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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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अनुश्री राठौड 'चौहानजी

शिक्षा :
बी.ए.,
बी.लीब., एम.लीब.,
बी.जे.एम.सी.,
एम.जे.एम.सी
(पी.जी. इन जर्नलिज्म)

अनुभव :
एक वर्ष तक पारिवारिक पत्रिका रो प्रकाशन,
एक वर्ष तक स्थानिय पाक्षिक समाचारपत्र रो संपादन।

साहित्य :
विभिन्न पत्र-पत्रिकावां में कई रचनावां प्रकाशित,
आकाशवाणी सूं कई रचनावां रो प्रसारण
एक बाल साहित्य प्रकाशित

आपा कदी हुदराला
अक्कल वना ऊँट ऊंबाणा फिर
आपणी विरासत, आपणी संस्कृति
वरत री वातां
फेर व्यो कमाल वना खड़ग वना ढाल
गलती
जीवन नाम जीवा रो
''कठे हो कान्हा वीर''
सिर सांठे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण
एक रक्तबीज ने मार'र जंग नी जितावे
हउजी रो लपटो
लघुकथा
मजदुर रो छोरो टोपर अर अफसर रो छारो लोफर
किने मारे मौत किने मारे मौताणो
मुंगारत
चैत री उजाळी एकम
शकित पूजा री नौ रातां
धरती रो पाणी'ज तो है
आखिर पिसणों तो मने इज है।
भगवान करे सकोरा दन फरे
ताकि वणी रेे सुख अ'र समृद्धि
तरकल्यो घर डुबायो
जद वेती ठण्ड पामणी

सम्पर्क :
66-67 , सी ब्लॉक, हिरण मगरी
सेक्टर न. 14, उदयपुर
(राज.)
मो.न. 09460342590


कहाणी
प्रकाशित/अप्रसारित/स्वलिखित

बादळ छंट ग्या

ज्यूं ही दीवार घड़ी मंे साढ़े बारह रो घंटो बाज्यो, म्हूं पलंग सूं नीचे उतरगी। माघ उतरवाने आयो हो पण ठण्ड हाल तक कड़ाका री पड़ री ही। रजाई सूं बारणे आता ही म्हनें धूजणी छूटगी। कोई और बखत व्हेतो तो म्हूं पाछी विचावणा में दुबक जाती पण अबार तो काळजो धड़का खाई र्यो हो।

ज्यूं-ज्यूं घड़ी रा काँटा आगे सरकवा लागा। म्हारो जीव उण्डो-उण्डो उतरवा लागो। बरस गुजरग्या अणी नौकरी में, वे साढ़े आठ या फेर नौ बज्या तक घरे आई जावे है। साल-छे: महीना में कदी'क वत्ती ऊं वत्ती दस बजगी व्है, दस री साढ़े दस तो कदी व्ही'ज कौनी। फेर आज अतरो मोड़ो किकर व्हैग्यो। रैई-रैई न मन में भूण्डा-भूण्डा विचार आवा लागा के आज काँई न काँई खोटो व्हीयो है।

रात रा संनाटा में जठे घड़ी री टीक-टीक भी नंगाड़ा रे ज्यूं लागरी ही, वठे इंतजार अ'र घबरावट री मारी म्हूं कान लगा'र वणारे स्कूटर री आवाज सुणवा री कोषिष कर री ही। जो तो रोड़ माथे मोटर-गाड़ियाँ री रेलम-पेल थम चुकी ही, बस कदी-कदाच इक्का-दुक्का वाहन ही गुजर र्या हा।

एक बजताई म्हारे सबर रो बाँध टूटग्यो। आँख्या सूं झर-झर आँसू बेवण लागा अ'र म्हूं हाथ जोड़'र म्हारा इश्टदेव ने मनावा लागी- "हे हनुमान बाला, म्हारे चूड़ा री लाज राखजे। वाने राजी-खुषी घरे लेई आवजे, बजरंगबली। परभाते न्हाई-धोई'न पेली थांरे नारेल अगरबत्ती चढ़ा'ऊ फेर पाणी रो घूँट भ'रू। हे केषरीनंदन, जो थांरा में साँच वे तो म्हारे सुहाग री रक्षा करजे।"

चिंता री मारी म्हूं जाणे काँई-काँई बड़बडाती जायरी ही के दरवाजो खड़कियो। म्हारो काळजो जाणे उछळ'र हळक में आइग्यो के स्कूटर री आवाज तो सुणी कौनी फेर दरवाजो कुण खड़कायो। व्हे न व्हे काँई क तो अणहो़णी व्ही है जिणरी सुचना देवा ने कोई और मिनख आया हैं।

म्हूं यो भी नी पूछ सकी के बारणे कुण है और धड़कता काळजा सूं दरवाजो खोल दिदो। दरवाजो खोलता'ई म्हारे मुण्डा सूं चीख निकळगी। सामे वेइ'ज ऊबा हा पण माथा पे धोळो पाटो बंधियो हो अ'र साथे फाटो षॉर्ट टोपर और मीनी स्कर्ट पहणिया एक सोलह-सत्रह बरस री छोरी भी ही जिणे अचाणचक म्हूं पहचाण कौनी सकी अ'र पहचाणवा री कोषिष भी नी किदी। म्हारो ध्यान तो पूरो वणा पे इ'ज टिक्यो हो।

"यो काँई होग्यो जी ?" म्हे घबरा पूछ्यो तो वे मायने आता बोल्या-

"मायने तो आवा दे भागवान, पछे पूरी रामकेणी सुणा'ऊं।" फेर वे साथे ऊबी छोरी सूं बोल्या-"नैना, दीपा रे कमरा में जाय'र विणरा कपड़ा पेर ले।"

'नैना' छोरी रो नाम सूण'र म्हूं चौंकी। पछे ध्यान सूं विणरो मुण्डो देख्यो।

"अरे! या तो नैना है, हरदयाल काका री बेटी।" म्हूं बड़बड़ाई अ'र बीस बरस पेली रो बखत म्हारे आँख्या आगे घूम ग्यो। जद म्हूं ब्याव कर'र सासरे पौंची।

सासरा री एक'इज हवेली में म्हूं दो परिवार देख्या। एक म्हारा काकिया ससुर हरदयाल काका रो करोड़पति परिवार जिणमें परिवार रे नाम पे दोई धणी लुगाई'ज हा। लक्ष्मी री अटूट मेहरबानी पण आस-औलाद बिन सब रीतो।

