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      पी. पी. कृष्णमाचारी

 

पुरावतों का आकोलाः बाल विवाह में कमी आई


पुरावतों का आकोलाः भीलवाड़ा जिले की सुवाणा पंचायत समिति का राजस्व गांव है जो सादडीयास पंचायत समिति का राजस्व गांव है जो सादडीयास पंचायत में आता है। पंचायत समिति मुख्यालय यहा से 10 किलोमीटर दूर तथा पंचायत मुख्यालय 7 किलोमीटर दूर है। बताते है कि यह गांव लगभग 500 वर्ष पुराना है तथा इसे महाराज जवानसिंह के वंशजों ने बसाया, पहले इस का नाम माफी का आकोला था। फिर इसे कानावतों का आकोला कहा जाने लगा तथा बाद में पूरवत ब्राह्मणों को दिए जाने के कारण इसका नाम पुरावत्तों का आकोला पड़ा। यहां लगभग 325 घर है तथा जनसंख्या 1800 के आसपास है। जातिय संरचना के अनुसार यहां ब्राह्मणों के 132, राजपूतों के 15, महाजनों के 3, जाटों के 7, खाती के 6, जाट के 7, कुम्हार के 11, बलाई के 20, भील के 25, रेगर का 1, हरिजन के 5, नाई के 2, दर्जी का 1, दरोगा के 7, ढोली के 2, चमरिया के 2, धधोबी का 1, गुसाई के 10, कीर के 30, गाडरी के 35, खारोल के 20 तथा गर्ग ब्राह्मण के 7 घर है। गांव में करीब 70 घर पक्के है। शेष सभी कच्चे है।
यहां का मुख्य व्यवसाय कृषि ही है। गांव में राजस्व जमीन लगभग 2 हजार बीघा है जिसमें से लगभग 800 बीघा पीवल, 850 बीघा बारानी तथआ 350 बीघा जमीन चनोट की है। यहां की जमीन रेतीली, भूरी, काली तथा दोमट है। मुख्य फसल गेहूं, जौ, मक्की, कपास, मूंगफली तथा सरसों है। बारानी फसलों में तिल्ली, उड़द, मूंग व ज्वार प्रमुख है। इसके अलावा कहीं – कहीं बाजरे की खेती भी की जाती है। गांव में बीजली लगभग 25 साल पूर्व आई। वर्तमान में लगभग 175 घरों में विद्युत कनेक्शन है जिनका उपयोग प्रकाश के लिए किये जाता है। इसके अलावा 45 व्यक्तियों के कुओं पर बिजली के कनेक्शन है। शिक्षा के लिए यहां उच्च प्राथमिक विद्यालय है। इसमे लगभग 150 छात्र-छात्राएं हैं। विद्यालय में सालरा गांव के बच्चे भी पढ़ने आते है। कक्षा 10 तक सुवाणा अथवा कोटूकोड़ा पढ़ने के लिए भीलवाड़ा जाना पड़ता है। गांव की शैक्षिक स्थिति संतोषप्रद है।
बड़ा गाँव होने के बावजूद यहां चिकित्सा को कोई व्यवस्था नहीं है। रोगी को गाड़ी थअवा ट्रेक्ट में लिटाकर सांगानेर अथवा भीलवाड़ा वाया कोटड़ी चलनेवाली दो निजी बसें आती जाती है, वो भी नियमित नहीं है तथा वर्षाकाल में पूर्णतः बंद रहती है। निकटतम बस स्टेण्ड कोठारी नदी का बस स्टेन्ड 3 किलोमीटर दूर है। प्रायः आकोला आने जानेवाले सभी यात्री यही से चढ़ते – उतरते है। दूसरा बस स्टेण्ड 5 किलोमीटर दूर सांगानेर चौराहा है, जहां से भीलवाड़ा – शाहपुरा बरास्ता, ढीकोला – सांगनेर की लगभग 10 बसें प्रतिदिन मिलती है। यूं भी सांगानेर से भीलवाड़ा जाने के लिए हर समय टेम्पो उपलब्ध रहते है। वर्षा कगे दिनों में आकोला का सम्पर्क सभी जगह से कट जाता है तथा इन दिनों यहां पहुंचना परेशानी भरा है।
गांव में लगभग 150 साइकिलें तथा 20 मोटर साइकिलें एवं स्कूटर है जिनसे भीलवाड़ा – कोटूकोटा सांगानेर आया जाता है। बस रूट स्थाई न होने से अधिकतर आवागमन में साइकिलो अथवा मोटर साइकिलों का ही उपयोग किया जाता है। गांव में पोयजल की कोई समस्या नहीं है। यहां हेण्डपंप है जिनमें पर्याप्त मीठा पानी है। इसके अलावा 3 सार्वजनिक कुईया है। जिसमें 1 प्याऊ की कूडी, 1 ब्राह्मणो की कूड़ी तथआ 1 हरिजनों की कुई है। इनमें भी पानी मीठा तथा पर्याप्त है ग्रामीणों में धार्मिक आस्था प्रबल है। सभी शूरू कार्यो में मुहुत देखा जाता है। मूहर्त पंडित मोनलाल शर्मा निकलते है।
गांव में 5 मंदिर है। इसमें चारभुजा का नृसिंहद्वारा 1, शिवालय 2 तथा हनुमान जी का मंदिर है। चारभुजा के मंदिर में पूजा अर्चना लक्ष्मण शर्मा करते है जिन्हें डोली की 4 बीघा जमीन दी गई है। इसके अलावा प्रतिदिन बाल भोग का आटा तथछा प्रति फसल 5 बीघा भूमि डोली की तथआ भोग का आटा प्रतिदिन दिया जाता है। शिवालय में लक्ष्मण पूजा अर्चना करते हैं। उन्हें केवल घड़ा ही दिया जाता है।
