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राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

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अयोध्या चरित्र

चार ही भाई परण'ने पाछा अयोध्या पधार्या। वणां दिनां कैकय देश रा पाटवी कुंवर भी अयोध्या में आया थकां हा। ई, महाराज दशरथजी रा शाला' ने वचेट राणीजी रा भाई हा। ई, चारही भायां ने अणां रे अठे बुलावाने आया हा। पण वचेट राणीजो कियो' के भाई म्हारां राम-लक्ष्मण ने तो नराी दिन बारणे' म्हारे शूं छेटी रे'तां व्हे गिया है। याही व्हे'तो भरत-शत्रुध्न ने भले ही ले जावो। जदी वी दोई भायांने जनाना सेती आपणे कैक्य नाम रा देश में ले गिया, ने राम-लक्ष्मण दोही भाई अयोध्या में हीज हा।

एक दाण राजा दशरथ रा मन में विचार व्हियो' के चार ही भाई भगवान रो दया शूं परण गिया' ने वउवां भी सब तरे शूं शोभती थकी आय गी' ने बालक भी श्याणा ने शमझणा व्हे' गिया। अबे आपणी वृद्ध अवस्था यागी है। अणी शरीर रो कई भरोसो नी, सो अबे तो एकांत में बैठ भगवान रो भजन करणो चावे' ने राम रे शारां रो ही मोह है' राम भी बड़ो लायक ने समझहो है, जीशूं अबे राज-काज राम ने सूंप देणो चावे। यूं विचार ही में राजा सारां री शल्ला लीधी तो सारां ही कियो' के वाहवा, वाहवा आपने जी विचार व्हे'है, वी आछा हीज व्हे' है। जदी तो राजा सब सामग्री राज-तिलक री झट भेली कराय लीधी क्यूंके आछा काम में देर नी करणी। अणी वात ने जाण शुणी, वणी ही राजा ही हजार-हाजर मूंडी शूं वाहावाही कीधी और जगा-जगा धोल मंगल व्हेवा लागा। अयोध्या पुर ने तो लोग आनन्दपुरी केवा लाग गिया। क्यूंके वठे आनन्द पे आनन्द आदा लागा। यूं जगा-जगा गाजा-बाजा व्हे'ता हवेल्यां और मेहलां ने धोलतां ने हाथी-घोड़ा ने शणगांरता। जगा जगा उच्छव व्हे'ता देख कणई ने सुख नी व्हेवे ? क्यूंके राजा रो सुख, सब आपणओ हीज सुख समझता हा। केणावत में ही केवे है' के संपत में सारा रो ही शीर है। पण सारा ही सरीखा नी व्हे' है। वठेई ज एक मंथरा नाम री वचेट राणीजी री डायचवाल डावड़ी ही। वा अवस्था में भी नरी ही' पीड्‌यां सुं कैकय देश में वा रे'ती ही। वचेट राणीजी रे मां रे वा बड़ी राजीपा री ही। वाणां आपरी बेटो रो भलो सुभाव जाण, अणी ने डायचे देदीधी ही। बचेट राणीजी, बालक पणां में कधी-कधी अणी रा बोबा भी चूंखता हा। जीशूं भी ई'रो घमों मान हो। याभी अणीमा मन में आपने महाबुद्धिमान जाणती ही।

पण अयोध्या मं अणी ने आपणी बुद्धि देखावा री तक ही नी मिलती ही। क्यूं के आखी अयोध्या में धर्म ही धर्म हो, अधर्म रो तो नाम भी अयोध्या री नीचजात ने भी नी सुववातो हो। मथरा बाई री अक्कल धर्म री वातां में खोड़ी व्हे' जाती ही। पण अधर्म में तो हरण री नाई ठेकड़ी देने दोड़ती ही। आपरी बुद्धि में आची वातां मे शूं भी खोचटाई हेर लावा री शक्ति ही। पण अयोध्यावासी अणी रा अश्या सुभाव ने आछो नी समझता हा। अणीरी वात पे कोई कान ही नी मांडतो हो। ईरो ई ने पूरी अमूझणी रे'ती ही। अयोध्या में रे'णो ई ने शुँवावतो ही नी हो। मेल राखमओ, एक-एक रा दुख में साथ देणो, एक-एक री खम लेणी, सांच बोलणो, थोड़ो बोलणो, मीठी बोलणों, धर्म पे चालणओ' ने ईश्वर रो डर राखणो, ईज अयोध्यावासियां रा शुभाव मंथरा बाई ने नी कटता हा। क्यूंके अणां ने ढोला-फोला विना नी सुहावतो हो। अणी शुं आप एकला ही बेठा-बेठा गड़ा-गूंथ्या करता हा। पण अणांरी दाल कठे ही नी गलती ही। आज चानणी पर शूं अणी अयोध्या री झल-मल देखने विचार्यो, के यो फेर कई उच्छव आयो। यूं विचार नखेही बड़ा राणीजी रा धायजी री हवेल ही, सोवणांने पूछ्यो के काओ धायजी ! आज फेर अयोध्याने क्यूं शणगार रिया है ? ने घर-घ में कणी वात रो उच्छव व्हे'रियो है ? कौशल्याजी रा धायजी बड़ा शूदा-शादा हा। वणां कियो मंथरा बाई थांने खबर ही कोयन! थांणां भाणेजजी रे काले राजतिलक है। थें भी वणाव करो। अबे बालकां रा राज रो सुख देखां' ने आपांरी भी अवस्था आयगी, सो आपां भी भगवान रो भजन करां। परमात्मा आपांणा जशया सुख शक्ल ने ही दीजो। ई धायजी दूजभाव नी समझता हा। पण मंथरा री तो तीन लोकक शूं ही मथुरा न्यारी ही, सो या शुणता ही वी'री छाती में तो कूअड़ी पड़गी, ने बोली' के म्हारा भाणेजजी तो अठे-कठे है ? वाह, यूं कई ठोलां वावो हो ! राम ने राज देता दीखे है। जदीज यूं वध-वध ने वातां कर रिया हो। म्हारा भाणेजजी रा राज री शुणता तो अबार कूलकी जश्यो मूंडो व्हियो व्हे'तो। कौशल्याजी रा धायजी कियो, यूं कई करो मंथरा बाई ! कंई थांरने ने म्हारो दो है ? म्हूं तो तीनही राण्यां में ने चारही भायां में, ने चारही वउआंने में भेदभाव नी समझूं हा। जदी तो मंथरा कियो' के थें नोज समझो बाई। यातो आखी अयोध्या में एक म्हने हीज ढोली रो धोड़ी कर राखी है। पण व्हियो कई ! व्हियो कई ! यूं वी धायली पूछवा लागा। अणां सूधा धायजी ने खई खबर, के शूधी वात रा भी खोड़ीला ऊंधा अर्थ हीज करे है। वमी वगत तो मंथरा कियो, नी म्हेंतो मोह री रोल कीधी हो। दू्‌ज्यूं थां कई केवो, यां वात तो है हीज ! के राम भरत में कई फरक है ? कोई दो घड़ी पे'ली जन्मे, ने कोई दो घड़ी पछे। सूधा धायजी, अणीरी सूधो ही अर्थ समझ, राजी व्हे' गिया। पणई'रे तो रोवा में ही राग हो। वणी जाण्यो, राम ने राजा व्हियो' ने, तो रावा पावगी। यूं जाण वा सांतरी-सांतरी वचेट राणीजी नखे बंध्ये पेट गी'। वणी वगत वी राणीजी पोढ्या हा। पण अणीं जावतां ही जंझेड़ ने जगाय दीधा ने कियो, वेंडी राणी दिना श्याम री बाई ! ऊठ ऊठ ऊठ थारे ऊपरेतो वीजली पड़ी। या कई सुवारी वगत है। म्हारी वात ने ती थू गनारती ही नी ही, पण देखले अब वाही वात आगे आई। भला म्हे ं धोला लीधा सो म्हां में भी कईक तो अक्कल व्हे'गा। कालरा दिन री छोरी वचे ही तो गई-गुजरी नी व्हेंऊंगा। पण थारे भावे तो सोई कीड्यां एक दर में गी। वचेट राणीजी आलश मरोड़ ने हुमक कीधो, कई मंथरा जीजी ! थें भांग तो नी खाधी है ? थारो यो कई शुभाव है, कठे तो वादल ने कठे वीजली। म्हने तो थारी जीभ हीज वीजली जशी दीखे है, ने माथा रा केश धथोला वादला जश्या है। नींद तो नी निकलावा देवे, ने आपरी वात री मठावण कर री है। थे कई तो कियो, ने कई ागे आई ? जदी वणी कियो, कई ओदशा थने खबर ही नी है। काले राजा, राम ने राजा तिलक दे है। शेर में घर घर में या चरचा शुणने आ ई हू और ईरो उच्छव आखी अयोध्या में व्हे'गियो है। जदी तो राणींजी घमा राजी व्हिया। सांची है या वांत ! सांचो है या वात ! तो थें घणी आछी की। ले म्हूं थने यो चन्द्रहार राजी व्हेय ने देवूं हूँ। अणी रा उजाला शूं अंधारा में भी थारो मूंडो दीख्यां करेगा। जदी वणी चन्द्रहार ले लीधो ने कियो के बाईशा म्हूं तो आपने भोला हीज जाणती ही पण निकल्या आप घणा डावा। व्हो' क्यूं नी, राजारी बेटी, ने राजा री राणी, ने अबे अणी बुद्धि शुं तो राजा री मां वाजोगा। पण अबे आपने कई करणो चावे, सो भी विचार लां। जदी राणीजी कियो, थूं ही केवे नी जीजी ! कई करणो चावे ? म्हारे तो राम रो राज राजतिलक शुणने ही हिया में हरष नी मावे। थें आछी बधाई दीधी और भी थूं मांगे सो देवूं। अणी बधाई में देवू जशी तो म्हने कई चीज ही नी दीखे।
जदी तो मंथरा बोली, आमो बाल थारा अणी देवाने और अणी बधाईने। म्हूं तो जाणी, म्हारी वात समझ गी दीखे है'। ने म्हारा श्यमखोर-पणारी परख कीधी दीखे है। यूं के'ने वमी चन्दहार में भी छेटी फरणाय दीषो ने होबड़ो चढ़ाय ने भोला राणीजी कैकयीजी रे रीश करने देखवा लागी ने ढलक-ढल आंशू पटकवा लागी। जदी राणीजी विचारी, वात कई है ? या यूं क्यूं करे है ? राम रो आछो नी सुहावे। अश्यो मनख भी संसार मे व्हे' है। या अणां राणीजी ने खबर नी ही। अणां पूछ्यां मंथरा जीजी, थूं यूं क्यूं रोवे है ? म्हारी पतोत तो कीनेह ीदुखी नी देखणी आवे। थूं रोवे मती, थं केवे नी. म्हने तो थारी वात में कई खबर ही नी पड़े। जदी तो जाणे जगावारी घढ़ी झरणाच करे ज्यूं वणी री जीभ बोलवा लागी' ने वचेट राणीजी चतराम रा व्हेज्यूं वणीरी वातां शुणवा लागा। ज्यूं ज्यूं, णीरी जीभ मूंडा में फिरवा लागी यूं ही यूंराणीजी रो मन फिरवा लागयो। ज्यूं उड़ावा वाला रा हाथ रे साथे-साथे पतंग फिरे यै, यूं ही वीरे साथे साथे राणी रो मन फिरवा लागोय। ज्यूं डाकण दूजी ने भी म्हूं जशी थूं के ने आपणे जशी ककरले है। यूं ही अणी रांड जाणे राणीपे कामण करलीधा। शांची है, खोटी वात ये कान मांड्याने जाण लेणो के अबे खोटा दिन आय गिया। पेली हियो फूटे है, ने पछे करम फूटे है। अश्या आछा धर्मवाला राणीजी भी जदी यूं भगरायां लाग गिया, जदी दूजाँ रो तो केणो ही कई। वणीकियो, देखो बाईशा, आज अठे अयोध्या में आपरो कोई नी है। सब आपरा दुशमणां री कानी व्हे'रिया है। समझणां रा कपट री पछेखबर पड़े है। म्हूं बूढी हूं। आपरो अन्न खातां-खातां पीढ्यां वीतगी है। दूखे जदी दकेणी आवे है। कड़वी बोली मायड़ी ने मीठा बोल्यो लोग। म्हूं अबे मरवा चाली हूँ, एक शाड़ी के दो शाड़ी फेर फाडूंगा। पण आगे जाय ने भगवान ने जवाब देमओ है। मानणो नी मानणओ आपरे हाते है, पण ्‌हूं तो म्हारे के ने दोष बारणे परी निकलूं। काल-कलांतर आप हीज केवोगा, के थूं तो श्यामखोर ही, थने तो केणो चावतो हो। साँप तो परो जावे, ने पछी रींगटी कूटवा शूं कई व्हे। आप केवो हाो के म्हारी पती कणी रो ही दुख नी देखमई आवे, पण काल रे दिन धोया मूंडा रो बालक भर,त ,ने वींरी वऊ वनी-वनी में वलख वलख करता फिरेगा। जदी कूंकर देखमी आवेगा। काले कौशल्या रो पीशमओ आपने पीशता देख, ने राम-सीता रो गोल पणो, बेटा, ने बेटारी वऊने करता देख, आपने कश्योक आछो लागेगा। अणी आपरी खोटी मत शूं आपरा पीर वाला भी दुख पावेगा। आपरी मुरजी व्हेतो आप अबाणूं ही कौशल्या ने सुमित्र रा ठामड़ा मांजो ने पालो नाखो। पम बाबा ! महां शबांने क्यूं डबोवे ही ? धोया मूंडा रा बेटा, ने बेटा री वऊ री तो, बापड़ी रागशणी व्हे' तो वींने ही दया आवे है। ई तो केवा री वातां है, के म्हारे भरत राम वच्चे ही वत्तो है। थूं भोली बालक, अणां छल-परपंचा में कई समझे। नीतो थूं पतवाण ने देखले नी, के थने दो वरदान, राजा देणा कीधा, सो एक वरदान तो यो मांग के, भरत ने राजतिलक व्हे' जावे, ने एक यो मांग के' राम साधूरी नांई चवलदा वरष तक वन में रेवे। पछ े सबरी थने चाशणी दीख जायगा, के' भरत में, ने राम में भी कतरो फरक समझे है। मूंडे ज्यूं ही मन में व्हे'ती ती या वात थारा शूं क्यूं छुपावता। अबे जी म्हें कियो जणी में नाम भी कशर कीधी, ने कणीरो ही भरोशो कीधो, तो पछे तो थारी स्वयं ने पातल में कठेई ठिकाणो नी लागेगा। यूं वणी वणां राणीजी ने पढ़ाय दीधा। वा बालकपणां शूं कैकयी जी रो शुभाव जाणती ही सो रीश देवाय, डरपाय, ने भंगराय दीधा, ने छाने री छाने सब वात पक्की कराय, ने जे'रा रा बीज बाय, ने पाछी घरे परी'गी।

