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राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

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टाबरा वास्ते कहाणियां

किताब - कैणी के रे कागला
प्र्रस्तुतिः पन्नालाल पटेल
शिक्षांतर, 21 फतेहपुरा, उदयपुर, राजस्थान-313004.
फोन-(0294)451303.

कहाणियां
नाई वाळो थापो
साधु री कमाई
ठाकर रो आसण
मकोड़ा वालो ढोल
मेणात सार

मेवाड़ी बोली- अणी आक्था मुलक माँ जगां-जगां री घणी बोलियाँ ही जणा परे आज रा जमाना रो अतरो असर पडयो के व्हणा मेउं घणी खरी तो खतम इज व्हेगी है, अर व्हणा मेऊं थोड़ी घणी बोलियाँ रो आपनाने खाली नाम ह ज पतो है| आपणे अठे एक केह्णावत है के हर सात कोस पे वाणी अर पाणी दोई बदले| अणी केह्णावत ऊं आपां मानी सकां के आपणे अठे कतरी बोलियाँ ही| पण आज आपबाँ सब खाली हिन्दी अर अंग्रेजी में हीज बोलां हॉ अर आपां तो अणी हिन्दी अर अंग्रेजी बोलवा वालाने हीज घणा हुश्यार माना हॉ| ज्या लोग मेवाड़ी में बोले हैं व्हणाने तो आपां वेण्डा अर पछडया थका माना हाँ. पण आपां या बात हमझवा रे वास्ते त्यार नीं हॉ के ज्यूँ आपां आपणो धन, आपणा गेणा-गाठा तजौरिया मे अर आपमो अनाज कोठा में मेलाँ हॉ| व्हणीज रीत ऊं सब मनक आपणां गीत, आपणी कैणियाँ, आपणां मुहावरा अर आपणी भावना आपणी स्थानीय लोकवाणी में हीज अने अवेरी राखे हैं| ई सब वातां सामान्य लोगां री संस्कृति अर अकल-अनुभवरो रो खजाणो हैं|
आपां सब जणां आज ढूकी ग्या हॉ सामान्य जनता रो यो संस्कृति रो अर अकल-अनुभवरो रो खजाणो नष्ट व्है जावे और ई लोग आपणी संस्कृति रा लिहाज ऊं कंगाल व्है जावे| अणां लोगां ने छोटा अर कंगाल वतावा हारू आपां एक वात केवा के ई मनख अणी बोली ऊं आपणो विकास नीं करे सके अर दूजा लोगा री वात नीं समझे सके| साथ में आपां एक वात केवा के बोलियाँ रो घणो भेद है जणी ऊं गड़बड़ी है| अणी वास्ते एक हीज बोली चावे| पणो कोई यो होचवा अर मानवा ने त्यार नीं है के अणी अड़े-भड़े री बोलियाँ में खाली बोलवा रो अर थोड़ा घणा शबदां रो फरक है, पण व्हणी रो भाव या मतलब तो सब मनख समझ जावे हैं के आगलो मनख वणाएं कई केणो चावे है| व्हे बोलियाँ अंग्रेजी अर हिन्दी ज्यूं नी है के लोग ब लवा वाला रो ऊबा-ऊबा मूंडो हीज देखता रेवे के यो केई कई रियो है| अणी एक हीज बोली में सबां ने बोलावा हारु भणिया-पढ़िया मनख अर सरकार घणा टोटका-टोटकी (साक्षरता, सबरे वातरे शिक्षा अर प्रौढ़ शिक्षा रो अभियान) करे हैं, य़अर केवे हैं के अणा ऊं थाणो घणो विकास (भलो) व्हेला| पण सरकार यो नीं होजे है के जणी बोली में आदमी, लुगाई अर छोरा-छाबरा आपणे मन री वात नीं केई सके है और नीं जणी बोली ने व्ही ठीक ऊं हमझ सके है व्ही व्हणी बोली में आपणा विचार तथा आपणां भाव किस्तर परकट करेला अर अगर व्ही लोग आपणा भाव तथा विचार ठीक ऊं परकट नीं कर सके तो व्हणां रो विकास किस्तर व्हेगा?

