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राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

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रवि पुरोहितजी

साहित्य महोपाध्याय नथमल केड़िया

4-ए, शम्भुनाथ पंडित स्ट्रीट,
कोलकाता - 700020

सठाई री मठोठ
कठै गयी अइंया की पातरां
सतनारायण व्रत कथा रो पुनर्पाठ
उजाळै रा पैगम्बर
‘तौया दारे’ यानै ‘दूध रौ रूंख’ या नै माँ
पींजरो
म्हारी आदरजोग सहेलियां

 



सठाई री मठोठ

घणां दिनां री बात। उण दिना देसा में रजवाड़ा रो राज। तीस चालीस कोस मांय एक राजा रो राज। बी रै बाद दूसरै राजा रो राज शुरू।
राजा लोगां रै रबाब रौ कांई कैःणौ। मारता जिकै नै मारता अर बखसता जिकै नै बखसता। दबदबो इत्तौ कै परजा थर थर कांपै। उणा मांय सै सूं ताकतवर बीकानेर रा महाराजा गंगासिंहजी हा। हा तो भोत करडै मिजाज रा पर चरित्र रा एकदम उजवल झक सफेद। राम जाणै या बात साची है कै झूठी, पण कइयां रै मूंडै सूं सुणली कै उणा रो खुद रो कंवर चरित्र रो दासी हो। परजा री बहू बेटियां पर कुदृष्टि गैर-खुद तो। महाराजा रै पास सिकायत पूगी। आप निजमाय तहकीकात करी। सिकायत साची निकली तो कंवर नै बुलायकर करड़ी चेतावणी देयी। फैरू वी वो जद आदत सूं बाज नी आयो तो आप रै निज रै हाथ सूं गोली मार दी।
हाला कै मिजाज रा भोत करड़ा पण अमीर – गरीब सै रै साथै एकसौ व्योहार, जणांई तो लोगां आज तलक उणारा गुण गावै।
जिस्या राजा, बिस्यी परजा। परजा मांय सेठ साहूकारां रो रूतबो सैं स्यूं बड़ो। हेली री रूखाली पर चार – चार ठाकर रैवता। दो ठाकर रात दो बजे तलक पै रौ देता, दो रात रै दो बजै रै बाद भागपाटी तांणी। पैरो दैवती बगत इतणी जौर सूं आवाज देता और खंखारता कै दूर – दूर तक सुणाई पड़तो। सेठ सा’ब या उणारै कुटुम्ब को कोई आदमी तीस-चालीस पांवड़ा भी कोई सूं मिलणै जावतो तो एक ठाकर साथ जावतौ। दूसरै गांव जावता तो बैली रै साथै हाकणियो चोबदार अर ठाकर रैवणो भोत जरूरी हो।
सेठां रो पहनावो – कुरतै धोती पर लाम्बो कोट, सिर पर बड़ी सी पाग दोनूं कानां मांय मोती, सोने री बाली, गलै मायं साचां मोत्या रो दुलड़ौ कंठो, हाथां री आंगलियां मांय जड़ेड़ी बींटी, पैरां मांय कामदार जूता। कोई कोई रै हाथ मांय चांदी री मूठ रो चिटियो। सेठा री चाल जइयां कोई हाथौ चालै और बोली ज्यूं बादल गरजै। सेठां सूं मिलणियां – भिटणियां अर रामासामी करणिया हवेली मांय आंवता ही रैवत। दिन भर चिलम मांय तमाकू सुलगती ही रैवती। तीन चार बजै कलेवे री टैम होवै बी समै बैठक मायं पन्द्रह बीस जणां हाजर। हफ्ते दस रोज सूं गोठ घूघरी नीं उडै तो सेठाई कीं नाम री।
हां तो मैं आपनै बात बतावै हो चुरु सैर’री। बीकानेर राज में हो हो यो चुरु सैर। उण माय रेवणै वाळो एक वाणियै रो परिवार बरमा देसरी राजधानी रंगून मांय बस गयो हो। शायद चुरु ट’ટका लोग ही सबसूं बैली बंगाल अर आसाम गया होवैला ई कारण बीकानेर रा लोग सारे अगरवाला नै ही चुरु हाला कैयकर बतलावै है। हां तो ई बाणियै री चुरु मांय एक बड़ी सी हे’ली ही अर वी सूं लगतौ एक बड़ौ नो’रो (खुली जगां) हो। बी नो’रै रै दूसरी बगल चुरू में रैवनै वाला एक सेठ री हेली ही। सेठ ने हेली मांय दो चार ठांवा री (कमरा री) और दरकार होगी सो वो चेजो चला दियो। उण दिनां सिमेंट बालू रो चलन तो हो नीं ईंटा पर लेप कर नै वास्तै चूनौ अर ईंटा का छोटा छोटा टुकड़ा पीसकर लेप त्यार कर्यो जांवतो। पीसणौ रो काम बडै़ अजब ढंग सूं होवते। बींच मांय एक खूंटो गाड़ देवता। बीं सूं तीन चार हाथ री दूरी पर एक गोल चक्कर मांय नहर सी बनाय देंवता बीं में गाड़ी रै पहियै माफिक एक गोळ मोटो भारी पत्थर रख देवता अर बीं में एक रस्सै रो पट्टो घालकर भैंसे रै कंधा सूं बांध देवता। भैंसो चारू मेर चक्कर काटतो जब पत्थर रै लुठकणै सूं चूनौ अर ईटा का टुकड़ा पीस्या जावता। एक आदमी वी में थोड़ो – थोड़ो पाणी गैरतो रैवतो। बीं नै ‘घरट’ कैयो जावतो और जिकी चीज़ तैयार होवती बींणै गारो। दीवारा पर यो ही गारै रो लेप कर्यो जावतो।

हां तो। रामजी भला दिन दैवै तो आगे बात या हुई कै यो बाणियो रंगून वाले वाणियै नै कुवायो – हमारी हेली मांय टूट-फूट सुधारणै री अर दो चार ठांव बनावणै री दरकार है सो चेजो चालवणो पडैगो सो किण दिनां बाबत आपरो नोरो काम मांय लेवांगा। वो बाणियो शुद्ध भाव सूं मंजूरी दे दी।
चेजै रो काम चालता चालता ही चुरू हालै बाणियै रै मन माय बेईमानी आगी सोच्यो – ये लोग तो काली कोसां दूर रंगून मांय रैवै है। क्यूं नीं ईनै हथिया लेवा। आप देखो – ईमानदारी रो रास्तो तो एक है पर बेईमानी रा रास्ता तो हजार है। बै तहसीलदारजी सूं जुगत भिडाणे री चेष्टा करी। भागजोग सूं तहसीलदार बेईमान हो सो आपस मांय सांठ – गांठ कर फरजी कारवाई कर सरकारी कागजा मांय रंगून वालै बांणियै री जगै आपरो नाम चढ़ा लियो।
रंगून वालो बाणियो इन लोगां नै कई बार चिट्ठी देयी – आप हमारी जगां खाली कर देयी होवली नी तो चिट्ठी पूंगतां ही खाली कर देवोला। पर यै म्हाटा जवाब ही नी दियो। ये जवाब क्यूं देवैं। ये तो चारूं मेर सूं पुखता जापतो कर मेल्यो हो। सरकारी कागजां में जगां इणरै नाम सूं – जगां पर कबजो इणरो। पीछै वो वाणियो तो हजार कोस दूर-ये लोग अठै रा रईस।
जद अठै सूं बारा म्हीना कोई जवाब ही नी पूगो तो वै आपरै एक दो लाड – लागता व सगा सम्बन्धी नै समंचार दियो – फलानचन्दजी हमारो नोरो कुछ दिनां तांई मांग्यो लियो है। बै खाली कर्यो है कै नी। हमारे चिंता हो रही है। म्हानै पूरी हकीकत लिखोगा। उणा लोगां रो जवाब गयौ कै थारो नोरो तो इब थारौ नी रैयो। वे लोग उणनै मजै मांय भोग रिया हैं।
समंचार बांचकर बापड़ा भोत चिन्ता मांय पड़गा। दस पांच दिन उणारा चिन्ता मांय बीत्या, पीछै खुद रबाना होकर चुरु पुग्या। पूगकर उणा सूं मिल्या। बै तो रू ही नी जोड़ी। एक तरह सूं उदासीन सा आपरा दूसरा दूसरा काम करता रैया। थोड़ी देर बाद यो बाणियो उणनै कैयो। अब म्हारी जंगा री म्हानै दरकार है, सो खाली कर देवो। तद उणारो मुंडो खुल्यो – थारी कुणसी जगां ? यो बाणियो जिकी बात सूं डर रैयो हो वाही बात सामनै आई बोल्यो – क्यूं यो बगल वालो नोरो तो म्हारो ही है। थे म्हां सूं मांग्यो लियो हो – सुनकर बै हांसण लागगा। माथो खराब होयो है कै ? म्हारी जगां नै आपणी बता रैया हो?
बिचारो बाणियो सकतै मांय आयग्यो । काटो तो शरीर मांय खून नी। भोत हील हुज्जत करी पर वै तो टस्स सूं मस्स होवै नी। पर ऐ बाणिये रो तो जीवन मरण रो प्रश्न हो- बोल्यो, सेठजी। म्हूं तो इतनी दूर सूं चलाकर आयो हूं। अइया थे जीवती माखी गिटोला और डकार भी नी लेवोला तो म्हूं तो काल सूं अठै धरणो देय बैठ जावूंला। ज्यादा सूं ज्यादा मौत ही तो आवेली। अब इणारो मुंडो खुल्यो बोल्या बड़ी अन्याय री बात है। जगां पर जबरदस्ती हक जता रैया हो। अच्छा तो पंच थरपल्यो। पंच जिको फैसलो देवैलो वो दोनुआं ने मंजूर।

चुरु सूं पांच कोसरी दूरी पर एक गांव हो बीं में सेठा रो एक परिवार रै’तो सेठ बड़ो ही आबदार, नामी घरामी, राज मांय भी पूरी चलती। इलाके मांय कोई झगड़ो झंझट हो तो वे सलटाणै में हरदम तैयार। लोगां रो भी उन पर इतो विश्वास हो कै आपस रै झगड़ै झंझट माय उणाने ही पंच थरपत।
हां तो ये दोनूं बाणिया बी उणा ने ही पंच थरप दिया। पर पछे रंगूनवालै बाणियो ने लोगां कैयो यो के कर्यो। वे लोग तो इणारा समयी है। अब तो थारी जगां थारै हाथां सूं गई। उठी ने चूरू वालो बणियो मोड राजी होर्यो हो। अब या जगां म्हारी होयगी।
रंगून वाले बाणिये नै रातभार नींद नी आई। सबेरे पै’ली ऊंट भाई कर वो पंचायती वाले सेठ रै गांव पूग्यो। जाकर उणारी बैठक मांय बैठ गयो। थोड़ी देर बाद सेठ सा’ब आया और भी कई लोग मिलबा खाकर आयेड़ा हा। सेठां री इण पर निजर पड़ी तो चेरो आपेरो लाग्यो। सबसे पैली इण सूं रामराम करी अर नाम – धाम व आणै री वजह पूछी – बो एक तरह सूं टूट तो गयो ही हो-बोल्यो-सेठ सा’ब म्हूं फलानचन्दजी रै सामने आपणै पंच थरप्यो हूं। मेरो एक ही कैणो है, आपरो धरम जावै तो म्हारी जगां चली जावै म्हूं नै परवा नी, नी तो म्हारी जगां म्हानै मिलनी है।
सेठजी बोल्या – म्हारो फर्ज है – दूध को दूध और पाणी को पाणी करणो। आप म्हारै धरम रे प्रति निश्चिंत हो जावे। म्हारो धर्म रै’सी।
नियत दिन सेठ साब तो नी आसक्या पण उणारा बड़ा कंवर पधार्या। सजी सजायी बैली पर सवार साथ माय मुनीम, नाई अर चार ठाकर ऊंटा पर। सबी ठाकरां रै गळै मांय कारतूस रो पट्टो अर हाथ मांय लदेड़ी (मरेड़ी) बन्दूक। पंचायती चुरू मांय रैवण वालै बाणियै की बैठक मांय ही शुरू हुई। दोनूं बाणियां अर उणारा आप आपरा गवाह। गवाह कै रूप मांय तहसीलदारजी भी एक कुरसी पर बिराजेड़ा हा।
पंचायती शुरू हुई। दोनूं आप आपरो बयान दियो। मे गवाह तो तहसीलदारजी ही हा। पंच उणां सूं पूछताछ करणी शुरू करी। जिकै ढंग का प्रश्न पूछ्या, तहसीलदारजी उणां सूं घबरागा। उणां नै आपरी पोल खुलती निजर आयी पर ओहदो बड़ो हो साथ ही बै बीकानेर महाराज रे लाई लागता मांय भी हा। पंच रै एक प्रश्न कै उत्तर मांय बोल्या – पंचायती करणै रो शऊर नीं-काल का जायेड़ा छोकरा धींगान पंच बण बैठ्या।
कंवर बोल्यो – तहसीलदारजी, थे यो बात कैयां कही। पंचायती म्हारा दादोजी करी, म्हारा पिताजी कर रया है। अर म्हूं भी कई पंचायतियां कर ली है।
पर तहसीलदारजी तो आपरै रूआब मांय टनटनायोड़ो हो – फैरू बोल्यो – तो ई ढब रा ऊलजलूल सवाल क्यूं करै है मां रा.....
गाली सुनकर कंवर रो चेहरो तमतमागो पर आपणै सम्हाल कर बोल्यो – थे या राज की गादी पर बैठ्या हो तद ई ढंग रा सबद बोल रैया दो। गादी पर नीं होवता और बोलता तो बतातो।
तहसीलदार औरूं बोल्यो। राज री गादी ले-या गादी गयी गधी की...... मांय। बोल इब के बोलै.....
अन्तिम शब्द तहसीलदार रै मूंडै सूं पूरा निकल्या भी नी होवेला कै कंवर रै कसरती हाथ रो एक जोरदार झपाटो पूरी ताकत सूं तहसीलदार के गाल पर पड्यो। बो एक तरह सूं कुरसी रै नीचै गिर पड्यो। पलक मारतां ही कंवर पैर जूंती आपरी बैली पर बैठ-लाव लश्कर साथ बो जा.... बो जा.....।
जद तलक तहसीलदार रै गाल रो झन्नाटो मिट्यो और वे आपरै आदमियां नै कंवर नै पकड़बा बाबत पीछै दौड़ाया तद तलक तो वा बैली काफी दूर निकलगी ही और सही सलामत जैपर राज मांय पूंच चुकी ही। सागै ही एक हरकारो बड़ै सेठ नै भी घटना री पूरी बिगत सुणाई। रातूंरात परिवार रा सारा लोग बीकानेर राज सूं बाहर चल्या गया।
दूसरे दिन तहसीलदार भी बीकानेर पूंच कर दरबार नै थप्पड़ मारणै री बात नमक मिरच लगा सुणाई। सुणकर महाराजा री त्योरियां चढगी – म्हारै अहलकार रै थप्पड़ मारी सो तो म्हारै ही मारी छै। हुकुम होयो जैया भी हो उणनै पकड़कर ल्यावो। बो जित्ता दिन भी जिन्दो रैवेलौ म्हारै जीव के ऊपर रवैलो।
बडोड़ा सेठ दरबार रा घणा मानीता हा, पण दरबार उणरौ बी मूंडो देखणो नी चावै। बठी नै सेठ सा’ब कंवर नै सारी विगत पूछी। पूरी बात सुणकर बोल्या- तूं खानदान रै मुरतब मुजब काम कर्यौ है जो होसी सो देखी जासी।

