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राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

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राजेन्द्रसिंह बारहठ
देव कोठारी
सत्यनारायण सोनी
पद्मचंदजी मेहता
भवनलालजी
रवि पुरोहितजी

पिउ पियै दारूह

सम्पादक
प्रो. जी. एस. राठौड़
पता: नेहरु हॉस्टल के सामने ,हिरंमागी सेक्टर -३, उदयपुर
फोन नंबर: 9001617646
M.A. (Eng.), Ph.D. (Udaipur), PGDTE (Hyderabad)
Summer School (London), SCELT (Edinburgh)
Life Fellow, United Writers’ Association (India)

प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग,
ओमर अल्मुख्तार विश्वविद्यालय,
तुब्रुक (लिबिया)

पूर्व उप प्राचार्य
भूपाल नोबल्स पी. जी. कालेज,
उदयपुर (राजस्थान)
प्रथम संस्करण
2010
ौ सर्वाधिकार लेखकाधीन

प्रकाशक :
हिमांषु प्रकाशन
उदयपुर

मुद्रक :
गंगास्वरूपा जननि मेरे भाभा हुकम
श्रीमती मोहन कंवर राणावतजी
(जनाना ठा. मदन सिंहजी, बड़ी रूपाहेली - मेवाड़)
को निमित्त बनाकर समस्त पीडि़त सन्नारियों को नछरावळ

भाभा रो डूंगर जशो
कियां उतरै करज्ज
अखरां रार्इ चाढ नै
पांवाधोक अरज्ज
हे मां! आपके ऋण का क्या तोल-मोल? वह तो दुर्लंघ्य पर्वत तुल्य अतुलनीय है। रार्इ नुमा इन अकिंचन अक्षरों के साथ आपके सत्चरणों में मेरा नमन।

क्रम
आशीर्वचन
आमुख
सम्पादकीय
मूर्धन्य मनीषियों के अभिमत
दो शब्द
मंगलाचरण
विषय प्रवेश
परिशिष्ट
पदानुक्रमणिका
आमुख

352 श्रीकृष्णपुरा, उदयपुर.

 

इस कृति के रचयिता प्रो. देवकर्ण सिंह राठौड़ से मै पिछले 50 वर्षों से सुपरिचित हूं। जीवन जीने की कला में वे अत्यन्त सहज, सरल, सहृदय और सुस्वभावी हैं। इस कारण मित्रों के बीच वे संत प्र्रकृति के आत्मीयजन के रूप में जाने जाते हैं।

दोहा उनका प्रि्य छंद है। जीवनधर्मिता और रचनाधर्मिता दोनों में उन्होंने अपनी मातृभाषा राजस्थानी में दोहे को जैसे साध सा लिया है। दोहे के लघु रूप की तरह ही वे लघु परिग्रही हैं। बातचीत तथा व्यवहार में भी दोहे को उदाहरणीय बनाकर खासी रंगत देते हैं।

मेवाड़.मार्तण्ड लोकसन्त बावजी चतुर सिंहजी के सनातनी साहित्य का उन पर गहरा प्रभाव है। बावजी की तरह ही उनके दोहों में राजस्थानी की मेवाड़ी बोली का ठेट माधुर्य, स्वर लालित्य तथा सांस्कृतिक सरोकारों के जीवनदर्षन की पारदर्षिता देखने को मिलती है।

प्रो. राठौड़ ने जो कुछ लिखा, संयमित एवं नपा.तुला लिखा। कवि के लेखन में उनके अनुभव के अनुषीलन का अमिय ही अधिक है। जीवन के अनुभव की तपन ही किसी व्यकित को रचनाकार के रूप में प्रतिशिठत करती है। इस दृशिट से प्रत्येक दोहा सतवंत, समाजवंत तथा प्राणवंत बन पड़ा है, जिसमें 'पिउ पियै दारूह की व्यथित नायिका की महापीड़ा का सतत प्रवाह है।

दारू मनुश्य के दुगुणों का दुर्विकार है। इसके पीने से जीने के कर्इ जिन्स न केवल मानव हो अपितु उससे जुड़े परिवेष को ही नाकारा बना देते हैं। सार्थक जीवन को निरर्थक कर दारू का सेवन कर्इ जघन्य अनर्थों, शड़यन्त्रों, अपयषों, अषिश्ट व्यवहारों, दुराचारों को जन्म देता हुआ रोषन हुए खानदानों तक को मटियामेट कर देता है।

कवि.सम्मेलनों, काव्य.समारोहों तथा कवि गोशिठयों में कर्इ बार प्रो. राठौड़ का और मेरा साथ रहा है। कविवर ने अपने दोहों से सदा ही श्रोताओं को प्रभावित किया है। उनकी यह विषेशता है कि वे प्रत्येक दोहे के साथ उसका समर्थ कथन करते चलते हैं। इससे उस दोहे का मर्म और उसमें छिपे भावों का खुलासा होने के साथसाथ उससकी प्रभावोत्पादकता बढ़ जाती है जिसे श्रोता लम्बे समय तक स्मृत किये रहता है।

मदिरा पर अनेक कवियों का नाना प्रकारेण साहित्य उपलब्ध है। प्रो. राठौड़ का रचना.संसार उनसे भिन्न प्रतीत होता है। उनके दोहे कल्पना के पंखों पर सवारी कर हवा में उड़ान ही नहीं भरते अपितु यथार्थ के छकड़े में बैठकर धरती की धमनियों में स्वासें भी भरते हैं। यथा, हल्दीघाटी संग्राम के महानायक और साम्प्रदायिक सदभाव के जीवन्त प्रतीक 'हकीम खां सूर के चरित्र पर रचित यह दोहा कितना सटीक है -

रीतभांत दहु मजब री
खूब निभावै खान
निज मूंछा नीची रहै
(पण) मूंछ ऊंच महाराण

अपने गांव कानोड़ में एक बार मैंने आकाषवाणी उदयपुर का बृहद राजस्थानी कवि.सम्मेलन रखवाया था। उसमें कविवर मेघरास 'मुकुल की सैलाणी और प्रो. राठौड़ के दोहों ने बड़ा असर जमाया। वर्शों तक उनकी स्वर.लहरी से कानोड़ की जन.जन रसप्लावित होता रहा। वह गूंज आज भी मेरे स्मृतिपटल से नीचे नहीं उतरी है। उसके बाद एक बार वहीं बीकानेर की राजस्थानी भाशा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का आंचलिक साहित्यकार सम्मेलन आहूत हुआ था। उस सम्मेलन में भी इस कवि ने कानोड़ पर जो दोहा पढ़ा वह उसकी पहचान ही बन गया। दोहा था -

कवियां री धरती कहूं
कै षूरां सिरमौड़
रसिक बिहारी री धरा
(कै) रसिकां री कानोड़

सच में कविता लिखना कठिन कर्म है। दोहा लिखना तो उससे भी दुश्कर। इस मार्मिक एवं श्रेश्ठ कृति के लिए रचनाकार को मेरा षत.षत साधुवाद। विष्वास है वे अपने सृजन पक्ष को अनवरत बनाये रखते हुए जनजन की परिषुद्धि के लिए अन्य व्यसनों एवं सामाजिक बुराइयों पर भी अपना श्रेश्ठतव देते रहेंगे।

इस कृति के प्रकाषन के लिए मित्रों की ही नहीं, सुधी श्रोताओं का भी कर्इ बार आग्रह रहा। मुझे प्रसन्नता है कि इसका प्रकाषन न केवल राजस्थानी में अपितु हिन्दी और अंग्रेजी के छायानुवाद के साथ हुआ है। इससे देष के विभिन्न जनपदों में इसका व्यापक प्रसार हो सकेगा और लोग मदिरामुक्त हो संस्कारित जीवन जी सकेंगे।

डा. महेंद्र भानावत

पुरोवाक

'पिउ पियै दारूह के सम्पादक के नाते विशय वस्तु और प्रणेता पर अपना मन्तव्य प्रकट करने की अपेक्षा मुझे यही उपयुक्त प्रतीत हुआ है कि दारू की त्रासदी पर वैेषिवक मनीशाओं के आर्तनाद में ही सुधी पाठकों को इस कृति में व्यक्त सन्नारी की महापीड़ा की चीख भी सुनार्इ दे सके। और इस तरह ये बिन्दु-बिन्दु सारभूत वाणियां ही सम्पादक की ओर से कवि एवं कृति पर समीक्षात्मक भावांजलि हैं। अस्तु

भारत के पौराणिक पुरुश षुक्राचार्य पहले व्यकित थे जिन्होंने षराब-विरोध की आवाज़ उठार्इ थी। इसी तरह आदि संहिताकार मनु ने देव-पूजा में सोमरस आदि मध पदाथों द्वारा अर्चना को अपराध समझा और कहा - ''सुरावै मलमन्नानाम पाप्मा च मलमुच्यते (षराब खाधों का मल है और मदिरापान वस्तुत: पाप-पान ही है)। मनु के बाद अपस्तम्ब और गौतम ऋशि ने भी दारू के दुराचार की भत्र्सना की है। भगवान तथागत ने कहा, ''हे मनुश्य! तू सिंह के सम्मुख जाने से मत घबराना, यह तेरे पराक्रम की परीक्षा होगी; तलवार के नीचे सिर झुकाने से भयभीत न होना, वह बलिदान की कसौटी है; कभी पर्वत-षिखर से पाताल में गिरने से भी न डरना, वह तप व साधना है; व दहकती ज्वालाओं से विचलित न होना, यह स्वपरीक्षा है; किन्तु सुरा से सदैव बचते रहना क्योंकि यह पाप व अनाचार की जननि है।

और उधर सूर्योदय के देष जापान में मान्यता है कि ''पहले मनुश्य षराब को पीता है, फिर षराब षराब को पीती है और अन्त में षराब आदमी को पी जाती है। कहना न होगा कि पैगम्बर हज़रत मुहम्मद ने भी षराब की खिलाफ़त में गर्जना की है - ''अल्लाह ने लानत फ़रमार्इ है षराब पर, पीने और पिलानेवालों पर, बेचने व खरीदने वालों पर और किसी भी तरह इसके षैतानी अमल में मददगारों पर।

महात्मा गांधी के षब्दों में - It is more poisonous than a snake. Alcohol ruins one physically, morally, intellectually and economically. इतना ही नहीं, विष्ववंध बापू ने तो अपने मुखपत्र 'हरिजन में कैसे अपना दर्द यों दर्षाया है - ''भारत जैसे ग़रीब देष में जहां बेचारी रियाया को पीने के लिए पानी तक नसीब नहीं हो रहा, वहां लोग हर साल अरबों रुपयों की षराब डकार जाते हैं। इसी श्रृंखला में इंगिलस्तानी 'पोइट मिल्टन की दहाड़ देखिये - ''संसार की सारी सेनाएं मिलकर इतने लोगों और सम्पतित को नश्ट नहीं कर सकतीं, जितनी अकेली षराब कर देती है। इससे पूर्व भी cradle of civilization प्राचीन यूनान के महान चिन्तक डायोजिनीज़ का यह कथन कि ''मैंने जो चीज़ कचरापेटी में उंडेली, वही चीज़ तुम अपने

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प्राचीन ग्रंथों में नौ प्रकार की षराबों का उल्लेख हुआ है, यथा पनस मध, मधुका, तला, ऐक्षवा, सैरा, आरिष्ठ, सुरा, वारुणी, एवं पैष्टी।

मुंह में उंडेल कर अपना विनाष कर रहे हो; मैंने तो षराब ही बिगाड़ी है लेकिन तुम षराब और जीवन दोनों बिगाड़ रहे हो षराबियों के लिए चुनौति भरी चेतावनी है।

दूर क्यों जाएं विगत षताब्दी में हमारे यहीं के मेदपाट-महर्शि महाराज चतुर सिंहजी का यह दोहा

सारा मजबां मायनै,
आसव करो अलैण
मद पीवै वी मनख रै,
कठै धरम री कैण

कैसा मधुर उपालम्भ है इस संत-कवि का! तथा यों ही ख्यातनाम भारतीय पत्रिका 'कल्याण के आदि-सम्पादक हनुमान प्रसादजी पोद्दार ने अपनी लेखनी से इन पंकितयों में दारू को दुत्कारा है - ''बोतल का दारू दस पीढ़ी तक विनाषकारी प्रभाव रखता है तो राम-नाम की प्यालियां इक्कीस पीढि़यों को पार लगाने का सामथ्र्य रखे, यह स्वाभाविक है। डिंगलभाशी कवि-भूशण ऊमरदान लाळस ने तो अपनी इस अद्र्धाली में मानो 'पिउ पियै दारूह की सम्पूर्ण व्यथा को ही समेट लिया है - ''‐‐‐‐‐‐‐ ओ कसार्इ निज कामनी को। तथा उनका यह कथन भी कि ''हाय दारू तेरे दोश कहांलौं पुकारूं मैं विचारोत्प्रेरक है। इस तरह यत्र-तत्र आम लोकवाणियों में दारू के दोश सदियों से अनुगुंजित होते रहे हैं।

निस्संदेह बोतल में बंद इस अंधेरे का जिन्न परिवार के परिवार उजाड़ रहा है; षरीर से अपाहिज और दिमाग़ से बीमार नस्लें पैदा कर रहा है। लेकिन यह अंधेरा अब खुषहाली की निषानी और तरक्की की पहचान भी बनता जा रहा है। यों आंकड़े पूरी बात नहीं उगलते परन्तु हिन्दुस्तान में लाखों-लाखों जि़न्दगियां काली रात में चमकते तेज़ाब से सूरज बनाने के भरम में जी रही है। आदमी की जि़न्दगी में परिवार के बिखरने और उजड़ने से बड़ी यातना षायद ही कोर्इ हो तो टूटने के कगार तक पहुंचने से पहले षराबी का परिवार दर्द, आंसू, ज़ुल्म और ज़्यादती के कितने नारकीय मोड़ों से गुजरता होगा, इसका अंदाज़ नहीं लगाया जा सकता। षराब की लत किसी भी मोड़ से षुरू हो, पर इसका खात्मा मौत की दहलीज़ पर ही होता है।

