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राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

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राजस्थानी व्याकरण
(रचनाकार- राजेन्द्र बारा)



मुहावरा

परिभाषा- मुहावरो, अधूरी वाक्य या सबदां रो समूह हुवैजिण रो प्रयोग वाक्य रै मांय होवण सूं ही सही अरथ निकलै। एकलै मुहावरै रो प्रयोग नीं हो सकै।
मुहवरां रै प्रयोग सूं भासा सरल, सबल  अर फूटरी बण जावै अर बढ़णै में आणंद आवै।
नाक रा मुहावरा-
नाक काटणो
नाक रगड़णो
नाक राखणो
आंख रा मुहावरा-
आंख दिखाणो
आंख रो तारो
आंघ लागणो
कान रा मुहावरा-
कान भरणो
कान रो काचो
डोल्यां रै रान लगाणो
मूंडै रा मुहावरा
मूं उतरणो
मूं बंद राखणो
मूं छाय सो करणो
दांत रा मुहावरा
दांत तिड़काणो
दांतकाटी रोटी
दांत्या करणो
दांत पीसणो
हाथ रा मुहावरा-
हाथ काटणो
हाथ तंग होवणो
हाथ नै हाथ नीं दीखणो
गलै रा मुहावरा-
गलो काटणो
गलै पड़णो
गलो पकड़णो
सिर रा मुहावरा-
सिर चढ़णो
सिर सूंपणो
सिर उठणो
पाणी रा मुहावरा
पाणी फेरणो
पाणी भरणो
पाणी-पाणी होवणो
भाल रा मुहावरा
भाल सूं बात करणो
भाल लागणी
भाल बहणो
टाबरां खातर मुहावरा
आंगली पकड़ पूंचो पकड़णो
बात रो धणी
गांठ रो पूरो
आंख रो आंधो
तीन पांच करणो
गाल बजाणो
नानी याद कराणो
कालजो ठंडो होवणो
बांदरै रो घाव

मुहावराअरथ
मूसल रै धजाअणमेल काम होवणो
आंख फाड़णोअचरज सूं देखणो
पगां रै कुवाड़ो मारणोौखुद रो नुकासन करणो
गाल बजाणोफालतू बात करणो
उल्टी गंगाऊंधो काम
अकल रै लारै लाठी ले फिरणोमूरखांलो काम करणो
आंख रो तारोघणू लाडलो
खुवै पर सूं थूकणोघमण्डीजणो
थूक'र चाटणोबात बदलणो
दाईसूं पेट लुकाणओसाची बात लुकाणी
बाल री खाल काढणोगैराई मांय जावणो
बाल कतरणोधोखो देवणो
जेब काटणोठग लेवणो
सिर चाढणीघणो भरोसो करणो
भाड़ै रो टट्टूकिरायै रो मिनख
बांदरबांट करणोदूसरां नै लड़ावणो ्‌र खुद ठगणो
मिनी रै भाग रो छींको टूठणोचाणचुकी फायदो होवणो
गंडक लड़ाईओछी राड़
कुत्ताघसीटीथुका फजीती
बांदर घुड़कीझूंठो रौब बतावणो
धूल उड़ाणोअकारथ काम करणो
राख छाणबोफालतूं फिरणो
गांठ रो पूरोमालदार मिनख
आंधा मांय काणो राजामूरखां बीचै अकलमंद
भाल सूं बात करबोघणू तेज चालणो
छीणी रो टुकडोभोत हिम्मतहालो
ड्योढो चालणओखिलाफत करणो
दांत काढ़णोचिड़ाणो
आंगली पक़ पूंच पकडणोथोड़ो लेय ज्यादा री इच्छा करणो
छाती छोलणओपरेसान करणो
रंगेडो गादड़ोनकली रूप
आभै में थूकणोउल्टो काम करणो
करड़ो कोयो करणीबेराजी होवणो
ठोलो दिखाणओमना करणो
खैबी करणीतंग करमो
घी रा दिया जलाणोखुसी मनाणो
ाटी-पाटी लेवणोरूस जावणो
टीबड़ी चढ़ाणोलड़की री शादी करणो
बैतरणी पार करणोक्रिया-कर्म
गंगा न्हावणोधरम रो काम कर निबटणो
पेदे हाल पग करणोउल्टा काम
नाच खेवणोपार लगाणो
कीड़ी रै पांच लागणीकुबद रो काम करणो
दो घोड़ा री सबारीदोनूं कानी
एक म्यान में दो तरबारविरोधी ेक साथ नीं रैवै
कांटा बोवणाबुराई लेवणौ
जीवणो हाथमददगार
गधां नै खेत खुवाणोफालतू खरचो करणो
भेड़ चालदेखा देखी
मालीपन्ना उतरमओसांचोट सामनै आवणी


ओखाणा

परिभासा-ओखाणां सबदां रो बो समूह हुवै जिको पूरो वाक्य हुवै अर स्वतंत्र रूप सूं प्रयोग में लायो जा सकै। वां रो खुद रो अरथ हुवै। वाक्यां मांय प्रयोग करणो जरुरू कोनी।
उदाहरण-
बिना अंकल रै ऊंट उभाणो।
पैरण नै घाघरो कोनी अर नांव सिणगारी।
आप डूबतो पांडियो ले डूब्यो जजमान।
घर घोस्यां रा बलसी पण ऊंदरा किसा सुख पासी।
आंधै रै गफ्फी अर बोलै रै बटोक।
राम छटावै रो छटै नी सरि ही पटको।
ओस चाटबां सूं तिस कोनी बुझै।
एक हाथ सूं ताली कोनी बाजै।
खरबूजै नै देखर खरबूजो रंग बदलै।
नौ दिन चल्या अढ़ाई कोस।
पांवरी सांड अर लुहागरजी को भाड़ो।
देसी ऊंट पूरबी चाल।
कदे गाड़ो नांव पर कदे नाव गाडै पर।
खाण पीण नै खेमली अर नाचण नै मगरजा।
ईवारा फूल बाई रै लाग जावै।
सौ सुनार री एक लुहार री।
दादू द्वारै मांय कांगसी रो कांई काम।
सांसी अर गंडासी सागै कोनी रैबै।
सांच नै आंच कोनी।
उधार तो लाय में भी कोनी बलै।
आंधै आगैं ढोल बजावो ओ उभड़माटो क्या रो ?
भेड़ नै घी देवो तो कैवै मेरी आंख क्यूं फोड़ो।
भागतै भूत री लांगटी चोखी।
रावलै रो तेल पल्लै में ई चोखो।
पेट गोडां कानी लुलै।
घी तो मूंगा में ई ढुल्यो।
जातै रा पग दीखै।
कालो मूंडो अर लीला पग।
गांव बस्यो कोनी अर मंगता ायगा।
मंड छोटो मोडा घणा।
म्हांरी मिनी म्हां सै ई म्याऊं।
अकल रो आंधो, गांठ रो पूरो।
अंधेर नगरी चौपट राजा।
थोथो चणो बाजै घणो।
बिना मन रा पावणा तनै घी घालूं कै तेल।
कालो आखर भैंस बरोबर।
होम करतां हाथ बलै।
लाधडियै में रहसी बो जै सीताराम जी की कहसी।
मितनी नै ताकलै रो घाव घधू।
खुद राजोगी जोगणा अर आन गांव रा सिद्ध।
जिस्या देस उस्या भेस।
दुष्ट देव रा भिस्ट पुजारा।
कांधियां सागै थोड़ा ई बलै।
सिर पर खेी अर मिन्नर में बड़बा देई।
तिल देखो तिलां री धार देखो।
उल्टो चोर कोतवाल नै डाटै।
खारा चाखै बै मीठा भी चाखै।
गुड़ होसी बठै माखी भी आसी।
लाडू बंटसी जठै भोरा भी ख़िंडसी।
उदलती नै दायोज कोनी मिलै।
पावणी नातै कोनी भेजी जाय
ओसर चुकी डूमणी गावै आल पताल।
बै पाणी मुलतान गया।
दूजै री थाली मांय लाडू बड़ो दीखै।
राबड़ी रै दांत आयगा।
नौ मामां रो भाणजो भूखो ई सोवै।
मा माम मामा आया, कै बेटा भाई तो मेरो ई है।
चोरी री मा घड़ै मैं मूंडो देय रोवै।
मूंग मोठ में कोई फरक।
चोर-चोर मोस्यारा भाई।
गूगो बडो क राम। बड़ो तो है बो ई पण सांपा सूं
गैल कुण छु डावै।
रामदेवजी नै स्है ढेढ ई ढेढ़ मिलै।
सांप री किसी मांवसी।
ठाडै रो डोको डांग नै फाड़ै।
उत गई रा टोरा लागै।
समझणियै नै सैन घणी।
बारा बरस दाब्यां पछै भी गंडक री पूंछ बांकी रहसी।
पाणी पीर जात के पूछणी।
घर जाये का दिन गिणैं क दांत।
आंधो बाटै रेवड़ी फिर फिर घरकां नै दे।
आ रै म्हारा सपट पाट मैं तनै चाट तूं मनै चात।
भाई मरे को धोखो कोनी भाभी की करड़़ावण निकलगी।
मोड़ा नै मलार आवडै।
के कुत्तड़ी रै पाण गाडो चालै।
के जठ रै भरोसै बटी जणो है।
आभै बिजली चमकै अर गधो लात बावै।
समै बड़ो बलबान।


