आपाणो राजस्थान
AAPANO RAJASTHAN
AAPANO RAJASTHAN
धरती धोरा री धरती मगरा री धरती चंबल री धरती मीरा री धरती वीरा री
AAPANO RAJASTHAN

आपाणो राजस्थान री वेबसाइट रो Logo

राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

Home Gallery FAQ Feedback Contact Us Help
आपाणो राजस्थान
राजस्थानी भाषा
मोडिया लिपि
पांडुलिपिया
राजस्थानी व्याकरण
साहित्यिक-सांस्कृतिक कोश
भाषा संबंधी कवितावां
इंटरनेट पर राजस्थानी
राजस्थानी ऐस.ऐम.ऐस
विद्वाना रा विचार
राजस्थानी भाषा कार्यक्रम
साहित्यकार
प्रवासी साहित्यकार
किताबा री सूची
संस्थाया अर संघ
बाबा रामदेवजी
गोगाजी चौहान
वीर तेजाजी
रावल मल्लिनाथजी
मेहाजी मांगलिया
हड़बूजी सांखला
पाबूजी
देवजी
सिद्धपुरुष खेमा बाबा
आलमजी
केसरिया कंवर
बभूतौ सिद्ध
संत पीपाजी
जोगिराज जालंधरनाथ
भगत धन्नौ
संत कूबाजी
जीण माता
रूपांदे
करनी माता
आई माता
माजीसा राणी भटियाणी
मीराबाई
महाराणा प्रताप
पन्नाधाय
ठा.केसरीसिंह बारहठ
बप्पा रावल
बादल व गोरा
बिहारीमल
चन्द्र सखी
दादू
दुर्गादास
हाडी राणी
जयमल अर पत्ता
जोरावर सिंह बारहठ
महाराणा कुम्भा
कमलावती
कविवर व्रिंद
महाराणा लाखा
रानी लीलावती
मालदेव राठौड
पद्मिनी रानी
पृथ्वीसिंह
पृथ्वीराज कवि
प्रताप सिंह बारहठ
राणा रतनसिंह
राणा सांगा
अमरसिंह राठौड
रामसिंह राठौड
अजयपाल जी
राव प्रतापसिंह जी
सूरजमल जी
राव बीकाजी
चित्रांगद मौर्यजी
डूंगरसिंह जी
गंगासिंह जी
जनमेजय जी
राव जोधाजी
सवाई जयसिंहजी
भाटी जैसलजी
खिज्र खां जी
किशनसिंह जी राठौड
महारावल प्रतापसिंहजी
रतनसिंहजी
सूरतसिंहजी
सरदार सिंह जी
सुजानसिंहजी
उम्मेदसिंह जी
उदयसिंह जी
मेजर शैतानसिंह
सागरमल गोपा
अर्जुनलाल सेठी
रामचन्द्र नन्दवाना
जलवायु
जिला
ग़ाँव
तालुका
ढ़ाणियाँ
जनसंख्या
वीर योद्धा
महापुरुष
किला
ऐतिहासिक युद्ध
स्वतन्त्रता संग्राम
वीरा री वाता
धार्मिक स्थान
धर्म - सम्प्रदाय
मेले
सांस्कृतिक संस्थान
रामायण
राजस्थानी व्रत-कथायां
राजस्थानी भजन
भाषा
व्याकरण
लोकग़ीत
लोकनाटय
चित्रकला
मूर्तिकला
स्थापत्यकला
कहावता
दूहा
कविता
वेशभूषा
जातियाँ
तीज- तेवार
शादी-ब्याह
काचँ करियावर
ब्याव रा कार्ड्स
व्यापार-व्यापारी
प्राकृतिक संसाधन
उद्यम- उद्यमी
राजस्थानी वातां
कहाणियां
राजस्थानी गजला
टुणकला
हंसीकावां
हास्य कवितावां
पहेलियां
गळगचिया
टाबरां री पोथी
टाबरा री कहाणियां
टाबरां रा गीत
टाबरां री कवितावां
वेबसाइट वास्ते मिली चिट्ठियां री सूची
राजस्थानी भाषा रे ब्लोग
राजस्थानी भाषा री दूजी वेबसाईटा

राजेन्द्रसिंह बारहठ
देव कोठारी
सत्यनारायण सोनी
पद्मचंदजी मेहता
भवनलालजी
रवि पुरोहितजी

राजस्थानी लोक गाथायां


मारवाड़ में खींवो अर बींजो दो नामी धाड़वी रै वै। बींजो सोजत में अर खींवो नाडोल में। दोनूुं जणां आपरै हुनर में मा'यर। नांमी चोर, आस पास रै चोखलै में ठा'वा । दूर-दूरा मालवै अर गुजरात में जाय नै धापै। उजीण अर अमदाबाद रा सेठां नै सपनां में खींवों-बीजो दीखै। खीरै-बीजै रै नाम रै साग भागवान सेठाणियां रीं आंख्यां री नींद भाग जावै। खींवो अर बीजो दोई हाथ रा चतर, सूत्यै मिनख रै डील सूं गाबो उतार ले तो इ नींद नीं भागै। चोरी करबा चालै जद वांरा पग इसा फोरा पड़ै जाणै रऊ रै पै'ल मिनकी रो पग पड्‌यो। बारा हाथ ऊंचो डंडो एक मलफ में कूद जावै। पचास कोस पाला जाय, चोरी करनै सूरज घर आस उगावै। दोई जणां आछी-आछी जगां चोरी कीधी पण कठै ही पकड़ में माया नीं। देस-देस री बोली बोल ले, बगत पड़ै जिसा सांग कर ले अर भेख बदल ले। चोरी री कला मैं निपुण जांणै खापरियै चोर रा ओतार।

दोई अस्या नामी धाड़वी पण दूजै सू्‌ं मिलणै रो हाल मोको नींं पड्यो। खीवैं, बींजै री तारीफ सुण राखी, हाथ री, चतराई री बातंा सुण राखी। बींजो भी खींवै रा परवाडां सू वाकफ, हाथरड़ा मारभा री का'ण्यां सुण तारीफ में गाबड हलावेै। दोवां रेै ही मन में मिलबा री पण भाग- संजोग री बात ेक दूजै सूं मिल्या नीं।

बैठां बैठां बींजै रेै मन में आई- "चालो, नाडोल में सेठाणो ही चोखो है। हाल तांई ई गांव मेंें आपां गया ही कोयनी हां । थोडो- घणोंं कोई उपाय ही करांला, खींवो हुयो तो मिलणो ही व्है जावैलो।" या विचार बींजो नाडोल आयो। एक दो दिन गांव में रैय सारा गली- कूचा, पैसार- ओसार सगलो देख्यो।
अमावस री  अंघार रात। बींजो चोरी करवा चाल्यो। कालै पट्टू री गाती मारी। पागड़ी उतार नै परी मेली। माथेै टोपी मैली। जांधियो पैर्‌यौ। कमर में कटार बांधी झिरमर- झिरमर छांटा पड़र् या। बींजलियां झबूकरी। पड़नालां सूं  पाणी टपक रयो। अंधारी रात में हाथ सूं साथ नीं सूझेै। संजोग री बात, बींजो, खींवै रेै घर कनैं आय निकलयो। खींवो ही आछी कमाई करनै थोड़ा दिनां पैलां हीज आयो हो जो घर बैठ्यो मोज करै। बींजै देख्यो घर में सूं अतर री लपट अर मांस री सुगन्ध आयरी है। है कोई दिलदार आदमी। ई रै घरं हींज चोरी करां।
बीजो चोरी कबा वास्तै पछींंत रै कान लगायो। पछींंत कनै आवतां ही तो मायनै खींवै नै खबर पड़गी के  कोई चोर है। वीं इसारो कर बहू नै छानी- मानी रैवा सारु कह्यो। खींवै उठ ने खूंटी परसूं तरवार उतारी। तरवार तो वीं  इसें हलकै हाथ सूं  उठाई  जो कीं नैं ही पतो नीे चालै पण तरवार पै माखी बैठी ही जिकी उडी। माखी रैे उडतां ही बारै बींजो जाणग्यो के घर-धणी जागग्यो। कोई बात नीं। बींजो नचीत हुयो पछींंत खोदै। मजाल कांई के घर में बैटयोडां नै ही खबर पड़ जावै के कोई पछींत खोद रयो है। पण यो तो खींवो। हाथ में तरवार लियां, जम्योड़ो बैठ्यो के ज्यूं ही चोर मांयनै बड़वा नैं माथो धालै ज्यूं ही तलवार पछाटूं। बींजै पछींत खोद माथो मावै जिसो बगारो कीधो।

एक डोकै पै काली हांडी मेल बगारै में घाली जाणै मिनख बड़तो हुवै। खींवै दीवौो बुझाय दीधो सो अंधारो हो रयो। अंधारै में आदमी बड़तै रो माथो दीखायो। खींवो तो तक्योड़ो बैठो ही हो, खांच नै मारी तरवार री। खट्ट! हांडी फूटी। हांडी फूटतां ही बींजै नें हंसी आयगी। खींवै हीं हंस दीधो। एक दूजै री चतराई पै रीझग्या। खींवो बोल्यो-
"साबास, तूं कूण ऐड़ो हुसियार तो एक बींजै नै हीं सुण्यो है।"
"रंग है थनै हीं। ऐड़ो चतर तो एक खींवै ही नैं सुण्यो है।"
"खींवलो तो म्हनै ह़ीज कैवै।"
"बीजिंयो तो म्हनै हीं कैवै।"
हैं? आवो, आवो, भला पधार् या।"
"म्हनै हा थांसूं मिलण रो घणों कोड हो।"
"म्हारै ही घणी मन में ही" हाथ आघो कर खींवै बींजै ने माय ने लीधो।"
दोई जणां बांह पसार मिल्या। घणां राजी हुया, देखो भाग सूं अणचीत्यां आपां मिल्या।
"बींजाजीा, थारैं जिसा चतर थे हीज मिल्या हो।" हांडी साम्ही झांक नै दोई जणां हंस्या।

खींवै बहू नैं हेलो मार् यो-

" देखै कांई है? खातर कर। आज आपणै मंूघा पांवणा पधार् या है। मनमेलू मैमान रो मिवलाप मोटा भाग सूं हुवै।" खींवौ री बहू झट बाजोट बिछायो। दारु री बोतल अर प्याला लाय मेल्या। सूलै रीं कांब लाय मेली, खींवो बींजो बैठ्या मनबारां लेय रया। सूलां खाय रया। खींवै री बहू परुस री। खींवो बीजो बातां करवा लाग्या। आप आप री, नवी-जूनी हाथ री कारीगरी री बातां सुणतां- सुणतां दिन उगग्यो।
खींवै बीजै नै खातर कर दो चार दिन रोक्यो। तीजै पोहर रो बगत, बाजोट लगाय दोय जणां जीम रया, खींवै री बहू बैटी मांख्या उड़ाय री। खींवो- बींजो बातां कर रया। खींवै री बहू बोली-  'थे दोई जणां नामी धाड़ेत हो, नामी- नामी जगां चोरी करी है, धणां हुसियार हो। पण मिनख कोई ऐड़ो काम नीें करै जींसूं दुनिया मेंं बीं रो नाम व्है जावै जठै तांई कां ई नी। कोई इसो काम करो के दुनियां जांणै। नाम रैवे कै गीतड़ां कै भींतड़ां। दुनिया कांई जाणैला के थें दो जणां मिलियां हो।'
" बींंजो बोल्यो- भाभी, वात साची। थेंं कैवो जो ई करां।"
खींवै री बहू बोली- छोटी- मोटी तो दूजा ई करै। थें दो जणां मिल्या हो तो असी जगां करो जो संसागर ्‌चम्भो करै। थांरी वात चालै।"
" बोलो भाभी, ते जो कैवो वा चीज लावां, थै केवो जीं ठोड़ करां।"
खींवै री बहू बोली- चिंतौड़ सूं जय -विजय घोड़ियां लावो। वै देवासू घोड़िया है, वां रै पगां लाग्या ताव- तेजरो टूट जावै। गाढां पै' रा में वा घोड़िया नै राखैं, वां घोड़िया नै लावो तो जाणूं के थें मोटा धाड़वी हो।"
या सुणतां ही बींंजो थाली पर सूं ऊठग्यो। लारै खींंवौ ही उठ्यो। चलूं करी।
"वै घोड़ियां लावां तो अठै आय जीमा, नीं तो मूंडो नीं बतावां ।" या कैय दोई अणां बहीर हुया।