पण राज सूं बैर राख्या भी कित्ता दिन चलै। सेठ सा’ब भेस बदल बीकानेर मांय डेरा डाळ दिया कै फगत दरबार सूं एक बार रूबरू होवणै रो मोकौ मिल जावै, पर कै री हिम्मत दरबार री हुकम उदूली करणै री। उणा तो सोफ बोल दिया। कंवर नै हाजिर कर्यै बिनां म्हूं सेठ रो मूंडो भी नी देखूं।
पूरो म्हीनो बीतगो। एक दिन दिन-उगै जद दरबार जाजरू सूं आय लौटै ने उलटियो तो खणखणाता रूपया चार पाणी सूं निकल्या। अचंभै सूं निजर ऊपर करी तो मेहतर रै भेस मांय सेठ खड्या। बोल्या – तूं ?
हां – अन्नदाता । दरबार वाल्या-ये रिपिया पाछा लेजा। सेठ बोल्या या निजर तो कबूल करणी पडसी। म्है आपरी परजा हां। म्हारो यो अधिकार तो रैवण द्यो। दरबार बोल्या कंवर कठै ? सेठ बोल्या – छोरां आपरी निजरा रै नीचे ही है। आपरै हुकम रै साथै हाजर होय जावेलो। पण एक अरदास है। आप दोनुवां री पूरी बात सुणकर फैसलो देवोला। पूरी बात सुण्या पाछै आप छोरै ने फांसी पर भी चढ़ा देवोला तो म्हूं नै दरद नीं होवलो। दरबार बोल्या- ठीक छै, दोनुवां री पूरी बात सुणकर ही फैसलो देवालां। तड़कै ही उणवै हाजर करो।
दूसरी दिन दरबार लाग्यो- एक तरफ तहसीलदार अर दूसरी तरफ सेठ और उणां रो कंवर।
दरबार कंवर ने बोल्या- सारी बात साची साची बता! कंवर बोल्यो- इण तरै म्हूं पंचायती करणै चुरु गयो थो। फलाणो बाणियो रंगून मांय रैवे है। जिकै रो नौरो फलानचन्दजी मांग्यो लियो हो। पीछै नियत बिगड़गी-बोल्या कै नौरो तो म्हारो है। राज रै पाना मांय भी फरजी करवायी कर आपरो नावं चढ्या लियो हो। गवाह के रूप मांय ये तहसीलदारजी उपस्थित हा। म्हूं उणानै कुछ सवाल कर्या। ये गुस्सा होयकर म्हूं ने कैयो – काल को छोकरो – शऊर आथ नी और पंचायती करणै आ गयो। म्हूं कैयो – आप या बात कैंया बोलो हो। पंचायती म्हारा दादा सा करी, म्हारा बापुजी कर्या है और म्हूं बी कई पंचायतियां कर मेली है। तद बै म्हूं नै गाली देयी। जणां म्हूं उणनै कैयो आप राज री गादी पर बैठ्या हो, जणां इसी बात बोलो हो नीं तो आप क्यां ने गाली देय सकता। ई पर यै म्हूं नै बोल्या – गादी री कांई बात करै है, या गादी गयी गध री..... मांय। जद म्हारै सूं रैयो नीं गयौ म्हूं इनारै थप्पड़ मार.....
पूरी बात कंवर रै मूंडै सूं निकळी भी नी ही कै सेठ बीच मांय बोल पड्या – अन्नदाता, इनांने पूछौ – आ बात ऐ यां ही होयी है न? तहसीलदार सुणकर चुप्प रैयो। जणां सेठ नाटकीय ढंग सूं बोल्या- अन्नदाता आपरी गादी रो यो अपमान। म्है लोग आपरी गादी री ही सलाम तो बजावा हां। नी तो ऐयां का म्हारै बीसां नौकर रैवे। बी टैम यो तो छोरो हो म्हूं उणरी जगां होवतो तो या बात कैवताई तलवार सूं नाड़ काट देवतो।

तहसीलदार जी बोल्या- पर यां म्हारो इतनो भारी अपमान कर्यो। दरबार गुमसुम होयगा – पीछै बोल्या – म्है कांई कर सकां हो तूं म्हानै जिकी जगह बैठा दियो है।

कठै गयी अइंया की पातरां

राजस्थान सूं करीब एक हजार मील सूं भी दूर राजस्थानियां रो सबसूं बड़ो शहर है-कलकत्तौ। दो सौ बरसां सूं भी ज्यादा होगा राजस्थानियां ने अठै बसता। क्यूं नहीं जठै रूजगार पाणी होसी उठै ही तो लोग जासी। अठै रा मूल वाशिन्दा तो आपरै राग रंग मॉय मस्त रैया। पातरा रै नाच गाणा मांय उणारी जिणगानी बीतती रैयी। उठी नै राजस्थान मांय लोगा रै रोटियां मिलणै रो भी तोड़ो हो सो काफिला रा काफिला दिसावरां कानी चाल पड्या। वे लोग पै’ली कानपुर पाछे कलकत्तो व असम तांणी पूंचगा और आपरी मीणत मजूरी कर आपरा पांव जमाणै लागगा। दिन मांय पन्द्रह सोळा घण्टा री खटनी-पीसो पीसो जोड़णों एक एक पीसै नै खरच करती बैर सोचणो। सच्चाणी भोत कष्ट पाकर ही जम पाया था। वे लोग हां उणा कै जमनै मांय सबसूं बड़ी जिकी चीज थी बा थी उणरी ईमानदारी अर मीणत। लोग देस सूं आता तो बिना पांछ छै बरस पैली ऊं कानी मुंडो ही नीं करता। मूंडो करता भी तो बापड़ा कै खाकर? जद तक कमर मांय हजार पांच सौ की न्योली नहीं बंधेड़ी रै वे देस कानी पग रखणै की हिम्मत भी क्यूं कर होवै।
दो सौ बरसा रै पीरीयड़ ने आपां दो भागा में बांटा तो ऊपर वाली बात पै ली रै एक सौ पच्चीस बरसा रै पीरीयड़ री है। समै पाकर तो कलकत्ते मांय विणज करता करता राजस्थानियां रै कनै भी दो पीसा चोखा होगा और आप जाणो हो जद पीसा री मोकलाइत घर मांय होवे तो कोई न कोई मौज मस्ती मांय जिनगाणी बिताणै वाळो भी जलम ले लेवै।
हां तो काली माई रै क्षेत्र मैं ही कलकत्ते मांय मारवाडि़यां माय एक भोत सौकीन मिजाज रा सज्जन होया। उणारी सौकीनी री चरचा मैके बे मौकै आज भी चाल जावै। उणारो बगीचो क्यूं बात करो ऊँकीः देस विदेसा सूं मंगायेड़ा भांत भांत रा फूलां फला रा गाछ-कोठी मांय चारू मेर जड़ेड़ो झक सफेद इटालियन मारबल, आदमी रै कद सूं भी बड़ा साइज रा वेलजिियम देस रा दरपण और उणरै चारू मेर जड़ेडी सोनै रे झोळ री फ्रेम। पगां रै नीचे गलीचा कालीन री तो बात ही कांई करणी। पग घर नै रै सागै ही आधी फुट नीचे घंसे। बड़ा बड़ा अंग्रेज हाकमां नै दी जाणै हाली पार्टियां। उण मांय पातरां रो गावणवालियां रो नाच मुजरो। हां, एक बात रो प्रण उणरो हो- कोई भी घर गृहस्थी वाली ने खराब करणै री नीत नी करी। साची बात तो या है उण कानी आंख उठाकर भी नहीं देखी। मौज मजा सब कर्या पर पीसा फैंक कर जिकी मिली वा ही उणां री अंक शायिनी हुई। लोग बोलै ऊं माय दोस भी कोई है-तकदीर मांय मोज सौक करनी लिखाकर ल्याया है जिका तो मौज सौक करे ही।
पण जठै आदमी री जात है ऊठै तो स्पर्धा भी होवे ली और ईर्षा द्वेस भी पनपे लो। हां तो रामजी भला दिन दे वे तो ऊपर बरणेडो सौकोर सेठ पर ठै’रो-काणी सरू करनै रै पैली ऊं जमानै री परिस्थिति के ही उणरी जाणकारी कर लेवा- उण दिनां आपरै देस मांय अंग्रेजा रो राज हो और उणारै राज मांय पुलिस रो पॉवर भोत बढ्यो चढ्यो हो। कलकते मॉय चौबीस थाणा हा। उण सवरै ऊपर हो पुलिस कमिश्नर। पुलिस कमिश्नर अंग्रेज ही होवतो पर उण रै नीचे डीप्टी कमिश्नर होवता वै नेटिव (भारतीय) भी हो सकै हा। पर या एक अचंभै री बात है कि हिन्दुस्तानी डिप्टी कमिश्नर रै पावर को जितणो नसो होवतो उत्तणो अंग्रेज कमिश्नर रै भी नी।

हां तो अब का’णी शुरू करां – का’णी रा नायक सेठ दयाल चन्द रईस व सौकीन सेठ अर उणां सूं इर्षा करणियो हो कलकतो रो एक डिप्टी पुलिस कमिश्नर। ईर्षा उपजाणै वाली ही एक पातर जिकै कनै दोनूं जावता। डीप्टी देखतो वा पातर ऊं नै मेरे से ज्यादा तवज्जो देवे जद कि मेरै कनै जबरो पावर है। डिप्टी या ही सब सोच बल बल कर भुंगड़ो होवै। ऊंठी नै सेठ दयाल चंद ईण सब बातां सूं बिलकूल अणजाण। खैर ईब का’णी नै आगे बढ़ाणै सूं पैली सेठ रो हुलियो बताऊं- एक दम गोरो चिट्टो रंग नाक नक्स जियां साँचे मांय ढाळेडा- बात चीत, चाल ढाल सब मॉय एक तरह रो नफीस पणौ झलकै और भी भोलापण लियां मुसकातो चेहरो एक दम जइयां कामदेव रो अवतार। उण दिनां बंगाल माय जूट रो काम सबसूं इज्जत रौ गिण्यो जावतो। आपणीं का’णी रा नायक जूट की परख मांय इत्ता माहिर के पचासा बरसां सूं जूट रो व्योपार करणियां अनुभवी लोग भी उणरै सामने हार मान लेता।
ऊठी नै जिकी पातर कनै दोनूं जावता वा भी आपरै ढंग री एक ही थी। उमर 25-26 वर्ष री ही पण चाल ढाल नाक नक्श एकदम चुस्त दुरुस्त जाणों विधाता उनै गढ़नै मांय आपरी सारी कारीगरी लगा दयी हो। हांलाकि पातर जात री ही पर बात करणै रो सलीको-क्यूं बात करो। आदमी एक दम रीझ जावै। सेठ दयालचन्द सै तो उणरा अइयां रा भीतरी तार जुड़ग्या हा कि पूछो मत। सेठ भी उण पर रूपया रै साथ-साथ प्यार री वौछार कर राखी ही और वा बी इणरै साथ मांय जिको समौ बीते उण नै लागै वो ही जिनगाणी रो सार्थक समौ है। बाकी तो विधाता ललाट मांय जणे जणे री ताबेदारी करणी लिखदी जिकी कर री हूं।
जिनगाणी घर कूचां घर मज़ला करती बीत री ही कि सेठ रा दिन उलटा चालना शुरू हुया और शुरू भी किस्सा हुया थमै ही नीं। और आप जाणो हो रईस आदमी रै आमदनी बंद होया पछै बो कित्ता दिन चलै। कुणसो कुणसो खरचो घटावै और कुणसो राखै। और शुरू सूं ही जिकै रो हाथ पोलो हुवै ऊंके तो मुस्किल ही मुस्किल। कुछ दिनां मांय आपरे इण सेठ रो वी ऊपरी ढांचो ही रैं गो। एक एक कर जमीन जायदाद भी बिकणीं शुरू होगी ऊं के पेटै रूपया तो पैली ही ले राख्या हा और पाछे इण तरह रा रईस लोगां री जमीन का पूरा दाम थौड़े ही ऊठै। रूपया रा चौदह आना बारह आना उठ जावै तो ही भोत है। खैर.....
सेठ सोचता दुःख-सुख, ऊंच-नीच या तो मानखै रै जीवन मांय आवता जावता रेवै अणनै घबराकर झेलो अथवा धीरज रै सागै अणा नै झेलणो तो पडे़गो ही सो जंइया तंइया आपरा दिन वितार्या था पर ई बीच उणारै जीवन मांय एक भोत बड़ो संकट आयो। ऊपर बतायो ना कि जिकी पातर कनै दयाल चन्दजी जावता उणरै कनै एक डिप्टी कमिश्नर भी जावतो और वो इण सूं भोत जलतो और भी कि उण पातर कनै जाणै वाला लोगा मांय पुलिस कोर्ट का एक जज भी था जिका के सागे डिप्टी सा,ब की दांत काटी दोस्ती ही। संजोग री बात कि एक दिन इण डिप्टी रै सागै सेठ दयालचन्द री जबरी तकरार भी हो’गी। ऊं दिन तो वो एक दम आपरै मन मांय प्रतिज्ञा ही कर ली कि इणानै इंया कै जाल मांय फंसाऊगो कि समाज मांय मूंडो दिखाने जोगा नीं रवैला। और आप जाणों हो आपणै देस की पुलिस रो दिमाग इण सब हथकंडा रचणे मांय कितो उपजाऊ है सो एक दिन अचाण चूक ही सेठ दयाल चन्दजी पर एक फोर्जरी केस चालू होगो केस यो हो कि सेठ साब जिके आदमी ने सौ को एक नोट दियो वो जाळी दियो। उण दिनां एक सौ रूपया की कीमत भोत ज्यादा ही। केस री बात मालूम पड़ता ही सारे समाज माय हलचल माच गी। नगर रै नामी गिरामी रईस री रईसी फोर्जरी लोटा सूं? अधिकतर लोगां रो तो यो विश्वास हो कि अंइया रो काम यो सेठ कर ही नीं सके अरै जिको दिल खोलकर रूपया खरच करै। बड़ा बड़ा अंग्रेज अफसरां नै पार्टी देवे और वे लोग उणां कै बठै आकर बड़ा ही खुश होकर जावै जिक रै दिन रात गुलछर्रा उडै वो सेठ एक सौ रे नोट री फोर्जरी करे लो या एक दम ही अनहोणी बात है। पण कानून तो आंधो हूवै। ऊनै तो जिको रास्तो पकड़ा दियो जावै ऊं माय ही वो आगे बढ़तो जावै सो इण सेठ पर फोर्जरी केस चालू होगो – कई तारीखां पड़गी। सरकारी उकील सेठ ने एक ही सवाल करै- आपको यह नोट किसने दिया? यदि आप उसका नाम बता दे तो कानून आपको बरी कर सकता है।’ पण सेठ कीं को नाम बताये उणां नै कोई को नाम सुपने में भी ध्यान माय आवै तो बतावै ना। वै गुमसुम होय जावे और आगे री तारीख पड़ जावै। आखर मांय एक दिन सेठ रो उकील बोल्य – म्हूं इता दिन तो केस नै खींच लियो अबकी बार लास्ट तारीख पड़ी है। ऊं दिन यदि कोई रो नाम नीं बतायो तो जेठ होनी अवश्यम्भावी है। आपनै नाम याद नी आवै तो कोई आदमी नै तैयार करो जिको कबूल करे कि वो आपने लोट दियो है और सजा भुगत लेवै। इत्तौ ही तो करणो पड़ेगो कि बो जिता दिन जेल मांय सजा भुगतै उता दिन ऊंके घरवाला नै सौ पचास रूपया माहवारी देणां पडे़ला। पण सेठ तो हक्का बक्का होर्या हा उणारो माथो ही काम नीं करै। घर-परिवार, सगा सोई मांय भी कोई अइयां रो आदमी नीं जिके सूं मन री बात कर सकां उणां नै लागे आखी दुनिया ही मेरे सूं मूंडो फेर लियो है। ठीक है, जो भगवान री मरजी हो’सी सो काम आसी।

