत्र का था। पोकरन में बहावोने पार्श्वनाथजी का मन्दिर बनाया था।
जो पोकरण में आकर बसा तथा सं. 335 में भगवान पार्श्वनाथ का मन्दिर बनाया। कब बसा महतो ज्ञात नही होयता आपेण यह अवश्य ज्ञात  हुआ कि विक्रम सं. 1000 से पूर्व पोकरण में निवास रहा था। विशेष उल्लेखनीय एवं महत्व पूर्ण बात यह पाई गई कि बूजर्गो ने पोकरण (फ्लोदी) में रहकर 84 वर्ष तक सदाव्रत (अन्तवस्त्र आदि) दिया था।
ग्प्रोसवाल जाति की उस समय वि.सं. 1000 के पूर्व तक मूल गौत्र 18 थी। इन 18 गौत्रो को 4 हट शाखाएँ बनी। पांचवी गौत्र का विवरण इस प्रकार है।

मूल गौत्र - पूर्व मोरख

शाखाएँ - पोकरण, संघवी, तेजारा, चुंगा, लधुपोकरणा, वांदोलिया, लघु चंगा, गजा, चोधरी, गोरीवाला, केदारा, वाताकड़ा, करचु, कोलोरा, शोगाला, कोठारी – कुल योग 17

पोकरणा गौत्र का उद्भव पोकरण रहेन तथा पोकरण से जो बड़ोव जंहार भी गये इसी स्थान से जाने के कारण पोकरण गौत्र पड़ी है। सिंघवी परिवार का विवरण पोकरण फलोदी में रहे पोकरणा परिवार के बड़ावो में से श्री रामेदेवजी (जिन्हे रामचन्द्रजी भी कहते थे) हुए इनकी नवीं पीढ़ी में श्री वीरपालनी हुए इनकी तीसरी पीढ़ी में तीन भाई हुए थे। डुंगरजी, पोथाजी एवंम् वालाजी। वालाजीने वि.सं. 1975 में रामेश्वर से संघ निकाल शत्रुजय गीरनार यात्रा की तब से इस परिवार को सिंघवी कहा जाने लगा।
इसी प्रकार पोकरण फलोजी में रहे श्रीवरदेनजी की पीढ़ी में पाँच भाई थे एक भाई रवेतसीजी हुए इनने भी सं.वि. 1545 में पीसांगन गांव से संघ निकाला तब से इस परिवार को भी सिंधवो कह जाने लगा। इन्ही के चोथे भाई हालुजी थे जो सतरवन्दा में जाकर बस गये तोग्र पोकरना ही रहे।
खेतसीजी के परिवार के एक श्री नेतासिंहजी हुए जो वि. सं. 1865 में सतरवन्दा से उदयपुर आकर बसे। इनके परिवार के तीन व्यक्तियों ने जैन दीक्षा ली। जिनके नाम निल है।

श्री फूलचंदजी       दीक्षा ली सं. 1255 धर्मपत्नि मीदाशा
श्री कन्हैया लालजी   दीक्षा ली सं. 1967
श्री चतरसिंहजी            दीक्षा ली सं. 1970 बे. बीद 10 गुरुवार पाली में दीक्षा ली। दीक्षा के पश्चाय ये दूसरी सम्प्रदाय में चले गये परन्तु वंहा नही रह पाये तब सं. 1982 में पुनः आये और नई दीक्षा ली। उस परिवार में से 2 घर उदयपुर में है।

इस प्रकार पोकरण से कई परिवार राजस्थान ग्प्रौर राजस्थान के बाहर भी जँहा जिनका कारोबार जमा वहा वे निवास कर रहने लगे।
यह सैंकड़ों साल पुराना गांव है। पाटन नगरियों के समग्र यह नगरी अपने वैभव के चरमोत्सव परथी उस समय इसे आभापुरी पाटन कहा जाता था। गंधर्व सेन नामक राजाने इस नगरी पर राज्य किया। कालान्तर में पाटननगरी तो उजाड़ हो गई। रासाजी शाह नामक धनाढ करना यहा से गुजरा। वह स्वण दान किया करता था। उसे नगर पर नचवे सेन नामक राजा  राज्य करते थे। कालान्तर में यह पाटन नगरी उजाउ हो गई।
पोकरण फलोदी से ही एक परिवार मिनाल गया। इस परिवार में श्री टोउरमलजी हुए। टोडर मलजी बादशाह अकबर के दरबार में नो रत्नो में से एक हिने जाते थे। इनके नाम की ख्याति आज भी देहातो में इस नाम से प्रचलित है कि तब भी लेखानोखा में फरक पाए जाता है। तो यह कह कर कि टोडर मलजी मेल मिलाग्प्रो कहते है जँहा भूल हुई वह इस नाम के लेते ही पूरक मालुम हो जाता कि भूल कहा हुई है। इस खावदान परिवार मिनाम से देषगढ आया और दो परिवार उदयपुर रहते है।
पोकरण से ही एक परिवार छोटा महुवा जाकर बसा ग्प्रौर वहा से इसी परिवार के श्री बालाजी हुए जो महुवा से दान्थल जिला भीलवाडा में आबाद हुए। सं. 1918 के पूर्व तक यह परिवार जान्थल रहा और इसके पश्चात पुरावतो आकोला जिला भीलवाडा में आकार बसा।
दान्थल में निवास के समय ही सं. 1759 के आसपास श्री पेमाजी के चार पुत्र हुए थे द्वितिय पुत्री श्री हाथीरामजीर्थ इनके पुत्र श्री तिलोकचंदजी एवं पोत्र श्री निहालचंदजी हुए इन दोनो ने तव गच्छ सम्प्रदाय के श्री गम्मोर विजयजी के पास दीक्षा ली। श्री पेमाजी के प्रथम पुत्र श्री शोभाचंदजी हुए थे। इनके चोथी पीढ़ी  में श्री सालगरामजी हुए इनके एक बहिन थी जिसकी सगाई श्री जोरावरसिंहजी से की थी। जो उस समय कोठारीया गांव में रहते थे। (यह गाँव नाथद्वारा से 2 मील दूर है) इधर उदयपुर में महाराणा श्री सज्जनसिंहजी के कोई संतान नही थी इस कारण महाराणा के किसी को गोज लीया जाय यह मंत्रणा चल रही थी। सरदार उमरावो के निश्चय अनुसार श्री फतहसिंहजी को गोद लिये और उदयपुर के महाराणा बने।
देहाती जीवन से उब कर शहरी जीवन बिताने की प्रबल इच्छा बनी ग्प्रोर श्री जोरावर सिंहजी सुरीना तथा कोठारी खानदान से श्री केसरी चंदजी – उदयपुर आये। उस समय उदयपुर नगर के चारो तरफ परकोटा बना हुआ था तथा प्रवेश ऐक दरवाजे बने हुए थे। हाथीपोलनाम से बने हुए दरवाजा बाहर बडा चबुतरा था। दोनो प्रवेश करे उसके पूर्व ही दरवाजा बन्द हो गया अतः चबुतरे पर रहकर रात बिताई प्रातःकाल दरवाजा खुलने पर दोने ने नगर में प्रवेश किया तथा श्री शितलनाथजी के मन्दिर के निचे आकर रहे। उस समय इस मन्दिर में नगर की बहिने कोडिया खेलने हेतु आया करती थी  और मन्दिर के बाहर कोडिया बेचनेवाले बैठा करते थे। इन दोनोने भी कोडियो का धन्धा प्रारम्भ किया। परन्तु कोनरीजी के चोरी हो गई सुरानाजी इसके पश्चात पास ही एक चुबतरा था जिसे दावी चोतरा के नाम से पुकारा जाता था। (जहा आज घंटाघर है) यंहा शहर में कुछ देहाती आदिवासी बैसो पर सिर पर अथवा अन्य साधन से घास तथा लकडियो के गट्ठे लाते थे और प्रतिबोल 2 तके राज्य को कमीशन देना पडता था। बालक होनाहार और परिश्रमोर्थ संयोग एसा बना कि श्री जोरावरसिंहजी को इस चबुतर पर दाणा पाने कमीशन वसूलने की नोकरी मिल गई। धीरे धीरे पत्ता चलने पर श्री बृजलालजी सुराता जो उस समग्र ठिकानो के व्यवस्थापक थे ये बड़े बहादुर और सूखीर्थ राज्य से इन्हे वलेणा घोडी तथा जागीर मिली हुई थी। इन के कोई सन्तान नही थी अतः एव श्री जोरावरसिंहजी को इनके गोद रख लिये। गोद रखने के पश्चात सामान्य स्थिति से मोड़ खाकर उच्च धरीने में पहुंच गमे तब इनका विचार बाल्यावस्था में की गई सगाई छोडने का हुवा निर्लम लिया जा रहा थी कि महाराणा प्रतह सिंहजी तक बात पहुची। महाराणा पुराने विचारो के और ग्प्रानबान के पथे थे कहा, अपनी मांग (सगाई की हुई लडक) को दूसरा ले जाय एसा कभी नही हो सकता और कहा कि विवाह इसी लडकी के साथ होगा। तदानुसार उदयपुर से मीलवाडा होकर आकोला बरात आई। बरात में हाथी घोडे तथा रथ भेजा था उस वक्त आवागमन के पर्याप्त साधन नही थे। फिर भी महाराणा के द्वारा लवाजमा के साथ बरात पहुचाई गई।