समग्रत: इस कृति में जिन विचारों और भावनाओं की अभिव्यकित हुर्इ है वे षाष्वत और सार्वभौम हैं। अपने एक-एक दोहे में प्रो. देवकर्ण सिंहजी ने सूक्ष्म से सूक्ष्म संवेदना को अति संवेदनषील राडार की तरह पकड़ कर जो मर्ममोहक प्रस्तुति दी है वैसी स्पर्षातीत एव र्इथरीय भावग्राáता कोमल अनुभूति वाले कवियों में ही सम्भव है। वास्तव में कवि षरीर रूपी समाज की आंख होता है। जब वह रो पड़े तो समझ लेना चाहिये कि षरीर ( यानि समाज) में कहीं कोर्इ तकलीफ़ है।

और इस कृति की नायिका महापीड़ा के महासागर में डूबी हुर्इ एक महातपसी है जिसके कलेवर की रचना में कवि ने दलित द्राक्षा की तरह अपनी आत्मा को मानवहित में निचोड़ कर अपने सर्जनाधर्म को सार्थक किया है। यों 'पिउ पियै दारूह में मानवीय संवेदना का जयगान हुआ है। प्रयत्न रहा है कि हिन्दी और अंग्रेजी अनुवाद में दोहों का अक्स स्पश्ट लक्षित हो तथापि कोर्इ कोर-कसर रही हो तो क्षमा करें।

डा. जी. एस. राठौड़

मूर्धन्य मनीशियों के अभिमत
इस रचना का एक-एक दोहा दुखिनी नायिका के आंसू का पर्याय ही प्रतीत होता है।
पùश्री रानी लक्ष्मी कुमारी चूंडावत
अप्रतिम साहित्यकार एवं पूर्व सांसद
दोहा बांच्या, सागै मरम छुवै अर भारी सीख देवै। म्हारी मंगलकामनावां।
डा. लक्ष्मी मल्ल सिंघवी
प्रख्यात विधिवेत्ता एवं पूर्व हार्इ कमिष्नर, यू. के.

भार्इ देवकर्ण सिंह की 'पिउ पियै दारूह रचना बहुत रोमांचक, सटीक, भावप्रधान और कल्पनाषकित का अखूट उदाहरण है। विष्वास है पीडि़ताओं के लिये यह कृति आंसू पौंछने में सहायक सिद्ध होगी।

राजर्षि ठा. उम्मेद सिंह धौली
ख्यातनाम कद्दावर साहित्यकार एवं
अध्यक्ष, जौहर स्मृति संस्थान, चित्तौड़गढ़

षराबी पति की मधपान लत से क्षुब्ध गृहिणी की आत्मपीड़ा चित्रण के माध्यम से इस सत्यानाषी कुटेव के प्रति नफ़रत जगाने के लिए की गर्इ कवि की सार्थक चेश्टा निष्चय सराहनीय है। दोहे अप्रतिम और उकित चमत्कार के कोश हैं।

महाराज षिवदान सिंह कारोही-मेवाड़
असाधारण प्रतिभा की धनी षखिसयत

अपनी इस कृति में विपुल वेदना को âदयंगम कर उसकी गहनगूढ़ता को काव्य में विलयित करने का कवि का प्रयास ष्लाघ्य है।

जय सिंह 'जौहरी, सुपरिचित साहित्यकार

दो हरफ़

अपनी पुष्तैनी ज़र.ज़मीन से महखाने की बंडियों भरे गुड़.महुए के हल्के.तेज दारू को अपने हमप्यालों के साथ दिन.रात गुटकाते रहकर षराबफ़रोषों को मालामाल किया और परिवार को परेषान - यही है 'पिउ पियै दारूह की व्यथा.कथा । अगर इस पोथी के ये दो हरफ़ किसी की खै़र.ख़ैरियत में मददगार बन सकें तो मेरी क़लम निहाल होगी।

गांधी जयन्ती, 2009
देवकर्ण सिंह

मंगलाचरण

वरद बण्यो रै रावळौ
दूंदाळा गुणपत्त
दारू रा दुख मांडवा
बुध बगसो सुरसत्त

षब्दार्थ : वरद वरद हस्त; बण्यो बना रहे; रावळौ आपश्री का; दूंदाळा लम्बोदर ; गुणपत्त गणपति; दारू षराब; रा के; मांडवा वर्णन करने के लिए; बुध बुद्धि; बगसो प्रदान करें; सुरसत्त सरस्वती

भावार्थ : हे गौरीतनय लम्बोदर महाराज! आपका अटूट वरद हस्त मुझ किंकर पर सदा बना रहे और हे वीणापाणि! मैं मदिरा के अनगिन नारकीय कश्टों का वर्णन करने को उधत हुआ हूं, अत: आप मुझे काव्य.कौषल क्षमता प्रदान करें।

टिप्पणी : काव्य के आरम्भ में षास्त्ररीति के अनुसार मंगलाचरण की सुपरम्परा है। प्राय: सभी राजस्थानी कवियों ने इस रीति का परिपालन किया है। दणिडन के मतानुसार ग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगलाचरण तीन प्रकार से किया जाना चाहिए : ''आषीर्नमसिक्रया वस्तुनिर्देषो वापि तन्मुखम। इस दृशिट से देखने पर 'पिउ पीयै दारूह का मंगलाचरण आषीर्वादात्मक और वस्तुनिर्देष दोनों प्रकार से किया गया है।

O Lord Vinayak! Be propitious on me. O Goddess Saraswati! I am intent on enumerating divers sufferings engendered from addiction to liquor, for which be thou generous to accord me adequate poetic prowess.

विषै प्रवेष
1
कंथ कमावै मोकळौ
कलाळां सारूह
घर रा सह ग्यारस करां
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : कंथ पति; मोकळौ बहुत; कलाळां कलाल; सारूह के लिए; सह सब; ग्यारस करां एकादषी करते हंंै, भूखों मरते हैं

भावार्थ : निस्संदेह मेरे पति कमाते तो बहुत हैं, किन्तु वह सारी कमार्इ केवल अपने मौज.मजे में ही चली जाती है। घर के हम सब भले भूखे मरते रहें, लेकिन वह तो षराब पीते ही पीते हैें।

टिप्पणी : (1) प्रस्तुत काव्य में 'कलाल पुष्तैनी संबोधन है जो समाज में दारू का व्यवसाय
करने वालों के लिये प्रचलित रहा है। यह किसी जाति .विषेश का सूचक नहीं है।
(2) 'ग्यारस करना लोकोकित है।

Undoubtedly my husband earns abundantly, but all that seems to be for his own enjoyment only. We in the family may starve but he never abstains from drinking.

2

उडकूं आधी रात तंइ
वळै न वै बारूंह
दहु रा दहु भूका सुआं
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : उडकूं प्रतीक्षा करती हूं; वळै लौटते हैं; बारूंह बाहर से; दहु दोनों ही;

भूका भूखे; सुआ ं सो जाते हैं

भावार्थ : आए दिन आधी रात पर्यन्त टकटकी लगा उनकी बाट जोहती रहती हूं, किन्तु वह पियक्कड़ कहां लौटते हैं और यों मैं थकी.मांदी भूखी पड़ ही जाती हूं। उधर वह भी पता नहीं कब आकर नषे में बिना खायेे ही सो जाते हैं।

I await him eagerly till midnight but he seldom turns up. I fall asleep supperless and so does he.

3
किण घर जा सुख सांस लूं
कुण जा पुकारूंह
पीहरिये बाबल पियै
(अठै) पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : पुकारूंह पुकारूं; पीहरियेे नेहर में; बाबल पिता; अठै यहां

भावार्थ : कहां जा कर चैन की सांस लूं और किसे अपनी व्यथा.कथा सुनाऊं ? कम्बख्त वहां पीहर में पिताजी अनाप.षनाप पीते हैं और यहां यह।

Where can I wretched find solace and whom to call for aid? There in the parental house father drinks and here does he.

4

म्हां जसड़ी धण मोकळी
म्हां जसड़ा मारूह
सै सामल आंसू पियां
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : म्हां मेरे; जसड़ी जैसी; धण पतिनयां; मारूह मारू, पति; सा मल मिलकर
भावार्थ : मेरे जैसी अनगिन औरतें हैं और उन जैसे कर्इ एक आदमी। जब हम समदुखिनी एक दूसरे के आंसू बांट रही होती हैं तब ही उधर वह हमप्यालों के साथ पी रहे होते हैं।
There are lots of grief-stricken wives like me who share our sorrows by drinking tears whereas he enjoys his drink parties.

5

घर ग्रस्ती री नाव या
लागै किम पारूह
प्याला री पतवार लै
पिउ पियै दारूह
षब्दार्थ : ग्रस्ती गृहस्थी; किम कैसे; पारूह पार

भावार्थ : घर.गृहस्थी की यह नाव कैसे पार लगे जब खिवैया के हाथों ही जिम्मेदारियों की पतवार के बजाय प्याला हो।

How can this skiff of household ever touch the seashore when the sailor holds the glass instead of the oars of family responsibilities?

6

बिन पत फळण्या रूंखड़ा
(थारो) फळणों धिक्कारूंह
बिन पत म्हारो घर करîो
पिउ पियै दारूह
षब्दार्थ : पत पŸाों के; फळण्या पुशिपत होने वाले; थारा तेरा; रूंखड़ा वृक्ष; धिक्कारूंह धिक्कारती हंू; पत प्रतिश्ठा

भावार्थ : हे बिना पत्तों के पुशिपत होने वाले महुए! तुम्हारे ऐसे फलने.फूलने को धिक्कार है क्योंकि तुम्हारी इस कम्बख्त षराब ने अपने बिनपत्तों के नग्न स्वरूप जैसा ही मेरे घर को भी उजाड़ कर रख दिया है।

O leafless blooming mahua tree ! Shame on thy blossoms because the liquor of thine flowers has bared my family like ugly naked figure of thy own.

7

क्यूं प्रभु थैं समदर मथ्यौ
मो घर दुख सारूह
विख अमरत तो कुण पियौ
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : समदर समुद्र; विख विश; अमरत अमृत

भावार्थ : हे प्रभु ! आपका समुद्र मथना मेरे लिए तो अभिषाप ही बना है क्योंकि उससे निकले विश और अमृत तो पीने वालों ने पिये किन्तु मेरे हिस्से में तो षराब का दु:ख ही पल्ले पड़ा है।
टिप्पणी : यहां समुद्र.मंथन की पौराणिक कथा का संकेत है जिसमें 14 रत्नों में विष और अमृत निकले थे।

O Almighty Vishnu! Why did you get the ocean churned? Others use venom and nectar but its side product has ruined my family.

8

जान.फौज जावै सही
बण ठण नै मारूह
पाछा परकांधे वळै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : जान.फौज बारात में; पाछा वापिस; परकांधै दूसरों के सहारे; वळै लौटते हैं

भावार्थ : अपनों की बारातों में तो वह सज.धज कर जरूर जाते हैं पर वहां बेतहाषा पी कर ऐसे चेतनाविहीन हो जाते हैं कि अन्य लोगों को ही उन्हें अपने कन्धों पर उठाकर घर छोड़ना पड़ता है।

टिप्पणी : हास्यरस का पुट है।

He joins the wedding parties very well-adorned but drinks there so much that he is brought home supported by others.

9

गांव गोठ पाळा हलै
महुड़़ी असवारूह
गाडी .घोड़ा फूंकनै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : गांव.गोठ जहां.तहां समारोहों में; पाळा पैदल; हलै जाते हैं; महुड़ी महुए से बनी मदिरा; असवारूह सवार

भावार्थ : निमंत्रणों पर वह जहां.तहां दारू के जोर पर ही पैदल आते.जाते हैं क्योंकि घर के गाड़ी.घोड़े तो षराब के लिए बेच.बाच दिए हैं।
On being invited he goes to sundry functions on foot since he has already sold off his means of transport.

10

धोबी पट धोवै कइ्र्र
घर धोवै मारूह
बोतल प्यालो नह धुपै
पिउ पियै दारूह
षब्दार्थ : पट कपड़े; कर्इ क्या

भावार्थ : धोबी बेचारा क्या कपड़े धोएगा, धो तो रहे हैं वह अपना घर, परन्तु फिर भी कम्बख्त बोतल-प्याले तो घर में ज्यों का त्यों ही कायम हैं। उनका सफाया कहां हुआ है ?

What of a washerman ! My husband has washed away all valuable articles of the house. But unfortunately the wicked bottle still exits.

11

कीं पीसूं पोऊं कंर्इ
रांधू बघारूंह
वे रांधै अर म्हूं रंधूं
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : कीं क्या; पोऊं बिना चकला बेलन के हाथों से रोटी बनाना; बघारूंह बघार लगाऊं
भावार्थ : घर में कंगाली का क्या ठिकाना कि जहां न पीसने को अनाज है, न पोने को आटा, तथा न ही रांधने.बघारने को कुछ। हकीकत में यहां तो मैं रांधी जा रही हूं उनके द्वारा।
टिप्पणी : मुहावरे के रूप में 'रांधना निरन्तर अप्रिय परिसिथति से दुखी कर देना है।
He has caused so much of penury that there is nothing to cook, boil or roast. In fact, he is roasting and I am the roasted.