पण या बता बोलणै सूं कांई होवे? ज्यूं ज्यूं केस री तारीख नजीक आती जावै त्यूं त्यूं उणा रो काळजो जगां छोड़तो जावै। मरणे सूं भी जेल ज्यादा भयावह दिखै लागी।
केस री तारीख माय जद एक दो दिन बाकी रैगा तो एक दिन पातर रो कुहावो आयो। भोत दिन होगा हूं आपरा दरसन करना चावूं हूं आप इजाजत द्यो तो बगीचे री कोठी मांय हाजर हो जावूं या आप कनीज रै घरां पधारो। सेठ कुहावे रै पडुत्तर में कुहा दियो – म्हूं सांझ नै तेरे घर पर आर्यो हूं। सांझ नै जद वै उरै घर पूंच्या तब बा सोळा सींगार कर खड़ी उड़ीक री ही। देखंता ही फूल सी खिलगी, बोली ‘इत्ता दिन आप कनीज री याद ही नी करी। म्हूं सै कोई कसूर हो गो हो तो माफ करोला। सागै ही हर तरह री आवभगत करनै लागगी। पर सेठ रे मन मांय तो जेल रो गादड़ो बैठ्यो हो। ऊं से बात करे, हांसणै री चेष्टा वी करें पर मुंह पर हवाइयां उड़री ही। वा पातर री जात थोड़ी देर मं ही पिछाणगी अणां पर कोई ठाड़ो संकट आयेड़ो है। नी तो आज तक इसी बात नी हुयी कि मेरै कनै बैठकर इत्ता दूर रे’वै। बा दो टूक शब्दां में बोली- यदि म्हूं नै आपरी समझो तो साची साची बात बताओ। म्हूं आपरी व्यावता तो कोनी पण परवरदिगार री कसम-म्हूं निज ने आपरी जर खरीद दासी ही समझू हूं। सेठ चुपचाप – कुछ बोलै नी-धीरे धीरे ऊँणरे गालां पर हाथ फैरे। दो एक मिनट बाद दोनूं आंख्या भर आई। अपणआयत रा दो बोल भीतर रै दुःख नै बाहर करणै रो काम कर्यो पर रै’या चुप ही। एकाएक उणारी प्यारी पातर बोल पड़ी – सेठ साब! आज तक आप सूं किणी बात री जिद नीं करी पण आज एक बात सुणल्यो यदि आज आप म्हारे आगे आपरे दुःख दर्द री बात को राज नीं खोल्यो तो काल सुबै पैली म्हारी लास देखो ला।
बात सुणता ही सेठ उनै बाहां मा भींच कर छाती सूं लगाली। पर वा दो मिनट बाद ही अळगी हो बात बताणै री जिद करणै लागी। हार कर सेठ नैं सारी बात बातणी पड़ी। बात सुणकर दो तीन मिनट तो वा गंभीर होय’र सोचणे लागी पीछे कुछ निश्चय कर बोली – आप परसूं कोर्ट मांय या बात कह द्यो कि यो 100 रूपया रो जाळी लोट म्हूं ने फलाणी पातर दियो है – आप मेरो नाम कह दियो। सेठ ऊने फेरू छाती माय भांच लेयी पीछे बोल्या – तूं जिकी बात बोली बा सागी जोड़ायत बी नीं बोल सकै है पर तूं म्हने इत्तो ओछो समझ लियो कि म्हारो बचाव करनै के लिये हूं तनै जेल भिजवा देवूंला – पागल – और सेठ फैरू उने छाती मांय भींचण लागा पर वा तो इब ऊठै थी ही कोनी। वा पूरी गंभीरता सूं बोली- देखो आज तक म्हूं आप लोगा रै सामी एक भली मानस रै माफिक रैयी हूं पर जिका लोग आपरै स्यार सै भलै मिनख ने भी जालसाजी र’चर नुकसान पुचावणो चावै उणा नै मुंह की खाणी पड़ैली और आप मेरै वास्तै रत्ती भर वी चिन्ता नी करोला म्हूं उन गादड़ा रै जाळ मांय नी आऊं। आप भरोसो राखो आपरी प्यारी रो बाळ भी बांको नी होवेलो। सेठ रै मन मांय दोगा चित्ती तो भोत हो’री ही पर बा बार-बार भरोसो दयाकर उणां सूं आचा वाचा ले लिया। सेठ रा आचा वाचा पाकर बा इत्ती खुश होयी मानों कोई बड़ो खजानो मिलगो है वा इणां नै हर तरह सूं रीझावण लागगी। तीन चार घण्टा बाद सेठ आपरै घरां आया जद आखै रास्ते सोचता आया – या कुण है मेरी जो मेरे उपर इत्तो तन मन वार’री है। मेरे थोड़ै सै दुःख दरद मांय अंको काळजो फाटणै लाग जावै। आज किती मिन्नत कर कर मेरे सूं हामी भरायी? सागी जोड़ायत भी इती चिंता फिकर के करेली जितणी या कर’री है। उण ने याद आई। अन्ने जद मालूम हुयो मेरै: घाटो लागगो और मेरो हाथ भोत तंग होगो तो एकांत मांय आपरै गैणो रो डब्बो लेकर मिली और किती मिन्नत करी मेरो गैणो रूपया आप लेय लेवो यो तो सारो आपरो ही बक्सेड़ो है पर म्हूं उन्ने कै’यो बावळी होगी कांई? अरी यो मेरो दियेड़ो ही होसी पर इब यो म्हूं तेरे सूं वापिस ले लेवूं तो वो जमीन पर थूक कर चाटणों हुयो जा यो पाछो ले जा-फेरू कदै या बात मत कहीजे। ऊँ दिन कित्ते बेमन सूं आपरो गहणो रूपया वापिस लेगी। सेठ री आखी रात पातर री बातां सोचता सोचता ही बीती।

तीसरे दिन केस री तारीख ही। हाकम रै इलजास घर मा पेसी शुरू हुई। ईश्वर नै हाजिर नाजिर जान सौगंध लेकर दयाल चन्द जी कठखड़े माय खड़ा हुया। तद सरकारी उकील बोल्यो – ‘आज आखिरी बार आपसे पूछा जाता है कि आप बतायें ये 100 का जाळी लोट आपको किसने दिया? आप नहीं बतायेंगे तो कोर्ट के आगे सिवाय फैसला सुनाने के ओर कोई चारा नहीं रहेगा। और तद सेठ ने हाकम री ओर देखता हुयां मूंडो खोल्यो-योर ओनर! मैं उस शक्स का नाम नहीं बताना चाहता था-क्योंकि मैं उसे बहुत प्यार करता हूं। पर अब जब कि मेरी इज्जत पर आ पड़ी है तो बाध्य होकर मैं उसका नाम बताता हूं फलाणीं वैश्या ने मुझे यह नोट दिया है। सरकारी उकील ऊंची आवाज माय बोल्यो- ‘आप जो बात कह रहे है वह पूरे होशोहवास में कह रहे है ना। एक बार फिर अच्छी तरह सोच लीजिये। परन्तु सेठ दयालचन्द संक्षिप्त रूप मा ही बोल्या – ‘हा’ मैं अपने पूरे होशो-हवास में ही यह बात बोल रहा हूं फलाणीं वैश्या ने मुझे यह नोट दिया है। और रोचकता अर सनसनी बढ़ाती केस री आगै री तारीख पड़गी।
पातर रै पास कोर्ट रो सम्मन तामिल होयो- ‘तुम्हारे ऊपर अभियोग है कि तुमने फलाणै व्यक्ति को एक सौ रूपये का जाळी नोट देकर उसके साथ धोखा किया है। तुम्हें तुम्हारे बचाव में जो कहना है वह अमुक दिन कोर्ट में हाजिर होकर कहो। एक मूं सूं दस मूं दस सूं सौ मूं या बात सारै सैर में फैलगी। अठी नै दयालचन्द जी रो नाम सरनाम हो उठी नै वा पातर भी चमचमातो सितारो। उठी नै वो पुलिस कमिश्नर बी घी का दिया चासणै री त्यारी कर राखी ही। ईब रांड ने ठा पड़ै’ ली भोत ऊंका ऊण्डा पोवै ही। आखिर वो ई ऊनै जेल भिजवासी ऊणां मांय ई एक बोल्यो – ये पातर भी भोत धूर्त होवै है यां कोई अइयां री चाल चालैरी कि सेठ रा बूकियां ही बंधा बैली। वै या सोच सोच कर तो राजी हुवे ही हा कि दोनुं आं मांय ऊंड़ा बैर तो हुई गा।
नियत तारीख नै हाकम रै इजलास घर माय लोगां री इतनी भीड़ होयगी कि पग रखने री जगा भी नहीं बची। मुकदमों भोत दिलचस्प मोड़ ले लियो हो। सारा जन सांस रोक्या आगै री कार्यवाही देखणी चावै हा। सोळा सिणगार करेड़ी देवलोक री परी सी पातर इजलास घर मांय आई। ऊं रो रूप देख’र लोगां री आंख्या चुंधियावण लागी। पेशकार आवाज दी जद वा बेंच सूं धीरै सूं उठी – धीमा पैरां चालकर कठखड़े मांय खड़ी होयगी। पेशकार कुरान हाथ माय देयकर शपथ दिवायी। बड़ी हिचक रै साथ सपथ ली जाणै शपथ लेवणै रो मन बिलकुमल भी कोनी। और तब उणसूं पूछ्यो गयो – ‘सेठ दयालचन्द बोलते है कि उनके पास जो एक सौ रूपयों का जाली नोट पकड़ा गया है वह नोट तुमने उनको दिया है क्या यह सच है? पातर मानो घबरागी होवै अर ऊं उकील की बात सुणी नी होवै लोगा कानी देखती रैयी। फैरूं सरकारी उकील जोर की आवाज माय आप री बात दुहरायी। और तब वा हाकम कानी मुंडो कर कै बोली। हुजूर। कुणसो लोट म्हूं कै जाणू? म्हा कनै तो लोग आवै और जाती टाइम लोट दे जावै जद तक म्हूं लोट नै देख नी ल्यूं के बता सकूं हूं? और तद हाकम रै हुकुम सूं वो लोप पातर कनै ल्यायो गयो। वा हाथ माय लेयकर कई बार लोट नै उलट्यो पलट्यो। पीछै एक दम संकोच तथा अनिच्छा सूं बोली – हां हुजूर। यो लोट म्हूं उन सेठ नै दियो हो। ऊं की या बात सुणकै सारा लोग सकते माय आगा। खुद हाकम भी सकते माय आगा। सरकारी उकील बोल्यो- तुम जो बात बोल रही हो वह पूरे होशो हवास में बोल रही हो तो? जानती हो इस बात से तुम्हें जेल हो सकती है। पातर बोली हूं तो पूरै होश हवास मां ही। बात या है कि आप म्हूने कुराण की कसम दिलायदी कि तूं सच बोलेगी जद साची बात बोल’री हूं। कसम नी दिलाता तो म्हूं या लोट देवणै री बात नै नट जावती। इब बिचारो उकील के बोलै। वो दूसरो प्रश्न कर्यो हां तो अब यह बताओ तुमको किसने यह नोट दिया? प्रश्न कान मांय पड़ता ही पातर मचलकर बोली माई बाप म्हूं नै माफ कियो जावे या बात म्हूं नी बताऊंली। तब उकील बोल्यो- तुम डरती क्यों हो? यहां तो हुजूर बैठे है। यहां तुम्हारे ऊपर कोई कुछ नहीं करनेवाला। पर पातर रै हावभाव सूं लागै हो बा भोत डरेड़ी है बा या बात बिलकुल बी नी बताणों चावै। इब जज सा’ब भी बोल पड्या तुम बेखटके कहो। यहां तुम्हें किसी का भी डर नहीं है। तुम को किस व्यक्ति ने यह नोट दिया था? और तब बड़ी झिझक व संकोच सूं पातर बोली – हुजूर जब आप जोर ही देवो हो तो बतावूं हूं – यो लोट आप म्हूने दियो है और ऊंके या बात बोलणै रे साथ ऊंठे रा सारा लोग इत्ता सकते माय आगा कि बा टाइम एक सूई भी गिरती तो ऊंरी आवाज सबनै सुणाई पड़ती।