हमारे बुर्जूग उन दिनो दान्थल (जिसे उस समय दादुयल पुकारते थे) से आकोला नये नये ही आकार आबाद हुए थे। रहने का साधारण एव परेल मकान चारभुजाजी के मन्दिर के पास कुम्हारों ती गवाडी में था वहा विवाह कार्य सम्पन्न होना था।
उदयपुर से आई हुई बरात को पास के जैन उपासरे में ठहराई तथा साथ में आये पेदल सिपाही आदि को गांव के बाहर पानी की कुई के पासे वाले तालाब (जोरवाली पडा था) में डेरे तम्बु आदि लगाकर ठहराई गई।
लग्न के दिन बारात लवाजेम हाथी घोडे आदि के साथ आई और उस खपरेल मकान के बाहर हाथी में बैठे दुल्हे (साएजी श्री जोरावरसिंहजी) ने तोरण का दस्तुर किया था। भीलवाडा जिले में यह घटना तुरन्त फैल गई क्योंकि एसा अनोखा अवसर (राजसधराना, सरदार उमराव तथा ठिकानेदारो को छोडकर महाजन ओसवाल जाति के लिए पहला ही उदाहरण था। प्रतिष्ठा बढ़ी तथा आसपास के गांवो में चर्चा फैल गई।
कुछ ही वर्षो के पश्चात इस खपरेल मकान को छोडकर ठिकाने के गद के सामने नया पही पोस मकान बनाया, वहा रहने लग गये।
इधर विवाह के पश्चात अपने भाई हंसराजजी को भी वे उदयपुर ले आये और सरकारी नोकरी लगा दी उस समय से हँसराजजी सहाजी की हवेली के मकानो में ही रहते थे।
विवाह के बाद मुवासा जब आकीला आये तो उनका उदयपुर में मन नही लगता था और कोई सन्तान भी नही हुई थी इस कारण किसी बालक को अपने साथ उदयपुर लेजाने की इच्छा प्रकट की। सोचा कि किसे भेजा जाय। सालगरामजी के चार पुत्र थे उनमे से तृतीय पुत्र श्री खेमराजजी के तीन लडके हुए थे। मदनसिंहजी और मालुमसिंह बालक थे इस कारण प्रथम पुत्र श्रीमोघासिंहजी जिनकी उम्र उस समय 6-7 वर्ष की थी उन्हें उदयपुर ले आये।
उदयपुर आने के बाद पढाई हेतु मालदासजी की सहरी महता संग्रामसिंहजी की हवेली के पास जंहा पुराने जमाने में आर्युवेद ओषघालम एंव रसायनशाला (आर्युवेद सेवाश्रम) वर्तमान नूतन उपाश्रम है। यंहा एक स्कूल था, भरती कराये। वर्णमाला में व्यजन का अक्षर च के पश्चात छ का उच्चावरण सिखवाया जा रहा था परन्तु मुँह से शुद्ध बोल नही पाये और अध्यापकने हाथ में एक बेतकी मारी, रो पडे और स्कूल से सदा सदा के लिए छुट्टी ले ली। तब कुछ पढाई घर पर ही रह कर की और पश्चात राजकीय नोकरी का निर्णय किया।
इधर सहाजी जोरावरसिंहजी सुरानाने राज्य के कई महत्वपूर्ण कार्य किये। सरदारे व उमरावों को समलोन में तथा महाराणा व उमरावों के बीच की संधि के आश्व को कर्नल रोबिन को समलोन में अग्रभाग लिया था इसी प्रकार स्वरुप शाही रुपया (उदयपुर राज्य का सिक्का) के विषय में रजिडेन्ट (अंग्रेजो के राज्य के प्रतिनिधि) को समलोन के लिए गये तथा सं. 1915 में डाकू मीणोका दमन भी किया था। इस प्रकार आप राजकीय समो में चतुर प्रबन्ध कुशल बन गये। महाराणाने चितोडगढ़ के हाकिम के पद पर नियुक्त किये चितोड में रहकर राजकी वार्षिक आम चितौड की 57000 रु. थी उसे बंढा कर एक लाख तक कर रहे इस प्रकार आपकी अमूल्य सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराणाने निम्न इज्जत प्रदान की।

    1. छडी रखेगे।
    2. बलेणा घोड़ा दिया।
    3. दरबार में बैठक बीसी
    4. दरबारी पोशाक दी
    5. जीकांर लगाया
    6. नाव की बैठक दी
    7. गांव बासनी जागीर में दिया