सूक्तियां

जिकै वाक्य मांय निती संबंधी सीख हुवै अर उण रो एकलो प्रयोग हुवै बी नै सूक्तियां या साखी कही जावै। सूक्तियां यासाखी घणकरी साधु-संता रो बाणी अर बड़ेरां रोसीखरै रूप में पद्य मांय जनमानस रै बीच प्रचलित है।
उदाहरण-
सीख सरीरां ऊपजै दीयां नै लागै डाम।
जाण जठै माण रीस करै सो रूढा।
राजा भोज नै मोगरी, गांगलै मूढ़ा।।
गंगा जी रो न्हावणो बिप्रां सूं ब्यौहार।
डूब जाय तो पार है अर पार जाय तो पार।।
जे सुख चावै जीव रो तो बोदो बण कै जीव।
जाटकवै सुण जाटणी इणी गांव में रहमो।
ऊंट बिलाई लेयगो हां जी हां जी कहणो।
खारी बेल कड़वी तूमड़ी अड़सट तीरथ न्हाई।
गंगा न्हाय गोमती न्हाई, मिटी नहीं कड़वाई।।
देख पराई चोपड़ी क्यूं ललचावै जीव।
तिरिताय तेल हमीर हठ चठै न दूजी बार।
घर जातां, धर्म पलटता, त्रियां पडंतै ताव।
तीन दिहाड़ा त्याग रा, कुण रंक कुण राव।।
ज्यां रा पड़ या सुभाव, क जासी जीव सूं।
नीम नै मीठो होय, सिच्यां गुड़़ घीव सूं।।
थावर कीजै थरपना, बुध कीजै व्यौहार।

वयण-सगाई
वयण सगाई डिंगल गीतां री एक मोटी विसेसता है। ओ एक तरै रो सब्दानुसास है। इणरो अरथ है बर्ण द्वारा स्थापित सबदां री सगाई रा सम्बन्ध। आसगाई साधारण तौर सूं चरण रै पैलै अर पछपोतड़ी रै सबदां री हुवै। पणकदे-कदे बीजा सबदां री भी हुवै। इण होड़ सूं वयण-सगाी रा भेद सामीं आवै-
1. साधारण-जिण मांय चरण रै पैलै सबद री चरण रै पछपोतड़ी रै सबद सूं सगाई हुवै।
2. असाधारण-इण मांय चरण रै पैलड़ै सबद री चरण रै उपान्त्यसबद रै साथ
या चरण रै दूसरै सबद री चरण रै पछपोतड़ी रै सबद सूं सगाई हुवै।
वयण सगाई कदे ेक ही बर्ण सूं अर कदे-कदे दो मित्र वणी सूं स्थापित हुवै-
1. उत्तम या अधिक-जद सगाई उणी वर्ण सूं हुवै।
2. मध्यम या सम-जद सगाई मित्र स्वरां अर अर्ध स्वरां (व,य) सूं हुवै।
3. अधम या न्यून-जद सगाई मित्र व्यंजना सूं हुवै।
वयण सगाई नै स्थापित करण आलो वर्णकदे पिछलै सबद रै सरूआत में आवै, कदे बीच में अर कदे पछपोतड़ी में आवै।
सरूपोत मेल-जद वयण-सगाई नै स्थापित करणआलो वर्ण अन्तिम सबद रै सरू में आवै।
मध्य मेल-जद वयम सगाी रो स्थापक वर्ण छेलै सब्द रै बीच में आवै।
अन्त मेल-जत वयण सगाई रो स्थछापक वर्ण पछपोतड़ी रै सबद रै अन्त में आवै।
उदाहरण-
साधारण-
1 दल सिणगार देसवंस दीपक
2. गायण तणा कुण नखित गिणै
3. माल कलोधर अमलीमाग
4. पाखर घोर बाजती पायल
5 जधि हथलियो जुटे जुबाय
6. बरमाला करिमाल वहै
असाधारण
1. तो जनमियो देह जड़धार
2. मिलतां देह हुवौ मुह रावत
3. ते सांकडि धातिया सिगले
4. बित अकबर, घड़ चल चड़ै
5. चंवरी वो पडि चढे ववरंग
6. सुधि र चोल तंबोर रंगि