और तब जज सा’ब बोल्या-तूं किस आधार से कहती हो यह नोट मैंने तुमको दिया है? पातर एक दम गंभीरता सूं बोली – हुजूर। एक दिन साई संझा आप मेरै घर पर पधार्या हां। आप ऊं समै मनै एक सौ को लोट दियो हो। म्हूं उं समै दरपण रै स्यामी खड़ी मेरे माथे पर सिन्दूर सूं टीकी लगा री उं ही हाथ सूं म्हूं वो लोट लियो हो और ब्लाउज मांय रख लियो हो। म्हूं ये लोट ने इण तरह पिछाण्यो कि ऐ पर म्हारी आंगली रो सिन्दुर लगार्यो है। म्हूं ने या भी याह है कि आपरै थोड़ी देर वाद सेठ सा’ब कुछ उतावला सा आय कर म्हूं ने कयो- तूं म्हूं ने एक बार एक सौ रूपया दे। म्हूं उं ई समै म्हारै ब्लाउज माय सूं निकालकर यो सौ को लोट सेठ सा’ब ने दे दियो थो। म्हारी आंगली रो कुछ सिन्दूर ये लोट पर लाग्यो देखकर म्हूं इती बात कै’री हूं।
और ऊं दिन केस खारज होणै रो अर जज साब रै स्तीफै रो काम दोनूं साथ-साथ हुया। आपरी हुशियारी व चालाकी रा दम भरणिया डिप्टी कलक्टर अर जज रा पुरखा भी या बात सोच कोनी पाया कि सोळा श्रृंगार करकर आयेड़ी पातर आपरै बांयै हाथ री चिटली ऊंगली कै नूऊं माय सिन्दूर लगाकर ले आवगी और लोट ने उलटती पलटती टाईम मांय वो सिन्दूर लोट पर लगा देवेगी।

सतनारायण व्रत कथा रो पुनर्पाठ

पौराणिक ऋषि मुनि लोगों मांय आपां नारदजी सूं जित्ता परिचित हां, उत्ता स्यात दूजा ऋषि मुनि सूं नीं। आप ब्रह्माजी रा मानस पूत्र है व आपरो जलम ब्रह्माजी री जांघ सूं हुयो। ए देवर्षि कहावै। देवर्षि उन्ने केवै जिका सुरग मांय बेरोक – टोक आता – जाता रैवै। ए भागवत धरम रा प्रवर्तक है, भगवान विष्णु रा तीसरा अवतार मान्या जावै। आप धरम – शास्त्र रा निर्माता है व नर – नारायण रा उपासक है। आप ही लोगां ने सारस्वत तंत्र (नारद पाञ्चरात्र) रो उपदेस दियो। आप महान तत्त्वज्ञ, ज्योतिष शास्त्र रा पण्डित व संगीत रा जाणकार है। भोत ऊंचे दरजे रा वीण वादक है। इणरी वीणा रो नाम महत्ती है। सार ओ है कि ए गुणां रा भण्डार है।
नारदजी माँय भरोटी री भरोटी गुण पण इणरो सुभाव एकओर। आपरे सुभाव रे कारण ही ए दो घड़ी सूं जियादा एक जगै टिक कर कोनी रह सकै। बात आ हुयी कि दक्ष प्रजापति आपरै बेटा सूं गृहस्थ धरम रो पालन कराया चावै हा पर अे उणां ने सांख्य ज्ञान रो इयाँ रो उपदेश कीनो कि वे घर त्याग कर वन माँय तपस्या करने चल्या गया। तद दक्ष प्रजापति इणनै सराप दियो कै इबसूँ तूं दो – घड़ी सूं जियादा एक जगै टिक कर नीं रह सकेगो।
ईं सूं बी ऊपर आपां नीं समझ माँय आणै आली एक ओर आदत इण में भरपूर है कै ए लगाव-बुझावण कर लोगां मांय झगड़ो कर देवै। स्यात इणरी आ आदत सूं ई लोग इणनै इत्ता जाणै। पण साची बात आ है कि इणरा इत्ता सारा गुण ईं आदत रै कारण इ ढकेड़ा – सा है।
इणरो एक और काम बाबत बतलाणों तो म्हूँ भूल ई गो। आप सगाई ब्याव सारसा काम करावणै रो भी सौक राखै। आपाँ रामायण री बात लेवां – पार्वतीजी नैं उपदेस देकर शिवजी ने पति पाणै खातर तपस्या करणै री प्रेरणा आपई दीनी। पणजद शिवजी री बरात आई, ऊँ में तो सब परम तरंगी भूत ई हा और बींद राजा री भेष – भूषा ऊँणा सूं उपरलै नाके री ही।

तन छार ब्याल कपाल भूषण नगन जटिल भयंकरा।
संग भूत प्रेत पिसाच जोगिनी विकट मुख रजनी चरा।।
(दुलहे के शरीर पर राख लगी है, साँप और कपाल के गहने हैं, नंगा जटाधारी और भयंकर है। साथ में है भयानक मुखवाले भूत, प्रेत, पिसाच, जोगिनियां और राक्षस)
द्वारचार रै समै देखकर पारवतीजी री माँ मैनादेवीजी रै पगां रै नीचे री तो धरती ई खिसकगी। बै भोत चिंता मांय पड़गा और इणने खरी खोटी सुनाणै लागगा।

  • नारद कर मैं काह बिगारा। भवन मोर जिन बसत उजारा।
    अस उपदेसु उमहिं जिन्ह दीन्हा। बौरे बरहि लागि तपु कीन्हा।।

(म्हँ नारद रो के बिगाड्यो हो जिको रो बसेड़ो घर उजाड़ दियो। बेटी पारवती ने अइयाँ को उपदेस दियो कै बाबलो वर पाने के लिये तप कर्यो।)
साचे हूँ उन्हके मोह न माया, उदासीन, धनु, धामु न जाया।
पर घर घालक लाज न भीरा, बाँझ कि जान प्रसव के पीरा।।
(साँचाणी न उणाके कीं रो मोह है न माया है, उदासीन है, न जर है, न जोरु है, न जमीन है। दूसरा लोगाँ रा घर उजाड़ने आला है, उणरै हया है न डर है, भला एक बांझ जनने री पीड़ा क्या जाणै।)
आज वी सगाई कराणै आळा लोगां ने ईंया री मुसीबत झेलनी पड़ै है, चोखो सगारथ होगो तो टाबरां रा भाग, नहीं तो बीच आळौ दोषी। ई बोल कर केई लोग ई काम सूँ अलग – थलग रेवै।
हां तो आपाँ आगे बढ़ा। नारदजी रै सागे दूजी बार एक और विचित्र घटना घटी। उपदेस देय र सैंकड़ो लोगो री घर गृहस्थी छुड़ाने आला ए निज मांय ई ब्याव करवाणें लालाइत होगा। है न मानव री विचित्रता। ऊँ वगत इणने रात-दिन एक ई चिन्ता सतानै लागगी।
करो जाहि सोइ जतन बिचारी, जेहिं प्रकार मोहि बरै कुमारी।
जप तप कछु न होइ तेहि काला। हे विधि मिलइ कवन विधि बाला।
(म्हूं सोच विचार कर कोई अइयां रो उपाय करूँ जिण सूं आ कन्या म्हनै ही बरै। ऊं समै इणां रै पास जप-तप कुछ वी नीं हो पा रैयो हो। हे विधाता कीं तरियाँ आ म्हनै ने ही मिलै।)
अइयाँ रा परेम रोगी बाबत ऊर्दू रा नामी सायर अकबर इलाबादी व्यंग मांय कैयो – इश्क नाजुक मिजाज है बेहद। अक्ल का बोझ उठा नहीं सकता। आप निज मांय सोचो, जीं सक्स नै दो घड़ी सूँ ज्यादा ऐक जगै नहीं टिकणै रो सराप मिल्योड़ो है ऊं के निज रो घर बार बी होवे तो के काम रो? एक राजकुमारी ने पल्ले बांधकर बैठ के करता? इणानै भगवान ई बचायो पण उणां पर बी दुनिया भर रो क्रोध कर्यो व सराप दियो।
अरे! म्हूँ कठै भटकग्यो? ललित निबंध रो ओ एक बड़ो दोस है कै लेखकने जाणो अगुणी दिसा माँय पण चल्यो जावै एकदम उल्टी तरफ आथुणी दिसा मांय। म्हूंनै बी तो वर्णन करणो हो फगत सत्यनारायण भगवान री कथा आला नारदजी रो पण पूरी री पूरी नारद पुराण री पोथी खोल ली। ऊं कथा मांय तो इणरो चरित एक दम दिप दिप करतो एक संत री भूमिका पर है। बल्कि कथा ने जलम देणै आला ए ई है। वाह ! के अनूठो लोक हितकारी चरित है ऊं में इणरो ? स्यात आपरो ध्यान ईं तरफ गयो नीं है। तो ल्यो म्हूं कथा आला नारदजी रो पण पूरी री पूरी नारद पुराण री पोथी खोल ली। ऊँ कथा मांय तो इणरो चरित एक दम दिप दिप करतो एक संत री भूमिका पर है। ब्लिक कथा ने जलम देणै आला ए ई है। वाह ! के अनूठो लोक हितकारी चरित है ऊं में इणरो ? स्यात आपरो ध्यान ईं तरफ गयो नीं है। तो ल्यो म्हूं कथा बाचूं हूं, आप ध्यान लगाकर सुणो –
एकदा नारदो योगी परानुग्रह कांक्षया-पर्यटन विविधान लोकान् मर्त्यलोक मुपागतः
(एक समै योगी नारद लोगां री भलाई करने री इच्छा लेकर केई अलग- अलग लोकां मांय घूमर मृत्युलोक मांय आया।)
ततो दृष्टवा जनान सर्वान नाना क्लेश समन्वितान- ।
नाना योनि समुत्पन्नान क्लिश्यमानान् स्वकर्मभिः।।
(अठै वे देख्या कै सभी पराणी नाना योनियां मांय जलम लेयर आपरै करम फल रै अनुसार कई तरै रा क्लेस सन्ताप भोगर्या है।)
रामचरित मानस मांय तुलसीदासजी कैयो है-
संत हृदय नवनीत समाना। कहा कविन्ह परि कहै न जाना।
निज परिताप द्रवइ नवनीता। पर दुःख द्रुवहिं संत सुपुनीता।।
(संत रो कालजो मक्खन री डली बरोबर होवे या बात कवि लोग केवै पण उणानै असल बात कैवणी आयी कोनी क्यूँ कै मक्खन तो निज माँय ताप लागै तब पिघळै पण पवित्तर आत्मा संत दूसरा नै दुखन कष्ट भोगता देख’र ई पिघल जावै।)
इण ही बात नै चरितार्थ करता नारदजी रो कालजो पिघलगो और वे सोचबा लागगा-केनोपायेन चैतेषां दुख नाशो भवेदध्रुवम्। (म्हूँ के उपाय करूं जिकै सूं इणां लोगा रो दुःख दूर हुवै) और उणरी या छटपटाहट ही उणानै विष्णुलोक लेयगी और शुक्लवर्ण, चतुर्भुजम्, शंख-चक्र-गदा-पदम् वनमालाधारी विष्णु भगवान सूं रूबरू करा दियो।