12

नषै.पतै दसखत करै
खोटै खत मारूह
म्हंू लड़ हारूं न्यावटा
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : खत दस्तावेज, रुक्का; न्यावटा मुकदमे

भावार्थ : वह लेन.देन मेंं झूठे.बनावटी खतों पर नषे में बेहिचक हस्ताक्षर करते रहते हैं, जिनके बाबत मैं कोर्ट.कचहरी करते.करते हैरान हो गर्इ हूं।

टिप्पणी : दस्तावेजों पर कानूनन बिना नषे.पत्ते सामान्य अवस्था में जो दस्तखत किए जाते हैं, वे ही मान्य होते हैं।

He signs documents under intoxication, and I have to deal with the court cases incessantly.

13

रंग भीनी धण छोडनै
किहि रंग रह मारूह
रंग.बिरंगी मोल लै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : रंगभीनी लावण्ययुक्त; किहि कौन से

भावार्थ : मुझ जैसी खूबसूरत ललना के होते हुुए भी न जाने किस रंग में रंगे रहते हैं वह ? वस्तुत: बहुरंगी षराब के अलावा उन्हें और कुछ सूझता ही नहीं।

Ignoring my ravishing charm, he lives in reverie. His glasses are filled with liquors of various colours.

14

इण घर बजता मंग्गळी
कै बजता वारूह
ढोल लिलामी नत बजै
पिउ पियै दारूह

 

षब्दार्थ : मंग्गळी मांगलिक अवसरों पर बजने वाले ढोल; वारूह युद्ध के समय सैनिकों के प्रोत्साहनार्थ बजाया जाने वाले ढोल का विषेश वादन; नत नित्य; लिलामी नीलामी

भावार्थ : कैसी विडम्बना है कि जिस घर में मंगलार्थ.यु़़द्धार्थ ढोल बजने की परम्परा रही है वहां षराबखोरी ने आए दिन नीलामी के लिए ढोल बजवा दिए हैं।
टिप्पणी : सरकारी नीलामी पर ढोल से डूंडी पीटी जाती है।

The glorious tradition of this house has been that either auspicious ceremonial drums were played here or war-trumpets. But now only proclamation by beat of drums is played on auctions.

15

घर जूतम.पैजार व्है
भायां बिच मारूह
भेळै बैठ कलाळ घर
पिउ पियै दारूह
षब्दार्थ : भायां बिच भाइयों के साथ; भेळै साथ

भावार्थ : घर में तो बात.बात पर भार्इ झगड़ते रहते हैं, किन्तु कैसी मजाक है कि वे ही सब कलाल के यहां साथ बैठकर मनुहारें लेते दिखार्इ देते हैं।

He keeps on quarrelling with his brothers on petty home affairs, but strangely enough the same fellow shares with them the drinking bowl.

16

धव भीड़ू मिलिया अषा
हर बाजी हारूंह
पीसै तुरप कलाळ दै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : धव पति; भीडू़ खेल में साथी; अषा ऐसे; हारूंह हारती हूं; तुरप ताष के महत्वपूर्ण पŸो
भावार्थ : पतिरूप में मुझे अपने जीवन के खेल में ऐसे विचित्र भीड़ू मिले हैं कि उनके सहयोग बिना मैं हर मोर्चे पर पिट रही हूूं। उधर उनकी कड़ी मेहनत की कमार्इ से कलाल निहाल हो रहे हैं।

My husband is such a playmate that I lose every game of life. He shuffles cards and distributes trumps to the bartender, i.e. labours very hard and is robbed of all money.

17

ख्यातां इण घर री कषी
किहि बातां मारूह
बडका अरियां रगत पी
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : ख्यातां ख्याति; कषी कैसी; बडका बडेरे, पूर्वज; अरियां दुष्मनों का; रगत लहू

भावार्थ : इस घर का तो ख्यातनाम इतिहास रहा है, परन्तु हाय ! जहां के स्वनामधन्य पुरखों ने कभी दुष्मनों का रक्तपान किया है, आज उन्हीं के वंषज षराब की चुसिकयों में लीन हैं।

Again, the reputation of this house has been that the celebrated ancestors used to drink enemies’ blood and this descendant drinks hateful liquor.

18

नषै हथ.पग टूटिया
संधिया केइ बारूह
संंधै न टूटी घर कमर
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : संधिया जुड़ गए; बारूह बार, दफा

भावार्थ : नषे में उनके हाथ.पांव कर्इ बार टूटे हैं और जुड़े हैं, किन्तु अंधाधुंध पीने से घर की आर्थिक कमर जो टूट गर्इ है, वह तो अब कैसे जुड़े ?

 

टिप्पणी : 'कमर टूटना मुहावरा है।

While drunken he has broken his limbs many times, which joined again. But the back of the family he has been breaking seldom stands chance to rejoin.
19

जाजमबैठक जात में
जळ छोडै मारूह
घर में जाजम ढाळनै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : जाजमबैठक सामाजिक मिलन; जळ छोडै संकल्प लेते हैं; जाजम दरी, चटार्इ; ढाळनै बिछाकर

भावार्थ : जात.बिरादरी की बैठकों में तो लोकालाज से नहीं पीने का संकल्प जरूर ले लेते हैं वह, परन्तु घर पर फिर वही ढर्रा - जाजम.बाजोट और बोतल.प्याला ।

टिप्पणी : 'जाजमबैठक एक मुहावरा है जो सामाजिक मसलों पर बैठकों के लिए प्रयुक्त होता है।

For the sake of eye-wash he takes oaths in social gatherings to abstain from liquors but at home again starts drinking.

20

कलाळां रोटîां सिकै
बालम बळिहारूंह
घर री बाटîां बाळनै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : रोटîां सिकै अपनी समृद्धि देते हैं; बालम प्रिय पति; बळिहारूह बलिहारी है; बाटîां आटे का लोया बनाकर बिना बेले सेंके जाने वाला खाध 'बाटी कहलाता है; बाळनै जलाकर बेकार करना

भावार्थ : यह तो अपने दारूडि़ये पिया की बलिहारी है जिनसे कलालों के बल्ले.बल्ले हो रहे हैं किन्तु स्वयं का घर तो बर्बाद हुआ जा रहा है।

टिप्पणी : 'रोटîां सिकै और 'बाटîां बळगी दोनों मुहावरे हैं अर्थात काम सुधरना और सिथति बिगड़ना।

Thanks to my drunkard husband that the bartender has been flourishing while his own home is being ruined.

21

छानै.छानै सीखिया
क्रतब अषा मारूह
चौड़ै.धाड़े घर डुबो
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : छानै चुपके; क्रतब कृत्य, कारनामा; चौड़ै.धाडै़ जाहिराना तौर पर

भावार्थ : आंखें बचाकर पीने जैसी कुटेव डाल कर अब सरेआम दारू में घर.परिवार का बेड़ा गर्क कर रहे हैं वह।
Stealthily he has acquired the habit of drinking gradually leading to addiction, with the result that he has squandered and ruined the family in every respect.

22

बाप बणै राजी हुवै
हंू जण जण हारूंह
म्हंनै न जापै औखदîां
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : जण बच्चा जनना; जापै प्रसवकाल; औखदîां औशधियुक्त स्वास्थ्यवद्र्धक विविध खाध

भावार्थ : उन्हें अपनी नवसंतति के जन्म पर हर्श होना स्वाभाविक है किन्तु मैं बेचारी तो जन.जन कर परेषान हूं। कहना न होगा कि मुझ अभागिन को भला जापे के लÏू कहां किन्तु वह खुषी में बोतलें खोल कर साथियों संग खूब झूमते हैं।

Becoming father his joy knows no bounds on the birth of a child. But, on the other hand, what a misery that I have to repeat the process again and again, hardly getting nourishing tonics! However, he rejoices the occasion with his friends.

23

काळ बिखै हूं बापड़ी
छोडा पीस भखूंह
बोरजड़ी रो काढनै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : काळ दुर्भिक्ष, अकाल; बिखै विपदा में; छोडा पेड़ की छाल; भखूंह खाती हंू;

बोरजड़ी जंगली लाल बेर की जड़ें षराब को तेज बनाने में प्रयुक्त होती हैं; काढनै

बनाकर

भावार्थ : अकाल के दौरान मैैं बेचारी तो अन्न के अभाव में दरख्तों की छाल पीस.पीस कर परिवार को पालती हूं। उधर वह जंगली लाल बेर की जड़ों के भात का उम्दा दारू निकाल कर मजे मारते हैं।

टिप्पणी : (1) राजस्थान में अकाल के समय दरख्तों की छालें पीस कर खाने की किंवदन्ती प्रचलित है।

(2) बेर की जड़ों का भात लगाने से षराब में तेजी आती है।

During the famine I hardly manage to feed the family with ground tree barks. Nevertheless, he enjoys the desi strong liquor especially prepared with the bark of the jujube bush.

24

लंक लुटार्इ हेक दन
विभिशण किण बारूंह
नतउठ लंक लुटावणो
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : हेक एक; दन दिन; विभिशण विभीशण; किण कब; बारूंह वक्त; नतउठ नित्य

भावार्थ : राम.रावण युद्धोपरांत राम की आज्ञा से विभीशण ने मनोरंजनार्थ केवल एक दिन वानर सेना से लंका लुटाने का दस्तूर करवाया था, किन्तु पतिदेव का क्या कहना - वह तो पीने में आए दिन घर लुटाने में लगे हैं।

टिप्पणी : 'लंक लुटाना एक मुहावरा है। इस तथ्य को दर्षाने वाला एक प्राचीन दोहा गीतों में प्राय: गाया जाता है - ''कलाळण म्रगलोचनी मद भर गागर लाय, पीसी धण रो सायबो देसी लंक लुटाय।

After the battle Vibhishan wished before Lord Rama to permit the beastly army to loot Lanka once only but here my consort imprudently allows family property to be looted everyday.

25

नाहक वीरा लावियो
फुहली कीं सारूह
फूल परायी ओढसी
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : वीरा भार्इ; लावियौ लाया है; फुहली रक्षाबंधन पर बहिन को भार्इ की ओर से विषेश उपहार.स्वरूप साड़ी; फूल प्रफुलिलत होकर; परायी कोर्इ और; ओढसी पहनेगी

भावार्थ : नायिका निष्वास डालते अपने भार्इ को कहती है कि वह व्यर्थ ही 'फुहली दस्तूर लाया है क्योंकि दारू के बदले फुहली में आर्इ हुर्इ यह सुरंगी ओढ़नी तो कोर्इ और ही ओढ़ेगी।

टिप्पणी : रक्षाबंधन से पूर्व पड़ने वाले इतवार को बहिनें अपने भार्इ के मंगलार्थ व्रत रखती हैं और भार्इ द्वारा लार्इ हुर्इ मिठार्इ से व्रत खोलती हैं व दस्तूर लेती हैं। यह लोकपर्व ही 'वीर फुहली नाम से जाना जाता है। उल्लेखनीय है कि राजस्थान के भिन्न.भिन्न अंचलों में इसे मनाने के अलग.अलग तरीके प्रचलित हैं।

With a sigh the sister tells her brother why he has brought her the special saree because this saree will also be exchanged for spirit.

26

धव घर आवै काग उड
(म्हारा) परदेषी मारूह
वळ घर काग बिठाविया
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : धव पति; काग कौआ; वळ लौटकर; काग बिठाविया घर पर कौए बैठा दिए अर्थात बर्बाद कर दिया

भावार्थ : हे काग ! यदि मेरे परदेषी बालम घर लौट रहे हों तो उड़ जा। किन्तु विडम्बना यह है कि जिनका बेसब्री से इंतजार था वह आये और अपने कर्मों से घर पर पुन: कौए बिठा दिये।

टिप्पणी : (1) अपने प्रियजन को घर बुलाने की संभावना को पक्की करने के लिए षकुन स्वरूप कौआ उड़ाना एक भावनात्मक विष्वास है।

(2) 'घर पर कौए बिठा देना राजस्थानी का एक मुहावरा है, जो बर्बादी का सूचक है।

(3) 'उड उड रै म्हारा काळा रे कागला राजस्थानी का प्रसिद्ध लोकगीत इसी भावना को पुश्ट करता है।

O loving bird! Fly away if my husband is to return home. Alas! The irony is that he comes back only to ruin home.

27

लाखीणो मो साहिबो
भव.भव भरतारूह
लखणां दो कौडी हुवै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : लाखीणो लाख रुपयों की इज्जत वाला, मंहगा; साहिबो पति; भव.भव जन्म.
जन्मान्तर का; भरतारूह पति; लखणां षिश्टाचार में, प्रतिश्ठा की दृशिट से

भावार्थ : मेरे जन्म.जन्मों के पति वैसे स्वभाव से तो अति षिश्ट एवं समझदार हैं। दुर्भाग्य यही है कि पीने के बाद वह दो कौड़ी के रह जाते हैं
अलंकार : द्वितीय चरण में अनुप्रास एवं वयणसगार्इ

टिप्पणी : (1) लाखीणो अर्थात 'लाख रुपये मूल्य का मुहावरा है।

(2) प्राचीन.काल मेें कौडि़यां लघुतम मुद्रा रूप में प्रयुक्त होती थीं।
Truly my husband is worth millions by temperament and conduct when he is sober. After being tipsy he is not even worth two cowries.

28

गाय.भैंस धीणा कठै
राब.छाछ तरसूंह
वै पवसा बंद बोतलां
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : धीणा दुधारू पषु; राब मक्की के आटेदलिए को छाछ के साथ पकाए जाने वाला भोज्य पदार्थ; पवसा दूहते समय बछड़े द्वारा थन चूंखे जाने या दोहने वाले के कोमल स्पर्ष से गाय.भैंस पावसती हैं - दूध उतार देती हैं

भावार्थ : उनकी पीने की लत से व्याप्त अभावों में कहां गायें भैंसें और कहां दूध.दही - राब.छाछ भी कहां? हकीकत में यहां तो वह मानो बंद बोतलों को ही पवसा रहे हैं।

Owing to his ill-habit all livestock has been sold away. Hence children do not get even whey with porridge. On the contrary, he does not refrain from opening his bottles.