गांव में नाई हीरालाल है जो सभी की हजाम बनाते है तथा आधुनिक ढंग से बाल भी काटते है। इन्हैं प्रति फसल 15 किलोग्राम अनाज दिया जाता है। कटिंग का पैसा नकद लेते है। सुथारी व कार्य काशीराम, गोपाल से करवाते है। ये भी यजमानी में काम करते हैं तथा इन्हें 20 किलोग्राम अनाज प्रति फसल दिया जाता है। लुहारी का कार्य भैरू लुहार भी यजमानी में करते है तथा इन्हें भी अनाज ही दिया जाता है। गांव में मटके – भांडे तथा अन्य आवश्यक मिट्टी के बर्तन गोपी, सोहन, माग व शंकर कुम्हार सप्लाई करते है तथा इन्हें बर्तन के हिसाब से अनाज दिया जाता है। सामाजिक कार्यो में नाई तथा कुम्हार को अलपग से पारिश्रमिक दिया जाता है। सिलाई का सारा कार्य रामेश्वरलाल करते है।
गांव में शारदा शर्मा तथा घीसाजी खारोल री यहां जिगजाग की मशीने लगी है। जिन पूरी महिलाएं अपनी इच्छानुसार कसीदा निकलवाती है।
आटा पिसवाने के लिए यहां 2 चक्कियां है यहां अनाज पिसवाने के लिए आसपास के गांव से भी लोग आते है।
रोजमर्रा को जरूरते, जमनालाल कीर, लौ कीर, बालू कीर व एक महाजन की दुकाने से पूरी होती है।
गांव के कुओं का जलस्तर 40 से 60 फुट गहरा है तथा कुओं में पानी खुब है जिसके कारण गांव की आर्थिक हालत अच्छी हबै। इसके अलावा भीलवाड़ा के नजदीक होने के कारण लगभग 60 व्यक्ति प्रतिदिन भीलवाड़ा सिंथेटिक्स फैक्ट्रियां तथा लगभग 50 आदमी ईरास की फैक्ट्रियां में काम करने जाते है। इस कार्य से इनका जीवन स्तर ऊंचा उठा है।
खेती के लिए गांव में 100 बैलजोड़ियों है तथा लगभग उतनी ही बैलगाड़ियां है। खेती का पर्य इनसे ही किया जाता है। इसके अलावा गांव में मोहनलाल शर्मा के पास 3, मोहनदास के पास 1, मानसिंह के पास 1, खूमा बलाई एवं मादू लुहार के पास 1 – 1कुल 10 ट्रेक्टर है जिनसे गांव की समस्त खेती की जाती है।
खेती के अलावा ये ट्रेक्टर माल भी ढोते है। गांव में लगभग 500 गाये, 250 भैंसें व लगभग 3 हजार भेड़ें है। लगभग 300 किलोग्राम दूध प्रतिदिन यहां से भीलवाड़ा गाडरी ले जाते है। गायें अधिकार ईस है। इसके अलावा गांवमें 30 जरसी गाये भी है।
यहां के मुख्य त्यौहारों में होली, दिवाली, रक्षाबंधन, शीतला सप्तमी, जन्माष्टमी व गणेश चतुर्थी हौ। त्यौहार के दिन मुख्यतः लपसी-चावल, खीर, मालपूआ व पूड़ पकौड़ी बनाया जाता है। इसके अलावा भीलवाड़ा से मिठाईयां भी लाई जाती है।
यहां का मुख्य भोजन गेहूं व मक्की है। भोजन अधिकतर देसी चूल्हों पर बनाया जाता है। ईधन के रूप में गांव में ही उपलब्ध छाणा, लकड़ी व सूखे थोर काम में लेते है। ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा महाजनों को छोड़कर शेष समाज में नाते जाने व बेटी देकर बेटी लेने की प्रथआ है। सरहकार की सख्ती तथा गांव में शिक्षा के प्रसार के साथ ही बालविवाह में कमी आई है वही परिवार कल्याण के प्रति भी आस्था बूढ़ी है। गांव में शराब की एक दुकान है। महिलाओं में गहनों एवं श्रृंगार के प्रति गहरा लगाव है। कृषक समाज में मुख्यतः कड़ियां, तोड़े, हड़ा, टलका, कंरगती, खूगाली, पहनी जाती है वहीं अधिकाशंतः सोने का बोर व नाक में नथ पहनी जाती है। ब्राह्मण, क्षत्रिय व महाजनों में पबायजेव, गले में हार, टीका, नाक में सोने की लोंग कानों में झुमके अथवा टाप्स पहने जाते है। हाथों मे कहीं आते जाते समय सोने के कंगन पहने जाते है। सूती वस्त्र तो अब कहीं – कहीं ही दिखते है। पोलिस्टर के वस्त्रो का ही चलन है।
गांव में एक आंगनवाड़ी केन्द्र संचालित होता है जिसमें लगभग 50 बालक आते है जहां इन्हें पौष्टिक आहार वितरण किया जाता है। इसके अलावा गांव में दो अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र है। गांव में डाक की व्यवस्था अच्छी है। गांव से पंचायत मुख्यालय तथा पंचायत समिति तक की सम्पर्क सड़के केवल मिट्टी की है तथा वो भी टूटी फूटी है। गांव में आपसी सौहार्द्र की भावना खूब है। एक – दूसरे के सुख – दुख में सभी भागीदार होते है लड़ाई – झगड़ा हो तो भी गांवु के पांच बुजुर्गो के कहने सुनने पर समझौता हो जाता है। कोई अपवाद स्वरूप ही पुलिस तक जाता है। जन्माष्टमी तथा निर्जला ग्यारस पर बैलों को खुला रखने की परम्परा है। उस दिन बैलों से कोई काम नहीं लिया जाता।
चारभुजा के मंदिर पर प्रतिदिन 5 किलोग्राम अनाज कबूतरों को डाला जाता है तथा मकर संक्राति, शिवरात्रि, सूर्यग्रहण, चन्द्रप्रहण व निर्जला एकादशी के दिन पशुओं को विशेष रूप से चारा डाला जाता है।