डगलस वियेलन जो येल विश्‍वविद्यालय में भणावे व्हणा केयो है के आज अणी आक्खा संसार में छ: हजार तक बोलयाँ (भाषा) हैं, जण में ऊं आधी ऊं ज्यादा बोलियाँ सन 2100 तक खतम वेई जावेला| आज आपणी बोली मेवाड़ी रो भी योईस हाल है अर आपणो खुद रो बी यो हीज हाल व्है ग्यो है के आपां सब जाणता-करता ई अंग्रेजी अर हिन्दी मं हीज बोलवा री कोशिक करां हॉ| ताके आगलो मनख आपां ने हुश्यार मानी सके| अणी खातर ज्यूंई-त्यूंई अणी दूजी बालियाँ में बोलवा रो प्रयास करां हॉ, जणी में आपे केणो कई चावाँ अर आगलो हमझे कई| पण आपणी बोली में नीं बोलणो यो आज रा मोटयारा रो शौक व्हेग्यो है| नरई भाई लोग केवे हैं के आपय़णे उदेपुर मा सब धरा मा मेवाड़ी मा बोले है| पण कोई यो नी होचे के व्हे सब बोलवा हारू बोलिर्या है| अर वा भी हिन्दी, अंग्रेजी न मेवाड़ी सब भेली-हेली बोलिर्या है| हालत या व्है गई है के नीं तो वणाने अंग्रेजी हूदी आवे नीं हिन्दी अर मेवाड़ी भी हूदी नीं आवे| अबे व्हे आपणी वात कणमें केवे फचे वे एक शबद ले मेवाड़ी, दूजो अंग्रेजी अर तीजो हिन्दी| तोभी आपणे खुद पर गुमान करे के वे सब बोलियां बोले जाणे है| अर व्हे खाली मेवाड़ी कोरी कोरी देखर्या अणिमें उण्डो उतरवा री कोई कोशिश कोईनी करे हैं| आपे एक दो कड़ावा केइन होचा हॉ के म्हूँ भी मेवाड़ी में बोलेयोर् हूँ| आपे यो नीं होजे रिया हा के आपे आपणी बोली में हीज गहराई ऊं होचे सका हॉ अर नवी-नवी चीजां रो सरजन करे सका हॉ| अबे आपां हरेक मेवाड़ में रेवा वाला मोटयारा, टाबरा अर दाना मनखा होचणो हैं के अगर आपेँ कण्डोई गुलाम नीं व्हेणो है तो आपाएं आपणी बोलीएं कबूल करनी वेला| क्यूँ के अणें हीज आपां गहराई ऊं वचार करे सका, अगर या बोली खतम व्हेगी तो आपणे वचार करवा री क्षमता अर अन्याय रे हामे संघर्ष करवा री भावना खतम व्हे जावेला भजे जो लोग आपाएं केवेला व्हो हीज आपे करॉलाअर आपे व्हणारे हाथा री कटपुतली बणे जावा अर व्हे ज्यूँ चावेला, आपाएं नाचवेला| अत: आपणों संस्कृति अर जीवन जीवा रो धन अणी लोकवाणी में हीज है| अगर अणी लोकवाणी ने आपां भूली ग्या तो सांस्कृतिक कंगाली आपणे पाँती आवेला र आपाएं न घर रा राकेला न घाट रा|

आज तो अणभणिया लोग भी आपणे देखा-देखी अणी लोकवाणी अर संस्कृति ने भूली रिया है| आज आपणे अटा रो कोई भी जणों (मनख) आपणी बोली मॉ बोलणो हीज ई नीं चावे| आपणे इस्कूलाँ में तो आपणी बोली ने या आपणी बोली में कोई भणावे भी नीं है| नीं आपणी ब ली रो कोई भी मनख आदर करे हैं| इस्कूलां में भणिया-पढ़िया लोग तो यूँ माने हैं के यॉ बोली बोलवा वाला सब गंवार अर वेण्डा है| आपां सब अगर यूँ हीज करता रिया तो थोड़ाक दना में खाली मेवाड़ी बोली रो नाम हीज रे जावेला| पणअगर आपा व्हठा पेली अणी संकट पर वचार करवा लागेग्या तो मेवाड़ी री संस्कृति, कला अर रितिरिवाज मजबूत व्हे सके अर आपणे जीवन रे लारे जुड़े सके| म्हूँ मेवाड़ी मे एक शोध करि- रियो हूँ जणिमें म्हूँ नराई लोगाऊं संवाद करि-रियो हूँ, या प्रकिर्या "आईये, उदयपुर से सीखें" रो एक भाग है| अणा शोध रे पाछे म्हारी ख़ास मन्सा या है :-