"भगवान भलो करै। थांकी लिछमी दिन दूणी रात चौगाणी बधै।"
चित्तौड़ में बिजैदास सेठ री हवेली आगे एक बाबो सेठ री जै बोल रयो। बाबो पगां सूं पांगलो, आंगलियां गल री, जगां-पाटा बांध्यो़ा, चींथड़ां-चींथड़ा हो रया। देखतां ही दया आवै! सेठ री पोल आगै पड़यो, आवतां- जावतां रीं खैर मनावै। कोई रोटी रो टुकड़ो दे दे,
सौ सौ आसीस दे, खाय नै पड़यो रैवै।
मंझ आधी रात रो बगत। पाटा बांध्योड़ै बाबै रै कांधैं पै एक जणै हाथ मेलियो। हाथ मैलण रै सागै पांगलो बाबो झम देणी को ऊभो जाणै कधे पोगलो हो ही कोनी ऊभो व्है आवण बालैं मिनख रै कान मैं कह्यो-
"बींजाजीं, पड़कोटै रै मांयने सातवै ओवरै मैं जय-विजय घोड़ी एक-एक खूणै में बंधै। सातूं ताला जड़ कूच्यां सिराणै ले सेठ-सेठाणी किंलाड़ा रै माचो अड़ाय आड़ा सोवै।"
"खींवाजी, त्यार रीजो। काले ई बगत रां आवूं।"
"ठीक।"
दूजै दिन बो ईज बगत हुयो। बींजो आयो। पड़कोटो लांध मांयनै गियो सेठ-सेठाणी सूत्या हा जीं ओवरै री छान पै चढग्यो। एक कानी रा केलू दूरा कर् या। केहलू दूर कर ओवरै में कूदग्यो। सेठ-सेठाणी सोय रया। बींंजै दीवो बूझा दियो। सेठ रै  माचै रा पागा, आप रै चारुं हाथां -पगां सूं उठाय अधर देणी रो माचो दूरो मेंल्यो। सिराणेै सूं कूच्या काढ, औवरै रो तालौ खोल्यो। जय-विजय घोड़ियां मांय नैं ऊभी। झट आय घोडी रै लगाम काठी मेंल, सलाम करी-
"म्हारी आगै ही जय व्हिज्यो।"
घोंड़ीनै ले ं जाय बारै खींवै नं पकड़ाई। बींजो पाछो मांयनै आयो। सातूं ताला जड़तो आयो, कूंच्या सेठजी रै सिराणै मेैली। माचो ऊपाड़ ज्यूं पैलां हो ज्यूं ओवरै रै आडो अड़ा दियो। ओवरै री दान पै चढ केलू दूर कर् या अर बांनै पाछा मेल्या। पड़कोटो कूद बारै खींवै कनैं आय घोड़ी पै चढग्यो।
खींवाजी, म्हारै हिस्से री म्हें ले जावूं, थांरै हिस्सै री थें ले आवजो।
चालता हुवो, म्हैं ही आवूं।

बींजो तो घोड़ी ले आधो हुयो।

दिन ऊग्यो, सेठ तालो खोल घोड़ी नै पाणी पावा नै गयो। देखेै तो एक घोड़ी, दूजी घोड़ी नीं। सेठ नैं आप री आंख्यां पै भरोसो नीं आयों आंख्यां मसल नै देख्यो घोड़ी तो एक री एक।
सातूं ओबरां रा तालां यूं रा यूं जड़िया। माचो देकै तो किंवाड़ां सूं अड़रयो।
ऊपर नजर पड़ी त केलू यूं रा यूं छायोड़ा, एक अठी नैं वठी नैं सरकियोड़ो तक नीं।
सेठ अचंभै मैं पड्यो- घोड़ी गई तो किसे रस्तै! सारै चैखलै में त्राहि-त्राहि माचगी। मिनख भेला हूया। सगला जणां कैवा लाग्या-
"घोड़ी देवासू ही जो अन्तध्यान व्हेगी। सुरंग लागी नीं, छान टूटी नीं, ताला खुल्या नीं। घोड़ी नैं ले जाय तो कोई सकै नीं।"
वा तो अन्तरध्यान व्हीं।
घर-घर में घोड़़ी री चरचा चालै। अबै विजय घोड़ी रा घणां जाबता राखै। कठै ही या ही जय री नाई नीं परी जावै। पांच-सात दिन आडा पड़वा देय, रगसतो-रगसतो फाट् योड़ा चींथड़ां वालो बाबो सेठ रै कनैं आयो। दुपैरी रो बग़त, सेठ एकलो बैठ्यो। बाबो बोल्यो- "सेठजी, घोड़ी  अन्तरध्यान नीं हुई। वीं नैं तो चोर लेग्या।"
सेठ हंस्या-" बाबा, देवलीला कहीं नीं जावै। देवासू घोड़ी ही, आई ज्यूं ई गई। चोर वीं नै कांई ले जातै।"
"नीं सेठजी वीं नैं चोर लेग्या।"
"चोर किण तरै ले जाय सकै! बायरै में उडै तो भले ही।"
"सेठजी, चोर लेग्या, आप कैवो तो में आपनै घोलै दुपारां काढ बतावू्‌ं।"
"बता।"
"आप चालो" तालो लगावो। माचै पेै मूंड़ो ढांक सोय जावो। जे आप नैं खबर पड़ जावै के चोर हैं तो मूंड़ो उधाड़ लीजो।
सेठजी सोची, देखां तो सरी यो कांई करै। तालां जड़ं' कूंच्यां सिराणै मेल, मूंडैे पै चादरो ओढ सोयग्या। अबैं खींवो आयो। केलूं उतार, सिराणै सूं कूंच्या काढ, माचै ने दूरो सिरकाय, घोड़ी काढी। सेठजी नैं खबर नीं पड़ी कै कोई वारां माचां नैं सरकायो है, कूंच्या काढी है। वे तो देखरया के पांगलियो आवै नै जाय नैं पूंछुं।
अतराक में तो आवाज आई" सेठजी राम राम, या घोड़ी चोर नैं लियां जाय रयो हूं।"
सेठजी चादर फैंक उठ्या। देखै तो जाती लगी घोड़ी री पूट रो पलको पड़यो। सेठजी माथै हाथ दैय बैठ गया। खींवो नाडोल जाय बींजै सूं रामरमी करी।
खींवै री बहू राजी हुई। धोड़ीयां नैं बैंची, अमोलक घोड़ीयां ही, खूंब दाम बंट्या। बींजै नैं पांवणाो राख्यो। बाणियां रो लैणौो हो जो चुकायो। अबै रंग-राग करै।
दरुड़ा पीवै मारुड़ा गावै। "सूला रहिया साट पै, कूंपा मद भरियाह।"
सूला तो साट पै सिकबो करै, दुबारै रा कूंपा भरिया पड्या रै। खींवैजी री बीनणी हिगलाट पै बैठी हींडै। ढोली बैठ्या मांढ गावै। जांगड़ा दूहा देवै। खबर ई नीं पड़ै के कठी नैं तो दिन उगेै कठी नें आथमै।
बींजो-खींवौ मनवारां दे, निछरावल करे, रिपियैं री रीझां करै।
आणंद लाग रियाो हो। खींवै री बहू प्यालै में दुबारो परुसती ं बोली।
थां दोई जणां रो जस्यो नाम वस्यो ई काम। जय-विजय घोड़िया लाया,
मोटो काम कर्यो पण थे दोई भड़ मिल र काम करो जस्यो तो बाकी है। खींवो हस्यो "ओर कांई चावो थे? हाल तांई मन नीं भर् यो के?"
" मन भरवारी बात नीं। मैं तो चावूं के थे दोई जणां भेला हुया होतो कोई एड़ो काम करो जो जुग में चा'वों हुवै। मिनख नीं रै पण वांरा कामड़ा, नामड़ा अमर रैवै।"
बींंजो बोल्यो " मन री बात हुवै जो साफ कैयदो भाभी, थे केवो जो करां।"
खींवै री बहू बोली- "पाटण रै मिंदर माथै सोनै रो ईडो है , बो सवा करोड़ र बताईजै। सुणां के रात नैं हीरा-पन्ना जगमग करै, दूर सूं लागै जाणै दीवो बल रियो है। बो लावो तो थांरी तारीफ। एक तो बजार रै बीच में सूं लावणो, दूजी बात वीं मिंदर सिखर पाकी कली रो के कीड़ी चढै तो पग रपटै। एड़ी चीज लाबा में थांरी हुंसियारी अर नाम है। चोरी करै तो असी के घर ही भरै, नाम ही हुवै अर हुंसियारी री ठा पड़ै।"
खींवो बींजो बोल्या- "बो ईडो लावां तो म्हंें असल चोर। नीं तो मूंडै ऊपरली मुंछ मुंड़ाय देवां।" खींवो अर बींजो साहूकार बणिया सामान मोलायो। साथै ऊंट-गाड़िया ली। मुनीम गुमास्ता लिया। पाटण आया। पाटण आय राजा कनैं मुजरै गया। आछी आछी चींजां नजर करी, अरज करी-
"म्हे परदेशी साहूकार हां। आपरै राज में राजा राज परजा चैन, नाहर - बकरी  एक घाट पाणी पीवै। म्है अठै बस वैपार करणो चावां।" राजा कयो- भली बात।

थांरी चीज वसत रो कोई नुकसाण म्हारे राज में हुवै नीं। थे भलां वेपार करो।

साहूकारंा मालूम करी "म्हनैं कोई असी हाठ बतावो जठै एक आदमी बैठ निगराणी कर सकै। म्हैं परदेशी आदमी हो, म्हारै कनै जयादा मिनख नीं। ये हजार रिपिया नजराणै रा नजर है, म्हां नै मांयली हाटां देवावो।"
राजा बांनै मिदर वाली हाटां देवाई। दोई साहूकार आछी तरै वैपार करै।
वां एक गोहरी पाली बीं नैं सिखावणो सरु कर्यो। गलैं में भंवर-डोर बांधी राखेै। पछकड़ै री हाट में गोयरी नैं राखै अर सिखावै।
पोस महीनैे री अमावस आवा देय वां ईंडो उतारबा री तजबीज करी। सिखायोड़ी- भणायोड़ी गोहरी नैं मिंदर माथै फैंकी। गोहरी चढती गई, ईंडै कनैं जाबा देय-गलै री डोर खैंची। गोयरी बठै ही रुकगी पग रोप्या। ज्यूं डोरी री ताणां दे ज्यूं गोहरी काठी चैठे। डोरी-डोरी दोय जणां चढ्या। बारा-बजी, ठैं ठैं ठैं- कर घड़ियाल पै डंका पड़या। लारै री लारै ईंडै रै माथै छीणी ठकरावै। ईजो उतार लियो दूर सूं गस्त रा चौकीदारां री आवाज आई "खबरदार, खबरदार।" यै एक घड़ै रै ठींढा पाड़ड घड़ूल्यो बणायनैं लारै ले गया हां, बीं में झट दीवो संजोय, कपड़ो पलेट, ईडै री जगां लगाय दीयो। चौकीदार निकलग्या, मिंदर रै ईडै रो जगमग-जगमग करतो चानणो रोजीना री ज्यूं ही दिख्यो। बैं तो खबरदार-खबरदार करता आगै निकल गया। यै पेट रेै ईं डो बांध नीचेै ुतर्या गोहरी नैं उतारी।
एक चोर बारा बरसां सूं ई ईंडै नैं चोरबा री फिराक में फिर रयो। बीं ईंडै माथेै छीणी बाजती सुणी। जाणग्यो कोई ईंडै पै पूग गयो है। छिप नैं मिंदर कनै ऊभो रैग्यो।
खींवौ, बींजो ईडो लेय चाल्या, लारै रो लारै चोर होग्यो। दरवाजै पै जाय पैरा वालां नैं कैयो- "भाई दो तीन के बरस रो टाबर गुजर गयो है। बारैं ले जावा दो।"
पैरावालो नट गयो " रात नैं दरवाजो नीं खुलै।" खींवैं दो रिपिया काढ पैरै वालै रै हाथ पै मेल्या। "जाबा दे, रात काढणो दोरो होसी।" पैरे वालै दरवाजै री खिड़की खोल यांनेै बारै कर खिड़की बंद कर दी चोर थेपड़ी बाल पैरे वालैं कनैें आयो- " मुड़दो ले आगै गया, म्हनैं बासदी लैय जाबा दो।" खिडकी खोल दी। चोर बारै निकलयो। मसाणां में जाय चोर तो मुड़दा भेलै सोयग्यो।
खींवौ बोल्यो- " यां मुड़दां में कोई जीवतो तो कठै ई नीं हैं। अठीला थें देखलो बठीला म्हैं देखलूं।"
दोई जणां कटारी ले मुड़दां रै मारता देखै। चोर रै कटारी लागी, निकलती कटारी नै रुमाल सूं पूंछ ली। कठै ही लोही लाग्यो दीख्यो नीं। खींवै कह्यो- "म्हनै ओझको पड़यो, लोही तो लाग्योड़ो दीखै नीं।"
भड़ हीज नाडी ही, खाडो ईडै नैं गाड हाटां में जाय सोयग्या पाछे सूं चोर पूग्यो, खाडो खोद घर ईडो ले आयो।
सुबे भाख फाटी। मिनख अठी नैं बठी नै फिरण लाग्या। घडूल्ये मांयलै दीवै री जोत मन्द पड़ी। जगमग करतो मिंदर रो कलस सूनो दीख्यो। लोगां री नजर पड़ी ईडोनीं। आखै पाटण में हाको होग्यो ईडै री चोरी होगी। कोटवाल रो मूंडो पीलो पड़ग्यो। बजार रा साहूकार भाग्या आया। गांव भेलो हुयो। राजा कहयो- ईडो नीं मिले जितरै में अन्न नीं खावूं। साहूकार बण्योड़ा खींवो-बीजो राजा कनै आया।
" बीती बात रो कांई पछतावो ? यै पांच हजार रिपिया म्हांरी कांनी सूं लिखो। दूजा साहूकारां कनां संू और ही धन लावां। आप दूजो ईंडो बणावो। इतरा साहूकार बसां हां ई नगरी मैें।हो जीसूं सवायो बणावो। आप जीमो।"
राजा राजी होग्यो। दूजो ईडो बणवारी बातां होण लागी।
दूजै दिन बेगा ऊठ नैं खीवो अर बींजो लोटीया हाथ में ले नाडी पै फिरबा नैं गया। देखै तो खाडो पड़यो। खींंवो बीजै रो मूंडो देखै, बीजों खींवै रो।
मुड़दां में छिप्योड़ोे कोई न कोई।
" हे चोर सहर मांयनै हीज । कटारी खाय सहर सूं बारै बो जाय सके नीं।"
"निगै करां, सहर में। जूनां मूंग, फूल दारु के सेवली रो मांस को मोलावतो लाधै।" दोई जणा बाजार री हाटां -हाटां फिरै-कपडां मोलावता, किराणो मोलावता।

सांझ पड़ी एक लुगाई आय जूनां मूंग मांग्या। जूनां मूंग मोलावतां सुण बीजो, खींव सू्‌ं बोल्यो - "जूना मूंग तो आपणै है नीं?"

