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(आभार राजस्थान पत्रिका)

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संक्षिप्त राजस्थानी साहित्यिक और सांस्कृतिक कोश


च-ञ

चकवो-एक पक्षी। कवि प्रसिद्ध है के चकवो-चकवी दिन मांय तो किणी तलवा नदी रे कांठे भेला रहवे, पण रात रा जुदा व्हैने विरह मांय वितावे।
चकोर-कवि प्रसिद्धि है, के इण पक्षी ने चंदरमा घमओ प्यारो लागे ने ओ उणरी चांदणी ने पीवे। दूजो प्रसिद्धि आ ई है के चंद्र किरण रे भ्रम मायं ओ तलंगिया खावे।
चतुरसिंघ, महाराज-जनम सं. 1936 करजाली (मेवाड़) अर मृत्यु सं. 1986। देव तुल्य पुरु। संस्कृत रा चोखा ज्ञाता। वेदांत, योग, सांख्य जैड़ा क्लिष्ट विषयां री मेवाड़ी टीकावां छपवाई। महिम्मन स्तोत्र, अलख पचीसी, चतुर चिंतामणि, चन्द्रशेखर स्तोत्रम, समान बत्तीसी, श्री गीताजी, योगसूत्र वगेरा सोले पोतियां लिखी के अनवुाद कीवा। इण बाठरड़ा ठाकुर गुमानसिंघ सूं योग रो उपदेश लियो. नउवा गाम मांय संवत् 1978 मांय पौष सुदी तीज ने आपने साक्षात्कार व्हीयो। ओछा अर गम्भीर प्रकृति रा पुरुषां रो आप नवा प्रतीकां रे माध्यम सूं मओ ुत्तम वर्मण कियो-
        कारड तो कहतो फिरे, हर कीनी हकनाक।
        जणरी व्है उणने है, हियो लिफाफो राख।।
चरक-ईसा री प्रथम शताब्दी रा ए आयुर्वेदाचार्य, प्राचीन साहित्य मां ए शेषनागर रा अवतार गिणीजे। चरकसंहिता आपोर विश्वविख्यात ग्रंथ है। आठमा सइका मांय इण ग्रंथ रो अरबी मायं अनुवाद व्हीयो।
चरजा-देवी स्तुति अर उणरी खास रागिणी।
चरण-छंद शास्त्र मायं किणी पद रा चौथा भाग ने चरण केहवे। ज्युं-दूहा मांय चारण चरण व्है।
चरणदास-जनम सन् 1703 डेहरा (मेवात) जनम नाम रणजीत, पण गुरु चरणदास नाम राखियो। दिल्ली मांय शुकदेव मुनि सूं दीक्षा लीवी। चरणदासी संप्रदाय रा प्रवर्त्तक। इण निर्गुणी संप्रदाय रा साधु पीला कपड़ा पेहरे ने पीली पाध बांधे। माथा माथे गोपीचंदण रो तिलक केर। श्रीमद्भागवत ने आपरो धरम ग्रंथ माने। इण चवदे ग्रंथ लिखिया-अष्टांग योग, नासकेत, संदेह सागर, भक्ति सागर, हरिप्रकाश टीका, अमरलोक खंड धाम, ज्ञान सरोदय, दान लीला वगेरा। दिल्ली मांय ब्रह्मलीन।
चरु-सुगला-घर री ऐड़ी उत्तम व्यवस्था, जिण ांय कोई पांवणआ के अनाथ किणी टैम आजावे, पण भूखो नी जा सके।
चलण-प्रचलित नाणो। आखा राजस्थान मांय पचास सूं बैसी नाणा चलण मांय हा। ज्युं के-फदियो, कडौी, छकड़, ढबू, गदियो, दुगाणी वगेरा।
चंडूजी-चंडू पंचाग रा करता। चूंडजी रो जनम सन् 1513, जैसलमेर। इणार ागुरु गुजरात रा विजयदत हा। सं 1587 मां य पेहलो पंचांग वणायो अर जैसलमे रा राव लूणकरण ने भेटं कीनो. जद इनाम दीरिजियो तो वा रकम खुद नी राख'र गुरु ने मेल दीवी। जद राव लूणकरण री कंवरी उमादे रो व्याव जोधपुर रा राव मालदेव साथे व्हीयो तो ए ई जोधपुर आयगा। सं 1592 मायं दूजीवार पंचाग वणाय ने राव मालदेव ने भेंट कीनो. तद सूं ओ पंचाक नियमित नीकले। राजा मृगांक, त्रैलोक्य दीपक अर ताजक चंद्रिका आपरा ज्योतिष ग्रंथ है।
चंग-लकड़ी सूं बणियोड़े एक गोल घेरा माथे मेथी रे घो सूं चेंटायोड़ी घेटा री खाल। ओ वाद्य दोनूं हाथां री आंगलियां सूं वजाईजे। खासकर ओ होली रे टांणे वजाईजे। एक दूजो आदमी हाथा ंमांय कांबां लायने साथे साथे वजावे।
चंदकुंवरी री वात-सन् 1765 मांय कवि प्रतापसिंघ रो लिखियोड़ो एक डींगर ग्रंथ, जण मांय अमरावती रा राजकुंवरर अर उठै री सेठ री बेटी चंद्रकुंवरी री प्रेम कथा है।
चंदन-कवि प्रसिद्धि है के इण रे फूलां रो वर्णण नी व्हैणो चाहीजे। ओ ई प्रसिद्ध है के ठंडी तासीर के कारम भुजंग इणसूं लपटीजियोडा रेहवे। देश रे दक्षिण मायं चंदन रा जंगल मोकला।
चंदन मलयगिरि री वात-सन् 1740 मांय भद्रसेन द्वारा रचित एक ग्रंथ, जिण ायं चंदन अर मलयगिरि री प्रेम कथा है।
चंद वरदाई-ए पृथ्वीराज चौहाण रा मिंत, सामंत, राजकवि नै मोटा साम धरमी हा। पृथ्वीराज रे लारे ए गजनी गया अर जेल मायं ईज पेहला पृथ्वीराज ने कटारी सूं मारने पछे खुद कटारी सूं आत्महत्या कीवी। इणा हिंदी रा पेहला महाकाव्य पृथ्वीराज रासो री रचना कीवी। इण ग्रंथ री भाषा बृज मिश्रित राजस्थानी है, जिणने पिंगल ई केहवे। इण मायं अरबी, फारस,ी अर तुरकी रा शबप्द घमा, जिणसूं लागे के ए घमी भाषावां रा जाणकार हा। साटक, दूहो, गाहा, पद्धरि, तोमर, भुजंगी, कवित्त णिरा छं्‌द है। ओ वीर रस री प्रमुकता वालो तथा इण मायं घटणावां रो जींवत वर्णण है। इणारा पुत्र इण ग्रंथ ने पूरम कीनो। ऐड़ो मानीजे के भक्त सूरदास इणारा वंशज है।
चंद्रदान चारण (डा.)-जनम सन् 1924, चूरु। ए भारतीयविद्या मंदिर शोध प्रतिष्ठन, वीकानेर रा संचालक रह्या ने जगाती जोत पत्रिका रा संपादक ई। राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर, अखिल भारतीय प्रौढ शिक्षा संघ अर लारे सूं राजस्थानी भाषा, साहतिय् अर संस्कृति अकादमी वीकानेर रा सदस्य ई रह्या। गोगाजी चौहाण री राजस्थनी गाथा अर अलखिया संप्रदाय आपरी पोथियां है। माणकचंद सुराणा पुरस्कार, श्रेष्ठ शिक्षक पुरस्कार, राजस्थानी ज्ञानपीठ पुरस्कार वगेरा सूं पुरस्कृत। हमारा थोड़ा समै पेला आपोर निधन व्हैगो।
चंद्रप्रकाश देवल (डॉ.)-जनम सन् 1949, वल्लभनगर, उदयपुर। ापरी पोथी पाणी साहित्य अकादमी, दिल्ली सूं पुरस्कृत। मिंतर म्हारो गाम मरे क्यूं नी (काव्य संग्रै) ई प्रगट। चारण शोध संस्थान, अजमेर रा निदेशक। स्वामी स्वरुपदास रचित पांडव यशेंदु चंद्रिका। रो संपदान कीयनो. अबार साहत्य अकादेमी, दिल्ली रा राजस्थानी विभाग रा संयोजक है।