  • अबार री वकत में मेवाड़ी में आपणे अठा रा कतरा लोग लिखी अर बोली रिया है, व्हणा री सूची वणावणी|
  • व्हणा लोगां री लिखी थकी केहणावताँ, कैणियाँ, कविता, दोहा, गीत अर लेखाँ ने भेला करणां|
  • म्हूँ भी मेवाड़ी में लिखना री कोशिश कर रियो हूँ और नरई मोटयारा अर नखां लारे आपणी बोली रो विस्तार करणो चावूं हूँ ज्ये अणीएं जाणता थका ई अणी बोली ने वापरवा में शरम समझे और अणी ने वापर वाऊं परहेज़ करे|
  • आपणे मेवाड़ री कला, तैवार, वीरता, अठा रा महलां रो तो खुब नाम है, पण मेवाड़ी बोली री कदर कोई भी नीं करे है| तो अणी रे वातरे कोशिश यॉ करणी है के अठा रॉ मनख तो कम-ऊं-कम अणी बोली ने पाछी आपणे जीवन रे लारे जोड़े|
  • नराई मनखाऊं वात करणी अर प्रयास करणो के अणी बोली मजबूत करवा अर अणीरा उपयोग हारू आपां सब भेला व्हेईन कई करे सकां हॉ|
  • पहली रा ज़माना में मनखां रे पां जो ज्ञान हो व्हो ज्ञान व्ही लोग आपणा नामा मोटा टाबराँ लारे बांटता हॉ अर व्हणाऊं व्ही सब एक दूजा ने समझता हॉ| अर अण ऊं ज्ञान हो रो विस्तार व्हेतो हो अर व्हणा ऊं जो भी कुछ सीखता व्हणी ने आपणे जीवन लारे जोड़ता हॉ| पण आज अणी टीवी रे कारण व्ही लोग एकदूजाऊं वातां नीं करे है अर जो ज्ञान व्हणा रे पास में हो व्हो धीरे धीरे खतम व्हेतो जईरियो है| तो ज्ञान रा अणी लेन-देन ने पाछो चालू करवारो प्रयास करणो|
  • आज रा जमाना रा मोटयारा लोग यूँ तो जाणे है के आपणी बोली में हीज आपां आपणी मन री बात केई सकां पण व्ही लोग अणी मॉ बोलणो अर बात करणो हीज नीं चावे| तो अणा लोगा ने सोचवा हारू तैयार करणा
  • के आपणी बोली ने ज्यादा-ऊं-ज्यादा बोलेन अणी बोली ने पाछी अणी री व्हा हीज जगा देवा ज्या पेली रा वकत में ही| जणी ऊं मनख घणी राजी-खुशी अणीने बोलता हॉ, सब मखां में प्रेम रो विस्तार करता अर हले-मलेन भेला रेह्ता हॉ| म्हारों यो पेलो प्रयास है अगर अणमा कई खामी, गलती रे गई व्हे तो म्हूँ आपरे सुझाव अर राय री वाट जोवूंला| व्हणी राय ऊं म्हने हीखवा मलेला| म्हूँ व्हणी खामियाँ अर गलतियाँ में हुधार करूलां| आपने वश्‍वास देऊं के म्हारी आगली रचना मॉ ये खामियां अर गलतियाँ आपने नजर नीं आवेलां|

कहाणियां

नाई वाळो थापो

एक दाण री वात है के एक नाई घणो कबद्यो (चालक) हो| हजामतां करावा वाला गराक रे लारे व्हो घणी कबदायाँ (चालाकियाँ) करतो हो| कणी गराक री मूछां डोढ़ी काट देतो, कणी री कलमां (जुल्फा) में काण राख देतो अर कणी रा माथा मा आंगड़ा छोड़ देतो पण वणीज़ वेलाँ माथा पे हलका थापा देयने माफ़ माँग लेतो| नाई आपणी करामात कादां बना रै नीं अर गराक ने दूजी ठोड़ नीं| गराक सब नाई रे सबावऊं हेवा व्हेग्या| वंड़ी पुराणी आदत जांणने वणीने कई केता नीं हा| एक दाण व्हणी नाई एक बारला बाणिया रे हजामत करी| आपणा पाचणा (उस्तरा) ऊं वण्डो माथो घरड़ी ने ताँबा जसो करी दीधो| कई खबर तो टाट रे कारण अन कई खबर पाचणा रे कारण बाणिया रो माथो पलपलाट (बलवा) करवा लागो| आपणो माथो बलतो देख बाणियो बोल्यो के नाई भाई थारो पाचणो अतरो हातरो दीखे, जांणे म्हारै माथा री चामड़ी खेंच लीदी| या वात सुणताई, नाई सकपकायो पय़ण वो हूश्यार भी हो| अतरका में वने बाणिया रो तीखो नाक नजर आइग्यो| वणीज वगत वने एक अकल़ा हुझी| वणी बाणिया रे नाक रे हाथ लागयो अर केयो - "या तो झारा ही डांडी अर यो माथो झारा रो पींदो जांणे| नाक केड़े (बाद में)व्हणी नाई बाणिया री टाट रे हाथ लगायो अर राम जाणे व्हणी नाई ने कई जँची के व्हणी तो बाणिया री टाट में दो थापा लैल दीदा| अर राजी व्हैतो थको बोल्यो, "यो झारो तो घणो टण्णाट करतो बोले| बाणियो धीमा सुभाव रो अर अकल वालो हो| व्हणी बाणियो नाई री अणी कबद (चालाकी) रो तो कई जवाब नीं दीदो पण हजामत री मजूरी दो आना री ठोड़ नाई ने एक कलदार रीपियो (सिक्का) काढ़ ने दे दीदो अर मलकतो थको बोल्यो - "थारी हजामत म्हने घणी हाऊ लागी| हाथ तो थारो फूल ऊं भी हल़को चाले| तो यो रीपियो थारे इनाम रो| नाई राजी वेड़ने रीपियो ले लीदो| जाण्यो के आज तो म्हारी उस्तादी रो घणो आछो फल मिल्यो है| बाणिया जस्या वेंटा म्हारे पां नत हमेस ई आवे| असी उस्तादी तो म्हने दूजा गराकाँ रे लारे भी करणी चावे| अब दूजे दन नाई रे पां एक ठाकर हजामत बणवावा हारू आयो| नाई रे मन में तो पाछला दन री वात बैठी थकी ही| व्हणी बाणिया लारे कीदो जसो बरताव व्हणी ठाकर लारे भी कीदो| इनाम रो भूखो नाई ठाकर रे माथा पे खींचने दो थापा मैल दीदा| अब ठाकर तो ठाकर हा| व्हो बाणियो तो हो नीं| ठाकर न भलो सोच्यो न भूंडो, वणी दाण नाई री ठाकर न भलो सोच्यो न भूण्डो, वणी दाण नाई री गाबड़ी (गर्दन) पकड़ने हेटे नाक्यो| नाई री छाती माथे गोड़ा देयने माथा पे खाड़ा (जूता) ठोक-ठोक व्हणीरा माथा रो मालपुओ कर दीदो| पछे नाई रो इज पाचो लेयने वण्डा नाक- कान गड़ (छिल) दीदा| बोल्यो के - "रीस तो असी आवे के नापटिया रो गलोईज वाढे (काट) न्हाकूं पण नख री हत्या रो पाप कुण ओढ़े? अबे करजे कणीऊं वलेई असी कबद (चालाकी)?" अणी ऊं यो साबित व्हे है के अगर बाणिये खुद नाई री कबद रो बदलो नीं भी लिधो तो व्हणी जो कलदार रीपियो नाई ने दीधो| व्हणी रीपिये नाई रे साथ मे उलटी कबद कराय दीधी| अर बाणिया वाले वेण्डपणे अठे आवतां आपरो गुण बतायो|