खानदान के सजेर में प्रथम पुरुष बालाजी के पौत्र प्रेमाजी के चार पिड़िया दूरी दूसरो पिडी हाथीरामजीका वर्णन इस प्रकार है। हाथी रामजी के पांच पुत्र हुए।
प्रथम तिलकचंदजी द्वितीय कानजी, तृतिय पोखरदासजी, चदतुर्थ लखमीचंदनी तथा पंचम गंगाजी
प्रथम पुत्र तिलोकचंदजी के एक पुत्र हुआ निहालचंदजी इन दोनो पिता पुत्रने तपा...... सन्मनहोम मे पं. गम्भीर विजयजी (मूर्तिपूजक) के पास दिक्षा ली। पं. गम्भीर विजयकी शान्तमूर्ति तपागच्छ श्री वृद्धिविजय (वृद्धिचंदजी) महाराजकी सम्प्रदाय में रहे थे। इनके निष्य थे। पांचव शिष्य श्री हेमविरामजी थे। इन्ही के शिष्यत्व में श्री तिलोकचंदजी का नाम परिवर्तन कर तिलोक विजयजी रखा गया था। विवरण पृथक से अंकित है।
द्वितिय पुत्र कानजी थे कानजी के पुत्र निमाचंदजी हुए। तृतीयपुत्र पोखरदासजी के नवलजी हुए जोबहनगर (मालव) चल गये !
चतुर्थ पुत्र लखमीचंदजी तथा पंचम पुत्र गंगाजी निसन्तान होने से इनका आगे वंश नही चला।