चंद्रमा-(1) ए ्‌त्रि ने अनसूया रा पुत्र हा। इणारो नाम सोम ई है। ए चवदे रतनां मायं सूं एक हा ने इणीज कारण लक्ष्मी रा भाी ने समंदर रा बेटया ई गिणीजे। इणारो व्याव दक्ष री 27 कन्यावां साथे व्हीयो हो, पण ए रोहिणी सूं प्रेम करता। इण कारण दक्ष ईणाने सराप दीनो, जिणसूं इणाने तपेदिक रो रोग लागो. देवतावां री वीनती माथे, थोड़ो सुधारो करने दक्, कह्‌ोय के चंद्रमा रो पनरे दिन क्षय अर पनरे दिन वृद्धि व्हैला. इणसूंीज वदी ने सुदी वणिया। इणा खुद रे गुरु पत्नी तारा रो हरण कीनो, जिणसूं इमारे बुध नाम रो बेटो व्हीयो। हलाहल विष री शांति सारू भगवान शवि णिाने आपरे मस्तक माथे धारण कियो।
चंद्रसखी-मीरा री भांत एक कृष्णभक्त कवित्री। इणारी जवीणी हालतांी अज्ञात व्हैता थकां, पदा ंरा चार संग्रै जुदा जुदा विद्वानां द्वारा प्रगट व्है चुका है। ठाकर रामसिंघ रो चंद्रसखी रा भजन, डॉ. पद्मवाती शबनम रो चंद्रसखी और उनका काव्य, डॉ. महावीरसिंग गहलोत री चंद्रसखी पदावली अर डॉ. प्रभुदायल मित्तल रो चंद्रसखी के भजन व लोगगीत। इणार ापद ई जगा-जगा गावीजे।
चंद्रशेखर व्यास-जनम सं. 1768, चुरु। इणरा सोरठा शेकर रा सोरठा नाम सूं जन साधारम मायं घमआ प्रचलित। सोरठा साथे बेजा, प्रवासी अर दायजो एकांकी नाटक ई लिखिया।
चंद्रसेन राव-महाराणा प्रताप रा समकालीन ने उणारे ज्युंईज स्वतंत्रता प्रिय पण मात्र ामांय उगणीस वीस रो फरक। राव मालदेव रा तीजा पुत्र अर जोदपुर रा राजा। जोधपुर छोड़ियां पछे ए भाद्राजून गया। उठै सूं हारियां पछै नागौर गया, पण ्‌कबर री शरम तो नी ईज क्वीकारी। अंत मांय सारण गाम कनै मृत्यु व्ही। घमा साहित्यकारां ने इतिहासकारां इण दोनूं (प्रतापन ने चंद्रसेन) रो तुलनात्मक अध्ययन कीनो है।
चंद्रसिंह-जिणरे लारे कीरती दौड़े ्‌र वो दूर दूर करतो रेहवे ने जिणने वीकानेर राज मायं लोकप्रिय सरकार मायं मंत्री बणण रो नेतो मिले तोई दूर दूर रहण आलो कवि रो जनम नोहर तहसील रा गाम बिरकाली मायं श्री हरिसिंघ रे घरे सं. 1969 मांय व्हीयो. धंधो नै वेष दोनूं करसां रान े बणतर बी.ए. तांई। खादीधारी अर स्वभाव ससूं आजाद। प्रकृति चित्रण रा नामी कवि। बादली, लू, बालसाद, दिलीप अर चित्रांगद, कालजे री कोर, कह मुकरणी तथा जफरनाम आद घमी पोतियां प्रगट है। वादली तो इतरी लोकप्रिय व्ही के इणरा पाचं संस्करण नीकलिया अर णि माथै राजा बलदेवप्रसाद पुरस्करा अर रत्नाकर पुरस्करा ई मिलिया। सन् 1992 मांय निधन।
चंपू- वो काव्य जिण मायं द्य ने पद्य रो मिश्रण है। ओ काव्य रुप  राजस्थानी विद्या वचनिका रे घमओ नेड़ो है।
चंबल-इणरो पौराणिकन ाम चर्मणवती के चर्मावती हो। राजा रंतिदेव इणरे कांठे अतिथि यज्ञ कीनो हो। इण नदी रो उद्गम मऊ (मध्यप्रदेश) सूं दसेक कोस आगो है। मध्यप्रदेश अर रास्थान री लंबी जात्रा पछी आ बारामासी नदी इटावा (उत्तरप्रदेश) कनै जमना मांय मिले। बीहड़ भाखरां, जंगलमां ने मैदानां मांय वहती आ 600 मील लंबी है। कोटा कने इण माथे प्रतापसागर बंधो बंधियोड़ो है। डाकुवां रे रेहवास रे कारण आ घमी चावी व्ही। इणने चामल ई केहवे।

चंवरी दापो-(1) व्याव रे टांणे चंवरी माथे लागण आलो राज के जागीरी लाग। (2) ब्रामण, कुंभार, नाई आद रो व्याव रे टांणा रो नेग।
चामल-इण नाम री पत्रिका, जिका कोटा सूं प्रकाशित हूवती। प्रेमजी प्रेम इणरा थपाक संपादक हा।
चारण-(1) आ नाम री पत्रिका, जिका पेहाल जोधपुर सूं निकली ही। इणरा संपदाक शुभकरण कविया अर मोटेरा (गुजरात) रा खेतसिंघ मीसण हा। पछे इणरा संपादक पिंगलसी पायक रह्या। उण टैम रा जूनागढ (गुजरात) सूं निकलती। इणरो इण पछे रो अंक आगरा सूं प्रगट व्हीयो। (2) जात विशेष, जिणमायं कवित्तव प्रतिभा जनम सूं मानीजे। राज्याश्रय सूं चारण समाज रो सामजिक अर आर्थिक मोभा मायं घमओ वधेवो व्हीयो। ए शक्तिपूजक है।
चारण साहित्य शोध संस्थान-सन् 1948 मांय चारण सभा द्वारा अजमेर मांय थरपित इण संस्थान रो उद्देश्य चारणा रचित साहितन्य भेलमो करणो, उमांय अनुसंधान करतणो तथा उणरो प्रकासण करणो. ओ संस्तान एक पाठशाला ई चलावे, जिण मांय डींगल काव्य रा पठन अर लेखण रो शिक्षण दियो जावे।
चारभुजा-वैष्णवां रो एक तीरथ, जिकोत कांकरोली (मेवाड़) सूं 25 कीलोमीटर आगो है।
चार धाम-देश री चार दिशावां मांय आयोड़ा चार मोटा तीरथ-बद्रीनारायण, द्वारका, जगन्नाथपरी ने रामेश्वर।
चार्वाक-एक प्राचीन स्वतंत्र विचारक। खरेखर तो इण बृहस्पति रा सिद्धांत अनीश्वर वाद रो ईज प्रचारी कीनो. इणारो एक मत ओ ई है के शरीर सूं जुदो आत्मा रो कोई अस्तित्व कोनी। दूजो मत ओ हो के भौतिक सुखां री प्राप्ति ईज परम पुरुषार्थ है। इम मत वाला केहवे के जठै तांई जीवो, खूब मौजमजा करो। इणारो तीजो मत ओ है के शरीर रे भसम व्हीया पछे आत्मा रेहवे ई कोनी इणीज कारण पुनरजनम रो सिद्धांत ई खोटो है। ए नी तो वेदां ने प्रमाण माने अर नी परलोक री सत्ता ने माने।इमारे मूल मंत्र है-'यावज्जीवेत्सुखमं जीवेद ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत्‌। भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः।'
चालीसो-चालीस छंदां रो काव्य। ज्युं-हनुमान चालीसो।
चावलां री लूट-दीवाली रे दूजे दिन श्रीनाथद्वारा मिंदर मांय अन्नकूट रो आयोजण व्है। उण दिन दोय सौ मण चावल रांधीजे अर उणरो ढिगलो मिंदर रे रतन चौक मांय करीजे। ज्यूंई मिंदर रो बारणो खोलीजे के आजूबाजू रा चालीस गामां रा भील इण ढिगला री लूट करे। णिसमै वे लंगोट सिवाय साव उघाड़ा व्है। उमारे कमय मांय एक झोली बंधियोड़ी व्है, जिण मांय लूट रा चावल भरे। लोगां री मानता है के इण चावलां ने अनाजय मांय राखणे सूं अनाज सले कोनी, तिजोरी मायं राखियां सूं लक्ष्मीवधे, शुभसुगन देवे अर रोग मुक्त बणावे।
चांदी माता-आदिवासियों की एक देवी।
चादंी रा गोला-सन् 1857 मांय वीकानेर राज रा चूरू ठिकाणे चवड़ेधाड़े अंगरेजां री खिलाफत कीवी। वीकानेर री मदद सूं अंगरेजां ठाकर शिवसिंघ माथे हमलो कियो। ठाकर घमी वीरता सूं लड़िया। अंगरेज घेरो धाल'र गोलां री वरसाद कीनी। ठाकर जवाब दीनो, पण चूरू रा गोला लारे सूं निठगा। जद शीशो मिलण री आशा नी रही तद चरू रा सेठां अर जनता, दोनूं अबखी वेला मांय चांदी लाय'र हाजर कीनी। सुनार अर लुहार चांदी रो गोला बणाया ने दूजे दिन जद चांदी रो गोला छूटीया तो अंगेरजा ने बीकानेर री फौज हैरान व्हैगी। उणा जनता रे मनोबल री प्रशंसा करता घेरो उठाय लियो। कवि शंकरदान सामोर इण घटणा ने इण भांत बिरदावी-

धोरे उपर नींबडी, धोरे ऊपर तोप।
        चांदी गोला, चालतां, गोरां नाख्या टोप।।
        दीकी फीको पड़ गयो, बण गोरां हमगीर।
        चांदी गोला चालिया, चूरी री तारीस।।
चिणायका-चाणक्य नीति रो एक रुप, जिको महाजनी पोशालां मांय भमायो जावतो।
चित्त-मन, बुद्धि अर अहंकार सूं मिल'र चित्त बणे. चित्त री पांच वृत्तियां ने पांच ई भूमियां व्है। चित्त वृत्तियां रे निरोध ने ई योग केहवे।
चित्तोड़-चित्रानंद मोरी, मेवाड मांय इण इतिहास प्रसिद्ध गढञ ने बणवायो हो। इण पछे आठमा सैका मांय बप्पा रावण इण गढञ माथे आपरो अधिकार जमायो। उदैपुर पेहला मेवाड़ड री राजधानी अठैईज ही। ओ गढ 3409 फुट ऊंचा भाखर माथे वणियोड़ो है। इणरी लंबाई 6 कीलोमीटर अर चवड़ाई डोढ कीलोमीटर है। इमरे सात दरवाजा है। चीत दुरंग, चीत गढ ने चीत्रकोट इणरा बीजा नाम है। इणने भउरजाल भूषण ई केहवे। अलाऊद्दीन खिलजी चालाकी सूं ओ गढ़ जीत'र आपरे बेटे खिजरखां रे नामसू ंइणरो नाम खिजराबाद राखियो, पण ओनाम चालियो कोनी। अठैीज पद्मिनी ने कर्णावती आपरी साथणियां अर गढ री दूजी लुगायां साथे जौहार कीनो हो। अठैईज जैमल नै पत्तार री समाधियां है। इण गढ मांय कुंभा महल, पद्मिनवी महल, मीरा मंदिर, कीर्ति स्तम्भ अर विजय स्तम्भ जैड़ी वास्तुकला ऐतिहासाकि महत्त्व री वस्तुवां है। चित्तौड़ सारु हिंदी मांय यकेहवीजे के गढ तो चित्तोड़गढ और सब गढैया है।
चित्तौड़ भागी रो पाप-आ एक सोगन है, जिणरो आशय ओ व्है के चित्तौड़ के किल्ला रे पतन रो पाप थांने लागसी।
चित्रकला-कामसूत्र मांय चित्रकला रा छ अंग दरसायोड़ा है। भारत मांय प्राचीन काल सूं चित्रकला रो व्यापक प्रचार रह्यो है। राजस्थानी चित्रकला री आपरी न्यारी ओलखाण है। मूल रूप सूं आखा राजस्थान री चित्रकला एक तोी जुदा जुदा राज्यां रे कारण जुदी जुदी चित्रशैलियां जाणीजे। उदयपुर, किशनगढ, बूंदी, कोटा, जोधुपुर, बीकानेर, नाथद्वारा वगेरा। णि शैलियां माथे मगुल शैली रो प्रभाव है। पण खुद मुगल शैली ई भारती अर फारसी शैलियां सूं प्रभावित है।
चित्रकाव्य-चमत्कार ने प्रधानता देवणआलो काव्य। मम्मट रे अनुसार ओ अधम काव्य है। इण मांय कोरो वर्णाो के सबदों रा चमत्कार है। इणरा अनेक प्रकार है। ज्युंके-पताका, कमल, मयूर, हार वगेरा। इणने आपां एक शब्दालांकर केय सकां. खेरखर तो इण मांय आख इणतरीके सूं लिखीजे के कोई चित्र बण जाय।
चित्रकूट-इण प्राचीन तीरथ रो वर्णन रामायण नै पुराणां मायंम लिे. प्रायग रे कने एक भाखर, जठै वनवास रे समै राम, सीता अर लक्ष्मण घणालांवे समै तांई रह्या। अठै मंदाकिनी नदी वेहवे अर अठैीज राम ने भरत रो मिलाव व्हीयो हो. अठैईज महर्षि अत्रि रो आश्रम हो।
चित्रगुप्त-यमराज रे अठै मिनखां रो पाप-पुण्य रो लेखो लिखण आलो. आज री कायस्थ जात इणने आपोर पूर्वज माने। भीष्म पितामाह ने इच्छा मृत्यु रो वरदान इणरे कनैे सूं मिलियो हो।