29

सास दुखी अर बहु दुखी
मो दुख अणपारूह
सुसरो पीवै सुत पियै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : मो मेरा; अणपारूह अपार
भावार्थ : षराबखोरों के परिवारों मेे बेचारी औरतों के कश्टों का कोर्इ पार नहीं। देखिए न, इस घर में सास दुखी है, बहू दुखी है, और मेरे दु:ख का क्या कहना? यहां तो बाप, बेटा और पोता सभी धाप कर पीते हैं।

We three — mother-in-law, daughter-in-law and myself are equally grief-stricken since my father-in-law, son and husband — all are drunkards.

30

कूका अणभणिया रहै
कूक्यां वर सारूह
हूं नत कूकूं नह सुणै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : कूका बेटे; अणभणिया अनपढ़; कूक्यां बेटियां; कूकूं चिल्ला.चिल्ला कर याद दिलाती हूं

भावार्थ : मधप के परिवार की दुर्दषा का क्या कहना - चाहे बेटे अनपढ़ तथा बेटियां बिनब्याही रह जाएं, पर स्वयं को तो बोतल चाहिये ही चाहिये।

The drunkard bothers not whether sons do not go to school or daughters remain unmarried. He must enjoy his anguri rani a¼vaxwjh jkuh½.

31

पग नेवर रुण.झुण कठै
नगदîा झणकारूंह
खणकै खाली ठीकरा
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : नेवर पांव का आभूशण; कठै कहां; नगदîा रोकड़ रुपयों के सिक्के; खणकै खनकते हैं; ठीकरा खाली बोतलें

भावार्थ : मुझे पांवों में आभूूशण स्वरूप रुन.झुन करते नेवर कहां नसीब हैं और न ही नकद कलदारों की झनकार का आनन्द? यहां तो घर में खाली बोतलें ही खनकती हैं।

अलंकार : स्वरसाम्य; अनुप्रास
टिप्पणी : कागज के नोटों के प्रचलन से पूर्व चांदी के सिक्के चलन में थे, जिन्हें गिनते समय षिला पर बजा.बजाकर उनकी धातुपरक झनकार से परखा जाता था।

Ours is the wretched home where only empty bottles rattle — neither do the anklets jingle nor coins tinkle.

32

केसर.किसतूरी पियै
(म्हारा) केसरिया मारूह
घर इ्र्रजत काळी करै
पिउ पियै दारूह

षब्दाब्र्थ : केसर.किसतूरी केसर.कस्तूरी ब्रांड मदिरा; केसरिया मारूह सौम्य.षालीन.वक्रगरिमा पति; र्इजत इज्जत; काळी बदरंग, धूमिल

भावार्थ : मेरे मस्ताने.रंगीले पति केसर.कस्तूरी ब्रांड विषिश्ट षराब पीकर खानदान की प्रतिश्ठा को बÍा लगा रहे हैं।

अलंकार : यमक; अनुप्रास; व्याजस्तुति
My happy-go-lucky husband drinks special spirit like kesar-kasturi but all the same defames our house.

33

पी खाटîो खाटा हुवै
(म्हारा) घणमीठा मारूह
सैं सुख घर खाटा करै
पिउ पियै दारूह


षब्दार्थ : खाटîो हेटे दर्जे की षराब; खाटा खÍे, अप्रिय; घणमीठा अति प्रिय;
सैं समस्त; खाटा करै खÍे कर देते हैं, अर्थात सुखों में विघ्न डाल देते हैं

भावार्थ : मेरे अति मधुर सौम्य स्वभाव वाले पति खाटîा पीकर खुद ही अप्रिय नहीं हो जाते हैं, अपितु घर.गृहस्थी के सुख.सौहार्द में भी खटास घोल देते हैं।
अलंकार : एंटिथिसिस; व्याजस्तुति; यमक

My sweet-tempered spouse through his undesirable addiction sours the joys of the family.

34

बंद करै घर रा खरच
यो बंदो मारूह
खोल.खोल बंद बोतलां
पिउ पियै दारूह


षब्दार्थ : यो यह, ऐसा; बंदो बन्दा

भावार्थ : कैसा अजीब तमाषा है कि नषेबाजों की दुनिया का यह जवांमर्द घर के खचोर्ं पर तो पाबन्दी रखता है, परन्तु पियक्कड़ों की महफिल में बंद बोतल खोलने में कभी कोताही नहीं करता।
अलंकार : व्याजस्तुति; यमक; अनुप्रास
He puts restrictions on the household expenditures but lavishly squanders on his drink-parties.

35

देषी परदेषी पियै
(म्हारा) सैंदेषी मारूह
घर अैसी.तैसी करै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : सैंदेषी सम्पूर्ण स्वदेषी
भावार्थ : मेरे पति को न तो देषी दारू से परहेज है न विदेषी वाइन से नफरत, पर उनकी इस लत से परिवार तो हर तरह से बर्बाद हो रहा है।
अलंकार : स्वरसाम्य; व्याजस्तुति
दोश : 'ऐसी.तैसी करना मुहावरे में अष्लील दोश है।
This totally native gentleman, my worthy husband, has no reservations either for country liquors or for foreign spirits. Nonetheless, his ruinous habit has crushed the whole family.

36

छतिखोवण खावंद क्रतब
डूबो घर सारूह
प्यालै समझ डुबोय नै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : छतिखोवण अदूरदर्षी; खावंद खाविंद, पति; डूबोे डूब गया है; डुबोय नै डुबो कर

भावार्थ : मेरे साहब ऐसे घर.डुबोउ हैं कि उनके अपकर्मों से सारा परिवार ही नेष्त.नाबूद हो गया है। ऐसा लगता है कि इन्होंने तो एक विवेकी गृहस्थ की सारी अक्ल को ही प्याले में डुबो दी हो।

अलंकार : अनुप्रास; यमक

टिप्पणी : 'छतिखोवण एक मर्यादित गाली है।

His imprudence has wrecked the whole family as if he had mortaged his sanity for the goblet.

37

आंख छतां आछो बुरो
नह सूझैे मारूह
म्हंू झुर.झुर आंधी हुर्इ
पिउ पियै दारूह

 

षब्दार्थ : छतां होते हुए; झुर.झुर रो.रो कर
भावार्थ : आंखें (विवेक) होते हुए भी उन भलेमानस को अपना भला.बुरा कहां सूझता है? मैं बेचारी तो इस असहनीय दु:ख से रो.रो कर अंधी हुर्इ जा रही हूं।
अलंकार : एनिटथिसिस
In spite of his normal discretion he fails to discriminate what is beneficial. Under this strain I have been bewailing the situation and weakening my eyes.

38
दारूबंदी टोटका
हुवै केइ्र बारूह
बोतल बंदो कद बंध्यो
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : दारूबंदी मध.निशेध; टोटका औपचारिक प्रयास; बारूह बार

भावार्थ : नषा.बन्दी औपचारिक रस्मों की तरह ही सरकारों द्वारा जब.तब होती रही हैं लेकिन दारूखोरे बेषर्मों पर ये बंदिषें कब कारगर हुर्इ हैं ?

अलंकार : यमक; अनुप्रास; भाशणगत प्रष्न (तीमजवतपबंसुनमेजपवद);

On and off there have been formal attempts to impose prohibition. But can such restrictions be effective on shameless addicts?

39

रंगै भींतड़ा मोकळा
कागद अणपारूह
वै पण अणरंग्या रहै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : भींतड़ा दीवारें; मोकळा अनेक; वै वह; पण परन्तु; अणरंग्या बेरंग, अप्रभावित
भावार्थ : नषेबंदी प्रचारार्थ सार्वजनिक दीवारें नारों से पट जाती हैं और विविध पैम्फ्लेट.पोस्टर बंटते हैं, किन्तु वह दारू की दुनिया का बेताज बादषाह तो इन सभी अभियानों से सदा अप्रभावित ही रहा है।
अलंकार : यमक
Ample public walls have been covered with anti-drinking slogans and several pamphlets-posters have been distributed and displayed. But in spite of all such campaigns drunkards have remained uninfluenced.

40

रामा.षामा किण कदै
करै नहीं मारूह
जै माताजी झट कहै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : रामा.षामा राम कृश्ण से जुड़े प्रचलित अभिवादन; किण किसी को; जै माताजी माताजी के नाम से अभिवादन
भावार्थ : उनमें किसी से अभिवादन करने की तमीज तो जरूर नहीं है, किन्तु कैसी विचित्रता है कि महफिलों में पहली मनुहार में 'जय माताजी की कहना तो कभी चूकते ही नहीं।

टिप्पणी : एक.दूसरे को 'जय माताजी की कहकर षराब का दौर षुरू करने का चलन है।

He has not got such etiquette as to greet anyone in the usual name of Rama-Shyam. Nonetheless, he never forgets to exhibit the courtesy, as per the vogue, to remember Goddess Durga before taking the first sip.

41

पी प्याला काला हुवै
(म्हारा) घणव्हाला मारूह
व्हाली धणां बिसार नैे
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : काला पागल; म्हारा मेरे; घणव्हाला अतिप्रिय; व्हाली प्रिया; धणां धर्मपत्नी को; बिसार नै भूल कर

भावार्थ : मेरे पति.परमेष्वर प्याले पर प्याले पीकर गाफिल हुए जाते हैं। और तो और वह मुझ प्रियतमा तक को भी नषे में बिसार देते हैं।

My darling husband drinks chalice after chalice and under stupefied state forgets even his darling wife.

42

बोतल सूं रंच न हटै
(अै) हटीला मारूह
इण हट घर हेटो हुवै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : सूं से; अै यह; हटीला हठीले; हट हठ; हेटो नीचा, षर्मिन्दगी वाला

भावार्थ : क्या किया जाए? मेरे हठीले मारू तो बोतल से रंचमात्र भी अलग नहीं होते और यों उनके इस रवैये से घर को समाज में हेटा देखना पड़ रहा है।

अलंकार : यमक; अनुप्रास; 'हट का ध्वनि चमत्कार

My stubborn yokemate does not tolerate the tiniest separation from his bottle. On account of this attitude this house gets humiliated again and again.

43

चढा पैग रौळा करै
(म्हारा) घणभोळा मारूह
गोळमाळ घर रो हुवै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : पैग षराब का एक पैमाना, बड़ा पैग 60 मि.ली. और छोटा पैग 30 मि.ली.; रौेळा गड़बड़.षड़बड़, हुड़दंग; घणभोळा अति भोले; गोळमाळ अव्यवस्था; हुवै होता है

भावार्थ : यूं तो मेरे सलौने साजन अत्यन्त सीधे.सादे हैं, किन्तु जब षराब चढ़ जाती है तो सभी काण.मरजाद को ताक पर रख देते हैं। नषे.पत्ते की इस सब गड़बड़झाला में परिवार का तो राम ही रखवाला है।

अलंकार : ध्वनिसाम्य

After consuming peg after peg my plain-hearted spouse makes a mess of the house.

44

रम्म उडै बिस्क्यां उडै
आषो दूबारूह
लारै घर धज्यां उडै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : रम्म रम ;तनउद्ध; बिस्क्यां विहस्की ;ूीपेालद्ध; आषो 'आषा नामक गुणवत्तापरक मदिरा; दूबारूह कवनइसम.कपेजपससमक मदिरा; लारै साथ.साथ; धज्यां धजिजयां

भावार्थ : रम, विहस्की, आषा, दुबारू आदि मेरे मनभावन भरतार की महफि़लों मे 'इंजाय किये जाते हैं, परन्तु उन्हें क्या मालूम कि इससे तो घर की धजिजयां ही उड़ रही हैं।

अलंकार : यमक, ध्वनिसाम्य

This alcoholic gentleman enjoys rum, whisky and several other spirits. Alas! If he were aware that he has brought slur on the family.

45

मो सुहाग फजिती अषी
कर छूटै मारूह
काजळ टीकी मेलनै
पिउ पियै दारूह

 

षब्दार्थ : मो मेरे; फजिती फजीहत; काजळ टीकी सुहाग के सम्पूर्ण अवयवों के प्रतीक; मेलनै गिरवी रखकर

भावार्थ : वह तो अपनी गुटकी के लिये मेरे सुहाग की फजीहत करने से भी बाज नहीं आते। और तो और नारी.सौभाग्य के सुरंगे प्रतीक श्रृंगारदान पर भी रहम नहीं करते।

To gratify his urge he does not hesitate from hurting my emotions. He can pawn even my traditionally auspicious cosmetic-case.

46

आंगळ.आंगळ धर बिकै
घर बिकै सारूह
कलाळां सौदो बिकै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : आंगळ.आंगळ अंगुल नाप से इंच.इंच; सारूह सारा; सौदो सामान, माल
भावार्थ : उनकी लत से घर की अंगुल.अगुल ज़मीन व अन्य सम्पदा कौडि़यों के भाव बिक रही है तथा यही पैसा खर्च हो रहा हैे कलालों का सौदा (दारू) खरीदने में।
टिप्पणी : नापने के लिए अंगुली और भुजा के अग्रभाग (कोहनी तक) का उपयोग किया जाता रहा है।

Here the life-supporting ancestral land is being sold inch by inch, and other valuables, too. Consequently, the bartenders are minting money.