रार्बेडो के विषय में ज्ञात हुआ कि संवत 1000 के करीब मारवाड के हथुडिया नामक ग्राम में ये लोग बसते थे। उनको बीजापुर के संव त996 और संवत 1153 के लेख में राष्ट्रकूट और हस्तिकुंडी नगरी का मालिक लिखा है ये राष्ट्रकूट शायद दक्षिण से आये थे क्योंकि वहां इनके बहुत से लेख मिले हैं मगर उनमें कोई भी लेख संवत 900 के पूर्व का नही हैं उनके ईधर आने का समय संवत 700 के पीछे मालूम होता है यहां आकर पहले ये हथुंड़ी नामक नगरी में जो कि इस समय अरावली पर्वत के नीचे वीरान पडी है बसे थे।
गोमल जाति भी स्वतंत्र जाति न होकर गहलों तो की एक शाखा है इसकी ख्वाति बबा रावल से हुई है यह इतिहास प्रसिद्ध बात है कि बाबा रावल ने संवत 7780 के पश्चात् मानराज मौरी से चित्तोड का राज लिया था इन गोयेला की राज मारवाड के इलोक में था जिसे कनौज से आकर राजेर्डो ने छीन लिया।
पुरावतों का आकोला भीलवाड़ा जिले की सुवाणा पंचायत समिति का राजस्व गाँव है। यह गांव लगभग 500 वर्ष पुराना है तथा इसे महाराज जवानसिंहजी के वंशजों ने बसाया पहले फिर इस का नाम माफी का आकोला था। इसे कानावतों का आकोला कहा जाने लगा तथा बाद में पुरावत ब्राह्मणों को दिये जाने के कारण इसका नाम पुरावतों का आकोला पड़ा।

मोहनबाईजी का जन्म आकोला में संवत 1971 आसाढ शुक्ला 5 को हुआ।
विवाह सवत 1983 बेसारवशुक्ला 3 को हुआ। उदयपुर में स्वर्गवास संवत् 2053 फागुनकृष्ण 10 को उदयपुर में हुआ।