कागद लेखन

मन रै विचारो रो दूजै बेली नै भेजण रो सांचो अर सरल साधन कागद है। जिकी बातां आपसही मांय आमी-सामी नीं कहीज सकै बैं कागज मांय लिखर भेजी जा सकै।
कागद लिखते बखत ऐ बातां जरूरी है-
1. सरूआत सरी सम्बोधन सूं होवणी चाहिजै।
कागद रै ऊपरजगां ्‌र तारीख, बाद आद लिखणा चाहिजै।
घरेलू कागदां मांय सरूओत री ओल्यां खेम कुसल रै समाचरां री हुवै।
सरकारी कागदां मांय सरूआत मुख्य विसै सूं ई करीजै
5. कागद सरल अर सुभाविक लिखणो चाहिजै। पढ़-णियै नै ऐयां लागै के लिखणियो सारै बैठ्यो बातां करै है।
6. फालतू लम्बाई नीं बढ़ावणी चाहिजै पण जरूरी बात बी नीं छूटणी चाहिजै।
7. कागद मांय कड़वी बात अर गाली-गलौच नीं लिखणी चाहिजै।
8. कागद री सरूआत री ज्यूं समाप्ति भी आछी होवणी चाहिजै।
9. अंत मांय धन्यवाद, सादर, विनीत, आपरो घमैमान सेती आद आदरसूचक सबद होवणा चाहिजै।
10 समाचार लिखणै रै बाद कागद खतम होबतां ई लिखणैय रो नांव अर तारीख होवणी चाहिजै।
11. पतो सावधानी सूं लिखणो चाहिजै। कागद पावणियै रोपूरो नांव, मकान रो नम्बर, गली, मोहल्लो, गांव, कस्बो, शहर, प्रोत रो नांव साफ आखरां मांय हुवै। पिन कोड़ नम्बर भीलिखणा चाहिज जीं सूं कागद बेगो पूगै। गांव में कागद भेजणो हुवै तो डाकखानै रो नांव लिखणओ चाहिजै। कागद रो वजन देखर टिकट सही लगावणी चाहिजै।
राजस्थानी कागदां रा नमूना
राजस्थान में कागद लिखणो रो निरवालो रूप है।
सिधसिरी रै साथै सरू हुवण आलै आं पत्रां में जठै सूं कागद लिखै उणरो बखाँण सरूपोत में ई आज्यावै अर साथै ई जिणनैलिणै उणरो भी।
पण सब सूं ऊपर गणेसायनम, श्री रामजी हदा सहाय छै आद लिखाय जावै।
राजी खूसी रा समाचार लिख्यां पछै अपरंच रै साथै मूल बात लिखीजै। पछै और कोई विसेस बात हुवै उणरो उल्लेख कर कागद रै पछपोतडी में मिती लगाईजै, लिखणियै रो नांव चूंकि पैलां आ जावै इणवास्तै अन्त में नांव नीं आवै,
नूमना नीचै मुजब है-
जूना कागदां रा नमूना
1. । -गणेसाय नमः
सिधी सरि सवाी जैपुर स्थान चि. जिदाराम जौहरी मल जोग लिखावत चतुरभुज जी जिंदाराम नानगराम केन राम-राम बांचज्यो।
1 । श्रीरामजी सहाय छै.
सिधी सिरी ममई बंदर सुथान चि. जिंदाराम मिरजामल जोग लिखावतु चतुरभुजजी, चिंदाराम, नानगारम केन राम-राम बंचणा।
फिरंगरी री भोज भरथपुर जाय लागी छै। जैपर री फौज लिछमणगढ लूट लियो है, ओ ईागै तुमां नै लिखी छै। खंडलो लिछछमणसिंघ छोड देवौग।
मिती पोह बदी 12 रात नै, समत 1882
**
1 । श्री रामजी हणमानजी साय छै
1 । श्री महादेवजी साय छै
सिघ श्री पटणा सुतानेक चि. भगवान दास गोरधन-दास जोग लिखायतु ममई बंदर सेती रामलाल भागचंद की राम-राम बंचणा।
***
सिद्धी श्री सर्वोपमान जोग्य राज्य राजेन्द्र राजाधिराज महाराज राजाजी श्री सवाई रामसिंह, जी जोग्य लिखायतं महाराजाधिराजराव राजा श्री रामसिंह केन जुहार बंच्या। अठा का समाचार श्री जी की कृपा सूं भला छै। आपका सुख समाचार सदा आरोग्य चाहिजै। ्‌परच आप बड़ा छो। कृपा बुहार एकता राखो छो तीसूं बिसेस राखोगा। और यां दिनां  में आपका मिजाज की खुसी का समाचार आया नहीं सो समाचार लिखावोगा और विद्याभ्यास में कस्या ग्रंथ को अध्यन कठां ताी हुववौ सो लेख द्वारा खुसी करोगा और अठा उठा की सनातन की एकता जाणकागद समाचार हमेसां लिखा-वोगा। मिति कार्तिक शुक्ल 6 संवत 1904
श्री
सिंध श्री सुभ सुयानेग सरब ओपमान बिराजमान सकल गुणनिधाम श्रीमान रामसिंध जी गांव राजियासर पेतो जोग लिखो मालवोय नगर जयपुर सूं नरेन्द्र सिंघ रो खनाघणी अरज हुवै। अत्र कुसलम् तत्रास्तु। अपरंच समाचार एक बंचज्यो कै सावग रो तीज्या पर जैपुर मांय आछो मेलो भरै अर सवारी निकलै। आप जरूर पधारज्यो। आपरै पधारणै सूं म्हारी सोभा बधसी। टाबरां रै माथै हाथ फैरज्यो अर रावलै मांय गुजरो अरज करावज्यो। कागद रो पडूतर दीज्यो। घमैमान सेती।
आसाढ बदी दूज 204
**
श्रीरामजी
घरां रा समाचारां रा भाई नै कागद
सिध श्री सुभसुयानेक जोग लिख लिछमणगढ सूं आगै मौसाल भाई रामेसर सूं बजरंगलाल का राम-राम बंचणा। अठै बठै श्री बालाजी महाराज सदा साय छ। हमां लोग अठै राजी खुसी हां. आपकी राजी खुसी श्री बालाजी महाराज सूं सदा नेक चावा है। ्‌परंच समाचार एक बंचना कै बापूजी अबार सालासर है। बाई मीन्नूी नै छ छक देवणै बात बापूजी सै हुयी नहीं है। दो च्यार दिनां नैं गांव जावणै को विचार है। पछै कोई बात लिखूंगा।
टाबरां नै राजी राखज्यो। गीगै रै सिर पर हाथ फेरज्यो। बाई राज भाभी नै भोत याद करै। गांव आलणै की लिखज्यो. कागद रो पडूतर देवोगा। मेह पाणई को लिखज्यो-लिखण आलो थारो भाई बैजू। मितो भादवै सुदी 8 सोमवार।
आज रै ढालै रा कागद
मानीत भाई सांबरजी,
घणैमान राम-राम।
अपरंच आपरो कागद मिल्यो नहीं। आपरी बात मैं नोट कर लीनी है। काम हुवतां ई आपनै सूचना भेजे देवूंलो और गांव रो हाल कोनी लिख्या सो लिखज्यो। लारलै दिना सुणी है कै मोदीजी पोलीटेकनिक कोलेज खोल रैहा है। आपनै तो ठाह बुवैली। खुलासो करवावोला।
म्हारै जोग लिखज्यो।
आपरो ई
रामसेर लाल
प्रधानाध्यापकजी नै छुट्टी सारू अरजी
मानीता प्रधानाध्यापकजी
श्री रघुनाथ हा. सै. स्कलू,
लक्ष्मणगढ़, (सीकर) राज.।
आदरणीय,
घणैमान अरज है कै म्हांरै नानेरै म्हारै माजाजी रै बेटै भाी रो ब्याव है। इण वास्त मन म्हारा मा रै साथै फतेहपुर जावणओ पड़सी। गणी रिपा कराय पर एक दिन छुट्टी स्वीकार करावो सा।
आपरो आज्ञाकारी शिष्य
भंवरलाल सैनी
टी.सी. लेवणसारू अरजी
घणा मानीत प्रधानाध्यापक जी,
बगड़िया बाल विद्या निकेतन,
लक्ष्मणगढ़ (सीकर)राज.।
आदरजोग,
घणमान अरज है कै ग्यारा बरसां ताईं आपरै गुरू चरणां में बैठर मैं निकेतन में शिक्षा लेवतो रैयो हूं। इण बरस मैं 11वीं कलास पास कर लीनी है। आपरी अर सैं गुरू लोगां रो क्रिपा सूं म्हारै प्रथम श्रेणी रा अंक आया है। अब मैं ई पढाई आगै जारी राखणी चावूं। आपसूं अरज है कै आप मनै टी.सी. दिरावो सो म्हारो कोलेज में दाखलो हूं ज्यावै।
घणैमान।
आपरो आज्ञाकारी शिष्य
रोशनलाल शर्मा
नौकरी खातर आवेदन
मानीता मैनेजिंग डाईरेक्टर,
डेटरी डवलपमेंट कारपोरेशन,
जयपुर (राज.)
विषय-क्वालिटी इंसपैक्टर सारू आवेदन।
संदर्भ- नवभारत टाइम्स 17.8.86 में आपरो विज्ञापान
आदर जोग,
घणैमान अरज है मैं डेरसी साइंस में घणी बरस डिप्लोमा लियो है अर स्नातक भी हूं। आपरै विज्ञापन में दरसायोड़ी सगली योग्यतावां भी पूरी करूं हूं। म्हारा प्रमाणपत्र इण आवेदन रैसाथै नत्थो है। मनै विस्वास है कि आप मनै म्हारो योग्यता दिखावण रो मोको देस्यो। मैं आपनै विस्वास दिरावूं कै मैं म्हारै कानी सूं कोईकसर नीं राखूंला, पूरी मेहनत करूंला अर कारपोरेशन री तन-मन सूं सेवा करूला। मनै विस्वास है के मनै सेवा रो मोको दियो जासी।
घणैमान
ापरो
भवानीमल मीणा
मीणां रो मोहल्लो
लक्ष्मणगढ़ (सीकर)
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प्रेसनोट-
जयपुर, 15 अगस्त, 'राजस्थानी भासा बाल साहित्य प्रकाशन ट्रस्ट' रै सालना जलसै मांय प्रदेश रै राजस्थानी बाल साहित्याकरां रो वांरै उल्लेखनींय कामसारू सम्मान करी-जियो। जलसै री अध्यक्था राजस्थान रा शिक्षा मंत्रीजी करी अर विसेस अतिथि रै ओहदै री नगर रा प्रतिष्ठित रचनाकार श्री अमन सोभा बधआी। इण मोकै मंत्रीजी महोदय राजस्थानी भासा नैं मान्यता दिरावण सारू आप कानी सूं पीर कोसीस करणै री घोण,ा करी। वै ओ बरोसो भी दिरायो कै राजस्थान विधान सबा सूं इण आसय रो प्रस्ताव पास करावणरी बै घमेरी चेस्टा करैला।
मंत्री महोदय ट्रस्ट री ग्यारा पोथ्यां रै सेट रो विमोचन कियो अर रचनाकारां नै सम्मान-पत्र भेटं किया।
सचिव
संपादन रै नांव कागद जिण में गांव रीसफाी सारू शिकायत
मानीता संपादकजी,
नवभारत टाइम्स,
टौंक रोड, जयपुर।
आपरै नांवजादीक ैदनिक रै जरियै मैं म्हारै गांव री सफाी व्यववस्था कानी सिरकार रो ध्यान दिरावणो चावूं।