वे भाटे-भाटे, देवरे-देवरे जाय'र माथो टेकता, मुठिया-मुठिया भभूत फाँकता अ'र दन-रात एक इ'ज प्रार्थना करता के हे देव म्हाने काणी-खोड़ी, लुली-लंगड़ी जसी भी दे कम सूं कम म्हाणो नाम लेवण वाली एक औलाद देई दे, जो भुढ़ापा में म्हाणी आँख बण सके। और जद ब्याव रे पच्चीस बरस पाछे, उमर रा चालीसवाँ बसंत में वांरे छोरी जन्मी तो काका-काकी सागे ही विणरो नाम नैना इ'ज राख लिदो।

और दूजी काने हो म्हारी विधवा सासू माँ रो परिवार। सासु माँ, बीमार धणी रा ईलाज, चार टाबरा री भणाई अ'र तीन-तीन छोरियाँ रे ब्याव रो कर्जो उतारवा सारू हवेली में दो कमरा ने छोड़'र आपणो संगळो हिस्सो देवर रे गिरवी मेल चुकी ही।

म्हारा ब्याव रे पाँच बरस पछे वे दो कमरा भी काकाजी ब्याज पेटे लै लिदा अ'र म्हें लोग आपाणी आलीषान पुष्तैनी हवेली ने छोड़'र किराया रा घर में आय ग्या। फेर तो विण परिवार सूं वार-त्यौहार इ'ज मिलनो व्हेतो हो।

साल-छे: महीना में जदी भी मिलता नैना रो पहनावो अ'र रंगढंग देख'र म्हने घणो बुरो लागतो हो पण काँई केवा री हिम्मत म्हाणा में नी ही। क्यूंकि विणरी नजर में म्हे लोग मिडिल क्लास हा जो आधुनिक फैषन ने पहचाणता इ'ज कौनी हा।

न छोटा-मोटा रो कण कायदो, न लोक-लाज। आपाणा संस्कार अ'र संस्कृति री तो विण में एक झलक भी नजर नी आवती ही। एक तो अकूत धन संपदा अ'र ऊपर सूं भुढ़ापा में जन्मी औलाद रे प्रति काकाजी-काकीजी रो अणुतो लाड़। छोरी तो बागां री तितली बणी उड़ती फिरे है, जमीन पे तो विणरा पग टिके इ'ज कौनी।

जद म्हूं नैना अ'र विणरी सहेलियाँ ने गोडा सूं ऊँची-ऊँची मीनी स्कर्ट अ'र नामे'क झुकता पेली आधी रीढ़ री हड्डी रा दरषण व्हैजा अस्यो टॉपर पेहणिया देखती तो सोचवा ने विवष व्है जाती के आपणी पीढ़ियाँ रा संस्कार जाणे कठे छूटर्या है। पण आज नैना ने जीण हाल मे देखर्यू हूँ विणरी तो म्हूं कदी'ज कल्पना नी किदी ही।

"काँई सोचवा लागी सुगणा ?" वे म्हने टोंकी

"अतरी रात ग्या नैना आपरे साथे, और इण हालत में........?" म्हें पूछ्यो

"अबे म्हूे थनंे काँई बताऊँ, आज तो भगवान इ'ज लाज राखी, वरना या छोरी तो आज आपणे सात पीढ़ियाँ री नाक कटाई देवती।"

"अबे पहेलियाँ क्यूं बुझाई र्या हो ? सीधा-सीधा बोलोनी के व्यो काँई है ?" म्हूं झुँझला'र बोली।

"पेली तो इणने पूछ के या अतरी रात ग्या घर सूं बारणे वणा सुणसाण खण्डरा काँई कर'री ही ? यो तो म्हूं बखत पे विण रास्ता सूं निकळ ग्यो वरना........।"

म्हें प्रष्नसुचक दृश्टि सूं नैना रे सामे देख्यो तो वा नजरा झुकाती बोली-"वो भाभी, म्हूं आज म्हारा ब्यॉयफ्रेंड रे साथे वेलेन्टाईन डे मनावा ने गी ही। पण वणी म्हारे साथे धोखो करियो अ'र वो म्हने एक खण्डर में लैग्यो, जठे विणरा और भी कई दोस्त हा। वे सब मिल'र म्हारी इज्जत..............।" नैना आगे नी बोल सकी अ'र विणरी रुलाई फूटगी।

"अबे आँसूड़ा क्यूं ढळकाई री है ?" वे व्यंग सूं बोल्या- "पेलाइ'ज लखणाऊँ रेवती तो आज असी गत नी वेवती।"

"थें अबे बस भी करो।" म्हें वाने झिड़किया- "छोरा-छोरी तो आला गारा रे लूंदा ज्यूं व्हे हैं, यो तो गड़वा वाला कुम्हार पे निर्भर करे है के वो विणने किण आकार में ढ़ाळ र्यो है। आपणी संस्कृति री पहचाण और आछ्या संस्कार कोई लारे ले'र पैदा नी व्हे, ये तो पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिलिया करे है। आज जो भी व्यो वणी में इण छोरी सूं वत्ता थांरा काका-काकी कसूरवार हैं, जणा अणीने कदी आछा-भूण्डा री सीख दिदी'ज कौनी।

फेर म्हूं नैना सूं बोली-"देख नैना, अगर बखत सूं पेली म्हे थांने कई केवता तो थांने घणो भूण्डो लागतो। पण सांच तो योइ'ज है के थें आज री पीढ़ी जिण गेला पे चालरी हो, विणमें कई खाड़ा अ'र भाटा-काँकरा है। पग-पग पे ठोकर लागवा रो अ'र पतन रा खाड़ा में पड़वा रो खतरो है। पण म्हे लोग यो सोच'र मूक दर्षक बणिया देखता रेवा के धके है जतरे धकवा दा, व्है सके के थांणो भाग्य साथ देवतो रेवे अ'र थां पार पौंच जाओ।

पण आज जद थारे एक ठोकर लागी है तो म्हूं यो जरूर केणो चा'ऊँ के नवा जमाना रे साथे भले ही चालो पण हर मोड़ पे पाछे फिर'र जरूर देखो के थांणे लारे चालता थांणा पूर्व पीढ़ियाँ रा संस्कार तो क'ठी पाछे नी छूटर्या है।