" आपणै तो है पण बैचां नी। कीं रै ङी घाव घोचो लाग्या काम नीं आवे।"
"धाव भरबा री तो आंपां कनै बा जड़ी है , तुरंत घाव भरै।"
सुणतां ही लुगाई यां कानी झांकी, झट पूछयो--- "कांई कह्यो?"
"म्हारै कनैं एक ज़ड़ी है जीसूं तुरत घाव भरे।" जाणग्या ई रे घरे कोई घाव लाग्योड़ो मिनख है। बीं रै लारै-लारै चाल्या। बा घर में बड़ी जीं रै  लारै वै ही घर में धस्या। आगै चोर पाटो बांध्या माचै पै पड़यो, सिरख सिराणै दे राखी। टसक रयो। खींवै, बींजै बलता राम राम कर् या। चोर रो मूंडो पीलो पड़यो। भरोसो होग्यो चोर ओ इज। बीजो  बोल्यो - थें खोटो कर्यो । या थानैं नहीं चाहीजे। यै काम असल चोर रा नींं। चोर रा जाया ई नहीं थे। ये दोगलापाणां रा काम है। चोर चोरी करै पण आपस में धोखो नींं करै।
खीवै कह्यो " थें ही चोर म्हे ई चोर। थे जाणग्या हा तो म्हा3रै भेला आय जावचता, आपा्‌ं सातै काम करता जतरा मूमडका वतरा ही बंट। कायदै री बात। थेै कायदै बारै गया जो खोटो।"
चोर बोल्यो "होणो  होणो जो तो होग्यो अबैं कांई विचार है।"
बींजै कह्यो- विचार कांई ? कायदै री बात में थे ही चालो, म्हैंं ई चालां तीन पांती करलां। चोर मानग्यो। खींंवै बीजै री मनवार कर रोक्या। आछी तरै सूं जिमाया चूंठाया। बहीर होवण री तिथी थापी। दूजै दिन मिंदर री हाटां वाला3 दोई साहकार राजाजी रै मुजरै गया अर अरज करी-
"धरां सूं समाचार आया, बाई रोसावो थरप्यो है। सीख करां , घरे जावां ।"
राजा सिरोपाव दे साहूकारां  नैं सीख दी, पाछा बेगा आवा रो कह्यो। खींवो, बींजो अर चोर चाल्या। दांतीवाड़ै कनैं आय चोर बोल्यो- ईड़ो अठै बेच म्हनैं म्हारी पांती दो।
खींंवो कह्यो- अठै नीं बेचा, मारवाड़ जाय बेचाला। चोर वठै ही बेचण री जित करबा लाग्यो। ईड़ो मेल पांती करबा नैं कह्यो "म्हारी पांती रो हिस्सो तीजो म्हनैं काट द्यो।"
बींजो बोल्यो " तीन हिस्सा कस्या? किराड़ जतरा विराड़। पांती दो होसी।"
चोर लड़बा लाग्यो। खींवै काढ कटारी बाही जितरै बींजै काठ कटारी चोर नै मार लियो। आप ईड़ो ले घेर आया।
खींवै री बहू मोतियां रा आखा ले बधाया। घरे आय गोठां करी। अमल पाणी गांव नैं करायो। सारो गांव वाह वाह करबा लाग्यो। खींवो बींजै री तारिफ दुनिया करै। पांच सात दिन रैय बींजै घरे जाबा री सीक मांगी। खींवै  कह्यो- "घणां मान पधारो तो भलां पण ेक गलगै रैयगी। ये दोई काम आपां कर्या जी रो जस कीं नैं मिलणो चावै। आपां दोयां में सूं हुंसियार कुण?"
बींजै कह्यो " भाई, ई में बड़ै छोटै रो काई करणो। दोई मिल नै आपां कर् या जो ठीक"
"नीं सा, आपां रै समझ्यां कांई हुवै। दुनिया कैवे जद है क? थए म्हैं अठे नीें आाया होता, म्हारी लुगाई घोड़िया लाब नैं , ईड़ो लाबा नैं नीं कह्यो व्हैतो तो कठै सूं जावता? पहल म्हारै सूं व्ही बड़ाई म्हनै मिलणी चावै।"
बीजैं किण तरह मान जावै? आपस में दोवां रै ही झोड़़ होवण लाग्यो। पंचां कनैं न्याव कराबा नैं गया। पंचां कह्यो "थें दोई बराबर।"
पण खींवो बोल्यो- " या नीं हुवै सा। पंच परमेसर हो, न्याव करो। थां रो न्याव हुवै सो म्हारै माथेै पै।"
पंच बोल्या- " कुड़दांतली रा अंडा चोरनै लावै, कुड़दांतली नै खबर नीं पड़बा दे जो हुसियार।"
खींवो बोल्यो- "बींजा जी जाओ लावो।"
बींजै कह्यो " बड़ाई रो भूखो व्हेवै जो लावै। खींवै झट धोती री लांग चढाई। पीपल माथैे कुड़दांतली रो आलो जीं में अंड़ा। कुड़तांतली सेयरी। कुड़दांतली वोलै जद एक पल सारु अंड़ा पर सूं ऊंची हो टहूकड़ा मार पाछई नीची बैठ जावै।"
खींवो काचर ले पीपल माथै एक कानी सूं चढग्यों। दूजी कानू सूं बीजो ई ऊंट रा मागणा लैे छानै सूं चढ्यो।
कुड़दांतली टहूकड़ो मारै जीं रै सागै ऊंची हुवै। खींवो काचर तो  मेल दे अंडो उठाय ले।
बींजो चतराई सूं नीचे ऊभो। खींंवै री जैब सूं अंड़ो तो काढ ले, मींंगणो मेल दे।
एक, दो ,तीन, चार अंड़ा काढ लिया- मींगणा, राख दिया। एक कानी सूं खींवो उतर्यो, दूजी आड़दी सूं बींजो उतर्यो। न्याय करणिया पंच ऊभा। आवता देख पूछ्यो "अंडा ले आया?"
खींंवो गरब सूं छाती फुलायां बोल्यो- " यै लो।" जैब में हाथ घाल नैं काढ्या तो मींंगणा। बींंजै हंसतै लगां आपरी जैब में सूं अंड़ा काढ पंचा रै आगै मेल्या।

पंचा न्याव कर् यो- " बड़ाई बींजै नैं।" बींजै खींवै रो हाथ पकड़यो " चालो घरां, पांती आधी- आधी परी करां।"

मीणलदे री आंखियां गैला पै लागियोड़ी। जिण दिन वी परण कच्छ में पग दीधो, उण दिन सूं ओढा रा वखांण सुणती आयरी वो ओढ़ो आज आयरियो। आखी नगरी में  हंगामो लागरियो। लुगायां माथा  पे कस लीधां गीत गाय री नंगारची सहणायां रा सुरां में बधआवा गाय रिया। साहूकारां हाटां ने सिणगार ली। धरां रा गोखड़ां रे लुगायां आप री राती पीली ओढणिया बांध दीधी ओढा ने बधावा ने। डोकरा हाटां आगली चूंतरया पै आय बैठ्या ओढा सूं मुजरो करवा। जुवान ओढा री वातां करतां धापतां नीं। कोई ओढा री नांई आपरी मुंछ ने वंटतो, कोई चाल चालबा में ओढा री चाल री ललक लाणेरी कोसिस करतो उमंग छोह भरियोड़ा मोटयार, ओढा री नांई रणखेत में काम करण रा, नाम कमाण रा मनसूबा बांधता।
मीणलते गोखड़ में बैठी गैलो देखती मन में विचर  री, " एड़ो केड़ोक ओढो है, जो वे उण रा बखण करतो आवे। गांमां री पटेलणियां आवे तो ओढा री रहमदिली री वातंा करे, बूढी लुगायां वातां करे तो ओढा रा नाम सागे थूथकारो गैरे कठे ई निजर नीं लाग जावे। अबारुं उण दिन हींडा घालिया जिण दिन सैंग भाईपो भेलो व्हियो सैंग परवा र हींडो हींडिया। जद लुगायंा मांहो मांहे केयरी, चावे जेडड़ा बणठण न आवो, ओढा री पासं ग में तो कोई नीं टिके। ओढा रो तो मांछर ई न्यारो है।"
ऐड़ो है केड़ो ओढ़ो, " यूं कैवतां मीमदे सोची, है तो उण रो ई सगो देवर राजाजी जेड़ो ही व्हेला भाई।"
राजा रा नाम सागे मीणलदे रा मूंझ रो नूर उतर गियो। बूढो डोकरो नाड़ री नसां निकलयोडी। खुल खुल खांसतो, बोलो धप्प माथो। एक जगां बैठ जावे तो पाछो एक पूरी पोहर तांणी वठा सूं उठणी नीं आवे। अमल रा जोर में मेहलात में चढ़न तो आय जावे पण झेर ले वा लागे तो दे गोडां में माथो ऊंधबो करे। अमल उतर जावे तो बोखलियां मूंडा मांयनूं लांला झरवो करे। गोखड़ा री भींत में जड़ियोड़ा दरपण में मिणलदे री ट्रस्टि पड़ी। उण री थर थर देही धूजगी।
कठै म्हूं कठै वो बूढलियो राजा। म्हारे दाड़म रा दांणा री नाई बत्तीसी दमक री, उण रा मूंड़ा में दरसण सारुं दांत नीं। म्हारे नख दीधां लोही आवे, वो सूखचमड़ लोही न मांस। म्हारे केसां पे भंमरा भंमरिया उणरे माथो पे जांणे गाडरा री ऊन मेल्ही। म्हारा मन री हाल खांत ई नीं निकली, वो खजियाड़ो गाबो। म्हूं नवीं कली हालतांई खुली कोयनी, वो झड़ियोडो पानड़ो।
मीणलदे करम ठोक्यो, " यो फूटगियो। यो तो म्हारो बाप के दादो बणवा जोग है, इ ने भरतार किण तरै मानूं। बेटी बणाय न रांखे तो ईण री चाकरी कर दूं, जीमाय चूंटाय दूं, सिनान संपाड़ो कराय दूं। पण यो हिंगलाट पे आय न गुड़क जावे जदी तो एड़ी री झाल चोटी जाय लागे। एड़ी रीस आवे के सोना रा हिंगलाट में  लालबाई लगाय दूं। म्हारो ब्याव तो इण राजा सूं थोडो ई करियो है, इण रा राज सूं करियो ,इण रा पाट सूं करियो, इण रा धन सूं व्हियो, इण रा हाथी घोड़ा सूं व्हियो, इण रा मान सम्मान सूं व्हियो। राज ने चाटूं? पाट सूं माथो फोड़ूं? धन सूं हिवड़ा री तिस बुझे? हाथी घोड़ा ने छाती पे बांधूं? मान सम्मान सूं मनड़ा री भूख बुझे? ये सोना री सांकलां काला नाग ज्यूं खावा ने दौड़े। गढ रा भींतड़ा छाती पै ऊभा है ै। म्हारा मायत पूरबला जनम रा वैरी हा म्हारा। मसांण रे लारे बांध दीधी। म्हारो सुख नींं देखियो। आपरो नामून देखियो। इण राजा रे नाम तो म्हने खेत खोदणियां ने ई देता तो आखो दिन काम कर सांझ पड़ियां तो मन खोलती। यां गढ़ किला सूं वा झूंपड़ी चोकी जठे मन मेलू व्है। पति रा सुख बिना कोई सुख, सुखनीं। प्रेम मिल जावै तो लूकीं सूकी रोटी खाय लुगाई हसती मुलकती जमारो काढ़ लें।"

जांगड़ जोर सूं सुभराजा दीधो, "सैणा रा सेवरा, दुसमणा ंरा साल,रुप रा कामदेव, ओढा ने घणी घणी खम्मा।"