गांव री सफाई व्यवस्था एकदम गड़बड़ाईज्योड़ी है जगां-जगां कूटलै रा ढिंग लाग मेल्या है। सड़कां पर सफाी नांव कोनी। गन्दो पाणी सड़कां परतिर रियो है। नाली री व्यवस्थान कोनी। नगरपालिका रा अधिकारी चूंगी चोकी कानी ध्यान दे मेल्यो है। सफाई इन्सपेक्टर नीं जाणै कठै सो रैया है।
बजार री स्थिति और इज माड़ी है। दुकानां रो कचरो ठैलाआलां रो बगायोड़ो बेकार गली सड़ी चीजां रो ढेर आखै बजारनै नरक लोक मेल्यो है। चील कांवला पड़ता दीखै। कठै कोई मर्योड़ो चूसो बगा दियो तो कठै कोई गल मोड़ टमाटर, सब्जी, फल हालत भोत माड़ी है। इणसूं बेमारी फैलगी है। म्हारी सिरकार सूं गुजारिस है कै बै बेगा सूं बेगा इणहालात कानी ध्यान देवै। जनता में आक्रोस है। टेम काढ तो लोगां रो आक्रोस काई ठा काई कर बैठै।
नगरपालिका रै सभाई विभाग रा अधिकारियां सूं बूझ ताझू करीजै अर नगर री सफाई व्यवस्था तुरंत सुधारी जावै।
बेगाराम भाटी
वार्ड नं-3
लक्ष्मणगढ़ (सीकर)
बड़ै भाई नै स्कूल री बातां रैबखाण रो कागद
आदरजोग भवंरजी भाी सा,
पांवाधोक।
आपरो कई दिनां सूं कागद नीं मिल्यो। स्यात आप काम मेंटेम कोनी मिली। अठै राजी खुसी हू। आप परमपिता परमेश्वर री किरपा सूं राजी खुसी हुवोला।
अपरंच समाचार एक बंचज्यो कै म्हारी  अर्द्धवार्षिक परीक्षा हुयगी है। पेपर अछा हुयग्या है। पढ़ाई ठीक ढंग सूं चाल री है। होस्ट में म्हारो एक भायलो है। म्हे दोनूं साथै सुवाल करां पढ़ां। वो भी पढ़णैं मेंकाफी हुस्यार है।
स्कूल सूं होस्टर अर होस्टल सूं स्कूल रो बतायोडो आपरो नियम म्हारै सारू भोत कीमिया साबित हुयो है। आपरैं बतायै मुजब आथण मैं जरूर खेलूं। फूटवाल मनै भीत आछ्यो लागै। स्कूल री फूटबोल टीम में म्हारो चयन हुयो है। जिला स्तर रा खेल आगलै महीनै सरू हुय रैया है।
भाभीजी नै म्हारा पावांधोक अरमुकेस रै म्हारै कानी सूं सिर पर हाथ फेरज्यो। कागद पाछो दीज्यो। समाचार सारा लिखज्यो।
आपरो छोटो भाई
वासुदेव चौहान


निबंध रचना

निबंध रो मतलब है आची थरै बंध्योड़ो। भाव अर सामग्री रै रूप मांय भासा नैं बांधर राखओ ही निबंध रो असल मतलब है। कम सूं कम सबदां मांय बेसी बेसी बात कैवणो हीं निबंध रो खास गुण है।
1. निबंध रै लेखण नै सरू रो, बिचललो अर आखरी-तीन भागां मांय बांट्यो जा सकै है।
2. सरू हवतां ईपाठक रै मांय पढ़बा री लगन लागै इसो खिंचाव होवणो चाहिजै।
3. बिचलै भाग मांय ्‌सल बिसय नै समझाणो अर उणरोपूरो विस्तार होणो चाहिजै।
4. जिकी बात कहीजै वा ेक पछै एक रूप मांय अर दमदारी सूं कहीजणी चाहिजै।
5. अंत भी बड़ो असरदार हुवै नीं तो सगलो कर्यो-करायो गुड़-गोबर हो जावै।
6. निबंध चारा भांग माय बांट्या जा सकै है-
(क) विचारहाला निबंध-लेखक आप रै विचारां नै आछै ढंग सूं पेस करै। आं मांय विचारां री प्रधानता रैवै।
(ख) विवरण हाला निबन्ध-जठै कोई घणा, जगां, चीज-बस्त आद रो विवरण हुवै।
(ग) बरणान प्रधान निबन्ध- जठै लेखक यात्रा, तीर्थ, जगां आद रो वरणन करै।
(घ) भावप्रधान निबंध-जठै लेखक भांवां मांय डूबर आप रै ग्यान अर कलपना सूं भावकुता भरेड़ा निबंध लिखै, वै भाव प्रधान मानीजै।
7. निबंध भासा री सांवठीकला है। इण मै लिखणो अर पढणो गंभीर अर गुणीजन वास्तै ई भलो  हैं। ईं सू ं लेखक री भासा सैली री परख हुवै। ई वास्तै सबद ठावा लिखणा चाहिजै।
सुरंगी रूत आई म्हारै देस
म्हारो देस। घोरां रो देस ! अठै गरमीं में गरमी अर सरदी रै दिनां में सरदी मोकली। बरसात री रूत ! सुरंगी रूत ! गरमी मांय झुलस्योड़ा-भुलस्योड़़ा रूंख अर मिनख दोनूं सरक हुय जावै। डूंगरां रै लील बापरै अर वै मनमोवणा लागण लाग जावै।
बरखा री रूत भलेरी रूत ! च्यारूमेंर हरियाली। हर्या-भर्या खेत पोलमपोल भरयोड़ी जोड्‌या अर तलाब। पाणी री परत सफेद झक चांदी री चिलकै। पंछी गधरा-मघरा बोलै। कमेड़ी कुटूंछुं-पीसूंछुं, टिड़ूडी री सुहावणी टीटूऊं-टूटूउं अर भींभरी री कुऊऽऽ सूं धती मोद सूं भर जावै।
किरसो खेत रूखालै। घर-घिराणी सिर पर खरलो छका लियां जावै। गायचरै। बाछड़ियो मोद सूं उछलै। बकर्यां मुंह मारती चालै, अर सोभा देखतां ई बणै।
मींडकां री टर-टर, गुवालियां री टिचकारी, बायड्टां रा गीत, कोयल री कूक-स्है अनोखी ! बरखा बरसै। मोटी-मोटी छांट ओसरै अर गीत इणनैं के कैवै ? देखो !
मोटी-मोटी छाटां ओसरी ए बदली
कोई छांट घड़ै कै मान मेवा मिसरी
सुरंगी रूत आई म्हारै दैस।
म्हारो देस ! मरूधर देस !
भरपूर फसल, यानी धरती रो भरपूर जोबन। हरी-भरी गोद। कठै सांप जीभ काढतो ही दीखै, कठै टींडसी राणी टमका करै तो कठै काची-काची खींप खड़ी खड़-खड़ हांसती दीखै।
जांटी तलै किरसो सिट्टा मोरै, फाका देवै। उजसणी सूं आखा दाणा काढर निबायो-निवायो मोरण तो खायां ई बणै। अर फेर फोर्ड मतीरो ! लाल चिराण गिरी। भगवान देवै तो पावै। कित्ती लाडेसर है, कित्ती सुखदेवम आली है आ बरखा री रूत !
आवो ! आवो !! मरूधर देस। खेतां री मौज लैस्यां। सिट्टा चाबस्यां, मतीरा खास्यां। आ मौज अर सुवाद तो म्हारो मरूधर देस ही देवै। अर देवै आकी सालोर जीवणआधार मोटोड़ो बाजरो, सुलखणी बाजरी, गोरी मोठ, मूंग, चूंला अर म्हारी गउवां खातर गुंवार...। बरखा तो बरखा इज है।
दिवाली
दीप ! दीप यानी उजास। उजास अर प्रकास जोत में है। जोत ग्यान है। प्रिथ्वी पर रोसनी अर प्रकासन ग्यान रो है। दिवाली आपां इणी बात नै महेश-हमेस तांई याद करण सारू मनाबां। इण बात सूं कई बात और भी जुड़योडी है। जियां, जुगपुरुस राम रावणपर विजय पायी। यानी कै राम रो प्रबल उजास-ग्यान रावण रै अंधारै अग्यान पर उजास कर्यो तो अजोध्या रा लोग इणनै परबरै रूप में मनायो अर खुसी मनाई।
दिवाली यानी खुसी। दिवाली रो तिंवार यानी खुसी रो परब। आदमी ग्यान री खोज में लाग मेल्यो है। जद बीनै मोटै उजास री बात ल्हाद आवै तो वो इण रो जग नै ग्यान करावै। लोग इणनै खुसी मानै अर आप आपरै तरीकै सूं खुसी मनावै, आ मोटी खुसी री बात ही टेम पार तिवार रैढालै ढल जावै।
आदमी आज विग्यान रै जुग में जीवै। जठै वो बड़ा-बड़ आविष्कार कर्या है। उठै बड़ी-बड़ी अणूं नती चीजां री भी खोज-बीण करी लीनी है जिकी बोंरै ग्यान री मोटी बात नैं तो बतावै पण माथै पर चढ़योड़ी अग्यान री लकीरां साथै दिखावै। जठै ग्यान विग्यान री बातां सूं आदमी नै सुख-सुविधावां मिली है उठै इज की चीजां उणरै दिमाग अर हात सूं बणगी है, जिसीक उणरी सुखसांती नैं हिला मैली है। अणु-परमाणु री खोज एक दिन भोत बड़ी बात मानीजाती, पणइणरा विध्वंसात्मक खेल देखर आदमी कांप उठ्यो है अर जाण इण ग्यान सूं आदमी उथफीजग्यो है। जद मिनख इण रावण पर विजै पावैलो अर मानखै नै इणरै भो सूं मुगती दिराबैलो उण दिन एक दिवाली ौर मनीजैली जिणरी खुसी अपार हुवैली. आज तो दिवाली री खुसी दीयै री लौ सूं आवतै प्रकास में भी रै अंधारै सूं लिपट मेली है। जिण दिन परमाणु जुद्ध रै खतरै रूपी रावण पर मिनख रै मांय बैठ्यो राम हु पर उठर धनुसबांण संभालैलो अर विजै पानैलो उणदिन थारै हाथां हांसता दिवलां री खुसी, उजास अर प्रकाश अपरा हुबैलो। आवो आपां इणी विजैसारू दिवाली रै दीवां सामीं आ सोगन लेवां कै आपां या लड़ाई जीतण सारू एक सेना तैयार करांला अर इणसेना रा सावधान सिपाई बणर इणजुद्ध नै जीतांला। जद मिनख ओ गढ जीतैलो उणदिन देखज्योदिवाली री रोनक और इज हुवैली।
रेडियोधरमी विकरणां रो खतरो भी मानखै सारू भोत बड़ो खतरो है। संसार रो मानखो इण सूं भी खायोड़ो है। आ इज वजै है कै सब तिंवार आज फीका-फीका लाग रैया है। भो में क्यांरी खुसी। मिनख जात नै इणसूं मुगती दिरावणियो भी मिनख ई है। आजरै मानखै नै भोत सावचेती री जरूरत है। बींनै विग्यान री प्रगति रै साथै खतरां सूं सावधान राखणो सिरकार री भी दाईत्व बणै। पण सत्ता रो रूख दंभी है। इण दंभ मांय आखै विश्व रो सत्ता बावली हुय मेली है। मिनख नै जाग राखणी पड़सी। दीवा इणजाग सारू प्रेरणा है। आदमी सूत्यो रैवणै री बजै सूं आं दीवां में थरथराट है। दीवां कांपै। रोसनी नै खतरो है। इण बात नै मिनख नै देखणी पड़सी।
दिवाली जागरूक मिनख री क्रियासलीत ारी विजै रो अरथ राखै। इण ्‌रथ नै आपां समझां अर विजै हासल करर दिवाली मनावां तो मानखो आसीस देवैलो। दिवाली अरथ पावैली। दिवार खुसी रा ओसर बणैला. नहीं तो जिको फीकास आदमी पर छायोड़ा है वो आं तिंवारां नै भी आपरी ओट में लुका लेवैलो। पण मिनख धरती रो उजास है। जद तांई मिनख धती पर रैसी, इणधरती पर अंधारो कदै नीं रह सकै।
तारां छाई रात
रात सुरजी री थकाण है। सुरजी चिप जावै तो रात कुलबै सी आ जावै, अर धरती अंधारै सूं ढक जावै।
रात तो रात इज हुवै पण फेर भी रात राथ में फरक हुवै। जियां चांदणी अर अंधारी रात। चांद असमान में मुलकतोरैवै तोरात चांदणी रा,, जद चांदणी नीं हुवै तो अंधारी रात। इयांी मेह बरसै अर घोर हुवैअंधारो तो मेह अंधारी रात हुवै अर कठै ईप्रकास रो पलको भी नीं दीखै तो काली स्याह रात।
अमवास री रात अंधारी रात, पूनम री रात चांदणी। तारां छाई रात भोत ई सुहाबणी मनमोवणी रात हुै। कुदर री आ भोत ई सोवणी रचणा है। इणबखत रात आछीलागै। ठंडी रात, भोत भलेरी लागै। तारां सूं भर्योडो, आबो अर मायं मुलकतो गोलगट्ट मटका करतोचांद देख्‌ांई जी सोरो हुवै।
चांद रै सामैं तारां री के ओकात। पण तारां री टिमटिमाट आपरी जगां ओपै। टिमटिमाट रात री सोभा बधावै। चांद तारां सूं दीपै, औपै। कुदरत री छिब नै सुंवा रै दूधधोयो चांदणी न्हायो आभो। मांय मुलकतो चांद अर तारां री टिम-टिम री बात इणस्यात मानखो करै ई। रात ईयां लगै जाणै कुदरत आपरै ओढणियै में चिलकणियां तारा जड़़ाय ओढर आयी हुवै। तारां छाई रात धरती रो सुख हैृवीरो आणंद।
चांद सुरजी सूं प्रकास लेवै इण वास्तै सुरजी बड़ो हुवै।
जद जांच थाली रै मान आभै में मुलकतो चालै तो तारा फीका लागै। पणजद चांद अमावस सांकडी आवतीदेख आधो, हुय जावै तो तारां री जोत सवाी हू जावै। अंधारी रात में चांद रो उजास कमती हुवै। इम बखत तारा ई अंधारै आभै में आपरो उजास भरै अर जगा जोत करै धरती नैं, मानखै नै। तारा जितरा मिनक।
आ रात तारां छाी रात हुवै। तारा ई अंधारै सूं लड़ै। चांद तेखण नै नीं आवै। सूरज तो छिप जावै म्हारा बीर ! तारा धरती पर अंधारो नीं हुवण दे। टिम-टिम चमकता रैवै। आपरै बूतै गैल चांदणो करै।