अठै म्हूं आपसूं एक प्रस्न पुछर्यो हूँ कै आपनै आ कोनी लागे कै नारदजी री या छटपटाहट- केनोपायेन चेतेषां दुःख नाशो भवेद ध्रुवम् (कि म्हूँ के करूँ जिनस्यूं लोगां रो दुःख दूर हो जावै।) ई सत्यनारायण व्रतकथा, जिणसूं आत तलक लोगां रे दुःख दरद रो समन होर्यो है, री जननी है।
म्हूं जद बी किणी सेवा संस्था ने देखूँ म्हनै सतनारायण भवगान री कथा याद आ जावै। जरूर किणी नारद सरीखे मिनख रै मन मांय लोगां रो दुःख दरद देख कर म्हूँ के करूँ जिणसूं उण लोगां रो दुःख दूर हो जावै, छटपटाहट हुई हुसी जिणसूं इण संस्था रो जलम हुयो।
सिरजण रै प्रसव री पीड़ा तकलीफ तो देवै पण ऊं मांय एक मिठास व चमक री रैवे। आपणी मातृजात ने तो ई को भोत अनुभव है। वे तो इतो तक माने कि जिकी ने आ पीड़ा कोनी हुई ऊँको दुनिया माँय आणो ही अकारथ हुयो।
आजकल साहित्यिक कृतियाँ रो पुनर्पाठ करणै री परथा चाल पड़ी है। मेरी जानकारी में बी ईं सतनारायण व्रत कथा रो एक जगै पुनर्पाठ हुयो। सीकर (राजस्थान) मांय एक महानुभाव हा नाम हो श्री बद्रीनारायण जी सोढ़ानी। आखी जिन्दगी वे लोगाँ री सेवा करी। म्हूं मेरे जीवन मांय अइयां का कुछ लोगों रै सम्पर्क मांय आयो जिको मेरो कोई पूरब जलम रो पुण्य हो आ मानूं। हां तो वे परानुग्रह कांक्षया गांव – गांव फिरता व अभावग्रस्थ लोगां री सामर्थ भर सहायता करता। ऊँ में उणाने मालूम पड्यो कै गरीब जनता मांय भोत लोग टी बी री बिमारी सूं ग्रसित है। ई बिमारी रो पुराणो नाम राजक्षमा, बोले है, ऊं दिनां आ बिमारी केवल राजालोगां रै होती पण इब तो राजा-रंक कोई ने छोड़े कोनी। उणाके या वी सकमझ माँय आई कि बड़ा लोग तो देस विदेस जाकर इलाज करा लेवै पण गरीब बापड़ा तो धीर धीरे मौत रै मुंह मांय ई जावै। बस बणाने रात दिन या चिन्ता सताणै लागी – ‘केनो पायेन चेतेषां दुःख नाशो भवेदध्रुवम्।’ उणरो रामजी पर भोत विश्वास हो। एक दिन वे सीकर रा प्रजावत्सल राजा कल्याण सिंह जी रे पास गया और उणनै आपरो अनुभव बतला कर बोल्या – अन्नदाता ! यदि अठै टी बी री बिमारी रो कोई अस्पताल हो जावै तो बापड़ी गरीब जनता रो दुख सूं निस्तार होवे। लोग इलाज बिना अकाल मौत मर्या है। रामजी री प्रेरणा सूँ रावराजाजी बी ई योजनां ने पसन्द करी और उदारता पूर्वक आपरो सांवली गाँव रो ग्रीस्म प्रवास अस्पताल बाबत दान कर दियो। बस ऊँ ई बगत उणारै मन मांय संस्था रो नामकरण ‘कल्याण आरोग्य सदन’ ही हो गयो।
अस्पताल खातर ढपाण तो बड़ो हाथ लागगो पण बड़े ढपाण ने तो मन्डाण वी ऊं रै मुजब बड़ो चायै। ई चिन्ता मांय दिन बीतर्या हा कै एक दिन गांव रा मानीता पण्डितजी जिणां पर सोढानीजी रो भोत विश्वास हो, बोल्या – सोढ़ानीजी। परसूं रै दिन भूमि पूजन होवणै सैं भोत शुभ रेवैलो। सुणता ही बां के धुद्धी चढ़गी। बाजार सूँ उधार माल मिले ही हो। आदमियां नै कह दियो, पण्डितजी बोल्या आ – आ सामग्री तैयार करो। गाँव का ग्यारा पण्डितां ने न्यूत दिया। सबसूं बड़ी बात आ कै ऊँ समैं सोढ़ानी री अंटी मांय पूंजी रै नाम सूं कुल 68/- रूपया ही हा।
कदे एक दोहो भण्यो, ‘गांठी तो बान्धे नहीं, मांगत हुँ सकुचाहिं। ताके पीछे हरि फिरे, कहीं भूखे ना रहि जाँहि।’ यो दोहो अठै चरितार्थ हुयो। जद आपाँ रामजी पर इत्तो भरोसो कर राख्यो है तो वे भी आपणै भरोसे री रक्षा करै। फतेहपुर रा एक सेठ ज्वालाप्रसाद जी भरतिया कलकत्ते तांई गाड़ी में बैठणे मोटर सूँ जैपुर जार्या हा। उणारै मन मांय आयी, सीकर मांय बद्रीनारायण जी सूं मिल लेवां। वै जद सोढ़ाणीजी री आफिस मांय आया तो कर्मचारी लोग कैयो – वे तो सांवली गया है। पुछ्यो उठै कैंया गया? तो जवाब मिल्यो अस्पताल री नींव पड़री है, ऊं बात गया है। वे उत्सकुतावस सांवली आया तो देख्या – नींव रो पूजन होर्यो है। लोगां रो घमसाण लागरयो है। सोढ़ानीजी ने अलग बुलाकर पूछ्यो ओ के होर्यो है? सोढाणीजी सारी बात बतायी तो बीजो प्रस्न कर्यो – चन्दो चिट्ठो कितोक मण्डगो? सोढाणीजी बोल्या – सेठजी कुल 68/- रुपया जमापूंजी है। वै सुणर खीजिया अड़सठ रूपया है और इत्तो बडो काम परु द लियो। कैयां री बावल बेडो करया हो ?
सोढ़ाणीजी सान्ति सूँ बोल्या – सेठजी ! रामजी रै भरोसे काम परून्द लियो। वै गुस्से मांय ई बोल्या – कर लियो रामजी रै भरोसे काम। पर अठै पैली रै सेठां रै चरित रो एक सानदार परचो मिले कि वे आपहाले को कावो सुंवारणै मांय ही रेवै। भरतियाजी भी उठै आखे दिन रैया। ब्राह्मणां ने भोजन आद रो सारो काम सलटगो तो आपरै पास से सब ब्राह्मणां ने एकसो-एक रुपया कर दक्षिणा रा दिया, बाजार सूँ जिको सामान आयो हो ऊँको पेमेन्ट कर जैपुर जाणै वास्ते मोटर मांय बैठ्या। ऊं समै सोढाणीजी उणानै सान्ति सूं ही बोल्या- सेठजी म्हंनै एक बात बताओ, आप तो जैपुर जार्या हा, अठै आपणै कुण ल्यायो- रामजी ही तो। वे कुछ जवाब नहीं देर कलकत्ते आयगा। पण आखै रास्तै तथा कलकत्ते आकर ही उणरे मन मांय या बात बारबार आ री ही कि सोढाणीजी काम तो आछो ही कर्या है। आज काल गरीब लोगां री इत्ती चिन्ता कुण करै? और आपां दूर खड्या फगत तमासो ही देखां कि आगे बढ़कर सहयोग देवां। दो तीन दिन बाद ही आपरै लड़के ने कैयो, मेरी इच्छाहै कै सोढ़ाणीजी रै ईं काम बावत आपां 25000/- रूपया री सहायता करां और उणरी इच्छा मुताबक इतनी रकम को ड्राफ्ट सोढाणीजी रै नाम सूं भेज दियो।

आगै री बात आ है कै सोढ़ाणजी रे बी समझ मांय आवै लागी ही कै इत्ती बड़ी स्कीम आपाणै सूँ पार नीं पडेगी। वे चेष्टा करी कै सरकार या स्कीम हाथ मांय ले लेवै। पण सरकार भी नटगी। सोढ़ाणजी एक तरै सूँ निरास सा होर्या हा ऊं समै वो ड्राफ्ट पूग्यो। और ड्राफ्ट मिलतां ही जइयां कोई बुझतै दीये में तेल घलगो होवै, लोगां रा चेहरा चमचमाणै लागगा। एक तरै सूं पगां मां घूंघरू बंदगा – चन्दो मंडाणै रो काम चालू होगो। आज आ संस्था हजारां – लाखां लोगां रो जीवन बचा री है।


उजाळै रा पैगम्बर

म्हारे घर माँय एक मैबाती पळरी है। ऊँ के झळमळ कर्यो उजाळे नै म्हूँ टकटकी नजर सूँ निहार्यो हुँ। बा नानी मैनबाती आपरै ही उजाळै माय नहाती-सी म्हनै लागै जानो सूरगलोक सूँ कोई परी आइ होवै। हालाँकि परी की माफिक उँके पाँखाँ कोनी पर उँके बावजूद भी बा परी सूँ कम कोनी। और कम होवे भी तो म्हँने काँई मतलब, म्हारै घर नै तो बा उजाळै सूँ भर’री है। म्हैं ऊँ सूँ भोत अनुग्रहित हूँ।
थोड़ी ही देर माँय मेरो सोच उँके चारुमेर ही चक्कर काटण लाग जावै। अरे! ऊँको तो जळम ही उजाळो करने रे लिये होयो है। ऊँ ही बाबत बिचारी निज नै तिळ तिळ होम री है। कोई के घर नै उजाळै सूँ भरने के लिये सर सूँ पाँव तक बळेगी। जब तळक शरीर रो कोई भी हिस्सो रवैलां तब तळक हार नी मानेगी। साच्याणी अइयाँ रा उजाळो फैळानेवाळा लोग भोत ही जीवट लेकर ई संसार मांय आवै है, नी तो ई तरै बळ-बळ कर निज नै होमनौ कोई साधारण मानखा कर सकै है के ?
एकाएक म्हूँ ऊँ नै पूछ बैठ्यो – हाँ री मैनबाती ! तूँ बारबार इत्ती हळचळ माँय क्यूँ आ जावै? तेरी लौ चपळ चंचळ छोटी – सी घी की तरह बारबार क्यूँ काँपे है? और पीछै जइँया कोई कौतूहळ सूँ देखरयो होवे थिर हो जावै। और म्हँने या वी बत्ता, यो बळनै रो व्रत तूँ कैयाँ तथा कुण सूँ लियो ?
वा बड़े भोळेपन सूँ बोली – एक निगोड़ी तूळी बळती – बळती आई ही, निज मांय तो बळ ही गई पर ऊँ बीच एक क्षण रै लिये मेरे सूँ भी भेंटी और बस मेरे कपाळ माँय भी बळनो लिख’गी। इब आखी जिनगानी म्हँनै यो ही व्रत निभानो है। म्हँनै ऊँ की बात पर भरोसो तो हुवै ही- ऊँ के मासूम उत्सर्ग पर मेरो माथो भी झुक जावै। सागै – सागै म्है और भी कई चिन्तना माँय डूब जाऊँ, सोचूँ या एक मैनबाती री बात काँई करा और वी भोत लोगाँ रे जीवन माँय इस तरै री घटना होवै है। स्वामी विवेकानन्द री बात ल्यौ। बाळक नरेन्द्र ठाकुर रामकृष्ण परमहंस कै पास थोड़े ही समै वास्ते तो आयो हो पर ठाकुर ऊँ कै सिर नै इयाँ को छूयो कि आखी जिनगानी बळकर जगती माँय उजाळो करतो रयो और बिचाराँ की सुगन्ध फैलातो रयो। स्वामी विवेकानन्दजी री सुगन्धवाळी बात सोचता ही एक क्षण रै वास्ते मेरी नजर ऊठै बळ रही धूपबाती री ओर भी चली जावै, सागै – सागै सोच री सूई भी ऊँ के ओर ही धूम जावै। सोचूँ हालाँकि या धूपबाती मैनबाती री ज्यूँ गोरी – चिठ्ठी सुन्दर कोनी, शरीर सूँ भी पतळी तथा रंग भी कलासो है पर है या भी बड़ी जीवटआळी। इंकै सिर पर आगी सवार है, शरीर तिळ तिळ कर राख होकर झर्यो है पर इनै कोई परवा नी, या तो सुगन्ध सूँ फाग रम री है। म्हैं उनके बाबत भी नतमस्तक हो जावूँ।
साच्याणी आज मेरो सोच रेलगाड़ी ज्यूँ पटरियाँ बदलती आपरै गन्तव्य स्टेसन कानी वगर्यो है। थोड़ी देर माँय दीये री छवि मन – मस्तिष्क माँय आ जावै। माटी रो तन, रुई रो मन तथा तेळ री आतमा – रोज दिन ढळै – सूरज भगवान विदा लेवै और यो तैयार हो जावै बळ कर उजाळो फैलावळ सारू। या ही बात पर तो आपरो साहित इंको खूब गुणगान कर्यो है।
म्हूँ म्हारी कविता री पोथी ‘क्षण कस्तूरी गंध के’ रै मांय लिख्यो हो कि भोत बार दोनूँ बगत रळता समै पत्ता रा दोना बना ऊँ दिवळो चास कर गंगाजी रै बहते पाणी मांय प्रवाहित कर्यो हो। ऊँ वगत वो म्हारो पत्तो मेरे दिवळे नै दूसरा पत्ता सूँ थोड़ो आगे ले जावतो तो मन माँय घणो आनन्द छा जावतो। इत्तो घणौ कि आज म्हूँ ऊने व्यक्त नी कर पाऊँ पर ऊँ को झळमळ झळमळ करतो पाणी पर तिरणो अभी तक मेरी आख्याँ मांय जड्योड़ौ है।

और कातिक रो म्हीनो लागतो ही कागज रै रंगीन ढोळ माँय दीयो चास कर तथा लम्बे से बाँस मांय बांधकर छात रै ऊपर लटकाणो भी भोत आनन्द देवतो। पाछै दोनुआँ रो नाम मालूम होयो एक नै जळ दीयो केवै तथा दूसरे नै आकाशी दीयो।
मानखो सृष्टि रै आरम्भ काल सूँ ही नारायण सूँ अरदास करतो आयो है – ॐ अस्तो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।
म्हँने बूरे रास्ते सूँ अच्छे रास्ते पर ले चाळ, अँधकार सूँ ज्योति रै रास्ते पर तथा मृत्यु सूँ अमर बणा।
आपांनै मालूम नी कि नारायण मानखै रही दूजी प्रार्थनावाँ कित्ती सुणी पर दीपक भेजकर ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ आळी प्रार्थना तो सांगोपांग सुनी।
अठी नै मानखो भी दीवळै नै भरपूर मान दियो। आपरै मन रै ऊँचे सूँ ऊँचो आसन पर बिठायो। इतनो तक की उनने भगवान सूरजी रो ही प्रतिरूप समझे !
दीयाँ नै कविलोग अलग अलग कित्ता रूप माँय देख्यो है उणरी कोई गणना नी कर सकै पर ज्यादातर कवि लोगाँ उन्ने सूरजी रै प्रतिनिधि रै रूप मांय ही देख्यो है। विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर को एक भोत ही सुन्दर, प्रेरणा देनावालो गद्य गीत है। आप भी ऊँ को आनन्द ल्यो –
साँझ रै समै आथमतो सूरज अभिमानपूर्वक सिर उठाकगर बोल्यो – है कोई अँया रो जिको मेरे पीछै मेरे प्रकाश नै जीवित राख सकै, माटी रो नान्हो सो दीवळो नम्रतापूर्वक बोल्यो – ‘हूँ कोशिश करूँ लो।’
गद्य रा एही भाव झलकाती श्री सम्पतकुमार दूगड़ एक कविता रची ही, जिकी इण भांत है – एक साँझ नै छिपतो सूरज /चिन्ता में घुलकर यूँ बोल्यो/ मैं तो जाऊँ पण पीछै सैं/कुण दुनिया में करै उजाळो/रात उड़ासी कोरो काजळ/अंधकार छावैळो काळो/सारो जग चिन्ता में डूब्यो।/ सै जीवाँ रो हिवड़ो डोल्यो।/जद छोटी सी नाड़ उठा/एक नानो दियो मुलक कर बोल्यो।/ मैं थोड़ी सी सेवा करस्यूँ।/ शायद कुछ मतलब सर जावै।/मैं आगी रो अलख जगास्यूँ।/शायद थारो पण निभ जावै। / और दियो हँस कर देवे ज्योत, आपरो तन मन बाळै।/अंधकार स्यूँ झूझ झूझ कर, आखी काळी रात उजाळै। /ओ बलिदानी, ज्योतिर्दानी तिळ तिळ बळ कर वचन निभावै।/भोर हुवै जद सूरज नै सम्भळा कर ज्योत आप खो ज्यावै।
दीयां री बात चालगी तो दीवाळी अथवा दीपावळी की बात तो हुसी ही हुसी। म्हारै ख्याल माँय तो दीवाळी नै पैली लोग दीवावाळी कहणो शुरू करयो हुसी पीछे अपभ्रंश होय दीवाळी कहने लाग्या होसी।
अलवेरुणी लिख्यो है – हिन्दू लोग कार्तिक की अमावस्य के दिन दीयां की पूजा करै है और साफ सुथरा और सजावट करयोड़ा घराँ में दीया की कतार सजावै है। हिन्दुआँ रो विश्वास है कि वासुदेव री पत्नी लक्ष्मी या रात नै ही राज बळि नै बन्धन सूँ मुक्त करणै के लिए सुरग सूँ धरती पर उतरै है।
यूँ देख्यो जावै तो दीया रौ कुटम्ब भोत बड़ो है, मैनबत्ती सूँ लेय कर लालटेन, गैस सूँ जलने वाला हांडा री बात तो छोड्द्यो समन्दर मांय लगायोड़ा बड़ा – बड़ा परफास स्तम्भ तक यां रै कुटम्ब मांय सामळ है।
जे आपांनै कोई पूछै कि आप दीये री परिभाषा कै है, बतावो, तो आपाँ चारूंमेर सोच-विचार कर एक ही परिभाषा बता सका हाँ;जिको निज मांय जळ कर दूसरा नै परकास देवै, उणरौ नाम दीयो। भगवान बुद्ध आपरै निर्वाण वगत आपरै सिस्यां नै एक भोत सार री उपदेसना करी – अप्प दीवो भव ‘अपना दीपक स्वयं बनो’। या इत्ती सार री उपदेसना है कि जिको अनै अपनावेगो ऊँको जीनो जगमग जगमग हो उठेळो।
एक आदमी रो संसम्रण भोत दिना पैळी पढ्यो हो उनरो नाम – गाम याद कोनी, पर संस्मरण इस मुजब है – एक बार म्हूँ समुद्र यात्रा करे हो कि जिकी नाव में म्हैं हो वा कोई चट्टान सूँ टकराकर टूटगी। रात रौ वगत हो, हथ नै हाथ सूझै नी, मल्लाह आद सारा लोग पानी माँय। संजोग सूँ म्हूँनै काठ को एक तख्तो हाथ लाग गो। म्है ऊँ तख्ते रै सहारे सहारे तिरतो रयो। पर कित्ती देर ? च्यारूंमेर अथाह पाणी ही पाणी। समन्दर हरी लहराँ दौड़ती-दौड़ती जाने म्हनैं लील जाने वास्ते ही झपटी पड़े। म्हैं एक तरै सूँ जीवन सूँ निरास ही हुयग्यौ हो कि दूर भोत नानो सो कोई तारो टिमटिमातो दिखाई दियो। आख्याँ नै बार – बार खोलूँ-मींचू-झपकाऊँ, कदै तो वो तारो कुछ झलकै, कदै नी। भगवान जाने के है पर म्हैं ऊँ ही ओर हाथ पाँव मारना सुरु कर दिया। कुछ देर बाद वो परकास, कुछ ज्यादा दिख्यो तो जानै मरता आदमी रै जीवन की आस बँधी, जरूर भौम है। और बची-खुची ताकत मांय नयो जोस आ गयो। थोड़ी देर मांय किनारो आगो। धरती दिखी मानो भगवान दिखग्या। सामने ही एक मकान हो, ऊपर ही वो परकास बळर्यो हो। घसीटतो-पड़तो ऊँ मकान रै फळसे तायी पूग्यो और ऊठै ही गिर पड्यो। आवाज होयी, सुनकर भीतर सूँ मकान मालिक फळसै रा किवाड़ खोल्या और म्हँनै भीतर ले लियो। कोई गरम – गरम तरल पदार्थ आपरै हार्थाँ सूँ म्हँनै प्यायो। दो चार घड़ी बाद कुछ चेतो हुयो। बोळनै की ताकत हुई तो मकान मालिक पुछ्यो – ‘कुनसे देस रा हो?’ बोल्यो- ‘म्हूँ भारत देस रो हूँ।’ उन सज्जन री आंख्याँ खुसी सूँ भरीजगी। ‘गाँधी रै देस सूँ ?’ बोल्यो – ‘हाँ उणी देस रो हूँ।’ बस पैलै दिन इत्ती सी बात हुयी। दूसरे तीसरे दिन मेजमान सज्जन आपरी बात बतायी – अठै सूँ दस – ग्यारह मील रै आंतरै म्हारौ सैर है। म्हूँ गाँधी री जीवनी व साहित्य नै भोत चाव सूँ पढ़तो, ऊँ पर गनन करतो। उणसूँ प्रेरणा मिळी कि म्हूँ वी कोई अँइया को काम करू जिँसू लोगाँ री साहयता हौवै। अठै निरजन मायँ समन्दर किनारै मकान बनाकर तथा छात पर आखी रात लालटेन को प्रकास को यो ही उद्देश्य है कि कदाच कोई डूबतो निरास मानखै री नजर ऐंकै ऊपर पड़ै। ऊँ मै आसा को संचार होवै और उँकी जिनगानी बच जावै। भगवान री दया सूँ जिँया आज आपरी जान बची। म्हैं ऊँ दिन उण मेजमान री बात सुनकर उनरै चरणा मांय धोक दी।”