मीणलदे रा विचारंा री लड़ी सुभराज रा झटका सूं टूटी, चमक नें झांकी तो ओढो आय रियो, मिणलदे देखियो सांजचे ई रुप रो कामदेव है ओढो तो। कच्छी घोड़ा पै सवार, एक हाथ में भालोे, दूजा हाथमे लगाम। बगतरा री सोना री कड़िया सागे उण रो कनक बरण दप दप कर रियो। झंडा ज्यूं पूंछड़ो उठायो घोड़ो सीनो तांणियां चालरियो, ओढो ई सींनो तांणिया, मुजरा करतो, जुहारां झेलतो मुलकतो आयरियो। ओढा रा नैणां सूं नेह बरस रियो, जलमभोम रा मिनखां ने हंसता, उमगता देख मन बाग बाग व्हेयरियो। दो बरसां संूं ओढो पाछो घेर आयो, जलम भौम सारु झगड़तो। देस रा सीमाड़ा में पग दे दे, किण री मजाल जो कच्छ री ेक कांकरी उठाय ले। सिंध रा कटक चढ़ चढ़ कच्छ ने उजाड़ रिया, ओढो कटकां रा मारंग में कांटा री वाड़ व्हें ऊभो व्हे गियो। कच्छ में सीली गंगा बैवा लागगी। लोगां ने रात्यूं नींद नीं आवती जठे ढांणिया में मिनख सूता घोर खैंचवा लागिया। पणिहारियां पाणी भरवाने जावती तो गैहणो खोलन जावती जठे अबै कच्छ मेंं सोना रो डलो उछालियां जावो तो कोई पूछवा वालों नीं। लोगां रो छोह अर मोह देखियां ओढा रो मन पुलकाय रियो। लुगायां माथै बैवड़ां लीधां ओढा ने बन्दाय री। छोरियां थाली में दीवा मेल्ह, दौड़ी दौड़ी आय ओढा री आरती उतार री, धरां री छातां सूं गुलाल रा अंबर उड़ाय री। मीणलदे देखरी, वा पौल मांयनूं लुगाई निकली, आदमियां रै बीचै पड़ती, धक्का देती, ओढा रे घोड़ा कनेंं पूगी, दहीं रो तिलक ओढा रे लगायो, गुल की डली मूंडा में दीधी, घोड़ा रे तिलक लगाती, दोई हाथां सूं उबारणा लीधा, " भलां घरे आयो थारे परताप आज साता री नींद सोवा लागियां हां।" बूढो डोकरो लाठी रे थेगे, अबखो दौरो, भीड़ मांयने पड़तो गुड़तो आय ओढा रा पागड़ा रे लटूंब गियो, "देस रा दिवलां, जीवतों रीजे, अमर व्हीजे। म्हारां छोरा ने थूं व्हे नबाबां रा घर सूं काढ़ न लावे। यूं ई प्रतलाप राखजे रियाया पै।" डोकरा री आंखियां में आंसूं आय गिया। कांधा रा रुमाल सूं ओढे डोकरा रा आंसू पूंछ लीधा। धणी लुगायां पल्ला सूं आखियां पूछ लीधी। ओढा रे आगे नगरी नैणां रा पग पांवड़ा बिछाय राखिया। ओढ़ा ने लाग रियो नेह रा समंद में वो तिर रियो है। जलम भौम रो कण कण उण ने बंदाय रियो है,. बैवता पनन में उण ने नेह री सौरभ आय री, रज रज में अपणांयत ऊपणती दीख री।। कोई मिनख़ एड़ो नीं  जिण रा नैण ओढ़ा री आरती नीं उतारी, कोई एड़ी जीभ नीूं जिण ओढ़ा रा वखांण नींं करियां। सैंगा री जीभ माथे ओढ़ा रो नांम। ओढ़ा रा नैणां ने सुरंगों कच्छ सुरग ज्यूं दीख रियो, जलम भौम रा लोग लुगायां मेंं ओढ़ा ने छत्तीसूं करोड़ देवी देवता दिख रिया। लोगां रो मोह देख देख ओढ़ां री अंगरखी री कसां आंजस सूं टूटी जाय री।
मिनखां रो ठट्ठ लाग रिो, ढोली दूवा देय रिया, चारण बिड़दाय रिया, तीखी कनौती रा कच्छी घोड़ा पै सवार ओढो गोखड़ा नीचे व्हैय निकलियो, ओढ़ो अर सूरज किरण एक व्हेय रिया। मिणलदे चित्तराम री बैठी देख री। उण जोध जवान ने देख मीणलदे, रो कालजो कुरलायो। जोड़ तो म्हारी ओढा रे लारे ही, परणाई वी बूढा खापा लारे। जोबन छकी मीणलदे काला नाग ज्यूं अलेटा खावा लागी।

ओढो आय राजाजी रे पगां लागो, ऊबो व्हे भाई ने छाती लगायो। ओढो रा कांधा थपेड़िया, निछरावलां कीधी। ओढो झगड़ा री विगतां सुणाय रियो, मुसाफरी री वातंा सुणाय रियो, राज राजी व्हे व्हे सुण रियो।
" ओढ़ाजी ने म्हारा बाईसा बुलावे, वठै पधार जीमो।" मीणलदे री दासी छम छम करती आई।
हां, ओढ़ा, जा, थूं तो थारी नवी भाभी सूं हाल मिलियो ई कोयनीं। जा, भाभी सूं मिल, थनैं बुलावो भेज्यो है। आ जीम। बूढो नवी परणी रो मन घणो राखे।
आंखियां में सुरमो सारियां, केसर रो तिलक लगांयां मीणलदे तो बाल बाल मोती सारियां बैठी।
ओढो आयो, मीणलदे बैठी, झग झग करतो कुंदण रो सो डलो। ओढा री आंखियां नीचे झुकगी। मुजरो कर ऊभो रै गियो।
मीणलदे रा नैण तो ओढा रा मूंडा सूं डिगवा रो नाम नीं ले। ओढो नीचा नैण कीधां ऊभो। मीणलदे ओढा रा रतनाला नैणां ने देखती रैगी नैंण है के मद री पियालियां है।
मीणलदे ओढा ने बैठवाा सारूं कहियो, मीणलदे गादी पै बैठवा सारूं कैती रैयगी। ओढो, गादी सूं नीचै जाजम पै गोड़ी वाल बैठ गियो। नैण नीचा, हाथ जोड़ राखिया। मीणलदे कांम री मारियोड़ी, आंधी व्हेय री, बोली,"म्हारा मायतां भूल कीधी जो थांरी जगां म्हने थांरा भाई ने परणाई।"
सुणतांई ओढे कानां आडा हाथ देय दीधा, "मां, मां आप तो म्हारै जलम जलम री मां हो। म्हारा बड़ा भाई रो हाथ पकड़ियो। आप मां म्हूं बेटो। "यूं कैवतो कैवतो ओढो बारे निकल गियो। मीणलदे कालां नाग ज्यूं फूंफकारो मारियो। तन मन सूं झालां उठवा लागी। कटकटियां भींंचणी आयगी, हाथां री मुट्टियां बंधगी। नैणां मांयनूं तुडंगिया झडवा लागा। मोतियां सागे बालां ने खोस खोस फैंकवा लागी, हार री लड़ां तोड़ तोड़ बगाय दीधी, डील पै चूंगट्या भर भर जांमण जमाय दीधा, रोय रोय आंखियां सुजाय दीधी, गाबा फाड़ नांखिया, कांचली री कसां तोड़ फैंकी। लटूरियां बिखेरियां आंगणे धरती पै पड़ी, ऊंधो मूंडो कीधां रोयं री।
सांझ पड़ी, गोडां रे हाथ टेकतो राजा आयो आगे अंधारो, दीवो नीं, डोकरा रो कालजो कांपियो। धूजता कांपता हांथा सूं आडो खोलियो, मांयने विकराल व्हियां मीणलदे ऊंधी पड़ी। राजा रो तो अमल उतरगो। डग डग करतो नाड़की हिलावतो बोलियो,"काणी, यो कांई? व्हियो कांई?"

रांणी तो डसूका भर भर रोवणो मांडियो। डोकरियो पोला पोला हाथ सूं पपोले ज्यूं मीणलदे नांगणी ज्यूं तड़फै । राजा रो कांपतेो बिना लोही मांस रो सीलो सीलो हाथ अड़े जो जांणे बिच्छु डंक मारे राज जांण गियो, रामायण में तो कैकई रो कोप भवन में जांणो बांचियो पण आज सागै साग आंपां मेंं बीतगी। बूढापा मेंं परणवा रा फल मिलग्या। बोखलिया मूंडा में गरण गरण जीभ फेरतां मनवाणां कीधा, थर थर धूजता हाथां सूं हाथा जोड़ी कीधी। नसो उतर गियो जो नांक बैयरियो, गीड झरती आंखियां में आंसूड़ा भर पूछियो, "गैहणो चावै तो गैहमो मंगाय दूं, कपड़ो मंगाय दूं । कांई चावै जो कै।"
आंसूंड़ा टलकाती, हिचकियां भरती मीणलदे बोली, "थारे भाई म्हारी या दुरदसा करी?"
"म्हारे भाई? ओढो? लछमण सरीखो जती ओढो?"
"हां, या देखो।" फाटियोड़ी कांचली मीणलदे बताई। "यूं दूरदसा करावा नैं म्हनें बूढापा मेंं परणी कांई?"
राजा रै तो आंखियां आगै काला पीला आयगिया। गोडां बिचै माथो घाल दीधो।
-----------------------------------------X-----X--------------------------------------
ओढे कालो घोड़ो सिरोपाव झेल लीधो। तारां रेवतां अंधारे घोड़े चढ वहीर व्हे गियो। काले जिण ओढा ने कच्छ रा नर नारी हियो खोल खोल बंदाय रियाहा, आरतियां उतार रिया हा, पलकां रा पग पांवड़ा बिछाय रियां हां। आज उणां नर नारियां ने ओढो मूंडो कस्यां बतावे। कांई बतावे के भाई कालो घोड़ो, कालो सिरोपाव क्यूं दीधो, देश निकालो क्यूं दीधी। आप री सफाई देवें तो दुख नींं देवे तो दुख। अठीने पडै तो कुवो वठी ने पड़ै तो खाडा। ओढो रात निकलियो कच्छ रा सीमाड़ा पे जाय दिन ऊगायो। अठी ने सूरज निकल रियो वठी ने ओढो आपरी जलम भोम ने छोड़ रियो। ऊभो रे पाछी ने झांकियो। कच्छ रो रण पड़ियो, "इण भौम में म्हूं जलमियो। इण री माटी में रम मोटो व्हियो। पीढ़िया म्हरी इण माटी मेंं खपगी, म्हूं ई इण माटी में ई खपणोंं चावूं। बाप दादा इण भौम सारु रज रज व्हे काट कट मारिया। म्हूं कस्यो इण भौम सारु रज रज व्हे कटवा ने पाछो रियो?" ओढे आप रा डील पे लागियोड़ा घावां साम्हो झंाकियो। ये घाव कांई चीज है, तन री बूथी बूथी इण भौम सारुं बिखर जावे तो थोड़ी। म्हूं तो चालियो, पाछा नूं जलम भौम रो कांई व्हैला? भाई दाना, राज संभलणो नीं। पाछी कटकां दौड़वा लागेला। परजा ने लूटेला। मिनखां ने फोड़ा घालेला।
ओढो मन ने गाढो करे पण रैय रैय विचार आवे। म्हूं तो बिना कहियां सुणिया वहीर व्हेगियो, अबै नगरी रा लोगां ने खबर लागैला4, कठै ई दौड़िया नूं आवे पाछा म्हनें लेवा ने। कतरो लोगां ने म्हारा पै भरोसो है, कतरो प्रेम काले नगरी उलल पड़ी उलल, लोगां रा नैणां सूं नेह बरस रियो हो। पाछा नूं झूरेला, राजा ने खोटी खोटी सुणावेला। म्हारा  पे घणो जीव है मिनखां रो।
ओढा री आंखिया भींज गी। कच्छ री रेत ने माथा रे लगाई। खेजड़ी सूं बाथ घाल ने मिलियो झाड़कियां रा पानड़ा तोड़ बगलबंदी मेंं घालिया। तिण भरी नजर सूं कच्छ रा रण ने सात दांण झुक सलाम कीधी। "जलम भौम र मिनखां। आछा रैवजो।" म्हें तो चालिया। देसड़ले थें तो म्हांने सीख देय दीधी पण म्हारा मन में तो थूं बसियोड़ो है।
ओढो ढीलो ढावल चालियां जाय रियो। मन में कैवतो जाय रियो। चावै जठे रैवां देस में रैवां परदेस में रैवां, वाजांलां त कच्छ रा। ओढो देस सूं दूरो घणो दूरो जाय निकलियो। पांच दस घोड़ा रजपूत भेला कर लीधा। कमावा खावा री सौची। सैंग जणां राय बांधी, पांटण बादसा रै सांढिया घणी ऊछेर, सांढियां ले आवां। वां पाटण रो गैलो पकड़ियो।