47

कीं ताळा कूंची करूं
किण डर.भौ सारूह
षंख बजै सुरळा उडै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : ताळा.कूंची करूं ताला.चाबी लगाऊं; भौ भय; सुरळा अवांछित कीटाणु

भावार्थ : षराब से इस घर का सब कुछ स्वाहा हो ही गया है तो अब भला ताला.कूंची करने का क्या तुक ? और क्या बाकी रहा है, यहां तो दिवाला ही निकल गया है।

टिप्पणी : ऐसी मान्यता है कि मनिदरों में षंख.ध्वनि से अवांछित कीटाणु विनिश्ट हो जाते हैं। 'षंख बजना और सुरळा उड़ना राजस्थानी में मुहावरा है अर्थात धन.सम्पदा के नाम पर कुछ नहीं रहना।

Total penury is rampant all over the house and there is no fear of anything being stolen now.

48

भोपा औतरतां लखां
षुभ तथ षुभ वारूह
नतउठ मौर भचीकणा
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : भोपा लोकदेवताओं के पुजारी; औतरता औतरते हुए भोपे के षरीर में देवी.देवता का अवतरण। इसी प्रक्रिया में वह सांकलों से अपनी ही पीठ पीटता है; लखां देखते हैं; तथ तिथि; वारूह वार, दिन; मौर पीठ; भचीकणा पिटार्इ करना

भावार्थ : भोपे.पुजारी तो मौके.टोके पर ही औतरते हैं - भाव होता है, पर यहां तो मेरे हठीले बलम रोजमर्रा नषे में बिना भाव के ही अपनी पीठ पर सांकलें पटकते रहते हैं।

The folk-deities enter the oracle off and on. However, in drunken state he makes such scenes frequently.

49

गुमाना ढोला अरे
कीं गुमान धारूंह
सै गुमान प्याले डुबो
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : गुमाना स्वाभिमानी; ढोला पति के लिए सम्बोधन; गुमान गर्व; सै गुमान सम्पूर्ण अभिमान

भावार्थ : अपने इस स्वाभिमानी सिरदार पर क्या गर्व करूं क्योंकि उन्होंने तो अपनी सम्पूर्ण इज्जत.आबरू ही प्याले में डूबो कर रख दी है।

अलंकार : स्वरसाम्य

What pride to desire out of my Gumana Dhola because he has spoiled all his self-respect at his own hands.

50

हाथ पकड़ लाया म्हनै
परण वेळ मारूह
हाथ पकड़ घर लावणा
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : परण परिणय; वेळ वेला
भावार्थ : तब पाणिग्रहण के वक्त वही मुझे हाथ थामे यहां लेकर आए थे, किन्तु अब तो हाल यह है कि मैं नषे में धुŸा रोज़.रोज़ उन्हें हाथ पकड़ (सम्हाल) कर घर लाती हूं।
अलंकार : एंटिथिसिस

At the time of holy wedlock he held my hand ceremonially. Now the situation is that often I have to bring him holding his arm when drunken.

51

बोतल कज बेटîां बिकै
(हूं) घर.घर बूहारूंह
बेटा हाळी मेलनै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : कज काज, के कारण; बूहारूंह झाड़ू बुहारा करती हंू ; हाळी बंधुआ मजदूर; मेलनै रखकर

भावार्थ : षराब के लिये वह क्या नहीं करते? बेटियां बिकती हैं अर्थात अयोग्य वरों को पैसे लेकर ब्याह देते हैं, मैं घर.घर झाड़ू.बुहारा बर्तन.बासन करती हूं और बेटों को बंधुआ मजदूर रहना पड़ता है।

अलंकार : अनुप्रास, वयणसगार्इ

This is the finale of drinking addiction — daughters are unsuitably matched, I have to work as a helping hand in several houses and sons work as bonded labourers.

52

परभाते लै आखड़ी
नह पीवण सारूह
सांझ पड़ै मिजलस मंडै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : परभाते सवेरे; आखड़ी संकल्प; मिजलस महफिल; मंडै जमती है
भावार्थ : वह रोज.रोज सवेरे तो कभी नहीं पीने की कसम खाते हैं, किन्तु षाम होते ही फिर महफिल जम जाती है।
अलंकार : एंटिथिसिस
What a fun ! At the insistence of his well-wishers he swears on oath not to touch liquor in the morning, but alas! evenings become colourful again.

53

स्याळै चौमासे चलै
नाह ढरौ न्यारूह
मझ दोपैरी जेठ री
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : स्याळै षीत ऋतु में; चौमासे वर्शा ऋतु में; नाह नाथ, पति; न्यारूह निराला; मझ मध्य; दोपैरी दुपहरी

भावार्थ : उनके पीने का ढर्रा ही निराला है। सर्दियों और बारिष में तो फिर भी चलता है, किन्तु भरे जेठ की आग बरसती दुपहरी में भी वह दारू डकारने से नहीं चूकते।

अलंकार : वयणसगार्इ

His manner of drinking is peculiar. It is tolerable during winter and rainy season but he gulps even during the extremely hot afternoons of summer.

54

रोज.रोज या गत बणै
खलक हंसे सारूह
रसण हलै नह पग मंडै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : खलक जग; रसण जीभ; हलै हिलती है
भावार्थ : पीने के बाद रोज़.रोज़ ऐसी दषा हो जाती है कि उनके ऊटपटांग बोलने और लड़खड़ाते चलने पर लोगों की हंसी का पात्र बनते रहते हैं।
After getting drunk he becomes a laughing stock because he stammers in his speech and stumbles in his gait.

55

मो किसमत रोणो लिख्यौ
रो.रो मन मारूंह
हंस.हंस गवाय गीतड़ा
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : गीतड़ा गीत

भावार्थ : मैं ऐसी बदकिस्मत औरत हूं कि अनेकानेक परेषानियों के कारण सदैव व्यथित ही रहती हूं। उधर महफिलों में गीत गवा.गवा कर वह मजे लूटते हैं।
अलंकार : ध्वनिसाम्य, एंटिथिसिस

I am so wretched as to face all kinds of troubles. On the contrary, he enjoys his drinks in special drinking parties.

56

बोतल तणा कड़ाव में
(म्हने) तळ न्हाकी मारूह
बळîा मालपा जिम रुळुं
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : तणा के लिए; कड़ाव कढ़ाह; न्हाकी दिया; बळîा जले हुए; मालपा मालपुए; जिम की भाँति; रुळूं अनादृत होती हूं

भावार्थ : अपनी बोतल की खातिर मेरे इन निस्सहाय बच्चों के क्रूर बाप ने मुझ अभागिन को तो जैसे मुसीबतों के कढ़ाह में ही तल दिया है। मेरी हालत उस जले हुए मालपुए की तरह हो गर्इ है जो उपेक्षित रूप में इधर.उधर पटक दिया जाता है।

अलंकार : रूपक, बिम्ब

Alas! My hard-hearted spouse has left me in sheer neglect for the bottle’s sake.

57

लूण मरच री साबली
केक नषा मारूह
अमल.भांग, गांजा.चरस
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : साबली मोहताज; अमल अफीम

भावार्थ : उन भलेमानस के नषों का क्या कहना - अफीम, भांग, गांजा, चरस और फिर षराब तो है ही। ऐसी परेषानी में यहां का हाल बेहाल है। और तो और हम तो नमक.मिर्च से भी मोहताज हैं।

अलंकार : एंटिथिसिस

टिप्पणी : 'लूण मरच निम्नतम दैनिक आवष्यकता का धोतक हो कर एक प्रकार का मुहावरा हो गया है।
He enjoys various intoxicants like opium, hemp leaves as well as cannabis; and alcohol is always his favourite. However, our kitchen even lacks bare basic condiments like salt and chilly.

58

लाडा रै मूंडै लग्यो
प्यालो हत्यारूह
लाडी सुख हलाल व्है
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : लाडा नायक; हत्यारूह हत्यारा; लाडी नायिका
भावार्थ : यह हत्यारा प्याला उन साहब के मुंह क्या लग गया है मानो मुझ जैसी उनकी प्रेयसी का तो सम्पूर्ण जीवन ही नरकतुल्य हो गया है।
अलंकार : मानवीकरण, अनुप्रास

What an abominable habit this worthy gentleman has developed that I, his dependant, am slaughtered every moment !

59

धण जोबन जातां छुटîा
लाड कोड मारूह
लाड कलाळी न छुटîा
पिउ पियै दारूह

 

षब्दार्थ : लाड कोड लाड़ प्यार; कलाळी षराब, दारू संबद्ध लोकगीत
भावार्थ : स्वाभाविक है कि यौवन के जाते ही मेरे प्रति उनका आकर्शण छूट.छाट गया परन्तु इस उम्र में भी षराब के प्रति रुझान बरकरार है।
अलंकार : एंटिथिसिस

Quite naturally the fascination of youthful married days has now passed away but even at this declining age his charm for the drinking chalice still endures.

60

ऊजाड़ा ढांढा जुंहि
घर भेळे मारूह
बाड़ डाक मुरजाद री
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : ऊजाड़ा आवारा; ढांढा पषु; जुंहि की भांति; भेळै बर्बाद कर रहे हैं; डाक फांद कर; मुरजाद मर्यादा

भावार्थ : आवारा पशु की भांति उन्होंने स्वच्छन्द हो कर सारा घर ही बर्बाद कर दिया है। देखिये न, सारी मर्यादाओं को तिलांजली देकर वह तो पीने.पिलाने में ही लीन हैंं।

अलंकार : ध्वनिसाम्य, बिम्ब

Like a stray animal he has trampled the entire field of the family. Having been lost in his drinking he has crossed over the fence of established social conventions.

61

प्याली बाच्या देवणो
अजु न तजै मारूह
हथ धूजे गाबड़ हलै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : बाच्या चुम्बन; अजु अभी भी; धूजै कांपता है; गाबड़ गर्दन; हलै हिलती है

भावार्थ : वृद्धावस्था में भी, जब हाथ कांपने और गर्दन हिलने लगी है, उन्होंने अभी तक बोतल से नाता नहीं तोड़ा है।

अलंकार : अनुप्रास, व्यंग्योकित

टिप्पणी : 'बाच्या देना किंचित अष्लील है।

In his declining age too when he is so feeble that his hands tremble and his neck sways, he has not abandoned kissing his darling bottle yet.

62

बोतल नह बाळै बलम
घर बाळै मारूह
म्हूं पण बळ बळ राख व्हूं
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : बाळै जलाकर भस्म करते, त्यागते; बलम बालम; व्हूं हो रही हूं
भावार्थ : वह बोतल को कहां छोड़ते हैं और इधर यों घर बर्बाद हुआ जा रहा है।
अलंकार : यमक, अनुप्रास, ध्वनिसाम्य
He is very reluctant to give up his bottle although he has almost emptied the house. Resultantly, I am also extremely overwhelmed with grief day-by-day.

63

बोतल नठै न धव नटै
घर नठै सारूह
हंू पण नट.नट हारगी
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : नठै खत्म होना; नटै मना करना; हारगी हार गर्इ हूं

भावार्थ : पीते.पीते न तो बोतलों का सिलसिला खत्म हो रहा है और न ही वह पीने से मनाही करते हैंं। मेरे बार.बार वरजने के बावजूद घर रीता किये जा रहे हैं।

अलंकार : यमक, ध्वनिसाम्य, 'नठ व 'नट का ध्वनि चमत्कार
Neither the bottle gets consumed (a new one will replace immediately) nor does he refuse to drink. In the process, the house is going to dogs. In spite of my continual objections he continues his nuisance.

64

टूटîो तन मन टूटियो
घर टूटîो सारूह
साबत प्यालो बोतलां
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : सारूह सारा; साबत साबुत, ज्यों का त्यों
भावार्थ : षराब से मेरा तन.मन टूट गया है, तथा घर भी हाल.बेहाल हो गया है लेकिन कम्बख्त बोतल.प्याले तो ज्यों के त्यों सलामत हैं।
अलंकार : यमक, एंटिथिसिस
Here only his bottle and drinking cup are in tact, otherwise their tragic consequence has shattered both my mind and body.

65

भाटो.भाटो देव कर
सै आखड़îां धारूंह
नह कोउ आडो आवियो
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : भाटो पत्थर; कर मना कर; आखड़îां संकल्प विषेश; धारूंह लेती हूं

भावार्थ : दारू की परेषानी से छुटकारा पाने को मैंने भाटे.भाटे को देव माना और मनौती रूप में विविध कठोर संकल्प धारण किए हैं, किन्तु मेरे दुर्देव से कोर्इ मददगार सिद्ध नहीं हुुआ। वह तो वैसे के वैसे ही हैं।

टिप्पणी : 'भाटो.भाटो देव करना लोकोकित है जो आस्था की पराकाश्ठा दर्षाता है।

I have invoked the propitiation of innumerable deities but no one has been kind enough to pity me.

66

भरियो घर खाली करै
खाली मत मारूह
भर.भर खाली बोतलां
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : भरियो भरा.पूरा, सुसम्पन्न; मत मति, बुद्धि

भावार्थ : मेरे षराबी पति का रवैया कैसा अजीबोग़रीब है। कैसी विडम्बना है, एक ओर जहां वह भरा.पूरा घर खाली करने में जुटे हैं वहीं उधर खाली बोतलें भरने मेंं मग्न हैं।

अलंकार : एंटिथिसिस, यमक, बिम्ब

My empty-headed husband has swept the whole house but keeps his bottle filled to the brim.

67

स्वाद स्वाद री नुकल रो
घणौ षौख मारूह
पण न अरोगै हेक कण
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : नुकल मदिरा.पान के समय सामिश.निरामिश, यथा कबाब, नमकीन जैसा क्षार.भक्षण

भावार्थ : गजब स्वभाव वाले हैं मेरे वह चतुर.सुजान कि भांति.भांति के क्षार.भक्षण की फरमाइष तो उदारतापूर्वक कर देते हैं, परन्तु पीने में ऐसे दीवाने हो जाते हैं कि कण मात्र भी नहीं चखते।

अलंकार : अतिषयोकित

My consort is very fond of sundry snacks (to be munched while drinking) and demands for them again and again. However, his whole attention is so engrossed by the drink that he does not even touch any of them.