और भी कई रुको तथा इनाम भी दिये
माधोसिंहजी जबी बड़े हो गये और नामे का काम करने में समझे हुए तब यह सोचकर कि भीलवाडा आकोला आजासके..... भीलवाडा स्थित-पेच जिसे रुई पिलने का कारखाना कहेत है नामेदार की जगह नौकरो दिला दी।
राजकीय नोकरी हो गई तथा विवाहयोग्य भी तब उपर के ही मेहता जाहीरदार हेमराजजी कोठा गनेशधारी की द्वितिय पुत्री मेहताबभाई के साथ विवाह कर दिया। लगभग डेढ दो वर्ष के अन्तराल में ही उनकी मृत्यु हो गई।
इधर श्री हंसराजजी के कोई सन्तान नही थी। इस कारण श्री माघोसिंग को हंसराजजी के यहा गोद रख दिये। हंसराजजी के तीन लड़किया थी जिनका विवाह हो चुका था। पहले श्रीमती गुलाबबाई उनका विवाह श्री कन्हैयालालजी बोरदिया के सात हुआ था।
दूसरे श्रीमती तख्तकुंवरबाई, इनका विवाह श्री हंगामीलालजी खाव्या के साथ हुआ था।
तीसरे श्रीमती गयेरबाई, इनका विवाह श्री नथमलजी दोसी के साथ हुआ था।
श्री माघोसिंहजी का दूसरा विवाह नही हो पाया तब एक राजपूत जाति की नारुजी की बहु (विधवा) पालवात रही इधर पुनः विवाहका प्रमास चल रहा था उस समय कही कन्या ओरे रुप में लिंग जाति थे जिसे दाया कहेते थे। उदरपुर केटी हकती अनोपचंदजी आँच लिया थे की पुत्री श्रीमती मुरबाई का विवाह कराने का प्रयास किया। उस समय आंच लिया परिवार की स्थिति सामान्य थी अतएवः 800 चारसौसपया दपदिकर महा शादी की गई। इन्ही दिनो श्री हंसराजजी का स्वर्गवास हो गया था। श्रीमती हँसराजजी का स्वास्थ्य अचानक कमजोर हो गया वैर्यांन निमोनिया बताया उपचार की द्दष्टि से गांव आकोला में एक वृक्ष जिसे “रोइस” के नाम से जाना जाता था उसको छाल उबाल कर देने से निमोनिया ठोक हो जाता या अतएव श्री मागोसिंहजी स्वयं आकोले गये और इधर श्रीमती हंसराजजी का स्वर्गवास हो गया जब आकोला से वापस लोट कर आये तब दूसरा दिन हो चुका था मृत्यु के क्रियाक्रम से निवृत्त होने पर मामासा की सन्दूक खोलेन का प्रसंग उपस्थित हुआ। श्री माघोसिंहजी को ज्ञाता था कि उनकी माता का विशेष प्रेम लडकियो से था और स्वयं की अनुपा में स्वर्गवास हो गया है पत्ता नही अकेले में सन्दुकरवोलीजायगीतो क्या निकले और क्या नही निकले यह सोच कर निर्णम किया कि दो व्यक्तियों की शाम लात से खोली जाय। तब श्री तख्तमलजी सांखला तथा श्री देवीलालजी दोसी को बुला कर सन्दूक खोली तो छप्पन रुपया छःआना तथा पाँव के अंगुठे में पहिनने की चांढी की गोरे निकली। यह बात जब सभी को ज्ञात हुई तो चर्चा होने लगी और आखिर धीरे से यह शब्द कानो में आगे कितीनो बहिने मृत्यु के समय ही धन साचति इत्यादि जो भी था उसे निकाल तकडी में तौल कर तोनो ने पोति की और अपने घर ले गये है। कुछ व्यक्तियों द्वारा यह भी बताया कि प्रत्येक बहियके एकसो तोला सोना, पांच सो तोला चांदी और ग्राम बढ़ी में खेतो की जमीन के तथा आम (वृक्ष) के खेत भी थे पाति में आये है। मन में कई विचार उत्पन्न हुए और यह भी संदेह हुआ कि हंसराजजी के पास इतनी सम्पत्ति तो नही थी फिर इस पर विश्वास कैसे किया जाय तो ज्ञात हुआ कि मुवासा श्रीमती जोरावरसिंह जी समेदशिखर की यात्रा गये थे तो वे अपनी सन्दूक वहा रखकर गये और मामा के लोटने से पूर्व ही रास्ते में मृत्यु हो गई इस कारण मामासा (श्रीमती हंसराजजी) के पाए जो भी कुछ था वो तथा मुवासा की पेटी की सम्पति थी।

इस परिस्थिति में कि सम्पति केवल छप्पन कपवा छः आना ही निकली है और अब पिछला काजकरियावर जो उस समय प्रचलित रिवाज था, करता है कैसे किस साधन से होगा यह विचार चल रहा था कि यह खबर आकेले भी पहुंची। वहा भी खेती बाडी के अतिरिक्त और हसा कोई आम का साधन नही है और माघोसिंहजी को गोत रख देने से न इधर के रहे न उधर के क्या करें। श्री मदनसिंहजी का उदार एवं समलदाउ और विचसण बुद्धि के थे। यह सोच कर उने छ बीघा जमीन जो आकोला बागवाला छोकर में थी उसे श्री माघोसिंहजी के नाम लिख दी यह भी जोगीरदारने बाद मे ले ली। दोसो जो बहनोई लगते थे उनके व्याज पर (50) पचास रुपया उधार लिया और उसेसे पिछछा कार्य रितिरिवाज अनुसार सम्पादित किया बाद मे बरसी (बारहमहा को) करना भी स्थिति बिगड़ गई थी आम के भी कोई समुचित साधन नही थे. (तनख्वाह केवल नाम मात्र उस समय के अनुसार बारह रुपया आठ आना थी) श्री नथमलजी दोसी (बहनोई) से एक सौ रुपया फिर मांगा तो उन्हो ने पहले के पचास रुपयो की मांग की। देने की स्थिति में नही थे अतहव एक सौ रुपया लेकर डेढसो रुपये काखत लिखा उसमें पूर्व के पचास रुपया भर देने का उल्लेख किया गया। और इस प्रकार बरसी का काम पूरा किया।
श्री माघोसिंहजी के दूसरी शादी हो जाने तथा मुवासा की पेटी की घटना हो जाने से वहा का काम मकान छोड दिया और नगर सेठजी की हवेली वाली पोल में श्री लखतासिंहजी महता का मकान किराये लेकर कुछ वर्ष वहा रहे। तत् पश्चात गनेशधारी (गांगा गली)में श्री देवीलालजी बोल्या की पोल में रहने लगे। यहा छगनलालजी सिंघवी (पोखरना) भी रहते थे इनकी एक लड़की श्रीमती मोहनबाई जिनका बाद में विवाह श्री हीरालालजी चोधरी से हुआ तथा एक लड़का श्री अमृतलालजी थे। श्री छगनलालजी का स्वर्गवास क्रमउम्र में ही हो गया था। भाई बन्ध होने व साथ रहने से प्रेम बढ़ गया। स्वयं श्री माघोसिंहजी के भी एक लड़की श्रीमती मोहनबाई थे जिनका विवाह बाद में हीरालालजी चोधरी के भाई दोलतसिंहजी से हुआ था। श्री छगनलालजी को लडकी मोहनबाई से भी उतना ही प्रेम था जितना स्यं की लडकी मोहनबाई से, बल्कि स्वयं को लड़की से भी अधिक प्यार उनकी लड़की से रखा था।