राणीजी ने तो भे'म ने रीश ागे सब वातां ऊंधी दीखवा लाग गी'। रांड मंथरा तो दाव लाग गियो. राणीजी विचारी, सांची है। संसार मे कोई कंडोई कोय नी। म्हूं जमां पे जीव छांटती ही वी'ज महारी जीव लेवा री घात में लाग रिया हा। आखर में आपणो व्हे' जोई काम आवे। दानो तो दुषमण ही कठे पावज्ये। सांची है, संसार ही अणी तरे'रो वण्यो थकी है, के जश्यो मन व्हे' वश्यो ही दीखवा लाग जावे है। थोड़ी देर पे'ली जणां वातां ने राणीजी आछी समझता है, वणांे ही खोटी समझवा लागगिया ने आपही आपरा मनमें अच्भमो करवा लागा। संगत रो गुणाव या.ा विना नी रेवे। धोल्या काल्य कने रे'ने रंग नी लेवे, तो भी लक्खण तो लेवे हीज'। अबे तो महाराजा दशरथजी राजगुरु वशिष्ठजी ने अर्ज कीधी, के राम सीता ने आज व्रत राखवा रो हुकम कराय देवावेने प्रभाते राजतिलक रा मोरत री भी वणांने कवाय देवावे, सो वणी वगत त्यार रेवे' सो मोरत सध जावे और भी जरुरी जरुरी सब प्रबन्ध कराय देवे। जद वशिष्ठजी सब प्रबंध कर करड्‌यो और श्री सीता राम ने भी सब वाकब कर दीधा।
पछे महाराज दशरथजी राते रावला में वचेट राणीजी अठे पधाराय। अणां वचेट राणीजी रे राजा रो मोह घमो हो। क्यूं के ई भोल ने नरेण हा, ने रूपाला भी घमआ हा पण कानां रा काचा घमा हा। आज राचा विवारी राम रे राजतलिक री राणी ने म्हूंहीज वधाई देवूंगा ने अणोज वासते सबां ने ना हुकम कराय दीधो के वचेट राणीजी ने कोी या खबर नी देवे। पण अणी वधाई ने तो मंथरा और तरे'शुं छानेरी छाने दे'ने परीगी। ईंरी राजने भी खबर नी ही। राजा ने देखने राणीजी होबड़ो चढ़ाय लीधो, ने ठलक-ठलक आखां में सूं आंशू पटकवा लागा, ने नीचो मूंडो करने राजा से सामा देखे ही नी।राजा बड़ा मोह शूं वणा राणी री मूंडो आपणा हाथ शूं ऊंचो कर कियोके हे प्यारी ! कलम सरीखी आखां वाली, थार ेआज कई व्हियो है ? कई कणी थारो अनादर कीधो है ? जदी राणी कियो म्हारो गेले चालतां कूण अनादर करे। भगवा नआपने विरंजीव राणी नी। फेर राजा कियो के हां, थांरा राम रो प्रभाते राजातिलक है। जणी री थी थाने खुशी करणी चावे। खबर है, के नी ? जदी राणी कियो, आपरी शुभ नजर शूं खबर है। के अणी चरचा ने आज पनरा-पनरा दिन व्हेवा आया है। जदी राजा पूछी या थांने कणी खबर दीधी। राणी कियो वायरे। राजा कियो वायरो कणी मूंडा में शुं निकल्यो तो व्हेगा। राणो कियो वायरो-वायरो एक हीज है। चावे मूंडा में शूं निकलो चावे रूंखड़ा में शूं. देखजे नी आप हीज पेली हुमक कीधो हो के दो वरदान मांगो. थां म्हारो आज जीव वंचायो है। पण वो भी रूंखड़ा पे वायरा रो शरणाटो व्हे' ज्यूंहीज व्हियो। वणीरो कई फल निकलयो। अबे तो म्हूँ मनखां रा केवा ने कोरी रूंखड़ा रा पाना री खड़खड़ाट ज्यूं समझवा लागगी' हूँ। क्यूं के मनख केवे और, ने विचार और, ने फेर करे ौर ही है। राजा कियो, ओहो ! आपने अणीरी रीश आयरी है या तो म्हांने खबर ही नी ह,ने रघुवंशियां रा केवा ने भी कोरो वायरो वाजे ज्यूं ही समझ लीधो है। वो तो थाहीज कियो हो के म्हारी मुरजी व्हेगा जदी मांग लूंगा नेनी मांग्यो तो ईंमें कशूर कीरो है ? थांरे मांगवा पे म्हें दरे कीधी व्हे' तो वात ही है। यूं मनखां ने झूंठो अपराध नी लगावणो चाबे। व्हानी अबेही मांगलो। फेर यूं भूल ही भूल में दिन निकल जायगा, तो रघुवंशियां रा वचनां ने आप फेर वायरा ज्यूं समझ लो'गा।
जदी तो राणी कियो के ाप साँच हीजो बोलो हो, ने अश्या शुद्द मन रा हो, ने आपरा केवा में, ने मन में फरक नी है, तो ज्यो राजतिलक री सब सामग्री राम रे वास्ते भेली कीधी है, वणी शूं भरत ने राजतिलक देवाय दीजो। या शुण राजा कियो, राम भरत में कई फक है ? पे'ली ही कियो व्हे' तो तो म्हूं राम रे तिलक री नी के'तो ने भरत री सबांने के'तो। राण ीकियो, ई छलकपट अबे नी चालेगा। पे'ली तो केवारी कई, म्हारे कान में भीय ावा त नी आवा दीधी ही। न ेहाल तो म्हारो एक वरदजान फेर बाकी है सो वोयो मांगू के प्रभाते राम साधू रो वेष कर दंडक वन कानी चल्यो जावे। या शुण' ने तो राजा नरी देर शुन्न व्हे' ने विचारी के राणी तमाशा करे है; के' कें म्हूं वेडों व्हे; गियो हूं, के म्हने यो सपनो तो नी आय रियो है। जतराक में तो फेर रीश करने राणी बोली, हे हरिश्चन्द्र रा वंश रा रघुवंशी महाराज ! आपरे, यूं ीज मूंड ज्यूं हीज मन में भी रे'ती व्हे'गा। अबार कौशल्या राणीजी रे केवा शूं तो राम ने राज, ने भरत ने देश-निकालो देवा ने त्यार व्हे गिया। वातो थूंके तो भीयआप चाटवा ने त्यार हो, ने म्हने जो वचन दीधा, जणां में ही धती आकाश ताकण पड़े है। यूं क्यूं नी व्हे। राम तो आपरी राणी रो बेटो है, ने भरतरत तो आपरो पाशावान्यों व्हेगा। राजा विचारी या कई बजराग पड़ी । अबे तो राजा ज्यूं-ज्यूं राणी ने समझाावे ज्यूं-ज्यूं वीने मंथरा री वातां सांती दीखे, ने वा ऊंधा हीज ऊंधा अरथ काढ़े। राजा जाण लीधी, के अबे राणी म्हारो जीव, के धर्म दोयां में शूं एक लीधां विनां नी छोडेगा। पेली भी अश्या वगत आया, जदी रघुवंशियां धर्म रे मूंडा आगे प्राण री परवा नी कीधी हो। म्हारा भी अबे सुखरा दिन व्हे गिया दीखे है। म्हेंअणी राणी शूं व्याव कई कीधो जाणे मौत ने हाथ पकड़ ने घर में लायो। यूं निराश व्हेने राजा जीव भूल गिया, ने पाछा चेत में आया, तो राणी कियोयूं भांडा री नांई ढबला करवा शूं अबे काम नी चालेगा। आपने नीति आवे जशी म्हने भी आवे है। आपा राजा हो, तो म्हूंभी राजा री बेटी हू। अबे जो प्रभाते तिलक रा मोरत में वनवास रो मोरत नी सध्यो, ओपर वचन गियो ने अणी में जतरा-जतरा आप छन करो ही आप जश्या रघुवंशियां रा पाटवी रो अपजश करावे है। अबे तो दो हीज वात है, के हां के ना।
राजा ने आखी, यूं छाती में कुमड़ो धशे जशी वांता शुणतां-शुणतां घमी दोरी वीत, ने अयोध्या वासियां ने, हरष में रात निकलता देर हो नी लागी. प्रभातेसब लोग वणाव करने में'लां में भीड़ री भीड़ राजतलिक रो उच्छव देखा ने भेला व्हे'वा लागा। कतराही सवारी देखावने चानण्यां पे एकठा व्हे'-व्हे' ने बैठ गियां। बाजरम ें भीड़ पड़वा लाग गी। घोड़ावाला घोड़ाने, ने रथांवाला रतांने, ने हात्यांवाला हात्यांने, शणगार ने ्‌तयार राख्या। तरे तरे रा वाजा वाजवा लागा, ने रंग राग व्हेवा लागा. मनख जाणता के ाज तो राजाघमा वेगा बारणे पधारेगा। पण नरोई मोड़ो व्हे गियो, तो भी राजा बारणे नी पधाराया।