दुपेरी तप री, तावड़ो तिड़क रहियो, आंगणे बेलूं रेत बलरी, धान रो दांणो न्हांके तो फूल्यां ज्यूं तिड़क जावे। आभा रे अधा बिचै सूरज भगवान लाल लाल गौला ज्यूं तप रिया। तलाई रे कनें वड़ला री छाया में घोड़ा री घआसियाो बिचाय ओढो दुपेरी गाल रियाोष रुंखा री थाया में साथ वाला ओड़ा डोढा व्हेयरिया। पांणी री दीवड़ वड़ला रा डाला रे टांक राकी। तावड़ा सूं मूंडो लाल व्हेरियो। कूकड़ कंधो घोड़ो सीनो उठाया  पौरस सूं चाल रियो । काठी घोड़ो लीथी कनौती, कनौती एड़ी मिलियोड़ी के कानैां रा टोयां विचै रिपियो ठेहर जावे। असवार रा बगतर री कड़िया रगड़ सूं झण झण कर री। माथा रो टोप सूंरज री किरणां में  पलाका खायरियो। कमर रो वांकड़़ो कटारो, सोरठड़ी तरवार एड़ी ओप री जांणे वैमाता जलम रे सागे ई उण रे सागे सिरजी। मंगरी रो ढाल उतरतो असवार यूं लाग रियो जांणै दूजो सूरज ऊगियो। ओढा रा साथ रा आदमी आंधी आंखियां मींच्या उणने देख रिया। मूं़डा में पांणी आयरियो, घोड़ो खोसलां, हथियार लेलां। असवार आय बड़ला रे हेटे घोड़ो थामियो, नजर पसार छाया देखी। सूंता थकां आदमियां ने एक नजर बारे काढिया, जाणे न्हार हिरणिया री डार साम्हो नालियो। घोड़ो रो जींंण उतारवा लागियो। असवार पांचू सस्तरां सूं सजियोड़ो, पांचू पोसाक पैहरियोड़ो। ओढा रो एक राजपूत सूं बोलियाो। "पैला ई केवूं हूं घोड़़ो म्हारो।" दूजो बोलियो। तरवार म्हारी है।
असवार उणां री मन्सा समझ मुलकियो। वढी ने मूंडो कर पूछियो "घोड़ो चावै? आय जावो, हीमत व्हे तो ले लो।" यूं केय असवार घोड़ा रा तंग ने पकड़ ताणियो। तंग रे सागै घोड़ो एक हाथ धरती सूं ऊचो उठ गियो। बाणिये ताकड़ी ऊठाई जांणै।
'वाह', 'वाह', ओढा रा मूंडा सूं निकल ई तो गियो। ओढो असवार रा अंग री मरोड़ देखतो रै गियो, साथ वालां री आंख्‌यिां ऊंची चढगी। असवार गाबड़ रा झटका सागे पूंछियो, "घोड़ो लेणो बगतर लेणो? उठो आय जावो।"
"रैवा दे भाई, रैवा दे, आवो बैठो, विसराम लो।" ओढो मन ई मन कैय रियो, वैमाता ई संसार में कांई कांई रुप सिरजिया है। केड़ी छोटी इण री औस्था है, मूंछां री रेख ई पूरी हाल कोनी फूटी। केड़ो आपांण केड़़ो रुप।
" नीं, नीं थारा मन री पूरी कर लो, खोसणे री हिमत व्हे तो आय जावो। यो तीर खेजड़़ा में ठोकूं, ईण तीर ने काढ ले आवो तो म्हारो घोड़ो म्हारो बगतर, सैंग सस्तर थांने म्हारा हाथ सूं सूंप देवूं।"
घोड़ा रा पागड़ा में पग दे, ऊभो व्हे, कांनां तांई खैंच कबाण तीर फैंक्यो। सणण करतो खेजड़ा रा गौड़ में जाय वलियो। चार आंगल ती री डांडी बारे रही, तणकरा करतो पूरो तीर मांयने ठुक गियो। "किण री मां खाधी है सेर सूंठ? लावो तीर लो सस्तर।" असवार ललकार कीधी।
ओढो माथो धूण लीधो, गजब रो रजपूत है। इण औस्था मेंं यो पांण। धन्न है इण रा मात पिता। ओढो ऊभो व्हे हाथ पकड़ियो, रैणदे भाई, यां राजपूतां खोडी  वात कहीं। माफ कर। ले आ बैठ।
जीण उतारियो, घोड़ो बांधियो, छायां बैठियो। बगर पैहर राखियो। ओढो बोलियो 'बगतर उतार, कोई संका मत कर, आराम सूं बैठ।
"एकर बगतर पैहरियो जो कांम पूरो कर ई उतारुंला।" जीम्या चूंट्या, वातां विगता व्ही। नांम एकलमल्ल।
"कठी ने जाय रियो हौ"
"पाटण रा बादसा री सांढिया लावा ने।"
"एकलो?"
'एकलो क्यूं? म्हारा तीनूं साथी, हियो, कटारी अर हाथ म्हारे सागे है।' जेड़ो रुप रहै वेड़ी ई वातां रो बणाणियो है। ओढो मन ई मन तारीफ कीधी "जूनो वैर है कांईा ?।"
"म्हाराौ बाप सूं सांढियां लावा री परतिग्या पूरी कोनी करण आई। मरती वेला परतिग्या रो पांखी झोलियो जद उणां रो मोखस व्हियो।" "वाह रे, इण छोटी सी औस्था में जबान री या पाबंदी" ओढा रे मन में एकलमल्ल ऊंडो बैठतो जाय रियो। ओढे पूछियो "म्हां ई पाटण जाय रिया हां सांडिया लावा नैं, सागै ई चालां?"

"घणी आछी वात। पण म्हारी े एक सरत है जो पैहलां ई कैय दूं। सांढियां री बरोबर आधी पांती लेवूलां। मंजूर व्हेंं तो चालो, नीं तो थां थांरे गैले, म्हूं म्हारै गैले।"
ओढा रा मन में तो एकलमल्ल छावतो जाय रियो। ओढे मंजीर कर लीधो। उण रा रजपूतां ने तो सूंवाई नीं, बड-बड कर रिया। दूपेरी गाल पाटण रो गैलो लीधो। एकलमल्ल अर ओढो कनेंं-कनेंं घोड़ां चढिया जावे, वातां करता जावे। एकलमल्ल रा गुणा री सरवणां करता ओढा रो मन थमैं ई नीं। ओढो मन में कैवे, घणां-घणां नांमी-नांमी विद्वानां सूं, बहादरां सूं मिलियो, सागै रहियो, बात वतलावणां कीधी पण ईण ऐकलमल्ल में म्हारोै चित लागियो ई नींं। कोई पीरबला जनम रा संजोग है के कांई वात है। इण सूं वात करतां जीव ई नींं धापे। जीव करे जांणे कनै बैठिया वातां करवो ई करां। राम जांणे इण में एड़ो कांई आकरसण है। कच्छ छोड़िया पछे म्हारो मनड़ो खुलियो तो एकलमल्ल बोले जदी म्हारा कलकलता कालजा पे सीला छांटा रो मेह बरसे।
हाय कच्छ जावा जोगो व्हेतो तो एकलमल्ल जेड़ा जुवान ने कच्छ मेंं ले जाय बसातो आखी कच्छ ने रुखालवा ने म्हूं अर एकलमल्ल बस दो जणां घणां। पछै कच्छ रा सीमाड़ा साम्ही कोई आंगली ऊंची करले? रुप अर गुणां री खान है यो एकलमल्ल। भगवान दोई हाथां सूं तूटो है इण ने।
सांढियां जाय घेरी। घूंसोा पे धामाकों लगाय बादसा री फौज वाहर चढ़ी। आय नजीक पूगा। सांढियां रो टोल अवेरणो दौरो पड़ गियो। फौजां पाछे नजीक आयगी। टोला री अठीली सांढियां ने लारे करे तो वठीली बिखर जावे। कोई ऊभी रै जावे। एकलमल्ल ऊभो तमासो देख रियो। ओढा रा रजपूंता रा होस उडरिया। ज्यूं टोला ने अंवेरवा री करे ज्यूं बिखरियो जावे। बादसा री फौजां नेड़े आय लागी। एकलमल्ल रजपूतां ने ललकारिया "इणीज बादरी पै सांढिया ले ण ने चढ़िया हा, व्हे जावो अलगा। सांढियां लेण ने तो आया हो पण लेण रो इलम ई जाणाो हो?"
खांचता ई तीर ेक सांड रे ठोकी, लोहियां रो परनालो चाल गियो। एकलमल्ल लोही में पछेवड़ी भींजोई, दूजी सांड़िया ने सूंगाई। रगत री वासना सूं सांढिया लारे व्हेगी। ले पछेवड़ी आगे आगे एकलमल्ल रो घोड़ो लारे सांढिया रो टोलो नटाटूट भागियो जावे। आगे जाय सांढियां री पांती कीधी। ओढा रा रजपूत माथा फोड़ी करवा लागिया, एक रे आधी, म्हां सगलां रे आधी? यो अन्याव? एकलमल्ल कबांण तांण ऊंभो रैग्यो। "एक सांढ कोंनी ले जाण दूं, आय जावो मुकाबला पै।"
ओढो बीचै पड़ियो, रजपूतां ने समझाया, "एकलमल्ल री दिलेरी भूल गिया कांई? अंवेरता नीं सांढियां, उण वगत तो मूंडा कर दिया टोपसी जेड़ा।"
"एकलमल्ल, टाल ने पैला आधो आध सांड़िया थूं ले ले।"
"नीं ओढा जाम,पैलां थां टाल न ले लो।"
ओढा रा रजपूतां आधो आध सांढिया टाली, टाल आप रे हस्ते कीधी। ओढो बोलिया "ले संभाल थारी सांढिया।"
एकमल्ल मुलकियो "ये सांढियां ई थै राखो ओढा। म्हारै कांई करणो है सांढियां रो म्हारे तो बोल निभावणां हा।"
ओढो सांडियां लेण ने नटे पण एकलमल्ल सारी सांढिया ओढा रा रजपूतां ने सूंप दीधी। ओढो देखे, दिलेरी रे सागे दिल कतरो मोटो है, नीं लोभ नी लालच।
"ओढा जाम, सीख करां। घणां दिन व्हिया, घरे जावां।"
"यूं कोई अबारुं ई ज कांई जावे। थोड़ा दिन तो और रै।"

ओढा ने लाग रियो जांणे रतन हाथ मांयनूं निकलियां जाय रियो है। ये दिन एकलमल्ल रे सागे कस्या आणंद रा निकलया। यो तो मोह ममता मेंं बांध चालियो, सज्जण सूं मिल्यां जतरो आणंद व्हे बिछड़िया अतरो ई दुख। एड़ो ममत्व में म्हूं कदै ई नीं बंधियो। किण रे ई सागै म्हूं अतरी देर वांत नीं करुं पण इण रे सागे त वात करणे रो सुवाद ई ओर है।

एकलमल्ल तो जै माताजी री कर घोड़े चढ़ियो। ओढो देखतो रियो मंगरी रो ढाल उतरियो जतरे, पूठ नजर आती री जतरे देखतोे रियो। ओढो ने लागियो, एकलमल्ल जावतो थको उण रो मन ई सागे ले गियो। जंगल उदास-उदास लाग रिया, सूरज ई गमगीन दीख रियो। सांढियांने देख एकलमल्ल री दिलेरी याद आयगी। वो ऐकलो आदमी, म्हां अतरा राजपत, ऐकलो वो सांढियां अवेर लायो, छाती रे पांण, एक सांढ आप रे राखी नीं, सगली म्हांने देय गियो। मिंंत्तर इण ने कीजै। मित्तर मिल्यो अर विंंछड़ गियो। एड़ा भित्तर रे सागे यूं वैवार नींं तोड़णो, उण रो गांम पूछियो नीं, रैवास पूछियो नीं, कदै ई मिलवा जावूं तो कस्ये ठिकाणै जावूं। ओढा ने पछतावो आयो केड़ो अणसमझू है वो गांम ठांम नीं पूछियो। चाल पूछ आवूं, हाल तांई तो गैला में कठै ई नेड़ो ई जावतो मिल जावेला। ओढे तो लगाई घोड़ा रे एड़। घोड़े तो भ्रग छकारा डांण भरियो। सूंवे गैले घोड़ो घाल दीधो घोड़ा राखोज देखतो जावे। दो दिन बीत्या, तीन दिन बीत्या। ओढो रो धीरज छूट गियो, अबे एकलमल्ल कोनी मिले। भला भाग बिना भला मिनख रो संजोग ई कठै जुड़ै। म्हारा भला भाग व्हेता तो जलम भौम ई क्यूं  छूटती। एक मन मेलू मित्तर मिलियो जो ई छूट गियो।
गैला रे पसवाड़े तलाव भरियो घोड़ो तिसायो पांणी पावा ने तलाव रे तींरां घोड़ा ने लेगियो। चारूं कानी मंगरा, मंगरा रा खालचा में तलाव भरियो, नरमल पांणी। गडूल रा फूल फूल रिया। टप-टप धीरे-धीरे घोड़ो चाल रियो। ओढा री नीची-धूण धालियोड़ी, मनोमन दुखी व्हेय रियो। लगाम ढीली कीधी, घोड़े पांणी मेंं मूंडो दीधी। ओढे तलाब कानी नजर उठाई. कांई देखे, तलाब में लुगाई तिर री है, जांणै मंगर पीणी में सरड़ाटा मार रियो। काला-काला केस कमर-कमर तांई पांणी पे छाय रिया। नरमल नीर मांयनूं पीडया, गोडा गोडा तांई पग कंचन री नांई दमक रिया, हरिया-हरिया नीर में सोना री सी साट, ओढा री तो नजर छटैगी जांणे। पदमणी तिरती थकी पलेटो खाय तीर साम्हो मूंडो कीधो, देखे पाल पै आदमी। ओढा ने ओलखतांई, गड़ूल रा फूलां री बेल रा पानड़ा में उधाड़़ा डील ने छापयो। सरमाती थकी हेलो पाड़ियो- "ओढा जाम"