यो संसम्रण पढ़तां – पढ़तां आपरै देस री सुप्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा रो कथन याद आ जावै। पण ठहरौ, जद महादेवीजी रो जिक्र आयो है तो म्हूँ आपरो दो – तीन मिनट ज्यादा समै लेऊंला। वांरौ एक संसम्रण आपनै सुनाणे रो लोभ वेसी होर्यो है। कळकते मांय म्हा सब का आदरणीय गाँधीवादी सज्जन पद्मभूषण श्री सीतारामजी सेकसरिया हा। महादेवीजी वर्मा रै सागे वारै भैन-भाई रो रिस्तो हो। इत्तो गाढ़ौ रिस्तो कि सेकसियाजी रै घर सूँ भी उणा नै ननद-बाई कैकर ही बतळावता। महादेवीजी आपरै हाथाँ सूँ सूत कातकर ऊँ की राखी बना हरेक राखड़ी पर भाई ने भेजता महादेवीजी रौ जद भी कळकत्ते आवणौ हुतवौ इणारै घर पर ही ठहरता, बुळावो चाहे कोई भी। हाँ तो सेकसरियाजी मेरे पर भोत स्नेह राखता। जद महादेवजी आयोड़ा होता तो उणारै निमन्त्रण पर म्हूँ मैदान सूँ सीधो ही उनरै घर पर चल्यो जातो।
तीस-चालीस रै दसक माँय ‘अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ कानी सूं एक पुरस्कार केवल महिला साहित्यकाराँ नै ही दियो जातो। नाम हो ‘सेकसिरया पुरस्कार’ और रासि ही 500 रूपया। साहित्य जगत माँय यो भी भोत इज्जत हाळो पुरस्कार मान्यो जातो। हाँ तो महादेवीजी बोल्या कि जद म्हँनै यो पुरस्कार मिल्यो तो भोत खुसी होयी। सागै-सगै मेरे मन मांय यो विचार भी होय कि इण पुरस्कार री रासि म्हैं महात्मा गाँधीजी रै चरणा मांय चढ़ाऊँ, सो म्हूँ महात्माजी रै पास गई और प्रणाम कर-कर बोली कि म्हँनै यो पुरस्कार मिल्यो है जिकी रासि आपरै चरणा माँय चढ़ाऊँ हूँ। या बात कह कर म्हूँ कटोरे सूँ रुपया निकाल कर उनरै चरणा माँय रख दिया। पर वै इत्ता पक्का हा कि म्हँनै बोल्या – तनै या रासि कटोरै में मिळी है और जब तू रूपये दे दी तो यो कटोरो तेरे के काम को ? सो मेरे पास सूँ वो चाँदी रो कटोरो भी रखा ळियो। या बात बोलता – बोलता महादेवीजी मुक्तमन हाँसने लागगा हा।
महादेवीजी रो कथन हो कि एक बळतो दीयो एक सहस्त्र बुझ्योड़ा दीयां नै बाळ सकै पर एक सहस्त्र बुझ्योड़ा दीया मिळ कर एक दीयै नै कोनी चास कै। साच्यांणी ! आपणै देस रो गाँधी इसो ही बळतो दीयो हो जिको सहस्त्र-सहस्त्र बुझ्योड़ा दीयां नै चास्या।
राजस्थानी साहित रै प्रतिनिधि काव्य ‘ढोळा मारू रा दूहा’ में भोत लाम्बी उडीक रै बाद ढोले री बाळपणे माँय परणी आपरी जोडायत पूगळगढ़ री पदमिणी मरवण सूँ भेट हुवै और पैली ही रात, जद दोनूँ जणां रौ मैल होवै तो बाताँ माँय ढोळो मारवणी नै दीये कानी इसारो कर रै पूछै-यो दीयो काजळ रो प्रसव क्यूँ करै और ज्यूं कोई जवाब गढ़ ही राख्यो हुवै मारवणी बोलै जिकी चीज खावेला वो वाही उगळैल्यो यो दीयो अंधकार रो भक्षण करै तो काजळ ही उगळैगो। ढोळो एकदम चकित रह जावै।
पण म्हारौ मन ई बात मांय एक नयो अर्थ ढूँढणे की चेष्टा कर्यो है, अंधकार माने बुराई और काजळ वो जिको आँख्यां नै सुन्दर बणावै और दृष्टि नै निरमळ करे।
काश ! एक-दो नहीं, कतार री कतार ई तरह रै मानखां री दिसै जिका अंधकार रो भक्षण कर कर काजल रो प्रसव करै।


‘तौया दारे’ यानै ‘दूध रौ रूंख’ या नै माँ

बा लड़की बोली कि टाबरपणै मांय गांधीजी री मां सूरज कार दरसण करकै ही भोजन करणै रौ बरत ले राखौ हौ। ऊँ कै लिए बरसात रै दिनां मांय गांधीजी आकाश मांय थोड़ौ सो चानणौ होतां ही ऊपर छात मांय दौड़ जाता कि माँ नै सूरज रा दरसण हो जावै। मां बाप रै बाबत यौ लगाव म्हूं नै भोत आछौ लाग्यौ।
थोड़ा दिनां पैली म्हूँ वृंदावन गयौ हौ। जिकैं मेरै मित्र के उठै म्हूं ठहरयौ हो, वै भोत धार्मिक वृत्ति का है व जरूरतमंद लोगां री सहायता करता ही रवै। केवल रूपया – पीसा सूं ही नीं, दूजा अटकेड़ा काम भी करवा देवै। उण दिनां उणां सूं मिलणै दो – तीन बार एक महिला आयी। चेहरै – मो रै सूं वा मनै अभिजात घर की लागैं ही। सरकार बूढा लोगां नै 150/- म्हीनों आर्थिक सहायता देवै, वौ उणनै 10-12 म्हीनां सूं मिल्यौ कोनी, ऊं की कारवाई उणसू कारवाणी चावै ही। म्हूं उणनै पूछ बैठ्यौ – “मांजी ! आप कित्तै दिनां सूं वृंदावन वास कर्या हौ ?” बा बोली – “7 वर्ष सूं, अब म्हूं 72 बरसां री हूं!” म्हूं और कुछ पूछ्यौ कोनी। सायद कोई दुखती रग छू जावै। पीछूं मेरौ मित्र बतायौ - “ईं कौ लड़कौ तथा ऊं कौ परिवार कलकत्तै मांयच रैवै है और या एकलकी ही। के बात है आपणै साथ का इया का हजारां वृद्धजन वृंदावन मांय रह रया है ?”
बात सुनकर मन तिक्त हो गयौ हौ। लोग पैली टाबरां नै जलम देवै। अनेक कष्ट सहकर उणां नै पाळ-पोस कर बड़ा करै, केवल यै ही वास्तचै कि आप बुढापौ एकाकी गुजारै ? म्हूं नै भोत बरसां पैली री एक लड़की याद आगी- म्हे चार जना, जिकै मांय वा लड़की भी ही, पुस्तकालय सूं ले कर महात्मा गांधीजी की जीवणी ‘मेरे सत्य के प्रयोग’ बांची ही। पीछै ऊं की सब सूं आछी कुण-सी बात लागी ऊं पर चरचा करी ही। म्हे तीन जणा तौ सिद्धांत री बड़ी बड़ी बात करी ही, पर बा लड़की बोली कि टाबरपणै मांय गांधीजी री मां सूरज का दरसण करकै ही भोजन करणै रौ बरत ले राखौ हौ। ऊं कै लिए बरसात है दिनां मांय गांधीजी आकाश मांय थोड़ौ-सो चानणौ होतां ही ऊपर छात मांय दौड़ जाता कि मां नै सूरज रा दरसण हो जावै। मां – बाप रै बाबत यौ लगाव म्हूं नै भोत आछौ लाग्यौ।
म्हैं लोग ऊं की बात नै ऊं समै तौ कोई खास महत्त्व नीं दियौ, पर आज बा लड़की री बात भोत साची लागी। काश ! टाबरपणै मांय मां – बाप रै लिए जित्तौ परेम हुवै ऊं कौ दर परसेट भी आखी जिनगाणी रवै तौ लोगां रौ बुझापो आनंद सूं बीतै। ईं दृष्टांत स्वरूप म्हूं आपरै सामनै स्वामी विवेकानंद रौ एक पत्र राखणौ चावूं हूं जिकौ वै तारीख 1 दिसंबर 1818 नै राजस्थान रै खेतड़ी म्हाराज श्री अजीतसिंहजी नै लिख्यौ हौ – “आप द्वारा मेरी मां नै भेजी 100/-रूपयै म्हीनैं री राशि उणरै खरच बाबत यथेष्ट है। म्हूं आपनै एक और निवेदन करूंला कि आप द्वार म्हीनै री म्हीनै भेजी जाणै हाळी या राशिस्थायी कर दी जावै जिससूं मेरै मरणै रै बाद भी उणां नै मिलती रैवै।” महाराज साब उणरै लिखणै रै सागै ही यौ बंदोबस्त कर दियौ हौ।
आपां सब जाणां हां स्वामीजी संन्यास धरम ग्रहण कर लियौ हौ। धर्म व्यवस्था रै अनुसार संन्यासी कै लिए मां – बाप अथवा कोई रै सागै भी लगाव राखणौ वर्जित है पर स्वामीजी मां रै सामनै यै सारी चौखटां लांघणै मांय तनिक भी हिचक्या कोनी और वै ही देस रै धुर दिखणाद नाके त्रिकूट परवत पर लंका रे राजा रावण पर विजय पाकर उठै रौ राज विभीषण नै थरप्यौ हौ तथा भगवती सीताजी नै वानर लोग जै - जैकार करता उणकै पास ल्याया हा, ऊं समै उणरै सामनै सोनै री लंका सूरज की रोशनी मांय दिप – दिप कर री ही और राजा विभीषण तथा ऊठै का सारा लोग उणरै हुकुम री उड़ीकना करता खड्या हा। सीताजी अगिनस्नान कर र राम कै वामांग मांय विराजमान ही। वै कृशकाय ही, पर मुंडै पर तेज भळ – भळ करयौ हो। सीताजी रै अग्निस्नान कौ उद्देश्य जिक्रौ लोगां मांय प्रचलित है वौ तौ हुवैगौ ही, पर मैं सौचूं हूं कि सीताजी कै मन मांय यौ कांटौ गडर्यौ हौ कि मेरे कारण ही लंका मांय रैवणै हाळी वापड़ी परजा अनाघात आग में जळी जदकि उणरौ कोई दोष कोनी हौ। सा’द ऊं कै ही प्रायश्चित स्वरूप वै भी आपरै शरीर नै अग्निस्नान करायौ। सीता मां जगतजननी है न? ई बोलकर उणां की या पीड़ा अस्वाभाविक तौ नीं है।