साधु रीकमाई

एक करसो गाड़ी जोतने दूजे गाम जईस्यो हो| गैला में वणा ने एक माराज व्हणीज गैले जाता थका घक्या| करसो हावल अर भोलो हो| गाड़ी ढाबने बोल्यो - माराज पगे लागूँ ! छत्ती गाड़ी आप पगा क्यूं पधारो? गैलो होरो कटे जसो ई हऊं| आवो गाड़ी में बेठ जावो| थोड़ीक देर म्हने ई ज्ञान- धरम री वाताँ हुणवा मलेला| माराज रे कोड़े एक तंदूरो हो| तो माराज गाड़ी माथे तंदूरो हावल मेली ने पछे खुद पालकती मारने गाड़ी में बेठग्या| चौमासा ( बारिश का मौसम) रे कारण गैला में गडराँ घणी पड़ी गी ही| धचका खाती गाड़ी थोड़ीक आगे गई के गाड़ी रे एक पेड्डा री पूठियां खल - डखल (बिखरना) व्हे ग्यी ! फांदा ढीला पड़ ग्या| करसे बुचकारने बलदां री राड़ी खेंछी| हेटे उतरने देख्यो -- पुठियाँ तो साफ खोली व्हेगी ही| फांदा पाछा ठोकवा हारू हाथाँ में कोई दूजी चीज नजरे नीं आई| थोड़ीक देर वचार करेन व्हणी तो लप करताई माराज रो तंदूरो उठायो| व्हणी जद तंदूरा रे माथा पर एक मोटो तूंबो देख्यो तो व्हणी जाण्यो के फांदा ठोकवा हॉरु हॉउ रॉच है| तो व्हणी करसे तंदूरा ने घुमायने पूरा जोर ऊं एक फांदा माथे वायो| तंदूरो तो मायं ऊं साव थोथो हो| पूठी अर फांदा री भचीड़ उड़ता ई तंदूरा री तो किल्ली-किल्ली (टूकड़े-टूकड़े) बिखरगी| करसे माराज ने ओलिम्बो (डांटना) देता थका केयो -- " वा ओ माराज वा| हंगली ऊमर भर रखड़ता-रखड़ता एक रॉच साचजियो अर व्हो भी साव थोथो! थांणे अणा भगली-भाव में तो म्हनै कई लांबो चौडो तंत (सार) नजरे आयो कोईनी"