धरती रा मिनख तारा है। गुणी मिनखचांद है अर धरती रै अंधारी री पीड़सूं जलता अर आपरो उजास चांद अर तारां नै बांटता देवता लोग सुरजी। मिनख रै होतां-सोतां इण धरती पर अंधारो कदे नीं हुय सकै।
जद रात नै चांद बाबो धरती रो पै'रो देवो तो तारां री उण रै साथ फौज हुवै। अंधारै रो बस धरती पर चाल नीं सकै। धरती रामिनख अंधारे सूं पूरा सावचेत-बड़ा अर छोटा सब।
तारा सावचेत मिनख है। चांद महापुरस। सुरजी जगु परुस है, म्हा हा व्हाला भाई ! धरती माठै पीड़ अंधारो है। अर इण पीड़ में दरत भरै अमावस री रात। इण अमावस री रात में चांद कठै सूं लावां ? तारां रो महतब भोत ठाडो है इण बखत।
मिनख री जिन्दगानी चांद सरीखी हुवै तो बात ही के पण तारां सरीखी तो फक्क्यात हुवणी चाहिजै। बिना परगास रो मिनख मिनख नीं हुवै।
थे ई तो हो इण धती रा तारां। धरती माता नै थारै सूं भोत बड़ी आस है। थे  एकठ हजावो तो धती परगास री नादीदी नीं रैय सकै। थारो उजास धरती माता रो सुख है।
थे ही तारां छाई रात रा तारा हो। ा बात थारै सूं ई बणी है। इण हालत में धती परगास री नादीदी कदे ई नीं रैय सके।