इसी पड़ोस में श्री अम्बालालजी भंडडोरी के पिता कन्हैयालालजी तथा मेरुलालजी दोसी रहते थे उनसे अच्छा रिश्ता बन गया था और श्री कन्हैयालालजी मंगरो के दो मंजिला मकान कून्दोसो के ओल में था श्री माघोसिंहजी के गिरवीर दिया। नकान केवल 250 क. में गिरवी रखा था इसी पोल में एक अग्रवाल मेडा लिया के भी पांच मकान थे वे भी 750 रु. में गिरवी थे। बिखत भी सेवा दिये इस प्रकार गनेश घाटी के मकान को छोडकर कन्दोइयों ओल मकान में आ गये।
आकोला बराबर आना जाना रहता था सर्विल भी भीलवाडा पेच में थी। आकोला छोटा सा गांव था लड़कियों की कमीथी इस कारण मदनसिंहजी का विवाह नही हो पाया था। माघोसिंहजी उदयपुर आते जाते रहते थे। सहाजी जो विरसिंहजी की हवेली में नोकरो की आना जाना था वहा श्रीनथमलजी दोसी की डावड़ (नोकरीनी) की बेटी गंगा बाई थी जिसे शादी नाथुलालजी सिंघटवाडिया के नोकर मंहरही थी बाद में गंगाबाई के उसके महा से समाज बुलाकर वत्लप बुलाई कुछ कहना है वो अविवाहित थी तो कुछ ने कहा विवाहित थी कुछ भी हो यह तय किया कि इसे आकोल ले जाई जाम निश्चयमानुसा आकोला ले गये और यह मदनसिंहजी के पासान रह गई। यह जाति की दसेगन बताते है इसके द्वारा उनके दो सन्तान हुई। श्रीरामचन्द्रजी तथा सुन्दरबाई। वैसे मदनसिंहजी काफीरइस तबीयत के थे घर में ही प्रायः रहते। दिनभर झूलते दिसे आज झूला कहते है उस समय इगरा कहते थे। आकोल में खेती की जमीन तीन हिस्सो में थी। (1) छड़ा में (2) थालिया में (3) अखारा में हमारी अपनी जमीन जाहीरदारने छीनने की बहुत कोशीश की भी सं. 1996 में आकोला की प्रेमारश हुई थी उस वक्त नन्दराय निवासी हरनाथ सिंहजी महता अमीन तथा सुगनम लगी ढाब लि गीरहीदर आये थे। जगमाथजी बिरमन जो कि मावु मासेगी। काफी से का मिल था उसमें गवाए से अपने कब्जे सारी जमीने अपने नाम दर्ज कर दी।
जागीर से खालसा में नही ले जा सकते थे थलिया की जमीन खालसे की थी (कोदुकोटर) उदयपुर निवासी गिरजाशंकरजी बिरहमन जगदीश चोक की तरफ से गिरवी रखी गुई थी उसमें खाद की आवश्यकता रहती और घर में भी 3 मेसे 30-80 गाये व, घोडी थी उसका भी खाद काफी मात्रा में बनता था जिसे आवश्यकतानुसार रात में लेजाना पडता इससे जागीरदारबाधसिंहजी असन्तुष्ठ हो गया और कहलाया भी था खाद खालसा के खेतो में जलने को न लेजाने का परन्तु यह व्यस्था बराबर चलती रही इससे नाराज होकर मदनसिंहजी को मारने का इरादा किया और दरोगा को भेज मदनसिंहजी को बुलाए गढ में जाने के बाद किवाड बन्द कर दिये ताला लगा दिया। उनके यहा नोलिया दरोगा भर वो बहुत खुखार व्यक्ति था। उसे जागीरदार बाघसिंहजीने कहा कि “तलवार लेकर दो ढोल कर दे” आया और मदनसिंहजी बडे दमंग थे, कहा मदनसिंह के दी ढोल करनेवाला अब जन्मेगा। एसा कहते ही त्रटकी बूर्ज परस्पद गये और छलांग लगाई। गट के अन्दर हो घास की भागल लगी हुई थी उस पर गिरते ही पहले दरवाजे के साकल कुण्डे लगे तोड दिये और किवाड खोलकर बाहर आ गये। बाहर आने पर उदयालेजी भाई सा को मालुम हुओ। उस दिन की जाति में करियावर था तुरन्त ….... .से लोन हो गये। बाघसिंहजीने दरवाजें पर मोडीसेहजीको लगा रखे थे वे भी कुछ नहीं कर सके। अन्त में गांव के पास ही खालसा के हरिये में गामरी खेडा गाँव था। वहा मकान बनवाया परन्तु निवास नही किया उस समय उनकी उम्र 50 – 55 वर्ष की थी 62 वर्ष की आयु में उनकी सं. 1984 माघ वृष्ण द्वितिया को मृत्यु हो गई।
श्री मालुमसिंहजी का विवाह भी कंही नही हो पा रहा था अन्त में लगभग सं. 1975 के आसपास सांगानेर निवासी श्री छगनलालजी भंडारी के पुत्री मुरबाई के साथ निश्चित हुआ। यहां पर भी दाये का प्रसंग उपस्थित हुआ। अतः पांच सौ रूपया दिया गया विवाह के दिन बरात जाने की तैयारी हो रही थी कि इधर धगनलालजी भंडारी का संदेश मिला कि चारसौ कपया और देवे तो ही बरात लावे और शादी हो सके बाहर के रिश्तेदार भी आये हुए थे और जाति समाज में चर्चा नही हो तथा रूपये किससे मांगे जाय एक विकट समस्या खड़ी हो गई। गांव में एक ढ़ोली रहता था उसका मदनसिंहजी से अच्छा व्यवहार था तथा उसके जमीन का उदयपुर महेन्द्राजसमाये एक मुकदमा भी चल रहा था जिसमें माधोसिंहजी ने अच्छा सहयोग दिया था। अतः बिना किसी के सामने इस घटना की चर्चा किये उससे रूपये लेने का निश्चय किया। तारिजाति बिरादरी के लोग नाताने ..... भी नही हो जा.... जमीन के सुदढमें के कारण ढो़ली को शादी में आने व ढो़ल बजाने से जागीरदारने नाराजगी के कारण मनाकर रखा था इससे भी ढो़ली नाराज था तब गांव में हो यतिजी महाराज के उपासरे का नगारा मंगाव कर उसे शादी में लाजाकर नगारा बजा शादी की। मुरबाई की उम्र उस वक्त 14 वर्ष की थी। इनेक एक बहिन चन्दरबाई थी जिनका विवाह सांगानेर में ही श्री छगनलालजी सुराना से हुआ था जिनके पुत्र रतनसिंहजी सुराना है श्री मालुमसिंहजी के पहली सन्तान की जन्मते ही मृत्यु हो गई दूसरी लड़की सोहन हुई उसकी भी 10 माह बाद मृत्यु हो गई इसके बाद लक्ष्मणसिंह पुत्र, सन्तोकजी पुत्री, भुपालसिंह पुत्र गुलाबपुत्री, समुन्द्रसिंह पुत्र, मनोहरसिंह पुत्र हुए। गुलाब की मृत्यु तीन वर्ष पश्चात हो गई।