जदी राजगुरु वशिष्ठझी, सुमत्र प्रादन ने कियो, प्रधानजी ! थे जाय खबर पाड़ो। हात तक राजा क्यूं नी पधार्या ? हाल तो काम नरोई करणो है, सो दरे व्हेवा शुं मौरतनी सध शकेगा। नी व्हे' थें अर्ज कर आवो सो तिलक रो काम प्रारम्भ करो। अणां प्रधान जी री रावला ने जावारी रोक-टोक नी ही, सो ई राववा में सूधा कैकाई जी रा मे'ला में परा गिया। वठे जायने राजाने देख्या, जाणे छे महीना रा मांदा व्हे' ज्यूं व्हे' रिया हा। सुमंत्रजी विचारी, एक रात ही रात में यो कई व्हे' गियो। फेर धीरज राख सुमंत्र अर्ज कीधी, राम रे राजतिलक रो मोड़ो व्हे' जायगा, अणी वास्ते झट हुकम व्हे'णो चावे। या शुण राजा तो कई भी नी बोल्यो, ने बोले कई, वणांरी पती बीलवारी करे तो भी बोलणो ही नी आवे, नै केवे तो केवे ही कई, हां भी कूंकर केवे, ने ना भी कूंकर केणी आवे। जदी तो राणी कियो, प्रधानजी,! एक दाण राम ने झट अठे बुलाय लावो। पछे ईरो जवाब पूछज्यो। प्रधानजी पड़ाख गिया, ने कई-नेक-कई राणी री कला दीखे है। पण राजा-राणी री खानगी वात ने पूछृ-ताछ सगत करण ठीक नी। यूं जाण वणा कियो, के विना राजा रा हुकम रे आपरा हीज हुमक शूं म्हे कोई काम कूंकर कर शकां। जदी तो राजा भ कियो, के हां। जदी तो समुत्रजी जायने रामचन्द्र भगवान ने बुलाय लाया। रामचन्द्र पधारतां ही पिता शूं मुंजरो कर कैकयी माता शूं मुजरी कीधो, ने पिता ने उदास देख राम ने बड़ो दुःख व्हियो, ने ओहो रात ही राम में अन्नदाता री या कई दशा व्हे गई, ने म्हने तो देखतां ही पिता सब काम थोड़ ने म्हारे शूं ही बातां करवा लाग जावे है। पण आज तो म्हारे सामा देखतां ही पिता ने लाज आवती व्हे' ज्यूं दीखे हैं, ने ई कंई हुकम करवारी करे है, ने आखां में शूं आंशू पड़वा लाग जावे है, या कई वात है। यूं विचार, हाथ जोड़ धर्मवाला राम कैकयी माता ने बड़ी लायकी शूं अर्ज कीधी। बाई ! आज अन्नदाता रा वर्णण कर म्हारी जीव कई रो कई व्हे' रियो है। कई म्हारे शूं अणजाण में कई कशूर तो नी व्हे' गियो है, जी शूं आज अन्नदाता म्हारे सामाही न्हाले है और म्हने देखवा शूं बड़ो दुख व्हे'तो व्हे' ज्यूं जणावे है। जदी तो नशरड़ी राणी बोली, राम, कशरू री कई वात है। कशरू व्हेतां की देर लागे है। विना स्वारथ कोई कणीरो ही कशून नी करे।पण स्वारथ में कशूर-वशूर री कूंण विचारे है। पण बेटा ! थूं बड़ो धर्मात्मा वाजे है। थारे वास्ते तो सारा ही केवे'के राम रे तो ध्म रो हीज स्वारथ है। आज दिन तक ही थे कशूरनी कीधो तो अबे कई करेगा। पण तो ीब थारा पितनने अणी वातरो भे'म है, के म्हारो कियो राम करे, के कणाजा नी करे। सो थूं वचन देवे के म्हूं न बदलूंगा, तो म्हूं थे सब वात साफ-साभ समझाय दूं, राजा तो कई भी नी केवेणा।

जदी राम भगवन हाथ जोड़ अर्ज कीधी, आपमें ने अन्न7दाता7 में कई फरक है। आप झट ही हुमक कराव में आवे, ने राम रा वचन तो सबही सांची हीज समझवा में आवे। की राम रे वासते राम रा माता-पिता ने ही यो भे'म है, के राम म्हारां के'णा ने लोप जायगा ? अश्यो भे'म माता-पिता ने पुत्र रो व्हे'णो ही म्हूँ आछी नी समझूं हूं। परन्तु केवा शूं नीं पण करवा शूंमनख री खबर पड़े है। आप राम ने हुकम कर रिया हो, या हीज विचार ने भे'म छोड़ हुमक करवा में आवे। जदी तो राजी-राजी सब वात राणी राम ने वाकब करदीधी, ने नाक रे शल तक नी चढ़ायो। या मां रा मूंडा शूं वात शुण फोरा'क मुलक ने अर्ज कीधी। बश अतरीक वात रे वासते पिता ने अतरी अबखाी पड़ी। म्हने तो राजा वच्चे वन घणो आछी लागे है। माता ! आप वरदान नी लीधा है, पण म्हारा पे कृपा कर'ने ई वरदान म्हने देवाया है। जो अन्नदाता ाराजी व्हे'म्हने वरदान मांगवारो हुकम करता, तोम हूं भी ई हीज दोही वरदान मांगत,ो पण अश्यो वर मांगवा शूं पिता वैराजी व्हे जायगा। यूं विचार, कई अर्ज नी कराय शक्यो हो। पण मां विना बालक री पीड़ा कुण ओलखे। म्हूं वन में जावोर सब बंदोवस्त कर'ने माता कौशल्या शूं मलने, पाछो जट ही हाजर व्हेऊ हूं. आप कई विचार नी रखावे। आप रो हुमक राम नीचो नी पड़वला देवेगा। यूं अर्ज कर राम पाछा माता कौशल्या नखे शीख मांगवा पधार गिया, ने या वात आखा ही शेहर में फेलगी। शुणतां ही सबां राम न मुरझाय गिया। बालक धराधरू राम रो वनवास शुण'ने रोवा लाग गिया। वनवास शूं राजा हा तो, केक तो राम ने केक कैकयी हा। अणा दोई मां-बेटारे सिवाय तो आखी अयोध्या में शोक ही शोक छाय गियो हो। एक मंथरा रो भी हियो हिलोला ले रियो हो। कोई के'तो यो काम कैकईजी तो नी करे।

कौशल्याजी भरत ने राजा देवारी कीधी व्हे'गा। कणी कियो, भरत ने तो बड़ा राणीजी वत्त गमए। पण रामने वनवसा क्यूं देवावे। कणी कियो, अणी धररो तो शंप शंसार वखाणे है, अठे या फूट कठा शूं घुशी। कणी कियो. ई काम बड़ा आदम्यां रो तो नी है, कणी नीच री या अक्कल दीख ेहै। कणी कियो,न ीच रे माथे कई शींगडा व्हे है, जो नीच काम करे तो ही नीच। कणी कियो, या रागशांरी चाल है, वणां रो जोर नी चाले, जदी वी आपस में लड़ा दे है। राम शूं तो वी खारा है। क्यूंके राम रो सुभाव वणां ने नी खटे है। राम रे राजतिलक व्हेवा शूं वणांरो कठेी दाव नी लागतो, जीशूं वमां कणी ने ही छाने-री-छाने शिखाय ने वचेट राणीजी ने भगराय दीधा दीखे है।