चिलका डाक-19मां सइका मांय अजेमर सूं वीकानेर अर  अजमेर सूं  जोधुपर टेलीग्राम (तार) री व्यवस्था कोनी ही। इण कार समंचार मेलम मांय घमओ मोड़ो व्हेतो। ुण समै हर दस कोसा समाथे किसी ऊंची जगा (धोरो के भाखर)माथे दर्पण लगायोड़ो हो. सूरज रे समां करने णि दर्पणा सूं चिलको पैदा ककरीजतो अर इणचिलका री गुप्त सांकेतिक भासा सूं आधा घंटा मांय एक जगा सूं दूजी जगा संदेशा पूगा जावता। जैपर सूं चूर संदेशा मेलण री आईज व्यवस्था ही। क्युंके चलिकास सूं ए संदेश मेलीजता, इण कारण इणरो नाम चिलका डाक पड़ियो।
चिंतामणि- एक कल्पित मणि। प्रसिद्ध है के इणसूं जिका अभिला,ा करीजे वा पूरण व्है।
चींधण-(1) वो भीखारी, जिको आपरी न्या  सिवा, दूजां कने सूं भिक्षी नी लेवे। (2) घणो अमल लेवण सूं नथा मांय रेहवण वालो मिनख।
चींधी देणो-पति कांनी सूं पत्नी ने छूटाछेड़ा देणा।
चुड़लो रास-इण ग्रंथ रा मूल रयचिता रो तो पतो कोनी, पण इणरी बे हस्तप्रतां अभय जैन ग्रंथालय वीकानेर मायं है। एक हस्त प्रत रा लहिया पं. रघुनाथ है, जिणा सं. 1786 मांय इणरी नकल कीवी. इणरो वर्ण्य विषय सोक री ईरषा हैष क-ष्ण सत्यभामा ने चूड़ो पेहरावे तो रुकमणी कितरो द्वेष करे, उणरो इण मां सचोट वर्णन है।
चूड़ो-चूनड़ी अखै रहो-वड़ेरां कांनी सूं सुहागणियां ने दीरीजावलो आशीर्वाद।
चूरू-बीकानेर-राज रा इतिहास मुजब, इण गाम ने चूहरू नाम  रे जाट बसायो हो। पछे जाटां कने सूं राठोड़ां णिने खोस लीनो। ुकशलिसंघ अठै किनो परकोटो बणवायो। अबार ओ नगर चूरू जिल्ला रो मुख्यालय है अर साहित्यिक गतिविधियां रो केंद्र है।
चूंडो दधवाड़ियो-भक्त अर कवि। ए मारवाड़ रा बलूंदा गाम रा मेहाजी रा पुत्र हा। इणारा वडेरा वीकानेर सूं अठै आयने वसिया हा। इयुं मानीजे के मेड़ता रो चारभुजा रो मिंदर इण बणवायो हो। इणारा बे ग्रंथ चावा (1) रामलीला (2) गुण चाणक्य वेल। इणारा पुत्र माधोदास पण मोटा राम भगत नै लूंठा कवि हा। एक दूहा मांय महाकवि पृथ्वीराज राठौड़ माधोदास री तारीफ कीवी है। इण मायं चूंडो रो वर्णन ई है।
चूंडो चत्रभुज सेवियो, ततफल लागो तास।
धारण जीवो चारजुग, मरो न माधवदास।।
चूंडो लाखाणी-राणा लाखा, मेवाड़ रो पाटवी कंवर। जद मारवाड सूं इणरी सगाी रो नालेर आयो तो दरबार मंय वृद्द लाखां सूं केहवीजेगो के-नालेर तो जवानां सारू आवे वृद्दा सारु थोड़ोई आवे. इण माजक माथे चूंडे प्रतिज्ञा कीवी के अबे तो ओ संबंध पिताजी साथे हुवेला, म्हारा साथे नही। लोगां घणा समझायो, पण पिताजी री रंच मात्र इंछा है, इण कारण वो टस सू मस नी व्हीयो। पछे ईणे ओ ई ह्यो के इण कन्या सूं उत्पन्न पुत्र ईज मेवाड़ रो राणा बणेला। भविष मांय झघड़ा री आशंका सूं इणे कौल कीधो के म्हूं व्याव ई नी करुंला। इयुं देखता चूंडो जबरो पितृभक्त अर आधुनिक भीष्म पिताहम हो, पण एक दूजा मत सूं इयुं के लागे के इण लारे सूं ब्याव कीनो अर इणरा वंशज चूंडावत केहवीजियो।
चेतन स्वामी(डॉ.)-जनम सन् 1957, श्री डूंगरगढ। अबारतांई इणारो एक कहाणी संग्रै सवाल और एक कविता संग्रै आंगमे विचाली भीतां तथा एक अनुवाद प्रगट है. आधुनिक राजस्थानी कहाणी और लोक गीत माथे पी.एच.डी री उपाधि मिली। समकालीन राजस्थानी कहाणियां रो संपादन कियो। फतेहपुर (शेखावटी) मांय एक कॉलेज मायं हिंदी रा प्राध्यापक है।
चैतन्य महाप्रभु-जनम नदिया (बंगाल)। पेहला मध्याचार्य रा चेला वणिया पण लारे सूं निंबाकाचार्य रा सिद्धांतां ने स्वीकारिया। इणा बगती मांय राधा ने ममुख्य स्थानी दीनो। चैतन्यमत रा प्रवर्तक हा, जिणने गौड़ी वैष्णव मत ई केहवे। इणारा अनुयायी इणाने विष्णु रा अवतारा मानता। चैतन्यमत मां संकीर्तन रो महत्त्व घणो। फगत अड़तालीस वरसां री ऊमर मांय निधन व्हैगो।

चोटी वढ़ियो-(1) जागीरी प्रथा रो एक टेक्स। (2) मुक्त मिनख। (3) मुसलमान। (4) जिणने चोटी वढायने राखणी पड़ती।
चौक-चांदणी-गणेश चौथ (भादरवा सुदी चौथः) रे दिन शेखावाटी मायं मनायो जावण वालो एक वर्षा ऋतुृ-उत्सव।
चौकल-चार मात्रावां रो समूह। इणने मात्रा-गण ई केहवे। इणरा पांच भेद व्है।
चौपनियो-(1)नैनी वही। (2) चारा पानां वालो।
चौपाई-एक मात्रिक छंद, जिणर ेहरेक चरण मायं सोले मात्रावां व्है पण अंत मांय जगण ने तगण नी व्हैणा चाहीजे। तुलसीदाजी रो रामचरितमानस मूल रूप मां इणजी छंद मांय है। चौपाई अर चौपई मांय फरक व्है। चौपाई मायं 15 मात्रावां व्है ने अंत मांय गुरु लघु व्है। चौपाई रे अंत मांय गुरु गुरु के लघु गुरु है।
चौबोली-(1) कहाणियां री इण पोथी मायं राजस्थानी री चार कहाणियां है-राणी चौबीली, खींवा वीजे री वात, राजा मानधाता री वात, सूरां अर सतवादी री वात। इणरो संपादन डॉ. कन्हैयालाल सहल नै पं. पतराम गौड़़ कियो। इणरी भूमिका हिंदी रा चावा कहाणीकार श्री जैनेन्द्र लिखी ही अर सन् 1968 मांय सूर्णकरम पारीक स्मारक ग्रंथवाला सूं छपी। (2) राजा भोज  री एक राणी रो नाम।
चौरासी लाख योनियां-धरमशास्त्र रे अनुसार योनियां री संख्या 84 लाख मानीजे। इणमायं 9 लाख जनवर, 4 लाख मिनख, 27 लाख स्तावर, 11 लाख कृमि, 10 लाख पक्षी अर 23 लाख चौपाया आवै।
चौमुख ब्रह्मा-ए जालोर रा श्रीमाली ब्राह्मण हा। प्रकांड पंडित। इण घमआ शास्त्रार्थ जीतिया अर तमगा प्राप्त कीना. क्युंके इणारने चारूं वेद मूंडे हा, इण सारू ए चौमुखा ब्रह्मा वाजता।
चौवीस अवतार-पुराण मजुब ईश्वर धरती माथे विविध रुपां मायं अवतार लेवे। प्रमुक अवतार दस है। चौवीस अवतार इण मुजब है-मत्स्य, कच्छफ, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, रामचंद्र, कृष्ण, बुद्ध, नारद, नर-नारायण, कपिल, दत्तात्रेय, ऋषभ, यज्ञ, पृथु, धन्वंतरी, मोहिनी, वेद व्यास, बलराम, हयग्रीव ने हंस।
चौवीस तीर्थंकर-रचित कुसुमांजली मुजब तीन कालां (भूत, भविष्यत ने वर्तमान) मायं जुदा-जुदा चौबीस तीर्थंकर व्है। वर्तमान काल रा चौबीस तीर्थंकरां मांय-रिखभदेव, अजितनाथ, संभवनाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपासनाथ, चंद्रप्रभ, सुबुधिनाथ, सीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य स्वामी, विमलनाथ, अनंतनाथ, धरमनाथ, शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अमरनाथ, मल्लिनाथ, सुव्रत, नाभिनाथ, नेमिनाथ, पारसनाथ अर महावीर स्वामी।