राजा विभीषण की या उत्कट इच्छा ही कि राम कुछ दिनां अठै लंका में विराजै पर वै लक्ष्मण नै कवै-
नेय स्वर्णपुरी लंका
रोचती मम लक्ष्मण।
जननी जन्मभूमिश्च
स्वर्गादपि गरीयसी।।
“भाई लक्ष्मण ! लंका सोनै री है, पर तौ भी या मनै आच्छी नीं लागै। मेरै लिए मां तथा मातृभूमि स्वर्ग सूं भी बड़ी है।”
दुनिया का सारा चिंतक, विचारक एक सुर सूं या मानै है कि मिनख रै आगै सुरग सूं बडौ लालच तथा नरक सूं बडौ भय आज तलक नीं परोसौ गयौ। कई तौ इत्ता तक बोलै है कि सभी धरमां री भित्ती ही या दोनूं बातां पर टिकेड़ी है।
और भगवान राम, मां व मातृभूमि नै ऊं सुरग सूं भी महान बतावै है।
मां की महानता नै तौ भगवान कृष्ण भी स्वीकारी है। वै जब गुरु सांदीपनि सूं भणाई करकै घर आणै लाग्या, तौ गुरुजी बोल्या – “कृष्ण, तूं मेरे सूं कुछ मांग!” कृष्ण बोल्या – “आप तौ म्हूं नै भरपूर दियौ है, अब और बाकी के रयौ सो मांगूं?” पर गुरुजी जिद-सी करणै लाग्या तब कृष्ण वरदान मांग्यौ- “मातृ हस्तेण भोजनम् – म्हूं नै आखी जिनगाणी मां रै हाथ सूं भोजन मिलै!” गुरुजी बोल्या – “तथास्तु?” कृष्ण भगवान जद आपरै धाम पधार्या, तब उणां री उमर कम-सूं कम 120 बरस री ही। शायद यै वरदान कारणै ही उणां रा मां – बाप ऊं समै तलक जीवै हा। उणांरौ अंतकाळ कौ समाचार वसुदेव-देवकी नै द्वारका मांय दियौ गयौ हौ।
आखी दुनिया मांय मां चाहै कोई जात री हौ, कोई धरम नै मानणै हाळी हौ, कोई उमर री हौ, बा मां ही है। उणरी आंख्यां मांय संतान कै बाबत ममत्व रौ झरणौ ही बैवतौ रवै। ई पर मुहर लगाणै हाळी एक बात याद आवै ! एक बार एक अमेरिकन पति-पत्नी मलेसिया देस रौ भ्रमण करणै आया। चूंकि वै ऊठै री भासा नीं जाणै हा, यै बोलकर एक दुभासियौ कर लियौ। दूजै तीजै दिन एक गांव मांय सैं गुजरया हा कि एक जगै पांच – सांत पेड़ नारैळ का दिखाई पड्या। दुभासियौ पूछ्यो – “सर, आप डाब (काचा नारेळ) कौ पाणी पीवौला के ?” वै हां भरी जद दुभासियौ, ऊं बागान री मालकिन जिंकी कोई 30-32 बरसां री हुवैली और बैठी हुक्कौ गुड़गुड़ा री थी, उणनै 5-7 डाब तोड़णै बाबत कैयौ। वा आपरै छोरैने, जिकौ आठ – नौ बरसां रौ हुवैलौ, पेड़ पर चढ कर डाब तोड़नै कै लिए कही छोरौ करम मांय दाव खोस कर फुरती सूं पेड़ पर चढणै लाग्यौ, तौ मां छौरै नै जोर सूं कुछ बोली। ऊं की बात सुणकर वौ अमेरिकन आपरी जोड़ायत नै बोल्यौ- “या कवै है – इत्ती हड़बड़ी मत कर, संभळ कर चढ, तेरै चोट नीं लागजा!” ऊंकी बात सुणकर दुभासियौ अचरज में पड़गौ-यौ मलेसिया भाषा समझै है के? नहीं तौ या बात केयां समझती? ऊं पा रयौ कोनी गयौ तौ उणनौ पूछ बैठ्यौ- “सर ! आप मलेसिया भासा समझौ हौ के ?” अमेरिकन उणनै सांत भाव सूं जबाब दियौ – “ना ! म्हूं मलेसिया भासा कोनी समझूं पर म्हूं एक मां री भासा समझूं हूं !”
आपरै बेटै – बैटी रै अमंगळ सूं मां कित्ती जागरूक हो जावै ईकौ दृष्टांत आपां नै रामायण मांय भी मिलै। आऔ, आपां ऊं दृष्टांत कै साथ रूबरू होवां-
अभी – अभी भगवान शिव बरात लेकर हिमाचल कै घर पर भगवती पार्वती सूं विवाह करणै आया है। उणां री बारात तौ ‘परम तंरगी भूत सब’ लोगां री है तथा निज रौ वेष भी उण लोगां रै माफिक है। उणां रौ वेष तथा बरात कै लोगां नै देखकर तौ टाबर लोग भी डर कर भाग आया, पर जद द्वाराचार करनै पार्वतीजी री मां मैनादेवी आपरै होणै हाळा जंवाई रौ रूप व हाव – भाव देख्या, तौ वै भी बेटी रै भविष्य रै प्रति आशंकित हो उठ्या और उत्तेजना सूं भरगा। वै आपरी बेटी नै छाती सूं लगाली और बोलणै लागा-

कस कीन्ह बरु बौराह विधि
जेहिं तुम्हहि सुंदरतादई
जो फल चहिअ सुर – तरुहिं
सो बरबस बबूरहिं ला गई
तुम्ह सहित गिरि तें गिरौं
पावक जरौ जलनिधि महुं परौं
घर जाउ अपजसु होउ जग
जीवत विवाह न हौं करौं
“विधाता तेनै इत्ती सुंदरता देयी तौ तेरै वर न पागल क्यूं बणायौ, जिकौ फळ कल्पवृक्ष मांय लागैगौ। म्हूं तेनै लेकर पहाड़ सूं गिर जाऊंगी, आगी में जळ जाऊंगी- चाहै समुद्र मांय कूद जाऊंगी, वर – बराती आपरै घर जावै, मेरौ अपजस होवै, पर म्हूं जीते जी यै व्याव नीं करूं।”
ऊं बारात मांय तौ भगवान विष्णु समेत सबी तौ बड़ा – बड़ा लोग हा, पर वै कीं की भी परवाह नीं करी। पीछै जद उणां नै उण लोगां द्वारा पूरौ – पूरौ भरोसौ दिलायौ गयौ कि शिवजी सबतरियां समर्थ तथा आपरी बेटी कै लायक वर है तद ही वै बेटी व्यावणै की हामी भरी।
और पार्वतीजी भी आपणी मां सूं के कम हा ! यै ही शिवजी,, उणरा पतिदेव एक दिन बारै सूं थक्या – मांदा जद आपणै घर में बड़णै लाग्या तौ फळसै पर बैठ्यौ एक जन उणां नै रोक दियौ, भीतर बड़णै नीं दियौ। तद यै गुस्सै में आकर कि मेरौ ही घर और म्हूं नै हीं बड़णै नीं देवै, ऊंकौ सिर ही धड़ सूं अलग कर दियौ। पर वौ तौ पार्वतीजी कौ मानेड़ौ बेटौ ही हौ। पार्वतीजी गुस्सै में लाल-पीळा होगा तथा उणरी आंख्यां तांडवनृत्य करनै लागगी। शिवजी नै आपणी भूल मालूम पड़ी। वै एक पल सुसतायै बिना उल्टै पग लौट्या और कीं सूरत सूं गणेशने फैरू जिवायौ तद ही पार्वतीजी रै मन मांय संतोष हुयौ।
इन्हीं पतिदेव नै पानै कै लिऐ बचपन मांय करी गई इत्ती कड़ी तपस्या जिकै कै लिऐ महाकवि कालिदास ‘कुमारसम्भवम्’ मांय लिख्यौ कि-
पुनर्ग्रहीतुं नियमस्थया तपा
द्वयोङपि निक्षेपडइवापितांद्वयम्।
लतासुतन्वीषु विलासचेष्टितं
विलोलदृष्टं हरिणांगनासुचे च ।।
“तप करणै कै समै वा इयां की शांत होगी कि मानौ तप करणै रै बाबत आपरा हाव-भाव कोमल लतावां नै आपणी चंचळ चितवन हरणियां नै धरोहर रूप मांय दे दी।”
संतान कै सामनै उणनै चिनिक-सी याद कोनी आई।
अब आऔ, मध्ययुग मांय (17वीं सदी) घटी एक घटना सूं साक्षात्कार करां-
आलम और सेख (पति-पत्नी) दोनूं भोत प्रतिभाहाळा कवि है। आलम पैली हिंदू हौ उणां रौ आपस मांय विवाह केयां हुऔ, ऊंकी भी भोत दिल नै छूणै हाळी घटना है। बात या है आलम (ऊंरौ हिंदू नाम मालूम कोनी) दोहै री एक लाईन बनायी – ‘कनक छरी – सी कामिनी, काहे को कटि क्षीण’, पर ई की दूजी लाइन उण नै सूझी कोनी। दो – तीन दिन भोत माथा पच्ची करता रया, पीछै हारकर बा चिट, जिकी पर पैली लाइन लिखी ही, आपरी पगड़ी मांय खोंसली। थोड़ै दिनो बाद वा पगड़ी लीलगरनी नै रंगणै बाबत दे दी। लीलगरनी जद बा पगड़ी नै रंगणै खोली तौ परची देखी। लीलगरनी सेख ऊं दोहै रै नीचै दूजी लाइन बणाकर व लिखकर परची वा पगड़ी मांय ही रख दी। कुछ दिनां बाद आलम साब आपरी पगड़ी बांधणै लाग्या तौ परची निकळी। दूजी लाइन ही – ‘कटि को कंचन काट विधि, कुचन मध्य धरि दीन’। दोहै री इसी चमत्कारी पूर्ति देखकर उणां रौ प्रभावित होवणौ स्वाभाविक हौ। वै तुरत जाकर लीलगरनी सूं मिलाय। उणनै एक आनौ तौ पगड़ी की रंगाई दी तथा दोहै की पूर्ति का एक हजार रुपया दिया। ऊंकै बाद तौ धीरै – धीरै दोनुंआं मांय इतणौ प्रेम होगौ कि वै समाज-धर्म सब री चौखट लांघकर ऊं सै व्याव कर लियौ। समै पाकर उणां री सोहरत इतणी फैली कि बादशाह मुअज्जम (औरंग-जैब रौ बेटौ) सेख नै आपणै दरबार मांय स्थआन देयकर इज्जत बखसी। ई बीच उणरै एक बेटौ भी हुऔ जिकै कौ नाम वै लोग ‘जहान’ राख्यौ। आगै री बात कौ पूरी जायजौ लेवणै में या बात जाणणी जरूरी है कि आलम और जहान कौ एक ही अर्थ होवै – संसार।
हां, तौ एक दिन वा सेख दरबार मांय आई और बादशाह नै कोर्निश बजाणै लगी कि बादशाह ऊं पर फब्ती कसी, बल्यौ – तूं ही आलम की बीबी है न ? दरबार लोगां सूं खचाखच भरेड़ौ हौ। सारा दरबारी बादशाह री बात पर मुळकनै हाळा ही हा कि वा सुरसत माता री लाडली बादशाह री बात पर मुळकनै हाळा ही हा कि वा सुरसत माता री लाडली बादशाह नै करारौ पर शालीन जबाब दियौ, वा बोल्यी – “हां, जहांपनाह ! पर लोग म्हूंनौ जहान की मां कै कर पुकारै है !” बस, या बात सुणतां ही बादशाह तथा सारा दरबारियां रै मुंह पर ताळौसो जड़गौ और वा सेख ऊं दरबार मांय अरावळी परवतमाळा री ज्यूं ऊंची और विराट होगी तथा बादशाह व दरबारी ऊं की तळहटी मांय बसेडा़ दस-बीस झौपड़ियां हाळा छोटा गामडा़-सा।
तौ या है मां रे सबद व पद री मैमा !
समापन मांय म्हूं या बात कयौ चावूं हूं कि भगवान आपरौ संदेसौ मां जिसी पवित्र आत्मा द्वारा ही धरती पर भेजै है। आप निज मांय देखौ- मां चाहै हिंदू हौ, मुसलमान हौ, क्रिस्चियन हौ कोई भी धरम, देस, जात री ऊंचै वर्ण री हौ या नीची जात री - ऊं कै जिकी संतान होवै, सब एक-सी ही होवै। सब कै दो हाथ, दो पांव, मुंडौ-कान-नाक, सुंदरता – कठै चिनिक भी तौ भेदभाव कोनी। ईं लिऐ उणरौ संदेसौ है – “म्हूं समदरसी हूं, सब मेरी संतान है, मेरौ परेम-मेरी करुणा सब पर एक समान रवैली – थे ईं बात नै समझौ क्यूं नीं ?