ठाकर रो आसण

रावला कोट में लांठी चौकी रे माथे मकराणा रा भाटा मोरासण माथे ठाकरसा बिराज्या लगा हा| कस्मीर रा रंगबिरंगा रूपाला गलीचा हेटे बिछया लगा हॉ| चौकी माथे पाखती में ई एक हजूरियो भी बेठो हो| ठाकर सा वनई वात रां जांणे क्यूँ घणा राजी हा? व्हणा मूंछया माथे हाथ फेरता थका हजूरिया ने मसखरी रा भाव ऊं पूछयो -- "हेरे हजुरिया, म्हैं मोरासण माथे बैठयो तो थूँ नीचे चौकी माथे बैठग्यो, पण जदी माहैं चौकी माथे बैठूं तो थूं कठे बैवेला?" हजूरिये हाथ जोड़ता लगा केयो -- " हुकम, रावले चौकी माथे बिराजे तो म्हैं हेटे आँगणा पे बैठ जावूंला| म्हनै तो आपऊं हेटे ही बैठणो पडेला| ठाकरसा फेर आगे केवा लागा -- "हेरे हजूरिया, थूँ हेटे बैवा री बात करे तो पछे म्हनै इणोर सावल जवाब दे, के जो म्हैं हेटे आंगे बैठूं तो थूँ कठे बैठेला?" हजूरिये केयो -- "रावले आप क्यूँ आंगणे बिराजो? आंगणे बैठवा रा करम तो म्हारां इजं है| आपरे तो पुराणा भव री करणी चोखी (अच्छी) करी है, अणीऊं आपरे हेटे तो सदा म्हारो आसण रेवेला| ठाकरसो केयो -- "नीं नीं बावला कदी असो मौको भी वण सके हैं? थूँ अबे गुलचक्या मत खा| म्हनैं साफ बता के अगर म्हैं जमीं माथे बैठूं तो थूँ कठे बैवेला? हजूरियो मलकोत थको बोल्यो -- "हुकम जे रावले जमीं माथे बिराजे तो म्हैं थोड़ो खाड़ो खोदने नीचे बैठ जावूँला| ठाकरसा फाजो मगज लड़ायो| बोल्या -- "हॉ रे चौधरी (हजुरिया), जे म्हैं वणा ऊंडा खाड़ा (गड्डा) में बैठग्यो तो थूँ कठे बैवेला ?" हजूरियो बोल्यो -- "म्हैं वलेई पांचेक हाथ ऊंडो खाड़ो धोकने नीचो बैठ जावूँला| रावले तो सदा ऊंचा ईस बिराजेला?" पण ठाकरसा ने फेर ई धीजो (सन्तोष) नीं व्हियो| बोल्या -- "हेरे हजूरिया, जे म्हैं ऊंडा खाड़ा मैं बैठग्यो तो थूँ कांई करेला?" हजूरियो ठाकर सा री अणी दपूचापण रे आगे हायो कायो व्हैग्यो हो| के व्हणी ने तो झूंझल छूटी| बेण्डाई ऊं जवाब दियो -- " म्हैं तो घड़ी घड़ी या इज केवूं के रावले ऊंचा ई बिराज्या रो, पण आपरी मरजी ऊंड़ा खाड़ा में बैठवा री है तो खुशी ऊं वठे बिराजो| म्हैं धूलो न्हाकने आपरे माथे मोटो भाटो सिरकाय देवूँला|