68

लेणो लेता नह मुचै
भरणो भर हारूह
घर घूंदे बोहरो भुसै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : लेणो ऋण लेना; मुचै नहीं मानते; भरणो ऋण का नकद में चुकारा नहीं कर बदले में कुछ न कुछ देना; घूंदे आए दिन परेषान करता है; बोहरा ऋणदाता, साहूकार; भुसै बकवास करता है

भावार्थ : वह अपने षौक.मौज के लिए कर्जा किये बिना नहीं रहते और मैं चुकाने में भरणा भर.भर हैरान हूं। फिर भी आए दिन साहूकार तकाजा करने घर आ धमकता है और ऊलजलूल बक जाता है।

अलंकार : अनुप्रास

टिप्पणी : 'घर घूंदना एक मुहावरा है जिसका अभिप्राय है परेषान करना।

For his sole purpose he does not desist from borrowing off and on. For repayment, when the money-lender makes a scene, I have to appease him with some article of the household, even a livestock animal.

69

हंू सूखन कांटो हुर्इ
धव धारौ न्यारूह
चळगी तन री चामड़ी
पिउ पियै दारूह

 

षब्दार्थ : न कर; धारौ रवैया; चळगी पी.पी कर संवेदनाषून्य हो गइ्र्र है; चामड़ी त्वचा
भावार्थ : दु:ख में मैं सूख कर कांटा हुर्इ जाती हूं, किन्तु उनका तो रवैया ही निराला है; आए दिन इतना पीते हैं कि उनका अंग.प्रत्यंग षराबमय हो गया है।
अलंकार : वयणसगार्इ, अनुप्रास, ध्वनिसाम्य
टिप्पणी : पानी में काफी देर काम करने से हाथ.पैर की त्वचा सिकुड़ कर अत्यन्त संवेदनाहीन हो जाती है, जिसे राजस्थानी में चमड़ी का 'चळना कहते हैं।
Due to constant tension I have become lean and thin but his attitude is bizarre. He has been drinking for such a long period that all his organs are imbued with alcohol.

70

घर में नह मूठी चणा
चाबण परवारूह
दाख दुबारो मोल लै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : मूठी मुðी भर; चणा चने; दाख अंगूर से बनी मदिरा

भावार्थ : परिवार तो मुðी भर चने को मोहताज है, परन्तु मेरे सजना तो दाखों से बनी 'दुबारा जैसी मंहगी षराब मोलाने से भी नहीं हिचकते ।

अलंकार : अनुप्रास, वयणसगार्इ
The penury of my house does not permit even a handful of roasted grams to feed the family but even in such a pitiable condition he does not hesitate to buy himself the costly double-distilled spirit of grapes.

71

मेंहदी बिरथा मांडणी
काजळ क्यूं सारूंह
नाह नसै निरखै कठै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : बिरथा वृथा, बेकार; मांडणी चित्रित करनी, रचानी; सारूंह आंजू; नाह नाथ, पति; नसै नषे में; निरखै निहारते हैं

भावार्थ : मेरा बनाव.श्रृंगार निरर्थक है। नषे में धुत्त उन मतवाले मारू को कहां खयाल है मुझ सुहागिन के सोलह श्रृंगार निहारने का।

अलंकार : वयणसगार्इ, अनुप्रास

For whom should I apply henna? My make up and toiletries are also of no avail since under his drunken state he never has sense to appreciate all these.

72

पाड़़ौसी मंजलां चढै
(वांरो)जस पण अणपारूह
करज चढै बोतल चढै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : मंजलां मंजिल दर मंजिल; जस यष; करज ऋण, उधार

षब्दार्थ : उधर पड़ौसियों की दौलत.षौहरत देखो! उनके घरों पर मंजिल दर मंजिल चढ़ती जा रही है और साथ ही यष.कीर्ति में भी भारी इजाफा हो रहा है। चढ़ तो मेरे इधर भी रहा है किन्तु कर्जा और दारू की बोतलें।

अलंकार : यमक, एंटिथिसिस

As for our neighbours, storey upon storey with their glory is being raised. Rising takes place here also but only of debts and contents of bottles.

73

सूधो घर ऊंधो करîो
(म्हारा) घणसूधा मारूह
कर.कर ऊंधी बोतलां
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : सूधा सीधा; ऊंधो औंधा; घणसूधा अति सरल

भावार्थ : अपनी कुटेव से बोतलें औंधी कर.कर मेरे सीधे.साधे प्रीतम ने अपने समाज.समादृत घर की मिÍी पलीद कर दी है।

अलंकार : ध्वनिसाम्य, यमक

Owing to his own doings he has topsy-turvied this reputed house by emptying his bottles.

74

कै कलाळ कै डागदर
न्याल करै मारूह
सुबै दवा सांझै थत्यौ
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : कै या तो; डागदर डाक्टर; न्याल निहाल; थत्यो रोज़. रोज़ बेनागा मधपान

भावार्थ : मेरे पति के बटुए से या तो कलाल या फिर डाक्टर निहाल हो रहे हैं क्योंकि उन्हें सुबह तो दवा लेनी ही पड़ती है और षाम को नियमित दारू।

अलंकार : अनुप्रास

He generously patronises either the doctor or the liquor-seller. His requirements in the morning are medicines and in the evening drinks.

75

जला.जंवार्इ सासरे
गीत गवै मारूह
कुण रीझै ऊंधा पड़ै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : जला जलाल (राजस्थानी प्रेमगाथा का नायक); गवै गाए जाते हैं; ऊंधा औंधे मुंह लुढ़क पड़ते हैं

भावार्थ : 'जला.जंवार्इ गाकर ससुराल में महिलायें अपने लाडले पाहुन को रमाती.रिझाती हैं, पर इस दारू.दीवाने को नषे में होष कहां ?

टिप्पणी : (1) राजस्थानी प्रेमगाथा के नायक जलाल को ही 'जला संबोधित किया जाता है। इस प्रसंग की यहां दो प्रेम.कथाएं प्रसिद्ध हैं - जला.गहाणी व जला.बूबना। 'जला लोकगीत दामाद के सम्मान में गाने की परम्परा रही है।
(2) एक आम प्रचलित 'जला के बोल हैं - ''जला रे म्हें तो राजरा डेरा निरखण आर्इ, ओ जला।

At my parental house ceremonial songs are presented hailing and honouring him. However, his total attention is centred on the bottle-pyala ¼cksry-I;kyk½.

76

हूं तो गंगाजळ पिऊं
अघ मेटण सारूह
तरबेणी री तीर पै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : अघ पाप; तरबेणी त्रिवेणी

भावार्थ : अपनी तीर्थयात्रा के दौरान त्रिवेणी संगम पर जहां मैं पाप.प्रक्षालन के लिये श्रद्धा.भाव से गंगाजल पान करती हूं, वहीं वह उस पाक.साफ जगह भी दारू की चुसिकयां लेने से नहीं चूकते।

In the midst of our pilgrimage, at the Sangam of Triveni whereas I drink holy water of the Ganges in order to reduce the burden of sins, he enjoys his drinks even there.

77

सैंजोड़ै तीरथ करां
धाम करां चारूंह
हूं प्रभु चरणाम्रत पिऊं
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : सैंजोड़ै जोड़े से; धाम चारूंह चारों धाम

भावार्थ : हम जोड़े से चारों धाम की तीर्थ.यात्रा पर जाते अवष्य हैं, किन्तु जहां मैं भकितपूर्वक प्रभु का चरणामृत ग्रहण करती हूं, वहां भी वह दारू बिना नहीं रहते।

टिप्पणी : जोड़े से तीर्थ करना गृहस्थों के लिए विषेश फलदायी माना गया है। बद्रीनाथ, द्वारिका, रामेष्वरम एवं जगन्नाथपुरी चार धाम से प्रसिद्ध हैं।

We do go together on the famous four-cornered pilgrimage. There I take charanamrit (the holy bathing water of deities) with reverence, whereas he gratifies himself with liquor.

78

मौत.मरण पाळै नहीं
सोगाळो मारूह
हूं पल्लो ले.ले झुरूं
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : पाळै पालन करना; सोगाळो मौत पर षोक रखना; पल्लो ले.ले झुरूं मृतक
के परिवार में महिलायें बार .बार सामूहिक रुदन करती हैं, जिसे 'पल्ला लेना कहते हैं
भावार्थ : कैसे कठोरदिल इंसान हैं मेरे सम्माननीय पति जो अपने स्वजन की मृत्यु पर भी औपचारिक षोक तक नहीं पालते। जहां मैं पल्ले लेने की रस्म में अनेक दफा विलाप करती हूं, वह गैरजिम्मेदार तो तब भी षराब से गुरेज नहीं करते।

He seldom observes mourning as far as enjoying alcohol is concerned whereas I bewail collectively with other ladies again and again.

79

कर खाली खुल्या भरै
कूंपा मो मारूह
कलाळां गल्ला भरै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : खुल्या जेबें; कूंपा बोतलें; गल्ला रोकड़.पेटी ;बेंी.इवगद्ध

भावार्थ : मेरे अज़ीज़ षौहर अपनी जेबें खाली कर षराब की बोतलें भरवाते हैं और यों सहज में अपना धन कलालों के गल्ले में पहुंचा देते है।
अलंकार : अनुप्रास, स्वरसाम्य

टिप्पणी : दूसरी तरह से यह अभिप्राय भी निकलता है कि षराब की बोतलें खाली कर दूसरों की जेबें भरते हैें।

By emptying his purse he gets bottles replete which, in turn, enriches the bartenders only.

80

हिक न टीपरîो घी घरै
धूप खिंवण सारूह
घर होमै भर बोतलां
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : हिक एक; टीपरîो भरनी में से घी.तेल निकालने का खड़ा चम्मचनुमा उपकरण; खिंवण खेने (देने) के लिए; होमै होम रहे हैं

भावार्थ : यहां घर में देवी.देवताओं के भोग.स्वरूप धूप खेने को तो रंचमात्र घी उपलब्ध नहीं है। उधर वह बोतलें पर बोतलें भरवा कर मानो किसी यज्ञ में सम्पूर्ण घर को आहूति रूप में होम रहे हों।

अलंकार : अनुप्रास, एंटिथिसिस

There is not even a spoonful of ghee to offer oblation in front of the deity but on the other hand he seems to be abundantly sacrificing all the comforts of the family.

81

पैल जलम म्हूं कीं करîौ
मिल्या अषा मारूह
मनख जमारो रांड व्हîौ
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : पैल पूर्व; जलम जन्म में; मनख जमारो मनुश्य योनि, जीवन; रांड विधवा, व्यर्थ; व्हîौ हो गया है

भावार्थ : न जाने मुझ अभागिन ने पूर्व.जन्म में ऐसा क्या किया है कि मुझे ऐसे पति मिले हैं जिनसे मेरा जीवन ही नारकीय हो गया है।

टिप्पणी : यहां हिन्दुओं की पुनर्जन्म.कर्मफल की अवधारणाओं को आधार बनाया गया है।
I must have committed certain sins in my past life that I got such a wonderful consort who has made my life hellish.

82

नह मरणो नह जीवणो
अधबिच दु:ख भारूह
किण कूडै़ खाडै पड़ूं
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : अधबिच मध्य का; भारूह भारी; कूडै़ कुंए में; खाडै खÏे में

भावार्थ : मेरे मदवा मारूजी के षराब के क्लेष से मेरा जीना.मरना एक सरीखा हो गया है। इससे छुटकारे के लिये अब किस कुंए या खÏे में जा गिरूं?

In my middle state it is neither life nor death. I know not how to get rid of it.

83

आलीजो भंवरो अली
(म्हने) गीत.गाळ प्यारूह
देखंू दुष्मणियो दिखै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : आलीजो भंवरो अलबेला पति; अली सखी; प्यारूह प्यारे लगते हैं; दुष्मणियो षत्रुतुल्य

भावार्थ : हे सखी, मेरे पति के लिये आलीजाह, भंवरा, गुमाना.ढोला आदि प्रयुक्त होने वाले रसीले.रंगीले षब्द केवल गीतों में ही सुहाते हैं। हकीकत में तो षराबी पति षत्रुतुल्य ही प्रतीत होते हैं।

अलंकार : वयणसगार्इ, अनुप्रास

The sweet words used to address such a husband appear endearing in traditional songs only. In actuality he sounds more an enemy than a life-partner.
84

कै तो होळी रै लगै
कै सळाह सारूह
घर रै लांपो मेलनै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : होळी होली; सळाह चिता; लांपो अगिन, पलीता; मेलनै दे कर
भावार्थ : या तो अगिन होली को दी जाती है या फिर चिता को। पर यहां तो मेरे रूड़े राजिन्द अपनी आदतों से घर को ही पलीता लगा रहे हैं।
अलंकार : अनुप्रास, ष्लेश
Normally, either Holi is set on fire or the pyre, but here he is singing the whole house in the flames of steady sorrows.

85

खलां रा सिर खोलणा
तवारीख सारूह
बोतल डाटा खोल नै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : खलां षत्रुओंं; तवारीख इतिहास; डाटा ढक्कन
भावार्थ : इतिहास गवाह है कि इस खानदान के प्रतापी पूर्वज तो दुष्मन के सिर खोलते रहे हैं, किन्तु अब उन्हीं के वंषज इन जालमजोध पति को तो बोतलों के ढक्कन खोलने में ही महारत हासिल है।
अलंकार : वयणसगार्इ, यमक, एंटिथिसिस
The ancestors of this glorious house used to open the heads of foes with their weapons but this descendant is skilled in opening the bottles only.

