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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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मेवाड़ी दोवा

विद्या असी चरकली, उड़े ज्यो मन रे मांय।
बन्दीखत में राख्खी तो, पड़ी – पड़ी पछताय ।।
ज्युं – ज्युं मनख करम करे, त्युं – त्युं वदे ग्यांन ।
बिन करमा री विद्या ऊं, व्हे है थोथो भान ।।
कोई गाम असो नीं, जणिमें नी वसे सूरमा ग्यांनी।
आपणो ग्यांन वाटे रिया है, नी है वे अभिमानी ।।
देय रोकड़ा ज्ये शिक्षा सीखे, वे कदी शिक्षित वणे।
होड़ा – होड़ी री दोड़ में, असली शिक्षा नीं भणे ।।
विद्या असी ज्योत है, ज्यो हर मनख रे मायं।
न्यारा – न्यारा करम में, न्यारा रूप में पाय ।।

थोड़ा घणा अरथ अर कैवता

थां सब जणा अणी अरथां / पारसियां / आड़ियां अर कैवता ने आपणे अड़े – भड़े रेवा वाळा रे लारे, आपणे परिवार रे मनखा लारे अर आपणे हगा – होया लारे वाटता थका अणी परे वातचित करोला। जे कैवता अर वणा रे लारे जुड़ी लगी कैणियां अर नवी – नवी पारसियां / आडियां जो थे जाणो वे ई लिखेन मेलोला तो दूजा गांम अर सेरां रा सब मनख ई अणी में हप्या थका ग्यांन अर वातां ऊं हीखेला अर अण परे होच – वसार करेला। अणा अस्थां रो जबाव अणिरा ग्यारमा पाना में देवाला।

आड़ियां

  1. दाढ़ी वाळो छोकरो, विके बजारां मांय।
    देवां के चरणे चढ़े, इणरो अस्थ वताय ।।
  2. एक नार प्यारी लागे, रैण अंधेरा मांय ।
    नीचे तो झरणा जरे, माथै लागी लाय ।।
  3. काजळ – वरणो है सखी, मर्यो एक पुरक्ख।
    बाळण वाळा कोई नीं, रोवण वाळा लक्ख।।
  4. एक अचम्बो देखियो, मांथे निकळिया दात ।
    साजन अरथ वताय दो, सब जग वणाने खात।।
  5. बारह आया पावणा, रोटी पोयी एक।
    बारह
    – बारह जीमग्या, रोटी रेयगी एक ।।
  6. बिन पाणी बिन वासदी, बिन गोळ, बिन खाण्ड।
    बिना कड़ाही, कुड़छली, सीरो वण्यो सवाद ।।
  7. वाहण जिणरो बळद है, रूंड़माळ गळा मायं।
    जटा वचे गंगा बहे, वो सम्भू शंकर नाय।।

कैवता

  • भाटौ फैकन माथो माण्डणो।
  • मन में भाटा भर्या।
  • धान खावे धणी रो अर गीत गावे वीरा रा।
  • वेण्ड़ा छोराएं वाटकी लादी तो पाणी पीये – पीयेन पेट परो फोड्यो।
  • कुलकी में गोळ फोड़ो तोई कदीक तो हामे आवेला।
  • सखी बैठे चौतरे अर दखी जाय देवरे।
  • धरम री गाय रा दांत नी गणाए।
  • बान्धेन बाळवाऊं हती नीं व्है।
  • दोड़ावे तो गाड़ी न घोड़ा अर घरे फूल्या रा ई फोड़ा ।।
  • मूरख न मकोड़ो परो टूटे पण छूटे नी।

 

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