मदनसिंहजी के जीवित अवस्था में खेतो की देखरेख नोकर हजारी कोर करता था वह परिश्रमी था। इससे आमद अच्छी होती थी माधोसिंहजी भी उदयपुर या भीलवाड़ा से आकोला जाते तब हल चलाने व चड़स चलाने का कार्य करते थे उन्हें चाव था और प्रतिवर्ष जमीन में खाद उलाना तथा वृक्ष लगाने का शोक था। भलिया को जमीन में लगभग 15 – 20 आम के वृक्ष लगाये थे और उस समय मदनसिंहजी भाईसा ने एक 2 पुत्र पुत्रियां के नाम से आमो की पाति भी की थी कि एक एक आम सभी किे बच्चो वबाद्धि मों सहित रहेगे।
सं. 1996 के वर्ष आकोला तथा आसपास तथा आसपास आयधिक वर्षा हुई और नदी में बाढ़ आ गई जिससे था लियों की जमीन में रती मर गई गांव में भी पानी भर गया था। इस कारण लोगो नें गांव छोड कर पास ही में खेडा बसाया। इधर मालुमसिंहजी की मृत्यु हो गई। गिरजाशंकरजीने भी जमीन छुडा ली थी। भुपाल सिंहजीने भी आकोला छोडकर धन्धा शुरु कर दिया समुन्द्रसिंहजी को चितोडगढ़ गोद रख दिया तब कुछ समय श्रीमती मालुमसिंहजी खेड़ा में रहे पश्चात अपने पोमर सांगानेर आकर प्यारचंदजी वो मतराका मकान किराये लेकर रहना शुरू कर दिया। आकोला की जमीन तथा आम के पनपे वृक्ष भी भुपालसिंह जी बेच दिये और सांगानेर में लक्ष्मणसिंहजीने 2 बीघा जमीन बीकाव ली वहां खेती कराना शुरु किया जमीन अच्छी को...थी। मनोहरसिंहजीने पढ़ाई के पश्चात सर्विस कर ली।
आकोला में ही मालुम सिंहजीने अपनी लड़की सन्तोरवजी को सगाई कोटडी निवासी श्री रणजीतसिंहजी के पुत्र ....खाष्या के साग्र की इस सगाई में दान्थल के जोड़जी पोखरना का मुख्य हाथथा कोटडीवाले से दापे के 3000 रूपये भी लिये। परन्तु जन महपता चलाकि लडका ठीक नही है मीर्गी की बीमारी है।
वो सगाई छोडकर कालेढड़ा निवासी श्री चम्पालालजी कोठारी से कर दी। उनसे 5000 रू. दाया के लेकर 3000 रू. कोटडीवाले को देने लगे तो उन्होने लेने से इनकार कर दिया और कहा कि व्यावरशादी कैसे होती है हम देख लेगे और शादी यहा होकर रहेगी हम बारातलेकर आयेगे। सुख्त बुक्त और समक्त मिश से काफी प्रयास के पश्चात मामला सुलझाया। इसमें श्री कल्याणसिंहजी न कजोड़ जी दादा का सहयोग कहा फिर भी डर बना रहा और शादी के दिन फ... धारियों को गांव के बाहर बिढा कर मनवस्था करनी पड़ी।
व्यावर से जब बस द्वारा आकोला बारात आई तब गांव में बस पहलीबार ही आई थी कई व्यक्ति और गांव के सभी बच्चे घटाँ बस के वहाँ उसे देखने खड़े रहे वे उसे मूक गाड़ी पूकारते रहे। सन्तोरवबाईजी का विवाह सं. ...... फाल्गुन वीर
श्री माधोसिंहजी के चार सन्तोन हुई थी।
2. महीया
3. मोहनबाईजी
4. बलवन्तसिंह
बलवंतसिंह का जन्म आकोला ही में हुआ। पोखरना गौत्र में यह परम्परा रही बताते है कि पुत्र के जन्म पर देवी देवता की पूजा करनी पडती है। इस सम्बन्ध में गुरु नवलरामजी खेमराजजी लसानी मेवाड की पोथी में लिखा है किः –
परमार वंशी राजपूत राजा सुरसेनजीने सं. 222 महासुद 5 गुरुवार प्रतिबोध दिया महारखरत्नप्रभुसुरिजी। वहां से सखा गौत्र स्थापित हुई। बहाने पोकरन फलोढी रेवास कीदो जद्सु पोकरना कहलाना। पोकरन दलोही में सं. 335 को श्री पार्श्वनाथजी महाराजा का मन्दिर बनाया।
पोकरन गौत्र के माताजी भी राविचारी देवीजी की पूजा चैत्र सुदर्ह आसो सुदर्ह कोनो नैवेद्य सु आम का पत्ता के साथ होवे। पुत्र जन्मपर वधारा की कपड़ा – कुसुमल, सफेद वा हाथ ओछाड़ रख ऊ. भेट करें। पहली रात जागरण करें पुत्र जन्म पर सोन्याए – सेवाडी मेरुजी जो सादडी गाए राव के पास है (पश्चिम दिशा में) तैल की धार देवें।
बलवन्तसिंह के जन्म के कुछ ही चिन्हो बाद अचानक मुँह से लाग आने व ऑरवे डबडबाना शुरु हो गया। माघोसिंहजी उदयपुर थे। कुछ समक्त में नहीं आया कि क्या करें चिकित्सा का तो गांव में प्रश्न हो नही था। देवो देवता में ही विश्वास करते थे। पहले हुई सन्तान (लडका) को भी मृत्यु हो गई थी एसी अवस्था में क्या करे यह चिन्ता हो रही थी कि मालुमसिंहजी के दन में पितृलालजी (देवता हुए है) पधारे और बतलाया कि मकान के पिछवाडे में (सगसदेव है) वहा ताजा लपसी तैयार कर चढ़ावे। तद्नुसार करना था। मोसमवर्षा का था वर्षा होने से शर्दी भी हो रही थी रात 8 बजे होगे।
प्राफोलाजागीरदार के भाईयो में से श्री मोहनसिंहजी की पत्नि श्री माधोसिंहजी के राखी बांधती थी यद्यपि आकोला छोडे 38 वर्ष हो गये थे फिर भी यह काम चलता रहा तथा श्री बाचासिंहजी गोद आये तब से मृत्यु तक वे इनके कर्म शंभुसिंहजी का भी अच्छा व्यवहार रहा उनकी मृत्यु के पश्चात भी श्री मालुमसिंहजी के साथ अच्छा निभाया। यहाँ महबताना भी उपभुक्त है कि हमारे बडावा विशेषकर गोकुलजी ठिका काम करते थे। इसके पश्चात श्री कल्यासिंहजी सं. 1983में उदयपुर आये और 5 वर्ष उदयपुर रहे उन दिनो श्री माधोसिंहजीने उनको दरखास्ते लिखने का तरीका बताया। धीरे 2 सरकारी अदालतो में भी आते जाते रहते थे। परिचय बढ़ा इधर जागीरदार के भी उदयपुर में मुकदमें चल रहे थे उनमें भी सहयोग चाहा शुद्ध विचारों के कारण यथआ शक्ति सहयोग दिया और सं. 1995 में तो ढिकानो का पूरा काम कल्यासिंहजीने शुरु कर दिया एवं अच्छा विश्वास प्राप्त कर लिया इससे उनके भूमि के सभी विवाह सुलफ्ता लिये परन्तु इधर श्री मालुमसिंहजी को खेतो बाडी में रूचि नही था। वे प्रायः जगन्नाथजी गुरु व आय.. 2 – 3 व्यक्तियों के साथ अधिक समय ताश खेला करते थे। इस कारण अपनी जमीन के मामलो ने कुछ भी सफलता प्राप्त नहीं कर सके। केवल शाम को मवेशियों के लिए एक घाट की भारी ले आया करते थे। बहावा दान्थल रहे थे तब दो सौ बीघा जमीन तथा 5 -5 ..... थे कृषि के सभी अच्छे सम्पन्न थी। इस सम्पन्नता के कारण ही सहाजी जोरावरसिंहजी से सगाई हुई थी।
श्री माधोसिंहजी के पुत्री मोहनबाईजी उस समय पढ़ाई लिखाई का अधिक रिवाज नहीं था इस कारण साधारण पढ़ाई की थी। उस समय उनकी नोकरी पुलिस विभाग में नामेदार के पद पर तथा बैठने का स्थान घेटाघर स्थित जहां आज पुलिस स्टेशन है, वहां था। सगाई की बात शुरु हुई और अम्बा लालजी साखला से ..... की परन्तु कुछ समय बाद वहां से सगाई छोड़ दी। पुलिस विभाग घेटाघर के पास ही श्री साहबलालजी के सरीचंदजी चौधरी के सोनाचांदी के जेवरात की दो दुकाने थी उनके बडे लडके हीरालालजी से पहले ही शादी कर लेने से रिश्ता तो था ही उनकी दुकान पर आने जाने की बैठक थी। श्री हीरालालजी के छोटे भाई दोलत सिंहजी के साथ सगाई की बातो हुई उस समय उनके मिलती में लालजी दोसी – छगनलालजी खमेसरी तथा कन्हैयालालजी डुंगरपुरिया को राम हुई और सगाई पक्की कर दी। हमारा कन्दोईयों की ओल में मकान था। सं.1982 वेशारन शुक्ला दसम को शादी हो गई। शादी केवल दी बातो पर गम्भिर चिन्तन ससुराल वालो का आग्र हुया ओर उस पर किया।