डूंगजी
राजस्थान में सीकर जिले मांय गांव बठोठ डूंगजी यानी डूंगरसिंघ सेखावत री जलमभो है। बठोठ ठिकाणै रा ठाकर डूंगजी कायदै मुजब सीकर ठिकाणै री चाकरी करता। सरकारी दस्तवोजा मांय डूंगजी नै सेकावाटी ब्रिगेड री घुड़सवार फौज रा रिसालदार बताया है। विक्रम संवत 1891 यानी सन् 1834 ताणी डूंगजी उण ब्रिगेट मांय चाकरी करी। सेखावाटी बिग्रेड री थापना अंगेरजां री संधि मुताबिक सीकर रावराजा करी। ई बिग्रेड नै सेखावाटी, तोरावाटी, चूरू, लुहारू, अर आं रै सांकड़ै अंगेरजां री खिलाफत करणियां नैधूल चटावण रै काम में ली जाती। जूंगजी फिरंग्यां री आ चाल समझग्या ्‌र वां री कुबद रा सागड़दी नीं बणर मातभोर री सेवा करणो आप रो धरम मान्यो। आपसरी मांय लड़ायर बांटो अर राज करो री अंग्रेजां री नीत डूंगजी जाणचूक्या हा। नोकरी छोडी अर सिर पर कफन बांध अंगरेजां नै भगावम रा मंसूबा करता साथी संगलियां नैं सागै लेयर बारोठ्या बणग्या।
डूंगजी बनवास काटता थका अंगेरजां सूं भिड़ंत करता रैया। नसीराबाद री छावणी लूटर अस्तर-सत्कर काबू कर्या। अजमेर, नीमच, भीलवाड़ा अरआगरै ताणी अंगरेजा रां खजाना लुट्या। आपरी छापाम लड़ाी सूं अंगरेजां रा छक्का छुटावतां रैया अर खजना लूटता रैय।ा एकर पकड़ीजर आगरै रै लाल किलै मांय निजरमंद होग्या। होली रै तिवार पर सगलै वां रा मिनख रामस्वायमा करण बठोठ रै गढ़ मांग भेलाहुया। गढ़ रामालकि डुंगजी आगरै रै किलै मांय बंद होवण सूं होली री मनवार डूंगरी रा भतीजा जुवांरजी करण लाग्या अर मैफिल मंडगी। गुड़, पतासा, खारक, सिंधाड़ां रै साथै दारू अमल री मनवर हुई। डूंगरी री जोड़ायत ड्योडयां आयर जुवांरजी-मौस ाबोला-ठाकर जेल काटै अर गांव दारू री मैफिल में डूबग्यो। चलू भर पाणीं नी मिल्यो। ठुकराणी री आ बात कांनां पड़तां ई सगली मैफिल मांय सरणाटो हुग्यो अर सातूं जात रा मिनख फिरंग्या सूं डूगजी नै छुडावां नै आगरै भीर हुग्या।
आगरै मांय जमना किनार घाड़ाव्यां डेरो कर्यो अर लोट्यो जाट, करण्यो मीण्यो, सांवलो रैबारी, जुंवराजी अर साथी संगलिया रात नै आगरै रै किलै मांय कूदर मारकूट कर डूंगजडी नै मलेयर पाछा आयग्या। नसीराबदा री छावणी लूटर हथियार भेला कर्या। छावणी री लूटसूं अंगरेजी री नाक कटगी। राजपूताना रा सगला रजवाड़ा सावचेत हूग्या। फिंरगी रै फरमान मुजब सगला राजा म्हाराजा, जागीदरदार डूंगजी नै पकड़णो खातर फौजां फेजी। डूंगजी डूंगर, धोरां, नालां, खाडां, बणराय मांय घूमता रैया अर मोको ताक अंगरेजी फौजां रै बटीड़ मेलता रैया। छेवट घड़सीसर (चूरू) गांव कनै जागीरदारां री फीजां सूं भिड़ंत हुई। जुंवारजी पकड़ीजग्याअर बीकानेर रा म्हाराज रतनसिंघ बां नै किलै मांय नजरबंद करवा दिया। डूंगजी इण भिडंत मांय फौजां रै काबू नीं आया अर मारवाड़ कानी निकलग्या। रियासत री फौजां ग्गैल बगती गई। जैसलमेर रै गिरदड़ै गांव कनै रियासती फौजां सूं डूंगजी री भिड़ंत हुई अर पकड़ीजग्या। डूंगजी नै जोधपुर रै किलै मांय निजरबंद कीन्या। बठै ई सुरगवासी हुया। जुंवराजी वि.सं. 1907 में बीकानेर किलै सूं छूटर पाछा बठोठ आय आपरै बुढ़ापै रै दिन भगवान री भगति मांय बिताया। डूंगजी-जुंवारजी री गिरफ्तारी रो पुराणो दूहो है-
दियो डूंगसिंध जोधपुर, उजर अली अंबेर।
रतन जुंवारै राखियो, बंकै बीकानेर।।

राजस्थानी का कवि उदयराज उजल कही है-
मरै नींह भढ़ मारकर, धरती थेड़ी धार।
गाईजै जत गीतड़ा, जग मं डूंग जुवार।।
सन् 1857 री क्रांति सूं पैलां देस री जनता नै जगावण रो संख बजावणिया डूंगजी-जुंवारजी किणी भीदेसभकत क्रांतिकारी सूं कम कोनी हा। फिरंग्यां नै भारत सूं भगावण रा सपना देख्या अर मुट्ठी भर मिनखां नैं साथै लेय बीसां बरसां ताणी छापामार लड़ाई लड़ता आपरी नौकरी, जागीर अर जवानी होम दी। डूंगजी रो जस गावणिया भोपा आज भी रावणहत्थै पर घर-घर गावतां मिलसी-
गढ़ म्हैलां जौहर जाग्यो, लपटां ली धधकाय जी।
लड़ता लड़ता मर्या नारड़ा, दुसम नै ढरकाय जी।
फेर खिंडैगा धरती ऊपर, डूंगसिंघ सा पूत जी।
गणगोर
होली पछै गणगोर !
राजस्थानी लोक जीवण में गणगोर डावड़ियां रो तिंवार है। ब्याह हुयोड़ी डाबड़ी रै साथै कुंवारी डावडियां गणगोर पूजै। छारंडी आलै दिनसूं ई गणगोर पूजणो सरू हु जावै। सात दिन दूब सूं अर सीतला अस्टमी पछै ल्हासुवां सूं गणगार पूजीजै। ओ सेखावाटी रो धारो है। बीकानेर में दूब-भूलां सूं गणगोर पूजी जावै। सहारं में भी दूब-फूलां सूं ई गोर पूजीजै।
सुवांरै बेगी उठर डाबड़ियां दूब ल्यावण बाड़ी में जावै अर माली बाबा सूं बिनती करै-
माली बाब आडो खोल
छोर्यां आी दूब नैं।
छोर्यां सबद में भावां री कोमलतां है। बाड़ी में जायर सै मिलर दूब भेली करै। दूबलेयर वै कुवै पर आ ज्यावै। दूब साफ करै,दावै। फेरापरा लोटां नै बारी आवै जद सद पाणी सूं भरै अर दूब मांय जचावै। ब्याह हुयोड़ती डावड़ी लोटा ऊंचै। कमसूं कम पांच लोटा या सात लोटा एक रै ऊपर एक जच्योडा। सिर परलियां वा आगै आगै चालै। लारै दूब री तिब-तिब उंवारती दूजी डावड़ियां गीत गाती चालै। भाई-बैन, भाभी रा नांव लेयर ऐगीत गायीजै। जियां-
बैजु वीरा रो कांगसियो म्हे मोल लेस्यां राज
बाई े राजू थारा लामा-लामा केस
कांगसियो बाई रै सिरा चढ़यो जी राज।
घ सामीं आर सैं डावड़ियां ठमजावै। फेर आरोत हुवै। गोर पूजणाआली रै टीको काढै तोसै मां आवै। गोर पूजण में भोत सा गीत गायीजै। पणगोर क्यूं पूजीजै, आ बात इण गीत में भलकै।
गोर ए गणगोर माता
खोल कुंवड़ी
बायर उभी थारी पूजणहाली
पूजो ए पूजावो सहियो
के धन मांगो
मांगा ए म्हे उन-धन
लाछ'र लिछमी
कानकंवर सो बीरो मांगां
राई सी भोजाई
ऊंट चढ्यो भणेई मांगां
इणतरियां गणगोर-पूजा में गणगोर पूजणाआली डावड़ियां गोर माता सूं वरदान मांगै।
गोर पारवती रो दूजो नांव है। ईसर भगवान शंकर रो दूजो नांव है।
गणगोर में तिस लागै। दोफारां डावड़ियां बरी-डोल लेयर कुवै कानी जावै अर गेलै में गीत गावै-

म्हारी गोर तिसाई ओ राज
घाटां री मुगत करो
इयांई गणोगरो वालू माटी ल्यावै। इम बखत टिपकी गीत बडै चाव सूं डावड़यां गावै।
आ टिक्की म्हारी गोरां बाई रै सोहवै
तो कान्हो मोल मुलाई ए टिक्की
पानां कै फूलां टिक्की
रांगरैगीली टिक्की
आ टिक्की म्हारी... ...
जौरा जुंहारा उगावै अर डाबड़ियां काचा-काचा डुंहारां सूं गोररी पूजा करै, आपरी चोटी में लगावै। जुंहारां री भी गीत है।
म्हारा हर्या ए जुंहारां से
लामा तीखा सरत बध्या
रात नै घुड़लो घरा पूजायीजै। गणगोर जिकी डावड़ी आपरै घरां ले जावै उण रै घरां सूं डायड़यां मिलर गोर नै पाछी धरां ल्यावै। इणनै घु़़ड़लो कहीजै। इण बखत घुड़लै रो गीत गायीजै। राजा रो नांव इण गीत मं पैलां आवै।
समाधोसिंहजी राकल्याणसिंहजी ओ
म्हारो घुड़लो घरां उ पुं गाय।
गीत गाती डावड्यां रा गला सुखै भी कोनी ईं पैली गणोगरा रो मेलो आ ज्यावै। इणदिन गणगोर री सवारी निसरै। ब्यायोड़ी डावड़ियां गणगोर रै फेरी देवै अर सवारी आगै निसर जावै।
इणी दिन आथणजिणगोर नै डाबड्‌यां आपरी ज्यान सूं भी बेसीराखी कुवै मांय पधारय दे। दुर्गा पूजा अर गणेश पूजा री तरियां गणगोर री मूर्तस्यां भी जल में बोलायी जावै। इणबखत भी गीत गायोजै-
गोरां अ तूं आवड़ देख
बाबड़ देख तनै बाई
रोवां याद करै।