86

कलाळी जाजां करै
महखाने मारूह
धक्का दे काढै पछै
पिउ पियै दारूह


षब्दार्थ : जाजां करै उत्साह से आवभगत करते हैं; पछै फिर

भावार्थ : जब.जब मेरे पति मधुषाला जाते हैं बड़ी आवभगत होती है, किन्तु जेब खाली होते ही उन्हें धकेल कर निकाल दिया जाता है।

अलंकार : वयणसगार्इ

My spouse is highly welcomed when he enters the bar but as soon as his pocket is deplete, he becomes unwanted there.

87

घर जसड़ो यो घर हतो
करती मन धारूंह
घर रा घरकूंडîा करîा
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : जसड़ो जैसा; हतो था; मनधारूंह मन मुआफि़क; घरकूंडîा घर का सत्यानाष

भावार्थ : अत्यधिक सुसम्पन्न सामाजिक प्रतिश्ठा वाले इस घर को उन्होंने पी.पी कर बर्बाद व बदनाम कर दिया है।

अलंकार : अनन्वय

What a pity ! This well-reputed house has gone to dogs due to his imprudence.

88

सैं धण ओढे लैरिया
तीजां सणगारूंह
मो तन पै लीलां मंडी
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : सैं सब; धण सित्रयां; लैरिया विविध रंगों की लहरदार विषेश ओढ़नी; तीजां तीज का त्यौहार; लीलां पीटने से षरीर पर अंकित नीली धारियां; मंडी चित्रित हैं

भावार्थ : सावन के सुरंगे पर्व तीज जैसे सौभाग्यसूचक त्यौहार पर उल्लसित ललनाएं भांतभांत के लहरिये ओढ़ती हैं, किन्तु मुझ अभागिन के लिये तो उनके द्वारा नषे में पिटार्इ स्वरूप षरीर पर नीली धारियां ही लहरिया है।

अलंकार : वयणसगार्इ, उपमा
टिप्पणी : राजस्थान में श्रावण षुक्ला तृतीया को 'तीज के रूप में उमंग.उल्लास से मनाये जाने की परम्परा है। इस दिन सौभाग्यवती सित्रयां सज.धज कर तीज माता को पूजती हैं। उल्लेखनीय है कि विक्रम संवत के अनुसार संपन्न होने वाले त्योहारों में यह 'तीज पहला त्योहार है, जिसके लिए यह पंकित प्रचलित है - ''तीज त्योहारां बावड़े ले डूबी गणगोर।
On specific festivals, in the rainy season, married ladies wear particular sarees called laharia with different wavy colours, but unfortunately my saree is symbolically the blue lines of beating on my body.

89

घरै न गोळîो राबड़ी
सखियां सतकारूह
भर प्याला संग सोबत्यां
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : गोळîो साधारण कटोरा; सतकारूह सत्कार करने के लिए; सोबत्यां साथी
भावार्थ : मुझे तो अपनी सहेलियों की आवभगत के लिये प्याला भर खÍी छाछ की राब भी नसीब नहीं है। उधर वह अपने साथियों को प्याले पर प्याले मनुहारते रहते हैं।
अलंकार : वयणसगार्इ, एंटिथिसिस

I cannot afford to offer even a bowl of cheap sour porridge to my lady friends but contrastingly he gulps goblet over goblet with his male companions.

90

हुक्के प्याले कुण कषो
सावचेत मारूह
हमप्याले सैं भूल नै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : हुक्के.प्याले बिना नषे भेदभाव बरतना; हमप्याले एक ही प्याले से पीने वाले; सैं सब कुछ

भावार्थ : यों तो मेरा बादीला बिलाला बहुत सावधान है कि अपनी इज्जत आबरू की दृशिट से किस के साथ बैठ कर खाया.पिया जाये लेकिन दारू के मामले में सभी काण.कायदे एकबारगी रफू चक्कर हो जाते हैं।

अलंकार : ष्लेश, एंटिथिसिस
टिप्पणी : 'हुक्का प्याला एक मुहावरा है जो जातीय संबंधों को दर्षाने में प्रयुक्त होता है।
Although he is hierarchically conscious as to with whom to eat or smoke, but during drinking sessions he never discriminates whosoever one may be.

91

थर.थर कलाळां लुटै
खुरचण पण वारूंह
घर बासिन्दो कर मरूं
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : थर मलार्इ; खुरचण बर्तन के पैंदे से खुरचा हुआ अंष; पण भी; वारूंह उन्हीं के लिये; बासिन्दो झाड़ू बुहारा

भावार्थ : उनकी कमार्इ का खास हिस्सा तो दारू में चला जाता है, फिर बचा.खुचा भी वहीं खपता है। घरधन्धे में रात.दिन पिसने वाली मुझ अभागिन के हिस्से में तो छातीकूटा ही पल्ले पड़ा है।

A major portion of his earnings goes to liquor and the remainder as well. For me, performing all household chores, nothing remains.

92

बात.बात म्हूं बापड़ी
संकड़ार्इ बरतूंह
उरलो पुरलो खरच कर
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : संकड़ार्इ खर्च की परेषानी; बरतूंह बरतती हूं; उरलो पुरलो अनापषनाप

भावार्थ : मैं बेचारी अत्यावष्यक जरूरतों में भी पैसे.पैसे को मोहताज हूं। वहीं वह पीने में अनापषनाप खर्चते रहते हैं।

अलंकार : वयणसगार्इ, अनुप्रास, एंटिथिसिस

I apply thriftiness in even dire necessities but he spends lavishly and enjoys carefreely.

93

अड़ै न वित बिन बालमो
खुद सौदा सारूह
कर सौदो घर रामचा
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : अडै़ अटकते हैं; वित विŸा; सौदा अपना माल; सौदो बेचकर; रामचा घरेलू विविध सामान

भावार्थ : अपने सौदे (दारू) के लिए तो वह रंचमात्र भी नहीं अटकते, बेहिचक घर की किसी भी वस्तु का सौदा कर अपना काम निकाल लेते हैं।

अलंकार : अनुप्रास, यमक

He faces no hitch in order to buy his goods because unhesitatingly he can have it in exchange of any valuable household article.

94

कदैइ किणि हारै नहीं
घणचत्तर मारूह
चित व्है पड़ै कलाळ घर
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : घणचत्तर चतुर सुजान; चित पटखनी खाकर;

 

भावार्थ : यों तो वह इतने समझने हैं कि कभी किसी मामले में नहीं पिटते। पर यह जांबाज उस्ताद कलाल के घर तो चित हो ही जाता है।

अलंकार : अनुप्रास, व्याज.स्तुति, बिम्ब, एंटिथिसिस

टिप्पणी : (1) गांवों में प्राय: कलाल का घर व दुकान एक ही होते हैं।

(2) चित .पट होनाकरना अखाड़ा परम्परा की षब्दावली है।

My clever spouse can never be beaten in any game of life but at the liquor-shop he can be seen lying supine as if defeated.

95

करै कलाळां कातरîा
खबर न रै मारूह
चांदी रा जरबा खमै
पिउ पियै दारूह


षब्दार्थ : करै करते हैं; कातरîा हजा़मत; रै रहती है; जरबा जूते; खमै झेलते हैं;
भावार्थ : मेरे उन मिजाजी ढोला को तो इसका भान ही नहीं रहता कि षराब.विक्रेता अपने व्यवसाय में उन्हें कैसे ठग रहा है और वह पी.पी कर कितना आर्थिक नुकसान भुगत रहे हैं।
अलंकार : वयणसगार्इ, अनुप्रास, ध्वनिसाम्य,
टिप्पणी : 'चांदी के जूते खाना मुहावरा है जिसका आषय है अपने धन की हानि सहना।
Alas ! He is least aware that the liquor-sellers are shearing him of his fleece and he suffers financial losses due to his addiction.

96

बरत.बडूल्या नैम तो
नह चूकै मारूह
जीमण में फळार लै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : बरत बडूल्या व्रत.उपवास; नैम दृढ़ता से ; जीमण भोजन; फळार फलाहार

 

भावार्थ : व्रत.उपवास के नियम तो वह निश्ठा से निभाते हैं। यहां तक कि उस दिन निराहार रहकर फलाहार ही लेते हैं, किन्तु दारू तो उनेज है ही।

टिप्पणी : वैश्णवी पर्वों पर व्रत.उपवास में षराब से पूर्णतया वर्जित है।

He observes religious rituals very scrupulously. On fasting days he takes only non-cereal eatables but does not miss his drinking sessions all the same.

97

रुत वळियां ब्रछ पांगरैे
जाणै संसारूह
मो घर नित उजड़îौ रहै
पिउ पियै दारूह


षब्दार्थ : रुत ऋतु; ब्रछ वृक्ष; वळियां लौट आने पर

भावार्थ : अनुकूल मौसम आने पर पत्रविहीन पेड़ फिर हरे.भरे हो जाते हैं, परन्तु दारू से उजड़े मेरे घर में उनकी बुरी आदत से कैसे खुषहाली आवे ?
अलंकार : अनुप्रास, यमक

It is well known that leafless trees become lush green in spring but my house is an exception, which can never prosper after having been ruined.

 

98

थाकूं दै घर थेगळîां
ढसतो सुधारूंह
वै ढूकै ढूंढो करै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : थाकूं़ थक जाती हूं; थेगळîां घर के छपरे को बचाने के लिये अस्थार्इ सहारा; ढसतो़ गिरते; ढूकै़ जुट जाते हैं; ढूंढो़ टूटा.फूटा घर

भावार्थ : अपने जूने.जुगादू पुष्तैनी घर को गिरने से बचाने को मैं तो जहां.तहां बलिलयां खड़ी कर सहारा जुटाती हूं, पर उधर वह मेरा जोड़ी का जला अपनी कुल कमार्इ मदिरा में स्वाहा कर इसे खंडहर होने से रोकने में नितांत बेखबर है।

अलंकार : वयणसगार्इ, अनुप्रास

Using temporary poles I check the collapsing house from falling but his antagonistic activity adds to the ruin of the house.

99

सळियो घर अळियो करै
(म्हारा) घणसळिया मारूह
हंू रळका.रळका मरूं
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : सळियो साफ.सुथरा; अळियो कचरायुक्त अर्थात बुरा; घणसळिया बहुत अच्छी छवि वाले; रळका सूप से अनाज साफ करने की प्रक्रिया

भावार्थ : साफ.सुथरी छवि वाले घर को मेरे उन चतुर.सुजान पति ने पी.पी कर धूमिल कर दिया है। इधर मैं इसकी इज्जत.आबरू की रक्षार्थ कड़ी मेहनत से मरी जा रही हूंं।

अलंकार : यमक, व्याज.स्तुति

My clean-tempered husband is sullying the reputed house. On the other hand, I am killing myself winnowing it but in vain.

100

स्याणो म्हारो साहिबो
भोळो भरतारूह
कुबध हेक म्होटी करै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : स्याणो़ सयाने; साहिबो़ पति; कुबध़ अपराध; म्होटी़ बड़ी, बड़ा, बहुत

भावार्थ : यों तो वह अत्यन्त षिश्ट और समझने हैं। बस ले .देकर एक ही अनचाहा काम उनसे होता रहता है कि अनाप.षनाप पीते.पिलाते हैं।

अलंकार : वयणसगार्इ

There can be no two opinions that my consort is simple and sweet-natured. Only, he perpetrates the undesirable blunder repeatedly.

101

हूं संवरूं जगदंब नै
मद मेटण सारूह
वै जगदंंब रै धार दै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : संवरूं श्रद्धापूर्वक स्मरण करती हूं; जगदंब जगज्जननी महाषकित; मद मदिरा; धार दै दारू का भोग चढ़ाते हैं

भावार्थ : मैं तो भोलीभाली आए दिन अपनी इश्ट जगदम्बा का स्मरण करती हुर्इ यही अरदास करती हूं कि हे मां, इस दुखदार्इ दारू को जड.़मूल से नश्ट कर दें, किन्तु उधर वह तो पीते वक्त सर्वप्रथम उसी महाषकित को श्रद्धापूर्वक धार देकर षुरू हो जाते हैं।

टिप्पणी : राजस्थान में यह परम्परा है कि पीने हेतु बोतल खोलते ही पहले.पहल दीवार पर देवी के अव्यक्त स्वरूप की कल्पना कर धार के रूप में दारू चढ़ाया जाता है, तब पीना षुरू होता है।

I remember Goddess Jagdamba in acute agony for the extinction of all alcoholic drinks but what an irony! He, while starting, offers the first sip to the very goddess.

102

हंू नित दुरगा पाठ कर
दारू दुख टारूंह
वै दुरगाजळ नांव दै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : टारूंह टालने हेतु; दुरगाजळ पीने वाले लोग दारू का महत्व दर्षाने हेतु इसके लिए 'दुर्गाजल जैसे श्रद्धायुक्त षब्द का प्रयोग करते रहे हैं

भावार्थ : दारू की अनगिन दिक्कतों से घबरार्इ हुर्इ मैं प्रतिदिन दुर्गापाठ से इसके दु:खों के निवारण का अनुश्ठान करती हूं, पर वह तो इसी को दुर्गाजल कहकर मेरी आस्था की मखौल उड़ाते प्रतीत होते हैं।
अलंकार : अनुप्रास

I sing a hymn to Goddess Durga in order to get riddance of the misfortunes of drinking but ironically he calls it Durgajal and drinks.

103

ठाला.भूला भूलग्या
करतब परवारूह
घर कलाळ दूणा सजै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : ठाला.भूला गैर जिम्मेदार; भूलग्या भूल गये; करतब कत्र्तव्य; दूणो दुगुना; सजै सहयोग करते हैं

भावार्थ : मेरे पतिदेव अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के प्रति तो रंचमात्र भी जवाबदेह नहीं हैं तथापि कलालों के यहां तो उनके हर काम में दुगुनी निश्ठा से जुटे रहते हैं।

अलंकार : अनुप्रास

This negligent gentleman forgets his family responsibilities, but leaves no stone unturned to assist the bartender.