  1. बरातियों को भात जिमाना
  2. सोने का चुडा पहिनाना

जैसा कि उपर उल्लेख किया गया है आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाने से यह दोनो बाते नहीं निमा पाये इस कारण सासुजी उम्र भर नाराज रहे और उलाहना कहते रहते थे। शादी में तीन मण रेवफी लापसी तथा कफेलमां पुड़ी का पंचा. नोहरी मेंजीमना कि बहेनाई सा. को तोरण पर कंठी पहिनाने का भी था वो भी नही कर सके। जिमाई के रपये में भी कुछ आना काना की फिर टेकीजी के आग्रह करने पर रुपये बढाये। ससुराल पालो की तरह से जिमण में हलवा व कोलमा पुडी का जीम किया था।
शादी के बाद बाईजी बिमार हो गये थे। पेट फूल गया था आराम नहीं हो रहा था। तब आकोला खेडिया का टेकरी पर पूछ की तो बताया कि किसीने तामोहर कामण करवाए है यही बात उदयपुर बढनपाई ....ने भी बतलाई थी अतः में ओवरे के अन्दर भागलमें से कामवफा पूतला निकला था।
दोनो भाईयों का अच्छा व्यापार चल रहा था कि कुछ मित्रो के चक्कर में आकर सहे करना शरु कर दिया ग्यौर दिन स्थिति बिगड़ कर ग्प्रन्त में इतना घाटा हो गया कि लोगो को उधारी बढ़ गई फलस्वरूप दुकाने बेचनी पडी और लेनदारो को चुकाने के लिये घर के जेवर भी बेचने की स्थिति आ गई। श्री पन्नालालजी दलाल बीच में रहे और सुभाव दिया कि छोटा भाई भोला है इसलिए इनके पास कुछ जेवर रहने दिया जाय परन्तु सफलता नही मिली इधर पत्नि मोहनबाईजी को कुछ रिश्तेदारो व परिवार की अन्य बहिनो ने राय दी कि अपना जेवर मत देना अन्यथा आगे जाकर बहुत दुखी होना पडेगा, इससे जेवर की गढ़डी बांधकर अपने भाई बलवन्तसिंह को बुलाकर हाथ में देदी। उसर समय श्री दोलतसिंहजी बैठे हुए थे वे अपने बड़ेभाई तथा माता से शुरु से ही डरते थे, भय के कारण गढ़डी वास लेली। बलवन्तसिंह की उम्र भी उस वक्त 12 वर्ष की भी कुछ नहीं कर पाया और गढ़डी के जेवर पन्नालालजी दलाल के यहां लेनदारो को चुकाने में प्रयोग करने (बेचेन) हेतु भेज दी। पन्नालालजी दलाल बडे समझदार व्यक्ति थे और दोलसिंहजी भोलेभाले तथा निसन्तान थे इससे उन्होने लगभग 25-30 तोला सोने के जेवर वापस दिलाये।
इस घटना के कुछ भाई पूर्व ही श्री माधोसिंहजी का सं. 1881 माचकृष्ण द्वितिया को निमोनिया हो जाने से स्वर्गवास हो गया था। स्वर्गवास के समय श्री मती उदयलालजी महत्ता तथा उनके पुत्र गनेश लालजी महत्ता मोजुद थे। मृत्यु का समय कितना भयानक होता है, प्राण नही निकल पा रहे है लडका (बलवन्तसिंह) छोटी है क्या होगा दौ न सम्हालेगा इसी उहा पीह को देखकर गनेश लालजी महताने सारी जिम्मेदारी अपने उपर ले ली अतः वे आसानी से शरीर छोड सके।
पोखरना परिवार के भाई बच्चो में एसा कोई व्यक्ति नही था तो पिछली जिम्मेदारी उठा सके। मृत्यु की रात अकेले नही रहे इसके लिए मेकलालजी को सोने के लिए कहा था उन्हो ने हाँ भी की परन्तु न आ सके। श्री अमृतलालजी सिंघवी ने उठना बैठना गृहकार्य लेन देन का कार्य अपने हाथ में लिया गणेशलालजी महता प्रायः आकर सम्हाल लेते थे। उनके सामने अमृतलालजीने पुरीने लेनदेन का दस्तावेजो के आधार पर एक हिसाब बना कर उन्हे बताया। इससे श्री हंसराजजी के समय से अन्त तक गांव धोइन्दा जिला राजनगर के लोगो व काश्तकारो से काफी रूपया लेना निकलता है। उस समय श्री सोहनलालजी आँच लिया अदालत राजनगर में सरिश्तेदार थे और धीरेन्द्रा एकदम राजनगर के पास ही है अतः एक पत्र लिखा और दस्तावेज उन्हे दे दिये। काफी समय तक दस्तावेज उनके पास रहे इधर मेवाड राज में एक ..... निकला कि पुराने लेन देन जितने भी है उनके दावे अमूक्त ममादतककर देवे। ममाद समाजो के बाद फिर कोई दावा नहीं हो सकेगा। श्री सोहनलालजी ने न तो किसी रूपये वसूले और न कोई आगे लिखा पढ़ो या सूचना दी। हुक्मनामें मे दी गई ममाद खत्म हो गई उसके बाद एक पत्र लिखकर दस्तावेज वापस भेजा दिये। यदि वे प्रयास करते तो रकम वसूल करा सकते थे और बाल्यवस्था में आर्थिक स्थिति सुधारने का अवसर आता। फलस्वरूप वे दस्तावेज आदि रही के उपयोग में लिए। जिस रातमाधोसिंहजी की मृत्यु हुई थी। घर में यो कहा जाय कि कुछ नही है बदनामी होगा किसी से ऐसे वक्त पर उधार मांगना भी ठीक नही होगा, चुपचाप श्री पन्नालालजी ओरडिया के विधवाबहिन तोजबाईजी (मुवासा) को सोने की चुड़ी देकर दो सौ रूपया व्याज पर उधार लिया और उससे दाह संस्कार तथा अन्य रस्मरिवाज के कार्य पूरे किये।
आर्थिक स्थिति इन दिनों बिगड़ने का मुख्य कारण यह हुआ कि उदयपुर में बाहर के ठेकेदारने सेटलमेन्ट डिवाईमेन्ट की बिल्डिंग बनाने का ठेका लिया था। उसे रूपयों की जरूरत भी और पिताजी माधोसिंहजी को सर्विस उन दिनों रोड डिपार्टमेन्ट में तथा लक्ष्मी लालजी रवाण्या की सर्विस पो.डबल्लु.डी. में थी इससे ठेकेदार का सम्पर्क बना और उसे व्याज पर दो तीन दफाकर करीब सोलह सौ कप्या दे दिया था।
श्री गनेशलालजी महता द्वारा इन रूपयो के विषय में जानकारी होने पर ज्ञात हुआ कि ठेकेदार की मृत्यु हो जाने से अदालत में दावा कर रखा है पैरवी करने हेतु वकील को लभाया और कार्यवाही की।
श्री हिम्मतसिंहजी दोषी द्वारा भी एक दावा जिसका वर्णन उपर किया है, पचास रूपयो का जो श्रीनथमलजी दोषी से श्री माधोसिंहजी ने लिये थे उनकी मृत्यु हो जाने से दिलाने हेतु चल रहा था और व्याज व अदालती खर्चे सहित डिकि हो चुकी थी उसका नोटिस मिलने पर अदालत मुन्सिफकोर्ट के फैसले के खिलाफ से सन्सकोर्ट में अपील कर दी गई इस सब कार्य में पूर्ण सहयोग गनेशलालजी महता का रहा। वकील चन्नसिंहजी डुमड़ द्वारा पैरवी की गई। बहस के समय एकखत जिससे 950 रू. लेकर लिखा था और उसमें 50 रू. वसूल पा लेने का उल्लेख था वो खत 150 रू. चुकाकर श्री माधोसिंहजीने प्राप्त कर लिया था वो सेसन्स कोर्ट में प्रस्तुत कर बतलाया कि रूपयो का भुगतान हो चुका है तब सेसनजज श्री तय्यब अलीनी बोहरीने हिम्मतसिंहजी दोसी को बताकर पूछातो उनका जवाब था कि बलवन्तसिंह के पिता माता हमारे घर आया जाया करते थे इसलिए यह 150 रू. वाला खत मौका पाकर चुरा लिया होगा। बलवन्तसिंह की उम्र उस वल 12-13 वर्ष की थी अदालत में खडा देखकर सेसनजज को हिम्मतसेली पर गुस्सा आया और कहा कि दस्तावेज पर 150 रू. चुका देने का लिखा है फिर चुरा लेने का कहना और एक बालक के खिलाफ एसा मुठ्ठी दावा करना बहुत बुरी बात है, अपिल खारीज कर दी। हिम्मसिंहजी की मॉका स्वभाव भी द्वेष भरा था। क्योकिं नथमलजी ने दुसरी शादी कर ली थी आना जाना पहेल से ही बन्द था और अब इस दावे के कारण बिल्कुल ही बन्द हो गया यहा तक कि बोलते भी नही थे।
श्री नथमलजी को पहली शादी हंसराजजी की लड़की गमेरबारूजी से हुआ था उनकी मृत्यु हो चुकी थी। गमेरबाईजी के दो लड़किया तथा एक लडका था जिनका नाम मोतीलालजी था और उन्होने सं. 1967 में स्थानकवासी सम्प्रदाय में दीक्षा ले ली थी। लडकियाँ का भी विवाह हो चुका था इस कारण भी रिश्ता टूट सा गया।
बलवन्तसिंह की बाल्यावस्था काफी संघर्ष मम बीती। पढ़ाई भी ठीक तरह नही हो पाई थी और पड़ोस में रहे लडको के साथ खेलकूद मे रहने तथा अच्छी सत्संग नही होने से पढ़ नही पा रहा था कि इन्ही दिनो एक एसी घटना हो गई कि पढ़ाई बन्द कर दी श्री मतीचान्दनमलजी आंच लिया के लडकी का जन्म हुआ था और श्रीमती मुरबाईजी पत्नि माधोसिंहजी उनके यहां डिलीवरी करने गये थे मोसमगर्मो का था परिक्षाए चल रही थी 2-3 पेपर हो चुके थे कक्षा छठ्ठी मे पढ़ाई थी कि प्रातः काल ठंडाई बांटकर गरना भटकने हेतु जड़ियों की ओल (कन्दोईयां की ओल) वाले मकान में खपरेल मकान के आगे खपरेल ढालिया था और प्रक... की कचवी रोस तथा उपर बोस लगा हुआ था जो कमजोर था गरणा ज्योही भतका बांस निकल गया और बलवन्तसिंह गिर पड़ा। जीमने हाथ की कलाई की हड्डी टूट गई एवं होडकट गया था। लक्ष्मी – लालजी खान्या द्वारा मोती चोह दा स्थित जनरल अस्पताल लेजा कर फोस्टर कराया गया इस कारण शेष दो पेपर नही ढे पाया और फिर दूसरे ल़डको से पिछे रह जाने की भि चिन्ता बन गई। निराश होकर पढ़ाई छोड दी।
पढाई छोड़ने के समय 15 वर्ष की आयु थी अतः श्री गनेश लालजी महता ने यही उचित समझा कि कही नो कही लगा देगे, अपने साथ महक्मामाल में लेजाने लगे। आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि कुर्ता और पजामा पहिनने वो भी रेजी के जिनकी सिलाई भी हाथ से की जाती थी। एसे कपड़े से सरकारी आफिस में कैसे आया जाय, श्री गनेशलालजी महताने धोती और एक से रवानी दी यद्यपि कद.. के हिसाब से सेरवानी बडी थी फिर भी उसे पहिनकर आना जाना शुरु हुआ और 5-6 महिने तक सरकारी काम कैसे करते है काम सिखाया और 23 अप्रेल 1938 को केवल दस रूपये माहवार पर टेम्परेरी नोकरी दिलाई 6-7 माह बाद पन्द्रह रूपया माहवार से स्थाई नोकरी दिलवा दी।
इसी समय भी सोहनलालजी आ .... ने जो दस्तावेज लेन देन के भेजे थे उन्हे देखे कुछ राम ली और यह पाया कि अब में कुछ भी काम के नही है इनसे दावे नही हो सकते तब इन्हे फाड फेके। इनके साथ ही भाई भुपालसिंह को भी आकोला से उदयपुर ले आया था कुछ महिनो उदयपुर रहा था। आकोला की जो जमीन श्री माधोसिंहजी के नाम लिख दी थी उस लिखावट को फाड़ फेकी क्योकि हो सकता है उस जमीन के मामले में भाईयों के आपसी स्नेह में फर्क आजाय और फिर भुपालसिंहजी के साथ अत्यधिक प्रेम पड गया था, मन में कही लालच नही आ जाय।