आपाणा संस्कार अ'र संस्कृति ने साथे ले'र चा'लो तो पार लाग जाओ, वरना पतन रा दलदल में कठेई गुम व्है जाओ पतोइ'ज कौनी चा'ली। थां लोगा ने पष्चिम री चमक-दमक आकशिर्त करे है, पण थें यो नी जाणो के आपाणी भारतीय संस्कृति दुनिया रे आसमान पे चमकता सूरज रे ज्यूं है, जो आज पष्चिम रे बादळा री ओटा में खोवतो जाइर्यो है।"

म्हारी बात सुण'र नैना आपणा आँसू पौंछती बोली-"पण भाभी कणी भी बादळ में
अतरी ताकत नी व्हे के वो सदा रे वास्ते सूरज ने आपणी ओट में लै सके। जद भी बादळ छंटे, सूरज और भी तेज चमके है।" आपणी बात खत्म कर'र नैना दीपा रे कमरा री ओर बढ़गी।

म्हूं समझगी के नैना ने आपणी गलती रो अहसास व्है चुक्यो हो। म्हूं विणने जावती तकी देखरी ही अ'र सोचरी ही के चालो 'जद जाग्या, जदी सवेरो'।


शोधपत्र
राजस्थानी साहित्य में रिस्ता नाता री सोरम

लोककथावां में रिस्ता नाता री सोरम
'रात चाँदणी चाँदळो गिरनार घुमेरा खावै
किरत्यां छमछम नाचै-गावै नींदड़ली कद आवै
तारा टीकी माथै मंडग्या रातड़ली मुस्कावै
सरद किरण री अँगड़ाई़ में थिरक थिरक मन गावै
मिलण प्रीत री वेळा मुळकै आभौ रूप सजावै
सुपन सुरीला इसी रात में रूपाळाबण जावै
किरत्यां छमछम नाचै-गावै नींदड़ली कद आवै
धनंजय वर्मा रो लिख्यो यो गीत म्हारी एक रचना 'प्रित रा रीत' री नायिका राजबाला रो हाल वरणन कर्यो हो।
सरद पुनम री रात, मेड़ी में बळता दिवा रो उजाळो भी मंद पड़ग्यो अ'र रात रो तीजो पेहर लाग ग्यो। राजबाला री नज़र मेड़ी रे दरवाज्या पे इ'ज ही। चाँद, गोखड़ा री बारी मायनूं नज़र आयर्यो हो अ'र चाँदणी सीधी विणरे मुण्डा पे पड़ री ही जो विणरे रूपाळपणा में चार चाँद लगायरी ही। पेल मिलण री रात अ'र वा भी आधी बीतगी, अजीत सिहँ हालताई मेड़ी में नी पधारिया हा।
अचाणचक मोजड़ियाँ री चड़कचंू हुणवा में आई। काळजो हरक रे मार्यो जाणे उछळ'र गळा में आयग्यो। राजबाला थूंक गिटक्यो अ'र लांबो घुंघटो काढ'र बैठगी। अजीतसिहँ मेड़ी माय पधारिया। बारणे नगारचण गीत गावै,
बनीसा, आपरो हळदी भर्यो डिल, मोयल में आवा दो,
आपरा झिणा-झिणा घुंघट उठाऊं, मोयल में आवा दो,
आपरी रूणझुण पायल बोले, मोयल में आवा दो,
आपने दिवला रे चाँदणे निहारूं, मोयल में आवा दो,
गीत रे एक एक बोल पे राजबाला री धड़कन बढ़री ही। पण यो काई, अजीतसिहँ तो अणबोल्या ही पाग उतारी, कमरबंध खोल्यो, म्यान सूं तलवार निकाळी अ'र पलंग रे अधविच रख'र मुण्डो फेर'र पोढ़ ग्या। पलंग रे एक आड़ी घुंघट काढ'र राजबाला बैठी तो दुजी आड़ी मुण्डो फेर अजीतसिहँ पोढ्या अ'र दोया रे वच्चे पड़ी तलवार। रात यूं इ'ज बीतगी। आगली रात भी या इ'ज वात फेर आगली रात भी या इ'ज।
राजबाला हैरान। वां दोया रो सगपण न्हांपणे व्यो हो। फेर स्थिति असी बणी के अजीत सिहँ रे पिता ओमरकोटा री सोड़ा राजधानी रे राजा अनाड़सिहँ री जागीर जब्त व्हैगी जिण सदमा सूं वे परलोक सिणार जावे। विण वखत अजीत री उमर तेराह वरस री'ज व्हे। जागीर ग्या पछे भी, राजबाला री जिद्द री वजह सूं विणरा पिता वैशलपुर ठाकुर सगपण तो नी तोड़े पण व्याव रे वास्तें जो सरत राखे विणनुसार व्याव सूं पेली अजीत सिहँ ने घर-गुजारा सारू बीस हज़ार रूप्या वैशलपुर रा रावळा खजाना में जमा कराणा पड़े।
अजीत रा व्यवहार सूं पेल तो वा योइज समझे के वे विणरा पिताजी री अजीब सरत रे कारण रूसग्या है। यो तो विने पछे ठा पड़े के अजीत सिहँ जैसलमेर रा जिण सेठ सूं रूप्या उधार लेवे वो विणसूं वचन लेवे के जतरे वो विणरा रूप्या पाछा नी कर दे गृहस्थ व्यवहार नी करेला। पछे साहुकार रे रूप्या री व्यवस्था करवा रे वास्ते राजबाला भी मर्दाणो वेश धारण करे अ'र दोई साळा-बहनोई बण'र उदैपुर दरबार में नौकरी करवा लागे। पाँच वरस केड़े राणाजी ने सच पतो लागे, वे राजबाला ने आपणी धरम री बेटी बणावे अ'र अजीत ने जवारी में बीस हज़ार रूप्या देवे। जद वां री तपस्या पूरी व्हे। यो हो निसवारथ प्रीत रो अमर अनुठो रिस्तो।