यूं 'जतरा मूंडा वतरी वातां' व्हेबा लागी। पण जठे देखो वठे या' री याही चरचा चालरी ही, ने कतराक तो शोक सूं ने रीश सूं वचेट राणीजी ने तरे' तरे' री गालां देवा लाग गिया हा। या खबर कणीक लक्ष्मणजी ने भी दे दीधी, सो वी झट दोड़ बड़ा भाई कने पधार गिया। वणी बगत राम भगवान कौशल्या मातारे नखे पधार शीख मांग रिया हा, सो लक्ष्मण जी अर्ज कीधी आपरे वन में जावणो चाबे। यूं वनवास तो आपमे वंश में कोई खोड़ीलो व्हे है वणी ने व्हिया करे है। भलां या कतरी अपजश री बात है, के आपने पिता वनवास देवे। आप कशूर कई कीधो है, ज्यो वनवास देवाने त्यार व्हिया है। ने फेर बड़ा अचंभा री वात यो या है, के विना ही अपराध आप खुद ही अपराध ीरी नांई वन में पधारवाने त्यार व्हे' गिया हो। राजा रा वचन ही पालणा तो है, तो राजा तो आपने राजा देवारो वचन देदीधो है। वणीने आप कूंक छोड़ शकोगा, ने वनवसा री आज्ञा राजानी नी है, यातो वचेट बाई कणीरे ही भंगाराव शूं के' रिया है, ने अणी ने मानवा शूं आपणा वचेट मांने जीवे जतरे कलंक लाग जावेगा। आपांने माता-पिता रो संसार में जश करावमो चावे,के बुराई ? अबार शूं ही राजा-राणी री बुराई आखी अयोध्या मूंडा भर-भर ने कर'री है, ने या वात फैरवा पे जो शुणेगा वोही यांरी बुराई हीज करेगा। सब सामग्री त्यार है हीज, पधारवा में आवे ने राजगादी पे तिलक करावा में आवे। देखां कणीरी मूंडी है, ज्यो लक्ष्ण रे ऊभां आपरे आड़ी देख लेवे। म्हारे चाकरी पूगवारो मोको तो यो अबार हीज आयो है। भलां बापरो राज छोड़'ने यूं कोई वनवास में परोजावे कई? वचेट बाई भलेई वणांरा पी'र री बतीशो चढ़ाय लावज्यो अथवा सबही एक कानी व्हे' जावो, ने ापरो चाकर यो लक्ष्मण एकलो ही सबांरे वासते घणओ। राजा वनवास करता-करता आपने कठीने वनवसा देवा लागगिया। आपणे तो ददाना व्हे' जी वन में रे ने परमेशर रो भजन करे है, तने बालक विद्या भणे है, ने जवान रैत रो पालण करने परमात्मा ने राजी कर है। सो आपरी नांई धर्म राख, ने दूजो कश्यो शींगजी है, ज्यो रैत ने पालेगा ? जो बड़ा भाई रो राज ले'ने राजा करेगा वणांरी धर्मात्मापणआं री चाशणी तो पे' ली ही दीखगी। आपरा एक सूधा सुभाव शं आखी संसार ने दुख व्हेगा। अबे म्हारी या अर्ज है, के केक तमो म्हारी वात मंजूर कण ीचावे, नी तो दूसरी या अर्ज है, के म्हने भी साथे लेपधारे। जोई दो ीवातां मजूर नी व्हे', तो पछे लक्ष्मण रो सुभाव विचार, ने जो मुनासिब व्हे', सो करावे। पछे म्हारो अपराध नी है। श्री राम भगवान बड़ी धरीप शूं हुकम कीधो, भाई ! ज्यो आपणो न्याव नी कर शके, वो औरां रो न्याव कई कर शकेगा। आपांने तो आपमओ कई धर्म है, सो विचार लेणो चावे। ई सब वातां थूं ठीक के'रियो है। पण अणां में राज लरो लोभ मिल्यो थको है। आपणो आराम जणी में मन चावे, ने ऊपरला मनशूं वीमें धर्म'री कल्ली करणी, तो एक तरे'रो छल है। ने म्हूं जाणूं हूं के अशी वात तें म्हारा मोह ूसं म्हारे हीज वासते की है। पण भाई ! मनी री पारख आपांने अश्याही मोका पे करणी चावे। जीशूं राम रा वनवास रा निशच्य ने अबे रोक जश्यो कोई नी है। थारोभीवन में साथे आवारो मन है, तो माता-पिता, ने गुरु की आज्ञा ले' ने आय शके है। ने वउ भीराजी व्हे' ने के देवे, तो भले ई आव। म्हबारी जाण में थूं अठे रे'ने माता-पिता, गुरु ने बड़ा भाी री ेसवा कर शके, तो अटे ही रे'णो घणो आछो है। जदी लक्ष्मणजी अर्ज कीधी, के या वात तो म्हारे शूं व्हे'वारी ही नी है। कदाच अणी शूं ऊधी कईक व्हे'जायगा। जी'शुं म्हूं साथे ही आवमो चावुं हुूं, े आपरी सेवा रे वासेतम म्हने कोई नी रोकेगा। सब राजी-राजी शीख दे देवेगा। यूं के' लक्ष्मणजी सुमित्र माता शूं शीख मांगवा पधारगिा, ने या खबर श्री सीताजी ने भी कणी जाय' ने अर्ज कर दीधी। जदी तो श्रीजानकीजी वठे पधार गिया, ने शाशूजी नखे विराज गिया। वण वगत कौशल्या माता राम ने हुकम कीधो। बेटा ! थारा माता-पता रा हुकम में म्हूं थाने रोक नी शकूं है, ने रोकूं ही क्यूं। थारो धर्म थूं खुद समझ रियो है। माता-पिता रो काम बालक ने धर्म शिखावारो है, नी के अधर्म शिखावा रो। पण धर्म रा सार ने थूं जाणे, जश्यो म्हूं लुगाई री जात कई जाणूं। पण म्हूँ अतरो तो जाणूं हू ं के लुगाई रो धरम पति री सेवा करवारो है। पण अठे थारी दो माउवां, पति रीसेवा कर हीज री है। अणी वासते बूढ़ी ने दूबली गाय ज्यूं तांग्यां खाती वाछलु रे साथे-साथे फरती फरे है, यूं ही म्हूं भी थारे साथे-साथे वन में धीरे-धीरे चली आऊंगा। म्हने कई अबकाई नी पड़ेगा। जदी राम हाथ जोड़ अर्ज कीधी, बाई ! आपरा मुखराविंद शूं यो वचन ठीक नी लागे। पारमात्मा अन्नदाता ने प्रसन्न राखे। वन में पधारावम ें आपरे कई फायदो है। अठे अन्नदाता रे चित्त ने आप शूं जशी शांति मिलेगा वशो दुज्युं मिलणी मुशक्लि। है पति री सेवा, ज्यो आप स्त्री-धर्म हुकम कीधो, सो घणी सांची वात है। अणी वासते दुख री बगत में भी धर्म धारमओ आपने शोभा देवेगा। सुख में, ने स्वारथ में, धर्म ने कुण ओलखे है। जदी तो कौसल्या माता हुकम कीधो। बेटा ! थारो के'णो धर्म शूं भरयो थको है। म्हूं अठेही रे'ने, पति री, ने पति रा हुकम शूं थारी वचेट मां री चाकरी भी करवाने त्यार हूं. जदी श्रीजानकीजी अर्ज कीधी, म्हारो भी यो धर्म है, के म्हूं भी पतिरा सुख-दुख में साथे रेवूं। म्हने बालकपणां शूं ही या शिक्षा मिली है। जणी तरे' शूं कीने ही माता-पिता'री चाकरी रो यो अवसर मिल्यो है ने ज्यूं कीने ही पतिरी सेवारो, ने कीने ही भाई री सेवारो मोको आयो है, यूं ही म्हारे भी यो परमात्मा री दया शूं पत री सेवारो मोको आयो है। जदी राम भगवान हुकम कीधो, म्हूं कणी ने ही आपणो धर्म पालतां नी रोकमो चाबु हुं। परन्तु अठे भी शाशु-शशुरा'री सेवा करणो कोई ओछी वात नी है और वन में साम ीलगाई री चाकरी आदमी ने करणी पड़े है। जणी रे चार पावंडा चालवोरा ही मावरो कोय'नी, वणी'शुं भयंकर वन में चाकरी री आशा कणी तरे' शूं व्हे'शके है। अठे माता'रे नखे कोई चकारी करवा वालो ने समझावा वालो भी चावे। अबार अशी तो दु'खरी वगत है, ने अशी ही वृद्ध अवस्था है। अशी वगत में ही बेटार वउ नखे नी रेवे, जदी कशी बगत रे वासते है। जदी श्रीजानकीजी अर्ज कीधी, के म्हूं उर्मिलने अणी काम में लगाय दूंगाा। वा म्हारे वच्चे ही आछी तरे'शुंयो काम कर शकेगा, ने म्हूं तो आपरा चरणआविन्दां शूं छेटी रे'णो नी चावुं हू। अठी ने लक्ष्मणजी बी माता शूं शीख मांगी, ने सुमित्रा माता राजी-राजी शीक बगश दीधी। वण बगत उर्मिलाजी भी साथे पधारवा री हठ कीधी, पण लक्ष्मणजी वणांने यूं समझाया के थांरेआवाशूं म्हारे माता-पिता वच्चे ही वत्ता भाई-भोजाी री चाकरी में कशर पड़ेगा। थांरी शार-संभाल न्यारी राखणी पड़ेगा और थांरे शूं म्हांरी तीनां री चाकरी तो कई, पण थेंतो थांरो ही काम-काज में नी कर शकोगा। फेर भाभीजी पधारे तो है, पण याभी म्हारी राय तो नी है। पण म्हूं तो ना अर्ज नी कर शकू, तो भी थांने तोम् हारो हुकम है, के अठे रे' ने कौशल्या माता री मन लगाय चाकर ी करजो. वचेट भाभीजी वचेट बाईरी चाकरी कर लेगा, तो वउ श्रुतिकीर्ति छोटा बाई रे सेवा करेगा, ने थें बड़ा बाई री सेवा में रीजो। आपां तो श्रीसीताराम रा सेवक हां, सो वणआं रो हुकम व्हे' ज्यूं ही करमो चावे, ने वणां री कानी रो काम करणो भी जाणे वणां री चाकरी करणी है। अतराक में सीता माता एक डावड़ी रे साथे केवायो, के बेन ! थूं के'ती ही, जीजी बाई ! म्हें दोही, आप दोयांरी चाकरी करांगा, सो बेना अबे चाकरी रो वगत आयो है। लालजी तो साथे पधारे है, ने जो थूं भी हठ करने साथे व्हे'गा तो म्हारे भी आड़ी देवावे'गा अर्था म्हने अठे ही रखाव देवे'गा, सो बेन ! म्हारी कानी ही न्हाल ने म्हारी चाकरी गण, वा