श्री गनेशलालजी महता ने उन दिनो एक महावीर फण्ड ने नाम से कोअपरेटिव संस्था बनाई थी उस काम को करने हेतु कहा तब प्रतिदिन सवेरे 2-3 घंटे रोज और कमी र शाम को घंटी उनके घर नित्य जाकर यह काम करता था इसके शुर 2 में दो रूपया महिना मिलता था इस प्रकार पिताजी की मृत्यु के बाद पांच रूपया माहवार स्कोलर शीप जो लगभग 15-16 महिने तक योन पढाई चले तब तक मिली उससे और फिर उस नतख्वार से घर का कामकाज चलने लगा।
लगभग 18 वर्ष की उम्र हो गई थी सगाई के लिए पूतहलालजी चेलावत के द्वारा श्री मगनलालजी सेठ की लडकी से बात चली और गनेशलालजी महता द्वारा हाँ भर ली और सगाई हो गई शादी भी उसी साल सन 1989 में कर दी। केसरचिंदजी के नाम से हक परिवार का निवास राजकीय सर्विस होने से कुमलगढ था उनका विवाह नैनावटी गौत्र की लड़की सुरजबाई से हुआ थी जो लकडवास को रहनेवाली थी। केसरी चंदजी की मृत्यु कम उम्र ही में हो गई थी। इनके दो संतान थी एक पुत्र जिनका नाम पन्नालालजी था तथा एक पुत्री जिसका नाम पदमाबाई था। जन्म कुमलगढ में हुआ था।
पन्नालालजी का विवाह गोगुन्दा निवासी श्री मोतीलालजी सिंघवी की पुत्री लहरबाई से सं. 1957में हुआ था। पदमाबाई की सगाई उदयपुर निवासी थी हिम्मतमलजी पारख के साथ की गई परन्तु विवाह के पूर्व ही पदमा बाई की मृत्यु हो गई तत् पश्चात श्री हिम्मतमलजी पारख की शादो नेमीचंदजी कोढारी की पुत्री अनछाई बाई से हुई। इनके तीन लड़किया थी (1) विलिया बाईजी (2) तीजाबाईजी (3) श्यामाबाईजी श्री पन्नालालजी के चार सन्तान हुई।

  1. मुर्बाई इनका जल सं. 1969 में हुआ था मृत्यु सं. 1973 मदार में हुई।
  2. श्री मेदलीलजी का जन्म सं. 1968 मे हुआ। विवाह सं. 1990 पोबबीदर को हुआ।
  3. इन्दरबाई का जन्म सं. 1979 मे हुआ। विवाह सं. 1986में हुआ।
  4. मोहनलालजी का जन्म सं. 1973 मे हुआ। जल से पूर्व हो इनके पिताजी का स्वर्गवास हो गया था। मृत्यु के 5 माह बाद जन्म हुआ। इनकी शादी सं. 1996 में हुई।