104

हंू किणरी ओळूं करूं
कुण नै चितारूंह
सेजां सुख सपना हुवा
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : ओळूं याद; चितारूंह चित्त में लाऊं; सेजां सेज के;

भावार्थ : मैं किसे याद करूं और किस को चित्त में लाऊं? दाम्पत्य जीवन के सारे सुनहरे.रुपहले सपने तो जैसे उनके पीने.पिलाने में सपने ही रह गये हैं।

अलंकार : अनुप्रास,
Whom to remember and whose memory to cherish ? All the joys of our wedded life have been drowned in his addiction.

105

म्हो गळ हिक हथ मेलनै
सौगन लै मारूह
दुहु हाथां मनवार दै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : म्हो मेरे; गळ गले पर; हथ हाथ; मेलनै रखकर; सौगन सौगंध; दहु दोनों; मनवार मनुहार;

भावार्थ : जब.जब जि़क्र चलता है, वह मेरे गले पर सहज भाव से एक हाथ रखकर न पीने की षपथ लेते हैं लेकिन पीने के समय दोनों हाथों से ससम्मान अपने साथी पियक्कड़ों को दारू की मनुहारें देते इतराते रहते हैं।

अलंकार : एंटिथिसिस, पारम्परिक

टिप्पणी : (1) षपथ लेते समय सामने वाले के गले पर हाथ रखकर उसे पुख्ता बनाने की परम्परा है।
(2) मनुहार देते समय अगले के सम्मानार्थ प्याले को दोनों हाथों से आफ़र किया जाता है।
Very often he swears not to drink by putting his hand on my neck but soon at the time of drinking bout feels proud in offering drinks with both hands to his bottle-mates.

106

कोइक सुणो रे मलक रा
नाह न नजराऊह
बोतल रा बटका हुवै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : कोइक कोर्इ तो; मलक संसार; न को; नजराऊह नजर लगाओ; बटका हुवे टुकड़े हो जाएं

भावार्थ : हे दुनिया के बुरी नज़र वालों, मेरी महापीड़ा को सुनकर तुम में से कोर्इ तो मेरे स्वामी के पीने पर कुदृशिट डालो ताकि इस सत्यानाषी बोतल का काल कटे।

अलंकार : वयणसगार्इ, अनुप्रास, ध्वनिसाम्य,

टिप्पणी : इस दोहे में विष्वव्याप्त नजर लगने की 'सुपसिर्टषन का संकेत है। भारत में तो बच्चे के मुख पर काला ढिठौना और घरखेत में काली हंडिया टांगा जाना इस लोकधारणा को पुश्ट करता है।
I keenly desire someone who can cast an evil eye on his so-called enjoyable drinking so that this wicked bottle may get shattered.

107

भलो भोग चिमटी भरîो
नह झेले मारूह
बोक मांड गुटका भरै
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : भलो भोग खाने.पीने का पौशिटक पदार्थ; झेलै अंगीकार करना, लेना; बोक मांड बिना पात्र के दोनों हाथों को प्यालानुमा बनाकर पीना; गुटका मोटे घूंट;

भावार्थ : मेरे उन मौजिन्दड़ पति का कैसा विलक्षण स्वभाव है कि चिमटी भर पौशिटक वस्तु से तो मुंह मोड़ते हैं लेकिन बिना प्याले बोक मांड कर दारू गुटक जाते हैं।

अलंकार : वयणसगार्इ, अनुप्रास

He is reluctant to accept even a pinch of anything nourishing but how funny that he can drink by making a bowl of both his hands.

108

डोरा.डांडा मादळîा
ताबिज मंत्राऊंह
वै कीनै बांचै नहीं
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : डोरा.डांडा टोने.टोटके; मादळîा.ताबिज़ धातु और वस्त्र.विषेश के टुकड़े में अभिमंत्रित बांह .गले में पहने जाने वाला यंत्र; बांचै परवाह करना;
भावार्थ : मैं तंत्र.मंत्र में अटूट विष्वास रखने वाली बेचारी दारू के दु:खों से मुकित के लिये विविध टोने.टोटके तक करवाती रहती हूं परन्तु उनके लिये ये सब भी निश्प्रभावी ही सिद्ध होते हैं।

I solicit sorcerers to cast spells for the expulsion of my griefs but all prove ineffective.

109

बडेरा आंबा बिकै
महुड़ी रस सारूह
ऊगा घर में आकड़ा
पिउ पियै दारूह

षब्दार्थ : आंबा आम के पेड़; रस षराब; आकड़ा आक के पौधे;

भावार्थ : पूर्वजों की दूरंदेषी और पुरुशार्थ से लगाये गए आम के बेषकीमती वृक्षों को दारू के लिए कोडि़यों के भाव बेच कर उन्होंने घर को नेस्त.नाबूद कर दिया है।
अलंकार : वयणसगार्इ, अनुप्रास

टिप्पणी : राजस्थानी कहावत 'आकड़ा उगना घर के बर्बाद होने का धोतक है।

For his liquor he has sold away the valuable ancestral mango trees, which had been a perennial source of income and reputation.

110

बासी.कूसी बांटनै
बाळक बोळाऊंह
पैल फूल री धार रो
पिउ पियै दारूह

 

षब्दार्थ : बासी.कूसी रूखा.सूखा; बोळाऊंह बहलाती हूं; पैल फूल री धार षराब बनाने की प्रक्रिया में सबसे पहले प्राप्त होने वाली किंचित मात्रा में तेज षराब
भावार्थ : जहां मैं ठंडे.बासी खाने से भूखे बाल.बच्चों को बहलाती हूं, वहीं मेरे सैलानी भंवरे वह तो पहली धार का उम्दा तेज दारू का लुत्फ उठाते हैं।

Whereas we live upon very meager means, he enjoys the strongest drinks.

111

मर खूटै ओछी उमर
घर खूटा मारूह
झुर.झुर जमवारो खुटै
पिउ पियै दारूह


षब्दार्थ : खूटै खत्म होना; ओछी उमर अल्पायु; जमवारो जीवन;

भावार्थ : यही अंजाम होता है दारूखोरों का कि वे अल्पायु में ही मर.खपते हैं अपने सारे घर को पलीता लगा कर। और छोड़ जाते हैं उन निस्सहाय मेरे जैसी पतिनयों को जो रो.रो कर जिंदगी गुजारती हैं।
अलंकार : ध्वनिसाम्य
Here lies the tragic end of this episode that the drunkards die an early death after ruining everything and leave behind the widows to lament till death.

पदानुक्रमणिका

प्रथम पद पृश्ठ

अड़ै न वित बिन बालमो
आंख छतां आछो बुरो
आंगळ.आंगळ धर बिकै
आलीजो भंवरो अली
इण घर बजता मंग्गळी
उडकूं आधी रात तंइ
ऊजाड़ा ढांढा जुंहि
कंथ कमावै मोकळौ
कदैइ किणि हारै नहीं
कर खाली खुल्या भरै
करै कलाळां कातरîा
कलाळां रोटîां सिकै
कलाळी जाजां करै
काळ बिखै हूं बापड़ी
किण घर जा सुख सांस लूं
कीं ताळा कूंची करूं
कीं पीसूं पोऊ ं क ंर्इ
केसर.किसतूरी पियै
कै कलाळ कै डागदर
कै तो होळी रै लगै
कोइक सुणो रे मलक रा
क्यूं प्रभु तैं समदर मथ्यौ
खलां रा सिर खोलणा
ख्यातां इण घर री कषी
गांव गोठ पाळा हलै
गाय.भैंस धीणा कठै
गुमाना ढोला अरे
घर ग्रस्ती री नाव या
घर जसड़ो यो घर हतो
घर जूतम.पैजार व्है
घर में नह मूठी चणा
घरै न गोळîो राबड़ी
चढा पैग रौळा करै
छतिखोवण खावंद क्रतब
छानै.छानै सीखिया
जला.जंवार्इ सासरे
जाजम बैठक जात में
जान.फौज जावै सही
टूटîो तन मन टूटियो
ठाला.भूला भूलग्या
डोरा.डांडा मादळîा
थर.थर कलाळां लुटै
थाकूं दै घर थेगळîां
दारूबंदी टोटका
देषी परदेषी पियै
धण जोबन जातां छुटîा
धव घर आवै काग उड
धव भीड़ू मिलिया अ षा
धोबी पट धोवै कइ्र्र
नषै.पतै दसखत करै
नषै हथ.पग टूटिया
नह मरणो नह जीवणो
नाहक वीरा लावियो
पग नेवर रुण.झुण कठै
परभाते लै आखड़ी
पाड़़ौसी मंजलां चढै
पी खाटîो खाटा हुवै
पी प्याला काला हुवै
पैल जलम म्हूं कीं करîौ
प्याली बाच्या देवणो

बंद करै घर रा खरच
बडेरा आंबा बिकै
बरत.बडूल्या नैम तो
बात.बात म्हूं बापड़ ी
बाप बणै राजी हुवै
बासी.कूसी बांटनै
बिन पत फ ळण्या रूंखड़ा
बेटा अणभणिया रहै
बोतल कज बेटîां बिकै
बोतल तणा कड़ाव में
बोतल नठै न धव नटै
बोतल नह बाळै बलम
बोतल सूं रंच न हटै
भरियो घर खाली करै
भलो भोग चिमटी भरîो
भाटो.भाटो देव कर
भोपा औतरतां लखां
मर खूटै ओछी उमर
मेंहदी बिरथा मांडणी
मो किसमत रोणो लिख्यौ
मो सुहाग फजिती अषी
मौत.मरण पाळै नहीं
म्हां जसड़ी धण मोकळी
म्हो गळ हिक हथ मेलनै
रंग भीनी धण छोडनै
रंगै भी ंतड़ा मोकळा
रम्म उडै बिस्क्यां उडै
रामा.षामा किण कदै
रुत वळिया ब्रछ पांगरैे
रोज.रोज या गत बणै
लंक लुटार्इ हेक दन
लाखीणो मो साहिबो
लाडा रै मूंडै लग्यो
लूण मरच री साबली
लेणो लेता नह मुचै
वरद बण्यो रै रावळौ
सळियो घर अळियो करै
सास दुखी अर बहु दुखी
सूधो घर ऊंधो करîो
सैंजोड़ै तीरथ करां
सैं धण ओढे लैरिया
स्याणो म्हारो साहिबो
स्याळै चौमासे चलै
स्वाद स्वाद री नुकल रो
हाथ पकड़ लाया म्हनै
हिक न टीपरîो घी घरै
हुक्के प्याले कुण कषो
हंू किणरी ओळूं करूं
हूं तो गंगाजळ पिऊं
हंू नित दुर्गा पाठ कर
हूं संवरूं जगदंब नै
हंू सूखन कांटो हुर्इ

कवि - एक संक्षिप्त परिचय

प्रख्यात बगड़ावत लोकमहागाथा के गुरू रूपनाथ बाबा की नगरी तथा पुरातत्ववेत्ता पùश्री मुनि जिनिवजय जी की जन्मस्थली रूपाहेली (मेवाड़) में सन 1934 में जन्मे प्रो. देवकर्ण सिंह की षिक्षा.दीक्षा उदयपुर में हुर्इ और वहीं भूपाल नोबल्स पी. जी. कालेज से 40 वर्श के दीर्घकालीन प्राध्यापन के पष्चात सेवानिवृत हुए।

उल्लेखनीय है कि प्रो. सिंह के दादा ठा. चतुर सिंहजी ने अब से कोर्इ सौ वर्श पहले राठौड़ों की प्रसिद्ध षाखा अपने मेड़तिया कुल का इतिहास लिखा तथा मीरां पर भी जयपुर के श्री हरनारायण पुरोहित के साथ षोध किया। अपने दादा के संस्कारों से प्रभावित होकर कवि की भी लेखन के प्रति अभिरुचि हुर्इ। खासकर दोहा छंद में आपकी रचनाएं हैं।

कवि द्वारा पन्द्रह सम्पादित कृतियां हैं जिनमें लोकसंत बावजी चतुर सिंहजी उदयपुर का सम्पूर्ण वा³मय स्मरणीय है। विविध पत्र.पत्रिकाओं के सम्पादन का अनुभव भी उन्हें प्राप्त है। कवि की अन्य अप्रकाषित रचनाओं में 'चत्रगढ हेला देय, 'हकीम खां सूर, बिरखा अर बिजोगण, 'विनोबा भावे और फुटकल रचनाएं हैं, जो यत्र-तत्र पत्रिकाओं में छपी हैं, रेडियो.टीवी पर प्रसारित हुर्इ हैं तथा कवि.सम्मेलनों में सराही गर्इ हैं। स्थानीय मंचों पर उन्हें राश्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर, सोहन लाल द्विवेदी, डा. षिव मंगल सिंह 'सुमन तथा डा. महादेवी वर्मा के साथ कविता.पाठ करने का विषिश्ट गौरव प्राप्त है।

            कवि ने नागपुर, मारिषस और दिल्ली में आयोजित हुए विष्व हिन्दी सम्मेलनों में प्रदेष प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया । वह राजस्थान साहित्य अकादमी (उदयपुर), राजस्थानी भाशा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी (बीकानेर) तथा साहित्य अकादेमी (नर्इ दिल्ली) के सदस्य रह चुके हैं। वह रेल्वे बोर्ड हिन्दी परामर्षदात्री समिति के भी सदस्य रह चुके हैं और विविध साहितियक सम्मानों से गौरवानिवत हैं।

 

 

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