म्हारे पे मेहरबानी गमने साथे री हठ करे मती, ने अठ रे', ने बड़ा वउजी साबरी चकारी करेगा, तोम् हूं जाणूंगा के थां म्हारी सारांरी ही चाकरी करलीधी। अश्या वग त में भी, जो, थूं, ही, म्हारो कियो नी मानेगा, तो बेन ! और कूंण मानेगा, ने थारा जेठजी साबरी भी याहजी मुरजी दीखे है; के थूं अठे बड़ा वउजी साब नखे रे'जाय, तो म्हने साथे ले पधारेगाओ। जदी उर्मिलाजी अणी वात ने मान अयोध्या में ही रे'गिया ने श्री सीता-राम, ने लक्ष्मणजी तीन ही राजा रे नखे पधारय्यवठे पिता रे, ने कैकायी माता रे नमस्कार कर हात जोड़ तीन ही जमआ शीख मांगी। राज तो 'बे' केवे ने आंशू ही आंशू वे'वा लाग जाय, ने आगे कठ रुक जाय शो 'टा' ही नी के'णी आवे। फेर थूंक गले उतार मन गाडओो कर 'व' के' खीझवा लाग लाय, सो 'उ' नी के'णी आवे। या दशा शुशराजी री देखने सीताजी तो डसूक-डसूक खीजवा लाग गिया, ने दोई भायांरे बी आखां में तलाया आयगी। जदी कैकयी कियो थें तो एक-एक शूं वत्ता धर्म वााल हो। वो , लो. बाई साधुवां रां कपड़ा म्हें मंगाया राख्या है, सो थें अठे ही पेर'लो। जो राजा ने भरोसो आय जावे, ने या टोपली, ने यो पावड़ो जंगल में साधुवां रे कामरी चीजां है, ने ई तूं बा तीन ही पाण ीपीवा रे वासते मंगाय राक्या है, सो उठाव, ने झट वीर व्हो। अब राजतिलक रो मोरत आय गियो है, सोअणीज वगत में वन में परा जाणो चावे।

जदी तो झटपट दो ई भायां, ने जानकीजी, तूं बा कुराड़ी-टोपली ने रुंखारी छालरा कपड़ ले' ने माथे चढाय लीधा, ने धारण भी कर लीधा। पण श्री सीताजी ने तो वी कपड़ा धारण ही नी करतां आवे, ने सारां ही रे ही मूंडा आगे धारण भी कूंकर करे। जीद तो परोताणीजी कियो बेटा ! अणी राणी री तो दुर्बुद्धि व्हे'गी है, ईं ने तो जाणे वेजो व्याप गियो है, सो कण ीरी ही नी माने। समझावततां समझावतां म्हारी जीभ थूली पड़गी है। पण वनवास ने साधुवेश तो राम रो मांग्यो है, थारे अणारी कई जरुरत है। अतराकम में तो सब ाण्यां, ने आखी ही रावलो वठे भलेो व्हे' गियो। जदी तो राम भघवान विचारी अबे देर नी करणी चावे। यूं विचार माता-

पिता रे धोक दे'ने तीन ही जम आंबारणे पधार गिया। वणी वगत में तो आखा रावला में आशुवां रो कीच' व्हे' गियोओ। या वात कणीनं न ही नीख टी। पण करम पे जोर कणी रो चाले। तीन ही जणा ने जावता देखा, राजा त शुध-बुध भूल गिा, ने थोड़ी देर सूं ओशा आई ने तो वेंडी री नांई राम, सीता, लक्ष्मण, राम, सीता, लक्ष्मण, करता-करता ऊभा व्हे'ने दोड़ाया, ने साथे री साथे सब राण्यां भी दोड़ी। पण चोक में पधारने तो फेर जांफ आयीग सो पड़ गिया। जदी तो एक कानी शूं तो कैक्यीजी ठाम्या, ने एक कानी शूं कौशल्याजी ठाम्या, ने पछे फोरीक ओशान आई,ने पाछा पधारवा लागा जदी तो राजा पूछ्यो, म्हने कणी ठाम राख्यो है ? जदी कौशल्याजी, ने कैकयीजी बोल्या। जदी तराजा झाटको देने कैकयीजी नखा शूं हात छोड़ य लीधो, ने कियो के एक दाण हात ठाम्यो ज्‌ोय ही मोकलो। परमात्मा सब पाप भुगताव ज्यो, पण खोड़ीली लुगाई रो हात कणी ने ही ठमावो मती, ने फेर कियो, के हे कुल डुावणी रांड ! चली जा, घर में फेर कधी म्हारी नजर रे नीचे आवे मती, ने थारे शामल भरत रो भी शियो व्हे' तो मर्यां केडे भी वो म्हारी क्रिया नी करे।

जदी तो कैकयजी डरप्या भी, ने रीश भी करने पाछा वणांरा मे'ला में बड़बड़ताा थका परा गिया। पछे राजा कियो एक कानी शूं छोटी राणी ने केवो सो म्हने ठामे, ने म्‌हने कशल्या रा मे'ला में ले जावो. अबे म्हने फेर जांफ आवे है। जदी तो एक कानी शूं छोटा राणीजी ठाम लीधा, ने म्हाराणी कसल्याजी रा मेला में पधारय दीधा। वठे राजा नरी देर तक बेशुध पड्‌या रिया।

अबे अठीने तीन ही जणा ने विना पेंताबा मुनिरों शांग करने शे'र में पधारा देख'ने सब अयोध्या रा रेवाशी झूं-झूं रोवा लाग गिया। छोटा-छोटा छोरा-छोरी भी बापजी-बापलजी कर कर'ने छल-छल रोबा लाग गिया। पण राम भगवान सारा ने समझावता थका, ने ज्ञान देता थका शेर बारणे पधार गिया। पण शेर तो जाणे राम रे साथे साथे ही घरमें शूं निकलने बारणे भेलो व्हे गियो। जदी तो राम भगवा ऊभा रे ने सबां ने समझाया। अतारक में रथ ने ले'ने प्रधानजी आयागिया, ने अर्ज कीधी, रथ पे सावर व्हे'ने पधाराव में आवे, ने वन देख पाछा अयोध्या में पधार जावामें आवे, यो राजा रो हुकम है। जदी तो ती न ही जणा रथ में सवार व्हे' गिया और सुमंत्रजी रथ दौड़ाय दीधो. अयोध्यावासी रथ नजर आयो, जतरे तो देखता रिया, ने पछे तो अछताय-पछथाय पाछा अयोधया में आय'ने उदाश व्हे'ने रेवा लागा। कणी कियो, वन देख पाछा पधरा जायगा। कणी कियो, सुंमंत्रीजी समझणा है, सो समझाय ने पाछा ले' आवेगा। कणी कियो, राम आपणा प्रण ने छोड़े, या समझ में नी आवे।

अठीने रथ, गाम, बाग ने वन में व्हेतो थको तीसरा पोरां रो श्रृङ्गेवर नाम री नगरी नखे जाय पूगो. वठाशूं आगे रथ रो गेलो नी हो। वच्चे गंगाजी वेववता हा, जीशूं रथनी जाय शकतो हो। वण ीनगरी रो राजा गुह नामरो भील हो. वो अयोध्या में आयां रतो हो, ने राम भघवान पे वींरो घणोे प्रेम हो। वो घरे वातां कर्या करतो हो, के कधीक अठीने भी आपणा बड़ा बावजी ने पधरावांगा। आज एक भील दौड़ ने वीने खबर दीधी के, अयोध्या रा पाटवी कुंवर, ने कुंवराणीजी रथ में वराज'ने पधारया है, ने गंगा रा तीर पे ठेरा है। या शुणने तो वो भीलां रो राजा राजी-राजी एक सांस दौड्‌यो-दौड़यो वठे आयो। पण वठे राम रे मुनि री पोशाक धारम देखटने वींने नरोई विचार व्हियो। राम भगवान वणी शूं बड़ा मोह शूं दौड़ने मिल्या, ने श्रीसीता माता शूं वणी मुजरो कीधो, ने लक्ष्मणजी, सुमंत्रीज भी बड़ा प्रेम शूं मिल्या। वणी सब हाल सुमंत्रजी शूं शुण अरज कीधी, के अणी श्रृङ्गवेरपुर रो राज आप करवा में आवे, ने यो दास चरणारविंदा री चाकरी में रेवेगा। अणी नीच रा बाल-बच्चा ने भी पधारने करतारथ करावे। जदी तो राम भगवान हुकम कीधो, भाई ! थारो राज है, तो म्हार ोहीज है। पण वनवास रो नाम कर, अबे म्हने नगर में नी जावणो चावे। जदी तो वणी सब बाल-बच्चा और लुगाई ने और वीरी दानी मां ने भी केवाय दीधो, सो सारी वठेही आय गिया। वा भीलण डोकरी सीता, राम, लक्ष्मणजी ने कौशल्या माता ज्यूं मोहन करवा लागी, ने न्हाना छोरा-छोरी पूछवा लागा के बड़ा बावजी कश्या है? आपाणे अठे क्यूं नी पधारे ?कोई सीता माता री आंगली पकड़-पकड़ ने खेंचे, ने केवे के म्हांरे घरे क्यूं नी चालो ? रोटी हाता शूं हीज करता व्हो तो शूख आटो है, अछोपाी रो घी है, गायां रो दूथ थारां हाता शूं दूय लीजो, ने रोट्यां

थांरा हातां शूं करने दोई बावजी ने जीमाय दीजो, ने फल-फूल भी नराई है, सो नीजक हीज नदी वेरी है, जीमें धोयने जीम लीजो, ने मोल्यां जो म्हें सूखी-सूखी ले आवांगी वी झट सुलग जागाया, नाम धुंवोनी आवेगा। कोरा घढ़ा कुमार शूं ले आवांगा। अशी वातं के'ता थका राम भगवान पे मोहति व्हे'रिया हा। अतराक में एक बालक पूछी, "के तांरे ईबापजी कई लागे ?" यूं छोटा-ठोा छोरां-छोर्यां री वातां शुण श्रीजानकी माता हँसन ेवणारां माथा पे'ने मोरा पे हात फेरता थका हुकम कीधो, "थांरो मोह देख'ने ही म्हूं तो धापगी, पण आपांरा मन शूं आपांने कई नी करमो चावे। देखो निषादराजा (भीलराजा) या हीमज अरज कीधी। पण थारां बावजी नाहुमक कर दीधो. यूं वणांने समझाय'ने शीख दीधी। राते वठे ही हंगाग किनारे रे'ने प्रभाते नाव में विराज, तीन ही पे'ले पार पधारवा लागा।"