मकोड़ा वालो ढोल

एक हो मकोड़ो| एक दाण व्हो घोड़ा री असवारी करवा हारू वणारे लारे दोडयो तो वण्ड़े डावा पग में काटो भाग्यो| कांटो भागतां ई वण्ड़ो पग तो वठे इ ठंठ व्हेग्यो| मकोड़ो खोड़ो-खोड़ो एक दरजी रे घरे ग्यो| दरजी एक अंगरखी सीवे रियो हो| मकोड़े वणाने केयो- "मामा मामा, म्हारै पग मेऊं काटो काढ़, म्हारौ जीव निकले| दरजी गोड़ा माथे पग लेयने सूई ऊं कांटो काढ़वा लागो तो मकोड़ा री टांग टूटगी| मकोड़ा ने रीस आई तो असी आई के मती पूछो| व्हणे दरजी ने केयो - "टांग जोड़े के सूई छोड, टांग जोड़ के सूई छोडड| दरजी जाण्यो के परभात री वगत काम करवा री वेला कुण माथो खपावे| व्हणे मकोड़ाने सूई दे दीधी. मकोड़ो सूई लेयने जावतो हो के व्हणाने एक मालण वगीचा में बैठी लगी मिली| मालण एक मोटा वोड़ा (बांस) ऊं फूल पोयने हार बणावे री ही| मकोड़े केयो "मालण मासी, यूँ वोड़ऊं (बांस) कई हार पोवे, म्हारी लेले| मालण मकोड़ा री सूई लेयने हार पोवा लागी के कितर ई सूई टूटेगी| सूई रे तूटता ई मकोड़ो तो रीस मॉ पग पटकवा लागो| अर बोल्यो-
"सूई दे के हार दे,
सूई दे के हार दे|
मकोड़ा रे पग पटकवा ऊं बगीचा री धरती धूजवा लागी| पाका फल तड़ाक-तड़ाक टूटवा लागा तो मालण दरपी| अर धूजता हाथां सूं फट गुलाब रे फूलां रो हार मकोड़ा ने सूंपे दीदो| मकोड़ो हार गला में घालने एक बाणिया री दकान माथे ग्यो| बाणियो लोड़ा रो वोपारी हो| मकोड़ा रा गला मॉ फूला रो हार देख्यो तो बोल्यो- "मकोड़ा- मकोड़ा, थारो हात तो बता| मकोड़े गला मेऊं हार काढ़ने बाणिया ने सूंपे दीदो| बाणियो हार रा फूलां ने सूंघतो हो के एक कोयल व्हो हार झपटने लेयगी| मकोड़ा री रीस रो न तो कई आप न पार, व्हो पग पटकतो थको बोल्यो-
"हार दे के घण दे,
हार दे के घण दे"
बाणियो जाणियो के बोवणी री वगत कुण फालतू गैर करे| व्हणे मन में कटुलाई वचारेन एक भारी घण देखने मकोड़ा ने ऊपाटे दीदो के अणी घण ऊं मकोड़ा री कमर भाग जावेला, अर म्हैं यो घण पाछो ले लेवूलां| मकोड़ो व्हो घण माथे लेयने जावतो हो के गैला में एक लवार रो घर आयो| व्हो लावर आपणो माथो पटक-पटकने भालो वणावतो हो| व्हणा कने घण कोईनी हो| मकोड़े व्हणाने केयो- "लवार भाई माथा रा घमेड़ा क्यूँ देवे| थूँ म्हारो घण लेले| लवार राजी वेयने घण ले लीधोज जोग री वात के लवार तीन चार घमेड़ा वाया के धण तो टूटग्यो| अबे मकोड़ा री रीस रो तो कई केणो| पग पटकतो बोल्यो-
"घण दे के भालो दे,
घण दे के भालो दे|
लवार जाण्यों के कुण झगड़ो करे| व्हणे लप करताई मकोड़ा ने भालो पकड़ई दीदो| मकोड़ो भालो लेयने जावतो हो के व्हणाने गैला में एक राजा हामो घक्यो| राजा हूर (सूअर) रोशिकार खेलतो हो, पण व्हणा कोड़े भालो कोईनी हो| व्हो बोलिया री सूला ऊं शिकार करतो हो| पण बोलिया री सूला ऊं कदी हूर मरिया! राजा हैराण| पण व्हो कई जोर करे| मकोड़े राजा ने आपणो भालो दे दीदो| राजा भी राजी राजी भालो ले लीदो| जोग री वात के राजा हूर रे बालो वायो के भालो टूटग्यो| भालो टूटता ई तो मकोड़ो वपरूत व्हेग्यो| रीस में पग पटकतो थको बोल्यो-
"भालो दे के घोड़ो दे,
भालो दे के घोड़ो दे|