इण कथा में रिस्ता रा केई रूप देखवा में आवे। एक आड़ी बेटी रे भविष्य अ'र सुख-दुख रे वास्ते चिंता करतो एक बाप दिखे तो दूजी आड़ी अमीरी गरीबी री सीमा सूं न्यारों एक नारी रो निसवासथ प्रेम। जद सगपण रो नारेल पाछो लावा वाला ने वां केवे-'जाओ कैजो थाणा बनासा ने के आर्य नारियाँ आपणे जीवण में एक ही दाण प्रेम करे अ'र राजबाला रो प्रेम अ'र सगपण आपसूं व्यो हो आपरी जागीर सूं नी जो जागीर नी री तो रिस्तो भी नी रैई।'
अठे व्याव रे वास्ते सुसराजी री अनुठी सरत पे जवांई री रीस भी नज़र आवे तो आपणी प्रेयसी रे प्रेम रो मान राखता प्रीतम भी दिखे। सगा माँ-बाप तो आपणी औलाद रे वास्ते कई भी करी गुजरे पण अणी कथा में एक धरमपिता भी देखवा में आवे जो आपणी धरम री बेटी रे वास्ते आपणो खजानो खोल दे। एक रिस्तो जो इण कथा में और मले वो है विस्वास रो रिस्तो, साहुकार अ'र लेणदार रे बीच रो रिस्तो। साहुकार मदद तो करे पण पूंजी लौटावा रे वास्ते अनोखी सरत राखे जिणरो पूरो वेणो सिर्फ विस्वास पे इ'ज निर्भर व्हे।
या है आपाणी संस्कृति अ'र इणरा रिस्ता नाता जो आपाणी संस्कृति री हंगळाउं मोटी पिचाण है। आपणी संस्कृती उं अगर रिस्ता नाता ने न्यारां कर दा तो वाइ'ज वात व्है जाणे वागां में उं फूलां नं न्यारा कर दीदा व्हे। रिस्ता रे वगर मनख जमारा रो कइ मोल नी है। रिस्ता नी तो मनख अ'र ढांडा में कई भेद नी रेवे। बस पेट भरो अ'र ठाकुरजी री दीदी सांसा पूरी करो। मनख जणमें न रिस्ता रा डोरा में बंधे जो मर्या फेर भी नी छूटे, पूरवज नाम उं आगली पीढ़ी उं जुड़् जावे।
राजस्थानी लोककथावां में आपाणी संस्कृति में रच्या बस्या रिस्तावां री सोणी मेहक भरी पड़ी है। न्हांणपणे जाणे कतरी दाण या कथा हुणी ही के एक भाई आपणी लाड़ली बेण रा सुहाग ने वंचावा रे हारु सात समंदा पार जावे अ'र मर्या ने जिवता करवा वाली एक चमत्कारी डोकरी रे घरे बारा मिना तक चाकरी करी'न डोकरी ने आपणी बेण रे सुहाग री रक्सा करवा वास्ते राजी करे। ये कथा केणियाँ कतरी हांची है अ'र कतरी कल्पना यो तो विण बखत भी नी जाणता अ'र आज भी कौनी जाणा, पण आज अतरो जरूर हमझ में आयग्यो के ये वातां इ'ज है जो आपाणे आपाणी परम्परा अ'र रित-रसाण उं जोड़'र राखे। राजस्थानी लोक साहित्य में केवल रिस्ता नाता रो वखाण इ'ज नी है बल्कि अठे रिस्ता री मर्यादा रो भी बाखूबी चित्रण देखवा मे आवे। जो आपाने सीख देवे के किकर रिस्ता में हमेस मिठोपण भर्यो रेवे अ'र वे कई कारण है जणाउं रिस्ता नाता आपणी सोरम गवाई दे ।
केणात है के 'जमाई माथा रो मोड़ व्हे।' मनखा ने आपणी पेट जाई औलाद उं वालो जमाई लागे। अतरो आदर-मान हेत-लाड़ और कस्या इ'ज रिस्ता में देखवा में नी मले। पण अणी मान री भी एक मर्यादा व्हे जंडो रूपाळो उदाहरण अणी कथा में नजर आवे।
रजवाड़ी परम्परा है के जमाई रे जिमण रा थाळ मे कम उं कम पाँच रंधिण तो वेणा'इज चावे। एक जमाई सासरा रा आवभगत उं अस्यो राजी व्हे के वठे इ'ज डेरो जमाइ ले। धिरे धिरे मान भी घटतो जावे अ'र जिमण रे थाळ में रंधिण भी। पण वो अणी वात ने नी हमझ सके। एक दन रिसा बळता सासूजी थाळ में जवार री रोटी रे लारे एकलो उन्नो उन्नो वेसण रो लपटो परुस द,े जिणमें रोटी रो कवो फेरतो जाई'न जमाई डोडो बोले-'ठण्डो वे नी रे म्हारा हऊजी रा लपटा तो छुल्ला री बेणी मे चिप्यो ठपकारता सासूजी रोळ करता बोल्या-'एक मिनो'र आठ दन व्हैग्या, अबे तो जा नी रे नकटा'। असी ढेरों वातां है जो सीख देवा रे लारे हँसावे भी, गुदगुदावे भी अ'र कदी कदी तो रोवाई भी देवे। राजस्थानी साहित्य रे खजाना में रिस्ता नाता रो जो भंडार भर्यो है इणरी खाटी मीठी सोरम अतरी मनलुभावणी है के हुणवा-भणवा वाळा छोड़'र उठ ही नी सके। रिस्ता नाता रो जतरो रूपाळपणा उं वखाण राजस्थानी साहित्य में मले स्यात ही कठे ओर मल सके।
लोकगीतां में रिस्ता नाता री सोरम