जदी सुमंत्र परधानजी पाछा पधारवराी अरज कीधी। पण राम भगवान समझाय'ने नाहुकम करदीधो। जदी तो सुमंत्रजी घआ घबराया, ने गणा दोरा अयोध्या कानी वीर व्हिया, ने अठी ने तीन ही गंगा रे पेले पार पधार गिया, ने निषादराजा ने भी शीख बगशी। सो वी भी पाछा उदाश व्हे'ने आपणे अठे परागिया। सुमंत परधानजी घमओ पछतावो करता-करत अयोध्या गिया। वणा कियो, हाय ! हाय ! म्हें रथ में क्यूं वराजाया। धीरे-धीरे पेदल पेदल पधाराता तो अयोध्या शूं अतरा छोटी, अतरा झट तो नी पधार जाता। अबे म्हने लोगकई केवेगा। म्हूं अयोध्या में अबे कई मूंडो देखावूंगा।

राजा सुमंत्रजी री वाट न्हाल रिया हा, के परधान शायत समझाय ने ले आवेगा। अबे राजा रे आंखां मे हीज जीव आय रियो हो. ऊठवा-बैठवा री भी शरधा नी री ही। कोई राजा ने ओलख ही नी शके जश्यो धोलो चेरो व्हे गियो हो। कौशल्याजी घमा ही समझवा,े पण बेटा राम ! बेटा राम ! अरे लक्ष्मण ! थूं गरीब कठीने व्हे गियो ? बउ सीतै ! सीता ! म्हारे वासेत जनकजी री बेटी भी दुख भुगते है। अणी वंश मे म्हारे जश्यो पापी कूंण व्हियो व्हे'गा। यूं हुकम

कर-कर ने खीझताहा। वणी वगत अयोध्या रा राजा रीदशा एक गरीब रे जशी व्हे'री ही। थोड़ी ही कमा वाजतो ने पग शुणता के राजा बारणा कानी आंख फाड़-फाड़ ने देखता हा। अतराक में सुमन्त्रजी भी आय गिया। वमां दोई कुंवरने कुवराणी जी कानीशूं पगामें धोक दे मुजरो मालुम कीधो। राजा कियो कई नी आय ? कई नी आया ? वणां कियो तीना ही अरज करा है के म्हांने तो वन में घणो शुवावे है। राजा कियो, आपी आपही शुवावे। बेटा ! जनम तो म्हारे जश्यारे अठे लीधो है नी, सो और की शुवावे, सुमन्त्रजी कियो वणां अरज कराी है के, म्हारां आछा भाग है। भगवान म्हारा पे राजी। राजा कियो, थांरां पे तो सदाही राजी हैष पण म्हांरा खोटा भाग है। सुमन्त्रजी कियो वमां अरज कराई है के, आप महांरो नाम सोचनी करावे। म्हें अयोध्या वच्चे ही अठे सुखी हां। राजा कियो,म ्‌हूं नकर वच्चे ही अयोध्या में दुखी हू। सुमन्त्रजी कियो वणां सूं अरज कराई के, दन जातां कई देर नी लागे, काले चवदा वरष निकल जायगा। राजा कियो,म् हारो प्राण तो अबे आज ही निकल जायगा। अरे सुमंत्र ! थने बूढ़ासारा ने बालकां ठग लीधो। थारी आशा ही, के थूं पाछा ले' आवेगा। पण अबे कई करू। अबे तो वी नी आवेगा। फैर राम, सीता, लक्ष्मण, ने कद देखूंगा। यूं के तां केता राजी री तो आखां फिरवा लागी, ने गरदन रलकगी।


कौशल्याजी तो हे नाथ ! हे अयोध्यापति ! यूं कई करावो ! यूं कई करावो ! करवा लागा। जतकार में एक हिचका आई ने राम-राम केने सांस रूक गिो। कौशल्याजी या दशा देख घबराय गिया, ने समित्राजी ने हेलो पाड्यो के बेन समित्रा ! झट आव, झट आव, सुमित्राजी कई करे, कौशल्याजी ज्‌ूयं खीझवा लागा। दो ऐक बूठी ड़ोकर्यां ही, वणां डील रे हाथ लगायने कियो, अपशकुन मती करो, हाल डींलु उनो है। समुंत्रीजी नाडी देख राण्यां ने छेटी कर दीधी, ने कियो आपरा हाकृहूक शूं ई घबराय जायगा। थोड़ी अणां ने थिरता लेवा दो। जदी राण्यां दूसरी ओवरी में, नखे ही बेठ ने धीरे-धीरे डसूका भरवा लागी। सुमंत्रजी राजा ने नीचे पौढ़ाय दीधा, ने तो राण्यां पाछी दौड़ ने आयीग ने केवा लागी, "ओ परधानजी ! यो कई करो हो ? अन्नदाता ने नीचे क्यूं पोढ़ावो हो ?" जदी को एक डोरी कियो, "अबे अन्नदाता कठे है ?" जदी तो राण्यां तड़ाछ खाय धरती पे पड़गी, ने आखा ही रावला में हाहाकार मच गियो।

जदी तो राजगुरु वसिष्ठजी आय सबांने समझाय ने कियो, "या नवी वात नी है। यो तो काच में आपणो मूंडो देख'ने खबर पड़ जाय के आपांरो रूप अश्यो है। यूं ही दूजा री मौत देख'ने समझ लेणओ के या आपणीज नकल है। काले असल भी व्हे' जायगा। ्‌णी वासते मरे जणी रो विचार करवा में अतरीक ही लाभ है, के आपांने अजणाज में मौत नी आप जाय अर्थात् लाभ है, के आपांने अणजाण में मौत नी आय जाय अर्थात् मौत रे वासते त्यार रे'णो चावे, ने त्यारे रे'णो, यो हीज है, के मौत ने याद राख बुरा काम नी करणा, ने संसार में मन नी उझावणो, ने करतार ने याद राखणओ। क्यूंके संसार रो सुख तो ऐंंठवाड़ो हैष आगाल भी यूं ही ईं' भोगता-भोगता छोड़ गिया, ने आपां भोगवा लागा, ने आपां छोड़ांगा, नेदूसरा भोगेगा। यूं के राजा रा शरीर ने अवेराय ने मेलाय दीधो। देखो जणा राजा री रीझां, मोजां, सबारयां, शकारां आंखा में वश री'ही, जणारी नजरर पड़तां ही हजारां राजारी कलग्या झुक जाती ही, वी राजा एक सूखा टींडका ज्यूं पड्‌या है, ने अबे बालवा सिवाय और कई कमारा ही नी रिया। वाहरे संसार ! थूं अश्यो नुगोर है, तोभी लोग थारे वासते छती आंखां आंधा व्हे' रिया है। ईंरो हीजो तो नाम देखत भूली रो तमाशो है। यूं नी व्हे तो भलां जो आदमी दो पईशा री हांडी

रे चार ही कानी कड़कोल्या दे' दे ने परखे है, के कठा शूं जोजरी तो नी है, वो हीज चारही कानी शूं फूटी ईं संसार री हांडी ने जीवने झोंक-झ्‌ंक ने क्यूं मोलावतो।"

अतराक में रागुरु बुलावा मेल्या, सो भरत-शत्रुध्न दोही भाई एक साथे मनती घोड़ा री डाक में कैकय देश शूं अयोध्या पधार गिया। पछे भरतजी ने शत्रुध्नजी कैकई माता नखे जायने पूछ्यो के बाई ! म्हाने गुरुराज अतरी आगत शूं क्यूं बुलाया ? जदीतो राणीजी राजी-राजी सब वात राजा रे देवलोक व्हे'वारी भरतजी ने के' ने कियो के, कियो के, "राजा री क्रिया करो, ने राजा करो। अबे थारे वासते म्हें, ई दोईज काम बाकी राख्या है और तो सब काम म्हें बड़ी बुद्धिमानी सूं अवेर लीधा है।" या शुणतांही दोई भाई सुन्न व्हे' गिया, ने कियो के, "कई आपने बलक पणा शूं ही या वात म्हारा नाना-नानीजो नी सिखाई, के लुगाई रे पति ही परम देवता है। पति री सेवा शूं हीज लुगाई रा दोई लोक, ने दोई कुल सुधरे है, ने अबे आप यो धरम रो पालण तो पाछो कीधो ने अणी रो अंजस भी आपने आछो आयो। हे विना अक्कल री हत्यारी मां ! थे बापड़ा रजपूत रा घर में जनम ले' ने फेर रघुकुल ने क्यूं उजालयो ? अशी बेटी रो जनम तो बापड़ो नीच सूं नीच जातरो व्हे' तो, वो भी नी चावतो व्हे'गाा आपरो तो कैकय वंश में जनम व्हियो है नी। अश्यो अवतार दो-दो कुल डबोबा ने क्यूं लीधी। याही ही तो आबपे घरे ही विराज्या रे'ता। म्हारां बापरे घर'ने सनाथ करबा कठीनुं पदाराय राजा तो हुकम करता, के कैकयराजा रो धराणओ घमो धरमात्मा है। अणीज शूं म्हारा पिता धोका में आप गिया। वी कई जाणे के यो जे'र रो लाडू है; आप जामता व्हो'गा केअणी काम शूं म्हारी वाही-वाही व्हे'गा। पण बुरा काम झूं भी कमीरी बड़ाई व्हे'ती कधी शुणी है ? म्हारो हीज भलमओ करणो हो तो जनमतांही म्हने मा'र न्हाख्यो व्हे'तो तो म्हूं जाणतो के अणी वच्चे यो म्हारो घमओ भलमो कीधो अबे आपने यो मूंडो कीने ही नी देखावमओ चावे। या शुत्र कैकयजी री अक्कल पाछी ठिकाणे आयगी, ने वणां जाणी के अरे म्हार ेशूं तो या म्होटी भूल व्हेगी, म्हें शेंणां ने दुशमण ने दुशमणां ने शेंण मान लीधा। अबे तो राणी ज्यूं-ज्यूं विचारे ज्यूं-ज्यूं आपणो अधरम याद कर-करर छाती धड़क-धड़़क करे, ने खीझे। पण अबे व्हे' कई; "रांड व्हियां केडे मत आई कई काम री।" वगत तो परी जावे, ने वात रे' जावे।