सरमाती थकी हेलो पाड़ियो- "ओढा जाम, मूंडो फेर दे अबे म्हूं थारो एकलमल्ल नीं, अस्त्री हूं।"
एकणदम ओढ़े आंखियां मींंच लीधी, मोटो कसूर व्है गियो व्हे ज्यूं पूठ फेर ऊभो तो रै गियो पण कालजा मेंं जांणैे सौ सौ दीवा जुप गिया, कालजो कूदवा लागियो। पसेवां सूं अंग भीज गियो। जेठ में तपती मारवाड़ री धरती पे मेहुलो आय बरसियो।
पदमणी रो ई हिवड़ो धड़क रियो, धड़कते हिवड़े गाबा पैर हेलो पाड़ियो- "ओढा जाम।"
ओढ़ो फिर न झांके, साखयात पदमणी, इन्दर री अपछरा ऊभी, बालां में संू पांणी रा टोपा पड़ रिया। पाबासर री हंसणी ज्यूं हालती, सिंगलद्वीप री हथणी ज्यूं चालती कनें आय ओढ़ा रो हाथ पकड़ियो, "आवो, ओञा रैलास में चालां।"
ओढा री पलकां झपकी नीं, मूंडा सूं बोल निकलियो नीं, वो तो वीभलिया नैणां सूं देखीज रियो, या एकलमल्ल? ये चंपा री डाल जेड़ी बांह्या ने वे बाणावली सूं करड़ा पड़या हाथ? लोहरा बगतर नीचे यो रुप रो भंडार? वो तीर भणकातो जवान गुलाब री पांखड़ी बण न ऊभी है। व पागड़ा मेंं पग दे ऊभो व्हे घोड़ो दौड़ाणियो मड़द कदली री कांबड़ी, दांवदी रा फूल ज्यूं झोला खाय री है।
"ओढा जाम, चालो, कांई विचार में पड़ गिया। डूंगरा री गुफा में सिलड़ियां रा रैवास में चालो। अबै म्हूं थारो एकलमल्ल नींं , होथल हूं। अठै म्हारो रैवास है।"
ओढो बोलणो चावै पण बोल उण रा गला में अटक रिया, आणंद रे मारियां बोलणी नीं आवे। देही में कंप कंपी आय री। आंखियां जलजली व्हेय री। मन में अणगणती री वातंा ऊकल री कैवा ने पण जींभ हाले नीं।
सिलाड़ी माथे ओढा ने बैठायो, केल रपा पानां मेंं फल मूल लाय मेल्हिया "जीमो, ओढा। वन मेंं तो कन्द मूल ई ज है, और कांई मनवार करुं।"
होथल कने बेठगी, टाल टाल कन्द मूंडागे मेल्हे जीमवाने। ओढा ने लाग रियो, सुरग में नंदण वन कैवो करे जो यो है। "थां आय गिया तो म्हने लागियो म्हारो जीव काढ कोई सागै लेय चालियो। सांच बताऊं थनेंं, ये तीन दिन काढिया जो म्हारो जीव जाणे। अठे आतां आतां तो निरास व्हेगियो। आस छूटगी, पण किस्मत देख।"
"किस्मत?"

"इण सूं बधकी कांई किस्मत व्हैं? या तो थूं मिलगी, नीं मिलती तो ई आखी उमर थूं कालजा मेंं बसी रैवती। आज तांई म्हूं कठै ई नेह रा डोरा में नीं बांधियो । थारे सागे मन नेहरी एड़ी डोर में बंध गियो के छुड़ायां छुटै नीं तोड़या टूटे नीं।"

होथल नीची आंखियां कीधां सुणे, ओढो कैवतो जावे, होथल रा रुप मेंं नींं एकलमल्ल रा रुप में ई म्हूं पूजवा लाग गियो थनें। या मिनख रा हाथ री वात नीं है। पूरबला संस्कार व्हे। भगवान काया रो भांडो घड़ै जदी आप आप रो संस्कार घाल दे। कुम्हारा घड़ो बणावे, घड़ा ने फैंक दो फूट जावे, न्यारी न्यारी ठीकरियां व्हे जावे। दूजी हाजारां ठीकरियां ने भेली कर जोड़ो कदै ई एक ठीकरी दूजी ठीकरी सूं जुड़ै नींं, जमैं नींं। पण उण ई ज हांड़ा री दो जोड़ री ठीकरीं ने लेय जोड़ो झटाक देणी रा एक ठीकरी  रा खांचा दूजी ठीकरी सूं बैेठ जावै। या नजीर मिनखां पे ई खरी उतरे। आपां भगवान रा बणायोड़ा एक भांडा री जुटा हुयोडी ठीकरी हां, मिलतां ई खटाक देणी रा खांचा बैठ गिया। यूं हजारां मिनखां सूं मिलां कठै ई मन रा खांचा बैठे ई नींंं।
होथल ने सुणवा में आणंद आय रियो पण नीची आंख्या कीधां बैठी।
थोड़ी ताल रुक ओढे पूछ्यो "एक बात पूछूं? बतावेला?"
"पूछो। "धीरेकरी होथल बोली"
"अतरा दि आंपां भेला रिया हां, थने म्हूं, केड़ोक लागियो?"
 होथल रा गाल कानां तांई राता पड़ गिया, पलकां नीची झुकगी छाती में सास भर गियो, बोलवा ने मूं़डो त खोलियो पण बोलणी नींं आयो।
ओढा रा मन में आई होथलने कालजो चीर न बताय दूं, हिवड़ा रा एक एक पड़ ने बताय दूं के पड़ पड़ मांय ने थूं बैठी है। ओढो बतावणो चावे पण लफज नीं लाधे। एड़ी गत कदै ई को नीं व्हीं। ओढो रो घणी दांण काम पड़ियो वो बोलियो तो सुस्त पड़िया कमरां  कस लीधई, पाछी फिरती फौजां उण री ललकार पै माथा कटाय दीधा। मिनख कैवता ओढा री वांणी में तो अमी है। पण लफज फौलाद रा बणियोड़़ा बोले। ओढ़ा ने आपरी वाक सक्ति पे आंजस हो। पण ओढा ने आज लागियो मन री बात कैवणी कतरी दौरी है, हेर् यां लफज ई नीं लाधे। लफज लाधे तो गला में फंस जावे। ओढे होतल रा मूंडा पै आंखियां गाड़ा राखी।
ओढा री आंख री काली कीकी मांय ने होथल ने आपरी सबी दीखी होथल री रुंवावली ऊभी व्हेगी, तीखां नैणां सूं  झांकी। ओढे देखियो बाणावली रे बादर अबै ये तीर चढ़ाया है। ओढे् मुलकते मुलकते पूछई लीधो, "ये तीर मारणां कठा सूं सीखगी ?"
होथल लाल गुलाबी व्हेगी। उण रा डाबर नैणां में आपरी सबी देखतो ओढो बोलियो, म्हारी कल्पना री पूतली कोई घड़ो तो हूवहू वा थारा जेडी व्हे। जो म्हे कल्पना करी उण री एक एक रेखां थां में है। जो आदर्श म्हारी जिंदगी रा है, उणां आदर्शा री मूरती थूं है। थां बिना म्हूं अधूरा ने पूरो कर दे।"
होथल रो मांयलो मन मान रियो, यो सांची कैवे, इण री म्हारी परकरती बिलकुल एक है जांणे एक माटी रा घड़योड़ा व्हां। एक हांड़ा रा दो टूक व्हां। मन रो चंगो, मूंड़ो रो मीठो, बादरां परल बादर, अतरा दिन  भेले रिया पण कदै ई आप रा मूंडा सूं आप री तारीफ नींं कीधी। कतरी नरमाई सूं बोलरियो जांणै अरदास कर रियो व्है। यो केय रियो जो सांचा मन सूं कैय रियो इण रै मूं़डा ऊपरला भाव कैय रिया क यो कैवणो त घणो चावे पण कैवणी नीं आवे। पैली प त अस्त्री रे आगे हिंवड़ो खोलियो है ई। काछ रो, हाथ रो सांचो व्हेणो चावै।
"बोल म्हने अधूरा ने पूरा करेला?" ओढा रा नैणां में अरज ही, आरजू ही, आजीजी ही।
होथल रो कालजो कट गियो। टूटतां आकरां बोली "बोत मुसफल।"
"क्यूं? क्यूं? मुस्कल क्यूं?"
"ओढा, थांरे म्हारे निभै कोनींं।"
"क्यूं नीं निभै?"
"म्हूं जो मांगूला थां सूं देवणी नीं आवै।"
"मांग, मांग तो खरी। पिरथी माथै कुणसी कुणसी एड़ी चीज है जो औढौ होथल खातर लाय हाजर नींं करे। म्हारा सूं मांग तो खरी।" लोही रा चढ़ाव सूं ओढा रो मूंडो तम तम कर रियो।
"एक तो म्हूं मिनखां रे सागे गांम के नगरी में नीं रैवूंला। वन में रैवणो कबूल व्हे तो आगे वात करो।"
"वन में कांई नरक में रैवणो कबूल थारे लारे। होथल, जठै थूं बैठ जावेला बठै ई सुरग उत्तर आवेला। मंजूर। बता और कांई चाबै।"

"ओढा, म्हारे साथे संसार निभाणो खंाडे री धार है म्हूं पैला केय री हूं। म्हूं हूं अपछरा, कदै ई किण रे ई आगे थआं यो भेद कैय दीधो, उणी वेलां म्हूं उड़ जावूंला रोकी रुकूंला नींं। म्हारी ये सरतां मंजूर व्हे त म्हारो हाथ पकड़जे।"

"मंजूर" कैवतां ओढो होथल रो हाथ, आपरा हाथमें लेवा लागियो।
"पैलां बियाव करो। पछे संसार बसावां अठे वन में परणावेला कुण? पंडित कठै?"
"होथल, दो मन एक दूजा रे समर्पित व्हेग्या जठा पछे पिंंडत मन्तर कांई करे। समर्पण ई मोटो मन्तर है। आव, सूरज साखी कर आपां फेरां फिर जावां।"
दाड़म रा झाड़़ां रो दाखां री बेलकड़ियां रो मांडपो मांड ओढो होथल सूरज ने साखी कर फेरा कर गिया।
सिलाड़ियां रा "रैवास" अमरापुरी सूं अधक आणंददायी व्हे गिया, मगरा री गुफा म्हेलां ने मात करवा लागी, जंगल में मंगल व्हे गिया। वन रा कंद मूल पकवानां ने पाछा राखे। दोई जणां वन में रै वे, डुंगरां रो घर कीधो, पशु पंछीया रो परवार। वन रा झाड़ां सागैे रमै, फूलड़ां साथै  हंसे। परेवड़ां रा जोड़ा जूं दोई सागै रेै वे। सिलाड़ी माथै होथल ने कने  ले ओढो वैठे जद उण ने लागे सिंधासण माथै बैठ्यो है। सिधासण पै बेैठवा वालंा रे करम में यो सख कठै? सिघासण रो ख्याल  आतां ई ओढां ने कच्छ चींंता आय जावे, कच्छ री भौम आंखियां आगे चित्तराम ज्यूं मंड जावे, वठा रो लोग लुगायां रा उणियारा तस्बीरां ज्यूं आय ऊभा रै। ओढा ने लागे उणां रा नैण ओढा ने घरे आवा रै नूंता देय रिया है। डोकरां री आंखियां  में नेह रो नीर उझल रियो है। ओढो एकणदम उदास व्हे जावे,. होथल रो हाथ जलयोड़ो पंजो ढीलो पड़ जावे। चित्तड़ो कच्छ में जाय रमें, जलम भौम सूं जुहारां करवा लागै। होथल देखती रैय जावै।
 "ओढा कांई व्हेगियो थांरे"
"कांई नीं होथल।"
"कांई तो वात करतां करतां थां रुक गिया, कांई सोचवा लाग गिया? जीव कठी ने परो गियो?"
"कठी ने ई नीं, ला तीर काढ, नींसांणां लगावां।"
होथल ऊभी हाथ में कबांण नचावती ओढा रो मनड़ो कच्छ सूं पलट पाछो होथल रे ओलूं दोलूं भूंवाली खावा लागतो। जहाज रो पंछी उड़ उड़ाय न पाछो जहाज प ई घिर न आवे ज्यूं। सिलाड़यां रा पथराणां पे तारंा छाई रातां रो पछेवड़ो ओढ वे सोय जावे। जुगलजोड़ी ने झांकतो उणां रा सुख पे ईसको करतो चांद ई आभा में विचारतो रै तो।
एड़ा रस भरया संसार र पन रा बरस पनरा दिन ज्यूं बीत गिया। होथल रा आंगणां में दोे लाड़ूं जेड़ा बेटा रमे। होथल बेटां ने तीर चलावणो सिखावे, ओढो तरवार रा वार सिखावे। आप री दुनिया में मस्त।
झरमर झरमर छांटा पड़रिया, काला काला वादला हाथियां ज्यूं हड़ेला खायरिया। सारो वन हरियो कच्च व्हेय रियो। बिजलियां झापा झप झपाझप कर री। ओढो सिलाड़ी माथे अकलो बैठो आभा साम्हों झांक रियो। कनैं झखरो जैसल रम रिया। वादली मंगरी माथे लौटा री। सीली  सीली परवाही चालरी। वादली अर धरती रो मिलाप देख ओढा ने आपरी जलम भोम याद आई। आप र देस याद आयो। बालपणां रा मित्तर याद आया आई। भाई बंधा री वातां याद आई। जलम भौम रो मोह जोर पकड़ियो वो सैंगाने भूलियो अठै डूंगरां में बैठो हे, वादलो ई सालो साल आय धरती सूं मिल जावे उणने पनरा पनरा बरस व्हेगिया, देस री दसा ई नीं पूछी। उण देस ने जो माथा रो मुगट, कालजा री कर हो देस री माटी सूं वो बणियो उण देसरी पनरा बरसां सूं तिथ ई नींं पूछी। वठां रा मिनख सौरा है के दौरां? भाई दोनो हो, मरियो के जीवे? कुण रैयत री प्रतापाल करतो व्हेला? कुण चढ़ती कटकां ने ढाबतो व्हेला? कांई हवाल व्हेला लोगां रा?
ओढो तो बिना पीणी रा मांछला ज्यूं तड़फवा लागो। जमल भौमरी दिसा साम्हों जोंंवतो आपो भूलग्यो। जैसल रमतो, खेलतो आय बाप री गोद में बैठ्यो बाप ने बतलावे, बाप बोले नीं बाप रो हाथ खैचे, तीर कामठा सीखवाने कै पण ओढे रो चित्त तो कच्छ में जाय लागियो। बेटो हैरान व्हे मां ने जाय कहियो। "बापू तो बोले ई नीं। गोद नीचे उतार दीधो म्हनेंं।"
होथल दोड़ी आई देखे ओढा री आंखियां भर री। आपां भूलियां बैठो जांणे समाधी लागी व्हे। एड़ो गुमसुम तो ओढा ने कदैई नीं देखियो होथल छानां सूं पाछी ने ऊभी व्हे आंखियां भींच लीधी। पण ओढो बोलियो नीं। आंखियां उपर सूं हाथ दूरा कर दीधा।
"क्यूं? कांई रुसाणां हो?"
ओढा रा मूंड़ा परली चिंता ओर ई गैहरी व्हेगी।
"बोलो तो, व्हियो कांई। कांई चूक पड़गी?" होथल मुलकती जाय री'