इणतरियां दुखी आंख्यां लियां डावड्‌यां आपरै घरां आवै।
लोक वीण में गणगोर रो भोत महतब है। इण मिस नारी जीवण में एक नुंवी उमंग बापरै। भंवर म्हानै पूजण द्यो गणगोर रै भा सूं आखो नारी जीवणसराबोर हुय जावै। गोर रो उजणमो भोत जरूरी है। आ मानता है कै गोर उजम्यां बिना मुगती कोनी हुवै। इणवास्तै लुगायां गोर उजणमै दांतण देवै। घरां लुगायां नैं बुलावै। गोर पूजै अर बूतै गैल ग्यारा-इक्कीस लुगायां नै जिमावै। नारी जीवण इण रस सूं सर हुजाबै। धती मगनसगन सी लागै। गणगोर मूल रूप सूं लुगायां रो ई तिवार है। पण राजस्थान रै लोक जीवण में इणरी सरसता मानखैरो मन मोह लैवै।
जैपुर डिवीजन में गणगोर एक सवारी निसरै पणबीकानेर में गणगोर री दोड़ हुवै। आं रै लारैलोक कथा है। जिकी खेतर विसेस में बड़ो मान राखै। परदेसां बस्यै पीव नै इण मौकै नायिकां रो मन बुलाबै-
गणगोर्यां रै मेलै पैली
थे आया रीज्यो सा।
गणगोर्यां पर प्रवासी लोग मरूधर देस आवै हा। जिकां होली पर नीं आय सकै बै गणगोर्यां पर पक्काई आवै। गणगोर युवती नायिका रो प्रतीक है।

फागण आयो फागण्यो रंगा दे रसिया
ऊजड़ चालतो सूरज हार थक'र सीधै गेलै आयो कै दिन बड़ा हुवै लागा। कूंली करिणां नै देख'र सियालै री छाती पिधलै लागी। ज्यूं ही कामल कांधै सूं पड़ी कै निवाया दिन आयग्या।
रूखै खेतां में हरियाली रा पगल्या मंडै लागा। धरती रो अंग-ँग फूटबा लागग्यो। ज्यूं ही सुहावणी पून चाली कै बसन्त आयग्यो।
बीं नै देखो ! बसन्ती नाचती-कूदती आरी है। ए या आयगी ! सरीर में सणसणाट हुबण लागग्यो। चालती पून सूं हालती घास ईं तरै लागै ही जाणै धरती फबकां चढ़गी हुवै। रूत नै देख'र जी सोरोजू जावै।
रूत बदलतां ई मन बदलग्या। वो देखो ! बढो पीपल खड़-खड़ हांसरयो, ऊभो। नीम रा दांत चालण लागार्या। झाड़़ी कूंली हुयगी। खेजड़ी सरमारी है। वा मन ई मन मुलकी कै डाल्यां हाल पड़ी।
बगीचां में फूल मुंह काढ रैया है। आदमी बैठ्या फबक्यां चढ रैया। अमर बेल गलै लिपट रै ही।
फोगां रा मन हर्या हुयग्या। खींपोली धरती री गोदियां में पल री है। रोहिड़ा रा रंग-बिरंगा फूल गेलै चालती गोरी रै पगां में मद भर रैया है। फटा-फट उठता पग कहरैया है-फागण आयग्यो।
हार्यो-थक्यो सूरज जाय'र नीचै बैठग्यो। अम्बर रा होठ रचग्या। सांझ चुपकै सी आयगी। लुगायां घर रो काम सलटावण खातर उतावली होरी है। टाबर उछलता-कूदता चौक कानी दौड़ पड्या। बूढलियां कामल लियां जा रैया है, सुणबा नै चंग अर धमाल।
कालू कमर्यां में घाघरो बांधयो ो कै आधो डील औरत। पीछै खड्‌यो फूलो उण रै सिर में बोरलो बांध रैयो है।
गालां रै पोडर थेथड़ियो। होठां रै लाली लगाई। ज्यूं ही वो कूंपला पर हाथ धर्यो कै अन्धेरी बढ़ती आवै लागी।
कांचली पहरी। ओढणो ओढियो। ज्यूं ही पल्लो कांचली री टुक्की में दाबर कांच हाथ में उठायो फूलो हाथ पकड़र कैयो, बाबली के करै है ? कठै निजरलाग जासी। कैयर वो हात छोडर हंसै लागो।
मैरी बणर कालू, ज्यू ही बारै आयो तो सामैं खड्‌यो नाथू उणनैं देखतां ई बोल्या, आज आ बिजली चौक में चमकर के बेरो कित्ता री आंख फोड़सी। बैजू कन्ने आयग्य। वो भी चूंटक्यो भरियो-बीनणी तोफेरां में बिठाबाली सी लागै है।
चौक में आछी भली भीड़। लुगायां एक कानी कूणैं में बैठी है। बूढलिया भीत री ओट में दुबक्या बैठ्या है। टाबर कुदड़का मार रैया है। मोट्यार बतला रैया है, झूमकां में खड्‌या।
चौक में कठी नै सिगरेट रो धूंओ तो कठै बीड़ी रो फूंक। कठै चिलम रो कस तो कठै हुक्कै री कुटड़-कुटड़ा लुगायां चुप। पतासी चुप्पी तोड़ती बोली, बाली यिां चुप के बैठी हो ? कोई गीत ई गीरो ना ? उणरी बात सै रै जची। भंवरी गीत गीरियो-
चंग चिमटियां बाजै
चंग आंगलिया बाजै
चंग पूंचां रै बल बाजै रै
रंगीलो चंग बाजैलो
गीत रा बोल सुणर चौक में खड्या लोगां री नजिर कूणैं में बैठी लुगायां माथै टिकगी। सै खड्या सुण रैया हा। मुखो सुणर बोल्यो-अब के देखो ? उठाओ चंग !
ज्यूं ही गीत थम्यो कै टंग पर थापी लागी। चिमटिया चंग पर नाचै लीगा। पूंचा तिसलै लागा। घूघरा बाज्या कै मैरी रा पग थिरक उठ्या।
चौर रै बींच बीज दस-ग्यारा चंग एकै साथै, एक धुन, एक तान पर एक लय में बाज रैया। बीच में बासरी पर कुरजां री टेर कुरजां ै म्हारो भंवर मिला दे ए। ईं पर नाचती मैरी। इसो नाच कदे-कदे ही देखण नै मिलै।
बांसरी बजावण आलो टेर समटै कै चंगा पर लागी थपाी। घीसो धमाई गाईृपैलां सुमरो है मात भवानीऽऽऽ !...सै जणा साथै बोल्या सो आकास गूंज उठ्यो।
मरूधरा माथै चंग अर फागण रो अपूरब मिलाप। फागण आवै तो चंग बाजै। लोग फागण नै उडीकता रैवै जियां किरसो बिरखा नै उडीकै। होली रै दिनां में लारै रहवणआला प्रवासी देस आज्यावै। होली रो डाण्डो रूपतांपाण ठंडी रात में मीठी राग कालजै रै चिपकबा लाग ज्यावै-फागण आयो, फागण्यो रंगा दे रसिया... ...