अतराक में मंथरा बाई ने खबर लागी के भरत शत्रुध्यन कोई भाई कैकय देश शूं पधार गिया है। जदी तो वणी कौशल्याजी रा घायजी ने जाय'ने कियो के, धायजी ! थारां भाणेजजी ने अबे राजतिलक व्हे' है, सों थेंही वमाव करी नीी। थें तो भेद-भाव नी समझी हो नी। देखो म्हने केता, सो म्हें तो अबे वणाव कर लीधो है, ने अबे रावाल में जावूं हूं। जदी सूधा धायजी की', "ओ मंथरा बाई ! यो कई वणाव रो वगत है। भलां आपांर मालक, माथारो छत्र तो टूट गियो, ने अश्या वगत में दुशमण ही दुशमणी छोड़ दे, तश्या वगत मे ंआपाँ बूढ़ी रांडा ने वणाव आछो लागे कई ?" मंथरा कियो, "आछो क्यूं नी लागे ? ने छत्र तो जूनी व्हे' वगड़ जाय जदी टूटे हीज है, ने आपणां-आपणां कीधा फल भगोणा ही पड़े।" जदी तो धायजी विचार, ओहो ! अणीरे तो सामी हरष व्हियो है। यूं विचार, वणांने रीश आयगी' सो कियो के, 'महं समझगी। अबे आप पधार जवा में आवे। भगवान करे तो, जा रांड, थूं थी थारकीधा रो फल भोग लेवा।' यूं के, वी कमाड़ जड़ मांय ने बैट गिया। मंथरा हंसती-हंसती दूजारो म्हाटो अश्यी हीज लागे यूं केने राजी राजी रावला मांयने गी। वठे वीने वणाव करने आवती देख शत्रुध्नजी कियो, काय चम्पा ! बाई तो अश्या नी है, कमी वणांने भंगराया दीखे।" जदी तो चम्पा कियो, "बावजी ! बाईशाब अश्यी नीज व्हे। ई काम तो यया कूबड़ी रांडी आयरी है, अणीरा है। आपही देखावो नी, यो वगत कई वणाव रो है ? पण रांड जाणए पाछी वींदमी वमी है। ह्वा, पछे तो कई चावे। लछमणजी रा छोटा भाई ने अशीवगत में अशी वात पेही रीश नी आवे जदी कीने आवे। झट ऊभा व्हे' ने, वणीरे शामा पधाराया।" वा जाणी म्हारी चाकरी पे राजी व्हिया, सो म्हारी आदर करवा शामा पधार्य दीखे है। सो लाला ! बारणा लेवूं, बावजी ! वारणा लेवूं, म्हारा अन्नदाता ! आप कठीने पधार गिया, अठे तो अनर्थ व्हे' जावतो। आपरा बाई तो भोला है, सो आप जाणी ही हो। जदी म्हें शमझायने आपरा पुन्न-परताप शूं सब काम शुधराय लीधो। यूं के'ती शुण, घमआ धीमा भरतजी ने भी रीश ायगी, ने शत्रुध्नजी तो, धूर रांड ! अड़की गंडकड़ी ! म्हांरी मां रे तो रांड थारोहीज जे'र चढ्यो है, रांड ! काम बगाड्‌यो ? के रांड ! सुधारयो है ? यूं शत्रुध्नजी री डक्कर शुण, वा अचंभा में आय, यूंकर ऊंचो देखो जतराक में तो ठीला हात री एक चणगट मूंडा पे उड़गी, जीशूं दूजी आड़ी मूंडो फिर गियो। जतराकम में एक फेर वठीने भी चेंटगी। जदी तो मंथरा बाई रो मूंटो छूयो गियो, ने बींड्यां अरोग' ने पधारया व्हे' ज्यूं राती राती लाल पड़वा लाग'गी, ने एक आध दांत-डाड़ हो, तो भी गले उतर गियो. अबे तो बालक री नांई रोवती-रोवती बोली हाय बाप ! म्हें तो शामो आछो कीधो, जींरो भरत राजा रे मूंड ाआगे म्हने यो फल मिल्यो। जदी भरतजी हुकम कीधो, हाल पूरो नी मिल्यो। ने शत्रुध्नजी तो दो रेपटां फेर जमाय दीधी, ने कियो, रांड ! बीड्‌यां अरोगने पधारी है। म्हारा बापने मराय, भाई भोजाईने देश निकालोय देवाय, ने केवे के आछो काम कीधो है। थूं के' ने एक वात वणी रे गुब पे जमाय दीधी, जणी शूं हायरे ! यूं करने वा मूंडा वरामई धरती पे पड़गी,न े भूंडो मूंडो धूला में भराय गियो, ने माथो उघाड़ो व्हे गियो. जदी तो शत्रुध्नजी जाणी अबे या मा'र नी खम शकेगा सो चोटो पकड़'ने चौक में घसीटवा लागा, ने वा जोर-जोर शूं वा'रां पाड़वा लागी। कौशल्याजी हुककसम कीधो, या बापड़ी कूण रोवे है ? ई ने घणओ शोक व्हियो दीखे है। जदी कीण कियो, या तो सब कला रो मूल रांड मन्था है। ईंने शोक कायरो ? ईंने तो हरष व्हियो हो। ज्यूं पीपाड़ो में भूंक भरवा शूं फूल जायने पाछी वा फूंक निकले जदी फां फां करेयूं ही ईंरो शत्रुद्नजी घमंड निकाल दियो है। जदी तो दयाल राम री माता हुकम कीधो के, शत्रुध्न ने म्हारी नान ले'ने के'दो के अबे ईने कई नी के'वे, ने दो'ही भायां ने अठे बुलाव लावो। यूं कौशल्याजी रो हुमक पूगवा'पे शत्रुध्नजी वींरी चोटी छोड़ दीधी। पण जतरे तो वणीरे माता में मोचा पड़गिया, ने नाक भी दब गियो। होठ सूज'ने विकराल व्हे' ने छूटता ही उठती-पड़ती कौशल्याजी रे पगां में जाय पड़डी, ने आपले शलमए हूं। आपली अपलाधी हूं यूं म्होट म्होटा होठां शूं जाडी जाडी बोलवा लागी। जती दो दयाल राम री माता कियो, अरे अणी बापडड़ी ने अतरी क्यूं मारी ? योतो भावी हो सो व्हियो। थूं डरपे मती। अबे थने कोई कई नी केवेगा। पेली ही म्हारे नखे आयगी व्हेती तो थारे कई न ीव्हेतो। यूं हुकम कर वमी रे पाटा पाटी, ने मेदालकड़ी कराय ने दो तीन डावड्‌या ने शार-शमाल भलाय दीधी। अबे दो'ई भाी कौशलया ममाता नखे पधारया। जाणे राम-लक्ष्मण थे मोह आवे अश्यो ही अणां दो ई भायां पे कौशल्यामता ने मोह आयो, ने यांने मुजर करता देख, नखे बैठाय, दोई भायांर ेरमीरां पेहात फेरता थका कौशल्या माता हुकम कीधो, बेटा तें अटे व्हेत तो यो अतरो हलाबोल नी व्हे'तो। अतराक में कैकयजी भी वठे पधार ने जीजी बाई ! म्हारो अपराध क्षमा करो क्षम करो, यूंके' कौशल्याजी रा पग पकड़ खीझवा लाग गिया। जदी कौशल्याजी हुकम कीधो "बेन ! अणीयें थांरो कई अपराध है। योतो भावी होणहार हो। राम रो वनवास थाने कश्यो खटयो है ? आज तो म्हार वचे ही वेन! थांने अणी वात रो वतो शोचहै, ने यो दुख बी आपां सबां ने ही सरीखी हो ही है। जदी कैकयीज ीउठ, डावड़यां भेला जाय ने वराज गिया। जदी कौशल्‌याजी, ने सुमित्राजी शोगन देवाय, हाथ पकड़ आपणे नखे बैठाया। जदी कैकयजी हुकम कीधो, म्हूं पापणी आपरे तो कई पण आपरी छायांरे अटकवा जशी भी नी हूं। हाय ! म्हने पतिर ी भीदयानी आई। धोया मूंडा रा वउ, ने बालकां ने साधु रो शांग कराय देश निकालो देतां भी लाज नी आई। ईतो साराही म्हारा पे जीव छांड़ता हा। आपने सुमित्र बेन दोही देवता रूप हो आप वचे ही राजा म्हारो मान वत्तो राखता हा। वणांरो हीज म्हें प्राण लीध। अश्यो काम तो रागश भी नी कर शके। हाय-हाय राजा री सांची वातां ने म्हूं छल समझी हो। राम री लायकी पे म्हनें रीश आवती ही। वली बालक रीश जश्यो काम कई कीधो हो ? की वणी वड़ाबां रो गले छोड़यो ? कई वणी वंशने कलंक लागे जश्यो कओी काम कीधो ? ककई कई वणी परमेशर रा भक्तां ने दुख दीधो ? कई वणी कणीरी वउ-बेटी सामी न्हालयो ? वो तो सूरज वंश रो भी सरूज हो। जदी कौशल्याजी ,ने सुमित्राजी नरी तरे शूं समझाया। अतराक में वशिष्टजी दोही भायां ने बारणए लेगया, ने भरतजी शूं सब क्रिया-कर्म राजा रो कराय चवदमें दिन सब जणा भेला व्हे'ने भरतजी ने राजतिलक देवा लागा। पण भरतजी साफ नट गिया और सब जणां ने कियो के, आपार ई वचन म्हने वाझया पे लूंणज्यूं लागे है। जदी सबां ही कियो के राजा विना काम नी चाले जणी शूं म्या या आपने अरज कीधी है। जदी भरतजी कियो के राजा तो राम है। आपां सब राम ने अयोध्या में राजा गादी नी विराजे तो वन में ही राजतिलक कर'ने अठे पधरावांगा।" जदी तो सवांरेहीय ावात दाय लागी, ने वाहवा भरत! "धन्य धन्य" यूं सब वाह-वाही करने प्रभाते ही आखी अयोध्या भरतजी रे साथे-साथे वन में विदा व्हे गी। जदी श्रृङ्वेरपुर नखे भरतजी पधार्या तो वो भीलां रो राजा भरतजी रो भे'म करवा लागो के, भरतजी रे साथे फोज है, सो म्हारा राम बगवान शूं भरतजी दगो करवा जाता दीखे है। यूं जो व्हे, तो मरां मारां। पण अणांने एक भी पावंडो जीवतां जीव, आगे नी वधवा देवां। पण ई'री एक दाण खबर करलां के या वात कूंकर है। यूं विचार, नजराणो ले'ने सामो आयो। जदी सुमंतजी परधान भरततजी ने कियो के अणी अठे आपरा बड़ा भाी री घमी चाकरी कीधी है। जदी तो भरतजी दौड़ने वींने छाती शूं लगाय ने मिल्या। तरे' भाव देख जाण गियो के ईतो राम रा प्राण है। अबे तो वो घणो राजी व्हियो ने भरतीज हुकम कीधो, "भाई भीलराजा ! आप धन्य हो जो दादाजी, ने भाभीजी री, ने सूपत भाी लछमण री दुखरी वगत में अशी चाकरी कीधी। दादाजी अठे राते पोड्‌या सो जगा म्हने देकावो. जदी भीलराजा कियो, मह्‌ारी तो कई भी शेवा अङ्गीकार नी कीधी, ने सब काम में