"म्हारी पीड़ा थूं कांई समझे होथल।" ओढे एक छाती चीरतो गैहरो उसांस छोड़ियो। ओढा री आंखियां जलजलीज गी।

"ओढा, आज एड़ो दुख कांई उपजियो? किण री याद आई? कस्यो बिछड़यो व्हालो चींंता आयो?"
बिछड़या व्हाला रो नाम सुणतां ई ओढा रा नैंणां सूं टपाटप आंसूृड़ा रा टपकां पड़ गिया।
होथल ओढणी रा पल्ला सूं आंसूं पूंछती ओढा रा माथा में केसां में ज्यूं आंगलियां फेरे, ज्यूं आंसूंड़ा री धारा बैवे। ज्यूं ज्यूं आंसूंड़ा घणां टपके। होथल गलगली व्हेगी।
" वात कांई है ओढा? मन री कैव तो खरी। यूं रोय क्यूं रियो? आंसूड़ा सूं सिलाड़ी भीज गी रोता रोता नैण तांबा सरीखा राता पड़ गिया। क्यूं तरछोले म्हने बता तो खरी, कोई दूजी गोरली तारे चित्त चढ़गी है?"
होथल, ये वातां ओढा ने मत सुणा। थनें छोड़ दूजी, म्हारे चित्त चढे? झूठा वैम मत कर। म्हने म्हारा देस री जमल भौम री याद आयगी म्हारा भायां री म्हारी नगरी री याद म्हारो कालजो काट री है।  म्हारी नगरी रा मांंणस म्हने याद कर कर विसूरता व्हेला, गांमां री लुगायां म्हारा गीत जोड़ जोड़ गावती व्हेला, टाबरां ने कैण्यां सुणावती व्हेला। वठारो झाड़ झंकार, कांटो भाटो म्हने चित्तरतो व्हेला। रैयत री कुण संभाल करतो व्हेला। होथल, म्हने माफ कर, उणां ने भूलावूं पण भूलीजी कोयनी।
हरण अखाड़ा नह छूटै, जलम भौम मिनखांह
हाथी ने विन्द्याचली, वीसरसी मूवांह।।
"हिरणां ने उणां री आखड़ी हाथियां ने विंध्याचल परबत, मिनखां ने आपरी जलम भौम मरयां ई भूलीजै। जीवते जीव विसरीजे कोयनीं। म्हारा सूं भूलणी नीं आवे होथल, भूलणी नीं आवें।"
घर मोरां वन कुंजरां, आंबा डाल सूवांह
सज्जण कुवचन जमल गर, वीसरसी मूवांह।।
"मोरां ने उणां रा घर-डूंगर, हाथियां ने वन, सूंवा ने आंबा री डाल, सज्जण रा कह्योड़ा कुवचन  अर आपरी जलम भौम ये अतरा तो मरयां ई भूलणी आवे।"
होथल, म्हैं थनै वचन दे राखियो के वन में रैवूंला। वचन नींं तोडू पण जलम भौम रो मौह म्हारां सूं नीं छूटे। म्हने माफ कर, थूं इजाजत दे तो एकर एक नजर महारी कच्छ ने देख आवूं।
जलम भौम रो मोह देख होथल चकित रैयगी, "ओढा, छीज मत। थारी इच्छा व्हे ज्यूं करांला। पण कच्छ जाय पछतावोला। पनरा पनरा बरस व्हिया, मिनख भूल्या भूलाया, किण ने ठा किण राज व्हिया, किण रा पाट व्हिया। मिनख जात री आदत व्हे नैणां आगे रे जतरे प्रीत करे, नैणां सूं अलगो व्हियां बीसर जावे।"
"तो कच्छ रा मिनख म्हनें भूल जावे? होथल, जद थनै ठा ई कोयनी जनता री मोह माया कांई व्हे। थूं म्हारे सागे आय न तो देख, म्हारा कच्छ रा मिनखां रो हिड़दा रो रुप तो देख, धरती माथे नींं मिले एड़ा मोहीला मिनख। थूं देखती रे जावेला, थारा पे उतार उतार पांणी पीवे जो। कच्छ रा मिनख म्हने भूल जावे? म्हूं मिनखां ने भूल जावूं? होथल, चाल एकर म्हारा देसड़ला रा दरसण तो कर।"
"चालो ओढा, थारी या ई मरजी है तो।"
ओढा रे तो पांखड़ा निकल गिया। बेटां ने ले कच्छ साम्हो चालियो। कौड़ लाग रियो, उमंगायरियो ओढो। बेटां ने देसरी वातां सुणावतो जावे। सैंधा सैंधा डूंगर आया, तलायां आई। कच्छ रो रण आयो, ओढा र जीव ल्हेर ल्हेर व्हेयरियो। होथल ने बेटां ने बतावतो जावें। "इण भाखर मेंं म्हूं सिकार रमवा जावतो, इण मंगरी रा ढाल में फलाणो गांम है। उण गांव रो फलाणो पटेल है। इण छापर में म्हां उण कटक सूं झग़ड़ो कीधो, इण घाटी में यूं दुसमणां ने रोकियो। यो तलाव म्हें ऊभै रैय संघायो। इण बावड़ी रो पांणी घणो मीठो। ठैरो, थांने चखावूं। इण तलाई में बारा ई म्हीनां पांणी भरिजौ रेै। इण बड़ला रे हेटलो ओटो म्हेंं इण गांम रा मिनखां सागै, आपरा हाथां सूं चुणियो। इण गांम में भैस्यां ऊछेर पूरी हजार। हजार सूं ऊंची पण नीचीं नीं। टाबरां, थाक गिया व्हो तो ठैरो थांने दूध पावूं अठै, चरणोट एड़ी नामी है अठे री भैंस्या रो दूध एड़ो गाढो व्हे की टीली लगावो तो ठैर जावे।"
सांझ पड़वा ने आई। नगरी रा गौरवां में वल्या। ओढो बोलियो।

"होथल, देख देख जसम भौम री माया तो देख, अठा रो कण कण आपां रो समैलो कर रियो है। भाटा तक मुलक रिया है। रूंख थांसूं सलमां कर रिया है। झट चालां।"

होथल हंसी, म्हूं टाबरां ने लैय अठे बैठी हूं। थां जावो नंगरी में। जलम भौम तो थांने बंदाय री है पण मिनखां रो आवकार नंगरी में जाय पतवांण आवो। केड़ोक आवकार मिले, पछै टाबरां ने लेय चालां।
ओढो चालियो, अंधारो पड़ रियो। देखू्‌ं त खरी, मिनख म्हारी कांई कांई वातां करे। कुण कस्यां बिसर रियो है, कुण कांई कै चींतार रियो है। सुणतो लूं। गाबा ने आडा डोढा कर लीधा कोई ओलख नी ले। बरस पनरा तो व्हेगिया पण म्हनें नीं  ओलखै? म्हने कांई नीं ओलख े अंधारा में ऊभो रैय खंखारू तो म्हार कच्च रा मिनख ओलख ले म्हांरो ओढो है। माथा रा फेंटा ने अंवलो कंवलो आंटा बिखेर बंाधियो, कोई ओलख नीं ले। किण री नजर जो पड़गी "ओढो जाम ओढो जाम", नगरी रा ई दरवाजा सूं उण दरवाजा तक व्हे जावेला। छांने छांने पैला देखूं कांई कांई रुपक दे म्हारो नाम लेय रिया है।
एक घर रे ई ज नीं, गली रा इण खूंणां सूं उण खूंणा तांई रा सैग धरां रे कान लगावतो चालियो। लोग हंसरिया, बोल रिया, टाबर रम रिया, लुगायां भैस्यां री सेंड़ा काढ री, सासूं बहूवां ने सीख देय री, दादियां, नानियां दोयतां पोतां ने कैण्यां कैयरी। कठै ई ओढा रो नांम नीं। कठै ई ओढा री चरचा नीं। ओढा रो उछाह थोड़ो ओछो पड़ गियो। अठै घरां ेमेैं काम लाग रिया है। ठावां आदमी तो चौवट्टा में व्है के हथायां माथै बैठां व्है। वठै चाल सुणां। हथायां रे पछोकड़़े, थंाभा रे ओलखे ऊभो रे ओढो सुणै, अठीली वठीली वातं कर रिाय, राज दरबार री वातं कर रिाय, सुख दुख री चरचा कर रिया। पंचा रा न्यावां री कांण कसर काढ रिाय। पण ओढा रो नाम नीं, कठै  कोई चरचां नीं।
ओढा ने होथल री हंसी याद आई। कालजा में खटकारो पड़ियो, आखो गाम म्हने भूल गियो? होथल सांची कही नैणां आगे मिनख रे जतरे प्रीत है। म्हूं तो यां मिनखां पूंछड़े जीव देवा ने त्यार, ये म्हने भूल गिया। अतरा वेगा पनरा बरसां में ई। ढीला पगां पाछो फिरयो। गली मांयला एक घर सूं आवाज आई "बस ओढाणी,बस ओढाणी, मान जा।"ओढा रा पग रुकग्या। कांन लगायो "जेड़ो ओढा रा सुभाव ऐड़ो ई थारो। पावस! दूध दे अबै।"
ओढा ने याद आयो यो तो उण चारण रो घर है जिण ने वीं एकर भैंस दीधी ही। यो उण री पाडी ने लडाय रियो है? पछोकड़े ऊभा परदेशी री आंख में प्रीत रा आंसूं आयगिया।
ओढे कंुठो खटखटायो। आड़ो खुलियो।
"कुण?"
"ओढो?"
"ओढो? म्हारा बाप, भला दरसण दीधा। आव, पण ओढा कच्छ री धरती सूं निकल जा, धरती नकारो देय री है। अठे राज पाट दूंजा रा व्हे गिया। थागो लागण रो मोको नींं। रात्यूं रात निकल जा। समैं पलट गियो। धरा पलट गी।"
ओढो तो पग रगड़तो पाछो फिरियो।
"होथल, चालंा जलम भौम नकारो देय री है।"

"क्यू?"
"आज संसार री असली लीला देखी।"
"जलम भौम रो मोह जांण लीधो? "
"जांण ई लीधो अर मांण ई लीधो। चाल परा चालां।"
दोय बेटां ने ले गैलो लीधो। पीरांणे पाटण मासीयत भाई रो गांम आयो। गांम बारे तलाव  री  पाल पै ठैर गिया। मासीयत भाई, वांरो कडूंबो मिलण ने आयो।
तलाब पै पांणी पीवा नैं सिंध आबो करे, रात रा डूगरी माथे बोलिया। दोई जैसल अर जखरो तीर कबांण ले बोली साम्हा चालिया। उणंा ने बरजिया पण मानिया नींं। सिंध रे माथे भाटो फैंक ललकारियो, सिंध केसरवाली बिखरे,
झपट्यो। जैसल रा कबांण सूं छूट्योे तीर जो झपटता सिंध ने अधर रो अदर पोय लीधो।
साबास, साबास करतां सरदारां मोर थेपड़िया। दस बरस रा टाबर रा हाथां रो जौहर देख जणों जणों पूछवा लागियो "ओढा जाम, यो जोधां जिण रो थण चूंधियो उण खानदान रा नांम तो बतावो। यां रो नानेरो कठे?"
ओढा रा मंडा रो रंग एकणदम फीको पड़ गियो। होथल ने दियोड़ो वचन याद आयो।
"बढवांण रा पदमा झालां रे अठे।"
"इण नाम रो तो कोई है नीं वठे।"
"वीरपुर रा सोलंकिया रे अठे।"
"झूंठी वात। किण री बेटी, किण री पोती?"
"राठोड़ां रे अठे।"
"मानां नीं सांची सांची बतावो, यूं भौलाया म्हां लागवा वाला नींं।"
ओढा री जीभ रुकगी। रजपूत एक दूजा रे साम्हां झांक मुलकबा लागिया। जैसल अर जखरां रो मूं़डो रीस सूं रातो पड़गियो। आंखियां सूं तुडंगिया छूटवा लागा। बाप रे साम्हो साम्ह छाती तांण ऊभा व्हे तरवारां तांण लीधी।
"सांची क्यूं नींं बतावो? म्हाकी मां, में म्हाका नानैरा में कोई खोड़ है जो केवो नीं। म्हांकी मसखरी क्यूं कराय रियो  हो।"
"बेटा पछतावोला। मान जावो।"
"चावै जो व्हो, म्हांने तो बतावो। नीं तो माथो काट मरा म्हां तो।"
"थांरी मा मृतलोक री मानवी कोयनीं। इन्दर री अपछरा है।" अपछरा? सुणवा वालां री आंखिया फाटी रैयगी।
"धन्न है ओढो, धन्न है ओढा रो भाग।"
ईसका सूं बलयोड़ा कालजा सूं निकलया जै जै कारां रो सुवाद लेण रो ओढा कने मन कठे? भागियो होथल कनें। होथल कठे अबै?
बिछडियोडा सारस रा जोड़ा री नांई ओढो माथा फोड़ फोड़ प्राण दे दिया।