छकड़-एक प्राचीन सिक्को।
छत्तीस पवन-चार वरणा री सगली जातां। सैंग मानव समाज।
छत्रपति सिंह-जनम सन् 1925, वीकानेर। तिरसंकू (राजस्थानी नवलवारता) अर असफ रात (हिंदी नवलवारता) रा लेखक।
छपना रा भाखर-सिवाणा कने एक पर्वतमाला। इणरी एक टूंक माथे हलदेश्वर नाम रो रम्य प्रख्यात तीरथ। महाराज अजीतसिंघ, जोधपुर अठै वलीखो वितायो हो. इण पेहला राव मालदेव ई अै रह्या हा। अठैरा परकोटा मंय आज  ई घुड़शाला ने अनाज रा कोठार, खंडेर रुप मांय देखीजे। केहवीज े के हलदेश्वर री थापन दुर्गादास कीवी ही। इण भाखरमाला ने छप्नगिर ई केहवे। मेवाड़ रा मांय ई छपना रा भाखर है।
छपनियो काल-सन् 1856 रो भंयकर दुकाल। इण काल मांय अगणित मिनख ने ढोर भूखा-तिरसा मरिया। भूख मांगण सारू लोकां रुखां री छाल खाधी। लोक उचालो कर मालवा के दक्षिण गुजरात गया। राजस्थान रा घणा कवियां छपनिया काल माथे लिखियो। डूंगरपुर रा स्व. पन्नालाल पटेल तो गुजराती मांय इम काल रो तादृश्य वर्णण आपरी एक नवलवारता मांय कियो।
छप्पै-एक मात्रिक छंद। इणरी पेहली चार ओलियां रोला छंद री व्है अर आखरी वे उल्लाला री व्है। इण छंद ने षटपदी ई केहवे। राजस्थानी मायं इणरा लघु गुरु क्रम सूं 71 भेद है।
छंद-(1) वा पद रचना, जिण मांय वर्ण के मात्र री गिणती मुजब चरण व्है अर विराम बाद नियमां रो पालण व्है। छंद बे भात रा व्है-वर्णिक ने मात्रिक। (2) डींगल काव्य री एक संज्ञा। (3) राजस्थानी भा,ा मांय छंद रो एक अर्थ वेद ई व्है।
छेडा-छेड़ी-ब्याव रो टांणे हथलेवो के फेरा खावता वखत वींद-वीनणी रे दुपडा अर चूनड़ी रा छेड़ां मांय लगाई जावणवाली गांठ।
छेड़ा लेवणो-(1) बूढा-ठाडा रा मरण माथे लुगायां द्वारा रोवती-रोवती उणरी कीरत गावणी। (2) इणि टांणे सगियां द्वारा व्यंम्गय के परिहास रा गीत गावणो। इणने पल्ला लेवणो ई केहवे।
छेड़ो वालणो-मृतक लारे लुगायां रो रोवणो।
छोगाली घोड़ी-भक्त ईसरदाजी री घडोी रो नाम। आ घोड़ी उणाने वजा सरदैया दांन मायं दीवी हो।
छोतिदास-जैन श्रावक परवत के पातु रो छुआछात माथे लिखियोड़ो राजस्थानी व्यंग्य काव्य ग्रंथ। इमरी प्राचीन हस्तप्रत संवत् 1919 री है. श्री अगरचंद नाहटा हिंदी भा,ा रे सारांश साथे इने वरदा पत्रिका मांय छपवायो हो।

जगदीश माथुर कमल-जनम सन् 1931, जोधपुर। जीवालां तो फेर मिलांला नवलवारता रे सिवा जीणाता अरसोढी नाथी रा गूढार्थ पोथियां रा लिखारा। लोक संपर्क मासिक पत्रिका रा संपादक ई रह्या अबार जैपर सूं प्रगट शिवानंद वाणी पत्रिका रा संपादक है।
जगदीशसिंह गहलोत-जनम सन् 1903 मंडोर, जोदपुर कनै। मारवाड़ राज्य का इतिहास माथे राज सरकार सूं 500 रुपिया रो इनाम मिलिया। राजपूताने का इतिहास प्रथम भाग ई लिखियो। जोधपुर-बीकानेर संभाग रा पुरातत्त्व एवं संग्राहलय रा सुपडंट नीमीजिया। सन् 1920 मांय हिंदी साहित्य मंदिर संस्ता री थापना कीवी। राजस्थानी कृषक कहावतें, मारवाड़ के ग्रामगीत, राजस्थानी वार्तालाथ, राजिये के सोरठे, ऊमर काव्य, महाराजा सर प्रताप, मंडोर का इतिहास, दियासलाई का इतिहास, भारत में तमाखू, भारती नरेश, आर्य समाज रा हिन्दू संगठन, चित्रमय जोधपुर, राजस्थान का सामाजिक जीवन, मारवाड़ राज्य का भूगोल, वीर दुर्गादास राठौड़ तथा ऐतिहासिक तिथि पत्र आपरी विविध विषयां माथे लिखियोड़ी कृतियां है। मंशी देवीप्रसाद रे इतिहास लेखण मायं सहायता कीवी. देश रा घमा इतिहबासकारां इणारा कार्य की तारीफ कीवी।
जगन्नाथ-उड़ीसा मांय पुरी रे मिंदर मांय श्रीकृष्ण री लकड़ी री मूरथ. इण मिंदर मां बलराम अर सुभद्रां री मूरतां ई है। ब्रह्म पुराण मांय जगन्नाथ भगवान रो वर्णण मिले। असाढ़ वदी बीज रे हर वरस पुरी मायं भगवान जगन्नाथ री यात्रा मां चार-पांच लाख श्रद्धालु आवे।
जगन्नाथ पहाड़िया-राजस्थान रा एक पूर्व मुख्यमंत्री ने चावा कांग्रेसी नेता। संसद सदसय् ई रह्या। अखिल भारतीय कांग्रेस (ई) रा महामंत्री अरबिहार रा राजपाल ई रह्या।
जजिया-मुसलमान विजेता, पेहला ओ टेक्स यहूदियां ने ईसायियां सूं लेवता। भारत मांय आया पछे इणा हिन्दुवां माथे पण ओटेक्स लगायो. सैंसूं पेहाल मुहम्मद बिन कासिम जजियो लगायो. ुणटैम ब्राह्म इण टेक्स सूं मुक्त हा, पण फिरोजशाह तुगलक बामणां माथे ई ओ टेक्स लगायो. अकबर इणने उठा दियो पण औरंगजेब पाछो लगा दियो।
जटायु-विनता अर अरूण रा पुत्र तथा संपाती रा भाई। पूरा रामभक्त। सीताजी रो हरण कर'र जद रावण उणाने ले जावतो हो तो राव सूं जुद्ध कीनो अर काम आयो। मरतां पेहला राम ने सीता रो अतो पतो बतायो हो. इणने पूज मानने राम इणरो दाग दीनो।
जठ्ठो चारण-मूल नाम महकरण हो ने मेवाड़ रे सरसिया गाम रा हा। जोधपुर रा महारजा उदैसिंघ अर ए दोनूं डील मांय जाड़ा घमआ हा। इणकारण अकबर इणने मोरा राजा अर जड्ठो चारण केहवतो. अकबर रे दरबार मायं जट्ठो चारम रो घणो मान हो। एकर दरबार मांय घमीताल ऊभा नी रेहवण सूं ए उठैईज बैठगा। ड्योढीदार जद उठावण लागो तो उण बादशाह ने सुणावता ओ सोरठो कह्यो-
पगां न बल पतशाह जीभां जस बोलां तणो।
अब जस अकबरशाह, बैठा बैठा बोलसां।।

ए लूठा कवि हा। इणरे संबंध मांय रहीम एक दूहो कह्यो, जिको राजस्थान मांय घमो चावो है-
घर जड्ढी, अंबर जट्ठा, जड्ठा चारण जोय।
जट्ठा नाम अलाहदा, अवर न जट्ठा कोय।
रहीम तो मोटा दानी हा। उणा रहीम रे संबंध मायं ओ दूहो कह्यो-
खानखाना नवाब रो, दीठो ऐड़ो देण।
ज्युं ज्युं कर ऊंचा करे, त्युं त्युं नीचा नेण।।
इणारी प्रसिद्ध रचना शार्दुल परमार है, जिण मायं फगत 112 छंद है।
जड़भरत-ए ऋषभ पुत्र हा अर प्रारंभ सूं ई मोहमाया सूं विलग रहेता. एक वार नदी मांय वहता, हरण शावक ने इण उभार लीनो अर कुद रे मरण री टैम पण उणने याद करता रह्या। इण कारण इमारो आगलो जनम हरण योनि मायं व्हीयो। जद बीजी वारमानव योनि मायं आयो तो जगत रा झंझाल सूं बचण सारू जड़वत रेहवण लागा। अठैतांई ए एक वार बेगार मायं पकड़ीजिया ने एक राजा री पालकी उठावण रो काम कियो।
जथा-डींगल साहित्य रे गीत छंदा मांय प्रयुक्त एक अलंकार।
जनक-जनकपुरी रा राजा ने सीता रा पिता। वीतरागी व्हैणे सूं इण ने विदेह ई केहवे। सीरथवज ई इणारो नाम है। जनकपुरी बिहार में आयोड़ी है इणने मिथिला के विदेह नगरी ई केहवे।
जनमेजय-राजा परीक्षित रो बेटो। परीक्षित री मौत तक्षक नाग रे डसण सूं व्ही ही। बाप रो बदलो लेवण सारू जनमेजय नाग-यज्ञ कियो जद सगला साप आय आय ने बलण लागा तो वासुकि, आस्तीक ने मेल'र यज्ञ बंद करवायो।
जन्माष्टमी-जनमआठम। भगवान श्रीकृष्ण री जनम तिथ जिका भादरवा वदी आटम है। हिन्दुवां रो एक धार्मिक तेवार।
जबादि जलहर-वो सरोवर के हौज, जिण मांय जलक्रीडा सारू पामई मांय सुगंधित पदार्थ मिलायो जावे।
जमना-देश रे उतराद भागरी लांबी अर चावी पवित्र नदी। आ यम तथा मनु री बेन तथा सूरज अर संज्ञा री पुत्री मानीजे। भूगोल री दीठ सूं हिमालै रे बदरपुच्च पर्वतमाला री जमनोत्तरी स्थल सूं निकली है। दिल्ली, आगरा, मथरा, वृंदावन वगेरा घमा ऐतिहासिक नगर अर तीरथ इणरे कांठे आयोड़ा है। प्रयाग मंय इणरो संगम गंगा सूं व्है। इणरे कांठे भगवान श्रीकृष्ण घमी लीलावां करी।
जमनालाल बजाज-जनम सन् 1889, कासीरोवास, जिला सीकर। पांच वरस री अवस्था मंय सेठ बच्छराज बजाज रे खोले गया नै वर्धा री मराठी स्कूल मायं भरती व्हीया। बारे वरस री अवस्था मांय जानकी बाई जैड़ी पतिभक्त ने सेवापरायण स्त्री साथे व्याव व्हीयो. इण पेहला दस वरस री अवस्था मंय कामधंधो संभालियो। घमआ ओछा भमियोड़ा पण हैयासूझ रे कारण, कुशलता ने कर्मठता सूं उद्योगधंधां मांय ऐड़ी प्रगति कीवीके आज देशरा वीस प्रमुक उद्योग-घराणा मांय सूं एक है। सन् 1915 मांय गांधीजी ने मुंबई मायं कांी मिलीय के उणारी जवीणधारा ई बदलगी। पू. बापू उणाने आपरो पांचमो पुत्र अर कामधेनु मानता। इणारी हुंशियारी रो अंदाज णिसुं लगायो जा सके के मात्र अडारे वरस री अवस्था मांय अंगरेज सरकार इणाने ओनेरेर मजिस्ट्रेट बणाय ने सन् 1917 मांय राय बहादरु री पदवी दीवी। लारे सूं ओ खिताब उणा परत कर दीनो। सन् 1920 मांय नेशलन कांग्रेस रा नागपुर अधिवेशन रा चेयमरेन वणाया गया। सन् 1924 मांय उणा गांधीजी ने वर्धा मांय ईज आस म जमायने सगला कार्यक्रमां रा संचालण सारू नेतो दीनो। सन् 1937 मांय मद्रास हिंदी साहित्य सम्मेलन रा अध्यक्ष चुणीजिया अर सन् 1942 मांय गौ सेवा संघ रा अध्यक्ष वणाया गया। इण पेहला सन् 1938 मायं जैपर रा प्रजामंडल रा अध्यक्ष चूंटीजिया। बे प्रकाशन संस्थावां गांधी हिंदी पुस्तक भंडार अर सस्ता साहित्य मंडल अजमेर रा अध्यक्, रह्या। देश खातर घमी वार जेल गया। उणारे संबंध मांय केहवीजे के उणा वेपार मांय सत्य अर नीति कदैई नी छोड़ी। ऐडा कर्मठ, ईमानदार, विश्वासपात्र, राजनैतिक नेता अर सामाजिक कार्यकर्ता रो सन् 1942 मांय निधन व्हीयो।