मकोड़ो रे पग पटकवा सूं धरती हालवा लागी| राजा जाण्यो के असी कई अणचेती कबद व्ही| राजा दरपतो लगो घोड़ा ऊं हेटे उतरियो अर मकोड़ा ने घोड़ा री राती लगाम पकड़ावे दीदी| मकोड़ो तो राजा रे माथा माथे पग देता ई घोड़ा माथे चढ़तो नजरे आयो| मकोड़ो घोड़ा माथे बैयने जावेरियो हो के गैला में एक सेठ री जांन (बारात) वणाने सामी धकी| ढोली ढोल रे डंको मारियो के घोड़ो चमक्यो| मकोड़ा रे हाथामेऊं लागम छूटेगी| अर मकोड़ो धरती माथे अई पडयो| पण व्हणा में अतरी सबर कठे| धूलो झाटकतो थको बोल्यो-
"घोड़ो दे के ढोल दे,
घोड़ो दे के ढोल दे|
सेठ देख्यो के जां चढ़ती वगत अपसुगन व्है| व्हणे ढोली पाऊं फट मकोड़ा ने ढोल देवाड़े दीदो| मकोड़ो ढोल ने गला में टेरने राजी व्हेतो थको वटा ऊं गैले लागो| गैला में व्हणाने खऱजूर रो एक लाम्बो रूकड़ो नजरे आयो| व्हो ढोल लेयने वण्डे माथे चढयो| ठैठ मथारा परे जायने जोर जोर ऊं ढोल धमकावा (बजाना) लागो|
अर ढोल बजावतो बजावतो गावा लागो-
"दरजी कनेऊं तो सूई लीधी - ढम ढमाढम ढम |
सूई देयने हार लीदो- ढम ढमाढम ढम |
हार देयने घण लीदो- ढम ढमाढम ढम |
घण देयने भालो लीदो- ढम ढमाढम ढम |
भालो देयने घोड़ो लीदो- ढम ढमाढम ढम |
घोड़ा पेटे ढोल लीदो- ढम ढमाढम ढम |
गीता गावा री मस्ती में मकोड़ो जोर जोर ऊं नाचवा ढूको| व्हो खोड़ो तो हो ईज| नाचता नाचता खजूर ऊं वण्डो पग रपटग्यो| माथे ढोल अर हेटे मकोड़ो| जमीं माथे पड़ताई मकोड़ा रा तो प्राण निकलग्या| समझी रे वीरा समझी
एक वणियाणी बिछाणा परे सूवता पेली नाड़ा छोड़ (पेशाब) करवा थोड़ीक अलगी आपरा बाड़ा में गई| बाड़ा ऊं पाछी आवती वगत एक चोर वण्ड़े आड़ो फरियो| वनियाणी गैणा ऊं पीली-पट व्हैरी ही| चोर रे तो जे अणचावती माया हाथे लागी| व्हणे होच्यो लुगाई री अबला जात है, जोर ऊं घाकल करतां ई हगलो गैणो लप करताई दे देवेला|
चोर रे धाकल करता ई वणियाणी मळकती थकी बोली- "बावला, थोड़ो धीरे बोल| म्हनै दरपावा री जरूत कोईनी| अतराक गैणा ऊं राजी मती व्हे| थारी छाती व्हे तो म्हनै ई लारे ले चाल| घर में दो चरु गैणो फेर पडयो है| म्हनै व्हो ई कई कला करेन लावा दे| आपां दोया रे व्हो आक्खी ऊमर खाया नीं खूटे| म्हारा भाग रो आज थूँ घणो हूश्यार मिल्यो| हाको मत कर, सेठजी ने पतो पडग्यो तो रांझो पड़ जावेला| घर में संगलो गैणो-गाठो म्हारे हाथाऊं मेल्यो लगो है| आधी ढलता ई म्हैं पाछी अठे संगला गैणा लेयने आय जावूंला| बोल, थारी कई मन्सा है? थूँ केवे तो है ज्यूँ ई थारे लारे चालू परी अर थूँ केवे तो हंगला गैणा-गाठा लेईन चाला|
चोर जाण्यो के आज तो हाची में लिछमी हाथे आई| म्हारै तो असो मौको आक्खी ऊमर में हाथे नीं आवेला| धीरेक ऊं सूरपूर करतो बोल्यो- "म्हैं तो थूँ केवे ज्यूँ करवा ने त्यार हूँ| अणा बाड़ा मैं बैठो वाड़ (इन्तजार) जोवू हूँ| थूँ कसीक हूश्यारी ऊँ संगलो काम करे|
वणियारी बोली- "म्हैं अकवीस आना तो पाछी आईन रेवूंला| पण कटेई असो ई घांदो पड़ जावे तो थूँ हांमला गोखड़ा हेटे ऊबो रेईन म्हनै धीरे-धीरे हेलो पाड़ लीजे| म्हारो नाम समझी है| म्हैं गोखड़ा री बारी ऊं गैणा री पोटली न्हाके देवूंला| सब गैणा-गाठा थने देयने पछे म्हैं कई उत्तर काढेन बाड़ा में थारे पां आई जावूंला| कसीक सावचेती राखे| बाड़ा में सावल हपियो रीजे, थने कोई देख नीं लेवे| म्हारो नाम समझी है याद राखजे| घणी देर व्हेगी, अबे म्हैं जावूं|

वणियाणी तो यो केयने निरात ऊं आपणे घर में परी गी अर चोर बाड़ा में चापलने बैठगयो| आज वण्डा हीया में खुशी रो पार नीं हो| व्हो बैठो-बैठो मन में सपना देखवा लागो के घरे जाता ई सबऊं पेली एक पाकी हवेली चुणावूंला| समझी ने कणी वात रा फोड़ा नीं पड़े| अण्ड़ो घणो ख्याल राखूला| व्हो गोखड़ा वाली दुमजंली मेड़ी तो चार-पाच दाण पूरी व्हेगी, पण समझी हाल तक पाछी नीं आई| वण्डी सीख रे परवाणे व्हो तीन घड़ी केड़े गोखड़ा हेटे ऊभो रेईन धीरे-धीरे हेलो मारवा लागो- ' समझी, ए समझी|'
अतराक में गोखड़ा री बारी खुली| समझी बारी बाणे मूंड़ो काढ़ने बोली- "समझी रे वीरा समझी| नीं तो घणो खावा अर नीं कबेला बाणे जावा| अबे थारे में समझ व्है तो अबार बाड़ा ऊं बाणे जातो रीजे, नीतर घणो पछतावेला|
चोर रे सपना री आक्खी हवेली घड़ेगी| व्हो मूंडो वगाडतो थको वटा ऊं न्हाटो, ज्यूँ अबार यॉ मेड़ी वण माथे पड़े|