चंगां रै साथै-साथै होली रै दिनां में गींदड़ रो भी लोग आंणंद लेवै। सेखावाटी री गींदम नामी है। जोधपुर रो डण्डिया निरत गींदडा सूं मलितो-जुलतो है। फरक यो है कै गौंदड में चिटिया काम में आवै, डण्डिया नीं। डण्डिया अठै भदिवै में चौक च्यानणी में कामलिया जावै। गीन्दड कलात्मक है, इतरो डण्डिया नाच नीं है।
चौैक रै बींचूबीच नगारो। गूमठी में बैठ्या बजा रैया है ब्यासजी। च्यारूमेंर गोल घरेां में तरै-तरै रै सांगां मेंनाचता चिटिया भिड़ता चालता, नाचता मोट्यार ! बूढा भी। नगारै माथै डंकोग लागै अर गींदड़ चढै। लगैडंको चढै गीन्दड़़ ! बीच में बाज री  बै बांसरी। मोट्यार बोल रैया ओल्यूं-लस्कर थामो जी ढोला। वल खाती, कमर रा लटका करती मैरियां घेरां में घूमती जारी है। 'बम-बम बोले' करतो राखै रमायां मुखो सिवजी रै भेख में नाचतो जा रैयो है। मूरली होलका रै भेल खमें। महावीरियो महतर किराणसी तेल मुंह में लेयर हाथ में जली छुडी पर फुंकार मार रैयो है। भमकै रै साथै टैबर भूंचक्का रैयग्या है। बो आपरी मस्ती में नाचतो जा रैयो है। बा आयगी मेम साब ! आंख्या पर चस्मां चढायां। लाल होठ कर्यां. कांधै बटुबो लटकायां। गींदड चालती जा री है। तरै-तरै रा स्वांगां सू ईं तरियां लागै जाणै कोई फैन्सी ड्रेस रो कम्पीटीशन हुवै।
राजस्थान में होली रै दिनां में कई जगां रम्मतां हुवै। हरीशचन्द, ढोला-मारू, राणी स्यालदे, राजा मोरधज एकर ईं धरती नै देखण आज्यावै। बीकानेर, जैसलमेर में रम्तवां हुवै। अठै चंग तो बाजै पण गींदड नीं घालै। चंग भी एकल बाजै अठै। भेला चंग बजावण री कला रो विसाक बठै नीं हुय पायो है।
भेला चंग बजाण री कला सिरफ लक्ष्ममगढ़, फतेहपुर, रामगढ़ अर चूर में इ पनप सकी है। बाकी जगां एकल चंग या तो दूहां पर बाजै या धमाल रै साथै। डूंगरगढ, सुजानगढ़, छापर, लाडणूु आदि गां में चंग ठाहसूं बजाया जानै। मेखावाटी में चलत में। भेला चंगबजावण री ठाह अलगी है। गणतन्त्र दिवस माथै ई रो देखावो जैपुर कमें कई दफा हुयो है। ईं री चूडियां फागण रै दिनां में आकाशबाणी जैपुर बजावै है।
राजस्थान संगीत नाटक ्‌कदामी चंग बजाणै, गींदड़ लोक निरतां वास्तै संस्थावां नै सहायतां देवै अर आंनै लोकप्रिय बणावण वास्तै प्रोग्राममां रो आयोजन भी करावै। दिल्ली में गणतन्त्र दिवस पर लक्ष्मणगढ़ री पार्टी आपरो चंग बजावण री कला रो देखायोब कर चुकी है।
फागण धरती रो रसियो है और लको निरत रस। ई वास्तै तो सारा भारतवासी हौली रै दिनरस मं डूबर सरस हू ज्यावै अर खुसी सूं पागल हूज्यावै।
पाबूजी राठौड़
धोरां री धरती पर घणा रिसी-मुनी अर साधु-संत तपिया। बिरला संत इस्या भी हुया जका गिरस्थ जीवण मांय जीया पण जणजण रै हिवड़ै बसग्या। बां रा चमत्कारी काम देखर सगला रैया बांनै देवता रै रूप में पूजण करू कर दिया। कांई हिन्दू, कांई मुसलमान, सगलै धरमां रा मिनख आप-आप री सरधा सूं सीस नवायो। आज सूं करीब सासौ बरसां पैल्यां राजस्थान, सिंध अर गुजरात मांय ओ दूवो सुणबा में आवतो-
पाबू, हरबू, रामदे, मांगलियो मेहा।
पांचू पीर पधारज्यो, गूगाजी जेहा।।

उपरलां पांचू पीरां मांय पाबूजी रो नांव सै स्यूं सिरै मानीजै। पाबूजी रो जलम विक्रम सं. 1313 मांय मारवड़ा रै कोलू ठिकाणै रै राठौड़ में हुयो। लोक जीवण मायं आ बात मानीजती कै पाबूजी लक्ष्मणजी रा अवतार है। सोढी राणी शूर्पनखा, हेमा हणमान अर डोडा सूमरा रावण रो अवतार हा। पाबूजी रै जलम रै बारै मांय कही जावै कै एक बार धांधलजी पाटण रै तालाब पर पूग्या। तालाब पर इन्द्र री अपरसरावां न्हावती ल्हादी। बां मांय सूं एक अपसरा नै कोलू ल्याय आप रै म्हैल में राखी। अपसरा धांधलजी सूं एक वचन लियो कै उण रो भदे नीं लियो जावै नींतर बा चली ज्यावैली। अपसरा सूं लड़का पाबूजी अर लड़की सोनलदे जलम लियो।
एक दिन धांधल होलै सी मैल पूगर किवाड़ सूं झंाकर देख्यो तो देखतो रहग्यो। अपसरा सिंधणी बणी है अर बालक पाबूजी सिंधणी रो बछियो दण दूध पीवै। धांधण नै देखतां ई अपसरा आपरो रूप बणायो अर धांधल सूं लियेडै कोल मुजब गायब हुगी। धांधल दूजी राणी सूं लड़का बूडोजी अर लड़की प्रेमलदे हुया। बूडोजी हा अण वास्तै घांघल रै सुरग सिधारणै मर गादी बिराज्या। दांधलमै री मौत रैसमै पाबूजी पांच बरस रा नाना टाबर हा।
टाबरबणै मांय पाबूजी बड़ा करामाती अर हिम्मताला। एकला सांड पर चढ़र सिकार रमण जावता। सरणागत री रिछा करमो बां रो असूल हो। बाघेलां रै ठिकाणै सूं दुसमणी मोल लेई भागेड़ा चांदा-देवा थोरी पाबूजी रै सरणै ाया। बापूजी बहांनै बसा पाबूजी री भतीजी रो ब्याव गोगाजी चौहाण सूं हुयो जद कन्यादान मांय डोडा समूररारीसांढा रो टोलो दायजै मांय देवणरो पाबूजी संकलप कर्यो।चाकर हरियै नै टोलै रो ठिकाणो ढूढबा भेज्या। सोनलदे रो ब्याल सिरोही रै राव देवड़ै सूं अर प्रेमलदे रो जीव खींची सूं हुयो।
देवण चारणी एकली वैती। उण रै घरां केसल कालमी। ही जकी रो नावं कई कोसां ताणी हो। उण घोड़ी नै लेवण नै ठिकाणदार कोसिस करी पण हाथ नीं आई। पाबूजी देवल चारण सूं घोड़ी मांगी कै अर कीमत पूछी। काछेला गोत री देवल चारण घोड़ी रै बदलै काछैल चारणां री घोड़ी रै बखत रिछ्या करणो कोला पाबूजी सूं मांग्या। पाबुजी वचन देय घोड़ी लीनी।
सोनलदे भैण नैसिरोही रो राव देवड़ो ापणी दूजी राणी बैकाबै मांय आयर चाबूक मार दियो। आ खबर सुणर पाबूजी आप री भाण रो दुख पूछण भीर हुया। भाभी डोड गहेली फूलती नै कालमी घोडी अर जाता देख मोसा बोल्या-आ घोडी थांरै भाई नैं दैवण स्यूं देवल नटगी ही अब अण नैलैयरकठै धाड़ा मारोला ? भाभी रो आ बात सुणर पाबूजी कांई नीं बोल्या। सीधा भाभी रै पीर डीडवाणी जाय करदी चढ़ाी अर उण रा भाई नै पक़ड़ कोलू ले आया। भाभी घणी लाजां मरी।
सिरोही रा राव देवखेड़ा री दूजा राणी बाघेली ही। उण री सीख मांय आयर देवड़ा सोनलदे सूं मारपीट करी। पाबूजी सीधा बाघेलां हर चढ़ाई करदी अर घमासाण लड़ाी हुई। लड़़ाई मांय गोलो आनो खेत रह्यो। अब पाबूजी सिरोही रै राव देवड़ा पर चढ़ाई करदी। तगड़ी राड़ रूपी। राव देवड़ा घायल हूग्यो अर मोत रै नैड़ै पूगतो दीख्यो जद भाणा सोनलदेव सुहा रो दान मांग्यो जद देवड़ा नै बगस दियो।
अमरकोट ब्याब रा नेगचार हो च्या। जदींराव खींची मौक देखर देवण चराणी री गायां घरे ली। चारणी री मदद रो पाबूजी रो कोल करेड़ो हो। पाबूजी फेरां मांय बैठ्या। बारै कलामी घडोी री हिणणिटा सुणी। पाबूजी कही--देवणचांरणीं यादकरै जावणो होसी। घोडी फेर हिणहिणाई अर खूंटीतोड़ नाख्यो। बापूजी चोथै थेरै मांय हथलेवा छोड़ भीर हूग्या। लोग थामण रा जनत कर्या पण पाबूजी कही-देवण मांय भिखो पड्यो है। म्हारा वचन दियेड़ां निभांसू।

पाबूजी देवल कनै पूग्या। चारणी जींदराव री सगली भूड़ बताई अर आपरी गायां नै घेरण री सगली काणी सुणाई। पाबूजी जींदराव सूं जुद्ध कर गायां छुड़ाई अर चारणी कनै पूगाई। अण जुद्ध मायं पाबूजी प्राण पालता थका काम आया। सोड़ी राणी हथलेवै री गीली मैदो सेती सती होयगी।
पाबूजी गाया तर बचन निभाता सुरग सिधाया। मारवाड़, सिंध गुजरात मायं पाबूजी नै देवता मान जुग पूजतो र्यो। भोपाबां रा गुणगान गावता रहवै। पाबूजी री फड बांचर जागरण हुवै मारवाड़ मांय अरब कानू सूं ऊंट ल्यावण रो काम पाबूजी कर्यो। ई सूं पैलो मालवाड़़ मांय ऊंट नीं होवता। ऊंटा रां पालणियां रैबारी राइका ाज भी आपरै मंगल काम री सरूआत माय पाबूजी री फड़ बंचावै।

 

   
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