राजस्थानी साहित्य में लोकगीतां रो भी खजाानो है जिणमें व्याव रा गीत, रजवाड़ी गीत, तैवारां रा गीत, सांस्कृतिक गीत और भी जाण्या अणजाण्या कई भांत रा गीत है। जणरो संक्षिप्त वरणन है-
मूमल- यो एक ऐतिहासिक प्रेमख्यान गीत है, जिणमें मूमल रे नखशिख रो वरणन है। इणने श्रृंगारिे गीत री उपमा भी है, बोल है-'म्हारे बरसाले री मूमल, हालेनी ऐ आलिजे रे देस।
ओळ्यूं-इणने बेटी री विदाई केड़े गावे, बोल है-'कुंवर बाई री ओळ्यूं आवें ओ राज'।
चिरमी- इणने बेटी पीहर री ओळ्यूं में गावे।
ढोलामारू- इणमें ढोलामारू री प्रेमकथा रो वरणन है।
पणिहारी- इणमें राजस्थानी नारी रे पतिव्रत धर्म रो वखाण है।
कुरजां, पपैयो, सुवटियो,कागो, मोरियों, सुपणा, पीपळी, हिचकी अ'र झोरावा आदि प्रेम, विरह अ'र मिलन री तड़प रो वखाण करता गीत है।
इण सबरे अलावा रिस्ता री सोरम विकेरता गीत है, मायरा, दुपट्टा, गाळ, कामण, पावणा, जल्लो-जल्ला अ'र बन्ना-बन्नी आदि।
बन्ना-बन्नी रो एक गीत है। बन्ना-बन्नी ब्याव केड़े पेली दाण मिले अ'र वणी पेल मिलन पे बन्नी पूछे-
"कुणी आपने जाया, कुणी हुलराया।
कुणीसा री गोद्या खेल्या म्हारा राइवर।।"
तो बन्ना केवे-
"मासा म्हाने जाया, दादीसा म्हाने हुलराया।
भुवाजिसा री गोद्या खेल्या म्हारा बनीसा।।
अबे चालो मेहला मे,ं रंग भरी सेजा में।
बन्नी रे प्रश्न रो जो रूपाळो पड़ूत्तर बन्ना देवे वो आज री एकल परिवार री परम्परा उं एकदम उलट आपाणी संस्कृति परिवार रो आपसी प्रेम अ'र भाईचारा ने दरसावे है। आगे जनम उं लेर परण तक रा कई प्रश्न बिंदणी बिंद ने पूछे के कुणी भोजन कराया, कुणी श्रृंगार कराया, कुणी लारे खेल्या, भणवा ग्या, कुणी सगाई कराई, विंद बणाया, जान चढ़ाई, कुणीरे दरवाजे तोरण मार्यो अ'र कुण आपने मेहला तक लाया। जनम देवा वाळा माँ-बाप उं ले'र काका बाबा, मामा फूफा, सास ससुर साळा साळी हंगळा रिस्ता री भूमिका रो रूपाळो चित्रण अणी गीत में है जो इण वात रो संदेश देवे के एक बाळक केवल माँ-बाप री'ज नी आका परवार री जिम्मेवारी व्हे।
इणरे अलावा एक गीत और है-
'म्हारी देराणियाँ जेठाणियाँ रूसगी सा
म्हारा सासुजी मनावा ने जाय'।
देखवा हुणवा में तो यो इ'ज आवे है के रूसवा रो हक सासुजी रो व्हे अ'र मनावा रो काम वऊआ करे, पण अठे तो वऊआ रूसी है अ'र सासुजी मनावा ने चाल्या है, सास बऊ रिस्ता ने मजबुत करवा रे वास्ते आपस में गहरी समझ पैदा करवा री ज़रूरत व्हे एक दूसरा ने समझवा री ज़रूरत व्हे, इणरा अभाव में इ'ज सास बऊ रा रिस्ता में गलतफेमिया पैदा व्हे। यो गीत सास वऊ रे रिस्ता रा प्रेम ने दरसावे है।
दाम्पत्य री अगाढ़ प्रीत ने दिखावतो गीत है-
'थाने काजळियो बणालूं, थाने नैणा में रमालूं
राज पलका में बंद कर राखूंली।
थाने चंदण हार बणालूं, थाने हिवड़े सूं लगालूं,
राज चूंदड़ी में छिपाय थाने राखूंली।'
यो अतरो रूपाळो गीत है के इणरा एक एक बोल जाणे हिवड़ा में इ'ज हिलोळा लेवता लागे। प्रीत री रीत न्यारी'ज व्हे, आँख में पलका रो बाल पड़्यो नी खटे पण यो प्रेम है जो कवि सूं लिखावे
'गोरी पलका में नींद कैयां आवेली
सैंया पलका पालणिया झुलावेली।
धणी-लुगाई वो के भाई-बेण, सास-बऊ वो के देराणी-जेठाणी, नणद-भावज वो के देवर-भौजाई, कस्यो भी रिस्तो उठा'र देखलां राजस्थानी साहित्य में अणारी मीठी सोरम रा दरसण व्है'ज जा है। पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढतो आयो लोक साहित्य वो के आज रो आधुनिक अ'र समकालिन साहित्य, रिस्ता नाता रा अतरा रंग इणमें भर्या तका है अगर छेटी करवा रो जतन करो तो यू लागी जाणे इंदरधनुष में उं रंगा ने अलग कर्या व्हे। भाई बेण रे प्रेम री झलक इण गीत में दिखे।
पिलंगन ताजन सुती ओ राज
ऊठी छी वीर मिलन
न टूट्यो बाईरो हार ओ राज
हार तो फेर पुओसा
वीरा सूं कद मिलस्या राज
चुग देगी सोनचिड़ी ओ
पो देगो बणजारो राज।
भाई रे आवा रो खबर जद बेण ने मले वा पलंग पे सुती व्हे, कवि केवे के उतावळी में उठे तो विणरो नौलखो हार टूट जावे। सास नणद हार टुटवा रो ओळिंबो देवे तो वा पड़ुतर देवे के हार तो पाछो पोवाई जाई पण अगर वीरो वगर मिल्यो परो जाई तो जाणे फेर कद मिलणो व्है। इणरे अलावा नणद-भावज देवर भौजाई रा मधूर रिस्ता रा भी दरसण केई गीता में व्हे है।