पींजरो

उन्मनो क्यूँ है रे हीरामन
के तनै पिंजरै मांय
रैवणो सुवावै कोनी ।
अरे,
समै पर दोणो-पाणी
मनावै इत्ता सारा लोग
वारने कठै मिलै इत्ती सुविधा
फेर क्यूं इत्तो तड़फड़ावे है,
निरलनै ताँयी ?
पंछी री जात रो है ना
तेरै मांय,
मिनखां जिसी समझ कठै होवैली ?
और भी तूं के ईं भरम मांय है
कै तूं एकलो ही
पींजरै मांय कैद है
अरे ना,
म्हूं जो तेरे सूं बतला रैयो हूं
वो भी
पिंजरै मांय सूं ही बोल रैयो हूं
और भी सुणलै
म्हूं निज री वाणी भी
नी बोल रैयो हूं
या वाणी म्हनै
कुरेद-कुरेद कर रटायेड़ी है
पर भाया !
म्हूं तो अठै भोत सुरक्षा,
राहत महसूस
करर्यो हूं
हां, सभ्यता म्हँनै
यो ही पाठ तो भणायो है
साची बात या है कै,
विज्ञान और सभ्यता
ये दोनूं लोग-लुगाई
केवल पींजरा ही तो जण्या है
पींजरो-धरम रो,
देश रो,
राष्ट्र रो सवर्ण-दलितां रो,
गौरी-काळी चामड़ी रो
कितना भांत रा जण्या
जिकी गिणती नीं है।
मजै री बात है
लोग अपणै आप ही
जारप उणमें
कैद होगा
खाली कैद ही नहीं,
गरब रै मारै होरया है
फूल कर कुप्पा।


म्हारी आदरजोग सहेलियां

स्कूल माँय भणता थकाँ पत्र-मित्र बनाणै रो घणो चाव हुयो हो। बार म्हीना ड्योढ बरस यो परवान पर भी चढ्यो रयो। पीछौ आपै ई आप मंदो पड़गो पर किताबाँ व पत्र-पत्रिकावाँ भणणे रो सौक आखी जिनगी रयो। हाँ, उणरौ मेरे पर अहसान घणौ है कि वे मैंने अइयाँ रा कई साथी-साथियाँ दे दिया कि म्हूं म्हैने भोत भागवान समझूँ। आपरै मन माँय भी उनरो परचो पाने री इच्छा जागी होई हो तो सौक सूँ आपसूँ भी परचो करा देवूँळो पर परचो करावणे रे आगे म्हारी दीठ माँय उनरो स्थान कठै है वो बतानो चावूँ हूँ।
आपरै घराँ माँय कई मौका पर लुगायाँ एक गीत गावलै उन गीत री एक लाइन है ये मोती समंदरिया मैं नीपजै सार यो है कि ये मोती और मोतियाँ जिसा साधारण कोनी, समंदर माँय नीपजैड़ा है। आपाँ सब जाना हाँ कि मोटी सात जगा माँय पाया जावै, मानै सात जगा माँय नीपजै-गज, मेघ, वराह, संख, मत्स्य, सीप और बाँस। संस्कृत माँय एक स्लोक भी है जिको या बात री पुष्टे करै.....।
करीन्द्र, जीमूत, वहार, शंख। मत्स्यादि शक्त्युदभव वेणु जाति।
मुक्ता फलानि प्रथितानि लोक तेषान्तु शक्त्युदभव भेव भूमि।।

पर या बात भी सभी स्याणा एक सुर सूँ स्वीकार करेला कि समंदर माँय निपजनै आला मौतियाँ रो आब, रंग, चमक-दमक बाकी सभी मोतियाँ सूँ निराली ही हुवै।
इसी मुजब कई माखा को आब भी नीरालो ही हुवै। आपरो उनसूँ घड़ी आध घड़ी रो मिलनो ई आखी जिनगानी रो मिळनो हुय जावलै बल्कि जानो वो आपरै काळजे री कोर हुय जावै। दृष्टान्त स्वरूप आपने म्हारी एक साथळ री बात बताऊँ, बा एक छोटे से गाँव री है। देस रा दूजा हजाराँ गाँव जिसो ही उनरो गाँव है। बस्ती होसी ये ही आठ दस हजार लोगाँ री। गाँव रै बालळे नाके बीड़ माँय थोड़ी दूर पर एक मंदर है। गाँव माँय फकत यो ही एक मंदर है। भगरत लोग रोज अगुणै, रात नै उठै भेळा होय बड़ी भगती सूँ ऊँची बोली माँय भगवान री आरती करै। जीं दिन ईँ साथण सूं मेरो मिळान होयो, रात रा 8-9 बजा था। मंदर रै भीतर जौर जौर सूँ घण्टा घडियाळ बाज रया हा। उँ दिन भगवान री सजावट रो काँई कैवणो-जरी बादळा री पोसाक तथा हीरा-मोतियाँ रा गैणै सूं सारो शरीर भलभल करै, पर ईं मंदर रै बारनै एक लुगाई जोर जोर सूँ रो री है, रोवणै सूँ उँकी हिचकियाँ बँध री है। ऊठीनै आभै सूँ पाणी भी मूसळाधार बरसरयो है। लुगाई री उमर होसी कोई 23-24 बरस री, ई हिसाब से तो वा लड़की ही है। शायद बा कोई नीची जात री है, ऊरौ रोवणो थम ही नी रयो है।

अचानक एक आदमी उँ के कनै आय कर पूछै बाई, तूँ रो क्यूँ री है ?’ बा सुध भाव सूं बोलौ देखो ! वे लोग मनै मंदर रै बाहर धक्का देयर निकाल दी, म्हूँ भगवान रा दरसना सूँ वंचित रही।
तब वो आदमी भोत सहानुभूति सूँ फेरू बोलै ई मैं रोवणे री तो कोई बात नी है। देख ! वे लोग मने भी तो मंदर सूँ निकाळ दियो पर म्हूँ तो कोनी रोउँ । आदमी इतनी बात बोलता बोलता उँ कै एकदम नजीक आवनै लाग जावे कि एक पळ के लिए उँ नै लागे कि यो आपरो हाथ बढाकर मेरे गालाँ पर बैंवता आँसूआँ नै पौंछनो शुरू कर देवलो।
अब वा लड़की उँनै पूछै पर भाया ! तूँ है कुण ?’ तब वो शाँति सूँ जवाब देवै म्हूँ वो हूँ जिकै नै ये भगत लोग समझे कि म्है गर्भगृह माँय कैद कर राख्यो है और पूजरया हाँ। बस इतनी बात बोलता वो गायब हुयग्यो।
आज म्हनै बा पत्रिका रो नाम व समै याद कोनी जिकी रै माध्यम सूँ म्हूँ या घटना नै महाभारत रो संजय बन्यो देखरयो हो, हाँ ऊ समै म्हूँ ने भगत प्रहलाद रो कथन याद आयो जिको वै नृसिंह स्त्रोत्रम् माँय कवै है :-
मन्ये धनाभिजन रूप तपः श्रुतोज
स्तेजः प्रभावबल पौरुष बुद्धि भोगाँ:
नरधमैय हि भवन्ति परस्य पुंसो
भक्त्यानुतोष भगवान गजद्रूथ पाय ।
(मैं समझूँ कि धन, कुलीनता, रूप, तप, विद्या, ओज, तेज, प्रभाव, बल, पौरुष, बुद्धि और योग-ये सारा गुण परम पुरुष भगवान नै सन्तुष्ट करने में समर्थ नी है परन्तु भक्ति से तो भगवान गजेन्द्र पर भी सन्तुष्ट होगा हा।)
पत्तो नी ये आडम्बरवाळा भगत लोग थोथा चणा सरीखा ज्यूँ बाजता रयैकर काँई हासळ करै पर म्हूनै उणा सूँ कांई लेणो देणो ! हाँ उ दिन सूँ वा लड़की मेरः मन आँगण माँय तो पीढ़ो घालर आज ताँयी बैठी है। पीढो घालर क्यूँ नी बैठे ? आपाँ राजस्थानी हाँ ना । आपाँनै कुणसै रुप माँय और कीं समैं मीराँ बाई आकर गरसन देय जावै कुण कै सकै है ?
अब आओ, जब आत शुरू ही करी हूँ, लगे हाथ म्हारी एक और निराळे आब हाळी साथळ सूँ आपरो परचो कराउँ। उत्तरप्रदेश री राजधानी लखनऊ माँय अखिल भारतीय कांग्रेस रो सालाना जलसो होरयो हो। महात्मा गाँधीजी भी उठै आयेड़ा हा। वे रोज दोपाराँ तीन बजे तक मुलाकात करनै आयेड़ा लोगाँ सूं मुलाकात करता। पीछै आपरै सेक्रेटरी सूं आयेड़ी डाक खुलवा कर पढवाता और चिटि्ठयाँ रा जवाब लिखवाता। उँ दिन वे तीन बजे मुलाकातियाँ री 30 नवम्बर, 2006 टाइम पूरी होता ही उठनै लाग्या हा कि एक स्वयंसेविका एक लड़की नै लेयकर भीतर आई और बोली- सबेरे सूँ बिना खाया पीया भूखी प्यासी आपसूँ मिलणै री जिद कर कर बैठी है, एक मिनट की मुलाकात चाहती है। बापू कुछ बोलै ऊँ के पैली बा लड़की आगे बढगी, बापू रा चरण छूया और हाथ होड़र बोली बाबा, म्हूँ सुन्यो है कि आप गरीब लोगाँ रै वास्ते चन्दो इकट्ठो कर रया हो, म्हूँ ठैरी तवायफ। पाप री कमाई आप जिसा महात्मा नै कींकर देय सकूँ हूँ पर ये सोनै री चार चूड़ियाँ टाबरपनै माँय मेरी माँ म्हनै दी ही जिकी आपरै चरणा माँय चढावूँ हूँ। या बोलता बोलता हाथाँ सूँ चारूँ चूड़ियाँ उतार बापू रे चरणाँ माँय रख दी। बापू भी उठ खड्या होगा और ममता सूँ उँकै सिर पर हाथ रखता बोल्या भगवान तनै सुखी रखे बेटी !’ बापू रे मूँडै सूँ बेटी सबद सुणता ही उँ तरुणी रै हृदै रो बाँध टूटगो। एकदम भरराई आवाज माँय बोली- बाबा, आप म्हूनै बेटी बोलकर क्यूँ पुकारी?’ मेरा तो सात-सात जलम सुफळ होगा। महात्माजी ! पर अब म्हूँ म्हारो धँधो कींकर करूँली ? गाँधी बाबे री बेटी कोढै पर तो हरगिज नीं बैठ सके। और मानो बरखा रै तुरत बाद आभै माँय सूरज निकल्यो हुवै वा आँसूवा भरये चेहरे पर कृतर्ता रो तेज लियाँ जीवन री कोई नूँवी पगडंडी पर चाल पड़ी। ऊ समै ऊ रै काळजे माँय सात रंगा आळो इन्द्रधनुष भलभल करै हो उनै तो वा लड़की ही देख री ही।
ठाकुरजी म्हनै कूड़ नीं बुलावै पर म्हूँ किती वार बा लड़की नै आँसुवाँ सूँ तरबतर चेहरे पर तेज छायेड़ो पगडंडी पर बगता, आदर सूँ देखूँ। अरे आपरी आजादी री इमारत री नींव माँय ऐइयाँ री सोने री इंटा ही तो भरी गई है। ऊँ समै म्हू नै याद आवै कि बापू बी तो बोलता हा –‘आजादी लेनो तो साधन है, असल साध्य तो गरीब लोगाँ ने ऊँचो उठानो है। ई हिसाब से तो ई लड़की री चारूँ चूड़ियाँ कोई गरीब रो कल्याण करू या उडीकना आज तलक ही करती हुवेली।

अरे आप म्हारो निबन्ध अभी तक चाव सूँ मन लगार पढरयो हो। म्हारै लेखक रा धन्न भाग। आज री अस्तव्यस्तता व भागमभाग मानसिकता माँय आप सरस्या पाठक कठै मिळे ? तो पीछे आओ मेरी एक और साथण सूँ आपने मिलाय ई निबन्ध री इति करूँ। पर ई सहेली सूँ मिलनै आपने, त्रेतायुग में चालनो पड़ेलो। त्रेतापुग रे लिये बी एक बात कही जावै। बोळा लोग ई बात पर विश्वास करै, बोळा लोग कोनी भी करै। बात या कही जावै कि त्रेतायुग रे पैली द्वापर युग रो नम्बर हो। सतयुग में गौतम ऋषि आपरी जोड़ायत नै साप दियो हो कि तूँ पत्थर की होजा। हाँ, या देखी जावै कि साप देनेवाला री खासियत या भी ही कि साप देता तो ऊ की मुक्ति को रास्तो भी बता देता। गौतम भी बता दियो कि त्रेतायुग मँ राम अवतार होवेळो तब राम का तरण लागनै से तेरो उद्धार हो जावेलो। अठीनै महाराज जनकजी रा राजपुरोहित शतानन्दजी अहल्या रा बेटा ही हा। वै आपरी माँ नै बोल्या बतावै कि साप तो आपने भोगनो पड़सी पर या सामर्थ्य भीड़ाऊँगा कि द्वापर रै पैळी त्रेतापुग आजोवेळो। याने राम अवतार पैली होवने सैं आपरो उद्धार जल्दी हो जावेलो। हाँ तो आपाँ उण समै री बात कररया हाँ जद रामजी अहल्या रो उद्धार करर मिथिला नगरी है स्वयंवर माँय पधारेड़ा है। सारा राजा लोग जीका आपरी वीरता रै घण्ड माँय अड़क टूँट होरया हाँ, उणा रो अभिमान अवस्य टूटगो। अब रामजी धनुष कानी जारया है, ई समै ही महाराजा जनकजी री जोड़ायत, सीताजी री माँ महाराणी सुळोचनाजी एक तरैसूँ विलख उठै अरै जगहँसाई घणी हुगी, के राजाजी नै समझाने हालो अठै कोई कोनी, यो बालको क्याँ को तो धनुष उठावेलो और क्याँ को तोड़ेळो।
बस! ई समै ही मेरी सहेली रा आपाँ नै दरसन हुवै। वा राणीजी री सहेली है। जिकी उनाने ढाढस बँधावे है। राणीजी ! छोटो-बड़ो कै हुवै आप देखो अगस्त मुनि तो भोत छोटा है। बापड़ाँ रो जळम भी माटी रै घड़े माँय हुयो पर समंदर को आखो पाणी पी गया। मंत्र भोत छोटो हुँवता भी देवता-ऋषि-मुनि सबीनै कीळ लेवे और कामदेव फूलाँ रै धनुष बाण पर आखी सृष्टि नै आप री ऊँगळियाँ पर नचावै और सबसूँ गैरी जिकी बात बोळी वा या कि ये राम तो बाल सूर्य है और म्हूँ आपने जोर देय कर कहूँ कि 16-17 बरस रै राम रो आकळन वा एकदम सटीक करयो है। म्हूँ रोजीना पो फाटती समै घर सूँ मैदान माँय घूमने जाया करूँ हूँ। घर सूँ निकळताई सुरजी भगवान रा दरसन करूँ तब मिनट आधी मिनट उण कानी देख सकूँ। पर 15-20 मिनिट माँय ही उनरो तेज इतनोे बध जावै कि आदमी की कै मजाळ कि उनने पूरो पूरो देख सके। राम भी तो आज तळक मध्यान्ह रै सूरज री माफिक ही तो तेज बिखेरया है।
महाविद्वान डॉ. वासुदेवशेरण अग्रवाल कादम्बरी-ए कल्चरल स्टडी की भूमिका माँय एक वाक्य लिखोय है कोई भी श्रेष्ठ पुष्प अपने विटप की अन्तर्निहित सुगन्धि का ही परिचय देता है।
ई हिसाब सूँ तो मेरी सहेली कोई भोत बड़े जौहरी री बेटी है।
रोज सुबह मैं, सुरजी रा दरसन करूँ और रोज मनै ऊँ समै धनुष री ओर बढता राम तथा मेरी सहेली दीसै।

 

 


 

 

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