इन चारों पुत्र पुत्रियों की माता लहेरबाई की मृत्यु सं. 2002 में हो गई थी।
मुरबाई की सगाई पहले शोभागमलजी तलेसरा के यहाँ की गई थी। तिलक में 500-रू. रखे थे। शादी के पूर्व ही इनकी मृत्यु हो गई और तब तिलक में 500- रू. देने से इनकार हो गये। पश्चात इनकी शादी बरदोड गाँव (हमीरगढ) निवासी समरथलालजी सोनी से की। इस शादी में इनके मामारोडजी कंठा लियाने नगजीरामजी सोनी से 500-ले लिये। बाद में जानकारी होने पर विवाद का विषय बना। पंचायती हुई और रोडजी कंठ गलिया को जातिबाहर कर दिये तथा 500-रू. वापस दिलाये। एक माह बाद माफी मांगेन पर फिर जाते में लिये। तथा पंच सौ रू. जुमानी किया।
मेरूलालजी को शादी बख्तावर लालजी बापना कीलड़जी तेजाबाई से की गई उस समय पन्नालालजी की मृत्यु हो चुकी थी तब सारा कार्य माधोसिंहजी पोखरना द्वारा सम्पन्न कराया। कहते है बरात के दिन माधोसिंहजीने बापनो की सहरी में एक गली में पिशाब किया था। वही उन्हे जिन्ह लग गया और उसी दिन से बीमार पड गये और 15 दिल बाद ही इनकी मृत्यु हो गई।
इन्दरबाई का विवाह समरथमलजी सोनी के भाई चुन्नी लालजी के की गई दोनो भाई और दोनो बहिने एक हो घर में विवाहित पुई। दोनो ही हे रह के पास बरडोद गांव के रहनेवाले थे। श्री पन्नालालजी को सर्विष्ड खमनोर में शीतलवहा प्योर किशनजी कोल (हाकित्र) तथा भेरूलालजी दोबी क्लर्क इन्सफेक्शन करने खमनोर गये। श्री पन्नालालजी तब खजान्वो का काम करते थे उसका लेखा जांचने पर 4500- रू. का गबन पाया गया उन्हे मोअतिल कर दिये और मुकदम चलाने का आदेश दिया। श्री मेरूलालजी दोषी और माधोसिंहजी पोखरसा आपस में मित्र थे और एक ही पडोस में रहते थे जब यह घडना मेरूलालजीने उदयपुर आकर सुनाई कि पोखरना परिवार के श्रीपन्नालालजी के विरुद्ध एसी घटना हुई है यह सुनकर माधोसिंहजी को अपने भाईबन्ध होने के नाते किसी तरह बचाय जाय सोचा और पन्नालालजी से वार्ता की। पन्नालालजी ने बताया कि वास्तव में मैने गबन नही किया है वक्त के वहा के हाकिम महतारू धनाथसिंहजी कईबार उनके रूपयो की जरूरत हो तो तब मंगवाया करते थे इसकी सबुत में उनके हाथ के छोटे रे स्लिव जिन पर महता धनाथसिंहजी के हाथ सके... रूपयो का ओक लिखा था, मोजुद होना बताया। प्यारे किसकी कोल के माधोसिंहजी से भी बहुत घनिष्ट सम्बन्ध था इसलिए यह घटना माधोसिंहजी ने उनको सुनाई और उनने सुनकर दरबार में मालुम कि यातब दरबारने महता रूघनाथसिंहजी को बुलाकर पूछा तो उनने सच रे बता दिया। महाराणा फतह-सिंहजीने हाकिम महताधनाथ सिंहजी के खिलाफ कार्यवाई शुरु की। इधर पन्नालालजी को मोअतिल कर देने व मुकद्मा चलाने का एसा सद्मा लगा कि उन्होने अफीमखाकर सं. 1872में अपना जीवन समाप्त कर दिया। दो माह तक तह कोकात करने पर पत्ता लग गया कि रतन लालजी देपुर। और महताजी को साठ गांठ से ही यह गउ बड़ी हुई है तब महाराणा पूतह सिंहजीने महताजी की नोकरी से अलग कर दिये।

हमारे पोखरना खानदानमें हाथीरामजी के पुत्र तिलोकचंदजी व तिलोकचन्दजी के पुत्र निहालचंदजी ने गम्भीर विजयजी महा. के पास दीक्षा ली। (गम्भीरविजयजी वृद्धिचंदजी के ... ) दीक्षा के बाद तिलोकचन्द जी का नाम तिलकविजयजी रखा गया था।
श्री “तपगच्छप्रमहनंशवृक्ष” लेखक जयन्ती लाल छोटालाल शाह सं. 1992
विक्रम सं. 139 में दिगम्बर संघ का प्रादुर्भाव (वी. नि. 60)
मूल संघ द्रविड संघ (वि.सं. 526)
यापनीय संघ संघ (वि.सं. 705)
काष्ठा संघ (वि.सं. 705)
माथुर संघ (वि.सं. 900)
तारण पंथ (वि.सं. 1572)
तेरह पंथ (वि.सं. 1680)
गु.....पंथ (वि.सं. 1818)

निर्ग्रन्थ गच्छ वी.नि.पूर्व 30 वर्ष
कोटिक गच्छ वी.नि.सां. 300 वर्ष
चन्द्र गच्छ वी.नि.सां. 130 वर्ष
निवृति गच्छ वी.नि.सां. 130 वर्ष
विद्याधर गच्छ वी.नि.सां. 130 वर्ष
वनवासी गच्छ वी.नि.सां. 700 वर्ष
बङ्गच्छ गच्छ वी.नि.सां. 1152 वर्ष
पुनमिमा गच्छ वी.नि.सां. 0 वर्ष
चामुंडिक गच्छ वी.नि.सां. 1209 वर्ष
खरतर गच्छ वी.नि.सां. 1208 वर्ष
अंचल गच्छ वी.नि.सां. 1213 वर्ष
सार्धपुतकिया गच्छ वी.नि.सां. 1236 वर्ष
आगमिक गच्छ वी.नि.सां. 1250 वर्ष
नागोरी तपगच्छ वी.नि.सां. 1572 वर्ष
तपगच्छ वी.नि.सां.
सांकेरगच्छ वी.नि.सां.
चउदसीमा गच्छ वी.नि.सां.
कमलफलसागच्छ वी.नि.सां.
चन्द्रगच्छ वी.नि.सां.
कोटीमगच्छ वी.नि.सां.
फतहपुरागच्छ वी.नि.सां.
कोरंटगच्छ वी.नि.सां.
चित्तोडागच्छ वी.नि.सां.
कज्जपुरीगच्छ वी.नि.सां.
बडगच्छ वी.नि.सां.
ओसवालगच्छ वी.नि.सां.
मलधारीगच्छ वी.नि.सां.

 

 

 

 

 आपाणो राजस्थान
Download Hindi Fonts

राजस्थानी भाषा नें
मान्यता वास्ते प्रयास
राजस्तानी संघर्ष समिति
प्रेस नोट्स
स्वामी विवेकानद
अन्य
ओळख द्वैमासिक
कल्चर साप्ताहिक
कानिया मानिया कुर्र त्रैमासिक
गणपत
गवरजा मासिक
गुणज्ञान
चौकसी पाक्षिक
जलते दीप दैनिक
जागती जोत मासिक
जय श्री बालाजी
झुणझुणीयो
टाबर टोली पाक्षिक
तनिमा मासिक
तुमुल तुफानी साप्ताहिक
देस-दिसावर मासिक
नैणसी मासिक
नेगचार
प्रभात केसरी साप्ताहिक
बाल वाटिका मासिक
बिणजारो
माणक मासिक
मायड रो हेलो
युगपक्ष दैनिक
राजस्थली त्रैमासिक
राजस्थान उद्घोष
राजस्थानी गंगा त्रैमासिक
राजस्थानी चिराग
राष्ट्रोत्थान सार पाक्षिक लाडली भैंण
लूर
लोकमत दैनिक
वरदा
समाचार सफर पाक्षिक
सूरतगढ़ टाईम्स पाक्षिक
शेखावटी बोध
महिमा भीखण री

पर्यावरण
पानी रो उपयोग
भवन निर्माण कला
नया विज्ञान नई टेक्नोलोजी
विकास की सम्भावनाएं
इतिहास
राजनीति
विज्ञान
शिक्षा में योगदान
भारत रा युद्धा में राजस्थान रो योगदान
खानपान
प्रसिद्ध मिठाईयां
मौसम रे अनुसार खान -पान
विश्वविद्यालय
इंजिन्यिरिग कालेज
शिक्षा बोर्ड
प्राथमिक शिक्षा
राजस्थानी फिल्मा
हिन्दी फिल्मा में राजस्थान रो योगदान

सेटेलाइट ऊ लीदो थको
राजस्थान रो फोटो

राजस्थान रा सूरमा
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
आप भला तो जगभलो नीतरं भलो न कोय ।

आस रे थांबे आसमान टिक्योडो ।