समकालिन गद्य साहित्य में रिस्ता नाता री सोरम
रिस्ता नाता उं समाज बणे अ'र मनखजात रे समाज में जो अणगिणत घटनावां घटे अ'र अणा घटनावां उं लेखका रे मन में जो अणगिणत विचार उठे वे इ'ज आगे जा'र साहित्य रो रूप ले। इण वास्ते आपा रिस्ता नाता ने कस्या भी साहित्य उं न्यारा कर'र नी देख सका। अबार तक आपा वात कर्या हा लोकसाहित्य री अबे आपा समकालिन साहित्य री ओर चालां।
राजस्थानी साहित्य ने आगे बढ़ावा में पेली पीढ़ी रे कई साहित्यकारा रो घणो योगदान र्यो हो। जिणामूं कुछेक नामा रो म्हैं अठे जिकर कर'री हूं वे है, अन्नाराम सुदामा, विजय दान देथा, बैजनाथ पंवार, नानूराम संस्कर्ता, नृसिहँ राजपुरोहित, श्रीलाल नथमल जोशी, करणीदान बारहट, रामकुमार ओझा, नेमनारायण जोशी अ'र लक्ष्मीकुमारी चुंडावत आदि।
लोकसाहित्य रे ज्यूं इ'ज समकालिन साहित्य में भी रिस्ता नाता रो घणो रूपाळां वरणन है। जो रिस्ता रो फरज भी दिखावे, मर्यादा भी दिखावे अ'र प्रेम भी। अंडो एक रूपाळो उदाहरण लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत जी रे एक ऐकांकी 'सामधरमा माजी' में नजर आवे के जद एक माँ आपणे लाड़ला रे भविष्य के खातिर अणुतो फैसलो लेवे।
कोसीथल रा ठाकुर तीन बरस रा अ'र उदैपुर दरबार उं फौज त्यार कर'र रण में आवा रो बुलावो आयो, नी जावे तो जागीर जब्त। ठाकुर तो पाळणे पोढ्या फौज री अगवाणी कुण करे? माजी कामदार अ'र फौजदार ने केवे- 'आज तो यो बेटो पाळणा में है। कालै मूंछाळौ व्हैला, पाँच भाया में बैठेला, बरोबरिया उणरी मसकरी नी करैला कई? आंटा टूटा नी सुणावेला कई के अरे नाजोगा! पीढिया री जागीर गमाय बैठौ? बाप तौ नी है पण म्हूं माँ तो जीवती बैठी हूँ, कामदारजी जमींतरी त्यार करौ म्हूं जाऊँला फौज रे लारे।' इण एकांकी में एक माँ रो आपणे बेटा रे प्रति प्रेम अ'र कर्तव्य रो चित्रण है।
रिस्ता री नीवं ही प्रेम व्हे जणारे खुदरे जीवन में प्रेम नी व्हे वे दूजा ने भी प्रेम नी देय सके रिस्तो भणवा में तो केवल अढ़ाई आखर रो शब्द है पण यो अपणे आप में आकी दुनीया ने समेट'र राखे है। अ'र दुनिया में भांत-भांत रा लोग है, भांत-भांत रा समाज है और भांत-भांत रा है रिस्ता नाता। अणी'ज राजस्थानी साहित्य में 'जेबा रशीद' रे उपन्यास 'नेी रो नातो' में दो न्यारां-न्यारा सम्प्रदाय रा पाड़ोसियां रो प्रेम रो रिस्तोदेखवा में आवे।
अबे म्हैं एक अस्या रिस्ता रो जिकर करणो चाहूं जो रूढ़ियां, परम्परा अ'र समाज री वणाई लीक ने खारिज करतो केवल प्रीत रो रिस्तो व्हे अस्यो प्रीत रो नातो प्रीतम सूं भी व्हे अ'र देस सूं भी। इणरो चित्रण म्हनें 'डॉ. ज्योतिपुंज जी' रे नाटक 'कंकू कबन्ध' में देखवा में आयो,
कंकू कबन्ध, सिवगढ़ री राजकुंवरी किसना कुंवर अ'र मेड़ता रा राजकुंवर कल्लाजी रे अनुठा प्रेम री गाथा है। किसना कल्लाजी रे प्रेम ने मंजिल मिलवाइ'ज वाळी व्हे के चित्तोड़ सूं कल्लाजी ने तुरंत रण में आवा रो बुलावो आय जावे। कल्लाजी हळदी-पीठी चढ़ी किसना ने वगर फेरा लिया ही छोड़'र रण में परा जावे जठे वांरी वीर-गति व्है। पण वांरो वना माथा रो डील अणगिणत बेर्या ने ढेर करतो कोसा-कोस बैठी आपणी प्रेमिका-परणेतर सूं मिलण ने जाय पौंचे। कल्लाजी ने देख'र किसना ने सत चढ़े, लोग विणरे सति वेवा री त्यारी करे तो किसना केवे-
'म्हू 'सति' अेटलै मरी नै सति थावा नी नथी। घणी हरदारणिये जै कुसल जोद्धा हती, आदमी नु वेस धरी नै लड़ी है नै खरेखर सति थई है। सत कोरू धणी हारू'ज नै चढ़ै, देस हारू पण चढ़वो जुईयै।'
कंकू कबंध में दो प्रेमियाँ रे प्रेम अ'र मिलण री तड़प तो दिखे ही साथ ही कल्लाजी रे वीर-गति रे केड़े किसना सति वेवा री जग्या वांरा अधुरा काम पूरा करवा रो प्रण लेवे वो वांरे एक-दूजा रे वास्ते समर्पण रो गहरो भाव नज़र आवे। रिस्ता जिवन री जरूरत व्हे अ'र वे पग पग पे आपारें साथ रेवे पण केई दाण आपा अणारे वास्तविक भाव अ'र मर्म ने भूल जावां और अणासूं पाछा रूबरु साहित्य इ'ज करावे, इणरा कई उदाहरण राजस्थानी साहित्य में देखवा में आवे।
इणरो एक उदाहरण है 'विमला भंडारी जी री एक कैणी 'जनमगांठ रा गुलाबजामुन' जो दादी पोता रा प्रेम उं रूबरु करावे अअअ'र यो संदेश दे के कई दाण बाळक भी मोटा ने रास्तो भटकवा उे वेचाइ ले। पोता री जनमगांठ रे दन घर में पाटीर् व्हे अ'र हंगळा जिमी'न परा जावे पण घर वाळा भुडी दादी ने भूली जावे। इण वात उं पिंटू (पोतो) आपणी माँ पे बिफर जावे- 'मम्मी ! आज म्हारी जनमगांठ रे दन थे बाई ने गुलाबजामुन क्यूं नीं दीदा? थे हगळा ने जीमाया पण आपणी बाई भूखी हूती है."
पिंटू री बात सुंण न मम्मी पापा रो हिवड़ौ धक्क रैईग्यो.... मां बेटा ने छाती ऊं लगाई लीदो.- 'ओह! आज म्हाणां ऊं कस्यो अनरथ व्हेई जावतो. बेटा थूं नीं चेतातो तो घणो पाप व्हेई जातौ।'
अठे 'नृसिहं राजपुरोहित' री कैणी 'भैचक मत भूजराळ' में पाटवी कुवंर आपणे न्हाना भाई रे वास्ते जागीर छोड़ता दिखे तो अरविंद सिहं आशिया री कैणी 'रमकुड़ी' आँघी माँ, मांदा बाप अ'र न्हाना भाई रे वास्तें समाज री परवाह नी करता व्याव हारू ना केवती बेन अ'र बेटी भी नज़र आवे। 'माधव नागदा' री कैणी 'निलकंठी' में छोरी री सासरा सूं निष्ठा अ'र पीहर री चिंता रो दरसाव व्है, गीता रो दारूड़ियो धणी विने रोज मारे-कुटे, घर में रखेल गाल दे पण वा आपणी भूडी सास रे कारण सासरो छोड़'न नी जावे अ'र जद वो पीहर संदेश मेले तो केवावे के 'कैइजे गीता मजे में है।' ताकि पीहर वाळा विणरी चिंता उं मुक्त रे।
इणरे अलावा 'सुर्यकरण पारीक जी री एक रचना 'बोळावण' में भी बेटी रो पिहर सूं जो लगाव अ'र नातो व्हे विणरो वरणन देखवा में आवे जद ब्याव केड़े विदाई री वेळा पे बेटी माँ नेे केवे-'माँ म्हैं तो अब जाऊं पण म्हारे बा'लै नान्है भाई ने अब कुण रमावसी। लुक छिप'र वो माटी खावसी जद उणने कुण पाळसी। म्हारी प्यारी ढूल्ली मोवनी रो ब्याव अब होवे नहीं। म्हैं तो उण रै फैरा रो सब सरजाम कर लियो हौ। माँ! म्हनें पाछी वेगी बुलावजे।' बेटी बाप रे घरे पराई वे। या वात तो वरसां वरस व्हैग्या हुणता हुणता पा जिण घर में वा जणमें ढूल्ला-ढुल्ली रा खेल खेल'र मोटी व्है। न्हाना भाई बेणा ने रमावे वांरो ध्यान राखे वणी घर अ'र वां रिस्ता उं वंडो कतरो हेत व्हे यो इणमें दिखे है।
पण राजस्थानी री एक केणात भी है के 'धियण वाली पण सासरे ही भली' केवा रो मतलब यो है के बेटी माँ-बाप ने कतरी लाड़ली व्हे तो भी विणरो भलो सासरे जावा में इ'ज व्हे। इणरो सटिक उदाहरण 'शिव 'मृदुल' री केणी 'निचोड़' है। या कसनी नाम री एक अस्सी छोरी री केणी है जिने माँ-बाप आपाणे अणूता मोह रे कारण सासरे नी मेले पण वे विने सासरे मेलवा ने त्यार व्है जावे जद गाँव में चरचा रो चटकारो चाले अ'र कसनी री माँ, पंडताणी ने केवती हुणे के-
'ठांण बंध्या घोड़ा बिगड़े, मक्की बिगड़े हांगणी,
घणां लाड़ सूं बेटा बिगड़े, पीहर बिगड़े कामणी।'