जमाल-राजस्थानी भाषा रा एक मुसलमान कवि। इणारा नीति अर सिंगार रा दूहा घमा चावा है। इयुं के खुद राजस्थानी नी हा, पण सीकर रा राजा लक्ष्मणसिंघ रे दरबार सूं संबंधित हा। इणारे हरेक दूहा रे अंत मांय घणखर, कारण कौन जमाल जोवा मिले-
आज अमावस सबन घर, ससि भीतर नंदलाल।
बिच ही पड़वा हुयगी, कारण कौन जमाल।।
जयचंद शर्मा (डॉ.)-जनम सन् 1919 चूरु। संगीत मर्मज्ञ। संगीत भारीत, वीकानेर रा थापक। संगीत मायं डाक्टरेट री उपाधि प्राप्त कीवी। एक नृत्य नाटिका झींटियो तथा बाल-साहित्य ई मोकलो लिखियो। राजस्थान संगीत नाटक अकादमी रा सदस्य रह्या तथा राजस्थान संगीत संस्ता संघ दिल्ली सूं पुरस्कृत। विभिन्न पत्र-पत्रिकावां मांय संगीत संबंधी घमा शोधपूर्ण लेख लिखिया। सन् 1999 मांय वीकानेर मांय निधन।
जयनारायण व्यास-जनम सन् 1888, जोधपुर अर मृत्यु सन् 1963। श्री सेवाराम री एक मात्र संतान। नैनी ऊमर मायं श्रीमती गौरजादेवी साथ ेव्याव पण भणाई चालू राखी। पुष्करण ब्राह्मम नवयुवक मंडल रे साथे साथे मोहल्ला मांय वाचनालय खोलने सार्वजनिक जीवण री शुरुआत कीवी। जोधपुर नगर मायं मूतरड़िया बणावणी री मागं कीवी तो राज रे नजरे चढ़िया। सरकार इणांने दस नंबरियो करार दियो। लोकशाही गतिविधियां सूं तंग आयने सरकार इणने देश निकालो दियो। पछे ए ब्यावर सूं राज अर जागीरदरां रे अत्याचारां रे खिलाफ काम करता रह्या उठैसूं ई प्रगट हूवण वाले ऐक छापो आगीवाण रा संरक्षकण रह्या। सन् 1930 मांय पेहली वार जेल व्ही। उणीज टैम बेटी रो ब्याव व्हीयो। सन् 1948 मांय मारवाड़ रा पेहला मुख्यमंत्री बणिया। लारे सूं राजसभा रा सदस्य चुणीजिया। अखिल भारतीय देशी राज्य परिषद रा मंत्री हा, ने पछे आल इंडिया कांग्रेस रा जनरल सेक्रेटरी बणाया गया। शेरे राजस्थान अर लोक नेता रे हुलामण नाम सूं प्रख्यात। राजस्थन वणिया पछे राजस्थान रा मुख्यमंत्री बणिया। सफल अभिनेता, कवि, चरित्र रा घणी तथा नडिर हा। गीरी मयं दिन गया, पण हार नी मानी। ठाह नीं कई विवशता व्हैला के ए मात भाषा राजस्थानी सारू कीं नी कर सकिया।
जयपुर-सन् 1927 मांय जैपुर नरेश महाराज सवाई जयसिंघ दूजा, ज्वारा वसायोड़ो ओ नगर पेहला जयपुर राज्य री राजधानी हो। पछे राजस्थान राज्य री राजधानी बणियो. केहवीजे है के इण नगर रो नक्शो विद्याधर नारम आ एक बंगाली बणायो हो। ओ भारत रा सुंदरतम नागरां मांय सूं है। अबार इणरी आबादी 25 लाख मानीजे। इण नगर रे संबंध मांय एक कहावत ीचावी है के नी जोयो जैपरयो तो कुल मायं आकर के कर्यो। णिर भवनां रो रंग गुलाबी नै इणीज सारू इणने गुलाबी नगर केहवे।
जयपुरी-आ बोली जैपुर, लावा, किशनगढ़, झालावाड, टोंक वगेरे क्षेत्रां मायं बोली जावे। पद्य री अपेक्षा इण मांय गद्य साहित्य वत्तो है।
जयमल मेड़तियो-मेड़ता रा राव वीरमदेव रे घरे सन् 1507 मांय जनम। छत्तीस वरस री ऊमर मांय मेड़ता री गादी बैठो। जूना वैर रे कारण राव मालदेव हमलो कीनो, पण हारियो. दूजी वार फेर हुमलो कियो, जिण मांय जयमल हारियो अर महाराणा उदैसिंघ कनै गयो। महाराणा इणने बदनोर री जागीर दीवी. सं. 1618 मायं बादशाह अकबर री मदद सूं मेड़ता पाछो हाथवगु करयो, पण किणी कारण शाही सेना पाछो हुमलो कीनो। टकराणो ठीक नी समझ ने, परिवार सागे पाठो मेवाड़ आयगो। सन् 1560 मायं अकबर, चित्तौड़ माथै हुमलो कीनो तो जयमल उणरी रक्षा मांय पाछी पानी नी करी। चार मास तांई अकबर री दाल गली कोनी।  स्थिति घणी खराब व्हैणै सूं उण महाराज उदैसिंघ ने उठे सूं सुरक्षित काढिया। एक रात गढ री मरामत करावतां अकबर री गोली सूं घायल व्हीयो। गढ़ मायं जौहर व्हीयो। कल्लजी राठौड़, जयमल ने आपरे खवा माथे बैठायो। जयमल दोनूं हाथां माथै ऐड़ो तो रीझियो के जयमल मेड़तिया ने पत्ता सिसोदिया री हाथी माथे चढ़ियोड़ी मूर्तियां शाही किल्ले रे सिरे दरवाजे लगाई, जिण ऊपर ओ दूहो है-
जयमल बड़तां जीवणे, पत्तो डावे पास।
हिंदू चढिया हाथियां, चढियो जस आकास।।

जयशेखर सूरि-इणारो काल तो अजातांई अज्ञात है, पण पहलवेल सं. 1642 मांय इणरी अे रचनावां मिली- 'नेमिनाथ फागु' ने 'अर्बुदाचल वीनती।'
जयसमंद-उदयपुर सूं 51 मील आगी, अेशिया री सैं सूं मोटी झी. महाराणा जयसिंघ इणने बंवाई ही। इणरी पाल माथे ऊभा रहेवां तो साव नैनोसोक तलाव लागे, पण भाखरा मांय इणरी परकम्मा 52 मील री है। गुजरात री चावी नी साबरमती इणरो उद्गम स्थल है। गुजरात मांय इणने 'ढेबरियो तलाव' केहवे।
जयसागर-इणारो रचना काल सं. 1480 सूं 1515 है। इणा तीस सूं बैसी ग्रंथां री रचना कीवी, जिण मांय 'जिन कुशल सूरि सप्तिका' राजस्थानी री विशिष्ट रचना है। 'वीर प्रभु री वीनती' आपरी घणी लोकप्रिय रचना है।