राज विक्रमादित, सकल गुणां री खान, चवदा विद्या निदान। जीव जिनावरां री बोली पण समझै। एक दिन री वात, राज जीमण जीम रियो, राणी परुस जीमाय री, राज री थाली में छौका परुसिया। कीड़ी उण रा नर ने कैय री, "थूं जा, राजा री थाली मांयनूं एक छौको म्हनें लाय दे। खावा री भावड़ आय री।"
नर कीड़ी बोली, "चाल, म्हूं थाली में वल थनेें छौको झेलावूं, थूं लैन भाग जाजे। राजा नैं ठा ई नीं पड़वा दां।"
कीड़िया ने यूं वातां करतां सुण राजा ने हंसाणो आय गियो।
राणी पूछियो "बतावो हंसणो क्यूं आयो?"
"नीं, कांई वात नीं।"
"राणी हठ मत झाल। कांई नीं।"
राणी तो हठ झाल लीधो, "नींं बतावो जतरे दांतण ई नीं करूं।"
राणी घणी समझाई, "थांनै बतायां म्हूं पाखांण रो व्हे जावूंला जो कैवावो मत। पण राणी मानै नीं,"चावे जो व्हो, म्हनें बतावणो ई पड़ेला।"
रंाणी दांतण नीं कीधो। राजा मनावतो - मनावतो हार थाकियो हार थाकियो छेवट में बोलियो, "नीं मानो तो चालो गंगा जीरे किनारे चालो , वठै बतावूं । पखांण रो तो बणणो है ई ज तो पछे गंगाजी रा घाट पै ई ज क्यूं नीं बणूं।"
 राणी गंगाजी जावा ने गांठड़ी बांध लीधी। राजा ई सैंगा मिल जुल हालिया। गंगाजी रे किनारे जाय डेरा दिया। राजा उदास थको हाथ मूंडो धोवा ने गियो। आगे एक बाकरो न छाली चर रिय। कने कुवो, राजा तो जिनावरां री बोली समझतो, वे वातंा कर रियो जो सुणवा लाग गियो।
छाली बोली ,"इण कुवा रे मांयने बेलड़़ी पसर री, उण रा पानड़ा खावां रो जीव कर रियो, जो म्हनें पानड़ा लाय दे।"
बाकरो बोलियो,"उण बैल़ड़ी रा पांनड़ा ले वा जावूं तो म्हूं मायंने परो पड़ूं।"
"पण म्हनेंं तो भावड़ आय री है, जो म्हारी भावड़ पूरी कर।"
"थने तो भावड़ आय री है, म्हूं परो मरुं, लेवा जावूं तो।"
"चावै जो व्हो, म्हारै तो ये पानड़ा लाइज दे।"छाली रुसावती बोली।
बाकरो हंसियो, म्हनैं थे राजा विक्रमादित रा मांजना रो जांणीयो कांई? रांणी हट मांड लीधी अर यो पाखांणा व्हेबा ने गंगाजी पै आय गियो। म्हूं राजा जेड़़ो मोलियो कोनी बिना वात थीरी जिद्द पूरी कर  मरवा ने जावूं। एक दांण रुसावती व्हे तो हजार दांण रुसाव।"
यूं कैय बाकरो तो आगे हालियो। राजा रै तो इणा री बात सुणता ई एकणदम अकल ठिकांणै आयगी।
"एक बाहरै म्हारी अकल बिसराय दीधी। मांटे बात केड़ीक सांची कहीं।"
राजा तो डेरे आवतां ई पाछो नगरी में जावा रो हूकम देय दीयो। राणी बोली "यूं कांई जावो। पैला म्हने वचा वात बताय पछै चालो।"
"रांणी, रैवादे,थांरी हठ पूरी करवाने म्हनेंं पाखांण रो कोनी व्हेणो।"
"नीं कैवो तो, या रुसाई।"
"एक दांण रुसावती हो तो हजार दांण रुसाव"
"म्हूं रुसाईगी तो म्हारा जेड़ी लुगाई मिलणी कोनी है वा।"
"थारो जेड़ी कांई मिलणी कोयनीं, एड़ी लावूं जिण री पगथली री होड़ ई थूं नीं करै।"
"एड़ा बोलिया हो तो चौबोली ने परण न लावो तो जांणूं। रांणी बोल वाहियो।"
राजा बोल झेल लीधो "थूं जा म्हूं तो चौबोली ने परणन घरै आवूंला।"
"राजा तो वठा सूं ई ज चौबोवी ेन परणवा व्हीर व्हेगीया। चौबोली घणी ज रुपाली। वींं एक आंट 
झेल राखी। कोई मिनख रात रा चार पौहर मांयने चार दांण उण ने मूंडै बोलाय दे तो उण ने परणै नीं बोलावणी आवे तो उण मिनख ने कैद में घाल दे। डोढी रे मूंड़ागै एक चांदी री मंडियोड़ी नौबत मेल राखी, एक चांदी रो डंको मेल राखियो। परणवा रा उम्मीदवार जो आवे, आय उण नौबत माथै डंका री दे। चौबोली रात ने उण ने म्हेंलां में बुलावे। सोला सिणगार कर बैठ जावे। उण ने बोलावा वाला सैेग रात बोलावारी कौसिस करैं पण वा बोलें नीं। दिन ऊगतां ई चौबोली तो आपरे मालियां में परी जावे उण मिनख ने कैद में घाल दे। यूं करतां चौबोली पूरा एक सौ आठ राजावां ने आपरां बन्दी बणाय लीया।"

अबै राजा विक्रमादीत वठै पूगिया। नंगरी रै बारै एक बावड़ी वठै जाय ने बैठिया। चौबोली सिनान करे जो डावड़ी आय वठा सूं पांणी ले जावे। डावड़ी बावड़ी पै आय पांणी सूं बोली, "थनैं चौबोली री आंण है, पांणी उझल न ऊपरै आय जा।"

पांणी उझल न ऊपरै आय गियो। भर कलसो सिनान सारूं पांंणी लैयगी। राजा वीर विक्रमादित देख रियो।
दूजै दिन उणी ज वेला राजा आय बावड़ी पै बैठ गियो। राजा रा हुकम में चार वीर। राजा फुरमावे जिण री तामील करे। राजा वींरां ने हुकम दीधो, "थां पांणी पै आड़़ा सोय जावो पांणी ने मत उझलवा दीजो"
"जो हुकम" कर, चारु वीर पांणी पै सोय गिया। चौबोली री डावड़ी लै चांदी रो कलसो सिनान सारुं पांणी भरवा आई। आवतां ई राजा सूं बोली, "पगां ने पांणी में लटकायां बैठियो है, काठ बारै। चौबोली रे सिनान सारूं पांणी ले वाने आई हूं।"
राजा पै ठसको जमाय डावड़ी बोली "चौबोली री आंण है पांणी बारे उझल जा।"
"राजा विक्रमादित री आंण है पांणी मत उझल।" राज बोलियो।
"बालण जोगो आयो है विक्रमादित री आंण देवाणियो। इण रे कहिये पांणी उझलतो रै जाय।"
"जो तो देख ले, पाणी उझलै के नीं।"
पांणी नीं उझलियो। डावड़ी पाछी बोली, चौबोली री आंण है पांणी उझल जा।"
पांणी तो है जठे रो जठै। घणी दाण कहरियो पण पांणी तो नीं उझलियो जो नी उझलयो। राजा बैठियो मुलकतो रियो।
पच पचाय डावड़ी रीता कलस लीधां म्हेलां पूगी। आगै चौबोली बाजोट पै बैठी। दांतण कर लीधो पांणी ने ऊड़ीक री। पांणी ले डावड़ा नीं आई तो रीस में राती पड़ री। डावड़ी ने रीता कलस देखी तो एड़ी री झाल चोटी रे जाय लागी।
"रांड, दो पोहैर लगाय न ता आई, फेर रीता कलस लै न आई।"
"बाईसा, पांणी उझलियो नीं, आपकी आंण धलावतां धलावतां लातरगी। एक बटाउ आयोड़ो बैठियो जो पांणीदीधे आंण घलाय दीधी के राज विक्रमादित री आंण है उझलियो तो। पांणी नीं उझलियो म्हूं कांई करुं।"
चौबोली ने घणई रीस आई "म्हारा राज में विक्रमादित री आंण कसी।"
अतराक में तो राज आय नौबत पै डंका मारिया तीन।
चौबोली री डावड़ियां बोली आय, "अरे, आयो जीं गैले जा पाछो मां बाप बाट नालता व्हेला। थारा जैड़ा पूरा एक सौ न आठ बैठिया घट्टिया पीस रहिया है। थारे घरे जा साजो साबतो।"
"कांई ठा घट्‌टी फैरु फेरुला के थारा बाईजी ने लारे ल2ैय न घरे जावूंला, आ तो काले सूरज री ऊगाली ठा पड़ेला।" राज जुबाब दीधो।
चौबोलू हूंकारोे भर लीधो "कै, संझ्या रा आय जावे।"
सांझ पड़ी राजा चौबोली रे म्हेलां चालिया। राजा वीरां ने हुकम दीधो "आज थां सूं काम पड़ियो है चौबोली तो यूं बोलवा ने नीं सोरे सांस। थां बठे लुक न बैठ जाओ।"
"जो हुकम" वीर बोलिया"आप सोच ई मत करो।"
राज जाय बैठिया, चौबोली सोला सिणगार कर बैठी, चौपड़ पासा ढालिया, पील जोत जगर मगर करती कनैं बलैं।
राजा रो एक वीर ढोलिया में छिप न बैठगियो। राजा चौबोली ने बतलाई मोकली वातां पूछी पण चौबोली तो भाटा री चोट। राजा लातर न ढोलिया ने बतलायो "ढोलिया चौबोली तो नीं बोले, थूं ई कोई बात कर जो रात कटै। चार घड़ी रात आगे पड़ी है।"

ढोेलियो बोलियो, राजा थूं अठै
 आपाणो राजस्थान
Download Hindi Fonts

राजस्थानी भाषा नें
मान्यता वास्ते प्रयास
राजस्तानी संघर्ष समिति
प्रेस नोट्स
स्वामी विवेकानद
अन्य
ओळख द्वैमासिक
कल्चर साप्ताहिक
कानिया मानिया कुर्र त्रैमासिक
गणपत
गवरजा मासिक
गुणज्ञान
चौकसी पाक्षिक
जलते दीप दैनिक
जागती जोत मासिक
जय श्री बालाजी
झुणझुणीयो
टाबर टोली पाक्षिक
तनिमा मासिक
तुमुल तुफानी साप्ताहिक
देस-दिसावर मासिक
नैणसी मासिक
नेगचार
प्रभात केसरी साप्ताहिक
बाल वाटिका मासिक
बिणजारो
माणक मासिक
मायड रो हेलो
युगपक्ष दैनिक
राजस्थली त्रैमासिक
राजस्थान उद्घोष
राजस्थानी गंगा त्रैमासिक
राजस्थानी चिराग
राष्ट्रोत्थान सार पाक्षिक लाडली भैंण
लूर
लोकमत दैनिक
वरदा
समाचार सफर पाक्षिक
सूरतगढ़ टाईम्स पाक्षिक
शेखावटी बोध
महिमा भीखण री

पर्यावरण
पानी रो उपयोग
भवन निर्माण कला
नया विज्ञान नई टेक्नोलोजी
विकास की सम्भावनाएं
इतिहास
राजनीति
विज्ञान
शिक्षा में योगदान
भारत रा युद्धा में राजस्थान रो योगदान
खानपान
प्रसिद्ध मिठाईयां
मौसम रे अनुसार खान -पान
विश्वविद्यालय
इंजिन्यिरिग कालेज
शिक्षा बोर्ड
प्राथमिक शिक्षा
राजस्थानी फिल्मा
हिन्दी फिल्मा में राजस्थान रो योगदान

सेटेलाइट ऊ लीदो थको
राजस्थान रो फोटो

राजस्थान रा सूरमा
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
आप भला तो जगभलो नीतरं भलो न कोय ।

आस रे थांबे आसमान टिक्योडो ।

आपाणो राजस्थान
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अ: क ख ग घ च छ  ज झ ञ ट ठ ड ढ़ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल वश ष स ह ळ क्ष त्र ज्ञ

साइट रा सर्जन कर्ता:

ज्ञान गंगा ऑनलाइन
डा. सुरेन्द्र सिंह पोखरणा, बी-71 पृथ्वी टावर, जोधपुर चार रास्ता, अहमदाबाद-380015,
फ़ोन न.-26925850, मोबाईल- 09825646519, ई-मेल--sspokharna15@yahoo.com

हाई-टेक आऊट सोर्सिंग सर्विसेज
अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्षर् समिति
राजस्थानी मोटियार परिषद
राजस्थानी महिला परिषद
राजस्थानी चिन्तन परिषद
राजस्थानी खेल परिषद

हाई-टेक हाऊस, विमूर्ति कोम्पलेक्स के पीछे, हरेश दुधीया के पास, गुरुकुल, अहमदाबाद - 380052
फोन न.:- 079-40003000 ई-मेल:- info@hitechos.com