समकालिन पद्य साहित्य में रिस्ता नाता री सोरम
साहित्य चाहे गद्य वो के पद्य रिस्ता नाता उं तो वो अछूतो रैई नी सके। आधुनिक अ'र समकालिन साहित्य रे गीता अ'र कवितावां में भी यांरो घणो रूपालो वखाण है। जठे रिस्तो व्हे वठे प्रेम तो व्हेइज, पण माँ अ'र बाळक रो प्रेम हंगळा ऊं न्यारो व्है साच तो यो इ'ज है के रिस्ता री शुरूआत माँ रे पेट उ'ज व्है। माँ सूं बाळक रो जुड़ाव अतरो गहरो वे के विने पग-पग पे माँ री ओल्यु आवे जो 'शिवदान सिहं जी' री अणी कविता में दिखे,
दरद कदी भी हुवै
जाण, अणजाण
जागता सुवता
आज भी सबसूं पैली
उणीज तरीका सूं
याद आवै मां ।
मां अ'र बाळक रो रिस्तो इण संसार रो सबसूं पेलो अ'र नज़दिक रो रिस्तो व्हे। माँ री कूँख सूं जनम ले'र जद बाळक अणी दुनिया मे आँख्या खोले तो केई मूंगा रिस्ता विणरी गोद में आपू-आप आई पड़े। माँ अ'र बाळक रो सम्बन्ध तो जगजाहिर है पण एक बाप रे वास्ते विणरी औलाद खासकर बेटी काई व्हे, अणिरी झलक 'मोहनपुरी' री एक गज़ल में मिली,
ओल्यूँ सागे उड़ती तिरती
है रंगा रो फाग बेटियाँ।
रिस्ता री नित माला गूँथे
सिर बापू रे पाग बेटियाँ।।
बाप बेटी रो रिस्तो अनमोल व्हे अ'र इणरा अणगिणत मोती साहित्य रे समंदर में वकर्या लादे पण दुनिया रो जो सबसूं वालो रिस्तो है वो भाई-बेन रो व्हे। लोकसाहित्य उं लेर आधुनिक साहित्य तक बेण भाया रे हेत री कतरी ही कथावां, गीत, कैणियां अ'र कवितावां हुणवा भणवा में आई। बेण-भाया रो हेत हँगळाउं अणुतो हेत व्हे। न्हांपणाउं भेळा खेले-कुदे भेळा रेय'र मोटा व्है अ'र मोटा व्या पछे न्यारा-न्यारा घर रो उजाळो व्है जावे। भाई बेन रे प्रेम री एक झलक 'डॉ. करुणा दशोरा' रे इण गीत में नज़र आवे-
'राखी री शुभ वैळा म्हारा हिचड़ा मे रम जावे,
ब्हना म्हारी इण राखी में सोरम थारी आवे।'
अणी अणुता हेत अ'र विरह रो वखाण संग्राम सिहं राणावत रा गीत 'जामण जाई' में भी देखवा में आवे,
'आओ नी बाबल वाले देश
ओ म्हारी जामण जाई
हा ओ म्हारी पूठा जाई
हिचकी रे समचे संदेश लो
ओ म्हारी जामण जाई।
बेण भाया रे ज्यूं नणद भावज रो रिस्तो भी घणो अनोखो व्हे। एक औरत रे वास्ते माँ रे केड़े पीहर में भाभी'ज व्हे जो विणरे सासरा रा रित-रिवाज निभावे अ'र विणरे सासरा में पिहर रो मान राखे, अणीज गीत में आगे कवि नणद भावज रा खाटा-मीठा रिस्ता पे लिखे,
'भावज रे कानी थें कांई झांको भोळी
आ पण पराई जाई खाटी मिठी गोळी
कह दे खरी या खोटी करता ठिठोळी
पण काढ़'र देवे पेटीऊं आही पूरो वेश।'
बेटी ने हमझ आवे'र मायत विने सासरा में रेवा रा रित-रसाण री सीख देवा लागे जो परण'र पीहर सूं विदा ले जिण वखत जक केवता रेवे केे-
'सासू सुसरा रो मन राख, देवर री दूणी सुण साख।
नणदल नेह निभावों सेत, पिउ सूं लाख बढावो हेत।
दौर जिठाणियां बैठे घेर, भजन गीत मीठा उगेर।
मीठी बोल मुळकती रीज्ये, कड़वा बोल कदी मत किज्ये।
यूंजो काम करे कोई नार, प्यार करे पूरो परवार।
नी जग में सासू व्हे खोटी, नी खोटी व्हे बू, राधे तू गोविंद तू।
औरत रो असली घर सासरो व्हे, पण आज परवार टूटर्या है अ'र एकल परवार री परम्परा बढ़री है अस्या में 'सुधा आचार्य रो यो गहत आपाणे सीख देवे के भर्यो पूरो परवार कतरा भाग सूं मिले-
'बोल म्हारी बन्नी, बोल म्हारी लाडो, तन्ने कई-कई चाइजे,
होवे सासू सुसरा, देवर नणद, जेठ-जेठाणी चाईजे
सासु सुसरा घर रो छत्तर, जेठ जेठाणी छाया,
देवर नणदे मीठे फल सा, मोटे भागा पाया।
रिस्ता नाता तो अपरम्पार है अ'र अपरम्पार है यांरी वातां। साहित्य रे समंद में रिस्ता नाता रा अतरा माणक मोती छिप्या पड़्या है के जतरो उंडो डबूको लगावा वतरी वत्ती मुठ्ठी भ'रां। यो राजस्थानी साहित्य है जो राजस्थानी संस्कृति री कूँख ऊँ जणमें अ'र यो राजस्थान इ'ज है जठे वीर दुर्गादास भी है, पन्नाधाय भी है तो स्वामीभक्ति रो इतिहास रचता चेतक जस्या घोड़ा भी रिस्ता री सोरम बकेरता नज़र आवे।
साहित्य कस्यो भी वो वगर रिस्ता रो प्रभाव पड़्या विणरी री कल्पना कोरी इ'ज व्हे। फेर साहित्यकार भी अणी'ज समाज रा मनख व्हे । समाज में विने केई भांत रा अनुभव व्हे। वेइ'ज अनुभव कागद पे उतरे अ'र रचनावां रो रूप ले साहित्य बणे। इण तरह उं साहित्य री हर विधा में कठे न कठे रिस्ता-नाता री झलक मिल ही जावे। या दूजी वात है के बदलता समै रे लारे समाज री स्थितियाँ अ'र सामाजिक रिस्ता-नाता रे रूप में बदलाव आवे अ'र इणरो प्रभाव साहित्य पे भी पड़े। पण इणरी मीठी सोरम छानी कदेइ'ज नी रै सके। अठे म्हे 'जेबा रशीद जी' री एक कविता रो जिक्र करणो चावूं के-
'मोहबत री जद हवा चाली
दिल सूं मिल ग्या दिल
देखो मीठा होय'र
निरख ग्या रिस्ता।
अणी शोधपत्र रे आखिर में म्हनें एक और वात याद आई के आपाणी केई लोककथावां में चकवा चकवी री वात आवे-
चकवी केवे-
'कह चकवा वात,
खुटे बेरण रात'
चकवो बोले-
'सुण चकवी वात,
ज्यूं यूं कटे रात,
घर बीती कैवूं के परबीती?
कै घरबीती तो नीत सुणां
आज तो परबीती कह।'
हऊ वो के भूंडी परबीती केणो, सुनणो अ'र विणरा चटकारा लेवणो मनखजात रो सुभाव व्है। साहित्य एक तरह ऊं मनख रे मन री अणी भूख ने शांत करे है। साहित्यकार अ'र आम आदमी में योइ'ज फरक व्हे के साधरण आदमी एक घटनी ने साधारण तरीकर उं लेवे अ'र साहित्यकार विने भावना रो जावण न्हाक'र दही जमावे, फेर कल्पना री रवाई उं विलोवणो विलोवे, लुणीयों निकाळे और जद वो लुणीयों कलम री आग पे तप'र घी बणे'न मनखा रे काना अ'र आँख्या रा दिवला में पुरावे, जगती तल रे अज्ञान रो अंधारो लोप व्हैजा। अठै लिखवा वाळा री जिम्मेवारी व्है के वो इण परबीती ने किण तरह ऊं लिखे अ'र भणवा वाळा रे हामे परुसे के वाँरे मन रे मायलो अंधारो हटे अ'र संस्कार जागे। साहित्य री सार्थकता अणी में इ'ज है।