जयसिंघ सवाई, महाराजा, दूजा- जनम सं. 1668 अर मृत्यु सन् 1743। औरंगजेब सूं 'सवाई' री उपाधि मिली अर शाहजहाँ सूं 'मिर्जा'। जैपुर बसावणवाल अे महाराजा संस्कृत, राजस्थानी अर हिंदी रा विद्वान हा। ज्योतिष रा तो प्रकांड पंडित हा। इणा जैपुर, ल्लिी अर उज्जैन मांय 'जंतर-मंतर' बणवाया, जिके आज ई नक्षत्रां री वास्तविक दशा अर खरो टैम बतावै। इणा आपरा ज्योतिषियां ने पुर्तगाल अर तुर्की मेलिया हा। इणारा बणायोड़ा ग्रंथ- 'जयप्रकाश यंत्र राजयंत्र' अर 'जंत्रराज' ज्योतिष शास्त्र मायं ठावी ठौड़ राखे।
जयसिंघ महाराजा, अलवर- दूजा राजावां ज्युं अंगरेज-भगत नी हुय'र अे अलवर रा प्रजामंडल ने मदद करता। हिंदी ने राज्य री राजभाषा बणाई। गामां मांय पंचायतां थरपी। इणसूं अंगरेज वैराजी व्हीया अर ेश निकालो दियो। पछे वे युरोप गया अर उठै शकमं अवस्था मांय मृत्यु व्ही।
जयसोम-सतरमा सइका रा अे तपगच्छी साघु घणा विद्वान हा। 'बारे भावन री वेलि' इणारो चावो ग्रंथ है।
जयाचार्य-जनम सं. 1860, मारवाड़ मांय रोयट गाम। पिता रो नाम आईदान गोलछा तथा माता रो कलूजी हो। आपरो मूल नाम 'जीतमल' पण काव्य मांय 'जय' लिखता हा। इण सारू आचार्य पद प्राप्त कियां पछे जयाचार्य केहवीजिया। अे 'तेरा पंथ' रा चौथा आचार्य हा। इणा आपरी माता ने तीन भाइयां साथे आचार्य भारमलजी सूं दीक्षा लीवी। जयाचार्य अेक महान आध्यात्मिक योगी, इतिहास सर्जक, विलक्षण प्रतिभा संपन्न साहित्य स्रष्ठा हा। इणरे साथे कुशल संघ व्यवस्थापक ने दूरदर्शी हा। इणा साढा तीन लाख पदां री रचना कीवी। 'भगवई' अंग-ग्रंथा मांय श्रेष्ठ हूवण सूं, आप इण विशाल ग्रंथ रो राजस्थानी मांय अनुवा कीनो, जिको 'भगवती जोड़' केहवीजे। ओ राजस्थान पद्य रो सैंगा सूं मोटो ग्रंथ मानीजे। इण मांय 4993 दूहा, 2254 गाथा, 6552 सोरठा, 431 जुा जुा छं अर 1884 प्राकृत अर संस्कृत रा छंद ई है। इणरो प्रकाशन 'जैन विश्व भारती,' लाडणूं सूं व्हीयो। भगवती जोड़ रे अलावा 'जय अनुशासन', उपदेश रत्न कथा कोश' अर 'भिक्खू दृष्टांत' आपरी दूजी रचनावां है। सन् 1938 मायं आपरो निधन व्हीयो।
जरासंघ-मगध नरेश। कंस रो सुसरो ने ब्रहद्रथ रो पुत्र। जद जनमियो तद शरीर रा बे भाग हा। जरा नाम री राक्षसी इण बेऊ भागांने सांधिया। इणसूं जरासंघ नाम पड़ियो। भीम जरासंघ ने कुश्ती मांय मारियो।
जलम भौम- इण मासिक पत्रिका रा संपादक शोधवेत्ता 'मूलचंद प्राणेश' हा ने आ वीकानेर सूं प्रकाशित व्हैती ही।
जसनाम सिद्ध-जसनाथ  रो जनम कतरियासर (वीकानेर) मांय सं. 1539 मांय व्हीयो। 'जसनाथी' संप्रदाय रा प्रवर्तक। अैड़ो प्रसिद्ध है के जाट हमीर ने अे तलाव कने पड़िया मिलिया। हमीर री पत्नी रूपादे जसनाथ ने पाल पोष'र मोटो कीनो। सं. 1551 मांय इणाने ज्ञान प्राप्त व्हीयो। जसनाथ संप्रदाय रा 36 धरम नियम है। मूल रूप सूं इणारो संबंध नाथ संप्रदाय सूं है, पण वैष्णव भक्ति धारा इण संप्रदाय मायं साधना रो अंग मानीजी। 'जसनाथजी री वाणी' मायं इणारो उपदेश संग्रह कियोड़ा है। जसनाथियां रो अग्नि-नृत्य खास प्रसिद्ध है। सिकंदर लोदी इणासूं घणो प्रभावित हो। चौवीस वरस री ऊमर मांय कतरियासर मांय जीवित समाधि लीधी।

जसमा ओडण-ओड जात री घणी फूटरी लुगाई, जिणरो परार माटी खोदण रो काम करतो हो। प्रदेश रो राजा इणरे रूप रंग माथे मोहित हुयने, इणने जात जात रा प्रलोभन दीना, पण वा सफा नटगी। नराज व्हैने राजा ओडांने मरवा नाखिया। जसमा आपरे पति लारे सती व्हैगी। आ कथा घणी लोकप्रिय है। राष्ट्रीय नाट्य संस्थान, दिल्ली इणरो घणोईज उमदा मंचन कीनो है।
जसवंतसिंघ महाराजा, प्रथम, जोधपुर- जनम सं. 1683 अर मृत्यु सं. 1785। महाराजा गजसिंघ रा पुत्र नै वारसदार। अे वीर, शक्तिशाली, नीतिज्ञ, उदार अर काव्यशास्त्र रा ज्ञाता हा। इणा गद्य-पद्य दोनूं मांय साधिकार लिखियो। 'भाषाभूषण, आनंद विलास, अनुभव प्रकाश, अपरोक्ष सिद्धांत, सिद्धान्त बोध, सिद्धान्त सार' अर 'नायिका भेद' आपरी रचनावां है। 'चंद्र प्रबोध' आपरी अनुवाद रचना है अर 'फूली जसवंत संवाद' अप्रगट कृति है। अे शाहजहाँ नै औरंगजेब रा घणा विश्वासपात्र रह्या।
जहूरखां मेहर-जोधपुर विश्वविद्यालय मांय इतिहास रा प्रोफेसर। घणा चावा राजस्थानी भाषा रा निबंधकार। 'राजस्थानी संस्कृति रा चित्राम' अर 'धर मजलां घर कोसां' दोनूं पोथियां इणारे बोहले ज्ञान ने टकसाली राजस्थानी गद्य रा नमूना है। जयमल मेड़तिया माथे स्वतंत्र पोथी लिखी। 'पृथ्वीराज पुरस्कार, राजस्थान रत्नाकर पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार' अर 'लाखोटिया पुरस्कार' सूं सम्मानित। घणी संस्थावं सूं संबंधित। शोध निदेशक।
जंतर-मंतर-महाराजा सवाईसिंघ द्वितीय, जयपुर द्वारा जैपुर, दिल्ली ने उज्जेण मांय बणायोड़ी वेघशालावां।
जंबूस्वामी रास- सन् 1209 मांय कवि धर्म इण ग्रंथ री रचना कीवी। इण मांय जंबूस्वामी रो चरित्र वर्णन है। व्याव री पेहली रातरां, उणा आपरी आठ पत्नियां ने जागरण ज्ञान (प्रतिबोध) दियो। उणीज टैम चोरी करण सारू घर मांय कीं चोर आया हा। पण प्रतिबोध ने सुण'र वे उणारा चेला बणगा।
जंभगीत- दे. जांभोजी।
जागती जीत-(1) राजस्थानी भाषा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी री मुखपत्रिका। इ्‌युं आ पत्रिका मासिक है, पण विच विच मांय इणरो रूप बदलतो रह्यो। अेक वार तो बंद ई व्हेगी। इणरा संपादक बदलता रेहवे। अबार इणरा संपादक नीरज दइया है। (2) कलकत्ता सूं चैतन्य प्रकाश रंगा 'जागती जोत' नाम रो अेक अठवाड़ियो सन् 1944 मांय प्रगट करणो शुरू कीनो। थोडा अंक निकलियां पछे ओ बंद  व्हेगो। (3) इण नाम रो अेक दैनिक पत्र रो उद्घाटण, उण टैम रा राजस्थान रा मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास कियो हो। तीनेक वरसां पछे ओ बंद व्हेगो। इणरे पछे राजस्थानी मांय हालतांई कोई दैनिक पत्र निकलियो कोनी।
जाणकारी-इण द्विमासिकी पत्रिका रा पेहला अंक रा संपादक श्री पारस अरोड़ा हा ने पछे श्री हरमान चौहाण इण सूं जुड़गा। इणरो प्रकासण रचना नाम री जोधपुर री संस्था करती ही।
जात-(1) किणी कामाना सूं करीजणवाली देव-दरसण जात्रा। (2) व्याव रे पछे वींद वीनणी रो छेड़ा-छेड़ी बांधियोड़ा, देव दरसण ने पूजा सारू देवमिंदर मांय जावणो।
जातक- अेक बौद्ध ग्रंथ। इण मांय बुद्ध रे पूर्व जनमा री कथावां है। जातकां री संख्या 550 मानीजे। अे सैंग संस्कृत ने पाली भाषा मांय है।