फेर लछमणजी बावजी म्हारे आड़ा पड़ता हा, ने कियो के म्हारी शेवा में आप बाधा मती न्हाखो। यूं के ने वणी बील राजा श्रीसीता-राम पोड्‌या ज्या जगा बताई। वठे पाना पे चारो बिछ्यो देख भरतजी हुकम कीधो, अठे ? अमी पाला में। यूं के भरतजी जीव भूल गिया। ने पाछी ओशान आवा पे कियो के, दादाजी रे तिलक नी व्हे'गा जतरे म्हूं भी दादाजी री नाई'ज रेवूंगा। पछे भील राजा नावां मंगाी, सो सब गंगा पार व्हे'ने प्रयागराज में भरद्वाज नाम रा मुनिराज शूं मिल्या, ने वठा शूं पत्तो लागो के चित्रकूट नाम रा पर्वत पे विराजे है। सो परभाते चित्रकूट पर्वत कानी पधारया, ने सबां ने ऊली कानी हीज ठेराय'ने भरतजी, ने शत्रुध्नजी दोई-भाई श्रीराम भगवान विराजता हा वठी पधारया। वणी वगत हाथी-घोड़ी री हाक-हूक नें शुण, ने चित्रकुट रा जीव-जन्तु भागता देख, राम भगवान हुकम कीधो, देख भाी ! कोई राजा शिकार खेलाव आयो देखी है।" जदी लछमणजी रूंखड़ा पे चढ़'ने अयोध्या रो निशान देखने' 'ईतो भरतजी फौज चढ़ायने पधाराय दीखे है।' कड़वी वेलरे तो कड़वीज तूंमड़ी लागे है। चोखो व्हियो। अबे आज आखी अयोध्या ने देखाय देवूंग के अधरम रो फल अश्योक व्हे' है। जदी राम भगवान हुमक कीधो, "लछमण ! थूं कणी ये रीश कररियो है ? भरत तो रघुवंश रो उजालो है। वणी शूं कई भी बुराई नी व्हे' शके। यो तो थारो हीज भे'म है। जो भरत लड़वाने आयो व्हे' तोभी कई आपां ने सामा लड़णो चावे ? कई आपां री बुद्धि, ने विद्या भायां पे चलवा वासते हीज है ? कई थूं दुशमणां री राजी करणो चावे है ? कई थू ंघ हाण, ने लोगां हंशी करावमओ चावे है ? म्हूं तो भरत ने राजा समझ वणी री चाकरी में रे'णो चावुं हूं, ने थने भी अब म्हारा हुमक मुजब भरतजी ने म्हारे वचे ही वत्ता समझणा चावे।" जदी लछमणजी अरज कीधी, 'वी म्हने मा'र न्हाखे तोभी आपरा हुकम शूं म्हूं चूंकारो भी नी करूंगा। पण म्हारे जीवता-जीव आपरे ऊपरे जो खोटी विचारी व्हे, तो पछे म्हारा शूं बाप व्हो' के दादा ी व्हो' कणी रो ही मुलायजो नी रे' शकेगा।' जदी राम भगवान हुकम कीधो, भाई ! थन हाल भी भरत पे भे'म है ? वो म्हारा पे थारे वचे ही वत्तो मोह राखे है, ने थने बेटा ज्यूं समझे है, ने थारे भाभी ने माँ वचे ही वस्ती माने है। अतराक में भरत-शत्रुध्यन दोई भाई पधार गिया, ने दौड़ने भगवान ऊठे-ऊठे जतरेक तो पगां में जाय पड्‌या। भगवान पाछा ऊठाकर, ऊंचाय, बडा मोह शूं बोल्यो। फेर दौड़ सीता माता रे दोयां की धोक दीधी। सीता माता आशीश दीधी और लछमणजी शूं मिलने दोई भाई हाथ जोड़ ऊभा रे' जदी राम भगवान हाथ पकड़ नखे बेठाय पूछी, कई अन्नदाता राजी है ? थारो चे'रो उदास क्यूं है ? जीद तो भरतजी सब वात अर्ज कीधी। या शुण सीता, राम ने लछमण सब खीझबा लाग गिया। पछे स्नान कर' माता, गुरु, मंत्री आदि सबां शूं मिलने पाछा आश्रम पे पधार गिया।

एक दाण राम भगवान हुमक कीधो, 'आपां मिल लीधा। म्हारे वासेत सबां ने नरी अबकाई पड़ी। भरत ! अबे थूं पाछो जाव। आपांने चावे के पिता रो वचन पूरो करां। राजा रो काम है, के रै'त रो पाछ करे, सो सावधानता शूं रैत ने बाल-बच्चा ज्यूं पालणी चावे, ने अजी ने हीज आपणो धर्म मानणो चावे।' जदी भरतजी हाथ जोड़ अरज कीधी, 'यो तो आपरो काम है, सो आप शूं हीज व्हे'गा। म्हे तो सब आपरी चाकरी करांगा।' वी वगत सब वठे भेला व्हें गिया,, ने माता, ने गुरु, ने परदान सबां समझाया। पण दोही भाी आपणी-आपणी हठ नी छोड़े। राम भगवान हुमक कीधो, 'जो ात वितारे मूंडा आगे नक्की व्हे'गी वींमे कशरी नी पड़णी चावे।' फरतजी अरज कीधी, 'भूल शूं ज्यो काम व्हे'ज्या वीने सुधार ले'णो चावे।' जदी कैकयीजी कियो, 'बेटा राम, ! थने म्हारी वात राखणी व्हें तो पाछो अयोध्या चाल'ने राज कर, दूज्यूं म्हारो कलंक नी मिटेगा।' पण कौशल्याजी हुकम कीधो, 'पिता रे मूंडा आगे प्रतिज्ञा करने बदलणो सपूतां रो काम नी है। थां तो थाणी कानी शूं जाणे राम ने पाछो ले आया, अबे म्हारा, ने राजा रा हुकमशुं यो वन में रेवेगा, ने भरत नखा शूं म्हूं राज करावूंगा।' जदी भरतजी अरज कीधी, "माता ! राजा तो दादाजी रो है, ने म्हूं तो अणआं रा पेंतावा रो चाकर हूं। या कई ठेठरी रीत आप तोड़णो चावो हो ?" यूं के' ने भरतजी घबराय गिया. जदी वशिष्ठजी, ने भरतजी पावड्‌यां ले'ने पधारया वी राम भगवान ने दारम कराय, ने भरतजी ने कियो के, 'ई अणांरा पेंतावा है। अणांरी आप सेवा करो, ने अणांरा राज ने अवेरो। चवदा वरष पूरा व्हियां केड़े पाछा पधारवा पे बडडा भाई री भी चाकरी करजो। जतरे राम रा राज री रखवाली करणी भी राम री चाकरजी है, ने अणी शूं राम घमा राजा व्हेगा, ने मालक ने राजी राखमओ आपरो धर्म है। अबे या गुरु री, माता-पिता री, सबां री आज्ञा है। अबे या गुरु री, माता-पिता री, सबां रीआज्ञा है। अणीमें दोही भाी बदलोगा तो दोष लागेगा।' जदी तो या वात सबांने मानणी पड़ी। पछे भरतजी अरज कीधी 'चवदा वरष पे एक दिन वत्तो निकल गियो, ने आप नी पधार्या तो पछे म्हूं शरीर नी राखूंगा।' यूं पाछा पधारवा री नक्की राम भगवान शूं भरतजी कराय लीधी, ने पावड़यां ने सिंधाशण पे वराजाय दीध । अब सांब ने समझाय राम भवान सबां शूं मिल-भेट ने शीख दीधी, ने 'मंथरा जीजी क्यूं नी आई ?' यं पांच-चांर दाण वणी ने याद कीधी। पण 'वणी रो डील ठीक नी है' या शुण, वणीरे शार संभाल री भरतजी ने पूरी भलावण दीधी, ने हुकम कीधो, 'कौशल्या माता वचे ही वीने वत्तो समझ जे।' सीता माता शत्रुध्नजी ने हुकम कीधो 'मंथरा जीजी ने म्हारी पगां लागणो हुकम करवाज्यो।' जदी लछमणजी अरजी कीधी, 'भाभी माँ ! आपही वणी रांड ने कई पगां लागणो हुकम करावो। व्हा भाई ! म्हारी कानी शूं भी वणी ने पगां रा लागणा के' वीजे।' जदी राम भगवान हुमक कीधो, 'लछमण कई के'वे है ?' जदी लछमणजी अरज कीधी, 'भाभी मांं, मथंरा जीजी ने पगां लागणो हुकम करायो, सो म्हने नी खटी।' जदी भघवान हुमक कीधो, 'अणीमें नी खटवारी कई वात है ? शाशू रा दाना मनख ने यूं केववाणो हीज चावे। वा अठे ावती तो थारे भाभई ने, माता री शेवा कीधी ज्यूं ही वींरी भी करण चावती। वउ उर्मिलने भी के'दीजे सो वींरो पूरी ओशान राखे। यूं दयानिधान राम याभी शुणी, ने जाणता हा के मंथरा हीज अणी अफंड रो मूल है, तोभी वींपे भी अतरी दया कीधी।

अश्या भारी खमारा मन री ओछला बापड़ा कई पछाण कर शके। वीतो आप जश्या दूजाने ही गणे। यूं सबां ने शीख दे, राम भघवान सबां ने पुगाय, आपणी कुटी में सीता-लछमण सेती पाछा पधार गिया; ने अयोध्या-वासियां रा मोह री बड़ाई करवा लागा, ने अयोध्या वासी सब अयोध्या में उदास रे'वा लागा। ने भरतजी अयोद्या नखे ही एक नंदीगाम है, वठे साधु री नांी रे'वा लागा, ने बड़ा भाई रा पैतावां री चाकरी करवा लागा और राजकामज सब गुरु, मंत्री शत्रुध्नजी ने भलाय दीधो।

 

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