संदर्भ सूची-
'लोककथावां।
'लोकगीत'।
'जागती जोत', राजस्थानी भाषा, साहित्य अकादमी, बीकानेर।
राजस्थान रे विभिन्न लेखकां री रचनावां रो संकलन 'राजस्थानी एकांकी', सम्पादक 'गणपती चन्द्र भण्डारी', पेलो संस्करण, 1966।
'संग्रामसिहँ राणवत' गीत संग्रह 'डोढ्यां बैठी डेकड़ बोली', पेलो संस्करण, 1979।
राजस्थानी री विविध रचनावां रो संकलन, 'हिवड़ै रो उजास' संपादक 'श्रीलाल नथमल जोशी', पेलो संस्करण, सितम्बर 1983।
'ज्योतिपुंज' नाटक 'कंकू कबंध', पेलो संस्करण, 1998।
'अरविंद सिहँ आशिया' कहाणी संग्रै 'कथा' पेलो संस्करण, 2001।
'जेबा रशीद' उपन्यास 'नेह रो नातो।
'जेबा रशीद' कविता संग्रै 'आभै री आँख्या, पेलो संस्करण, 2004।
'शिवदान सिंह जोलावास' कविता संग्रै 'बांदरवाळ' पेलो संस्करण, 2012।

द्वारा-: 66-76 सी ब्लॉक, हिरण मगरी,
से. न. 14, उदयपुर (राजस्थान)
कानाबाती- 9460342590

 

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