जान कवि-फतहपुर, शेखावटी रा कायमखानी नवाबां मांय अलफकां प्रख्यात है। इणरे पांच बेटा मांय न्यामतखां दूजो बेटो हो। इण रो ईज उपनाम जान कवि है। इणा 'कायम रासो' रे अलावा 4 ग्रंथ लिखिया बतावे। जान कवि मांय धर्मान्धता रो लवलेश ई नी हो। धरम सूं मुसलमान व्हेता थकां इणाने आपरे पूर्वज चौहाणा रो जातीय गौरव हो। पिता री मृत्यु माथे लिखियो के वे वैकुंठ गया। जान आशु कवि हा। कई ग्रंथ तो उणा बे-तीन दिनां मांय ई बणाय दिया। इणारा धणकर ग्रंथ सिंगार रा है, पण वैराग ने भक्ति रा ग्रंथ ई लिखिया- 'विरह शतक, भाव शतक' ने 'शिक्षा सागर।' इणारो लक्षण ग्रंथ 'कवि वल्लभ' है तो 'मदन विनोद' कामशास्त्र रो। 'बुद्धि सागर' पंच तंत्र रो अनुवाद है।
जालोर-मारवाड़ रो प्रख्यात गढ, इणीज नाम रो जिलो नै नगर। इणरो जूनो नाम 'जाबालिपुर' हो। स्वर्णगिरि (सोनगिरि) नाम रा भाखर माथे हूवण सूं इणरा नाम सोनगिरि अर कंचनगढ ई पड़िया। इणरा बीजा नाम सोनगढ अर सोनलगढ ई है। सोनगिरि के कारण अठैरा राजपूत 'सोनगरा' केहवीजिया। केवीजे है के जला नाम रा मीणा इणने सं. 800 मांय वसायो। अठै घणा राजवंश राज कियो ज्युं के -परमार, दहिया, चौहाण, बिहारी पठाण ने राठौड़़।
जालौरी-(1) जालोर रे आजूबाजू बोलीजण वाली बोली। (2) वाणियां री एक अल्ल। (3) 'जालोर' तपोनिष्ट ब्रामणा री अेक अल्ल।
जावर-उदयपुर सं. 28 कीलोमीटर आगो, इण नाम रो अेक गाम। अठै जावर माता रो अेक जूनो मींदिर है, जिको जावर नदी रे कांठे है। अठैरा भाखर जावर माला रे नाम सूं जाणीजे। महाराणा कुंभा रे समै ओ गाम घणो आबाद हो। भाखर री खानियां मांय सूं सीसो नै चांदी निकले। अठैरी कई जूनी खानियां मांयने सूं इतरी मोटी है के साठ-सिंतर मिनख आसानी सूं बैठ सके। अबार इण गाम सूं दसेक कीलोमीटर आगो सीसो निकालण रो अेक जंगी कारखानो है।
जांभोजी-जनम सं. 1508, भादरवा वदी आठम, गाम पीपासर (नागोर) ने समाधि सं. 1593, वीकानेर कने लालासर गाम। पिता रो नाम लोहटजी अर माता रो नाम हंसा। अे पंवार राजपूत हा ने प्रसिद्ध है के 34 वरसां तांई गूंगा रह्या अर गायां चराई। पछे जीभ आयगी ने इणीज वरस विष्णोई संप्रदाय चलायो। वीस+नव=विश्नोई। 29 नियम री आचार संहिता है। इणारी वाणी अर सबद 'जंभ सार' ने 'जंभगीता' मांय संग्रै कियोड़ा है। तालवा गाम मांय इणारो स्थान है, जिको मुकाम वाजे।
जिन विजय मुनि- जनम सन् 1888, रूपाहेली (मेवाड़) अर निधन सन् 1976, अमदावाद। पिता विरधीसिंग परमार अर माता रो नाम राजकुंवर । माता इणाने लाड सूं रिणमल केहवती। इगियारा वरस री ऊमर मांय पिता री मृत्यु व्ही ने इणीज टैम बालक रिणमल रो संबंध जैन जतियां सूं व्हीयो। बालक री बुद्धि, प्रत्युत्पन्नमति ने अध्ययन री लगन देख, उणा इणाने शास्त्र भणाया। पण बालक ने संतोष कठै? पनरे वरस री आयु मांय जैन संप्रदाय  मांय दीक्षित व्हीया। तीन वरसां मांय सूत्रां अर आगमां रो अध्ययन कर लीनो। पछे ठाह पड़ी के श्वेताम्बर मिंदर मार्गी घणा विद्वान व्है नै जो ब्रामण उणाने व्याकरण, छंद वगेरा रो अध्ययन करावे तो उमदा। रातोरात ववरसता मेह मांय साधु वेश त्याग'र नाठा। दीक्षित व्हीया ने जिनविजय रा नाम सूं संसार मांय प्रख्यात व्हीया। पछे विजयवल्लभजी साथे गुजरात गया। वडोदरा माय 'कुमारपाल प्रतिबोध' नाम रा ग्रंथ रो संपादन कियो। 'भांडारकर शोध संस्था' सूं नेतो मिलियो तो पूणे पूगा नै उठै लोकमान्य तिलक रे संपर्क सूं राष्ट्रभक्ति रो रंग चढियो। अठैईज 'जैन साहित्य संशोधक समिति' री थापना कीवी। तिमाही पत्रिका काढी ने ग्रंथमाला रो प्रकासण कीनो। गांधीजी रे आदेश सूं 'गुजरात पुरातत्त्व मंदिर' रा निदेशक बणिया। जर्मनी जाय'र 'इंडो-जर्मन केन्द्र' री थरपणा  कीवी। पाछा आयने 'दांडीकूच' मांय भाग लीनो, जिणसूं छ मास री जेल व्ही। पछे मुंबई मांय 'भारतीय विद्या भवन' रा संचालक बणिया। सन् 1942 मांय जैसलमेर मांय 200 ग्रंथां री प्रतिलिपियां करवाई। देश री आजादी पछे चित्तौड़ कने चंदेरिया गाम मांय 'पुरातत्त्व मंदिर' रा निदेशक बणाया। अे जैन दर्शन, जैन साहित्य, संस्कृत, अपभ्रंश, न्याय, मीमांसा, तर्क नै ज्योतिष रा प्रकांड पंडित हा।

जीणमाता-घांघू (चूरू) रा गंग चौहाण री पुत्री, जिके शेखावाटी ने प्रदेश रा बीजा भागां मायं लोकदेवी ज्युं पूजीजे। जीण ताजनम ब्रह्मचारिणी रही ने हर्षनाम रा भाखर माथे तपस्या कीवी। भाई रे मनावण सूं इ जद नी मानी तो वो ई अेक दूजी टूंक माथे तप करण सारू बैठगो। जीण रो समै 11 मो सईको मानीजे। इणरे मिंदर रे शिलालेख मांय सं. 1029 उत्कीर्ण है। सीकर जिला रा वीसा गाम सूं तीन कोस दूर भाखर माथे इण माता रो मिंदर सिद्धपीठ मानीजे। इठै चैत ने आसोज सुदी नम ने मेलो भरीजे। राजस्थानी लोक साहित्य मांय इणारो गीत घणो चावो ने लांबो है। इण गीत ने कनफटिया जोगी केसरिया वागा पहर, माथा माथे सिंदूर लगाय अर डमरू बाजवता सारंगी माथे गावे। ओ गीत करूण रस सूं लबालब है।
जीत्या जीत्या जी म्हारा टोडरमल वीर- व्याव माथे गावीजण वालो अेक चावो लोक गीथ. ओ गीत माहेरा (भात भरण) री टैम गावीजे। इण लारे अेक पूरी कथा है। अेकर एक सेठ आपरी बेटी री सगाई छोड़णी च्हावतो हो, पण छोड़े कीकर?      उण अेक थेली मांय बाजरी भर'र छोकरा री विधवा मां ने मेली अर केहवाड़ियो के बाजरी रा कण जितरा जानिया जान मांय लावणा चाहीजे। इतरा मांय उणरा पति रो भायलो टोडरमल उठै सूं निकलतो हो। उणने ठा पड़ी के सेठाणी री आर्थिक स्थिति फोरी है। वो सेठाणी रे घरे गयो। उणने धीरज बंधायो ने टांणा माथे अैड़ी जान काढी के सगला अचूंभे रह गया। उण टैम खुशी सूं मस्त, सेठाणी गायो के 'जीत्या जीत्याजी म्हारा टोडरमल वीर।'
जीवत सराध- कोई बूढो-बडोरे पुत्रहीण व्है अर उणने आ जचगी व्है के महारा मरियां पछे म्हारो द्वादशो ई कोई नी करेला। इण सारू ओ कारज वो आपरा जीवताकाल में मांय पूर्ण कर देवतो। इणने जीवतश्राद्ध (सराध) केहवे।
जूनो-बाड़मेर रो प्राचीन नाम। इणने बाहड़मेर ई केहवता हा।
जेठवा-ऊजली-अेक प्रेमपूर्ण लोककाव्य। कथा इण भांत है-जेठवो अेक राजकंवर ने ऊजली अेक गरीब चारणी। दोनूं जुदी जुदी जात रा। इ्‌युंई चारणां ने राजपूतां रे वच में व्याव नी व्है, तोई अे प्रेमी-पंखीड़ा प्रेम मांय रचिया-पचिया रेहवे। आखर जेठवा री मृत्यु हुवे नै ऊजली सती हुवे। 'जेठवा रा सोरठा' मांय ऊजली री विरह व्यथा घणी मार्मिक है। इण घटणा रो समै सं. 1400 सूं 1500 मानीजे।
वीणा! जंतर तार थें छोड़या उम राग रा।
गुण ने रोवुं गमार जात न झींकू जेठवा।।
जैन मत- ओ मत ईश्वर री सत्ता नी स्वीकारे, पण तीर्थंकरां री पूजा करे। इणरो मानणो है के सगला जीव, तीर्थंकरां रे मारग माथे चाल'र, ज्ञानी अर सिद्ध बण सगके। ओ मत करम नै पुनरजनम ने तो माने, पण वेदां ने प्रमाम नी माने। इणरी बे शाखावां है-(1) दिगंबर अर बीजी श्वेतांबर। दिगंबर, श्वेतांबर द्वारा मान्य ग्रंथां ने प्रामाणिक नी माने। श्वेतांबर शाखा रा ई भेद है-मूर्तिपूजक अर स्थानकवासी। मोक्ष प्राप्त करण सारू दिगंबर ओ माने के नागो रेहवणो जरूरी है, जद के श्वेतांबर इणने आवश्यक नी माने।
जैन विश्व भारती-लाडणूं मांय थरपित आ संस्था, 'तेरापंथ' रा प्राचर-प्रसार सारू मोटो काम करे। आचार्य तुलसी इणरा थापक हा। अबार तांई इणसूं 70 ग्रंथ प्रगट हुआ है। 'तुलसी प्रज्ञा' इणरी मुखपत्रिका है। अठै 'जैन शोध संस्थान', विशाल पोथीखानो अर छापखानो ई है। संस्था Deemed University है। इण मांय घणा प्राध्यापक, शोधकर्ता अर जैन साधु-साधवियां रेहवे। 'अणुव्रत' रो काम ई जोर सूं चाले।