मेणात सार

एक दाण महादेवजी दनिया माथे घणो कोप कीदो| वणा ठाण लीदो के जठा तांई आ दनिया हुधरे नीं वठा तांई हंख नीं बजावूं| महादेवजी हंख बजावे तो बरखा व्है| वणा हंख वजावणो बंद कीधो तो वरखा वेणी भी बंद व्हैग्यी| काल माथे काल पडया| पाणी रो छांटो तक नीं बरस्यो| दनिया घणी कलपी| मनखे घणी ई परसादियाँ कीधी अर जागण दीदा| पण महादेवजी आपणा प्रण ऊं नीं डग्या|
एक दाण महादेवजी अर पारवतीजी गगन (आकाश) में उडता जाईस्या हॉ| तो वे कई देखे के एक करसो वनाँ वरखा रा अस्या काल में भी खेत हाँकी स्यो है| खेत हाकवा में मगन व्हियो लगो अर परसेवा (पसीना) ऊं लथोलथ व्है रियो हो| तो अणी करसा ने देखी ने भोले बाबे (महादेवजी) मन में इजरज कयोर् के पाणी बरसिया ने तो बरस बीतग्या पण अणा करसा रो यो काई वेण्डपणो! विमाण ऊं नीचे उतर्या| करसा ने पूछयो -- "बावला, फालतू क्यूँ खेतां मॉ आफले? सूखी धरती में क्यूँ पसीनो खेरु करे? पाणी रा तो सपना ई कोई आवे नीं|
करसो बोल्यो --- "हॉची फरमावो| पण खेत हाकवा री आदत नीं भूली जाऊं, अणी खातर म्हूँ तो आये साल खेत हाकूं| हाकवा री आदत भूलग्यो तो म्हैं पाणी पडया भी खेत नीं हाके (जोत) स्कूलां| पछे खाली पाणीऊं ईज़ कई व्हेला?" या बात महादेवजी रे हीये ढूकी| महादेवजी मन में वचार कयोर्--- "म्हनै भी हंख बजायां घणां बरस व्हैग्या है| कठेई महूँ हंख बजावणो भूल तो नीं ग्यो| यो वचार करेन महादेवजी खेत में ऊभा का ईझ जोर ऊं हंख फूक्यो| चौफेर (चारो ओर) घटा उमड़ी| बादलां में गड़गड़ाट वीं| अर धरती परे अणमाप पाणी पडयो|
हरड़ड़ भदिंगोक हो!
एक ठाकरसा आपणाँ महलां माऊं घओ हारो दारू पीयेन हेटे उतरता हा| नाल (सीढ़िया) खासी-भली (घणी) हाँकड़ी ही| तरवार अर दारू ऊं कुण नीं पड़े? हाथी भी वण्डे हामे नीं टकी सके| पछे मनख री कई केणी? ठाकरसा तन्नाटी खायने थोड़ा सा डग्या, अर गड़िंद गड़िंद नाल ऊं गुड़किया|
हेटे चौक में केई हाजरिया, हजुरियाँ, कणवारियाँ अर कामदार ऊबा थका हा| ठाकरसा एक पंगतियाऊं दूजे पंगतिये पड़ता आवे तो संगला जणा जोर ऊं बोले, -- "खम्मा, खम्मा !"
नाल ऊपरे ठाकरसा रा गड़िंदा अर हेटे खम्मा खम्मा री घोक|
नाल रे अधवचैई (बीच) आवतां ई ठाकरसा एक पंगतिया ऊं ट लिया अर ठेट हेटे आंगणे आई पडया| तो एक जाट जोर ऊं बोल्यो -- "हरड़ड़ भदिंगोक हो !"
अठीने जाट रो जोर ऊं हरड़ड भदिंगोक करणो व्हियो अर व्हठी ने ठाकरसा रो घड़िंग करतां जोरू जमीं माथे पडणो व्हियो| ठाकरसा तो पडया केड़े हालिया (हिले) ई कोईनी|
हंगले जणे जाट ने एक लारे जोर ऊं दरपावता (डराते) थका केयो -- "मूरख, नांढ़, वेण्डा, उज्जड़ कठारा ई, थने सरम आवे नीं कई, ठाकरसा पडया तो थे "हरड़ड़ भदिंगोक" क्यूँ बोल्यो? थने बोलवा री ई कई ठा पड़े कोईनी कई|
जाट पाछो पडूतर दीधो -- " थारी बापड़ी खम्मा खम्मा ऊं तो कई कारी लागी नीं, ठाकरसा गड़ता (गिरता) ई ग्या| पण म्हारै "हरड़ड भदिंगोक" बोलवारे पछे ठाकरसा हालिया (हिले) व्है तो बोलो| पछे थारी खम्मा वरती के म्हारो "हरड़ड भदिंगोक" वरतो| ठाकरसा जणी वगत ज़मीन माथे पडया तो व्हणा री आवाज़ "खम्मा खम्मा" जसी ही के "हरड़ड भदिंगोक" जसी ही बोलो? वेण्डा थां सब हो के म्हैं हूँ वचार करेन वतावो|

 

 

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