नवी हीख


हरेक मनख अर जीव – जनावरां में अणूतो गण, किड़ी ने चावे कण तो हाथी ने चावे मण। भगवान जीव – जनावरा ने पूरी खुराक अर अकल देवे। अणी तरे ज्यूं भगवान री माया ई वदे, त्यूं अणी धरती परे हरेक मनख अर जीव जनावरां में अकल अर हम्प वदे। भगवान हरेक ने भला दन देवे अर मनख आपणा खद रा गणा ने वदावतो रेवे। कोई कदर करे गणा री तो कोई वात करे अवगणा री। वाताँ ऊं तो वात निपजे अर अनुभव ऊं ग्यांन, थां हुणजो या कैणी देयने घणो ध्यान।
एक गाम में छोटोक परिवार जणिमें दो लुगाया एक तो सासु अर दुजी बहु। दोया में अणूतों परेम एक दूजा ने देख्या वन रोट्या नीं खावे। असो लाड़ – कोड तो मां – बेटी अर बाप – बेटा रे वचे ई नीं व्है। अणी तरे अणी दोया रा आपस रा हेत ने देखे – देखेन गाम री हंगली लुगायां होचती के ये दोई आपस में कतरी हाऊं रेवे है। नीं कदी आपस में अर नीं कणी दूजाऊं लड़ाई करे। वे आपस में असी रेवे जाणे दोई एक दूजा रे काळजा री कोर व्है।
यो सब देखेन गाम री लुगायां घणा रिया बळती ही। गाम री पांच – सात लुगायां तो असा मौका री ताक में हीज रेती ही के कदी वो दन आवे जदी आपस में अणी दोया ने भिड़ाईने लड़ाई कराई दा। भगवान वणारी मंशा ने ई एक दन पूरी करे दिदी अर असो मौको आई ग्यो जणीरो वे नत वार मौको ताकती ही। एक दन परबाते जदी सासु आपणे घर रो काम निपटाईने घर रा आंगणा में बैठी ही वणी दाण एक पाड़ोसण आई। आईने वणी तो सासु रे मुन्डा़ आगे आपणी बहु री खोट खावा लागी के, अरे भाभी, कई केऊं? म्हारा बेटा री बहु आगे तो म्हूं घणी हारी थाकी हूं। वा तो दन – हवेर (आए-दन) लड़ाया करे। म्हारो तो नमुई केणो नीं माने अर म्हाने भूण्ड़ी – भूण्ड़ी गाळा देवे। अणी लुगाई रे आगे तो म्हने घर छोड़ेन जावा रो मन करे। म्हने असो लागे कदीक तो म्हने यो घर छोड़ेन जाणो पड़ेला। अबे थां खद वतावो असी बहु रे हाम्मे म्हूं वणा घर में कितर रेवुं?
पड़ोसण री सब वातां हुणेन सासुजी कियो के, हां बाई, भले कतरोई करो तोई बेटी – बहु में दन – रात रो फरक व्हिया करे है। बेटी खाण्ड़ अर बहु तो लूण हीज व्हैवे। सासुजी री या सब वात बहु रे काने पड़े ग्यी। यो सब हुणताई बहु रो तो माथो ठणक्यों अर मन ई मन में होचवा लागी के, म्हारी सेवा – चाकरी, परेम अर हार – हमाळ में असी कई खोट रै ग्यी ज्यो म्हारा सासुजी बेटी ने खाण्ड़ अर बहु ने लूण वताई। अणी वात परे वा मन ई मन में घूटती री अर होच करवा लागी। अणी वात ने होच-होचीन वणीने ताव (बुखार) आई ग्यो अर वा तो जाईने विछावणा परे हुई ग्यी।
आसंमा (शाम) री जदी सासुजी ने खबर पड़ी के आज म्हारी बहु अतरी देर तक हूती क्यूं है। सासुजी हूदी वणी रे पां गई अर पूछ्यों के, कई वात व्ही आज थूं हूती क्यूं है थारी आसंग (तबियत) हाऊं नीं है कई ? कई दूखे रियो है म्हने वताव ? सासुजी री वात परे नरीं देर तो वणी टाळम - टोळ किदी पछे घणी मुश्केल ऊं वतायो के, वणी ने ताव आई ग्यो। सासुजी ने यो हुणताई घणो होच व्हियो। सासुजी केयो के, बहु, चाल अबार थने सपाखाने ले चालू अर थने नीं चलाए तो म्हूं जाईने दवा लेई आऊं। यो परेम अर होच देखेन बहु ने तो अणूतो अचम्बो व्हियो के, म्हारा सासुजी म्हारे ऊं यो कसो लाड़ करे। एक आड़ी तो बहु ने लूण वतावे अर दूजी आड़ी यो कसो लाड़ करे।
अबे बहु होच्यो कई तो कई करू अर कणीने केऊं या वात जो म्हने मन ई मन में खा ई री है। पण सासुजी ने झमझवा में घणा दन नीं लाग्यां व्ही हमझी ग्या के, म्हारे बहु रे मन में कई न कई वात है, जणीऊं या अतरी छानी – मानी बैठी रेवे है अर कई वात – विसार ई नीं करे। जदी वणा आपणी बहु रे मन री वात जाणवा हारू वणिने यो पूछ्यो तो व्हा पेला तो नटी ग्यी पण घणी देर पूछवा परे सासुजी ने केयो के, आप म्हने यूं वतावो के म्हारा परेम री कटे कमी री जणीयु आप म्हने लुण अर आपरी बेटी ने खाण्ड वताई। आप जदी भड़े वाळी पाड़ोसण ऊं वाताँ करे रिया हा तो म्हैं आपरी सब वाताँ हूणे लीदी ही। जणी दन ऊं म्हारो खाणो – पिणो सब बन्द वेई ग्यो। म्हूं रेय – रेयने अणी वात पर होचवा लागी के म्हारे ऊं असो कई खोटो काम व्हियो।
या सब वात हुण ने सासुजी केवा लागा के, थारेऊं खोटो काम तो कई नीं व्हियों है। पण खाण्ड अर लूण वाळी वात में झुठ कई नीं है। वा तो हाची वात है। जितर खाण्ड व्है तोई अर नी व्है तोई कई फरक नीं पड़े पण लूण वना एक टेम ई नीं हरे। एक दन इ रोट्या में लूण नी व्हैवे तो अलूणी (वना लूण री) रोट्या नी खाई सका। अणी वाते बेटी खाण्ड व्हैवे तोई वा तो सासरा में रेवे, अबकी घड़ी में काम तो बहु हीज आवे। अणी दनीया में मनख करजदार ई लूण रा हीज वणे है।
या वात हुणताई बहु आपणा सासुजी रे पगा पड़ेन मापी मांगी। राम जाणे वणी रे मन में जो भेम रो मंगरो हो वो तो घरड्यो के नीं घरड्यो।

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