जैसलमेर-ओ नाम आधुनिक है। पेहला इण प्रदेश ने 'मेर' केहवता ने अठै यदुवंशियां री भाटी शाखा रा राजपूत राज करता हा। लुदरवा राजधानी रे  रूप में सुरक्षित नीं हूवण रे कारण, उठै सूं दस मील दूर, सं. 1212 सावण वदी बारस, रविवार ने जैसल आपरा नाम सूं जैसलमेर वसायो। इणने जैसलगिर, जैसाण, गोरहर अर त्रिकूटगढ ई केहवे। पीला छींटदार भाटां सूं वणायोड़ो ओ गढ जग चावो है। इणीज भांत अठैरी कोतर काम कियोड़ी हवेलियां ई जग चावी है। देश-विदेश रा घणा प्रवासी इणने देखण सारू आवे। जैसलमेर गढ 1500 फुट लांबो ने 750 फुट चौड़ो है। पीला भाटां सूं बणियोड़ी हूवण सूं इणने स्वर्णनगरी ई केहवे। भाटी राजपूतां नव राजधानियां वसाई, जि मांय सूं जैसलामेर अेक है-
मथुरा काशी प्रागवड, गजनी अरू भटनेर।
दिगम दिरावल लोदरवो नवमो जैसलमेर।।
अठै सात ज्ञानभंडार है, जिणमांय दुर्लभ ताड़पत्री रा हस्तलिखित ग्रंथां रो सग्रै है। कई ग्रंथ इगियारमा ने बारमा सैका रा है।
जोगीदान कविया- जनम सं. 1961, सेवापुरो, जयपुर। 'वीर शतक,सिंगार शतक, वैराग्य शतक' रा रचैता। 'तंवर वंश रो इतिहास' वगेरा घणी पोथियां रो संपादन कीनो।
जोधपुर-गोडवाड़ विजय रे पछे, मंडोर ने राजधानी सारू अयोग्य गिण, राव जोधा पचेटिया रा भाखर माथे आपरा नाम सूं जोधपुर गढ अर नगर वसायो। पेहला इण भाखर माथे चिड़ियानाथ तप करता हा। इण सारू इणने चिड़ियाटूंक ई केहवे। ने क्युंके ओ गढ मोर री आकृति वालो है, इणने मोरधज (मयूरधज)ई केहवे। इमरो अेक दूजो नाम मेहरानगढ है, पण इणरो जनम रो नाम तो चिंतामणिगढ हो। इणरो निर्माण कार्य जेठ सुदी 11, शनिवार सं. 1515 मांय हुओ हो। सं. 151 मांय मोडर सूं चामुंडा माता री मूर्ति लायने किला मांय थापना कीवी। इणरा वखाम रो अेक सोरठो इण मुजब है-
गढ ऊंचो चित्तौड़, आबू सूं वाता करे।
मोरध्वज री मोड़ किणसूं कमती किसनिया।।
लारे सूं राव मालदेव इणरो आज रो कोट बणवायो। इण किला री रांगां माय बे भांभियां (1)रतना (2) कलिया री बलि देवीजी ही। दस लाख री बस्ती रो आज रो जोधपुर मोटो रेल जंकशन तथा सिक्षा, सेना अर हवाई दल रो मोटो स्थल है।
जोधा, राव-राव रिणमल  रा पुत्र। जनम सं. 142 मांय भटियाणी कोड़मदे री कूंख सूं। घणा वीर ने योग्य शासक। जौनपुर (उत्तरप्रदेश) रा बादशाह हुसैनशाह सूं मिल'र गया तीरथ माथे लागणवाली लाग सूं हिन्दुवां ने मुगती देराई। प्रजा रा रक्षण सारू लूटमार ई करता। इणा आपरा जमाई अर ठछापर द्रोणपुर रा राज अजीतसिंघ ने मरवा नाखियो। इणाने इगियारे राणियां सूं 19 पुत्र हुआ। इण पुत्रां सूं राठौड़ा री बारे शाखावां उत्पन्न हुई। ज्युं के-वीकावत, वीदावत, नरावत वगेरा। सं. 1544 देहान्त।
जोधा राइको- अे गाम कोटासर (श्रीडूंगरगढ) रा कोटा राइका रा पुत्र हा। इणारो काल सं. 1500 सूं 1575 है। पछे ए साधु बणगा। इणारी साखियां 'राग हंसो' रचना मांय मिले।
जोरावरसिंघ बारहठ-जनम सन् 1883 उदयपुर। जबरा क्रांतिकारी। चांदणी चौक, दिल्ली मांय लार्ड हार्डिग्ज री सवारी माथे बम फेंकणिया विरल वीर। मोटा भाई केसरीसिंघ रा पक्का अनुयायी। घणा वरसां तांी राजस्थान, मध्यप्रदेश अर उत्तरप्रदेश रा भाखरां तथा जंगलं मांय क्रांति री अलख जगावता रह्या, पण गोरी सरकार उणाने पकड़'र फांसी नी दे सकी। पत्नी अनूपकंवर, पति रा विरह मांय घणा दुख झेलिया पण उफ नी कीवी। सन् 1919 मांय इण बलिष्ठ वीर री मृत्यु हुई। किणी कवि कह्यो-
जबर जोरावर जम्म भाई केहर भाई।
बुरकै फैंक्यो बम्म चमक्यो चांदण चौक।।
जोरावरसिंघ, महाराजा- पंडित अर विद्वानां रा सम्मान करणवाला, वीकानेर रा अे महाराजा खुद चोखा विद्वान हा। 'वैद्यक सार' ने 'पूजा पद्धति' आपरी रचनावां है। इणा 'केशव री,' 'रसिक प्रिया' अर 'कवि प्रिया' री विद्वता पूर्ण टीकावां लिखी, जिके क्रमश: 'ललितका' ने 'जोरावर प्रकाश' रा नाम सूं ख्यात है।

जौहर-अेक जूनी प्रथा, जिण मांय शत्रु री विजय नक्की होवणे सूं गठ अर नगररी लुगायां आपरा सतीत्व खातर जीवती चिता मांय कूद ने भस्म व्है जावती ही। अेकला चित्तौड़ मांय अैड़ा सतरे जौहर हुआ। राजस्थान सिवा अैड़ा जौहर दुनिया मांय कठैई न ी व्हीया।
जोशीमठ-बदरीनाथ रे मारग रो अेक तीरथ। शंकराचार्य द्वारा थरपित चार मठां मांय सूं अेक, जिणने ज्योतिर्मठ ई केहवे। सियाला मांय जद बदरीनाथ रा पट बंद रेहवे तद बदरीनाथ री पूजा अठै व्है। अठै अेक वड़ है। मानीजे के ओ बे हजार वरस जूनो है।
ज्योंतिपुंज- मूल नाम जसप्रकाश पंड्या (डॉ.)-जनम 28 सितम्बर 1952 टामटिया, डूंगरपुर। तीन विषयां मांय एम.ए.। कवि रे साथे नाटककार ई। रचनावां-'चंदन ना छांटा (काव्य)' बोल डूंगरी ढब ढबुक (काव्य), कंकू कबंध (नाटक) बागड आंचल री राजस्थानी  कवितावां रो संपादन'। 'वाग्वर' अर 'वागड़पत्री' पत्रिकावां रो संपादन। 'सूर्यमल शिखर पुरस्कार' अर 'निरंजननाथ आचार्य पुरस्कार' सूं सम्मानित। साहित्य अकादमी अर बीजी साहित्यिक संस्थावा रा सदस्य।
ज्योतिष-छ वेदांगां मांय सूं अेक। पहला इमरा फगत बे भेद हा-गणित ने फलित। लारे सूं पांच भागां मायं विकास व्हीयो। हरेक शुभाशुभ मूहूर्त्त री जाणकारी इमसूं व्है। आर्यभट्ट, वराहमिहिर, भास्कारचार्य वगेरा घणा ज्योतिषाचार्य व्हीया।

 

 

झडलूो (झड़ोलियो)- (1) टाबर रा माथा रा वे केश, जिके मा रा गरभ सूं बालक रे जनम साथे हुवे। (2) अमूक वरसां पछै अैड़ा टाबर रा किणी देवात री मानता मान'र, उणरी मूर्ति आगे मुंडन करावणो। चौलक्रिया।
झपताल-संगीत मांय पांच मात्रावां री अेक ताल।
झमक-(1) अेक शब्दालंकार-यमक। (2) नृत्य री अेक ताल। तीव्र गति रो नाच।
झमाल- डींगल रो अेक गीत छंद, जिण मांय दूहा रे पछे चंद्रायणो नै उणरे पछे उल्लाल छंद आवे-
दूहे पर चंद्रायण, घरे उलालो धार।
गीतां रूप झमाल गिण, वरणे मंछ विचार।।
झावरमल शर्मा- जनम जयपुर राज रा जसरापुर गाम मायं सं. 1945। मृत्यु सन् 1943 मांय 94 वरस री अवस्था। स्कूली शिक्षा तो नी जैड़ी ही, पण घणी भाषावां-अंग्रेजी, बंगला, संस्कृत, गुजराती, मराठी, हिंदी, उर्दू अर राजस्थानी माथे वर्चस्व हो। कलकत्ता सूं इणा 'ज्ञानोदय', 'मारवाड़ी बंधु', कलकत्ता समाचार', मुंबई सूं 'भारत', नागपुर सूं 'मारवाड़ी' तथा दिल्ली सूं 'हिंदू संसार' रो संपादन कियो। पत्रकारिता ने समर्पित अेक मेधावी व्यक्तित्व। भारत सरकार उणाने 'पद्मभूषण' अर राजस्थान साहित्य अकादमी 'साहित्य मनीषी' सू नवाजिया। खेतड़ी मांय 'रामकृष्ण मिशन' री थापना कीवी। आखा देस मायं ओ सै सूं पेहलो मिशन हो। 'कुंभ' पुरस्कार मिलिो।
झारी बरदार-राजावां अर श्रीमंता रा वे सेवक, जिके हाथां मांय झारी नै अंगोछो लियां, उणारा हाथ धोरावण सारू तैयार ऊभा रेहवे।
झालर-पीतल, तांबो नै जस्ता सूं बणियोड़ी अेक गोल वाद्य, जिका मिंदरा मां आरती रे लकड़ी रे दो डंडां सूं वजाईजे।
झालावाड़-इण नाम रो अेक भूतपूर्व राज। इणरी राजधानी झालावाड़ नगरी ही।
झाली राणी-(1)व्याव रो अेक लोक गीत। (2) व्याव रा गीतां री लोक-नाईका।
झीमा चारणी-पनरमा सैका री डींगल कवयित्री। आ वीकानेर राज रा वीठू चारण री बेन ही।
झुणझुणियो-राजस्थान रो पेहलो तिमाही बालपत्र, जिणरा संपादक बी.एम. माली 'अशांत' है। इणरो पेहलो अंक सन् 1959 मांय प्रगट हुओ अर प्रकासण स्थल हो-'शारदाश्रेष्ठ', संपादकीय कार्यालय, वीकानेर।

झुलसा(झुला)देवी-आदिवासियां री अेक देवी।
झूलणी इग्यारस-भादरवा सुदी इग्यारस। इण दिन देव मूर्तियां ने सांझ रा मिंदरां सूं बारे रेवाड़ियां मांय बैठाय'र नदी तलाव के किणी कुआ कने, भजन-कीर्तन साथे सिनान करावण सारू लेजावणो। उठैईज आरती कर पाछा मिंदर माय आवणो।
झूलणो-छवीस मात्रावां रो अेक मात्रिक छंद। ज्युं-मुनि राम मुनि, वान युतगल, झूलन प्रथम, प्रतिमान। 7,7,7,5।
झूंपी लाग-घर के झूंपडी माथे जागीरदार द्वारा ली जावण वाली एक लाग।

 

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